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Thursday 2 April 2015

Tulsi Mahatmya कल्पतरु तुलसी

श्री हरिप्रिया कल्पतरु तुलसी 

सनातन धर्म अथवा वैष्णव मत में आस्था रखने वाले सब व्यक्ति इस बात से परिचित हैं कि हिन्दू परिवारों के प्रत्येक घर में तुलसी का पौधा चिरन्तर से पूजा-पाठ का एक आवश्यक अंग रहा है। आस्था की पराकाष्ठ तो यहाँ तक है कि मृत्यु के समय जीवात्मा को गंगा जल के साथ यदि तुलसी दल का सेवन नहीं करवाया जाएगा तब तक उसकी सद्गति नहीं होगी।
अथर्ववेद और आयुर्वेद ने तुलसी को चमत्कारिक औषधीय गुणों का भण्डार होने के कारण ही मात्र तुलसी न कहकर इसको एक महाऔषघि, संजीवनी बूटी और तुलसी अमृत तक कह दिया है ।

दैनिक कर्म में तुलसी के प्रति आस्था और उसके प्रति पूजन कर्म इसीलिए सारे सनातनी एक मत से स्वीकार करते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि तुलसी में दैहिक, भौतिक और आध्यात्मिक तीनों सुखों को देने का गुण-धर्म विधि ने कूट-कूट कर भर दिया है।
तुलसी दास जी ने भी रामायण में लिखा है -

रामायुघ अंकित ग्रह, शोभा वरनि न जाई।
नव तुलसिकावृन्द तहँ, देखि हरष कपिराई।।

पौराणिक ग्रंथों में तुलसी का बहुत महत्व माना गया है।
जहां तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है,वहीं तुलसी पूजन
करना मोक्षदायक माना गया है।

हिन्दू धर्म में देव पूजा और श्राद्ध कर्म में तुलसी आवश्यक मानी गई है।
शास्त्रों में तुलसी को माता गायत्री का स्वरूप भी माना गया है।
गायत्री स्वरूप का ध्यान कर तुलसी पूजा मन,घर-परिवार से कलह व दु:खों का अंत
कर खुशहाली लाने वाली मानी गई है।

इसके लिए तुलसी गायत्री मंत्र का पाठ मनोरथ व कार्य सिद्धि में चमत्कारिक भी
माना जाता है।
तुलसी को दैवी गुणों से अभिपूरित मानते हुए इसके विषय में अध्यात्म ग्रंथों में काफ़ी कुछ लिखा गया है। तुलसी औषधियों का खान हैं। इस कारण तुलसी को अथर्ववेद में महाऔषधि की संज्ञा दी गई हैं। इसे संस्कृत में हरिप्रिया कहते हैं। इस औषधि की उत्पत्ति से भगवान् विष्णु का मनः संताप दूर हुआ इसी कारण यह नाम इसे दिया गया है।

ऐसा विश्वास है कि तुलसी की जड़ में सभी तीर्थ, मध्य में सभी देवि-देवियाँ और ऊपरी शाखाओं में सभी वेद स्थित हैं। तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है तथा पूजन करना मोक्षदायक। देवपूजा और श्राद्धकर्म में तुलसी आवश्यक है। तुलसी पत्र से पूजा करने से व्रत, यज्ञ, जप, होम, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है। ऐसा कहा जाता है, जिनके मृत शरीर का दहन तुलसी की लकड़ी की अग्नि से क्रिया जाता है, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं, उनका पुनर्जन्म नहीं होता। प्राणी के अंत समय में मृत शैया पर पड़े रोगी को तुलसी दलयुक्त जल सेवन कराये जाने के विधान में तुलसी की शुद्धता ही मानी जाती है और उस व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त हो, ऐसा माना जाता है।

देवता के रूप में पूजे जाने वाले इस पौधे ‘तुलसी’ की पूजा कब कैसे, क्यों और किसके द्वारा शुरू की गई इसके कोई वैज्ञानिक प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है। परन्तु प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार देव और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से ‘‘तुलसी’’ की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मदेव ने उसे भगवान विष्णु को सौंपा।

पद्म पुराण में लिखा है कि जहाँ तुलसी का एक भी पौधा होता है। वहाँ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी निवास करते हैं। आगे वर्णन आता है कि तुलसी की सेवा करने से महापातक भी उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे सूर्य के उदय होने से अंधकार नष्ट हो जाता है। कहते हैं कि जिस प्रसाद में तुलसी नहीं होता उसे भगवान स्वीकार नहीं करते। भगवान विष्णु, योगेश्वर कृष्ण और पांडुरंग (श्री बालाजी) के पूजन के समय तुलसी पत्रों का हार उनकी प्रतिमाओं को अर्पण किया जाता है। तुलसी - वृन्दा श्रीकृष्ण भगवान की प्रिया मानी जाती है और इसकी भोग लगाकर भगवत प्रेमीजन इसका प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। स्वर्ण, रत्न, मोती से बने पुष्प यदि श्रीकृष्ण को चढ़ाए जाएँ तो भी तुलसी पत्र के बिना वे अधूरे हैं। श्रीकृष्ण अथवा विष्णुजी तुलसी पत्र से प्रोक्षण किए बिना नैवेद्य स्वीकार नहीं करते।
इस पौधे की पूजा विशेष कर स्त्रियाँ करती हैं। सद गृहस्थ महिलाएं सौभाग्य, वंश समृद्धि हेतु तुलसी- पौधे को जल सिंचन, रोली अक्षत से पूजकर दीप जलाती हुई अर्चना-प्रार्थना में कहती है। सौभाग्य सन्तति देहि, धन धान्यं व सदा। वैसे वर्ष भर तुलसी के थाँवले का पूजन होता है, परन्तु विशेष रूप से कार्तिक मास में इसे पूजते हैं। कार्तिक मास में विष्णु भगवान का तुलसीदल से पूजन करने का माहात्म्य अवर्णनीय है।

तुलसी से जुड़ी कथाएँ
तुलसी से जुडी सबसे प्रचलित कथा शंखचूड़ नामक दैत्य की है जिसकी पत्नी तुलसी थी और श्री नारायण की महभक्त तुलसी के सतीत्व बल के कारण इन्द्रादि देवता तो क्या खुद परम् शक्तिशाली त्रिनेत्रधारी महादेव भी उससे नहीं जीत पा रहे थे। तब उन्होंने भगवान विष्णु से उसका सतीत्व भंग करने की प्रार्थना की। तब शंखचूड़ के आतंक से संसार को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने उसके पति का रूप बनाकर उसके सतीत्व को भंग किया और भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध किया। 

तुलसी को ये पता चलते ही उसने अपने आराध्य श्री नारायण को शिला यानि पत्थर का हो जाने कअ श्राप दिया। तब भगवन शिव ने तुलसी को ये आशीर्वाद दिया की विष्णु का पूजन तुम्हारे बिना कभी पूर्ण नहीं होगा। जहां भी उनकी पूजा होगी उससे पूर्व तुम्हारी पूजा होगी।

एक दूसरी कथा इस प्रकार है

धर्मध्वज की पत्नी का नाम माधवी तथा पुत्री का नाम तुलसी था। वह अतीव सुन्दरी थी। जन्म लेते ही वह नारीवत होकर बदरीनाथ में तपस्या करने लगी। ब्रह्मा ने दर्शन देकर उसे वर मांगने के लिए कहा। उसने ब्रह्मा को बताया कि वह पूर्वजन्म में श्रीकृष्ण की सखी थी। राधा ने उसे कृष्ण के साथ रतिकर्म में मग्न देखकर मृत्यृलोक जाने का शाप दिया था। कृष्ण की प्रेरणा से ही उसने ब्रह्मा की तपस्या की थी, अत: ब्रह्मा से उसने पुन: श्रीकृष्ण को पतिरूप में प्राप्त करने का वर मांगा। ब्रह्मा ने कहा -- तुम भी जातिस्मरा हो तथा सुदामा भी अभी जातिस्मर हुआ है, उसको पति के रूप में ग्रहण करो। नारायण के शाप अंश से तुम वृक्ष रूप ग्रहण करके वृंदावन में तुलसी अथवा वृंदावनी के नाम से विख्यात होगी। तुम्हारे बिना श्रीकृष्ण की कोई भी पूजा नहीं हो पायेगी। राधा को भी तुम प्रिय हो जाओगी। ब्रह्मा ने उसे षोडशाक्षर राधा मंत्र दिया

तुलसी गायत्री मंत्र व पूजा की आसान विधि -

- सुबह स्नान के बाद घर के आंगन या देवालय में लगे तुलसी के पौधे की गंध,फूल,
लाल वस्त्र अर्पित कर पूजा करें।
फल का भोग लगाएं।
धूप व दीप जलाकर उसके नजदीक बैठकर तुलसी की ही माला से तुलसी गायत्री मंत्र
का श्रद्धा से सुख की कामना से कम से कम 108 बार स्मरण अंत में तुलसी की
पूजा करें -

ॐ श्री तुलस्यै विद्महे। विष्णु प्रियायै धीमहि।
तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।

घर की महिलाएं यदि घर-आँगन में तुलसी स्थापित करके मंत्र जाप करती हैं तो भगवान विष्णु का मनः संताप दूर करने वाली हरिप्रिया उनका जीवन सुख और समृद्धि से अवश्य ही भरती हैं।

तुलसी जी का नित्य जप मंत्र है-

सौभाग्यं सन्तति देवि,
धनं धान्यञ्च शोकशमनं,
कुरु मे माधवप्रिये।।

श्री गणेश जी को वर्जित है तुलसी चढ़ाना

     जो तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है, इतनी प्रिय की भगवान विष्णु के ही एक रूप शालिग्राम का विवाह तक तुलसी से होता है वही तुलसी भगवान गणेश को अप्रिय है, इतनी अप्रिय की भगवान गणेश के पूजन में इसका प्रयोग वर्जित है।  पर ऐसा क्यों है इसके सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा है -

एक बार श्री गणेश गंगा किनारे तप कर रहे थे। इसी कालावधि में धर्मात्मज की नवयौवना कन्या तुलसी ने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर प्रस्थान किया। देवी तुलसी सभी तीर्थस्थलों का भ्रमण करते हुए गंगा के तट पर पंहुची। गंगा तट पर देवी तुलसी ने युवा तरुण गणेश जी को देखा जो तपस्या में विलीन थे। शास्त्रों के अनुसार तपस्या में विलीन गणेश जी रत्न जटित सिंहासन पर विराजमान थे। उनके समस्त अंगों पर चंदन लगा हुआ था। उनके गले में पारिजात पुष्पों के साथ स्वर्ण-मणि रत्नों के अनेक हार पड़े थे। उनके कमर में अत्यन्त कोमल रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था।
तुलसी श्री गणेश के रुप पर मोहित हो गई और उनके मन में गणेश से विवाह करने की इच्छा जाग्रत हुई। तुलसी ने विवाह की इच्छा से उनका ध्यान भंग किया। तब भगवान श्री गणेश ने तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया और तुलसी की मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर उसके विवाह प्रस्ताव को नकार दिया।
श्री गणेश द्वारा अपने विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर देने से देवी तुलसी बहुत दुखी हुई और आवेश में आकर उन्होंने श्री गणेश के दो विवाह होने का शाप दे दिया। इस पर श्री गणेश ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। एक राक्षस की पत्नी होने का शाप सुनकर तुलसी ने श्री गणेश से माफी मांगी। तब श्री गणेश ने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा। किंतु फिर तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी। पर मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा।

तब से ही भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी वर्जित मानी जाती है।

 महिलाओं के लिए अनेक शास्त्रकारों ने तुलसी पूजन का विशेष महत्त्व बताया है। अनेक धर्म ग्रंथों में अध्यात्म की दृष्टि से तुलसी के अनेक विवरण मिल जाएंगे।

क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया कि आपके घर,परिवार या आप पर कोई 
विपत्ति आने वाली होती है तो उसका असर सबसे पहले आपके घर में स्थित तुलसी
के पौधे पर होता है। 

आप उस पौधे का कितना भी ध्यान रखें धीरे-धीरे वो पौधा सूखने लगता है।
तुलसी का पौधा ऐसा है जो आपको पहले ही बता देगा कि आप पर या आपके घर
परिवार को किसी मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है।

पुराणों और शास्त्रों के अनुसार माना जाए तो ऐसा इसलिए होता है कि जिस घर पर
मुसीबत आने वाली होती है उस घर से सबसे पहले लक्ष्मी यानी तुलसी चली जाती है।
क्योंकि दरिद्रता,अशांति या क्लेश जहां होता है वहां लक्ष्मी जी का निवास नही होता।
अगर ज्योतिष की माने तो ऐसा बुध के कारण होता है। बुध का प्रभाव हरे रंग पर होता
है और बुध को पेड़ पौधों का कारक ग्रह माना जाता है।

ज्योतिष में लाल किताब के अनुसार बुध ऐसा ग्रह है जो अन्य ग्रहों के अच्छे और बुरे
प्रभाव जातक तक पहुंचात है।

अगर कोई ग्रह अशुभ फल देगा तो उसका अशुभ प्रभाव बुध के कारक वस्तुओं पर
भी होता है। 

अगर कोई ग्रह शुभ फल देता है तो उसके शुभ प्रभाव से तुलसी का पौधा उत्तरोत्तर
बढ़ता रहता है।
बुध के प्रभाव से पौधे में फल फूल लगने लगते हैं।

प्रतिदिन चार पत्तियां तुलसी की सुबह खाली पेट ग्रहण करने से मधुमेह,रक्त विकार,
वात,पित्त आदि दोष दूर होने लगते है।

मां तुलसी के समीप आसन लगा कर यदि कुछ समय हेतु प्रतिदिन बैठा जाये तो श्वास
के रोग अस्थमा आदि से जल्दी छुटकारा मिलता है।

घर में तुलसी के पौधे की उपस्थिति एक वैद्य समान तो है ही यह वास्तु के दोष भी
दूर करने में सक्षम है हमारें शास्त्र इस के गुणों से भरे पड़े है जन्म से लेकर मृत्यु
तक काम आती है यह तुलसी.

मामूली सी दिखने वाली यह तुलसी हमारे घर या भवन के समस्त
दोष को दूर कर हमारे जीवन को निरोग एवम सुखमय बनाने में सक्षम है माता के
समान सुख प्रदान करने वाली तुलसी का वास्तु शास्त्र में विशेष स्थान है।
हम ऐसे समाज में निवास करते है कि सस्ती वस्तुएं एवम सुलभ सामग्री को शान
के विपरीत समझने लगे है।

महंगी चीजों को हम अपनी प्रतिष्ठा मानते है।

कुछ भी हो तुलसी का स्थान हमारे शास्त्रों में पूज्यनीय देवी के रूप में है तुलसी को
मां शब्द से अलंकृत कर हम नित्य इसकी पूजा आराधना भी करते है।
इसके गुणों को आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता है।

इसकी हवा तथा स्पर्श एवम इसका भोग दीर्घ आयु तथा स्वास्थ्य विशेष रूप से
वातावरण को शुद्ध करने में सक्षम होता है।

शास्त्रानुसार तुलसी के विभिन्न प्रकार के पौधे मिलते है उनमें श्रीकृष्ण तुलसी,
लक्ष्मी तुलसी,राम तुलसी,भू तुलसी,नील तुलसी,श्वेत तुलसी,रक्त तुलसी,
वन तुलसी,ज्ञान तुलसी मुख्य रूप से विद्यमान है।

सबके गुण अलग अलग है शरीर में नाक कान वायु कफ ज्वर खांसी और दिल की
बिमारियों परविशेष प्रभाव डालती है।

वास्तु दोष को दूर करने के लिए तुलसी के पौधे अग्नि कोण अर्थात दक्षिण-पूर्व से
लेकर वायव्य उत्तर-पश्चिम तक के खाली स्थान में लगा सकते है यदि खाली
जमीन ना हो तो गमलों में भी तुलसी को स्थान दे कर सम्मानित किया जा सकता है।

तुलसी का गमला रसोई के पास रखने से पारिवारिक कलह समाप्त होती है।
पूर्व दिशा की खिडकी के पास रखने से पुत्र यदि जिद्दी हो तो उसका हठ दूर होता है।
यदि घर की कोई सन्तान अपनी मर्यादा से बाहर है अर्थात नियंत्रण में नहीं है तो
पूर्व दिशा में रखे।

तुलसी के पौधे में से तीन पत्ते किसी ना किसी रूप में सन्तान को खिलाने से सन्तान
आज्ञानुसार व्यवहार करने लगती है।

कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो तो अग्नि कोण में तुलसी के पौधे को कन्या
नित्य जल अर्पण कर एक प्रदक्षिणा करने से विवाह जल्दी और अनुकूल स्थान में
होता है सारी बाधाए दूर होती है।


यदि कारोबार ठीक नहीं चल रहा तो दक्षिण-पश्चिम में रखे तुलसी कि गमले पर
प्रति शुक्रवार को सुबह कच्चा दूध अर्पण करे व मिठाई का भोग रख कर किसी
सुहागिन स्त्री को मीठी वस्तु देने से व्यवसाय में सफलता मिलती है।

नौकरी में यदि उच्चाधिकारी की वजह से परेशानी हो तो ऑफिस में खाली जमीन
या किसी गमले आदि जहाँ पर भी मिटटी हो वहां पर सोमवार को तुलसी के सोलह
बीज किसी सफेद कपडे में बाँध कर सुबह दबा दे सम्मान की वृद्धि होगी।

नित्य पंचामृत बना कर यदि घर कि महिला शालिग्राम जी का अभिषेक करती है
तो घर में वास्तु दोष हो ही नहीं सकता।

अति प्राचीन काल से ही तुलसीपूजन प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर पर होता आया है
तुलसी पत्र चढाये बिना शालिग्राम पूजन नहीं होता।

भगवान विष्णु चढायेप्रसाद,श्राद्धभोजन.देवप्रसाद,चरणामृत व पंचामृत में तुलसी
पत्रहोना आवश्यक है अन्यथा उसका भोग देवताओं को लगा नहीं माना जाता।
मरते हुए प्राणी को अंतिम समय में गंगाजल के साथ तुलसी पत्र देने से अंतिम
श्वास निकलने में अधिक कष्ट नहीं सहन करना पड़ता तुलसी के जैसी धार्मिक
एवं औषधीय गुण किसी अन्य पादप में नहीं पाए जाते हैं।

तुलसी के माध्यम से कैंसर जैसे प्राण घातक रोग भी मूल से समाप्त हो जाता है
आयुर्वेद के ग्रंथों में ग्रंथों में तुलसी की बड़ी भारी महिमा का वर्णन है इसके पत्ते
उबालकर पीने से सामान्य ज्वर,जुकाम,खांसी तथा मलेरिया में तत्काल रहत
मिलती है तुलसी के पत्तों में संक्रामक रोगों को रोकने की अद्भुत शक्ति है।
सात्विक भोजन पर मात्र तुलसी के पत्ते को रख देने भर से भोजन के दूषित होने
का काल बढ़ जाता है जल में तुलसी के पत्ते डालने से उसमें लम्बे समय तक कीड़े
नहीं पड़ते।

तुलसी की मंजरियों में एक विशेष सुगंध होती है जिसके कारण घर में विषधर सर्प
प्रवेश नहीं करते परन्तु यदि रजस्वला स्त्री इस पौधे के पास से निकल जाये तो यह
तुरंत म्लान हो जाता है अतः रजस्वला स्त्रियों को तुलसी के निकट नहीं जाना चाहिए।
तुलसी के पौधे की सुगंध जहाँ तक जाती है वहाँ दिशाओं व विदिशाओं को पवित्र करता
है एवं उदभिज,श्वेदज,अंड तथा जरायु चारों प्रकार के प्राणियों को प्राणवान करती हैं अतः
अपने घर पर तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं तथा उसकी नियमित पूजा अर्चना भी करें।
आपके घर के समस्त रोग दोष समाप्त होंगे।

जय तुलसी मैय्या

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।। जय श्री राम ।।
8909521616(whats app)
7579400465
7060202653

2 comments:

  1. Maine tulsi seeds tod kar gamle me dal diye ye beez maine prathna ke bad tode the taki orr pothe ugg sake ek aurat khti h ye paap hai or mujhe tulsi vivah krana hoga jbki meri kya hasiyat jo mai bhagwan rupi vivah sampan krau

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