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Thursday 28 April 2016

माँ बगुलामुखी हवन 14 मई 2016 Bagulamukhi hawan 14 may 2016

मित्रों,
  आगामी 14 मई को केदारनाथ के निकट कालीमठ धाम रुद्रप्रयाग, उत्तराखण्ड में 12 घण्टे का भव्य माँ बगलामुखी का हवन होगा।

देवी भागवत् और लोक मान्यता अनुसार ये वही स्थान है जहां माँ महाकाली ने रक्तबीज का संहार किया था।
13-14 मई को हम वहीं रहेंगे।

सम्भवतः 15 मई को हरिद्वार में पुनः बगला हवन होगा।

 जो मित्र कालीमठ के हवन में शामिल होना चाहते हैं वे निम्न नम्बरो पर सम्पर्क कर सकते हैं।

यदि आप शामिल नहीं हो सकते किन्तु हवन में अपने लिए या पुरे परिवार निमित्त सुरक्षा, शत्रुनाश, और समृद्धि हेतु आहुति की भागीदारी यानि अपने और अपने परिवार के नाम से आहुति दिलवाना चाहते हैं तो भी सम्पर्क कर सकते हैं।
जिसके लिए आपके और परिवार के नाम से संकल्प कर आहुति दी जाएँगी। इसमें आपका/ परिवार सदस्यों का नाम, पिता, दादा का नाम, कुल, गोत्र की आवश्यकता होगी।

।।जय श्री राम।।
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Thursday 21 April 2016

Hanuman Jayanti 2016 हनुमान जयंती 2016

हनुमान जयंती 2016 विशेष उपाय

हनुमान जयंती पर करें ये उपाय :-
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धर्म ग्रंथों के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 22 अप्रैल, शुक्रवार को है।

हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचारी व महायोगी भी हैं। इसलिए सबसे जरूरी है कि उनकी किसी भी तरह की उपासना में वस्त्र से लेकर विचारों तक पावनता, ब्रह्मचर्य व इंद्रिय संयम को अपनाएं।

1. हनुमान जयंती पर हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढाएं। हनुमानजी को चोला चढ़ाने से पहले स्वयं स्नान कर शुद्ध हो जाएं और साफ वस्त्र धारण करें। सिर्फ लाल रंग की धोती पहने तो और भी अच्छा रहेगा। पूर्णिमा तिथि या शनिवार को हनुमानजी को तिल या चमेली का तेल मिले सिंदूर से चोला चढ़ाने से सारी भय, बाधा और मुसीबतों का अंत हो जाता है। चोला चढ़ाते वक्त इस मंत्र का स्मरण करें -

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यसुखवर्द्धनम्। शुभदं चैव
माङ्गल्यं सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।।

चोला चढ़ाने के लिए चमेली के तेल का उपयोग करें। साथ ही, चोला चढ़ाते समय एक दीपक हनुमानजी के सामने जला कर रख दें। दीपक में भी चमेली के तेल का ही उपयोग करें ।

चोला चढ़ाने के बाद हनुमानजी को गुलाब के फूल की माला पहनाएं और केवड़े का इत्र हनुमानजी की मूर्ति के दोनों कंधों पर थोड़ा-थोड़ा छिटक दें। अब एक साबूत पान का पत्ता लें और इसके ऊपर थोड़ा गुड़ व चना रख कर हनुमानजी को इसका भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद उसी स्थान पर थोड़ी देर बैठकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र का जाप करें। कम से कम 5 माला जाप अवश्य करें।

मंत्र- राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने।।

अब हनुमानजी को चढाए गए गुलाब के फूल की माला से एक फूल तोड़ कर उसे एक लाल कपड़े में लपेटकर अपने धन स्थान यानी तिजोरी में रखें। आपको कभी धन की कमी नहीं होगी।

2. हनुमान जयंती को शाम के समय समीप स्थित किसी ऐसे मंदिर जाएं, जहां भगवान श्रीराम व हनुमानजी दोनों की ही प्रतिमा हो। वहां जाकर श्रीराम व हनुमानजी की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी के दीपक जलाएं। इसके बाद वहीं भगवान श्रीराम की प्रतिमा के सामने बैठकर हनुमान चालीसा तथा हनुमान प्रतिमा के सामने बैठकर राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। इस उपाय से भगवान श्रीराम व हनुमानजी दोनों की ही कृपा आपको प्राप्त होगी।

3 हनुमानजी को प्रसन्न करने का यह बहुत प्राचीन टोटका है।

हनुमान जयंती पर सुबह स्नान आदि करने के बाद बड़ के पेड़ से 11 या 21 पत्ते तोड़ लें। ध्यान रखें कि ये पत्ते पूरी तरह से साफ व साबूत हों। अब इन्हें स्वच्छ पानी से धो लें और इनके ऊपर चंदन से भगवान श्रीराम का नाम लिखें। अब इन पत्तों की एक माला बनाएं। माला बनाने के लिए पूजा में उपयोग किए जाने वाले रंगीन धागे का इस्तेमाल करें। अब समीप स्थित किसी हनुमान मंदिर जाएं और हनुमान प्रतिमा को यह माला पहना दें।
  ऐसे ही श्री राम लिखे एक पत्ते को अपने पर्स में रख लें। साल भर आपका पर्स पैसों से भरा रहेगा। इसके बाद जब दोबारा हनुमान जयंती का पर्व आए तो इस पत्ते को किसी नदी में प्रवाहित कर दें और इसी प्रकार से एक और पत्ता अभिमंत्रित कर अपने पर्स में रख लें।

४ . अगर आप शनि या राहु के  दोष से पीड़ित हैं तो हनुमान जयंती पर काली उड़द व कोयले की एक पोटली बनाएं। इसमें एक रुपए का सिक्का रखें। इसके बाद इस पोटली को अपने ऊपर से उसार कर किसी नदी में प्रवाहित कर दें और फिर किसी हनुमान मंदिर में जाकर राम नाम का जाप करें इससे शनि दोष का प्रभाव कम हो जाएगा।
हनुमानजी शिव के अवतार हैं और शनिदेव परम शिव भक्त और सेवक हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा पर शनि दशा या अन्य ग्रहदोष से आ रही कई परेशानियों और बाधाओं से फौरन निजात पाने के लिए श्रीहनुमान चालीसा, बजरंगबाण, हनुमान अष्टक का पाठ करें। श्रीहनुमान की गुण, शक्तियों की महिमा से भरे मंगलकारी सुन्दरकाण्ड का परिजनों या इष्टमित्रों के साथ शिवालय में पाठ करें। यह भी संभव न हो तो शिव मंदिर में हनुमान मंत्र ‘हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्’ का रुद्राक्ष माला से जप करें या फिर सिंदूर चढ़े दक्षिणामुखी या पंचमुखी हनुमान के दर्शन कर चरणों में नारियल चढ़ाकर उनके चरणों का सिंदूर मस्तक पर लगाएं। इससे ग्रहपीड़ा या शनिपीड़ा का अंत होता है।

निम्न स्तुति का फल भी अपरम्पार है। चाहे रोग हो अथवा राहू केतु शनि मंगल आदि ग्रह जनित दोष कष्ट इसके पाठ से सब शांत हो जाते हैं।

यदि निम्न स्तुति की हर पंक्ति के अंत में नमामि लगा कर पाठ करें तो यह हनुमानाष्टक के समान फल प्रदान करती है।
अतुलित बलधामं स्वर्ण शैलाभ देहं ।
दनुज वन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।।
सकल गुण निधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रिय भक्तं वातजात नमामि।।

5 . शास्त्रों में हनुमानजी की भक्ति तंत्र मार्ग व सात्विक मार्ग दोनों ही तरह से बताई गई है। इसके लिए मंत्र जप भी प्रभावी माने गए हैं।   सात्विक तरीकों से कामनापूर्ति के लिए मंत्र जप रुद्राक्ष माला से और तंत्र मार्ग से लक्ष्य
पूरा करने के लिए मूंगे की माला से मंत्र जप बड़े ही असरदार होते हैं.

6. मनचाही मुराद पूरी करने के लिए सिंदूर लगे एक नारियल पर मौली या कलेवा लपेटकर हनुमानजी के चरणों में अर्पित करें।

7. हनुमानजी को नैवेद्य चढ़ाने के लिए भी शास्त्रों में अलग- अलग वक्त पर विशेष नियम उजागर हैं। इनके मुताबिक सवेरे हनुमानजी को नारियल का गोला या गुड़ या गुड़ से बने लड्डू का भोग लगाना चाहिए। इसी तरह दोपहर में हनुमान की पूजा में घी और गुड़ या फिर गेहूं की मोटी रोटी बनाकर उसमें ये दोनों चीजें मिलाकर बनाया चूरमा अर्पित करना चाहिए। वहीं, शाम या रात के वक्त हनुमानजी को विशेष तौर पर फल का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। हनुमानजी को जामफल, केले, अनार या आम के फल बहुत प्रिय बताए गए हैं। इस तरह हनुमानजी को मीठे फल व नैवेद्य अर्पित करने वाले की दु:ख व असफलताओं की कड़वाहट दूर होती है और वह सुख व सफलता का स्वाद चखता है।

8 . शाम के वक्त हनुमानजी को लाल फूलों के साथ जनेऊ, सुपारी अर्पित करें और उनके सामने चमेली के तेल का पांच बत्तियों का दीपक नीचे लिखे मंत्र के साथ लगाएं

- साज्यं च वर्तिसं युक्त वह्निनां योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश प्रसीद परमेश्वर।
यह उपाय किसी भी विघ्र-बाधा को फौरन दूर करने वाला माना जाता है

9 . पूर्णिमा पर पूर्ण कलाओं के साथ उदय होने वाले चंद्रमा की रोशनी नई उमंग, उत्साह, ऊर्जा व आशाओं के साथ असफलताओं व निराशा के अंधेरों से निकल नए लक्ष्यों और सफलता की ओर बढऩे की प्रेरणा देती है।
लक्ष्यों को भेदने के लिये इस दिन अगर शास्त्रों में बताए श्रीहनुमान चरित्र के अलग-अलग 12 स्वरूपों का ध्यान एक खास मंत्र स्तुति से किया जाए तो आने वाला वक्त बहुत ही शुभ व मंगलकारी साबित हो सकता है। इसे हर रोज भी सुबह या रात को सोने से पहले स्मरण करना न चूकें –

हनुमानञ्जनी सूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख:पिङ्गाक्षोमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयंनास्ति रणे च विजयी भवेत्।।

इस खास मंत्र स्तुति में श्री हनुमान के 12 नाम उनके गुण व शक्तियों को भी उजागर करते
हैं ।

(10) जीवन के हर क्षेत्र में हनुमान जी की कृपा प्राप्ति के लिए निम्न श्लोकों का पाठ करना चाहिए।

जयत्यतिबलो रामो लक्ष्मणश्च महाबलः।
राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालितः।।
दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्ट कर्मणः।
हनूमान शत्रुसैन्यानां निहन्ता मारुतात्मजः।।
न रावणसहस्रं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत्।
शिलाभिश्च प्रहरतः पादपैश्च सहस्रशः।।
अर्दयित्वा पुरीं लंकामभिवाद्य च मैथिलीम्।
समृद्धार्थो गमिष्यामि मिषतां सर्वरक्षसाम्।। (वा.रा. 5/42/33-36)

(11) हनुमान बाहुक के पाठ से सभी रोग एवं पीड़ाएं दूर हो जाती हैं। एक बार जब तुलसी दास जी स्वयं गंभीर रोग से पीड़ित हुए और कोई दवा वैद्य पूजा उनके कम न आई तो उन्होंने उसी असहय पीड़ा में हनुमान बाहुक नामक स्तोत्र की रचना की और स्तवन किया। हनुमान जी की कृपा से वे शीघ्र ही स्वस्थ हो गए।

हनुमान जी की भक्ति स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध सभी समान रूप से कर सकते हैं। भक्त की भक्तवत्सलता, श्रद्धा भाव, संबंध, समर्पण ही श्री हनुमान जी की कृपा का मूल का मंत्र है।

ॐ हं हनुमते रुद्रत्मकाये हुम् फट।

(12) आय  / व्यापर वृद्धि के लिए

एक नींबू, पांच साबुत सुपारियां, एक हल्दी की गांठ, काजल की डिबिया, 16 साबुत काली मिर्च, पांच लौंग तथा रुमाल के आकार का लाल कपड़ा घर या मंदिर में एकांत में बैठ जाएं। उक्त मंत्र का 108 बार जप करके उक्त सामग्री को लाल कपड़े में बांध लें। इस पोटली को घर या दुकान के मुख्य द्वार पर


लगा दें, आय में वृद्धि होगी तथा व्यापार बंधन किये कराये आदि संकटों से मुक्ति मिलेगी। इस प्रयोग से कर्मचारियों की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है और नौकरी व्यापार में स्थायित्व भी आ जाता है।

(13) स्वप्न सिद्धि भविष्य कथन सिद्धि
ॐ नमो भगवते अञ्जन-पुत्राय, उज्जयिनी-निवासिने, गुरुतर-पराक्रमाय, श्रीराम-दूताय लंकापुरी-दहनाय, यक्ष-राक्षस-संहार-कारिणे हुं फट्।”

विधिः- उक्त ‘गुर्जर’ मन्त्र का दस हजार जप रात्रि में भगवती दुर्गा के मन्दिर में करना चाहिए। तदन्तर केवल एक हजार जप से कार्य-सिद्धि होगी।
इस मन्त्र से अभिमन्त्रित तिल का लड्डू खाने से और भस्म द्वारा मार्जन करने से भविष्य-कथन करने की शक्ति मिलती है।
तीन दिनों तक अभिमन्त्रित शर्करा को जल में पीने से श्रीहनुमानजी स्वप्न में आकर सभी बातें बताते हैं, इसमें सन्देह नहीं।

(14) इसके अतिरिक्त हनुमान जी की प्रसन्नता और कृपा प्राप्ति के लिए हनुमान यन्त्र का भी पूजन किया जाता है।
जो लोग कमजोर मनोबल के हो, दिन रात सदैव डर लगता हो, डरावने सपने आते हों, या बार बार काम बदलते हों, कुंडली में उच्च या नीच का मंगल कष्टकारी हो उन्हें ये यन्त्र किसी योग्य ब्राह्मण से विधि पूर्वक सिद्ध करवा कर गले में ताबीज में डालकर पहनना चाहिए।

(15) मंगल शांति
 मित्रों, 17 अप्रैल 2016 को सायं17:47 से मंगल देव वक्री हो गए हैं जो  29 जून 2016 रात्रि 22:57 तक वक्री गोचर करेंगे।
अग्नि तत्व वाले मंगल ग्रह का वक्री होना उन सभी लोगों के लिये कष्टकर हो सकता है जो की जन्मकुंडली अनुसार मंगली हैं, या उच्च नीच या पाप / कष्ट भावस्थ होने से परेशान हैं।
ऐसे में मंगल देव की शांति के लिये हनुमान जी की पूजा अर्चना और जप विशेष लाभदायी हैं।

जिनके घर में सदा क्लेश हो, क़र्ज़ बढ़ गए हों, तरक्की न होती हो या संतान गलत दिशा में भटक गयी हो अथवा रोज कोई न कोई अपशकुन होता हो उन्हें ताम्बे में बना ये यन्त्र विधि पूर्वक प्रतिष्ठित करवा कर अपने घर मे स्थापित करना चाहिए व् इसका नित्य पूजन करना चाहिए।ं

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान, कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Friday 8 April 2016

The Tantrik Herbs तांत्रिक जड़ी- बूटियां

सिद्धि देने वाली तांत्रिक जड़ी-बूटी :

गुलतुरा (दिव्यता के लिए),

तापसद्रुम (भूतादि ग्रह निवारक),

शल (दरिद्रतानाशक), भोजपत्र (ग्रह बाधाएं निवारक),

विष्णुकांता (शत्रुनाशक), मंगल्य (तांत्रिक क्रियानाशक),

गुल्बास (दिव्यता प्रदानकर्ता),

जीवक (ऐश्वर्यदायिनी),

गोरोचन (वशीकरण),

गुग्गल (चामंडु सिद्धि),

अगस्त (पितृदोषनाशक),

अपमार्ग (बाजीकरण),

आंधीझाड़ा (भस्मक रोग भूख-प्यासनाशक),

श्वेत अपराजिता (दरिद्रानाशक),

 हत्था जोड़ी (वशीकरण),

समोवल्ली (मृत्यनाशक),

शिलाजीत (नपुंसकतानाशक),

अश्वगंधा (वीर्यवर्धक)

श्वेत और काली गुंजा (भूत पिशाचनाशक),

 उटकटारी (राजयोग दाता),

मयूर शिका (दुष्टात्मानाशक) और

काली हल्दी (तांत्रिक प्रयोग हेतु)

आदि ऐसी अनेक
जड़ी- बूटियां हैं, जो व्यक्ति के सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन को साधने में महत्वपूर्ण मानी गई हैं। हालांकि इसी तरह की अन्य कई हजारों जड़ी-बूटियों का रहस्य बरकरार है।
अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान, कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Nav Samwatsar 2073 नवसंवत्सर 2073 का फल

नवसंवत्सर 2073 का फल

चैत शुक्ल प्रतिपदा को नूतन संवत्सर आरम्भ होता है। इस दिन सभी लोगों को चाहिए कि अपने घर पर ध्वज लगायें। मंगल स्नान कर देवता, ब्राहम्ण गुरू और धर्म ध्वजा की पूजा करें और उसके नीचे पंक्तिबद्ध बैठकर सभी एक स्वर में ध्वज गीत का गायन करें। इस बार नवसंवत्सर का शुभारम्भ 8 अप्रैल दिन शुक्रवार को हो रहा है। वर्ष की शुरूआत सौम्य नामक संवत्सर से हो रही है।

संवत् 2073 में सौम्य नामक संवत्सर होने पर वर्षा अधिक होती है और कृषि उपज में वृद्धि होने से लगभग सभी पदार्थ सस्ते होते है। संवत्सर का निवास धोबी के घर में है, जिससे कुआॅ, बावली, तालाब, नदी व वन जल से भरपूर रहेंगे। समय का वाहन हाथी है जिसके कारण जनता सुखी रहेगी व वर्षा अच्छी होगी।

सौम्य नामक संवत्सर की मंत्रिपरिषद कुछ इस प्रकार है-

राजा-शुक्र, मन्त्री-बुध, सस्येश- शनि, धान्येश-गुरू, मेघेश-भौम, रसेश-चन्द्र, नीरसेश-शनि, धनेश-शुक्र, दुर्गेश-भौम

राजा शुक्र- राजा शुक्र होने से अनाज की पैदावर अच्छी होती है। देश की जनता भौतिक वस्तुओं में व्यय अधिक करती है। राजा यात्रायें करने में अपना समय अधिक व्यतीत करता है।

मन्त्री बुध- बुध ग्रह बुद्धि व युवाओं का संकेतक है। जिससे देश में युवाओं की भागीदारी विशेषकर रहेगी। देश के उत्थान व विकास में युवाओं का अहम रोल होगा। मन्त्री बुध होने से राजा को सलाह अच्छी और बुद्धिमत्तापूर्ण मिलती है।

सस्येश शनि- शनि के सस्येश होने से शासक वर्ग से जनता व्यथित और पीडि़त होंगे। जनता को अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है।

मेघेश मंगल- कहीं अतिवृष्टि होती है और कहीं अनावृष्टि होती है। जिससे कृषक वर्ग को नुकसान होता है। शिक्षक व गुरू आदि अधर्म का आचरण करते है।

नीरसेश शनि- शनि के नीरसेश होने से लोहा-जिंक आदि धातुयें और काले वस्त्र व काली वस्तुयें आदि धान्य पदार्थ सस्ते होते है।

रसेश चन्द्र- चन्द्र के कारण पुरूष व स्त्रियों में आपसी प्रेम भावनायें अधिक होती है। वर्षा श्रेष्ठ और रस वाले फलों का उत्पादन अच्छा होता है।

धनेश शुक्र- प्रत्येक वर्ग की आय बढ़ती है, जिससे जीवन स्तर उॅचा होता है। व्यापारियों को क्रय-विक्रय से लाभ होता है। शासक भी जनता की भलाई के लिए नित्य प्रयास रहते है।

सौम्य संवत्सर का फल- सौम्य नामक 2073 संवत् मंे शुभ और पापग्रहों को समान अधिकार दिये गये है। दोनों पक्षों को पाॅच पद दिये गये है। राज्य पद एंव मन्त्री पद समन्वयवादी ग्रह शुक्र और बुध को प्रदान दिये गये है, जिसमें देश में आपसी प्रेम व सहिष्णुता का वातावरण बना रहेगा। देश की सुरक्षा पर समय-समय पर अधिक ध्यान दिया जायेगा। विदेशों में भारत की छवि पहले से बेहतर होगी। प्राकृतिक आपदाओं पर धन का अपव्यय अधिक होगा। देश के कुछ हिस्सों में कृषक आन्दोलन भी हो सकते है। औद्योगिक विकास होगा साथ ही अनेक औद्योगिक कारखानों में विस्फोट से जन-धन की हानि होगी। विदेशी व्यापार से आय में वृद्धि होगी। कुल मिलाकर देश प्रगति के मार्ग पर अग्रसर रहेगा।

मेष- इस राशि के जातकों के आय में वृद्धि होगी. कार्य-व्यापार में नए अवसर मिलेंगे तथा लाभ की उम्मीद आप कर सकते हैं इस समय। जीवन-साथी के साथ प्रेम में प्रगाढ़ता आएगी और जो लोग अविवाहित हैं, जीवन-साथी की तलाश में हैं या प्रेम की तलाश में हैं उन्हें अवश्य सफलता मिलेगी। इस समय संतान के लिए समय बहुत उपयुक्त है, विशेषकर इस राशि की गर्भवती महिलाओं को अपना ध्यान रखना चाहिए।

वृषभ- इस राशि वालों के लिए यह परिवर्तन शुक्र लग्‍नेश भी है अत: जबरदस्त राजयोग का सृजन होगा. यहां यह आपके पराक्रम में खूब वृद्धि कारक होगा। उच्‍च वर्ग का सहयोग मिलेगा, मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी तथा पुरुषों को स्त्रियों से और स्त्रियों को पुरुषों से बहुत सहयोग मिलेगा। पारिवारिक सुख में भी वृद्धि होगी और परिवार में कोई शुभ कार्य संपन्न होगा।

मिथुन- इस राशि वालों के भाग्य में खूब वृद्धि होगा, साथ ही पराक्रम भी बढ़ाएगा। इस समय भाग्य-कर्म का बहुत ही अच्‍छा संयोग बनेगा आपके लिए और आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी। धन प्रचुर मात्रा में आएगा। बहुत सुख का अनुभव करेंगे आप। संतान पक्ष से भी बहुत प्रसन्नता होगी और जो लोग किसी परीक्षा प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं, उन्हें अवश्य सफलता मिलेगी।

कर्क- इस राशि के जातकों के लिए यह राशि परिवर्तन अष्टम आय और सुख योग का सृजन वाला है, जिसके कारण पारिवारिक सुख में बढ़ोतरी होगी और साथ ही आय में भी वृद्धि होगी। इस समय शारीरिक कष्ट भी होगा। पेट के निचले हिस्से या जननेन्द्रियों में कोई समस्या उत्पन्न हो सकती है।

सिंह- इस राशि वालों के लिए व्यापार में लाभ और उन्नति होगी. मान-सम्मान बढ़ेगा इस समय और उच्‍च वर्ग से सहयोग मिलेगा। व्यापार की वृद्धि के लिए या नए कार्य को प्रारम्भ करने के लिए यह समय उचित होगा. इस समय विपरीत लिंग के प्रति आपका रुझान बहुत अधिक बढ़ेगा और कामेच्छा बहुत प्रबल रहेगी।

कन्या- आपके भाग्य पक्ष बहुत ही मजबूत हो जायेगा। इस समय आपको अपने भाग्य की अपेक्षा कर्मों पर अधिक विश्र्वास करना होगा। आय में बहुत कमी होने की संभवाना बनेगी तथा खर्च बहुत अधिक होगा। इस समय आप कुछ अनावश्यक खर्च भी करेंगे।

तुला- गर्भवती महिलाओं को छोड़कर यह समय तुला राशि के जातकों के लिए बहुत ही बेहतर जायेगा। प्रेम करने वालों की तो जैसे लॉटरी ही लग जाएगी। प्रेम सम्बन्ध वैवाहिक जीवन में परिवर्तित हो सकता है। सोच इस समय सकारात्मक दिशा में रहेगी।

वृश्चिक- इस राशि के जातकों के लिए मां के स्वास्थ्य की समस्या उत्पन्न कर सकता है या परिस्थितिवश मां से या अपने घर से दूरी बन सकती है। परन्तु इसके अलावा यह अन्य मामलों में बेहद सुखद रहेगा. सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होगी. जमीन-जायदाद से सम्बंधित कार्य संपन्ना होने का योग बनेगा।

धनु- इस राशि के जातकों के शुक्र के इस राशि परिवर्तन के कारण अपने भाई-बहनों से संबंध प्रगाढ़ होंगे. करीबी और प्रिय मित्रों से मुलाकात होगी। इस समय आपका पराक्रम बहुत बढ़ा-चढ़ा रहेगा तथा भाग्य भी खूब साथ देगा इस समय। धन के मामले में यह समय मध्यम कहा जा सकता है लेकिन यदि धन सम्बन्धी कोई समस्या होगी तो उसे आप अपने पराक्रम के बल पर सुलझाने में सफल होंगे।

मकर- इस राशि वालों के लिए शुक्र अभी बेहद सहयोगी बने हुए हैं, इसके परिणाम स्वरूप आय में खूब वृद्धि होगी. वाणी ओजस्वी और प्रभावशाली रहेगी तथा इस समय आप अपनी वाक्पटुता के बल पर अपने बहुत से काम निकालने में समर्थ होंगे। कार्य-व्यापार के लिए बेहद उपयुक्त समय है।

कुंभ- इस राशि वालों को इस परिवर्तन से बेहद सुख का अनुभव होगा। जीवन साथी से प्रेम में प्रगाढ़ता आएगी. लेकिन यदि कुंडली में भी शुक्र और मंगल की युति है तो इस समय कामुकता भी चरम पर होगी। कुछ लोग अति व्यसन का शिकार हो सकते हैं अत: अपनी इच्‍छाओं पर थोड़ा अंकुश रखें। पारिवारिक सुख के लिए सहयोगी समय है।

मीन- इस राशि वालों के लिए यह गोचर परिवर्तन व्यक्तिगत प्रसन्नता के लिए, घूमने-फिरने के लिए तथा मौज-मस्ती के लिए खूब सुन्दर है। लेकिन मौज-मस्ती के साथ आपको अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता भी पड़ेगी। शत्रु परास्त होंगे।

इस दौरान यह करें

शुक्र से सम्बन्धी दान जैसे - चावल, दही, दूध, सफेद वस्त्र इत्यादि का करें।

अपने निवास तथा कार्य स्थल को स्वच्‍छ रखें तथा नियमित स्‍वच्‍छ वस्त्र धारण करें।

स्त्री जातकों को प्रसन्न रखें। शुक्र के कारण यदि बीमारी, बदनामी इत्यादि का भय हो तो शुक्र की वैदिक रीति से शांति कराएं।

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Sunday 3 April 2016

Nakshatra & Profession नक्षत्र अनुसार व्यवसाय

नक्षत्र अनुसार व्यवसाय

आजीविका चयन का ज्योतिष में प्राचीन और सर्वमान्य नियम यह है कि कर्मेश/दशमेश जिस ग्रह के नवांश घर में हो उस ग्रह के गुण धर्म के अनुसार व्यक्ति की आजीविका होगी। इसके अतिरिक्त ज्योतिष ग्रंथों और वृहत-संहिता खंड-एक के अध्याय 15 में उल्लेख के अनुसार जन्म नक्षत्र और कर्म नक्षत्र के अनुसार आजीविका, व्यापार या सर्विस चुनने में सफलता जल्दी मिलती है। तदनुसार बालक पढ़ाई करें। इनके विषयों की पढ़ाई से सफलता मिलेगी।

(1) अश्विनी नक्षत्र: खिलाड़ी, सेनापति, डाक्टर, वाहन का व्यापार, शिक्षक।

 2. भरणी नक्षत्र: ब्लड बैंक, पैथोलाजिस्ट या अनाज व्यापारी, कार्यालय मैनेजर।

 3. कृतिका नक्षत्र: फायनेन्स कार्य (बैंकर), बर्तन, क्राकरी व्यापारी, चार्टर्ड अकाउन्टेंट आदि।

4. रोहिणी नक्षत्र: व्यापार, टेक्सटाइल एजेन्सी, पायलट, किसान, खनिज व्यापार, डेयरी संचालक, विज्ञान प्रोफेसर।

 5. मृगशिरा नक्षत्र: कपड़ा व्यापार, संगीतज्ञ, आफिस कार्य, जेलर, साफ्टवयेर इंजिनीअर, अधिकारी-जज।

 6. आद्र्रा नक्षत्र: पुलिस विभाग, वकील, राजनेता, दवाई व्यापार, डाॅक्टर।

7. पुनर्वसु नक्षत्र: अभिनेता, चित्रकार, माडल, फैन्सी वस्तु व्यापार, ईमानदार, धार्मिक नेता, फायनेन्स मैनेजर-बैंकर/मैनेजर।

8. पुष्य नक्षत्र: गेहूं, चावल, किराना व्यापार, राजनीति, पानी के व्यापारी, इंजीनियर तेल/लोहा प्रोडक्शन-व्यापार, सर्जन डाॅक्टर, फायनेन्स

 9. अश्लेषा नक्षत्र: आयुर्वेद डाक्टर, दवा व्यापार, आर्टीफीशियल चीजों का व्यापार, डाक्टर,

10. मघा नक्षत्र: व्यापार, मिलिट्री सर्विस, पुलिस सर्विस, बड़े शहर में व्यापार- इलेक्ट्रानिक वस्तुओं का व्यापार।

11. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र: अभिनेता, संगीतकार, तेल व कपड़ा व्यापार, फैन्सी अंडरगारमेन्ट का व्यापार, बुटिक व्यापार|

12. उत्तरा फालगुनी नक्षत्र: अधिकारी वर्ग- आई. ए. एस आदि, अच्छे राजनेता, अनाज व्यापार, डेयरी व्यवसाय,|

13 . हस्त नक्ष्त्र: वहन प्रडक्श्न/व्यापार रजनेता , अभिनेता, कमीशन एजेन्ट, अकाउंट्स लाईन-प्रोपर्टी डीलर, बिल्डर।

 14. चित्रा नक्षत्र: ज्वेलर, फैशन डिजाइनर, गायक-संगीतकार, चार्टर्ड अकाउन्टेंट, वकील, फायनेन्स मैनेजर, सेल में अधिकारी।

 15. स्वाति नक्षत्र: वाहन व्यापार, होटल-रेस्टोरेंट व्यापार, कांट्रेक्टर, होटल-मैनजेमटं कार्से , शयेर व्यापार।

16. विशाखा नक्षत्र: कपड़ा मन्यफुक्चर, वाहन मन्यफक्चर, व्यापार, फायनेंस मैनेजर, बैंक सर्विस, चना/ उड़द, तिलहन, विदेश व्यापार, एडवोकेट, न्यायाधीश।

 17. अनुराधा नक्षत्र: मिलिट्री, पुलस सर्विस, आई. पी. एस अधिकारी, आर्मी में कैप्टन, मेजर, राजनेता, ट्रेवल एजेंट, ऐंकर।

18. ज्येष्ठा नक्षत्र: वकील, मिलिट्री, पुलिस अधिकारी, खानदानी व्यवसाय, म्यूजक एक्सपटर्, डयेरी का व्यवसाय।

19. मूल नक्षत्र: डाक्टर, दवाई, व्यापार, फल व्यवसाय, खेती से लाभ। इलेक्ट्रानिक वस्तुओं का व्यापार।

 20. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र: इंजीनियर, डेयरी व्यवसाय, संगीतज्ञ, अधिकारी।

 21. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र: राजनेता, पहलवान, ट्रासं पार्टे व्यवसाय, वनस्पति प्रोफेसर, फारेस्ट आफिसर। क्रिकेटर सुनील गावस्कर का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ था।

22. श्रवण नक्षत्र: उद्योगपति, धार्मिक, सोशल संस्थाओं का लीडर या इन वस्तुओं का व्यापार।

23. धनिष्ठा: मिलिट्री सर्विस, लोहे का व्यापार, पुलिस सर्विस।

 24. शतभिषा: डेयरी व्यवसाय, इंजीनियर, इलेक्ट्रानिक वस्तुओं का व्यापार।

 25. पूर्वा भाद्रपद - धार्मिक नेता, प्रोफेसर, शिक्षा विभाग में कार्य, फिल्म अभिनेता।

 26. उत्तरा भाद्रपद - ज्वेलर, अधिकारी, प्रोफेसर, वकील, फिल्म कलाकार।

 27. रेवती नक्षत्र - परफ्यूम व्यापार, रत्न व्यवसाय, फिल्म कलाकार।

भाग्येश जिस नक्षत्र में होता है वह आजीविका चयन में मुख्य होता है। इसी प्रकार दशम स्थान की राशि जिस नक्षत्र में होती है वह भी व्यवसाय/सर्विस की कारक होती है।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान, कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Nakshatra Mantras Vaidik & Pauranik नक्षत्र मंत्र : वैदिक , पौराणिक और देवता मंत्र

नक्षत्र मंत्र : वैदिक , पौराणिक और देवता मंत्र

मित्रों
हमारे जीवन में नक्षत्रों का भी उतना ही महत्त्व है जितना की नवग्रहों का, ऋषि मुनियों ने नभ मंडल को कल  २७ नक्षत्र में बांटा हैं और प्रतीक राशि के अंतर्गत ३ नक्षत्र आते हैं।

पीड़ा परेशानी होने पर हम ग्रहों की पूजा, दान  और जप तो करते हैं पर नक्षत्रों को भूल जाते हैं। यहाँ आपको नक्षत्रों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध करवा रहा हूँ जिसमे उनके वैदिक, पौराणिक मंत्र, नक्षत्र देवता के मंत्र और नक्षत्र मंत्र हैं।  अपने नक्षत्र मंत्र के जप करके आप लाभ उठा सकते है उसे बलवान कर सकते हैं साथ ही नक्षत्र की वनस्पति के वृक्ष को लगाकर उसकी सेवा करके यानि नित्य जल देते हुए मंत्र जप कर लाभ ले सकते हैं और यदि किसी कारण से नक्षत्र लाभ न दे रहा हो तो उसे अपने पक्ष में लाभ देने वाला बना सकते हैं।  आपका जन्म नक्षत्र कैसा है और आपके जीवन पर क्या प्रभाव दे रहा है इसके लिए किसी विद्वान पंडित जी या ज्योतिषी से सम्पर्क कर इस जानकारी का लाभ ले सकते हैं।

१) अश्विनी

नक्षत्र: अश्विनी
नक्षत्र देवता : अश्विनीकुमार
नक्षत्र स्वामी : केतु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : कुचला
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण मेष राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: घोडा
नक्षत्र तत्व : वायु
नक्षत्र स्वभाव : शुभ

वेद मंत्र

ॐ अश्विनौ तेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वती वीर्य्यम वाचेन्द्रो
बलेनेन्द्राय दधुरिन्द्रियम । ॐ अश्विनी कुमाराभ्यो नम: ।

पौराणिक मंत्र:

अश्विनी देवते श्वेतवर्णो तौव्दिभुजौ स्तुमः
lसुधासंपुर्ण कलश कराब्जावश्च वाहनौ ll

नक्षत्र देवता मंत्र:
अ)ॐअश्विनी कुमाराभ्यां नमः
आ) ॐ अश्विभ्यां नमः

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ अश्वयुगभ्यां नमःl


२) भरणी

नक्षत्र : भरणी
नक्षत्र देवता : यम - आद्य पितर
नक्षत्र स्वामी :शुक्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : आँवला
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण मेष राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : हत्ती
नक्षत्र तत्व : अग्नी
नक्षत्र स्वभाव : क्रूर

 वेद मंत्र

ॐ यमायत्वा मखायत्वा सूर्य्यस्यत्वा तपसे देवस्यत्वा सवितामध्वा
नक्तु पृथ्विया स गवं स्पृशस्पाहिअर्चिरसि शोचिरसि तपोसी।

पौराणिक मंत्र:

पाशदण्डं भुजव्दयं यमं महिष वाहनम l
यमं नीलं भजे भीमं सुवर्ण प्रतीमागतम् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ यमाय् नमः l

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ अपभरणीभ्यो नमःl


३) कृतिका

नक्षत्र: कृतिका
नक्षत्र देवता : अग्नी
नक्षत्र स्वामी : रवि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : उंबर, औदुंबर
राशी व्याप्ती : १ले चरण मेष राशीमध्ये,
बाकीचे ३ चरण वृषभ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: बकरी
नक्षत्र तत्व :अग्नी
नक्षत्र स्वभाव : क्रूर

 वेद मंत्र

ॐ अयमग्नि सहत्रिणो वाजस्य शांति गवं
वनस्पति: मूर्द्धा कबोरीणाम । ॐ अग्नये नम: ।

पौराणिक मंत्र:

कृतिका देवतामाग्निं मेशवाहनं संस्थितम् l
स्त्रुक् स्तुवाभीतिवरधृक्सप्तहस्तं नमाम्यहम् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ आग्नेय नमः l

नक्षत्र नाम मंत्र :ॐ कृतिकाभ्यो नमः


४) रोहिणी

नक्षत्र: रोहिणी
नक्षत्र देवता :ब्रम्हा
नक्षत्र स्वामी : चंद्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष :जामुन जांभळी, जांभू
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण वृषभ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: सर्प
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: शुभ

 वेद मंत्र

ॐ ब्रहमजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमत: सूरुचोवेन आव: सबुधन्या उपमा
अस्यविष्टा: स्तश्चयोनिम मतश्चविवाह ( सतश्चयोनिमस्तश्चविध: )

पौराणिक मंत्र:

प्रजापतीश्वतुर्बाहुः कमंडल्वक्षसूत्रधृत् l
वराभयकरः शुध्दौ रोहिणी देवतास्तु मे ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:-
अ) ॐ ब्रम्हणे नमःl
आ) ॐ प्रजापतये नमःll

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ रौहिण्यै नमःl


५) मृगशिरा
नक्षत्र: मृगशिरा
नक्षत्र देवता: चंद्र
नक्षत्र स्वामी: मंगळ
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : खैर (कात)
राशी व्याप्ती : २ चरण वृषभ राशीमध्ये,
बाकीचे २ चरण मिथुन राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी :सर्प
नक्षत्र तत्व: वायु
नक्षत्र स्वभाव: शुभ

 वेद मंत्र

ॐ सोमधेनु गवं सोमाअवन्तुमाशु गवं सोमोवीर: कर्मणयन्ददाति
यदत्यविदध्य गवं सभेयम्पितृ श्रवणयोम । ॐ चन्द्रमसे नम: ।

पौराणिक मंत्र:

श्वेतवर्णाकृतीः सोमो व्दिभुजो वरदण्डभृत् lदशाश्वरथमारूढो मृगशिर्षोस्तु मे मुदे ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र :-
अ) ॐ चंद्रमसे नमःl
आ) ॐ सोमाय नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र :- ॐ मृगशीर्षाय नमःl


६) आर्द्रा
नक्षत्र: आर्द्रा
नक्षत्र देवता : रुद्र (शिव)
नक्षत्र स्वामी : राहु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : कृष्णागरू,काला तेंदू
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण मिथुन राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : कुत्रा
नक्षत्र तत्व : जल
नक्षत्र स्वभाव : तीक्ष्ण

वेद मंत्र

ॐ नमस्ते रूद्र मन्यवSउतोत इषवे नम: बाहुभ्यां मुतते नम: ।
ॐ रुद्राय नम: ।

पौराणिक मंत्र:

रुद्र श्वेतो वृशारूढः श्वेतमाल्यश्चतुर्भुजःl
शूलखड्गाभयवरान्दधानो मे प्रसीदतु ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ रुद्राय नमः l

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ आर्द्रायै नमःl


७) पुनर्वसु
नक्षत्र: पुनर्वसु
नक्षत्र देवता: अदिती
नक्षत्र स्वामी: गुरू
नक्षत्र आराध्य वृक्ष :बांस / बांबू
राशी व्याप्ती: 3 चरणे मिथुन राशीमध्ये,
बाकीचे १ चरण कर्क राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: मांजर
नक्षत्र तत्व: वायु
नक्षत्र स्वभाव: चर

वेद मंत्र

ॐ अदितिद्योरदितिरन्तरिक्षमदिति र्माता: स पिता स पुत्र:
विश्वेदेवा अदिति: पंचजना अदितिजातम अदितिर्रजनित्वम ।
ॐ आदित्याय नम: ।

पौराणिक मंत्र:

अदितीः पीतवर्णाश्च स्त्रुवाक्षकमण्डलून l
दधाना शुभदा मे स्यात पुनर्वसु कृतारव्या ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र :-
अ) ॐ आदित्यै नमःl
आ)ॐ आदितये नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ आर्द्रायै नमःl


८) पुष्य
नक्षत्र: पुष्य
नक्षत्र देवता: गुरु
नक्षत्र स्वामी: शनि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: पिंपळ, पीपल
राशी व्याप्ती :४ हि चरण कर्क राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी :बकरी
नक्षत्र तत्व :अग्नी
नक्षत्र स्वभाव:शुभ

 वेद मंत्र

ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाद दुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु ।
यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम ।
ॐ बृहस्पतये नम:

पौराणिक मंत्र:

वंदे बृहस्पतिं पुष्यदेवता मानुशाकृतिम् l
सर्वाभरण संपन्नं देवमंत्रेण मादरात् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र :- ॐ बृहस्पतये नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ पुष्याय नमःl

९) आश्लेषा
नक्षत्र:आश्लेषा
नक्षत्र देवता: सर्प
नक्षत्र स्वामी : बुध
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: नागकेसर
राशी व्याप्ती :४ हि चरण कर्क राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : मांजर
नक्षत्र तत्व : जल
नक्षत्र स्वभाव: तीक्ष्ण,शोक

 वेद मंत्र
ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:।
ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: ।
ॐ सर्पेभ्यो नम:।

पौराणिक मंत्र:
सर्पोरक्त स्त्रिनेत्रश्च फलकासिकरद्वयःl
आश्लेषा देवता पितांबरधृग्वरदो स्तुमे ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ सर्पेभ्यो नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ आश्लेषायै नमःl


१०) मघा
नक्षत्र: मघा
नक्षत्र देवता: पितर
नक्षत्र स्वामी: केतु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: बरगद
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण सिंह राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: उंदीर
नक्षत्र तत्व: अग्नी
नक्षत्र स्वभाव :क्रुर, उग्र

वेद मंत्र

ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य स्वाधानम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: ।
प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्य स्वधानम: अक्षन्न पितरोSमीमदन्त:
पितरोतितृपन्त पितर:शुन्धव्म । ॐ पितरेभ्ये नम: ।

पौराणिक मंत्र :

पितरः पिण्डह्स्ताश्च कृशाधूम्रा पवित्रिणःl
कुशलं द्घुरस्माकं मघा नक्षत्र देवताःll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ पितृभ्यो नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ मघायै नमः


११)पुर्वा (फाल्गुनी)
नक्षत्र: पुर्वा (फाल्गुनी)
नक्षत्र देवता : भग
नक्षत्र स्वामी : शुक्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : पलाश (पळस)
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण सिंह राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी:उंदीर
नक्षत्र तत्व: क्रुर
नक्षत्र स्वभाव : शुभ

 वेद मंत्र

ॐ भगप्रणेतर्भगसत्यराधो भगे मां धियमुदवाददन्न: ।
भगप्रजाननाय गोभिरश्वैर्भगप्रणेतृभिर्नुवन्त: स्याम: ।
ॐ भगाय नम: ।

पौराणिक मंत्र:

भगं रथवरारुढं व्दिभुंज शंखचक्रकम् l
फाल्गुनीदेवतां ध्यायेत् भक्ताभीष्टवरप्रदाम् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ भगाय नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ पुर्व फाल्गुनीभ्यां नमःl


१२) उत्तरा (फाल्गुनी)
नक्षत्र:उत्तरा (फाल्गुनी)
नक्षत्र देवता : अर्यमा
नक्षत्र स्वामी: रवि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष पाकड़
राशी व्याप्ती १ ले चरण सिंह राशीमध्ये,
बाकीचे ३ चरण कन्या राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: गाय
नक्षत्र तत्व :वायु
नक्षत्र स्वभाव: शुभ

 वेद मंत्र

ॐ दैव्या वद्धर्व्यू च आगत गवं रथेन सूर्य्यतव्चा ।
मध्वायज्ञ गवं समञ्जायतं प्रत्नया यं वेनश्चित्रं देवानाम ।
ॐ अर्यमणे नम: ।

पौराणिक मंत्र:

संपूजयाम्यर्यमणं फाल्गुनी तार देवताम् l
 धुम्रवर्णं रथारुढं सुशक्तिकरसंयुतम् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र :- ॐ अर्यम्ने नमः

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ उत्तरा फाल्गुनीभ्यां नमःl


१३) हस्त
नक्षत्र :हस्त
नक्षत्र देवता : सुर्य
नक्षत्र स्वामी : चंद्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : ,चमेली रीठा
राशी व्याप्ती :४ हि चरण कन्या राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : म्हैस
नक्षत्र तत्व : वायु
नक्षत्र स्वभाव: शुभ, सत्वगुणी

वेद मंत्र

ॐ विभ्राडवृहन्पिवतु सोम्यं मध्वार्य्युदधज्ञ पत्त व विहुतम
वातजूतोयो अभि रक्षतित्मना प्रजा पुपोष: पुरुधाविराजति ।
ॐ सावित्रे नम: ।

पौराणिक मंत्र:

सवितारहं वंदे सप्ताश्चरथ वाहनम् l
पद्मासनस्थं छायेशं हस्तनक्षत्रदेवताम् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र :- ॐ सवित्रे नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ हस्ताय नमः


१४) चित्रा
नक्षत्र : चित्रा
नक्षत्र देवता: त्वष्टा
नक्षत्र स्वामी: मंगळ
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: बेल
राशी व्याप्ती : २ चरण कन्या राशीमध्ये,
बाकीचे, २ चरण तुळ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: वाघ
नक्षत्र तत्व : वायु
नक्षत्र स्वभाव: तीक्ष्ण

वेद मंत्र

ॐ त्वष्टातुरीयो अद्धुत इन्द्रागी पुष्टिवर्द्धनम ।
द्विपदापदाया: च्छ्न्द इन्द्रियमुक्षा गौत्र वयोदधु: ।
त्वष्द्रेनम: । ॐ विश्वकर्मणे नम: ।

पौराणिक मंत्र:

त्वष्टारं रथमारूढं चित्रानक्षत्रदेवताम् l
शंखचक्रान्वितकरं किरीटीनमहं भजे ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ त्वष्ट्रे नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ चित्रायै नमःl


१५) स्वाती
नक्षत्र :स्वाती
नक्षत्र देवता: वायु
नक्षत्र स्वामी : राहु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: अर्जुन
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण तुळ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: म्हैस
नक्षत्र तत्व: अग्नी
नक्षत्र स्वभाव: शुभ

वेद मंत्र

ॐ वायरन्नरदि बुध: सुमेध श्वेत सिशिक्तिनो
युतामभि श्री तं वायवे सुमनसा वितस्थुर्विश्वेनर:
स्वपत्थ्या निचक्रु: । ॐ वायव नम: ।

पौराणिक मंत्र:

वायुवरं मृगारुढं स्वाती नक्षत्र देवताम् l
खड्.ग चर्मोज्वल करं धुम्रवर्ण नमाम्यह्म् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ वायवे नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ स्वात्यै नमःl


१६) विशाखा
नक्षत्रः विशाखा
नक्षत्र देवता : इंद्राग्नी
नक्षत्र स्वामी : गुरू
नक्षत्र आराध्य वृक्ष:  कटाई, नागकेशर
राशी व्याप्ती : पहिले 3 चरण तुळ राशीमध्ये,
बाकीचे १ चरण वृश्चिक राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : वाघ
नक्षत्र तत्व : वायु
नक्षत्र स्वभाव: अशुभ

 वेद मंत्र

ॐ इन्द्रान्गी आगत गवं सुतं गार्भिर्नमो वरेण्यम ।
अस्य पात घियोषिता । ॐ इन्द्रान्गीभ्यां नम: ।

पौराणिक मंत्र:
इंद्राग्नीशुभदौ स्यातां विशाखा देवतेशुभे l
नमोम्ये करथारुढौ वराभयकरांबुजौ l

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ इंद्राग्नीभ्यां नमः

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ विशाखाभ्यां नमःl


१७) अनुराधा
नक्षत्र :अनुराधा
नक्षत्र देवता : मित्र
नक्षत्र स्वामी : शनि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष :मौलश्री
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण वृश्चिक राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: हरीण
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: शुभ

वेद मंत्र

ॐ नमो मित्रस्यवरुणस्य चक्षसे महो देवाय तदृत
गवं सपर्यत दूरंदृशे देव जाताय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्योयश
गवं सत । ॐ मित्राय नम: ।

पौराणिक मंत्र:

मित्रं पद्मासनारूढं अनुराधेश्वरं भजे l
शूलां कुशलसद्भाहुं युग्मंशोणितवर्णकम् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ मित्राय नमः l

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ अनुराधाभ्यो नमःl


१८) जेष्ठा
नक्षत्र: जेष्ठा
नक्षत्र देवता: इंद्र
नक्षत्र स्वामी :बुध
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: निर्गुडी/चीड़
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण वृश्चिक राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: हरीण
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: तीक्ष्ण

वेद मंत्र

ॐ त्राताभिंद्रमबितारमिंद्र गवं हवेसुहव गवं शूरमिंद्रम वहयामि शक्रं
पुरुहूतभिंद्र गवं स्वास्ति नो मधवा धात्विन्द्र: । ॐ इन्द्राय नम: ।

पौराणिक मंत्र:

श्वेतहस्तिनमारूढं वज्रांकुशलरत्करम् l
सहस्त्रनेत्रं पीताभं इंद्रं ह्रदि विभावये ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ इंद्राय नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ जेष्ठायै नमःl


१९) मूळ
नक्षत्र:मूळ
नक्षत्र देवता: निॠति (राक्षस)
नक्षत्र स्वामी: केतु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष : साल
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण धनु राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: कुत्रा
नक्षत्र तत्व : जल
नक्षत्र स्वभाव: तीक्ष्ण

वेद मंत्र

ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं स्वयोनावभारुषा तां
विश्वेदैवॠतुभि: संविदान: प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त ।
ॐ निॠतये नम: ।

पौराणिक मंत्र: खड्.गखेटधरं कृष्णं यातुधानं नृवाहनम् l
अर्ध्वकेशं विरुपाक्षं भजे मुलाधिदेवताम् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ निॠतये नमः l

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ मुलाय नमःl


२०) पूर्वाषाढा
नक्षत्र: पूर्वाषाढा
नक्षत्र देवता: जल/ उदक
नक्षत्र स्वामी: शुक्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: वेत
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण धनु राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी:वानर
नक्षत्र तत्व: जल
नक्षत्र स्वभाव: उग्र

वेद मंत्र

ॐ अपाघ मम कील्वषम पकृल्यामपोरप: अपामार्गत्वमस्मद
यदु: स्वपन्य-सुव: । ॐ अदुभ्यो नम: ।

पौराणिक मंत्र:

आषाढदेवता नित्यमापः सन्तु शुभावहाःl
समुद्र गास्तरा गिणोल्हादिन्यःसर्वदेहिनाम्ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ अद्भयो नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ पूर्वाषाढाभ्यां नमःl


२१) उत्तराषाढा
नक्षत्र: उत्तराषाढा
नक्षत्र देवता: विश्वदेव
नक्षत्र स्वामी: रवि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष :फणस, कटहल
राशी व्याप्ती : पहिले चरण धनु राशीमध्ये,
बाकीचे ३ चरण मकर राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: मुंगुस
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: स्थिर

वेद मंत्र
ॐ विश्वे अद्य मरुत विश्वSउतो विश्वे भवत्यग्नय: समिद्धा:
विश्वेनोदेवा अवसागमन्तु विश्वेमस्तु द्रविणं बाजो अस्मै ।

पौराणिक मंत्र:

विश्वांदेवान् अहं वंदेषाढनक्षत्रदेवताम् l
श्रीपुष्टिकीर्तीधीदात्री सर्वपापानुमुक्तये ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ विश्वेभ्यो देवेभ्यो नमः l

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ उत्तराषाढाभ्यां नमःl


२२) श्रवण
नक्षत्र: श्रवण
नक्षत्र देवता: विष्णु
नक्षत्र स्वामी: चंद्र
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: रुई ( अर्क ) मंदार
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण मकर राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: वानर
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: चर

वेद मंत्र

ॐ विष्णोरराटमसि विष्णो श्नपत्रेस्थो विष्णो स्युरसिविष्णो
धुर्वोसि वैष्णवमसि विष्नवेत्वा । ॐ विष्णवे नम: ।

पौराणिक मंत्र:

शांताकारं चतुर्हस्तं श्रोणा नक्षत्रवल्लभम् l
विष्णु कमलपत्राक्षं ध्यायेद् गरुड वाहन् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ विष्णवे नमः l

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ श्रवणाय नमःl


२३) धनिष्ठा
नक्षत्र: धनिष्ठा
नक्षत्र देवता :वसु
नक्षत्र स्वामी: मंगळ
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: शमी
राशी व्याप्ती: पहिले २ चरण मकर राशीमध्ये,
बाकीचे २ चरण कुंभ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: सिंह
नक्षत्र तत्व: पृथ्वी
नक्षत्र स्वभाव: थोडेसे शुभ

वेद मंत्र

ॐ वसो:पवित्रमसि शतधारंवसो: पवित्रमसि सहत्रधारम ।
देवस्त्वासविता पुनातुवसो: पवित्रेणशतधारेण सुप्वाकामधुक्ष: ।
ॐ वसुभ्यो नम: ।

पौराणिक मंत्र

श्राविष्ठादेवतां वंदे वसुन्वरधराश्रिताम् l
शंखचक्रांकितरांकिरीटांकित मस्तकाम् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ वसुभ्यो नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ धनिष्ठायै नमःl


२४) शतभिषा
नक्षत्र: शतभिषा
नक्षत्र देवता: वरुण
नक्षत्र स्वामी: राहु
नक्षत्र आराध्य वृक्ष :कदंब
राशी व्याप्ती : ४ हि चरण कुंभ राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: घोडा
नक्षत्र तत्व: जल
नक्षत्र स्वभाव: चर

वेद मंत्र

ॐ वरुणस्योत्त्मभनमसिवरुणस्यस्कुं मसर्जनी स्थो वरुणस्य
ॠतसदन्य सि वरुण स्यॠतमदन ससि वरुणस्यॠतसदनमसि ।
ॐ वरुणाय नम: ।

पौराणिक मंत्र:

वरुणं सततं वंदे सुधाकलश धारीणम् l
पाशहस्तं शतभिशग् देवतां देववंदीतम ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ वरुणाय नमः

नक्षत्र नाम मंत्र :- ॐ शतभिषजे नमः


२५) पुर्वाभाद्रपदा
नक्षत्र: पुर्वाभाद्रपदा
नक्षत्र देवता: अजैक चरण
नक्षत्र स्वामी: गुरू
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: आंबा, आम
राशी व्याप्ती : पहिले ३ चरण कुंभ राशीमध्ये,
बाकीचे १ चरण मीन राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी :सिंह
नक्षत्र तत्व: अग्नी
नक्षत्र स्वभाव: उग्र

वेद मंत्र

ॐ उतनाहिर्वुधन्य: श्रृणोत्वज एकपापृथिवी समुद्र: विश्वेदेवा
ॠता वृधो हुवाना स्तुतामंत्रा कविशस्ता अवन्तु ।
ॐ अजैकपदे नम:।

पौराणिक मंत्र:

शिरसा महजं वंदे ध्येकपादं तमोपहम् l
मुदे प्रोष्ठपदेवानं सर्वदेवनमस्कृतम् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र :-
ॐ अजैकपदे नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ पुर्वाप्रोष्ठपद्भ्यां नमःl


२६) उत्तराभाद्रपदा
नक्षत्र : उत्तराभाद्रपदा
नक्षत्र देवता : अहिर्बुंधन्य
नक्षत्र स्वामी: शनि
नक्षत्र आराध्य वृक्ष:नीम
राशी व्याप्ती : ४ ही चरण मीन राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी: गायक
नक्षत्र तत्व : जल
नक्षत्र स्वभाव : ध्रुव

 वेद मंत्र

ॐ शिवोनामासिस्वधितिस्तो पिता नमस्तेSस्तुमामाहि गवं सो
निर्वत्तयाम्यायुषेSत्राद्याय प्रजननायर रायपोषाय ( सुप्रजास्वाय ) ।

पौराणिक मंत्र:

अहिर्मे बुध्नियो भूयात मुदे प्रोष्ठ पदेश्वरःl
शंखचक्रांकीतकरः किरीटोज्वलमौलिमान् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ अहिर्बुंधन्याय नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ उत्तरप्रोष्ठपदभ्यां नमःl


२७) रेवती
नक्षत्र : रेवती
नक्षत्र देवता :पूषा
नक्षत्र स्वामी :बुध
नक्षत्र आराध्य वृक्ष: महुआ
राशी व्याप्ती : ४ ही चरण मीन राशीमध्ये
नक्षत्र प्राणी : हत्ती
नक्षत्र तत्व: जल
नक्षत्र स्वभाव: मृदु

वेद मंत्र
ॐ पूषन तव व्रते वय नरिषेभ्य कदाचन ।
स्तोतारस्तेइहस्मसि । ॐ पूषणे नम: ।

पौराणिक मंत्र:

पूषणं सततं वंदे रेवतीशं समृध्दये l
वराभयोज्वलकरं रत्नसिंहासने स्थितम् ll

नक्षत्र देवता नाममंत्र:- ॐ पूष्णे नमःl

नक्षत्र नाम मंत्र:- ॐ रेवत्यै नमःl

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।।जय श्री राम।।

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Friday 1 April 2016

Saraswat ashtottar shatnam stotra सिद्ध सारस्वत स्तोत्र

सिद्ध सारस्वत स्तोत्र

।। श्रीसरस्वत्युवाच ।।
वर्तते निर्मलं ज्ञानं, कुमति-ध्वंस-कारकं ।
स्तोत्रेणानेन यो भक्तया, मां स्तुवति सदा नरः ।।
त्रि-सन्ध्यं प्रयतो भूत्वा, यः स्तुतिं पठते तथा ।
तस्य कण्ठे सदा वासं, करिष्यासि न संशयः ।।
सिद्ध-सारस्वतं नाम, स्तोत्रं वक्ष्येऽहमुत्तमम् ।।

जो व्यक्ति सदैव इस कुमति (दुर्बुद्धि) नाशक स्तोत्र से मेरी स्तुति करता है, उसे निर्मल ज्ञान की प्राप्ति होती है । जो तीनों सन्ध्याओं में पवित्रता-पूर्वक इस स्तुति का पाठ करता है, मैं सदा उसके कण्ठ में निवास करती हूँ, इसमें संशय नहीं है । मैं “सिद्ध-सारस्वत” नामक उत्तम स्तोत्र को कहती हूँ -

उमा च भारती भद्रा, वाणी च विजया जया ।
वाणी सर्व-गता गौरी, कामाक्षी कमल-प्रिया ।।
सरस्वती च कमला, मातंगी चेतना शिवा ।
क्षेमंकरी शिवानन्दी, कुण्डली वैष्णवी तथा ।।
ऐन्द्री मधु-मती लक्ष्मीर्गिरिजा शाम्भवाम्बिका ।
तारा पद्मावती हंसा, पद्म-वासा मनोन्मनी ।।
अपर्णा ललिता देवी, कौमारी कबरी तथा ।
शाम्भवी सुमुखी नेत्री, त्रिनेत्री विश्व-रुपिणी ।।
आर्या मृडानी ह्रीं-कारी, साधनी सुमनाश्च हि ।
सूक्ष्मा पराऽपरा कार्त-स्वर-वती हरि-प्रिया ।।
ज्वाला मालिनिका चर्चा, कन्या च कमलासना ।
महा-लक्ष्मीर्महा-सिद्धिः स्वधा स्वाहा सुधामयी ।।
त्रिलोक-पाविनी भर्त्री, त्रिसन्ध्या त्रिपुरा त्रयी ।
त्रिशक्तिस्त्रिपुरा दुर्गा, ब्राह्मी त्रैलोक्यमोहिनी ।।
त्रिपुष्करा त्रिवर्गदा, त्रिवर्णा त्रिस्वधा-मयी ।
त्रिगुणा निर्गुणा नित्या, निर्विकारा निरञ्जना ।।
कामाक्षी कामिनी कान्ता, कामदा कल-हंसगा ।
सहजा कालका प्रजा, रमा मङ्ल-सुन्दरी ।।
वाग्-विलासा विशालाक्षी, सर्व-विद्या सुमङ्गला ।
काली महेश्वरी चैव, भैरवी भुवनेश्वरी ।।
वाग्-वीजा च ब्रह्मात्मजा, शारदा कृष्ण-पूजिता ।
जगन्माता पार्वती च, वाराही ब्रह्म-रुपिणी ।।
कामाख्या ब्रह्म-वारिणी, वाग्-देवी वरदाऽम्बिका ।

देवताओं के द्वारा एक सौ आठ नामों से पूजिता वाग्-देवी (सरस्वती) का जो व्यक्ति तीनों सन्ध्याओं में कीर्तन करता है, वह सभी सिद्धियाँ पाता है ।
यह स्तोत्र आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, सुख-सम्पत्ति को बढ़ाने वाला, षट्-कर्मों की सिद्धि देनेवाला और तीनों लोकों को मोहित करने वाला है ।
जो इसका नित्य पाठ करता है – स्वयं बृहस्पति भी उसके कथन के विपरित कुछ कहने में समर्थ नहीं होते, अन्य लोगों की क्या कथा ! अर्थात् कोई भी साधक के कथन के विपरित कुछ नहीं कह सकता ।
सिद्ध-सारस्वतं चैव, भवेद् विषय-नाशनम् ।।
साधक को सभी विषयों (ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त आनन्द, लौकिक, पदार्थ, मैथुन सम्बन्धी उपभोग आदि) का नाश करने वाले निर्मल ज्ञान की प्राप्ति होती है ।

।। इति सिद्ध-सारस्वत नाम सरस्वत्यष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रम् ।।

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Mritsanjivani stotra मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्

एवमाराध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयेश्वरम् |
मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ||१||

सारात्सारतरं पुण्यं गुह्यात्गुह्यतरं शुभम् |
महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकम् ||२||

समाहितमना भूत्वा शृणुश्व कवचं शुभम् |
शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ||३||

वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवित: |
मृत्युञ्जयो महादेव: प्राच्यां मां पातु सर्वदा ||४||

दधान: शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुज: प्रभु: |
सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ||५||

अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभु: |
यमरूपी महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु ||६||

खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवित: |
रक्षोरूपी महेशो मां नैऋत्यां सर्वदावतु ||७||

पाशाभयभुज: सर्वरत्नाकरनिषेवित: |
वरूणात्मा महादेव: पश्चिमे मां सदावतु ||८||

गदाभयकर: प्राणनायक: सर्वदागति: |
वायव्यां वारुतात्मा मां शङ्कर: पातु सर्वदा ||९||

शङ्खाभयकरस्थो मां नायक: परमेश्वर: |
सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्कर: प्रभु: ||१०||

शूलाभयकर: सर्वविद्यानामधिनायक: |
ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वर: ||११||

ऊर्ध्वभागे ब्रह्मरूपी विश्वात्माऽध: सदावतु |
शिरो मे शङ्कर: पातु ललाटं चन्द्रशेखर: ||१२||

भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु |
भ्रूयुग्मं गिरिश: पातु कर्णौ पातु महेश्वर: ||१३||

नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वज: |
जिव्हां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु ||१४||

मृत्युञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषण: |
पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम ||१५||

पञ्चवक्त्र: स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वर: |
नाभिं पातु विरूपाक्ष: पार्श्वो मे पार्वतिपति: ||१६||

कटद्वयं गिरिशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिप: |
गुह्यं महेश्वर: पातु ममोरु पातु भैरव: ||१७||

जानुनी मे जगद्धर्ता जङ्घे मे जगदंबिका |
पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्य: सदाशिव: ||१८||

गिरिश: पातु मे भार्या भव: पातु सुतान्मम |
मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायक: ||१९||

सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकाल: सदाशिव: |
एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानांच दुर्लभम् ||२०||

मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् |
सहस्त्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ||२१||

य: पठेच्छृणुयानित्यं श्रावयेत्सु समाहित: |
सकालमृत्यु निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ||२२||

हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ |
आधयोव्याधयस्तस्य न भवन्ति कदाचन ||२३||

कालमृत्युमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा |
अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तम: ||२४||

युद्धारम्भे पठित्वेदमष्टाविंशतिवारकम |
युद्धमध्ये स्थित: शत्रु: सद्य: सर्वैर्न दृश्यते ||२५||

न ब्रह्मादिनी चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै |
विजयं लभते देवयुद्धमध्येऽपि सर्वदा ||२६||

प्रातरूत्थाय सततं य: पठेत्कवचं शुभम् |
अक्षय्यं लभते सौख्यमिहलोके परत्र च ||२७||

सर्वव्याधिविनिर्मुक्त: सर्वरोगविवर्जित: |
अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिक: ||२८||

विचरत्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् |
तस्मादिदं महागोप्यं कवचं समुदाहृतम् ||२९||

मृतसञ्जीवनं नाम्ना दैवतैरपि दुर्लभम् |
मृतसञ्जीवनं नाम्ना दैवतैरपि दुर्लभम् ||३०||

|| इति वसिष्ठकृतं मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ||

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Kakaraadi kali shatnam stotram ककारादिकालीशतनामस्तोत्रम्

 ॥
ककारादिकालीशतनामस्तोत्रम् ॥

श्रीदेव्युवाच-
नमस्ते पार्वतीनाथ विश्वनाथ दयामय ।
ज्ञानात् परतरं नास्ति श्रुतं विश्वेश्वर प्रभो ॥ १॥

दीनवन्धो दयासिन्धो विश्वेश्वर जगत्पते ।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि गोप्यं परमकारणम् ।
रहस्यं कालिकायश्च तारायाश्च सुरोत्तम ॥ २॥

श्रीशिव उवाच-
रहस्यं किं वदिष्यामि पञ्चवक्त्रैर्महेश्वरी ।
जिह्वाकोटिसहस्रैस्तु वक्त्रकोटिशतैरपि ॥ ३॥

वक्तुं न शक्यते तस्य माहात्म्यं वै कथञ्चन ।
तस्या रहस्यं गोप्यञ्च किं न जानासि शङ्करी ॥ ४॥

स्वस्यैव चरितं वक्तुं समर्था स्वयमेव हि ।
अन्यथा नैव देवेशि ज्ञायते तत् कथञ्चन ॥ ५॥

कालिकायाः शतं नाम नाना तन्त्रे त्वया श्रुतम् ।
रहस्यं गोपनीयञ्च तत्रेऽस्मिन् जगदम्बिके ॥ ६॥

करालवदना काली कामिनी कमला कला ।
क्रियावती कोटराक्षी कामाक्ष्या कामसुन्दरी ॥ ७॥

कपाला च कराला च काली कात्यायनी कुहुः ।
कङ्काला कालदमना करुणा कमलार्च्चिता ॥ ८॥

कादम्बरी कालहरा कौतुकी कारणप्रिया ।
कृष्णा कृष्णप्रिया कृष्णपूजिता कृष्णवल्लभा ॥ ९॥

कृष्णापराजिता कृष्णप्रिया च कृष्णरूपिनी ।
कालिका कालरात्रीश्च कुलजा कुलपण्डिता ॥ १०॥

कुलधर्मप्रिया कामा काम्यकर्मविभूषिता ।
कुलप्रिया कुलरता कुलीनपरिपूजिता ॥ ११॥

कुलज्ञा कमलापूज्या कैलासनगभूषिता ।
कूटजा केशिनी काम्या कामदा कामपण्डिता ॥ १२॥

करालास्या च कन्दर्पकामिनी रूपशोभिता ।
कोलम्बका कोलरता केशिनी केशभूषिता ॥ १३॥

केशवस्यप्रिया काशा काश्मीरा केशवार्च्चिता ।
कामेश्वरी कामरुपा कामदानविभूषिता ॥ १४॥

कालहन्त्री कूर्ममांसप्रिया कूर्मादिपूजिता ।
कोलिनी करकाकारा करकर्मनिषेविणी ॥ १५॥

कटकेश्वरमध्यस्था कटकी कटकार्च्चिता ।
कटप्रिया कटरता कटकर्मनिषेविणी ॥ १६॥

कुमारीपूजनरता कुमारीगणसेविता ।
कुलाचारप्रिया कौलप्रिया कौलनिषेविणी ॥ १७॥
कामरूपा कामहरा काममन्दिरपूजिता ।
कामागारस्वरूपा च कालाख्या कालभूषिता ॥ १९॥

क्रियाभक्तिरता काम्यानाञ्चैव कामदायिनी ।
कोलपुष्पम्बरा कोला निकोला कालहान्तरा ॥ २०॥

कौषिकी केतकी कुन्ती कुन्तलादिविभूषिता ।
इत्येवं शृणु चार्वञ्गि रहस्यं सर्वमञ्गलम् ॥ २१॥

फलश्रुति-
यः पठेत् परया भक्त्या स शिवो नात्र संशयः ।
शतनामप्रसादेन किं न सिद्धति भूतले ॥ २२॥

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च वासवाद्या दिवौकसः ।
रहस्यपठनाद्देवि सर्वे च विगतज्वराः ॥ २३॥
त्रिषु लोकेशु विश्वेशि सत्यं गोप्यमतः परम् ।
नास्ति नास्ति महामाये तन्त्रमध्ये कथञ्चन ॥ २४॥

सत्यं वचि महेशानि नातःपरतरं प्रिये ।
न गोलोके न वैकुण्ठे न च कैलासमन्दिरे ॥ २५॥

रात्रिवापि दिवाभागे यदि देवि सुरेश्वरी ।
प्रजपेद् भक्तिभावेन रहस्यस्तवमुत्तमम् ॥ २६॥

शतनाम प्रसादेन मन्त्रसिद्धिः प्रजायते ।
कुजवारे चतुर्द्दश्यां निशाभागे जपेत्तु यः ॥ २७॥

स कृती सर्वशास्त्रज्ञः स कुलीनः सदा शुचिः ।
स कुलज्ञः स कालज्ञः स धर्मज्ञो महीतले ॥ २८॥

रहस्य पठनात् कोटि-पुरश्चरणजं फलम् ।
प्राप्नोति देवदेवेशि सत्यं परमसुन्दरी ॥ २९॥

स्तवपाठाद् वरारोहे किं न सिद्धति भूतले ।
अणिमाद्यष्टसिद्धिश्च भवेत्येव न संशयः ॥ ३०॥

रात्रौ बिल्वतलेऽश्वथ्थमूलेऽपराजितातले ।
प्रपठेत् कालिका-स्तोत्रं यथाशक्त्या महेश्वरी ॥ ३१॥

शतवारप्रपठनान्मन्त्रसिद्धिर्भवेद्ध्रूवम् ।
नानातन्त्रं श्रुतं देवि मम वक्त्रात् सुरेश्वरी ॥ ३२॥

मुण्डमालामहामन्त्रं महामन्त्रस्य साधनम् ।
भक्त्या भगवतीं दुर्गां दुःखदारिद्र्यनाशिनीम् ॥ ३३॥

संस्मरेद् यो जपेद्ध्यायेत् स मुक्तो नात्र संशय ।
जीवन्मुक्तः स विज्ञेयस्तन्त्रभक्तिपरायणः ॥ ३४॥

स साधको महाज्ञानी यश्च दुर्गापदानुगः ।
न च भक्तिर्न वाहभक्तिर्न मुक्तिनगनन्दिनि ॥ ३५॥

विना दुर्गां जगद्धात्री निष्फलं जीवनं भभेत् ।
शक्तिमार्गरतो भूत्वा योहन्यमार्गे प्रधावति ॥ ३६॥

न च शाक्तास्तस्य वक्त्रं परिपश्यन्ति शङ्करी ।
विना तन्त्राद् विना मन्त्राद् विना यन्त्रान्महेश्वरी ॥ ३७॥

न च भुक्तिश्च मुक्तिश्च जायते वरवर्णिनी ।
यथा गुरुर्महेशानि यथा च परमो गुरुः ॥ ३८॥

तन्त्रावक्ता गुरुः साक्षाद् यथा च ज्ञानदः शिवः ।
तन्त्रञ्च तन्त्रवक्तारं निन्दन्ति तान्त्रीकीं क्रियाम् ॥ ३९॥
ये जना भैरवास्तेषां मांसास्थिचर्वणोद्यताः ।
अतएव च तन्त्रज्ञं स निन्दन्ति कदाचन ।
न हस्तन्ति न हिंसन्ति न वदन्त्यन्यथा बुधा ॥ ४०॥

॥ इति मुण्डमालातन्त्रेऽष्टमपटले देवीश्वर संवादे
कालीशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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Mantra to Improve eye sight/vision चक्षुष्मती विद्या

 चक्षुष्मती विद्या

ॐ अस्याश्चाक्षुषीविद्याया अहिर्बुध्न्य ऋषिः, गायत्री छन्दः, सूर्यो देवता, ॐ बीजम्, नमः शक्तिः, स्वाहा कीलकम्, चक्षूरोगनिवृत्तये जपे विनियोगः।

 ॐ चक्षुः चक्षुः चक्षुः तेजः स्थिरो भव। मां पाहि पाहि। त्वरितं चक्षुरोगान् शमय शमय। मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय। यथाहम् अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय। कल्याणं कुरू कुरू। यानि मम पूर्वजन्मोपरर्जितानि चक्षुःप्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूलय निर्मूलय। ॐ नमः चक्षुस्तेजोदात्रे दिव्याय भास्कराय। ॐ नमः करूणाकरायामृताय। ॐ नमः सूर्याय। ॐ नमः भगवते सूर्यायाक्षितेजसे नमः। ॐ खेचराय नमः। ॐ महते नमः। ॐ रजसे नमः। ॐ तमसे नमः। ॐ असतो मा सद्गम्य। ॐ तमसो मा ज्योतिर्गमय। ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवांछुचिरूपः। हंसो भगवान् शुचिरप्रतिरूपः। ॐ विश्वरूपं घृणिनं जातवेदसं हिरण्मयं ज्योतिरूपं तपन्तम्। सहस्ररश्मिः शतधा वर्तमानः पुरः प्रजानामुदयत्येष सूर्यः।। ॐ नमो भगवते श्रीसूर्यायादित्यायाऽक्षितेजसेऽहोवाहिनिवाहिनि स्वाहा।। ॐ वयः सुपर्णा उपसेदुरिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः। अप ध्वान्तमूर्णुहि पूर्धि- चक्षुर्मुग्ध्यस्मान्निधयेव बद्धान्।। ॐ पुण्डरीकाक्षाय नमः। ॐ पुष्करेक्षणाय नमः। ॐ कमलेक्षणाय नमः। ॐ विश्वरूपाय नमः। ॐ श्रीमहाविष्णवे नमः। ॐ सूर्यनारायणाय नमः।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।। य इमां चक्षुष्मतीविद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति। अष्टौ ब्राह्मणान् ग्राहयित्वा विद्यासिद्धिर्भवति।।

जो व्यक्ति  इस चक्षुष्मतीविद्या का नित्य पाठ करता है, उसे नेत्र सम्बन्धी कोई रोग नहीं होता। उसके कुल में कोई अंधा नहीं होता। आठ ब्राह्मणों को इस विद्या का दान करने पर – इसका ग्रहण करा देने पर इस विद्या की सिद्धि होती है।

 2.. श्रीविष्णु सहस्रनाम में वर्णित निम्न चार नामावलि को दिन में अनेकों बार या जितना अधिक सम्भव हो उतनी बार जपें – “सहस्रमूर्धा विश्वात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात्” ।।

3 . सौन्दर्य-लहरी का निम्न श्लोक प्रतिदिन १२ बार जपना चाहिए –

“गते कर्णाभ्यर्णं गरुत इव पक्ष्माणि दधती पुरां भेत्तुशचित्तप्रशमरसविद्रावणफले । इमे नेत्रे गोत्राधरपतिकुलोत्तंसकलिके तवाकर्णाकृष्टस्मरशरविलासं कलयतः” ।।

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श्री विचित्रवीरहनुमन्मालामन्त्रः ॥ Shri Vichitra Veer Hanuman mala mantra for enemies

श्री विचित्रवीरहनुमन्मालामन्त्रः ॥

मित्रों , समय  असमय  हम विभिन्न कारणों से शत्रुओं से या अनचाहे रूप से परेशान करने वालों से अथवा कत्यों में व्यवधान पैदा करने वालों से दुखी रहते हैं। इनसे सुरक्षित रहते हुए अपने कार्यों को सुचारु करने और जो जबरन परेशा करते हैं उन्हें पीड़ित करने हेतु ये हनुमान जी के  विचित्रविर रूप का मंत्र अति उपयोगी है।  इसके प्रतिदिन मात्र ११ बार पथ करने से मनुष्य शटरों से मुक्त रहता है और जो लोग परेशान करना चाहते हैं उन्हें हनुमान जी के कोप का भाजन बना पड़ता है।

🌺श्रीगणेशाय नमः ।

🌺ॐ अस्य श्रीविचित्रवीरहनुमन्मालामन्त्रस्य श्रीरामचन्द्रो भगवानृषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीविचित्रवीरहनुमान् देवता, ममाभीष्टसिद्ध्यर्थे मालामन्त्र जपे विनियोगः ।

🌺अथ करन्यासः ।
🌺ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
🌺ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।
🌺ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।
🌺ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः ।
🌺ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
🌺ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

🌺अथ अङ्गन्यासः
🌺ॐ ह्रां हृदयाय नमः ।
🌺ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ।
🌺ॐ ह्रूं शिखायै वषट् ।
🌺ॐ ह्रैं कवचाय हुम् ।
🌺ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।
🌺ॐ ह्रः अस्त्राय फट् ।

🌺अथ ध्यानम् ।
🌺वामे करे वैरवहं वहन्तं शैलं परे श्रृङ्खलमालयाढ्यम् । दधानमाध्मातसुवर्णवर्णं भजे ज्वलत्कुण्डलमाञ्जनेयम् ॥

🌺ॐ नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते प्रलयकालानलप्रभाज्वलत्प्रतापवज्रदेहाय अञ्जनीगर्भसम्भूताय प्रकटविक्रमवीरदैत्य- दानवयक्षराक्षसग्रहबन्धनाय भूतग्रह- प्रेतग्रहपिशाचग्रहशाकिनीग्रहडाकिनीग्रह- काकिनीग्रहकामिनीग्रहब्रह्मग्रहब्रह्मराक्षसग्रह- चोरग्रहबन्धनाय एहि एहि आगच्छागच्छ- आवेशयावेशय मम हृदयं प्रवेशय प्रवेशय स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर सत्यं कथय कथय व्याघ्रमुखं बन्धय बन्धय सर्पमुखं बन्धय बन्धय राजमुखं बन्धय बन्धय सभामुखं बन्धय बन्धय शत्रुमुखं बन्धय बन्धय सर्वमुखं बन्धय बन्धय लङ्काप्रासादभञ्जन सर्वजनं मे वशमानय वशमानय श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सर्वानाकर्षय आकर्षय शत्रून् मर्दय मर्दय मारय मारय चूर्णय चूर्णय खे खे खे श्रीरामचन्द्राज्ञया प्रज्ञया मम कार्यसिद्धि कुरु कुरु मम शत्रून् भस्मी कुरु कुरु स्वाहा ॥
🌺ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् श्रीविचित्रवीरहनुमते मम सर्वशत्रून् भस्मी कुरु कुरु हन हन हुं फट् स्वाहा ॥

🌺एकादशशतवारं जपित्वा सर्वशत्रून् वशमानयति नान्यथा इति ॥

🙏🏻इति श्रीविचित्रवीरहनुमन्मालामन्त्रः सम्पूर्णम्

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।।जय श्री राम।।
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