tag:blogger.com,1999:blog-57574388852601586302024-03-16T11:52:47.745-07:00Jyotish and Tantra Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.comBlogger292125tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-91080707572732289412023-05-05T00:07:00.001-07:002023-05-05T00:07:03.471-07:00कूर्म जयंती एवं गोरख जयंती की शुभकामनाएं<div><div>श्री विष्णु स्वरूप कूर्म एवं बुद्ध जयंती तथा</div><div>शिव स्वरूप बाबा गोरखनाथ जयंती की शुभकामनाएं</div><div><br></div><div>रोग एवं तंत्र मंत्र निवारण मन्त्र</div><div><br></div><div>ॐ वज्र में कोठा, वज्र में ताला, वज्र में बंध्या दस्ते द्वारा, तहां वज्र का लग्या किवाड़ा, वज्र में चौखट, वज्र में कील, जहां से आय, तहां ही जावे, जाने भेजा, जांकू खाए, हमको फेर न सूरत दिखाए, हाथ कूँ, नाक कूँ, सिर कूँ, पीठ कूँ, कमर कूँ, छाती कूँ जो जोखो पहुंचाए, तो गुरु गोरखनाथ की आज्ञा फुरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा</div><div><br></div><div>कूर्म जयंती महत्व</div><div><br></div><div>जिस दिन भगवान विष्णु जी ने कूर्म का रूप धारण किया था उसी तिथि को कूर्म जयंती के रूप में मनाया जाता है. शास्त्रों नें इस दिन की बहुत महत्ता मानी गई है. इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू किया जाना बेहद शुभ माना जाता है, क्योंकि योगमाया स्वरूपा बगलामुखी स्तम्भित शक्ति के साथ कूर्म में निवास करती है. कूर्म जयंती के अवसर पर वास्तु दोष दूर किए ज सकते हैं, नया घर भूमि आदि के पूजन के लिए यह सबसे उत्तम समय होता है तथा बुरे वास्तु को शुभ में बदला जा सकता है.</div><div><br></div><div>श्री कूर्म भगवान मन्त्र</div><div><br></div><div>ॐ श्रीं कूर्माय नम:।</div><div><br></div><div>श्री कूर्म भगवान के कुछ सरल प्रयोग</div><div><br></div><div>1) महावास्तु दोष निवारक मंत्र</div><div>दुर्भाग्य बश यदि आपका पूरा मकान निवास स्थान या फ्लेट ही वास्तु विरुद्ध बन गया हो और आप किसी भी हालत में उसमें सुधार नहीं कर सकते</div><div>तो केवल महावास्तु मंत्र का जाप एवं कूर्म देवता की पूजा करनी चाहिए जिसका विधान है कि</div><div><br></div><div>सबसे पहले लाल चन्दन और केसर कुमकुम मिला कर एक पवित्र स्थान पर कछुए की आकृति बना लेँ</div><div>कछुए के मुख की ओर सूर्य तथा पूछ की ओर चन्द्रमा बना लेँ</div><div>सुबिधानुसार आप धातु का बना कछुआ भी पूजन हेतु प्रयुक्त कर सकते हैं</div><div>फिर धूप दीप फल ओर गंगाजल या समुद्र का जल अर्पित करें</div><div>भूमि पर ही आसन बिछ कर रुद्राक्ष माला से 11 माला मंत्र का जाप करें।</div><div><br></div><div>मंत्र- ॐ ह्रीं कूर्माय वास्तु पुरुषाय स्वाहा</div><div><br></div><div>जाप पूरा होने के बाद घर अथवा निवास स्थान के चारों ओर एक एक कछुए का छोटा निशान बना दें</div><div>ऐसा करने से पूरी तरह वास्तु दोष से ग्रसित घर भी दोष मुक्त हो जाता है दिशाएं नकारात्मक प्रभाव नहीं दे पाती उर्जा परिवर्तित हो जाती है</div><div><br></div><div>2)वास्तु दोष निवारक महायंत्र</div><div>यदि आप ऐसी हालत में भी नहीं हैं कि पूजा पाठ या मंत्र का जाप कर सकें और आप नकारात्मक वास्तु के कारण बेहद परेशान है</div><div>घर दूकान या आफिस को बिना तोड़े फोड़े सुधारना चाहते हैं तो उसका दिव्य उपाय है महायंत्र</div><div>वास्तु का तीब्र प्रभावी यन्त्र</div><div>----------------------------------</div><div>121 177 944</div><div>----------------------------------</div><div>533 291 311</div><div>----------------------------------</div><div>657 111 312</div><div>----------------------------------</div><div>यन्त्र को आप सादे कागज़ भोजपत्र या ताम्बे चाँदी अष्टधातु पर बनवा सकते हैं</div><div>यन्त्र के बन जाने पर यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए</div><div>प्राण प्रतिष्ठा के लिए पुष्प धूप दीप अक्षत आदि ले कर यन्त्र को अर्पित करें</div><div>पंचामृत से सनान कराते हुये या छींटे देते हुये 21 बार मंत्र का उच्चारण करें</div><div><br></div><div>मंत्र-ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नम:</div><div><br></div><div>अब पीले रंग या भगवे रंग के वस्त्र में लपेट कर इस यन्त्र को घर दूकान या कार्यालय में स्थापित कर दीजिये</div><div><br></div><div>पुष्प माला अवश्य अर्पित करें</div><div>इस प्रयोग से शीघ्र ही वास्तु दोष हट जाएगा</div><div><br></div><div>3) तनाव मुक्ति हेतु</div><div><br></div><div>चांदी के गिलास बर्तन या पात्र पर कछुए का चिन्ह बना कर भोजन करने व पानी पीने से भारी से भारी तनाब नष्ट होता है ।</div><div><br></div><div>4) उत्तम स्वास्थ्य हेतु</div><div><br></div><div>चार पायी बेड अथवा शयन कक्ष में धातु का कूर्म अर्थात कछुआ रखने से गहरी और सुखद निद्रा आती है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी होती है ।</div><div><br></div><div>रसोई घर में कूर्म की स्थापना करने से वहां पकने वाला भोजन रोगमुक्ति के गुण लिए भक्त को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाता है ।</div><div><br></div><div>5) कूर्म श्री यन्त्र</div><div><br></div><div>कछुवे की पीठ पर श्री यन्त्र समतल अथवा पिरामिड आकार में प्रायः देखने को मिल जाता है।</div><div>आध्यात्मिक दृष्टि से जहां ये काम, क्रोध, लोभ, मोह का शमन कर कुंडली जागरण द्वारा मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है। वहीं दूसरी ओर भौतिक सुखों की छह रखने वालों के लिए ये स्थिर लक्ष्मी, सम्पदा, सौख्य और विजय देने का भी प्रतीक माना जाता है।</div><div><br></div><div>6) नए भवन निर्माण में समृद्धि हेतु</div><div><br></div><div>यदि नया भवन बना रहे हैं तो आधार में चाँदी का कछुआ ड़ाल देने से घर में रहने वाला परिवार खूब फलता-फूलता है ।</div><div><br></div><div>7) शिक्षा में स्थिर चित्त हेतु</div><div><br></div><div>बच्चों को विद्या लाभ व राजकीय लाभ मिले इसके लिए उनसे कूर्म की उपासना करवानी चाहिए तथा मिटटी के कछुए उनके कक्ष में स्थापित करें ।</div><div><br></div><div>8) विवाद विजय में</div><div><br></div><div>यदि आपका घर किसी विवाद में पड़ गया हो या घर का संपत्ति का विवाद कोर्ट कचहरी तक पहुँच गया हो तो लोहे का कूर्म बना कर शनि मंदिर में दान करना चाहिए ।</div><div><br></div><div>9) शत्रु मुक्ति</div><div><br></div><div>घर की छत में कूर्म की स्थापना से शत्रु नाश होता है उनपर विजय मिलती है।</div><div><br></div><div>10)भूमि दोष नाशक मंत्र उपाय</div><div><br></div><div>यदि आपका घर या जमीन ऐसी जगह है जहाँ भूमि में ही दोष है</div><div>आपका घर किसी श्मशान भूमि ,कब्रगाह ,दुर्घटना स्थल या युद्ध भूमि पर बना है या कोई अशुभ साया या जमीनी अशुभ तत्व स्थान में समाहित हों</div><div>जिस कारण सदा भय कलह हानि रोग तानाब बना रहता हो तो जमीन में मिटटी के कूर्म की स्थापना करनी चाहिए</div><div>एक मिटटी का कछुआ ले कर उसका पूजन करें</div><div>पूजन के लिए घर के ब्रह्मस्थल में भूमि पर लाल वस्त्र बिछा लेँ</div><div>फिर गंगाजल से स्नान करवा कर कुमकुम से तिलक करें</div><div>पंचोपचार पूजा करें अर्थात धूप दीप जल वस्त्र फल अर्पित करें चने का प्रसाद बनाये व बांटे</div><div><br></div><div>7 माला मंत्र जाप पूर्व दिशा की और मुख रख कर करें</div><div><br></div><div>मंत्र-ॐ आधार पुरुषाय जाग्रय-जाग्रय तर्पयामि स्वाहा।</div><div><br></div><div>साथ ही एक माला पूरी होने पर एक बार कछुए पर पानी छिड़कें</div><div><br></div><div>संध्या के समय भूमि में तीन फिट गढ्ढा कर गाड़ दें</div><div>समस्त भूमि दोष दूर होंगे</div><div><br></div><div>11) अदृश्य शक्ति नाशक प्रयोग</div><div><br></div><div>यदि आपको लगता है कि आपके घर में कोई अदृश्य शक्ति है ,किसी तरह की कोई बाधा है तो कूर्म की पूजा कर उसे मौली बाँध दें ,लाल कपडे में बंद कर धूप दीप करें , निम्न मन्त्र का 11 माला जप करें</div><div><br></div><div>मंत्र-ॐ हां ग्रीं कूर्मासने बाधाम नाशय नाशय ।</div><div><br></div><div>रात के समय इसे द्वार पर रखे तथा सुबह नदी में प्रवाहित कर दें</div><div>इससे घर में शीघ्र शांति हो जायेगी।</div><div><br></div><div>12)भूमि भवन सुख दायक प्रयोग</div><div><br></div><div>यदि आपको लगता है कि आपके पास ही घर क्यों नहीं है? आपके पास ही संपत्ति क्यों नहीं है?</div><div>क्या इतनी बड़ी दुनिया में आपको थोड़ी सी जगह मिलेगी भी या नहीं ? तो इसके लिए केवल कूर्म स्वरुप विष्णु जी की पूजा कीजिये</div><div><br></div><div>विष्णु जी की प्रतिमा के सामने कूर्म की प्रतिमा रखें या कागज पर बना कर स्थापित करें</div><div>इस कछुए के नीचे नौ बार नौ का अंक लिख दें</div><div>भगवान् को पीले फल व पीले वस्त्र चढ़ाएं</div><div>तुलसी दल कूर्म पर रखें और पुष्प अर्पित कर भगवान् की आरती करें</div><div>आरती के बाद प्रसाद बांटे व कूर्म को ले जा कर किसी अलमारी आदि में छुपा कर रख लेँ</div><div>इस प्रयोग से भूमि संपत्ति भवन के योग रहित जातक को भी इनका सुख प्राप्त होता है।</div><div><br></div><div>13) वास्तु स्थापन प्रयोग</div><div>यदि आपका दरवाजा खिड़की कमरा रसोई घर सही दिशा में नहीं हैं तो उनको तोड़ने की बजाये</div><div>उनपर कछुए का निशान इस तरह से बनाये कि कछुए का मुख नीचे जमीन की ओर हो और पूंछ आकाश की ओर</div><div>ये प्रयोग शाम को गोधुली की बेला में करना चाहिए</div><div>कछुए को रक्त चन्दन ,कुमकुम ,केसर के मिश्रण से बनी स्याही से बनाएं।</div><div>कछुए का निर्माण करते समय मानसिक मंत्र का जाप करते रहें</div><div>मंत्र-ॐ कूर्मासनाय नम:</div><div>कछुया बन जाने पर धूप दीप कर गंगा जल के छीटे दें</div><div>और धूप दिखाएँ।</div><div>इस तरह प्रयोग करने से गलत दिशा में बने द्वार खिड़की कक्ष आदि को तोड़ने की आवश्यकता नहीं होती ऐसा विद्वानों का कथन है।</div><div><br></div><div>14) व्यापार वृद्धि हेतु</div><div><br></div><div>अष्टधातु या चाँदी से निर्मित कूर्म विधिवत पूजन कर अपने कैश काउंटर या मेज पर इस प्रकार रखें की उसका मुख बाहर प्रवेश द्वार की ओर रहे। आने जाने वाले सभी लोगों की नज़र उस पर पड़े।</div><div><br></div><div>अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवं कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।</div><div><br></div><div>।।जय श्री राम।।</div><div><br></div><div>7579400465</div><div>8909521616(whats app)</div><div><br></div><div>फेसबुक पर जुड़ें</div><div><br></div><div>https://m.facebook.com/Astrology-paid-service-552974648056772</div><div><br></div><div>For more easy & useful remedies visit</div><div><br></div><div> http://jyotish-tantra.blogspot.in</div></div><div><br></div><div 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</div>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-75549508194749267692023-04-28T23:07:00.001-07:002023-04-28T23:07:13.255-07:00जानकी नवमी 2023<div><div>सीता नवमी की शुभकामनाएं </div><div><br></div><div>श्रीजानकीस्तोत्रम् </div><div><br></div><div>नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावलम्बिनीम् ।</div><div>शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ १॥</div><div><br></div><div>जिनके नील कमल-दल के सदृश नेत्र हैं, जिन्हें श्रीराम की भुजा</div><div>का ही अवलंबन है, जो प्रज्वलित अग्नि में अपनी पवित्रता की परीक्षा देना</div><div>चाहती हैं, उन रामप्रिया श्री सीता माता का मैं मन-ही-मन में ध्यान</div><div>(भावना) करता हूम् । १</div><div><br></div><div>रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम् ।</div><div>ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ २॥</div><div><br></div><div>श्रीरामजी के चरणों की ओर निश्चल रूप से जिनके नेत्र लगे हुए हैं,</div><div>जिन्होंने अपनी अङ्गकान्ति से सुवर्ण को मात कर दिया है । तथा ताटका</div><div>के वैरी श्रीरामजी के (द्वारा दुष्टों के प्रति कहे गए) कटु वचनों से</div><div>जो घबराई हुई हैं, उन श्रीरामजी की प्रेयसी श्री सीता मां की मन में</div><div>भावना करता हूम् । २</div><div><br></div><div>कुन्तलाकुल-कपोलमाननं, राहुवक्रग-सुधाकरद्युतिम् ।</div><div>वाससा पिदधतीं हियाकुलां भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ३॥</div><div><br></div><div>जो लज्जा से हतप्रभ हुईं अपने उस मुख को, जिनके कपोल उनके बिथुरे</div><div>हुए बालों से उसी प्रकार आवृत हैं, जैसे चन्द्रमा राहु द्वारा ग्रसे</div><div>जाने पर अंधकार से आवृत हो जाता है, वस्त्र से ढंक रही हैं,</div><div>उन राम-पत्नी सीताजी का मन में ध्यान करता हूं । ३</div><div><br></div><div>कायवाङ्मनसगं यदि व्यधां स्वप्नजागृतिषु राघवेतरम् ।</div><div>तद्दहाङ्गमिति पावकं यती भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ४॥</div><div><br></div><div>जो मन-ही-मन यह कहती हुई कि यदि मैंने श्रीरघुनाथ के अतिरिक्त</div><div>किसी और को अपने शरीर, वाणी अथवा मन में कभी स्थान दिया हो तो हे</div><div>अग्ने ! मेरे शरीर को जला दो अग्नि में प्रवेश कर गईं, उन रामजी की</div><div>प्राणप्रिय सीताजी का मन में ध्यान करता हूम् । ४</div><div><br></div><div>इन्द्ररुद्र-धनदाम्बुपालकैः सद्विमान-गणमास्थितैर्दिवि ।</div><div>पुष्पवर्ष-मनुसंस्तुताङ्घकिं भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ५॥</div><div><br></div><div>उत्तम विमानों में बैठे हुए इन्द्र, रुद्र, कुबेर और वरुण द्वारा</div><div>पुष्पवृष्टि के अनंतर जिनके चरणों की भली-भांति स्तुति की गई है,</div><div>उन श्रीराम की प्यारी पत्नी सीता माता की मन में भावना करता हूम् । ५</div><div><br></div><div>सञ्चयैर्दिविषदां विमानगैर्विस्मयाकुल-मनोऽभिवीक्षिताम् ।</div><div>तेजसा पिदधतीं सदा दिशो भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ६॥</div><div><br></div><div>(अग्नि-शुद्धि के समय) विमानों में बैठे हुए देवगण विस्मयाविष्ट</div><div>चित्त से जिनकी ओर देख रहे थे और जो अपने तेज से दसों दिशाओं को</div><div>आच्छादित कर रही थीं, उन रामवल्लभा श्री सीता मां की मैं मन में</div><div>भावना करता हूम् । ६</div><div><br></div><div>मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रभु श्रीराम एवं माता सीता का</div><div>विधि-विधान से पूजन करता है, उसे १६ महान दानों का फल, पृथ्वी</div><div>दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है । इसके</div><div>साथ ही जानकी स्तोत्र का पाठ नियमित करने से मनुष्य के सभी कष्टों</div><div>का नाश होता है । इसके पाठ से माता सीता प्रसन्न होकर धन-ऐश्वर्य</div><div>की प्राप्ति कराती है । ७</div><div><br></div><div>इति जानकीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।</div><div><br></div><div>इस स्तोत्र का पाठ करने से लक्ष्मीस्वरूपा माता जानकी की कृपा प्राप्त होती है और अन्न धन की कभी कमी नहीं होती।</div><div><br></div><div>।।जय श्री राम।।</div><div><br></div><div>अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क करें</div><div>8909521616</div><div>7579400465</div></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><br></p><p dir="ltr">भक्त शिरोमणि हुनमान का नाम लेने से ही सारे संकट दूर हो जाते हैं। उनकी जन्म कथा कई रहस्यों से भरी है। भूख लगी तो सूर्य को निगलने दौड़ पड़े, संजीवनी बूटी न मिली तो पर्वत ही पूरा उखाड़ लिया, आइए जानें, ऐसे तेजस्वी और बलशाली हनुमान का जन्म किस प्रकार हुआ ...</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">श्री हनुमानजी के अवतरण की पुराणों मे कई कथाएं मिलती हैं, परंतु सर्वमान्यता है कि ये भगवान शिवजी के 11वें रुद्रावतार हैं। </p><p dir="ltr">‘वायु पुराण’ में बताया गया है: </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">‘‘अंजनीगर्भ सम्भूतो हनुमान पवनात्मजः। यदा जातो महादेवो हनुमान सत्य विक्रमः।।’’</p><p dir="ltr">‘स्कंदपुराण में हनुमानजी को साक्षात् शिव जी का अवतार माना गया है: </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">‘‘यो वै चैकादशो रुद्रो हनुमान सः महाकविः। अवतीर्णः सहायतार्थ विष्णोरमित तेजसः।।’’</p><p dir="ltr">गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी दोहावली में कहा है:</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">‘‘जेंहि शरीर रति राम सौं सोई आदरहि सुजान। रुद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान।।"</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">वायु पुराण के अनुसार त्रेतायुग में रामावतार के पूर्व एक बार समाधि टूटने पर शिवजी को अति प्रसन्न देखकर माता पार्वती ने कारण जानने की जिज्ञासा प्रकट की। शिवजी ने बताया कि उनके इष्ट श्रीराम, रावण संहार के लिए पृथ्वी पर अवतार लेने वाले हैं। अपने इष्ट की सशरीर सेवा करने का उनके लिए यह श्रेष्ठ अवसर है। </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">पार्वती जी दुविधा में बोलीं- ‘‘स्वामी इससे तो मेरा आपसे बिछोह हो जाएगा। दूसरे, रावण आपका परम भक्त है। उसके विनाश में आप कैसे सहायक हो सकते हैं?’’</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">पार्वतीजी की शंका का समाधान करते हुए शिवजी ने कहा कि ‘निस्संदेह रावण मेरा परम भक्त है, परंतु वह आचरणहीन हो गया है। उसने अपने दस सिर काट कर मेरे दस रूपों की सेवा की है। परंतु मेरा एकादश रूप अपूजित है। अतः मैं दस रूपों में तुम्हारे पास रहूंगा और एकादश रुद्र के अंशावतार रूप में अंजना के गर्भ से जन्म लेकर अपने इष्ट श्री राम द्वारा रावण के विनाश में सहायक बनूंगा।’</p><p dir="ltr">हनुमान जी की माता अंजना देवराज इंद्र की सभा में पुंचिकस्थला नाम की अप्सरा थी जिसको ऋषि श्राप के कारण पृथ्वी पर वानरी बनना पड़ा। बहुत अनुनय विनय करने पर ऋषि ने शापानुग्रह करते हुए उसे रूप बदलने की छूट दी, कि वह जब चाहे वानर और जब चाहे मनुष्य रूप धारण कर सकती है। पृथ्वी पर वह वानर राजकेसरी की पत्नी बनी। दोनों में बड़ा प्रेम था। अपने संकल्प के अनुसार शिवजी ने पवनदेव को याद किया तथा उनसे अपना दिव्य पुंज अंजना के गर्भ में स्थापित करने को कहा। एक दिन जब केसरी और अंजना मनुष्य रूप में उद्यान में विचरण कर रहे थे उस समय एक तेज हवा के झोंके ने उसका आंचल सिर से हटा दिया और उसे लगा कि कोई उसका स्पर्श कर रहा है। उसी समय पवनदेव ने शिवजी के दिव्य पुंज को कान द्वारा अंजना के गर्भ में स्थापित करते हुए कहा, ‘देवी! मैंने तुम्हारा पतिव्रत भंग नहीं किया है। तुम्हें एक ऐसा पुत्र रत्न प्राप्त होगा जो बल और बुद्धि में विलक्षण होगा, तथा कोई उसकी समानता नहीं कर सकेगा। मैं उसकी रक्षा करूंगा और वह भी राम का परम प्रिय बनेगा।’</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">अपना कार्य संपूर्ण कर पवनदेव जब शिवजी के सामने उपस्थित हुए तब उन्होंने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा। पवनदेव ने स्वयं को अंजना के पुत्र का पिता कहलाने का सौभाग्य मांगा और शिवजी ने तथास्तु कह दिया।</p><p dir="ltr">इस प्रकार हनुमानजी </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">‘शंकर सुवन केसरी नंदन’ तथा </p><p dir="ltr">‘अंजनी पुत्र पवनसुत नामा’ कहलाए।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार को रामनवमी के तुरंत बाद अंजना के गर्भ से भगवान शिव वानर रूप में अवतरित हुए।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">शिवजी का अंश होने के कारण वानर बालक अति तेजस्वी था और उसे पवनदेव ने उड़ने की शक्ति प्रदान की थी। अतः वह शीघ्र ही अपने माता-पिता को अपनी अद्भुत लीलाओं से आश्चर्यचकित करने लगा। एक दिन माता अंजना बालक को अकेला छोड़कर फल-फूल लाने गई। पिता केसरी भी घर पर नहीं थे। भूख लगने पर बालक ने ईधर-ऊधर खाने की वस्तु ढूंढ़ी। अंत में उसकी दृष्टि प्रातः काल के लाल सूर्य पर पड़ी और वह उसे एक स्वादिष्ट फल समझकर खाने के लिये आकाश में उड़ने लगा। देवता, दानव, यक्ष सभी उसे देखकर विस्मित हुए। पवनदेव भी अपने पुत्र के पीछे-पीछे चलने लगे और हिमालय की शीतल वायु छोड़ते रहे। सूर्य ने देखा कि स्वयं भगवान शिव वानर बालक के रूप में आ रहे हैं तो उन्होंने भी अपनी किरणं शीतल कर दीं। बालक सूर्य के रथ पर पहुंच गया और उनके साथ खेलने लगा। उस दिन ग्रहण लगना था। राहु भी सूर्य को ग्रसने के लिये आया। वानर बालक को रथ पर देखकर उसे आश्चर्य हुआ परंतु उसकी परवाह नहीं की। सूर्य को ग्रसित करने का प्रयास करने पर बालक ने राहु को पकड़ लिया। तब उसने किसी प्रकार अपने को छुड़ा कर सीधे इंद्र से शिकायत की क्या आपने सूर्य को ग्रसने का अधिकार किसी और को दे दिया है?’ इंद्र ने राहु को फटकार कर पुनः सूर्य के पास भेज दिया। दोबारा राहु को देखकर वानर बालक को अपनी भूख याद आ गई और वह राहु पर टूट पड़ा । इंद्र को आता देख बालक राहु को छोड़कर, इंद्र को पकड़ने दौड़ा। इंद्र ने घबरा कर अपने वज्र से प्रहार किया जिससे बालक की बायीं हनु (ठुड्ढी) टूट गई और वह घायल होकर पहाड़ पर गिर पड़ा।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">पवनदेव बालक को उठाकर गुफा में ले गए। उन्हें इंद्र पर बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी गति बंद कर दी। सबकी सांस घुटने लगी। देवता भी घबराए और इंद्र ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने वृत्तांत सुनकर गुफा को प्रस्थान किया और बालक पर अपना हाथ फेर कर उसे स्वस्थ कर दिया। पवनदेव प्रसन्न हुए और उन्होंने पुनः जगत में वायु संचार कर दिया। ब्रह्माजी ने देवताओं को बताया कि यह बालक साधारण नहीं है। वह देवताओं का कार्य करने के लिये ही प्रकट हुआ है। इसलिये वे सब उसे वरदान दें। इंद्र ने कहा - ‘मेरे वज्र के द्वारा उसकी हनु टूट गई है। इसलिये इसको हनुमान कहा जाएगा और कभी भी मेरा वज्र उस पर असर नहीं करेगा।’ सूर्य ने कहा कि ‘मैं अपना शतांश तेज इसे देता हूं। मेरी शक्ति से यह अपना रूप बदल सकेगा। और मैं इसे संपूर्ण शास्त्रों का अध्ययन करा दूंगा।’ </p><p dir="ltr">वरुण ने उसे अपने पाश से और जल से निर्भय होने का वर दिया। कुबेर ने भी हनुमान को वर दिया तथा विश्वकर्मा ने उन्हें अपने दिव्यास्त्रों से अवध्य होने का वर दिया। ब्रह्माजी ने ब्रह्मज्ञान दिया और चिरायु करने के साथ ही ब्रह्मास्त्र और ब्रह्मपाश से भी मुक्त कर दिया। चलते समय ब्रह्माजी ने वायुदेव से कहा -‘तुम्हारा पुत्र बड़ा ही वीर, ईच्छानुसार रूप धारण करने वाला और मन के समान तीव्रगामी होगा। उसकी कीर्ति अमर होगी और राम-रावण युद्ध में यह राम का परम सहायक होगा। इस प्रकार सारे देवताओं ने हनुमान को अतुलित बलशाली बना दिया।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">बचपन में हनुमान बड़े ही नटखट थे। एक तो वानर, दूसरे बच्चे और तीसरे देवताओं से प्राप्त बल। रुद्र के अन्श तो वे थे ही। प्रायः वे ऋषियों के आसन उठाकर पेड़ पर टांग देते, उनके कमंडल का जल गिरा देते, उनके वस्त्र फाड़ डालते, कभी उनकी गोद में बैठकर खेलते और एकाएक उनकी दाढ़ी नोचकर भाग खड़े होते। उन्हें कोई रोक नहीं सकता था। अंजना और केसरी ने कई उपाय किए परंतु हनुमान राह पर नहीं आए। अंत में ऋषियों ने विचार करके यह निश्चय किया कि हनुमान को अपने बल का घमंड है अतः उन्हें अपने बल भूलने का शाप दिया जाए और जब तक कोई उन्हें उनके बल का स्मरण नहीं कराएगा वह भूले रहेंगे। </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">केसरी ने हनुमान को सूर्य के पास विद्याध्ययन के लिये भेजा और वह शीघ्र ही सर्वविद्या पारंगत होकर लौटे। सीताहरण के बाद हनुमान ने श्री राम और सुग्रीव की मित्रता कराई।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">सीता का पता लगाने के समय जाम्बवन्त के याद दिलाने पर उन्हें अपनी अपार शक्ति की पुनः याद आ गई । मानस में तुलसीदास जी ने जाम्बवंत जी द्वारा हनुमान जी को उनकी अतुलित शक्ति यद् दिलाने का वर्णन किष्किन्धा कांड में कुछ इस प्रकार किया है :</p><p dir="ltr">चौपाई :</p><p dir="ltr">* अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा॥</p><p dir="ltr">जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सबही कर नायक॥1॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">भावार्थ:-अंगद ने कहा- मैं पार तो चला जाऊँगा, परंतु लौटते समय के लिए हृदय में कुछ संदेह है। जाम्बवान् ने कहा- तुम सब प्रकार से योग्य हो, परंतु तुम सबके नेता हो, तुम्हे कैसे भेजा जाए?॥1॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">* कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥</p><p dir="ltr">पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥2॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">भावार्थ:-ऋक्षराज जाम्बवान् ने श्री हनुमानजी से कहा- हे हनुमान्! हे बलवान्! सुनो, तुमने यह क्या चुप साध रखी है? तुम पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो। तुम बुद्धि-विवेक और विज्ञान की खान हो॥2॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">* कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥</p><p dir="ltr">राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥3॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">भावार्थ:-जगत् में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री रामजी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान्जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥3॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">* कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥</p><p dir="ltr">सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा॥4॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">भावार्थ:-उनका सोने का सा रंग है, शरीर पर तेज सुशोभित है, मानो दूसरा पर्वतों का राजा सुमेरु हो। हनुमान्जी ने बार-बार सिंहनाद करके कहा- मैं इस खारे समुद्र को खेल में ही लाँघ सकता हूँ॥4॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">* सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥</p><p dir="ltr">जामवंत मैं पूँछउँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही॥5॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">भावार्थ:- और सहायकों सहित रावण को मारकर त्रिकूट पर्वत को उखाड़कर यहाँ ला सकता हूँ। हे जाम्बवान्! मैं तुमसे पूछता हूँ, तुम मुझे उचित सीख देना (कि मुझे क्या करना चाहिए)॥5॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">* एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई॥</p><p dir="ltr">तब निज भुज बल राजिवनैना। कौतुक लागि संग कपि सेना॥6॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">भावार्थ:-(जाम्बवान् ने कहा-) हे तात! तुम जाकर इतना ही करो कि सीताजी को देखकर लौट आओ और उनकी खबर कह दो। फिर कमलनयन श्री रामजी अपने बाहुबल से (ही राक्षसों का संहार कर सीताजी को ले आएँगे, केवल) खेल के लिए ही वे वानरों की सेना साथ लेंगे॥6॥</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">और उन्होंने समुद्र को लांघ कर अशोक वाटिका में सीता जी का पता लगाया तथा लंका दहन किया। उनका बल पौरुष देखकर सीताजी को बड़ा संतोष हुआ और उन्होंने हनुमानजी को अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के स्वामी होने का वरदान दिया।</p><p dir="ltr">इस प्रकार हनुमान जी सर्वशक्तिमान देवता बने और श्री राम की सेवा में रत रहे।</p><p dir="ltr">हनुमान जी अपने भक्तों के संकट क्षण में हर लेते हैं। (संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।) वह शिवजी के समान अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हीं की भांति अपने उपासकों को भूत-पिशाच के भय से मुक्त रखते हैं। चाहे कैसे भी दुर्गम कार्य हैं उनकी कृपा से सुगम हो जाते हैं।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">उनकी उपासना से सारे रोगों और सभी प्रकार के कष्टों का निवारण हो जाता है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">भक्त अपनी श्रद्धा अनुसार हनुमान जी के विविध रूपों में उनकी आराधना करते हैं</p><p dir="ltr">बालाजी रूप मे</p><p dir="ltr">संकट मोचन रूप में</p><p dir="ltr">महावीर रूप में </p><p dir="ltr">रामभक्त रूप में</p><p dir="ltr">वृद्ध हनुमान रूप में</p><p dir="ltr">शनि त्रासक काले रूप में</p><p dir="ltr">कृष्ण प्यारे श्यामल रूप में</p><p dir="ltr">कहीं ह्रदय में सियाराम के दर्शन कराते </p><p dir="ltr">कहीं पञ्च मुखी तो कहीं</p><p dir="ltr">एकादश मुखी</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">इसके अतिरिक्त भी देश में हनुमान जी के सैकड़ों स्वरुप पूजनीय हैं जिनका वर्णन असंभव है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">हनुमान जयंती और चन्द्र ग्रहण की युति के मुहूर्त में करें ये उपाय :-</p><p dir="ltr">====================</p><p dir="ltr">धर्म ग्रंथों के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 6 अप्रैल, गुरुवार को है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr"> हनुमानजी की कृपा प्राप्ति के कुछ उपाय -</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr"> हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचारी व महायोगी भी हैं। इसलिए सबसे जरूरी है कि उनकी किसी भी तरह की उपासना में वस्त्र से लेकर विचारों तक पावनता, ब्रह्मचर्य व इंद्रिय संयम को अपनाएं।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">1. हनुमान जयंती पर हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढाएं। हनुमानजी को चोला चढ़ाने से पहले स्वयं स्नान कर शुद्ध हो जाएं और साफ वस्त्र धारण करें। सिर्फ लाल रंग की धोती पहने तो और भी अच्छा रहेगा। पूर्णिमा तिथि या शनिवार को हनुमानजी को तिल या चमेली का तेल मिले सिंदूर से चोला चढ़ाने से सारी भय, बाधा और मुसीबतों का अंत हो जाता है। चोला चढ़ाते वक्त इस मंत्र का स्मरण करें -</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यसुखवर्द्धनम्। शुभदं चैव</p><p dir="ltr">माङ्गल्यं सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">चोला चढ़ाने के लिए चमेली के तेल का उपयोग करें। साथ ही, चोला चढ़ाते समय एक दीपक हनुमानजी के सामने जला कर रख दें। दीपक में भी चमेली के तेल का ही उपयोग करें ।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">चोला चढ़ाने के बाद हनुमानजी को गुलाब के फूल की माला पहनाएं और केवड़े का इत्र हनुमानजी की मूर्ति के दोनों कंधों पर थोड़ा-थोड़ा छिटक दें। अब एक साबूत पान का पत्ता लें और इसके ऊपर थोड़ा गुड़ व चना रख कर हनुमानजी को इसका भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद उसी स्थान पर थोड़ी देर बैठकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र का जाप करें। कम से कम 5 माला जाप अवश्य करें।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">मंत्र- राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।</p><p dir="ltr">सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने।।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">अब हनुमानजी को चढाए गए गुलाब के फूल की माला से एक फूल तोड़ कर उसे एक लाल कपड़े में लपेटकर अपने धन स्थान यानी तिजोरी में रखें। आपको कभी धन की कमी नहीं होगी।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">2. हनुमान जयंती को शाम के समय समीप स्थित किसी ऐसे मंदिर जाएं, जहां भगवान श्रीराम व हनुमानजी दोनों की ही प्रतिमा हो। वहां जाकर श्रीराम व हनुमानजी की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी के दीपक जलाएं। इसके बाद वहीं भगवान श्रीराम की प्रतिमा के सामने बैठकर हनुमान चालीसा तथा हनुमान प्रतिमा के सामने बैठकर राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। इस उपाय से भगवान श्रीराम व हनुमानजी दोनों की ही कृपा आपको प्राप्त होगी।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">3 हनुमानजी को प्रसन्न करने का यह बहुत प्राचीन टोटका है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">हनुमान जयंती पर सुबह स्नान आदि करने के बाद बड़ के पेड़ से 11 या 21 पत्ते तोड़ लें। ध्यान रखें कि ये पत्ते पूरी तरह से साफ व साबूत हों। अब इन्हें स्वच्छ पानी से धो लें और इनके ऊपर चंदन से भगवान श्रीराम का नाम लिखें। अब इन पत्तों की एक माला बनाएं। माला बनाने के लिए पूजा में उपयोग किए जाने वाले रंगीन धागे का इस्तेमाल करें। अब समीप स्थित किसी हनुमान मंदिर जाएं और हनुमान प्रतिमा को यह माला पहना दें। </p><p dir="ltr"> ऐसे ही श्री राम लिखे एक पत्ते को अपने पर्स में रख लें। साल भर आपका पर्स पैसों से भरा रहेगा। इसके बाद जब दोबारा हनुमान जयंती का पर्व आए तो इस पत्ते को किसी नदी में प्रवाहित कर दें और इसी प्रकार से एक और पत्ता अभिमंत्रित कर अपने पर्स में रख लें।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">४ . अगर आप शनि या राहु के दोष से पीड़ित हैं तो हनुमान जयंती पर काली उड़द व कोयले की एक पोटली बनाएं। इसमें एक रुपए का सिक्का रखें। इसके बाद इस पोटली को अपने ऊपर से उसार कर किसी नदी में प्रवाहित कर दें और फिर किसी हनुमान मंदिर में जाकर राम नाम का जाप करें इससे शनि दोष का प्रभाव कम हो जाएगा।</p><p dir="ltr">हनुमानजी शिव के अवतार हैं और शनिदेव परम शिव भक्त और सेवक हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा पर शनि दशा या अन्य ग्रहदोष से आ रही कई परेशानियों और बाधाओं से फौरन निजात पाने के लिए श्रीहनुमान चालीसा, बजरंगबाण, हनुमान अष्टक का पाठ करें। श्रीहनुमान की गुण, शक्तियों की महिमा से भरे मंगलकारी सुन्दरकाण्ड का परिजनों या इष्टमित्रों के साथ शिवालय में पाठ करें। यह भी संभव न हो तो शिव मंदिर में हनुमान मंत्र ‘हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्’ का रुद्राक्ष माला से जप करें या फिर सिंदूर चढ़े दक्षिणामुखी या पंचमुखी हनुमान के दर्शन कर चरणों में नारियल चढ़ाकर उनके चरणों का सिंदूर मस्तक पर लगाएं। इससे ग्रहपीड़ा या शनिपीड़ा का अंत होता है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">निम्न स्तुति का फल भी अपरम्पार है। चाहे रोग हो अथवा राहू केतु शनि मंगल आदि ग्रह जनित दोष कष्ट इसके पाठ से सब शांत हो जाते हैं। </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">यदि निम्न स्तुति की हर पंक्ति के अंत में नमामि लगा कर पाठ करें तो यह हनुमानाष्टक के समान फल प्रदान करती है।</p><p dir="ltr">अतुलित बलधामं स्वर्ण शैलाभ देहं ।</p><p dir="ltr">दनुज वन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।।</p><p dir="ltr">सकल गुण निधानं वानराणामधीशं। </p><p dir="ltr">रघुपति प्रिय भक्तं वातजात नमामि।।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">5 . शास्त्रों में हनुमानजी की भक्ति तंत्र मार्ग व सात्विक मार्ग दोनों ही तरह से बताई गई है। इसके लिए मंत्र जप भी प्रभावी माने गए हैं। सात्विक तरीकों से कामनापूर्ति के लिए मंत्र जप रुद्राक्ष माला से और तंत्र मार्ग से लक्ष्य</p><p dir="ltr">पूरा करने के लिए मूंगे की माला से मंत्र जप बड़े ही असरदार होते हैं. </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">6. मनचाही मुराद पूरी करने के लिए सिंदूर लगे एक नारियल पर मौली या कलेवा लपेटकर हनुमानजी के चरणों में अर्पित करें।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">7. हनुमानजी को नैवेद्य चढ़ाने के लिए भी शास्त्रों में अलग- अलग वक्त पर विशेष नियम उजागर हैं। इनके मुताबिक सवेरे हनुमानजी को नारियल का गोला या गुड़ या गुड़ से बने लड्डू का भोग लगाना चाहिए। इसी तरह दोपहर में हनुमान की पूजा में घी और गुड़ या फिर गेहूं की मोटी रोटी बनाकर उसमें ये दोनों चीजें मिलाकर बनाया चूरमा अर्पित करना चाहिए। वहीं, शाम या रात के वक्त हनुमानजी को विशेष तौर पर फल का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। हनुमानजी को जामफल, केले, अनार या आम के फल बहुत प्रिय बताए गए हैं। इस तरह हनुमानजी को मीठे फल व नैवेद्य अर्पित करने वाले की दु:ख व असफलताओं की कड़वाहट दूर होती है और वह सुख व सफलता का स्वाद चखता है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">8 . शाम के वक्त हनुमानजी को लाल फूलों के साथ जनेऊ, सुपारी अर्पित करें और उनके सामने चमेली के तेल का पांच बत्तियों का दीपक नीचे लिखे मंत्र के साथ लगाएं</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr"> - साज्यं च वर्तिसं युक्त वह्निनां योजितं मया।</p><p dir="ltr"> दीपं गृहाण देवेश प्रसीद परमेश्वर। </p><p dir="ltr">यह उपाय किसी भी विघ्र-बाधा को फौरन दूर करने वाला माना जाता है</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">9 . पूर्णिमा पर पूर्ण कलाओं के साथ उदय होने वाले चंद्रमा की रोशनी नई उमंग, उत्साह, ऊर्जा व आशाओं के साथ असफलताओं व निराशा के अंधेरों से निकल नए लक्ष्यों और सफलता की ओर बढऩे की प्रेरणा देती है।</p><p dir="ltr">लक्ष्यों को भेदने के लिये इस दिन अगर शास्त्रों में बताए श्रीहनुमान चरित्र के अलग-अलग 12 स्वरूपों का ध्यान एक खास मंत्र स्तुति से किया जाए तो आने वाला वक्त बहुत ही शुभ व मंगलकारी साबित हो सकता है। इसे हर रोज भी सुबह या रात को सोने से पहले स्मरण करना न चूकें –</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">हनुमानञ्जनी सूनुर्वायुपुत्रो महाबल:। </p><p dir="ltr">रामेष्ट: फाल्गुनसख:पिङ्गाक्षोमितविक्रम:।। </p><p dir="ltr">उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:। </p><p dir="ltr">लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।</p><p dir="ltr"> एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।</p><p dir="ltr">स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।। </p><p dir="ltr">तस्य सर्वभयंनास्ति रणे च विजयी भवेत्।। </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">इस खास मंत्र स्तुति में श्री हनुमान के 12 नाम उनके गुण व शक्तियों को भी उजागर करते</p><p dir="ltr">हैं ।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">(2) जीवन के हर क्षेत्र में हनुमान जी की कृपा प्राप्ति के लिए निम्न श्लोकों का पाठ करना चाहिए।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">जयत्यतिबलो रामो लक्ष्मणश्च महाबलः। </p><p dir="ltr">राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालितः।। </p><p dir="ltr">दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्ट कर्मणः। </p><p dir="ltr">हनूमान शत्रुसैन्यानां निहन्ता मारुतात्मजः।। </p><p dir="ltr">न रावणसहस्रं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत्। </p><p dir="ltr">शिलाभिश्च प्रहरतः पादपैश्च सहस्रशः।। </p><p dir="ltr">अर्दयित्वा पुरीं लंकामभिवाद्य च मैथिलीम्। </p><p dir="ltr">समृद्धार्थो गमिष्यामि मिषतां सर्वरक्षसाम्।। (वा.रा. 5/42/33-36)</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">(3) हनुमान बाहुक के पाठ से सभी रोग एवं पीड़ाएं दूर हो जाती हैं। एक बार जब तुलसी दास जी स्वयं गंभीर रोग से पीड़ित हुए और कोई दवा वैद्य पूजा उनके कम न आई तो उन्होंने उसी असहय पीड़ा में हनुमान बाहुक नामक स्तोत्र की रचना की और स्तवन किया। हनुमान जी की कृपा से वे शीघ्र ही स्वस्थ हो गए।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">हनुमान जी की भक्ति स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध सभी समान रूप से कर सकते हैं। भक्त की भक्तवत्सलता, श्रद्धा भाव, संबंध, समर्पण ही श्री हनुमान जी की कृपा का मूल का मंत्र है। </p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">ॐ हं हनुमते रुद्रत्मकाये हुम् फट।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">(7) आय / व्यापर वृद्धि के लिए</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">एक नींबू, पांच साबुत सुपारियां, एक हल्दी की गांठ, काजल की डिबिया, 16 साबुत काली मिर्च, पांच लौंग तथा रुमाल के आकार का लाल कपड़ा घर या मंदिर में एकांत में बैठ जाएं। उक्त मंत्र का 108 बार जप करके उक्त सामग्री को लाल कपड़े में बांध लें। इस पोटली को घर या दुकान के मुख्य द्वार पर लगा दें, आय में वृद्धि होगी तथा व्यापार बंधन किये कराये आदि संकटों से मुक्ति मिलेगी। इस प्रयोग से कर्मचारियों की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है और नौकरी व्यापार में स्थायित्व भी आ जाता है।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">इसके अतिरिक्त हनुमान जी की प्रसन्नता और कृपा प्राप्ति के लिए हनुमान यन्त्र का भी पूजन किया जाता है।</p><p dir="ltr">जो लोग कमजोर मनोबल के हो, दिन रात सदैव डर लगता हो, डरावने सपने आते हों, या बार बार काम बदलते हों, कुंडली में उच्च या नीच का मंगल कष्टकारी हो उन्हें ये यन्त्र किसी योग्य ब्राह्मण से विधि पूर्वक सिद्ध करवा कर गले में ताबीज में डालकर पहनना चाहिए।</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">जिनके घर में सदा क्लेश हो, क़र्ज़ बढ़ गए हों, तरक्की न होती हो या संतान गलत दिशा में भटक गयी हो अथवा रोज कोई न कोई अपशकुन होता हो उन्हें ताम्बे में बना ये यन्त्र विधि पूर्वक प्रतिष्ठित करवा कर अपने घर मे स्थापित करना चाहिए व् इसका नित्य पूजन करना चाहिए।ं</p><p dir="ltr"><br></p><p dir="ltr">।।जय श्री राम।।</p><p dir="ltr">अभिषेक पाण्डेय</p><p dir="ltr">हल्द्वानी, नैनीताल</p><p dir="ltr">7579400465</p><p dir="ltr">8909521616</p>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-63473162804676049642022-11-24T06:34:00.001-08:002022-11-25T09:04:58.829-08:00Available Tantra Banda's उपलब्ध तांत्रिक बांदे<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqco-Mh7LTQi6qPizGCTIiqAnmJ0mDx5Pf7zGpG0lsiSvdYtRu5IFDGcF63oRf_MtC_dEYjGO4OpGWuco5PPacbvs-7LAD37w59ABPdacFIBTEc4sGCmBEX9m8XYemZiS1NElMlpF8nssV/s1600/1669395890995955-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqco-Mh7LTQi6qPizGCTIiqAnmJ0mDx5Pf7zGpG0lsiSvdYtRu5IFDGcF63oRf_MtC_dEYjGO4OpGWuco5PPacbvs-7LAD37w59ABPdacFIBTEc4sGCmBEX9m8XYemZiS1NElMlpF8nssV/s1600/1669395890995955-0.png" width="400">
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</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br></div>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-31348374872722235402022-08-01T08:40:00.001-07:002022-08-01T08:40:10.519-07:00नाग पंचमी 2022 विशेष<div><br></div><div><div>नाग पंचमी 2022 विशेष: नाग मन्त्र, स्तोत्र एवं उपाय</div><div><br></div><div>मित्रों, </div><div> कल 2 अगस्त 2022 को नाग पंचमी का पर्व है जो देश भर में मनाया जाता है। </div><div><br></div><div>पंचांग से:-</div><div> </div><div>पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त – सुबह 05 बजकर 43 मिनट से 08 बजकर 25 मिनट तक</div><div><br></div><div>नाग पंचमी पूजा विधि</div><div> इस दिन गृह-द्वार के दोनों तरफ गाय के गोबर से सर्पाकृति बनाकर अथवा सर्प का चित्र लगाकर उन्हें घी, दूध, जल अर्पित करना चाहिए। इसके पश्चात दही, दूर्वा, धूप, दीप एवं नीलकंठी, बेलपत्र और मदार-धतूरा के पुष्प से विधिवत पूजन करें। फिर नागदेव को धान का लावा, गेहूँ और दूध का भोग लगाना चाहिए।</div><div><br></div><div>नाग पंचमी पर इन सूक्त, स्तोत्र के पाठ और मन्त्र जप करते हुए भगवान शिव का पूजन, अभिषेक करने से, नाग देवता की पूजा करने से सर्प भय का नाश होता है और सर्प दंश से रक्षा होती है।</div><div><br></div><div>।।श्री सर्प सूक्तम।।</div><div><br></div><div>ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।</div><div><br></div><div>इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।</div><div>नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।</div><div><br></div><div>कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।</div><div>नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।</div><div><br></div><div>इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।</div><div>नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।</div><div><br></div><div>सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।</div><div>नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।</div><div><br></div><div>मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।</div><div>नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।</div><div><br></div><div>पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।</div><div>नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।</div><div><br></div><div>सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।</div><div>नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।</div><div><br></div><div>ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।</div><div>नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।</div><div><br></div><div>समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।</div><div>नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।</div><div><br></div><div>रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।</div><div>नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।</div><div><br></div><div>(१)नाग गायत्री मंत्र :-</div><div><br></div><div>ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि</div><div>तन्नो सर्प: प्रचोदयात ll</div><div><br></div><div>(२) सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र—</div><div><br></div><div>महाभारत में जब राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षक से बदला लेने के लिए सर्पनाश का यज्ञ किया तो सब सांप मरने लगे , उस समय उन्हें आस्तिक नामक मुनि ने बचाया जो भगवान शिव की मानस पुत्री मनसा देवी के पुत्र थे।</div><div><br></div><div>मनसा देवी के इस स्तोत्र का पाठ करने से सर्प दंश से रक्षा होती है और मनसा देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।</div><div><br></div><div>ध्यानः-</div><div>चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् ।</div><div>नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।।</div><div><br></div><div>।। मूल-स्तोत्र ।।</div><div><br></div><div>।। श्रीनारायण उवाच ।।</div><div>नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः ।</div><div> नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।।</div><div>बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः । </div><div>नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।।</div><div>तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः । </div><div>साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।।</div><div><br></div><div>।। फल-श्रुति ।।</div><div>इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् ।</div><div> यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।।</div><div>न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति ।</div><div> वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।।</div><div><br></div><div>(३) यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है । जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता ।</div><div><br></div><div>जो पुरुष पूजा के समय इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे तथा उसके वंशज को भी सर्प का भय नहीं हो सकता। इन बारह नामों से विश्व इनकी पूजा करता है। उसके सामने उग्र से उग्र सर्प भी शांत हो जाता है।</div><div><br></div><div>जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।</div><div> वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।। जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीति च ।</div><div> महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।। </div><div>द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत् ।</div><div> तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।।</div><div><br></div><div> </div><div> (४)कालसर्प योग एवम राहु केतु शांति हेतु:-</div><div><br></div><div>चांदी और तांबे के 1-1 जोड़ी सर्प लेकर नाग देवता मन्दिर में अर्पण करें। दूध से अभिषेक एवं चन्दन का तिलक कर भोग अर्पण करें।</div><div><br></div><div>नाग मन्दिर न हो तो शिव लिंग पर इन्हें चढ़ाकर ॐ नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र से यथासम्भव अधिकाधिक जप करते हुए अभिषेक करें।</div><div><br></div><div>(५) नाग देवता कृपा प्राप्ति मंत्र :- </div><div><br></div><div>इस मंत्र का जप करते हुए सांप की बाम्बी या किसी बड़े वृक्ष जिसके नीचे बिल या कोटर हो मिट्टी के पात्र में दूध चढ़ाएं।</div><div><br></div><div>'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।</div><div>ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।। </div><div>ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। </div><div>ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।' </div><div><br></div><div>अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम...। </div><div><br></div><div>(६) धन धान्य प्राप्ति:-</div><div><br></div><div> मान्यता है कि पृथ्वी के नीचे पाताल पुरी के सप्तलोकों में एक नाग लोक भी है जिसके राजा नागदेवता हैं। पाताल लोक सोने चांदी, बहुमूल्य रत्नों और विभिन्न प्रकार के दुर्लभ मणियों से भरा है। नाग देवता की नियमित पूजा करने पर वो प्रसन्न होकर वे अपने अमूल्य खजाने से व्यक्ति को धन और ऐश्वर्य से परिपूर्ण कर देते हैं। </div><div><br></div><div>।।नवनाग स्तोत्र ll</div><div><br></div><div>अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं</div><div>शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा</div><div>एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं</div><div>सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः</div><div>तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत</div><div><br></div><div>ll इति श्री नवनाग स्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll</div><div><br></div><div>(७) भय नाश एवं रक्षा हेतु:-</div><div><br></div><div>श्री नाग स्तोत्र</div><div><br></div><div>अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।</div><div>सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका: ॥१॥</div><div><br></div><div>मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात् ।</div><div>विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डल ॥२॥</div><div><br></div><div>अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक: ।</div><div>कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥३॥</div><div><br></div><div>यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर: ।</div><div>भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥४॥</div><div><br></div><div>॥ इति श्रीनागस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥</div><div> </div><div><br></div><div>(८) कन्या के विवाह हेतु:-</div><div><br></div><div>जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो वे नाग देवता के मंदिर में ऐसी प्रतिमा जिसमें नाग नागिन का जोड़ा हो या दो नाग सम्मुख आलिंगन बद्ध यानी लिपटे हुए हों, उनका देवी एवं देवता का अलग अलग श्रृंगार चढ़कर कर विधि विधान से पूजन करवाएं।</div><div><br></div><div>(९) विशेष भोग:-</div><div><br></div><div>नाग देवता की प्रसन्नता के लिए इस दिन खीर बनाकर पूजन कर भोग लगाकर किसी पेड़ की नीचे खीर रख दें।</div><div>( विशेष बात: ये खीर सिर्फ नाग देवता के लिये होती है इसे भूलकर भी स्वयम न खायें न ही बच्चों या किसी अन्य व्यक्ति को दें, इसलिए थोड़ी ही बनाएं और भगवान को अर्पित कर दें)</div><div><br></div><div> अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।</div><div><br></div><div>।।जय श्री राम।।</div><div><br></div><div>7579400465</div><div><br></div><div>8909521616 (whats app)</div><div><br></div><div>For more easy & useful remedies visit :</div><div>सरल उपायों, विभिन्न स्तोत्र एवम मन्त्र जानने के लिए यहां क्लिक करें:-</div><div> http://jyotish-tantra.blogspot.in</div></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div><br></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgY7RGfwJdrlAQhREY3Vd8fW1EnKpLenI_vzULFdmftH-kATpIfszyCHcB42Hm3-zXp1wai0MTHduj2V9obZL5c33mBAhloptaPLaBVX1GC9c03v8kWI01h91JiCQsmbqz3Epko9jVHL7Fr/s1600/1659368403121755-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-84434787495725930682022-05-08T22:44:00.001-07:002022-05-08T22:44:26.672-07:00वनस्पति तन्त्र: अतिदुर्लभ कुश का डबल बाँदा<div><br></div><div><br></div><div>मित्रों,</div><div>जैसा आप सब जानते हैं कि कुश का बाँदा एक अति दुर्लभ वनस्पति है जो</div><div>धन प्राप्ति</div><div>लक्ष्मी आकर्षण</div><div>व्यापार वृद्धि</div><div>सुख शांति</div><div>समृद्धि</div><div><br></div><div>के लिए बहुत ही असरदार है</div><div>इसमें एक अन्य वनस्पति कुश का डबल बाँदा </div><div>जो अत्यंत दुर्लभ या दुर्लभतम है</div><div>जिसमें कुश के 2 बांदे होते हैं और दोगुना असरदार और तीव्र फलदायी माना जाता है।</div><div><br></div><div>प्राप्त करने के लिए सम्पर्क करें</div><div>7579400465 ( call & whatsapp)</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhH0OtndNNKp3ad0oyPVZ-8-PYD0qsUPTSmVkDiGYc5NXmrOJpmuAjpG46QoufHxtoSdbOK2l-vQTgSYBoa9xAVZs2rtvrUri6UL3utuOPpvcIkk-V3KHXBsW7OLEJW1IoWNxFpFw0Ntswp/s1600/1652075058536378-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-69684113605700431462022-05-08T22:36:00.001-07:002022-05-08T22:36:57.574-07:00बगुलामुखी जयंती 2022 विशेष<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7dyFB7bCJbHgaWZTFxcxN1tiWwjvzcqI25bk_mce2MEA8ZuW_HgtyKCK6pk3sXr-V4Z5GTpm_tIw-LBDGlb6jx5iXdToHrEnH8kSu0GYOfWMwpxc94EFU6eKmv_SOd_rHs07u78gWDuS3/s1600/1652074609568049-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><div>बगलामुखी जयंती विशेष </div><div>(2015 की पोस्ट)</div><div>बगल स्तोत्र , कवच एवम् अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र</div><div><br></div><div>मित्रों</div><div> आज माँ बगुलामुखी जयंती है और आप सबको अनेक शुभकामनायें। माँ आपको स्वस्थ सुरक्षित रखें और सभी संकटों से रक्षा करें तथा अभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।</div><div><br></div><div>माँ बगलामुखी १० महाविद्याओं में आठवां स्वरुप हैं। ये महाविद्यायें भोग और मोक्ष दोनों को देने वाली हैं। सांख़यायन तन्त्र के अनुसार बगलामुखी को सिद्घ विद्या कहा गया है।</div><div><br></div><div>तन्त्र शास्त्र में इसे ब्रह्मास्त्र, स्तंभिनी विद्या, मंत्र संजीवनी विद्या तथा प्राणी प्रज्ञापहारका एवं षट्कर्माधार विद्या के नाम से भी अभिहित किया गया है।</div><div><br></div><div> कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीता बरा की साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि व्याधि से त्रस्त वर्तमान समय में मानव मात्र माँ पीतांबरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी समस्त अभिलाषाओं को प्राप्त कर सकता है।</div><div><br></div><div>बगलामुखी की साधना से साधक भयरहित हो जाता है और शत्रु से उसकी रक्षा होती है। बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक, शत्रुविनाशक एवं स्तंभनात्मक है। यजुर्वेद के पंचम अध्याय में ‘रक्षोघ्न सूक्त’ में इसका वर्णन है।</div><div>इसका आविर्भाव प्रथम युग में बताया गया है। देवी बगलामुखी जी की प्राकट्य कथा इस प्रकार है जिसके अनुसार :-</div><div><br></div><div>एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया. यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए.</div><div><br></div><div>इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती श्रीविद्या के के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ और तेज से भगवती पीतांबरा का प्राकट्य हुआ</div><div><br></div><div>उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका.जब समस्त संसार के नाश के लिए प्रकृति में आंधी तूफान आया उस समय विष्णु भगवान संसार की रक्षा के लिये तपस्या करने लगे।</div><div>उनकी तपस्या से सौराष्ट्र में पीत सरोवर में । इनका आविर्भाव वीर रात्रि को माना गया है। शक्ति संग तंत्र के काली खंड के त्रयोदश पटल में वीर रात्रि का वर्णन इस प्रकार है</div><div><br></div><div>चतुर्दशी संक्रमश्च कुलर्क्ष कुलवासरः अर्ध रात्रौ यथा योगो वीर रात्रिः प्रकीर्तिता।</div><div><br></div><div>भगवती पीतांबरा के मंत्र का छंद वृहती है। ऋषि ब्रह्मा हैं, जो सर्व प्रकार की वृद्घि करने वाले हैं। भगवती सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं। इसके भक्त धन धान्य से पूर्ण रहते हैं।</div><div><br></div><div>भगवती पीतांबरा की पूजा पीतोपचार से होती है। पीतपुष्ष, पीत वस्त्र, हरिद्रा की माला, पीत नैवेद्य आदि पीतरंग इनको प्रिय हैं। इनकी पूजा में प्रयुक्त की जाने वाली हर वस्तु पीले रंग की ही होती है।</div><div><br></div><div>भगवती के अनेक साधकों का वर्णन तंत्र ग्रंथों में उपलब्ध है। सर्व प्रथम ब्रह्मास्त्र रूपिणी बगला महाविद्या का उपदेश ब्रह्माजी ने सनकादि ऋषियों को दिया। वहाँ से नारद, परशुराम आदि को इस महाविद्या का उपदेश हुआ। भगवान परशुराम शाक्तमार्ग के आचार्य हैं।</div><div><br></div><div>भगवान परशुराम को स्तंभन शक्ति प्राप्त थी। स्तंभन शक्ति के बल से शत्रु को पराजित करते थे।</div><div><br></div><div> देवी बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहते हैं क्यूंकि ये स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.</div><div><br></div><div>माँ बगलामुखी का बीज मंत्र :- ह्लीं</div><div><br></div><div>मूल मंत्र :- !!ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं</div><div> स्तम्भय जिह्वां किलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा!!</div><div><br></div><div>ग्रंथों के अनुसार ये मन्त्र सवा लाख जप कर के सिद्ध हो जाता है किन्तु वास्तविकता कहिये या कलयुग के प्रभाव से ये इससे १० या और बी कई गुना अधिक जप के बाद ही सिद्ध होता है।</div><div><br></div><div> ये एक अति उग्र मंत्र है और गलत उच्चारण जप करने पर उल्टा नुकसान भी दे सकता है।</div><div><br></div><div>** ध्यान रहे **</div><div><br></div><div>बिना सही विधि के जप करने पर मन्त्र में शत्रु के नाश के लिए कही गयी बातें स्वयं पर ही असर कर सकती है अतः गुरु से दीक्षा लेने और विधान जानने के बाद ही माँ का जप या साधना करनी चाहिए।</div><div><br></div><div>दूसरी बात माँ का मूल मंत्र जो की सबसे प्रचलित भी है इसका असर दिखने में काफी समय लगता है या यूँ कहिये की माँ साधक के धैर्य की परीक्षा लेती हैं और उसके बाद ही अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं।</div><div><br></div><div>माँ का मूल मन्त्र करने से पूर्व गायत्री मंत्र या बीज मन्त्र या माँ का ही कोई अन्य सौम्य मंत्र कर लिया जाये तो इसका प्रभाव शीघ्र मिलता है।</div><div><br></div><div>बगला गायत्री मंत्र :-</div><div><br></div><div> विभिन्न गुरु परम्पराओं से कई प्रकार के बगला गायत्री मंत्र प्राप्त होते हैं</div><div><br></div><div>1. ॐ ह्लीं ब्रह्मस्त्राय विद्महे स्तम्भनाबाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात।</div><div><br></div><div>2. ॐ ब्रह्मस्त्रविद्याय च विद्महे स्तंभनाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात।</div><div><br></div><div>3. ॐ बगलाननाय विद्महे पीताम्बराय धीमहि तन्नो स्तम्भिनी प्रचोदयात।</div><div><br></div><div>4. ॐ बग्लामुखै च विद्महे स्तम्भिनये धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात।</div><div><br></div><div>5. ॐ ह्ल्रीं बगलामुख्यै विद्महे पीताम्बरायै धीमहि तन्नो स्तम्भिनी प्रचोदयात ।</div><div><br></div><div>( आप वो बगला गायत्री करे जो आपके गुरु बताएं )</div><div><br></div><div>जप आरम्भ करने से पूर्व बगलामुखी कवच और अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पथ करने से साधक सब प्रकार की बाधाओं और जप/ साधना में विघ्न उत्पन्न करने वाली शक्तियों से सुरक्षित रहता है और सफल होता है।</div><div><br></div><div>** जिनकी दीक्षा नहीं हुई किंतु माँ बगुलामुखी में श्रद्धा है और उनकी कृपा चाहते हैं वे कवच और अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करें।</div><div><br></div><div>शास्त्रानुसार यदि सिर्फ कवच और अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का ही १००० बार निर्विघ्न रूप से साधनात्मक तरीके से पाठ कर लिया जाये तो ये जागृत हो जाते हैं और फिर साधक इनके माध्यम से भी कई कर संपन्न कर सकता है।</div><div><br></div><div>बगलामुखी स्तोत्र</div><div><br></div><div>नमो देवि बगले! चिदानंद रूपे, नमस्ते जगद्वश-करे-सौम्य रूपे।</div><div>नमस्ते रिपु ध्वंसकारी त्रिमूर्ति, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।।</div><div>सदा पीत वस्त्राढ्य पीत स्वरूपे, रिपु मारणार्थे गदायुक्त रूपे।</div><div>सदेषत् सहासे सदानंद मूर्ते, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।।</div><div>त्वमेवासि मातेश्वरी त्वं सखे त्वं, त्वमेवासि सर्वेश्वरी तारिणी त्वं।</div><div>त्वमेवासि शक्तिर्बलं साधकानाम, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।।</div><div> रणे, तस्करे घोर दावाग्नि पुष्टे, विपत सागरे दुष्ट रोगाग्नि प्लुष्टे।।</div><div>त्वमेका मतिर्यस्य भक्तेषु चित्ता, सषट कर्मणानां भवेत्याशु दक्षः।।</div><div><br></div><div> बगलामुखी कवचं</div><div><br></div><div>श्रुत्वा च बगलापूजां स्तोत्रं चाप महेश्वर ।</div><div>इदानी श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ॥ १ ॥</div><div>वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाSशुभविनाशनम् ।</div><div>शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दु:खनाशनम् ॥२॥</div><div>-----------</div><div>श्रीभैरव उवाच :</div><div>कवचं शृणु वक्ष्यामि भैरवीप्राणवल्लभम् ।</div><div>पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ॥३॥</div><div>---------------</div><div>ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषि: ।</div><div>अनुष्टप्छन्द: । बगलामुखी देवता । लं बीजम् ।</div><div>ऐं कीलकम् पुरुषार्थचष्टयसिद्धये जपे विनियोग: ।</div><div>ॐ शिरो मे बगला पातु हृदयैकाक्षरी परा ।</div><div>ॐ ह्ली ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी ॥१॥</div><div>गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी ।</div><div>वैरिजिह्वाधरा पातु कण्ठं मे वगलामुखी ॥२॥</div><div>उदरं नाभिदेशं च पातु नित्य परात्परा ।</div><div>परात्परतरा पातु मम गुह्यं सुरेश्वरी ॥३॥</div><div>हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे ।</div><div>विवादे विषमे घोरे संग्रामे रिपुसङ्कटे ॥४॥</div><div>पीताम्बरधरा पातु सर्वाङ्गी शिवनर्तकी ।</div><div>श्रीविद्या समय पातु मातङ्गी पूरिता शिवा ॥५॥</div><div>पातु पुत्रं सुतांश्चैव कलत्रं कालिका मम ।</div><div>पातु नित्य भ्रातरं में पितरं शूलिनी सदा ॥६॥</div><div>रंध्र हि बगलादेव्या: कवचं मन्मुखोदितम् ।</div><div>न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥ ७॥</div><div>पाठनाद्धारणादस्य पूजनाद्वाञ्छतं लभेत् ।</div><div>इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीम् ॥८॥</div><div>पिवन्ति शोणितं तस्य योगिन्य: प्राप्य सादरा: ।</div><div>वश्ये चाकर्षणो चैव मारणे मोहने तथा ॥९॥</div><div>महाभये विपत्तौ च पठेद्वा पाठयेत्तु य: ।</div><div>तस्य सर्वार्थसिद्धि: स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति ॥१०॥</div><div>-----------------</div><div>(इति श्रीरुद्रयामले बगलामुखी कवचं सम्पूर्ण )</div><div><br></div><div>माता बगलामुखी अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र</div><div>--------------------------</div><div>ब्रह्मास्त्ररुपिणी देवी माता श्रीबगलामुखी ।</div><div>चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च ब्रह्मानन्द-प्र</div><div>दायिनी ।। १ ।।</div><div>महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।</div><div>भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमंगला ।। २ ।।</div><div>ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।</div><div>वाराही छीन्नमस्ता च तारा काली सरस्वती ।।</div><div>३ ।।</div><div>जगत्पूज्या महामाया कामेशी भगमालिनी ।</div><div>दक्षपुत्री शिवांकस्था शिवरुपा शिवप्रिया ।। ४</div><div>।।</div><div>सर्व-सम्पत्करी देवी सर्वलोक वशंकरी ।</div><div>विदविद्या महापूज्या भक्ताद्वेषी भयंकरी ।। ५</div><div>।।</div><div>स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च दुष्टस्तम्भनकारिणी ।</div><div>भक्तप्रिया महाभोगा श्रीविद्या ललिताम्बिका ।।</div><div>६ ।।</div><div>मैनापुत्री शिवानन्दा मातंगी भुवनेश्वरी ।</div><div>नारसिंही नरेन्द्रा च नृपाराध्या नरोत्तमा ।। ७</div><div>।।</div><div>नागिनी नागपुत्री च नगराजसुता उमा ।</div><div>पीताम्बा पीतपुष्पा च पीतवस्त्रप्रिया शुभा ।।</div><div>८ ।।</div><div>पीतगन्धप्रिया रामा पीतरत्नार्चिता शिवा ।</div><div>अर्द्धचन्द्रधरी देवी गदामुद्गरधारिणी ।। ९ ।।</div><div>सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योराग विवर्धिनी ।</div><div>विष्णुरुपा जगन्मोहा ब्रह्मरुपा हरिप्रिया ।। १०</div><div>।।</div><div>रुद्ररुपा रुद्रशक्तिश्चिन्मयी भक्तवत्सला ।</div><div>लोकमाता शिवा सन्ध्या शिवपूजनतत्परा ।। ११</div><div>।।</div><div>धनाध्यक्षा धनेशी च नर्मदा धनदा धना ।</div><div>चण्डदर्पहरी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी ।। १२ ।।</div><div>राजराजेश्वरी देवी महिषासुरमर्दिनी ।</div><div>मधूकैटभहन्त्री देवी रक्तबीजविनाशिनी ।। १३ ।।</div><div>धूम्राक्षदैत्यहन्त्री च भण्डासुर विनाशिनी ।</div><div>रेणुपुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ।। १४</div><div>।।</div><div>ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रुनाशिनी ।</div><div>इन्द्राणी इन्द्रपूज्या च गुहमाता गुणेश्वरी ।। १५</div><div>।।</div><div>वज्रपाशधरा देवी ज्ह्वामुद्गरधारिणी ।</div><div>भक्तानन्दकरी देवी बगला परमेश्वरी ।। १६ ।।</div><div>अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगलायास्तु यः पठेत् ।</div><div>रिपुबाधाविनिर्मुक्तः लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात् ।।</div><div>१७ ।।</div><div>भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रहपीड़ानिवारणम् ।</div><div>राजानो वशमायांति सर्वैश्वर्यं च विन्दति ।। १८</div><div>।।</div><div>नानाविद्यां च लभते राज्यं प्राप्नोति निश्चितम्</div><div>।</div><div>भुक्तिमुक्तिमवाप्नोति साक्षात् शिवसमो भवेत् ।।</div><div><br></div><div>(श्री रुद्रयामले सर्वसिद्धिप्रद बगला अष्टोत्तरशतनाम स्त्रोत्रम )</div><div><br></div><div>बगुलामुखी यन्त्र</div><div><br></div><div>आज के इस भागदौड़ के युग में श्री बगलामुखी यंत्र की साधना अन्य किसी भी साधना से अधिक उपयोगी है। यह एक परीक्षित और अनुभवसिद्ध तथ्य है। इसे गले में पहनने के साथ-साथ पूजा घर में भी रख सकते हैं। इस यंत्र की पूजा पीले दाने, पीले वस्त्र, पीले आसन पर बैठकर निम्न मंत्र को प्रतिदिन जप करते हुए करनी चाहिए। अपनी सफलता के लिए कोई भी व्यक्ति इस यंत्र का उपयोग कर सकता है। इसका वास्तविक रूप में प्रयोग किया गया है। इसे अच्छी तरह से अनेक लोगों पर उपयोग करके देखा गया है। </div><div><br></div><div>शास्त्रानुसार और वरिष्ठ सड़कों के अनुभव के अनुसार जिस घर में यह महायंत्र स्थापित होता है, उस घर पर कभी भी शत्रु या किसी भी प्रकार की विपत्ति हावी नहीं हो सकती। न उस घर के किसी सदस्य पर आक्रमण हो सकता है, न ही उस परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो सकती है। इसीलिए इसे महायंत्र की संज्ञा दी गई है। इससे दृश्य/अदृश्य बाधाएं समाप्त होती हैं। यह यंत्र अपनी पूर्ण प्रखरता से प्रभाव दिखाता है। उसके शारीरिक और मानसिक रोगों तथा ऋण, दरिद्रता आदि से उसे मुक्ति मिल जाती है। वहीं उसकी पत्नी और पुत्र सही मार्ग पर आकर उसकी सहायता करते हैं। उसके विश्वासघाती मित्र और व्यापार में साझीदार उसके अनुकूल हो जाते हैं।</div><div><br></div><div> शत्रुओं के शमन (चाहे बाहरी हो या घरेलू कलह , दरिद्रता या शराब / नशे व्यसन रूप में भीतरी शत्रु ),रोजगार या व्यापार आदि में आनेवाली बाधाओं से मुक्ति, मुकदमे में सफलता के लिए , टोने टोटकों के प्रभाव से बचाव आदि के लिए किसी साधक के द्वारा सिद्ध मुहूर्त में निर्मित, बगलामुखी तंत्र से अभिसिंचित तथा प्राण प्रतिष्ठित श्री बगलामुखी यंत्र घर में स्थापित करना चाहिए या कवच रूप में धारण करना चाहिए।</div><div><br></div><div>बगलामुखी हवन</div><div><br></div><div> १) वशीकरण : मधु, घी और शर्करा मिश्रित तिल से किया जाने वाला हवन (होम) मनुष्यों को वश में करने वाला माना गया है। यह हवन आकर्षण बढ़ाता है।</div><div><br></div><div>२) विद्वेषण : तेल से सिक्त नीम के पत्तों से किया जाने वाला हवन विद्वेष दूर करता है।</div><div><br></div><div>३) शत्रु नाश : रात्रि में श्मशान की अग्नि में कोयले, घर के धूम, राई और माहिष गुग्गल के होम से शत्रु का शमन होता है।</div><div><br></div><div>४) उच्चाटन : गिद्ध तथा कौए के पंख, कड़वे तेल, बहेड़े, घर के धूम और चिता की अग्नि से होम करने से साधक के शत्रुओं को उच्चाटन लग जाता है।</div><div><br></div><div>५) रोग नाश : दूब, गुरुच और लावा को मधु, घी और शक्कर के साथ मिलाकर होम करने पर साधक सभी रोगों को मात्र देखकर दूर कर देता है।</div><div><br></div><div>६ ) मनोकामना पूर्ति : कामनाओं की सिद्धि के लिए पर्वत पर, महावन में, नदी के तट पर या शिवालय में एक लाख जप करें।</div><div><br></div><div>७) विष नाश / स्तम्भन :</div><div><br></div><div>एक रंग की गाय के दूध में मधु और शक्कर मिलाकर उसे तीन सौ मंत्रांे से अभिमंत्रित करके पीने से सभी विषों की शक्ति समाप्त हो जाती है और साधक शत्रुओं की शक्ति तथा बुद्धि का स्तम्भन करने में सक्षम होता है।</div><div><br></div><div>अन्य किसी जानकारी , समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।</div><div><br></div><div>जय माँ पीताम्बरा</div><div>।।जय श्री राम।।</div><div>8909521616(whats app)</div><div>7579400465</div><div><br></div><div>also visit: jyotish-tantra.blogspot.com</div>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-78810649369091144682022-05-03T06:04:00.000-07:002022-05-03T06:04:36.716-07:00Akshay Tritiya: Unlimited Benefits अक्षय तृतीया: अतुल फलदायी<p dir="ltr">इस बार अक्षय तृतीया पर 11 साल बाद महामंगल योग बन रहा है. 21 अप्रैल को सूर्य मेष, चंद्रमा वृषभ और गुरु कर्क राशि में रहकर मंगलकारी योग बनाएंगे.</p>
<p dir="ltr">इस दिन दोपहर 11.59 बजे तक कृतिका व इसके बाद रोहिणी नक्षत्र लगेगा. चंद्रमा के उच्च राशि में रहने से दोनों नक्षत्र भी हर प्रकार के कार्यों में शुभता बढ़ाएंगे.</p>
<p dir="ltr">वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को “अक्षय तृतीया” या “आखा तृतीया” अथवा “आखातीज” भी कहते हैं। “अक्षय” का शब्दिक अर्थ है – जिसका कभी नाश (क्षय) न हो अथवा जो स्थायी रहे। स्थायी वहीं रह सकता है जो सर्वदा सत्य है। सत्य केवल परमात्मा है जो अक्षय, अखण्ड और सर्वव्यापक है।</p>
<p dir="ltr">-> यह अक्षय तृतीया तिथि “ईश्वर तिथि” है।</p>
<p dir="ltr">-> इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है।</p>
<p dir="ltr">-> परशुरामजी की गिनती चिंरजीवी महात्माओं में की जाती है। अत: यह तिथि “चिरंजीवी तिथि” भी कहलाती है।</p>
<p dir="ltr">-> चारों युगों – सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग में से त्रेतायुग का आरंभ इसी आखातीज से हुआ है जिससे इस तिथि को युग के आरंभ की तिथि “युर्गाद तिथि” भी कहते हैं।</p>
<p dir="ltr">-> मातंगी जयंती : शक्ति साधकों के लिए भी ये अतिमहत्वपूर्ण दिन है क्योंकि ये दस महाविद्याओं में से एक देवी मातंगी की भी जयंती है इस्लीये कला संगीत का अभ्यास या अध्ययन का आरंभ करने के लिए यह काल सर्वश्रेष्ठ है।</p>
<p dir="ltr">भौतिकता के अनुयायी इस काल को स्वर्ण खरीदने का श्रेष्ठ काल मानते हैं। इसके पीछे शायद इस तिथि की ‘अक्षय’ प्रकृति ही मुख्य कारण है। यानी सोच यह है कि यदि इस काल में हम यदि घर में स्वर्ण लाएंगे तो अक्षय रूप से स्वर्ण आता रहेगा। अक्षय तृतीया कुंभ स्नान व दान पुण्य के साथ पितरों की आत्मा की शांति के लिए अराधना का दिन भी माना गया है। </p>
<p dir="ltr">अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें बरकत होती है। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ेगा।</p>
<p dir="ltr">धरती पर देवताओं ने 24 रूपों में अवतार लिया। इनमें छठा अवतार भगवान परशुराम का था। पुराणों में उनका जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था। इस दिन भगवान विष्णु के चरणों से धरती पर गंगा अवतरित हुई।</p>
<p dir="ltr">मातंगी : मतंग शिव का नाम है। शिव की यह शक्ति असुरों को मोहित करने वाली और साधकों को अभिष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए लोग इनकी पूजा करते हैं। अक्षय तृतीया अर्थात वैशाख शुक्ल की तृतीया को इनकी जयंती आती है।<br>
यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं।</p>
<p dir="ltr">पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।</p>
<p dir="ltr">शास्त्रों की इस मान्यता को वर्तमान में व्यापारिक रूप दे दिया गया है जिसके कारण अक्षय तृतीया के मूल उद्देश्य से हटकर लोग खरीदारी में लगे रहते हैं। वास्तव में यह वस्तु खरीदने का दिन नहीं है। वस्तु की खरीदारी में आपका संचित धन खर्च होता है</p>
<p dir="ltr">। “न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्। <br>
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गङग्या समम्।।” </p>
<p dir="ltr">मत्स्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन अक्षत पुष्प दीप आदि द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से विष्णु भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा सँतान भी अक्षय बनी रहती है इस दिन दीन दुःखीयोँ की सेवा करना,वस्त्रादि का दान करना ओर शुभ कर्मोँ की ओर अग्रसर रहते हुए मन वचन ओर अपने कर्म से अपने मनुष्य धर्म का पालन करना ही अक्षय तृतीया पर्व की सार्थकता है कलियुग के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करके दान अवश्य करना चाहिए|ऐसा करने से निश्चय ही अगले जन्म मेँ समृद्धि ऐश्वर्य व सुख की प्राप्ति होती है</p>
<p dir="ltr">दान को वैज्ञानिक तर्कों में उर्जा के रूपांतरण से जोड़ कर देखा जा सकता है।दान करने से जाने-अनजाने हुए पापों का बोझ हल्का होता है और पुण्य की पूंजी बढ़ती है। अक्षय तृतीया के विषय में कहा गया है कि इस दिन किया गया दान खर्च नहीं होता है, यानी आप जितना दान करते हैं उससे कई गुणा आपके अलौकिक कोष में जमा हो जाता है।</p>
<p dir="ltr">क्या करें दान</p>
<p dir="ltr">अक्षय तृतीया को पवित्र तिथी माना गया है इस दिन गँगा यमुना आदि पवित्र नदियोँ मेँ स्नान करके श्रद्धा भाव से अपने सामर्थ्य के अनुसार जल,अनाज,गन्ना,दही,सत्तू,फल,सुराही,हाथ से बने पँखे वस्त्रादि का दान करना विशेष फल प्रदान करने वाला माना गया है।</p>
<p dir="ltr">दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए यह दिवस सर्वश्रेष्ठ है।</p>
<p dir="ltr">धन के इच्छुक लोगों को-ब्राहमण पूजा करते हुये दानादि शुभ कर्म करने चाहिए व गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए, अक्षय तृतीया के दिन मंत्र साधना भी अक्षय फल प्रदान करती है अक्षय तृतीया के दिन माँ लक्ष्मी सहित व्बिष्णु जी व देवी शक्ति सहित शिव की पूजा करनी चाहिए, विशेष तौर पर गणपति की पूजा घर में धन वैभव ले कर आती है, पूजा के समय घर पर यन्त्र स्थापित करना चाहिए जो आयु आरोग्य और धन प्रदान करें,</p>
<p dir="ltr">कुछ प्रयोग:-</p>
<p dir="ltr">(1) कार्य में सफलता हेतु</p>
<p dir="ltr">श्वेतार्क या स्फटिक के गणपति जी की स्थापना और पूजन करना चाहिए। यदि काम बनते बनते बिगड़ जाते हैं या मन्ज़िल तक पहुँच कर हाथ से निकल जाते हैं तो किसी विद्वान ब्राह्मण से श्वेतार्क का ताबीज़ बनवा कर सिद्ध करवा कर पहनना चाहिए।</p>
<p dir="ltr">(2) लक्ष्मी प्राप्ति हेतु</p>
<p dir="ltr">(क)-ग्रंथों में लक्ष्मी, यश- कीर्ति की प्राप्ति उपाय के रूप में कई उपाय मिलते हैं। लक्ष्मी गायत्री मंत्र का निरंतर जाप भी इष्टप्रद है।</p>
<p dir="ltr">'महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च<br>
धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।'<br>
कमल गट्टे की माला से कम से कम 11 माला जप करें।</p>
<p dir="ltr">(ख) माता लक्ष्मी जी की प्रतिमा या चित्र को ताम्बे की बड़ी थाली में स्थापित कर पूजना चाहिए, देवी को धूप दीप, नवैद्य,पंचामृत व दक्षिणा अर्पित करें, उत्तर दिशा की ओर मुख रख कर मंत्र का जाप करें, 9 माला मंत्र जाप 21 दिन करना चाहिए, लाल रंग के आसन पर बैठ कर ही जाप करें, खीर का प्रसाद चढ़ाएं व बाँटें, देवी को नारियल व पुष्प माला अर्पित करें <br>
मंत्र-</p>
<p dir="ltr">ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा:। </p>
<p dir="ltr">(ग) चांदी की एक छोटी सी ढक्कन वाली डिबिया लें। इसमें नागकेसर व शहद भरकर शुक्ल पक्ष के शुक्रवार की रात को या अन्य किसी शुभ मुहूर्त में अपने गल्ले या तिजोरी में रख दें। आपकी धन में अचानक वृद्धि होने लगेगी। - नागकेसर के फूल लेकर शुक्रवार के दिन पूजन के बाद एक कपड़े में लपेटकर अपनी दुकान के गल्ले या अपने ऑफिस के केश बॉक्स में रखें तो धन की आवक कभी कम नहीं होगी। </p>
<p dir="ltr">(घ) यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार<br>
ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः<br>
का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है।</p>
<p dir="ltr">( ङ) अक्षय तृतीया पर एक लाल कपड़े में मोती शंख , गोमती चक्र, लघु नारियल, पीली कौड़ी और चाँदी के सिक्के का माँ लक्ष्मी के सामने पूजन कर 21 पाठ श्री सूक्त का करे और पोटली बना कर मन्दिर में स्थापित कर दें। पोटली खोले बिना नित्य ऊपर से ही धूप दीप करें। थोड़े ही दिनों में आर्थिक समस्या समाप्त होने लगेगी।</p>
<p dir="ltr">(3) सियार सिंगी से आकस्मिक धन प्राप्ति</p>
<p dir="ltr">यदि आपके पास सियार सिंगी है और आपको कुछ प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिल रहा तो अक्षय तीज की शाम माँ महालक्ष्मी का यथासम्भव पूजन कर चाँदी की प्लेट या सिक्के पर या फिर भोज पत्र पर केसर की स्याही और चमेली की कलम से निम्न यंत्र का निर्माण करें </p>
<p dir="ltr">____________<br>
l६६ l ७७ l३३ ।<br>
l४४ l६६ l४४ ।<br>
l७७ l ४४ l७७ ।<br>
------------</p>
<p dir="ltr">धूप दीप गंगाजल शहद फल फूल अक्षत चढ़ा कर देवी के यन्त्र को प्रतिष्ठित करें,</p>
<p dir="ltr">ॐ श्रीं श्रियै नमः ।झटिति लक्ष्मी देहि देहि स्वाहा।</p>
<p dir="ltr">मन्त्र का कम से कम 5 माला जप करें।<br>
फिर सियार सिंगी के करीब 1/2 से 1 इंच बाल काट कर इस यंत्र पर रखें। इस पर सिंदूर और 11 अक्षत चढ़ाएं। इस भोजपत्र को मोड़कर एक पुड़िया बना लें और सामर्थ्यनुसार 50,100 या 500 के नोट में रख कर उसकी भी पुड़िया बना लें।<br>
इसे आप अपने पर्स तिजोरी गल्ले आदि में रखें और रोज ऊपर से ही धुप दें।<br>
ये प्रयोग निश्चित रूप से आकस्मिक धन लाभ करवाता है।</p>
<p dir="ltr">(4) आरोग्य और संतान हेतु</p>
<p dir="ltr">आरोग्य और सन्तान प्राप्ति हेतु भग७वान शिव का रुद्राभिषेक करवाएं। यदि सम्भव न हो तो रोगी के परिवार जन शिव सहस्त्रनाम का पाठ करें और रोगी स्वयं जलाभिषेक करे। निसन्तान दम्पति में पति साउच्चारण सहस्त्रनाम पाठ करे और पत्नी लिंग पर अटूट जलाभिषेक करे।</p>
<p dir="ltr">(5) अभिनय कला संगीत में सफलता हेतु</p>
<p dir="ltr">मातंगी माता का मंत्र स्फटिक की माला से बारह माला करना चाहिए</p>
<p dir="ltr">‘ऊँ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:’</p>
<p dir="ltr">(6) पारिवारिक सुख शांति उन्नति हेतु</p>
<p dir="ltr">माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करके घर- परिवार में वैभव की प्रतिष्ठा की जा सकती है। प्रातः काल, स्नानादि व तुलसी सेवन करके</p>
<p dir="ltr">'हरिजागरणं प्रातः स्नानं तुलसीसेवनम्। <br>
उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके॥'</p>
<p dir="ltr">इस मंत्र के साथ दीपदान करें| इसी मंत्र के द्वारा सत्यभामा ने अक्षय सुख, सौभाग्य और संपदा के साथ सर्वेश्वर को सुलभ किया था।</p>
<p dir="ltr">(7) हनुमान जी को करें प्रसन्न</p>
<p dir="ltr">मंगलवार को अक्षय तीज पड़ने से हनुमान जी के भक्तों के लिए भी ये एक विशिष्ट मौका है।<br>
इस दिन हनुमान जी की प्रसन्नता के लिए उनके मन्दिर जाकर उनके सम्मुख आटे का 5 बत्ती का लौंग युक्त घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं। गुलाब या आक के फूल अर्पित करें। गुग्गुल की धूप जलाकर <br>
सुन्दरकाण्ड<br>
हनुमान चालीसा या बजरँग बाण के 108 पाठ करें।</p>
<p dir="ltr">(7) अबूझ मुहूर्त और अक्षय फलदायी होने के कारण विभिन तंत्रोक्त वस्तुओं के जागरण, पैन प्रतिष्ठा और स्थापना के लिए भी ये स्वर्णिम अवसर है।</p>
<p dir="ltr">(8) रुद्राक्ष और रुद्राक्ष माला, इन्द्राक्षी माला की प्राण प्रतिष्ठा और धारण करना भी महाफलदायि है।</p>
<p dir="ltr">अन्य किसी जानकारी , समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।<br>
8909521616(whats app)<br>
7579400465<br>
7060202653</p>
<p dir="ltr">also visit: jyotish-tantra.blogspot.com</p>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="http://lh3.googleusercontent.com/-yyQ3raw2aFs/VTUxRVeO5II/AAAAAAAAL4o/GWfKnZJnlt8/s1600/1335261854_akshay_trutiya.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="http://lh3.googleusercontent.com/-yyQ3raw2aFs/VTUxRVeO5II/AAAAAAAAL4o/GWfKnZJnlt8/s640/1335261854_akshay_trutiya.jpg"> </a> </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRWiTOAmIRzCDcZ1cnFETtVQYCS8m-XJkURZeet1GQoie9WngQLxCPw-dOfD8KkIH7Rz4r6XEje3bDiiPtrq92aoVgVch-i228y-q1d2tbrdlAFQIYMVpZB9n1yiS1KcXD7IorH-vG10Hg/s1600/IMG_20150227_141137.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"> <img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRWiTOAmIRzCDcZ1cnFETtVQYCS8m-XJkURZeet1GQoie9WngQLxCPw-dOfD8KkIH7Rz4r6XEje3bDiiPtrq92aoVgVch-i228y-q1d2tbrdlAFQIYMVpZB9n1yiS1KcXD7IorH-vG10Hg/s640/IMG_20150227_141137.jpg"> </a> </div>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-38440265321403114872022-04-07T06:13:00.003-07:002022-04-07T06:13:42.057-07:00किन मन्त्रों से हवन नहीं करना चाहिए<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">नवरात्रि विशेष: किन मन्त्रों से हवन नहीं करना चाहिए</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both;">(संकलन पोस्ट)</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">मित्रों, </div><div class="separator" style="clear: both;">शक्ति साधना का महापर्व नवरात्रि अब अपने पारण की ओर है, कुल परम्परा अनुसार लोग सप्तमी से दशमी तक पूजन कर नवरात्रि व्रत का पारण करते हैं।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">इसमें कुछ लोग दैनिक और अधिकतर लोग अंतिम दिन सप्तशती के पाठ के पश्चात सप्तशती के मंत्रों का हवन करते हैं।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">जिन्हें अपने गुरु के माध्यम से अथवा कुल परम्परा के माध्यम से सही जानकारी है वे तो सही करते हैं।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">किंतु अधिकतर लोग जिन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं है और जिन्होंने सप्तशती का पाठ और हवन फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया से जानकारी मिलने के बाद या इसपर मौजूद किसी जानकार व्यक्ति की बात को पूरा न समझ कर किया है वो अक्सर हवन में गलती कर जाते हैं।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">इस पोस्ट के माध्यम से आपको इसके विषय मे सही जानकारी प्राप्त होगी आप इसे भविष्य के लिए सेव कर के रख सकते हैं।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">सप्तशती का प्रत्येक भाग बेहद शक्तिशाली है किंतु मूल पाठ के अतिरिक्त जिस स्तोत्र का सबसे अधिक महत्व है वो है सिद्धकुंजिका स्तोत्र। इसकी सिद्धि के भी अत्यधिक विधान सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। जो कि वास्तव में अधकचरे ही हैं।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का होम न करने की आज्ञा स्वयं महादेव नें दी है</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">इसका प्रथम कारण है की ,</div><div class="separator" style="clear: both;">कुंजिका देवी सिद्धियों की एकमात्र कुंजी है ।</div><div class="separator" style="clear: both;">ओर कुंजी का रक्षण किया जाता है आहूत नहीं किया जा सकता ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">यदि यदि कुंजी का ही लोप हो जाएगा तो सिद्धी के द्वार का खुलना असम्भव हो जाएगा ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">दूसरा का कारण यह की </div><div class="separator" style="clear: both;">सप्तशती में आता की याचना स्तोत्र , कवच एवं कवच मन्त्रों की आहुति नहीं की जाती अन्यथा विनाश ही होता है ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">कवचं वार्गलाचैव , कीलकोकुंजिकास्तथा ।</div><div class="separator" style="clear: both;">स्वप्नेकुर्वन्नहोमं च , जुहुयात्सर्वत्रनष्ट्यते: ।।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">भगवान शिव भैरव स्वरूप में स्थित होकर कहते हैं ! </div><div class="separator" style="clear: both;">कवच , अर्गला , कीलक , तथा कुंजिका का होम स्वप्न में भी न करें स्वप्न मात्र में भी होम करने से सर्वत्र नाश की संभावनाएँ प्रकट हो जाती है ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">बुद्धिनाषोहुजेत् देवि, अर्गलाऽनर्गलोभवेत् ।</div><div class="separator" style="clear: both;">सिद्धीर्नाषगत:होता, विद्यां च विस्मृतोर्भभवेत् ।।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">अर्गला के होमकर्म से सिद्धीयों का नाश हो जाता है । तथा होता की समस्त विद्याएँ विस्मृत हो जाती है , अर्गला अनर्गल सिद्ध हो जाती है ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">कीलितोजायतेमन्त्र: ,होमे वा कीलकस्तथा ।</div><div class="separator" style="clear: both;">ममकण्ठसमंयस्य: ,कीलकोत्कीलकं हि च ।।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">कीलक के होमकर्म से होता के समस्त मन्त्र सदा सर्वदा के लिए कीलित हो जाते हैं ।</div><div class="separator" style="clear: both;">इसे मेरा उत्किलित कण्ठ ही जानें जो जो कीलक का कारक है ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">धनधान्ययुतंभद्रे , पुत्र:प्राण:विनष्यते: ।</div><div class="separator" style="clear: both;">रोगशोकोर्व्रिते:कृत्वा, कवचंहोमकर्मण: ।।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">कवच के होम से धन,धान्य, पुत्र तथा प्राण का विनाश निश्चित है । एवं वह होता रोग तथा शोकों से घिर जाता है ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">स्वप्ने वा हुज्यते देवि , कुंजिकायं च कुंजिकां ।</div><div class="separator" style="clear: both;">षड्मासे च भवेन्मृत्यु , सत्यं सत्यं न संशय: ।</div><div class="separator" style="clear: both;">होमे च कुंजिकायास्तु , सकुटुम्बंविनाश्यती: ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">कुंजिका के होमकर्म के प्रभाव से होता की छः मास में मृत्यु निश्चित जानें । तथा होता का सकूटुंब विनाश हो जाता है यह सत्य हे सत्य हे इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिए ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">यस्यं च दोषमात्रेण , प्रसन्नार्मृत्युदेवता: ।</div><div class="separator" style="clear: both;">कुंजिकाहोममात्रेण , रावण:प्रलयंगत: ।।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">ईसी के दोष से मृत्युदेवता अत्यंत प्रसन्न होकर होता का सकूटुंब भक्षण करते हैं ।</div><div class="separator" style="clear: both;">कुंजिका के होममात्र के प्रभाव से ही रावण का सम्पूर्ण विनाश सम्भव हुआ ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">*भैरवयामले भैरवभैरवी संवादे ।।*</div><div class="separator" style="clear: both;">*चतुर्विंश प्रभागे होमप्रकरणे ।।*</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">मातृका:बीजसंयुक्ता: , प्राणाप्राणविबोधिनी ।</div><div class="separator" style="clear: both;">प्राणदा:कुंजिका:मायां , सर्वप्राण:प्रभाविनी ।।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">कुंजिका में बीज मातृकाएँ उपस्थित हैं ।</div><div class="separator" style="clear: both;">प्राण को देविप्राण का बोधप्रदान करती हैं ।</div><div class="separator" style="clear: both;">यह प्राणज्ञान प्रदान करने वाली महामाया कुंजिका प्राण को प्रभावित करने वाली हैं ।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;"># इसके अतिरिक्त एक अन्य विशेष बात है कि जिन मन्त्रों के हवन को ऊपर निषेध बताया गया है उनका भी हवन होता है लेकिन सिर्फ विशेष परिस्थिति में ।</div><div class="separator" style="clear: both;">किसी विशेष और असाध्य कार्यसिद्धि के हेतु उसका तरीका विधि विधान अलग है।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">इन मंत्रों का हवन अनुष्ठान कब और कैसे करना है ये आपको कोई विशेषज्ञ ही बताएगा , कारण समझ कर, अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">8909521616(whatsapp)</div><div class="separator" style="clear: both;">7579400465</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">।।जय श्री राम।।</div></div><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> </div><br /> <p></p>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-47468224769364098062022-04-05T10:56:00.004-07:002022-04-05T10:56:49.763-07:00मिर्गी की आयुर्वेदिक कारगर दवा<p>माता वाराही की कृपा से अब मिर्गी नाशक कवच के साथ</p><p><br /></p><p>मिर्गी एवं दौरे के लिए आयुर्वेदिक दवा उपलब्ध है</p><p><br /></p><p>जिनके दौरे एलोपैथी से भी बंद नहीं हो रहे वो भी साथ साथ ले सकते हैं</p><p><br /></p><p>मिर्गी और दौरे अलग अलग लिखा है क्योंकि दोनो अलग हैं</p><p>सब दौरे मिर्गी नहीं होते </p><p><br /></p><p>ये दवा दोनों में कारगर है</p><p><br /></p><p>8 साल से अधिक उम्र के लिए</p><p><br /></p><p>सिर्फ 5 माह का कोर्स</p><p><br /></p><p>जिन्हें चाहिए वे सम्पर्क कर सकते हैं</p><p><br /></p><p>मिर्गी नाशक कवच और दवा मंगवाने के लिए सम्पर्क करें</p><p><br /></p><p>7579400465( व्हाट्सएप)</p><p><br /></p><p>।।जय श्री राम।।</p>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-21413686384468813192021-07-17T08:24:00.001-07:002021-07-17T08:24:50.265-07:00सर्वकार्य सिद्धिदायक भस्म<div><div>सर्वकार्य सिद्धिदायक भस्म</div><div><br></div><div>मित्रों, </div><div>गुप्त नवरात्रि पर बहुत से प्रयोग मंत्रादि सब जगह अब सहज मिल रहे हैं किंतु आज मैं आपको एक बहुत खास प्रयोग बताने जा रहा हूँ जो है विशुद्ध भस्म के निर्माण का।</div><div>इस भस्म को आयुर्वेदिक दवा और भूत प्रेत जादू टोना नज़र इत्यादि दूर करने के लिए तथा भगवान शिव के श्रृंगार के लिए आराम से प्रयोग किया जा सकता है।</div><div><br></div><div>भस्म निर्माण के लिए सबसे पहले आपको चाहिए देसी गाय से प्राप्त पंचगव्य, पंचगव्य आप समान मात्रा में दूध दही घी गौमूत्र और गोमय (गोबर का रस) मिलाकर बना सकते हैं, चाहें तो विशुद्ध आयुर्वेदिक पद्धति से भी बना सकते हैं जिसके बारे में आप हमारे पेज अमृतम पर पढ़ सकते हैं।</div><div><br></div><div>इस पंचगव्य को आप सबसे पहले किसी मिट्टी के स्वच्छ पात्र में बना कर तैयार कर लें फिर पलाश या कमल के पत्ते से बड़े से दोने(कटोरे) में एक बेल फल रखकर उसे इस पंचगव्य से स्नान कराएं।</div><div><br></div><div>स्नान के बाद इष्ट देवता के मन्त्र, गुरु मन्त्र या पंचाक्षरी ॐ नमः शिवाय का 1100 जप करें।</div><div><br></div><div>जप के उपरांत बेल फल निकाल कर किसी स्वच्छ स्थान पर रखें ये बेल फल भी संस्कारित माना गया है। ये सब प्रकार से रक्षा करता है और सुख समृद्धि देने वाला है।</div><div>सबसे अच्छा हो कि इसे अपने घर मे मिट्टी में गाड़ लें या किसी प्रियजन के घर मे गड़वा दें जिसे सुख समृद्धि की जरूरत हो।</div><div><br></div><div>इसके बाद पंचगव्य को पुनः दोने समेत मिट्टी के पात्र में डालकर लकड़ियों पर जलाई हुई अग्नि में रखें।</div><div><br></div><div>इसके बाद इसमें </div><div>पलाश और गूलर वृक्षों की छाल, </div><div>मलयागिरिचन्दन, </div><div>गुग्गुल, </div><div>केशर, हल्दी गांठ, </div><div>कूठ,</div><div>विल्व का पञ्चाङ्ग </div><div>अपामार्ग ,</div><div> तिल,</div><div> दूर्वा, </div><div>जौं, </div><div>सहदेवी </div><div>श्यामा और रामा दोनों प्रकार की तुलसी, </div><div>कुशा, </div><div>गोरोचन, </div><div>कमल का फूल</div><div> गोमय रस में भिगोई हुई वचा, </div><div>विष्णुकान्ता और </div><div>श्वेतार्क की छाल</div><div><br></div><div>ये सब सामग्री डालकर पकने दें और इसका क्वाथ बनने दें, उसके बाद भी इसे तब तक पकने दें जब तक ये पूरी तरह जलकर भस्म न बन जाये।</div><div><br></div><div>जब ये प्रक्रिया होती हो उस समय निरन्तर मन्त्र का जप करते रहें।</div><div>जब ये भस्म बन कर तैयार हो जाये तब इसे पलाश या कमल के पत्ते पर रखें और सबसे अच्छा हो इस भस्म को किसी कांटेदार पत्तों वाले पौधे के पत्तों का पत्तल बना कर उसमें रखें जैसे कटेरी।</div><div><br></div><div>इसके बाद इस भस्म पर फिर से 21000 जप करें।</div><div><br></div><div>इस प्रकार से तैयार भस्म को शिर पर छिड़क दे और सर्वांग में लेप भी कर दे तो ऐसा करने से कृत्या जन्य उपद्रव, शत्रुद्रोह, ग्रहबाधा, उन्माद एवं व्याधि तथा अन्य प्रकार के दुःखों का निवारण हो जाता है।</div><div> इससे शत्रुबाधा शान्त हो जाती है, सारे पाप दूर हो जाते हैं यह भस्म सब प्रकार का कल्याण करता है और समस्त विपत्तियों का विनाश करता है ॥</div><div><br></div><div>इस भस्म को दवा के रूप में खाया भी जा सकता है नज़र टोटके ऊपरी हवा आदि से पीड़ित व्यक्ति को लगाने के साथ खिलाया भी जा सकता है। इनके कारण होने वाले भय, ज्वर अनिद्रा को ये भस्म दूर करती है।</div><div>सही नक्षत्र मुहूर्त में किये गए वशीकरण आदि प्रयोगों के लिए भी ये भस्म सर्वोत्तम है।( शास्त्र वचन है)</div><div><br></div><div>इस प्रकार का भस्म गर्भिणी, बालक तथा रोगीजनों को विशेष रूप से लाभदायी है, इस लोक में इससे बढ़कर अन्य कोई रक्षा का उपाय नहीं कहा गया है ।</div></div><div><br></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-89602208938389383182021-06-18T02:07:00.001-07:002021-06-18T02:07:54.451-07:00धूमावती जयंती 2021 विशेष<div>माँ धूमावती जयंती की शुभकामनाएं</div><div><br></div><div>जब सब पूजा पाठ तंत्र मंत्र यन्त्र विफल हो जाएं तो धूमावती की शरण लें ये अंतिम उपाय है अंत मे ही करें</div><div><br></div><div>देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है</div><div><br></div><div>स्तुति :- </div><div><br></div><div>विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा,</div><div><br></div><div>विवरणकुण्डला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,</div><div><br></div><div>काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,</div><div><br></div><div>सूर्यहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,</div><div><br></div><div>प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,</div><div><br></div><div>क्षुतपिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहप्रिया.</div><div><br></div><div>***** ॥ सौभाग्यदात्री धूमावती कवचम् ॥ *****</div><div><br></div><div>धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी ।</div><div><br></div><div>ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ॥१॥</div><div><br></div><div>कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके ।</div><div><br></div><div>सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ॥२॥</div><div><br></div><div>सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः ।</div><div><br></div><div>सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देविपुरं ययौ ॥३॥</div><div><br></div><div>॥ श्री सौभाग्यधूमावतीकल्पोक्त धूमावतीकवचम् ॥</div><div><br></div><div>*****।।श्री धूमावती अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र।।*****</div><div><br></div><div>ईश्वर उवाचधूमावती धूम्रवर्णा धूम्रपानपरायणा ।</div><div><br></div><div>धूम्राक्षमथिनी धन्या धन्यस्थाननिवासिनी ॥ १॥</div><div><br></div><div>अघोराचारसन्तुष्टा अघोराचारमण्डिता ।</div><div><br></div><div>अघोरमन्त्रसम्प्रीता अघोरमन्त्रपूजिता ॥ २॥</div><div><br></div><div>अट्टाट्टहासनिरता मलिनाम्बरधारिणी ।</div><div><br></div><div>वृद्धा विरूपा विधवा विद्या च विरलद्विजा ॥ ३॥</div><div><br></div><div>प्रवृद्धघोणा कुमुखी कुटिला कुटिलेक्षणा ।</div><div><br></div><div>कराली च करालास्या कङ्काली शूर्पधारिणी ॥ ४॥</div><div><br></div><div>काकध्वजरथारूढा केवला कठिना कुहूः ।</div><div><br></div><div>क्षुत्पिपासार्दिता नित्या ललज्जिह्वा दिगम्बरी ॥ ५॥</div><div><br></div><div>दीर्घोदरी दीर्घरवा दीर्घाङ्गी दीर्घमस्तका ।</div><div><br></div><div>विमुक्तकुन्तला कीर्त्या कैलासस्थानवासिनी ॥ ६॥</div><div><br></div><div>क्रूरा कालस्वरूपा च कालचक्रप्रवर्तिनी ।</div><div><br></div><div>विवर्णा चञ्चला दुष्टा दुष्टविध्वंसकारिणी ॥ ७॥</div><div><br></div><div>चण्डी चण्डस्वरूपा च चामुण्डा चण्डनिस्वना ।</div><div><br></div><div>चण्डवेगा चण्डगतिश्चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ ८॥</div><div><br></div><div>चाण्डालिनी चित्ररेखा चित्राङ्गी चित्ररूपिणी ।</div><div><br></div><div>कृष्णा कपर्दिनी कुल्ला कृष्णारूपा क्रियावती ॥ ९॥</div><div><br></div><div>कुम्भस्तनी महोन्मत्ता मदिरापानविह्वला ।</div><div><br></div><div>चतुर्भुजा ललज्जिह्वा शत्रुसंहारकारिणी ॥ १०॥</div><div><br></div><div>शवारूढा शवगता श्मशानस्थानवासिनी ।</div><div><br></div><div>दुराराध्या दुराचारा दुर्जनप्रीतिदायिनी ॥ ११॥</div><div><br></div><div>निर्मांसा च निराकारा धूतहस्ता वरान्विता ।</div><div><br></div><div>कलहा च कलिप्रीता कलिकल्मषनाशिनी ॥ १२॥</div><div><br></div><div>महाकालस्वरूपा च महाकालप्रपूजिता ।</div><div><br></div><div>महादेवप्रिया मेधा महासङ्कटनाशिनी ॥ १३॥</div><div><br></div><div>भक्तप्रिया भक्तगतिर्भक्तशत्रुविनाशिनी ।</div><div><br></div><div>भैरवी भुवना भीमा भारती भुवनात्मिका ॥ १४॥</div><div><br></div><div>भेरुण्डा भीमनयना त्रिनेत्रा बहुरूपिणी ।</div><div><br></div><div>त्रिलोकेशी त्रिकालज्ञा त्रिस्वरूपा त्रयीतनुः ॥ १५॥</div><div><br></div><div>त्रिमूर्तिश्च तथा तन्वी त्रिशक्तिश्च त्रिशूलिनी ।</div><div><br></div><div>इति धूमामहत्स्तोत्रं नाम्नामष्टोत्तरात्मकम् ॥ १६॥</div><div><br></div><div>मया ते कथितं देवि शत्रुसङ्घविनाशनम् ।</div><div><br></div><div>कारागारे रिपुग्रस्ते महोत्पाते महाभये ॥ १७॥</div><div><br></div><div>इदं स्तोत्रं पठेन्मर्त्यो मुच्यते सर्वसङ्कटैः ।</div><div><br></div><div>गुह्याद्गुह्यतरं गुह्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ॥ १८॥</div><div><br></div><div>चतुष्पदार्थदं नॄणां सर्वसम्पत्प्रदायकम् ॥ १९॥</div><div><br></div><div>इति श्रीधूमावत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥</div><div><br></div><div>विशेष उपाय: </div><div><br></div><div>माई को सफेद वस्त्र, श्वेतार्क पुष्प, पंचमेवा, पूड़ी कचौड़ी समोसे, सफेद मिठाई, गुड़, पँचमेवे का भोग लगाएं।</div><div><br></div><div>जिनके लिए सम्भव हो</div><div>लकड़ी या गोबर के उपले पर सूखे नारियल गोले में गुड़, घी, पंचमेवा, शहद और जटामांसी कालीमिर्च भरकर रख दे, उसके बाद स्तुति, कवच और अष्टोत्तरशतनाम का अधिकाधिक संख्या में पाठ करें।</div><div><br></div><div>।।जय माँ धूमावती।।</div><div><br></div><div>890521616</div><div>7579400465<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><div><br></div><div><div>भगवान नरसिंह एवं माँ छिन्नमस्ता जयंती की शुभकामनाएं</div><div><br></div><div>श्री गणेशाय नमः ।</div><div>अस्य श्री नृसिंहमालामन्त्रस्य नारदभगवान् ऋषिः ।</div><div>अनुष्टुभ् छन्दः । श्री नृसिंहोदेवता । आं बीजम् ।</div><div>लं शवित्तः । मेरुकीलकम् ।</div><div>श्रीनृसिंहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥</div><div><br></div><div>ॐ नमो नृसिंहाय ज्वलामुखग्निनेत्रय शङ्खचक्रगदाप्र्हस्ताय ।</div><div>योगरूपाय हिरण्यकशिपुच्छेदनान्त्रमालाविभुषणाय हन हन दह</div><div>दह वच वच रक्ष वो नृसिंहाय पुर्वदिषां बन्ध बन्ध</div><div>रौद्रभसिंहाय दक्षिणदिशां बन्ध बन्ध पावननृसिंहाय</div><div>पश्चिमदिशां बन्ध बन्ध दारुणनृसिंहाय उत्तरदिशां बन्ध</div><div>बन्ध ज्वालानृसिंहाय आकाशदिशां बन्ध बन्ध लक्ष्मीनृसिंहाय</div><div>पातालदिशां बन्ध बन्ध कः कः कम्पय कम्पय आवेशय आवेशय</div><div>अवतारय अवतारय शीघ्रं शीघ्रं ।</div><div><br></div><div>ॐ नमो नारसिंहाय नवकोटिदेवग्रहोच्चाटनाय ।</div><div>ॐ नमो नारसिंहाय अष्टकोटिगन्धर्व ग्रहोच्चाटनाय ।</div><div>ॐ नमो नारसिंहाय षट्कोटिशाकिनीग्रहोच्चाटनाय ।</div><div>ॐ नमो नारसिंहाय पञ्चकोटि पन्नगग्रहोच्चाटनाय ।</div><div>ॐ नमो नारसिंहाय चतुष्कोटि ब्रह्मराक्षसग्रहोच्चाटनाय ।</div><div>ॐ नमो नारसिंहाय द्विकोटिदनुजग्रहोच्चाटनाय ।</div><div>ॐ नमो नारसिंहाय कोटिग्रहोच्चाटनाय ।</div><div>ॐ नमो नारसिंहाय अरिमूरीचोरराक्षसजितिः वारं वारं ॥</div><div><br></div><div>श्रीभय चोरभय व्याधिभय सकलभयकण्टकान् विध्वंसय विध्वंसय ।</div><div>शरणागत वज्रपञ्जराय विश्वहृदयाय प्रह्लादवरदाय</div><div>क्षरौं श्रीं नृसिंहाय स्वाहा ।</div><div>ॐ नमो नारसिंहाय मुद्गलशङ्खचक्रगदापद्महस्ताय</div><div>नीलप्रभाङ्गवर्णाय भीमाय भीषणाय ज्वालाकरालभयभाषित</div><div>श्रीनृसिंहहिरण्यकश्यपवक्षस्थलविदार्णाय ।</div><div>जय जय एहि एहि भगवन् भवन गरुडध्वज गरुडध्वज</div><div>मम सर्वोपद्रवं वज्रदेहेन चूर्णय चूर्णय</div><div> आपत्समुद्रं शोषय शोषय ।</div><div>असुरगन्धर्वयक्षब्रह्मराक्षस भूतप्रेत</div><div> पिशाचदिन विध्वन्सय् विध्वन्सय् ।</div><div>पूर्वाखिलं मूलय मूलय ।</div><div>प्रतिच्छां स्तम्भय परमन्त्रपयन्त्र परतन्त्र परकष्टं</div><div>छिन्धि छिन्धि भिन्धि हं फट् स्वाहा ।</div><div><br></div><div>इति श्रीअथर्वण वेदोवत्तनृसिंहमालामन्त्रः समाप्तः ।</div><div>श्री नृसिंहार्पणमस्तु ॥</div><div><br></div><div>****छिन्नमस्तका अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र*****</div><div><br></div><div>पार्वत्युवाच</div><div><br></div><div>नाम्नां सहस्रमं परमं छिन्नमस्ता-प्रियं शुभम्।</div><div>कथितं भवता शम्भो सद्यः शत्रु-निकृन्तनम्।।1।।</div><div>पुनः पृच्छाम्यहं देव कृपां कुरु ममोपरि।</div><div>सहस्र-नाम-पाठे च अशक्तो यः पुमान् भवेत्।।2।।</div><div>तेन किं पठ्यते नाथ तन्मे ब्रूहि कृपामय।</div><div><br></div><div>श्री सदाशिव उवाच</div><div><br></div><div>अष्टोत्तर-शतं नाम्नां पठ्यते तेन सर्वदा।</div><div>सहस्र्-नाम-पाठस्य फलं प्राप्नोति निश्चितम् .</div><div>ॐ अस्य श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तर-शत-नाअम-स्तोत्रस्य सदाशिव</div><div>ऋषिरनुष्टुप् छन्दः श्रीछिन्नमस्ता देवता</div><div>मम-सकल-सिद्धि-प्राप्तये जपे विनियोगः।</div><div><br></div><div>ॐ छिन्नमस्ता महाविद्या महाभीमा महोदरी .</div><div>चण्डेश्वरी चण्ड-माता चण्ड-मुण्ड्-प्रभञ्जिनी।।4।।</div><div>महाचण्डा चण्ड-रूपा चण्डिका चण्ड-खण्डिनी।</div><div>क्रोधिनी क्रोध-जननी क्रोध-रूपा कुहू कला ।।5।।</div><div>कोपातुरा कोपयुता जोप-संहार-कारिणी ।</div><div>वज्र-वैरोचनी वज्रा वज्र-कल्पा च डाकिनी।।6।।</div><div>डाकिनी कर्म्म-निरता डाकिनी कर्म-पूजिता।</div><div>डाकिनी सङ्ग-निरता डाकिनी प्रेम-पूरिता।।7।।</div><div>खट्वाङ्ग-धारिणी खर्वा खड्ग-खप्पर-धारिणी ।</div><div>प्रेतासना प्रेत-युता प्रेत-सङ्ग-विहारिणी ।।8।।</div><div>छिन्न-मुण्ड-धरा छिन्न-चण्ड-विद्या च चित्रिणी ।</div><div>घोर-रूपा घोर-दृष्टर्घोर-रावा घनोवरी ।।9।।</div><div>योगिनी योग-निरता जप-यज्ञ-परायणा।</div><div>योनि-चक्र-मयी योनिर्योनि-चक्र-प्रवर्तिनी ।।10।।</div><div>योनि-मुद्रा-योनि-गम्या योनि-यन्त्र-निवासिनी ।</div><div>यन्त्र-रूपा यन्त्र-मयी यन्त्रेशी यन्त्र-पूजिता ।।11।।</div><div>कीर्त्या कपर्दिनी: काली कङ्काली कल-कारिणी।</div><div>आरक्ता रक्त-नयना रक्त-पान-परायणा ।।12।।</div><div>भवानी भूतिदा भूतिर्भूति-दात्री च भैरवी ।</div><div>भैरवाचार-निरता भूत-भैरव-सेविता।।13।।</div><div>भीमा भीमेश्वरी देवी भीम-नाद-परायणा ।</div><div>भवाराध्या भव-नुता भव-सागर-तारिणी ।।14।।</div><div>भद्रकाली भद्र तनुर्भद्र-रूपा च भद्रिका।</div><div>भद्ररूपा महाभद्रा सुभद्रा भद्रपालिनी।।15।।</div><div>सुभव्या भव्य-वदना सुमुखी सिद्ध-सेविता ।</div><div>सिद्धिदा सिद्धि-निवहा सिद्धासिद्ध-निषेविता।।16।।</div><div>शुभदा शुभगा शुद्धा शुद्ध-सत्वा-शुभावहा ।</div><div>श्रेष्ठा दृष्टिमयी देवी दृष्ठि-संहार-कारिणी।।17।।</div><div>शर्वाणी सर्वगा सर्वा सर्व-मङ्गल-कारिणी ।</div><div>शिवा शान्ता शान्ति-रूपा मृडानी मदनातुरा ।।18।।</div><div>इति ते कथितं देवि स्तोत्रं परम-दुर्लभम्।</div><div>गुह्याद्-गुह्यतरं गोप्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ।।19।।</div><div>किमत्र बहुनोक्तेन त्वदग्रं प्राण-वल्लभे।</div><div>मारणं मोहनं देवि ह्युच्चाटनमतः परमं .।।20।।</div><div>स्तम्भनादिक-कर्म्माणि ऋद्धयः सिद्धयोऽपि च।</div><div>त्रिकाल-पठनादस्य सर्वे सिध्यन्त्यसंशयः ।।21।।</div><div>महोत्तमं स्तोत्रमिदं वरानने मयेरितं नित्य मनन्य-बुद्धयः।</div><div>पठन्ति ये भक्ति-युता नरोत्तमा भवेन्न तेषां रिपुभिः पराजयः ।।22।।</div><div> इति श्रीछिन्नमस्तका अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्</div><div><br></div><div>अन्य किसी जानकारी , कुंडली विश्लेषण और समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।</div><div><br></div><div>।।जय श्री राम।।</div><div><br></div><div>7579400465</div><div>8909521616(whats ap)</div><div><br></div><div> हमसे जुड़ने और लगातार नए एवं सरल उपयो के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें:-</div><div>https://www.facebook.com/Astrology-paid-service-552974648056772/</div><div><br></div><div>हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब करें:-</div><div>http://jyotish-tantra.blogspot.com</div></div>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-63130448600785204822021-05-19T21:42:00.001-07:002021-05-19T21:42:51.032-07:00बगुलामुखी जयंती 2021 विशेष<div>सभी मित्रों को बगुलामुखी जयंती की शुभकामनाएं</div><div><br></div><div>बगलामुखी माला मंत्र (लघु)</div><div><br></div><div>ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्र ह्रौं ह्रः बगले चतुर्भुजे मुद्गरशर</div><div>संयुक्ते दक्षिणे जिह्वावज्र संयुक्ते वामे श्रीमहाविद्येपीतवस्त्रे पञ्चमहाप्रेताधिरूढे सिद्ध विद्याधर वन्दिते ब्रह्म विष्णु रुद्रपूजिते आनन्दस्वरूपे विश्वसृष्टिस्वरूपे महाभैरवरुपधारिणि स्वर्ग मृत्यु पाताल स्तम्भिनि वाममार्गाश्रिते श्रीबगले ब्रह्म विष्णु रुद्ररूप निर्मिते षोडशकला परिपूरिते दानवरूप सहस्त्रादित्य शोभिते त्रिवर्णे एहि एहि रविमण्डलमध्याद् अवतर अवतर सान्निध्यं कुरु कुरु मम हृदयँ प्रवेशय प्रवेशय शत्रुमुखं स्तम्भय स्तम्भय अन्यभूत पिशाचां खादय खादय अरिसैन्यं विदारय विदारय परविद्यां परचक्रं छेदय छेदय वीरचक्रं धनुषा सम्भारय सम्भारय त्रिशूलेन छिन्धि छिन्धि पाशेन बन्धय बन्धय भूपतिं वश्यं कुरु कुरु सम्मोहय सम्मोहय विना जाप्येन सिद्धय सिद्धय विना मन्त्रेण सिद्धिं कुरु कुरु सकल दुष्टां घातय घातय मम त्रैलोक्यं वश्यं कुरु कुरु सकल कुल राक्षसान दह दह पच पच मथ मथ हन हन मर्दय मर्दय मारय मारय भक्षय भक्षय मां रक्ष रक्ष विस्फोटकाटिन नाशय नाशय ॐ ह्रीं विषमज्वरं नाशय नाशय विषं निर्विषं कुरु कुरु ॐ ह्रीं बगलामुखि हुम् फट स्वाहा ||</div><div><br></div><div>8909521616</div>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-43624235143122708162021-02-10T11:37:00.001-08:002021-02-10T11:37:15.786-08:00मौनी अमावस्या 2021<p> मौनी अमावस्या 11 फरवरी 2021</p><p>पितृ पूजन-शांति का विशेष योग</p><p><br /></p><p>सामान्यतः माघ अमावस्या को उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा और पूर्वाभाद्रपद में से किसी एक नक्षत्र का योग रहता है। इस वर्ष श्रवण नक्षत्र (प्रातः) और धनिष्ठा नक्षत्र (अपराह्न) का योग है।</p><p><br /></p><p>माघ अमावस्या को श्रवण नक्षत्र, रविवार, व्यतिपात योग में अद्भ्धोंदय योग बनता है जो अतिदुर्लभ है।</p><p><br /></p><p>"माघेमासि आमावस्या यदि अर्कयुता भवेत्। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVWRzp6d-XtLkTYC-8vh77vmps-L547eLSr-b6662k6liJcD6d8YTfXv6JizJozUs8RAkhDYOoOahtDWCc-h-enAPPv6244oE9G2Ul8Dua87BwO0VoVWfl8mK10bYbddo3_N1zVA3E2JZp/s678/images+%25283%2529.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="452" data-original-width="678" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVWRzp6d-XtLkTYC-8vh77vmps-L547eLSr-b6662k6liJcD6d8YTfXv6JizJozUs8RAkhDYOoOahtDWCc-h-enAPPv6244oE9G2Ul8Dua87BwO0VoVWfl8mK10bYbddo3_N1zVA3E2JZp/s320/images+%25283%2529.jpeg" width="320" /></a></div><br /><p></p><p>नक्षत्रे श्रवणे देवि! व्यतीपातो भवेद्यदा। </p><p>अद्द्धोदयः स विज्ञेयः सूर्य्यपर्वशतैःसमः। </p><p>दिवैव योगः शस्तोऽयं न च रात्रौ कदाचन।</p><p> अद्भ्धोदये तु सम्प्राप्ते सर्वं गङ्गासमं जलम्।</p><p> शुद्धात्मानो द्विजाः सर्वे भवेयुर्ब्रह्मसस्मिताः।</p><p> यत् किञ्चित् क्रियते दानम् तद्दानं सेतुसन्निभमिति” निर्णयामृत</p><p><br /></p><p>स्कन्दपुराण, नारदपुराण, पद्मपुराण में अद्धा महात्म्य का विशेष वर्णन मिलता है।</p><p><br /></p><p>जो पुरुष देवताओं एवं पितृगण को तृप्त करना चाहते हैं उनके लिये धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद अथवा शतभिषा नक्षत्र से युक्त अमावस्या अत्यन्त दुर्लभ हैं ऐसा वर्णन विष्णु पुराण, तृतीयांश अध्याय १४ में प्राप्त होता है।</p><p><br /></p><p>वासवाजैकपादः पितृणां तृप्तिमिच्छताम्। </p><p>वारुणे वाप्यमावास्या देवानामपि दुर्लभा।। ९</p><p><br /></p><p>साथ ही माघ अमावस्या को धनिष्ठा नक्षत्र के साथ संयोग के विषय में लिखा है</p><p><br /></p><p>काले धनिष्ठा यदि नाम तस्मिन्भवेत्तु भूपाल तदा पितृभ्यः।</p><p>दत्तं जलान्नं प्रददाति तृप्तिं वर्षायुतं तत्कुलजैर्मनुष्यैः</p><p>।।१६।।</p><p><br /></p><p>यदि माघ मास की अमावस्या का धनिष्ठा नक्षत्र से योग हो जाये तो उस समय अपने कुल में उत्पन्न पुरुष द्वारा दिये हुए अन्न एवं जल से पितृगण दस हजार वर्ष के लिये तृप्त हो जाते है।</p><p><br /></p><p>उपाय :-</p><p><br /></p><p>1. पितरों को जल तर्पण करें</p><p>2. पितृ शांति हेतु पिंडदान करें</p><p>3. ब्राह्मणों/ जरूरतमंदों को भोजन कराएं वस्त्र दें</p><p>4. पीपल में जल चढ़ाएं और दीपक जलाएं</p><p>5. गाय को भोजन दें</p><p>6. पितृ सूक्त- स्तोत्र का पाठ करें</p><p>7. श्रीमद्भागवत पुराण का पाठ करें या कराएं</p><p><br /></p><p>अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान अथवा कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं</p><p><br /></p><p>।।जय श्री राम।।</p><p><br /></p><p>Abhishek B. Pandey</p><p><br /></p><p>8909521616 (what's app)</p><p>7579400465</p><p><br /></p><p>हमसे जुड़ने और लगातार नए एवं सरल उपायो के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें:-</p><p>https://www.facebook.com/Astrology-paid-service-552974648056772/</p><p><br /></p><p>हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब करें:-</p><p>http://jyotish-tantra.blogspot.com</p>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-30149980294231458272021-02-02T13:16:00.002-08:002021-02-02T13:16:34.347-08:00Original Kamiya/Kamakhya sindoor असली कामिया/कामाख्या सिन्दूर<iframe width="480" height="360" src="https://youtube.com/embed/6Y5K-cJSQjc" frameborder="0"></iframe>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-49197926204076658152021-02-02T13:16:00.000-08:002021-02-02T13:16:03.256-08:00Maa Kali satta mantra - 1 माँ काली सट्टा मन्त्र - 1<iframe style="background-image:url(https://i.ytimg.com/vi/1_F5K1WlyK8/hqdefault.jpg)" width="480" height="270" src="https://youtube.com/embed/1_F5K1WlyK8" frameborder="0"></iframe>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-35967474939635946632020-11-20T21:52:00.004-08:002020-11-20T21:52:53.330-08:00Certified Indrakshi Mala इन्द्राक्षी माला<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1YPWW3glbQoTgSHblh6JUYnZC-SLgp7jXF9xHvUWY2Jnf9wgTaCZ79raw7QcFu3ikB62dLZ7jevYZjxFEBK9Hg_vl6pcx8jh78pKV19gc54IcJ0MCp7x9zdIDTLi1-K-SeNuhHZ99XOIv/s1280/FB_IMG_1605900997335.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="640" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj1YPWW3glbQoTgSHblh6JUYnZC-SLgp7jXF9xHvUWY2Jnf9wgTaCZ79raw7QcFu3ikB62dLZ7jevYZjxFEBK9Hg_vl6pcx8jh78pKV19gc54IcJ0MCp7x9zdIDTLi1-K-SeNuhHZ99XOIv/s320/FB_IMG_1605900997335.jpg" /></a></div><br /> <p></p>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-56178558660858066442020-11-14T01:49:00.002-08:002020-11-14T01:49:43.131-08:00Vidya Lakshmi Mala विद्यालक्ष्मी माला<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyP_BMlc2z08kWBkgehwy3Yb-1Q7wHcawmJgar2gw0oOVoiO9Qcmf3hpmFD96x53rUcl0lS7Kkpd5GgTWqGSLcFP7Bmpa0ESZE68C_0-TZgAggEDEhUKT0p-WVF2oykNNqGIva6sfSBvqi/s2048/IMG_20201113_154235.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2048" data-original-width="1310" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyP_BMlc2z08kWBkgehwy3Yb-1Q7wHcawmJgar2gw0oOVoiO9Qcmf3hpmFD96x53rUcl0lS7Kkpd5GgTWqGSLcFP7Bmpa0ESZE68C_0-TZgAggEDEhUKT0p-WVF2oykNNqGIva6sfSBvqi/s320/IMG_20201113_154235.jpg" /></a></div><br /> <p></p>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-39633054627810736462020-11-14T01:48:00.003-08:002020-11-14T01:48:40.892-08:00सिद्धेश्वर माला Siddheshwar Mala<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgk13KTkYfhaPmntstKSDpf0PMIdRxKiKy79FalmNYE7aoB6YURb8ZHxgKcyv7n7yGPXk3hpGeISoguKWa6rzNWuYNKQXa-AE3ETjLoWq-TMxaIGh_DOZ5mKSG4Lp6TYkrmu53mzIMvNRDa/s2048/IMG_20201113_154642.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2048" data-original-width="1165" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgk13KTkYfhaPmntstKSDpf0PMIdRxKiKy79FalmNYE7aoB6YURb8ZHxgKcyv7n7yGPXk3hpGeISoguKWa6rzNWuYNKQXa-AE3ETjLoWq-TMxaIGh_DOZ5mKSG4Lp6TYkrmu53mzIMvNRDa/s320/IMG_20201113_154642.jpg" /></a></div><br /> <p></p>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-3202504049862197832020-10-04T00:37:00.001-07:002020-10-04T00:37:41.111-07:00Indrakshi Mala इन्द्राक्षी माला<p> मित्रों, </p><p>अब एक बार फिर आ रही है इन्द्राक्षी माला।</p><p>जो आपको नवरात्रि में प्राण प्रतिष्ठित और संस्कारित करने के बाद दी जाएगी।</p><p>109 दानों की इस माला में </p><p>1-14 मुखी रूद्राक्ष+ गौरी</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaUBMRlfGjZh1uPoP8jHQ2vJTxhejjuJuJgqPtAbzpkNn_HIkp0k_rVad_IwgOlXj_WPPFEW_y97kCI9O7ljeX77JjCihgvxegr5jsru6qLDEuvuxTdmWjo3iTtE4GshzyhvJtbcDCNaDU/s929/IMG-20170622-WA0025.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="929" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgaUBMRlfGjZh1uPoP8jHQ2vJTxhejjuJuJgqPtAbzpkNn_HIkp0k_rVad_IwgOlXj_WPPFEW_y97kCI9O7ljeX77JjCihgvxegr5jsru6qLDEuvuxTdmWjo3iTtE4GshzyhvJtbcDCNaDU/s320/IMG-20170622-WA0025.jpg" /></a></div><br />शंकर-गणेश रुद्राक्ष+ 5 मुखी दाने होंगे।<p></p><p>ज्ञानीजन कहते हैं कि जिसके पास इन्द्राक्षी हो वो इंद्र के समान हो जाता है।</p><p>1 से 9 मुखी रूद्राक्ष नव ग्रह को अनुकूल करते है।</p><p>10 से 14 मुखी और गणेश गौरीशंकर रुद्राक्ष</p><p>देवी देवताओं की विशेष कृपा दिलवाते हैं।</p><p>शरीर को स्वस्थ, सुंदर और निरोगी बनाते हैं।</p><p>इन्हें धारण करने से भगवान गणेश, महादेव जी, माता पार्वती, माता लक्ष्मी, माता अन्नपूर्णा, हनुमान जी, भगवान दत्तात्रेय, गुरु गोरखनाथ, और कामदेव की भी कृपा प्राप्त होती है।</p><p>इसे धारण करने वाला अभी प्रकार की आध्यात्मिक और भौतिक सुख और शिखर प्राप्त कर लेता है।</p><p>इस बार नेपाली और इंडोनेशिया दोनो प्रकार के दानों की माला उपलब्ध होगी।</p><p>जो सबके बजट के अनुरूप होंगी।</p><p>अधिक जानकारी और माल ऑर्डर करने के लिए निम्न नम्बर पर सिर्फ वाट्सएप पर सम्पर्क करें।</p><p>।।जय श्री राम।।</p><p>8909521616 whatsapp</p><p><br /></p><p><br /></p>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-48216890763962814602020-08-22T04:00:00.001-07:002020-08-22T04:00:54.672-07:00Ganesh chaturthi 2020 गणेश चतुर्थी 2020 विशेष<p> श्री गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं</p><p><br /></p><p>इत्वं विष्णुशिवादितत्वतनवे श्री वक्रतुण्डायहुँ</p><p> काराक्षिप्त समस्त दैत्यप्रतनाव्राताय दीप्य त्विषे। आनन्दैकरसावबोध लहरी विध्वस्त सर्वोर्मये </p><p>सर्वत्र प्रथमानमुग्धमहसे तस्मै परस्मै नमः।।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4U0JLj1DgDc2NL9shtVzlOUyDhHaenH2i8ZOlsPkv0vBUjQBE0Nd1j-tzGmo3JFZGa6ZQJFMNyh9ibv2yuzUCOsGtxQCDFRupcrRAOEgeavtbWnpTmtXEHhTLj2LcezEbMyaRS3ZW9oNf/s630/images+%252811%2529.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="354" data-original-width="630" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4U0JLj1DgDc2NL9shtVzlOUyDhHaenH2i8ZOlsPkv0vBUjQBE0Nd1j-tzGmo3JFZGa6ZQJFMNyh9ibv2yuzUCOsGtxQCDFRupcrRAOEgeavtbWnpTmtXEHhTLj2LcezEbMyaRS3ZW9oNf/s0/images+%252811%2529.jpeg" /></a></div><p></p><p><br /></p><p>अर्थात: इस प्रकार विष्णु, शिव आदि तत्व शरीर वाले, हुँकार मात्र से दैत्य समूह को मार डालने में समर्थ अत्यन्त उद्वीप्त दीप्ति वाले आनन्दैकरसमय ज्ञान लहरी से समस्त उर्मियों को विध्वस्त करने वाले उन परमात्मा वक्रतुण्ड को नमस्कार है। जिनका मनोहर तेज सर्वत्र व्याप्त है।</p><p><br /></p><p>महर्षि वेदव्यास द्वारा भगवान गणपति की स्तुति</p><p><br /></p><p>एकदन्तं महाकायं तप्त कान्चन सन्निभम्।</p><p> लम्बोदरं विशालाक्षं वन्देऽहं गणनायकम्।। </p><p>मुन्जकृष्णाजिन्धरं नागयज्ञोपवीतिनम्। </p><p>बालेन्दुकलिकामौलीं वन्देऽहं गणनायकम्।। </p><p>चित्ररत्नादिचित्राङ्ग चित्रकला विभूषणम्।</p><p> कामरुपधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम्।। </p><p>गजवक्त्रं सुरश्रेष्ठं चारुकर्ण विभूषितम्। </p><p>पाशाङ्कुशधरं देवं वन्देऽहं गणनायकम्।</p><p><br /></p><p>गणेश पुराण अनुसार भगवान ब्रह्मा-विष्णु-महेश द्वारा भगवान गणेश की स्तुति</p><p><br /></p><p>ततोऽतिकरुणाविष्टो लोकाध्यक्षोऽखिलार्थवित्। </p><p>दर्शयामास तान् रुपम् मनोनयननन्दनम्।। </p><p>पादाङ्गुलीनखश्रीभिर्जितरक्ताब्जकेसरम्।</p><p> रक्ताम्बरप्रभावात्तु जितसंध्यार्कमण्डलम्।। </p><p>कटिसूत्रप्रभाजालैर्जितहेमाद्रिशेखरम्। </p><p>खड्गखेटधनुः शक्तिशोभिचारुचतुर्भुजम्।। </p><p>सुना पूर्णिमा चन्द्र जितकान्तिमुखाम्बुजम्। </p><p>अहर्निशं प्रभायुक्तं पद्मचारुसुलोचनम्।। </p><p>अनेकसूर्यशोभाजिन्मुकुटभ्राजिमस्तकम्। </p><p>नानातारांकितव्योमकान्तिजिदुत्तरीयकम्।। </p><p>वराहदंष्ट्राशोभाजिदेकदन्तविराजितम्।</p><p>ऐरावता दिदिक्पालभयकारीसुपुष्करम्।।</p><p><br /></p><p>भगवान गणेश के वाहन</p><p><br /></p><p>श्री गणेश पुराण के क्रीडाखण्ड में उल्लेख है कि -</p><p><br /></p><p>सिंहारुढो दशभुजः कृते नाम्नाः विनायकः।</p><p> तेजोरुपी महाकायः सर्वेषां वरदो वशी।।</p><p>त्रेतायुगे बर्हिरुढः षड्भुजोऽप्र्जुनच्छविः। </p><p>मयूरेश्वरनाम्ना च विख्यातो भुवनत्रे।।</p><p> द्वापरे रक्तवर्णोऽसावाखुरुढश्रचतुर्भुजः। </p><p>गजानन इति ख्यातः पूजितः सुरमानवैः।। </p><p>कलौ धूम्रवर्णोऽसावश्रवारूढो द्विहस्त वां ।</p><p> तु धूम्रकेतुरिति ख्यातो मलेच्छानीकविनाशकृत्।।</p><p><br /></p><p>अर्थात् सतयुग में भगवान गणेश का वाहन सिंह है, वे दस भुजा वाले, तेजःस्वरूप व विशालकाय तथा सबको वर देने वाले हैं, उनका नाम विनायक है। </p><p><br /></p><p>त्रेतायुग में उनका वाहन मयूर है, वे ६ भुजाओं वाले हैं, उनका वर्ण श्वेत है, वे तीनों लोकों में विख्यात मयूरेश्वर नाम वाले हैं।</p><p><br /></p><p> द्वापर युग में उनका वर्ण लाल है, व आखु-मूषक वाहन हैं, उनकी चार भुजाएँ हैं, वे मनुष्यों तथा देवों द्वारा सर्वपूज्य हैं, उनका नाम गजानन हैं और </p><p><br /></p><p>कलयुग में उनका धर्म वर्ण है, वे घोड़े पर आरुढ़ रहते हैं, उनके दो हाथ हैं, उनका नाम धूम्रकेतु है, वे म्लेच्छों का विनाश करने वाले हैं।</p><p>अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवं कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।</p><p>।।जय श्री राम।।</p><p>अभिषेक पाण्डेय</p><p>8909521616(whatsapp)</p><p>7579400465</p>Abhishek B. Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/06452728103546974678noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5757438885260158630.post-41352909080789677172020-05-25T21:57:00.000-07:002020-05-25T21:57:50.613-07:00बड़ा मंगल 2020<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बड़े मंगल की शुभकामनाएं<br />
<br />
मनोकामना पूर्ति मन्त्र<br />
( रक्षाहेतु, रोग, ऋण, शत्रु, भय निवारण हेतु)<br />
<br />
महाबलाय वीराय चिरंजिवीन उद्दते।<br />
हारिणे वज्र देहायचोलंग्घितमहाव्यये।।<br />
ऊँ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकराय रामदूताय स्वाहा<br />
ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् स्वाहा।<br />
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श्री विष्णु स्वरूप कूर्म एवं बुद्ध जयंती तथा<br />
शिव स्वरूप बाबा गोरखनाथ जयंती की शुभकामनाएं<br />
<br />
रोग एवं तंत्र मंत्र निवारण मन्त्र<br />
<br />
ॐ वज्र में कोठा, वज्र में ताला, वज्र में बंध्या दस्ते द्वारा, तहां वज्र का लग्या किवाड़ा, वज्र में चौखट, वज्र में कील, जहां से आय, तहां ही जावे, जाने भेजा, जांकू खाए, हमको फेर न सूरत दिखाए, हाथ कूँ, नाक कूँ, सिर कूँ, पीठ कूँ, कमर कूँ, छाती कूँ जो जोखो पहुंचाए, तो गुरु गोरखनाथ की आज्ञा फुरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा<br />
<br />
कूर्म जयंती महत्व<br />
<br />
जिस दिन भगवान विष्णु जी ने कूर्म का रूप धारण किया था उसी तिथि को कूर्म जयंती के रूप में मनाया जाता है. शास्त्रों नें इस दिन की बहुत महत्ता मानी गई है. इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू किया जाना बेहद शुभ माना जाता है, क्योंकि योगमाया स्वरूपा बगलामुखी स्तम्भित शक्ति के साथ कूर्म में निवास करती है. कूर्म जयंती के अवसर पर वास्तु दोष दूर किए ज सकते हैं, नया घर भूमि आदि के पूजन के लिए यह सबसे उत्तम समय होता है तथा बुरे वास्तु को शुभ में बदला जा सकता है.<br />
<br />
श्री कूर्म भगवान मन्त्र<br />
<br />
ॐ श्रीं कूर्माय नम:।<br />
<br />
श्री कूर्म भगवान के कुछ सरल प्रयोग<br />
<br />
1) महावास्तु दोष निवारक मंत्र<br />
दुर्भाग्य बश यदि आपका पूरा मकान निवास स्थान या फ्लेट ही वास्तु विरुद्ध बन गया हो और आप किसी भी हालत में उसमें सुधार नहीं कर सकते<br />
तो केवल महावास्तु मंत्र का जाप एवं कूर्म देवता की पूजा करनी चाहिए जिसका विधान है कि<br />
<br />
सबसे पहले लाल चन्दन और केसर कुमकुम मिला कर एक पवित्र स्थान पर कछुए की आकृति बना लेँ<br />
कछुए के मुख की ओर सूर्य तथा पूछ की ओर चन्द्रमा बना लेँ<br />
सुबिधानुसार आप धातु का बना कछुआ भी पूजन हेतु प्रयुक्त कर सकते हैं<br />
फिर धूप दीप फल ओर गंगाजल या समुद्र का जल अर्पित करें<br />
भूमि पर ही आसन बिछ कर रुद्राक्ष माला से 11 माला मंत्र का जाप करें।<br />
<br />
मंत्र- ॐ ह्रीं कूर्माय वास्तु पुरुषाय स्वाहा<br />
<br />
जाप पूरा होने के बाद घर अथवा निवास स्थान के चारों ओर एक एक कछुए का छोटा निशान बना दें<br />
ऐसा करने से पूरी तरह वास्तु दोष से ग्रसित घर भी दोष मुक्त हो जाता है दिशाएं नकारात्मक प्रभाव नहीं दे पाती उर्जा परिवर्तित हो जाती है<br />
<br />
2)वास्तु दोष निवारक महायंत्र<br />
यदि आप ऐसी हालत में भी नहीं हैं कि पूजा पाठ या मंत्र का जाप कर सकें और आप नकारात्मक वास्तु के कारण बेहद परेशान है<br />
घर दूकान या आफिस को बिना तोड़े फोड़े सुधारना चाहते हैं तो उसका दिव्य उपाय है महायंत्र<br />
वास्तु का तीब्र प्रभावी यन्त्र<br />
----------------------------------<br />
121 177 944<br />
----------------------------------<br />
533 291 311<br />
----------------------------------<br />
657 111 312<br />
----------------------------------<br />
यन्त्र को आप सादे कागज़ भोजपत्र या ताम्बे चाँदी अष्टधातु पर बनवा सकते हैं<br />
यन्त्र के बन जाने पर यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए<br />
प्राण प्रतिष्ठा के लिए पुष्प धूप दीप अक्षत आदि ले कर यन्त्र को अर्पित करें<br />
पंचामृत से सनान कराते हुये या छींटे देते हुये 21 बार मंत्र का उच्चारण करें<br />
<br />
मंत्र-ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नम:<br />
<br />
अब पीले रंग या भगवे रंग के वस्त्र में लपेट कर इस यन्त्र को घर दूकान या कार्यालय में स्थापित कर दीजिये<br />
<br />
पुष्प माला अवश्य अर्पित करें<br />
इस प्रयोग से शीघ्र ही वास्तु दोष हट जाएगा<br />
<br />
3) तनाव मुक्ति हेतु<br />
<br />
चांदी के गिलास बर्तन या पात्र पर कछुए का चिन्ह बना कर भोजन करने व पानी पीने से भारी से भारी तनाब नष्ट होता है ।<br />
<br />
4) उत्तम स्वास्थ्य हेतु<br />
<br />
चार पायी बेड अथवा शयन कक्ष में धातु का कूर्म अर्थात कछुआ रखने से गहरी और सुखद निद्रा आती है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी होती है ।<br />
<br />
रसोई घर में कूर्म की स्थापना करने से वहां पकने वाला भोजन रोगमुक्ति के गुण लिए भक्त को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाता है ।<br />
<br />
5) कूर्म श्री यन्त्र<br />
<br />
कछुवे की पीठ पर श्री यन्त्र समतल अथवा पिरामिड आकार में प्रायः देखने को मिल जाता है।<br />
आध्यात्मिक दृष्टि से जहां ये काम, क्रोध, लोभ, मोह का शमन कर कुंडली जागरण द्वारा मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है। वहीं दूसरी ओर भौतिक सुखों की छह रखने वालों के लिए ये स्थिर लक्ष्मी, सम्पदा, सौख्य और विजय देने का भी प्रतीक माना जाता है।<br />
<br />
6) नए भवन निर्माण में समृद्धि हेतु<br />
<br />
यदि नया भवन बना रहे हैं तो आधार में चाँदी का कछुआ ड़ाल देने से घर में रहने वाला परिवार खूब फलता-फूलता है ।<br />
<br />
7) शिक्षा में स्थिर चित्त हेतु<br />
<br />
बच्चों को विद्या लाभ व राजकीय लाभ मिले इसके लिए उनसे कूर्म की उपासना करवानी चाहिए तथा मिटटी के कछुए उनके कक्ष में स्थापित करें ।<br />
<br />
8) विवाद विजय में<br />
<br />
यदि आपका घर किसी विवाद में पड़ गया हो या घर का संपत्ति का विवाद कोर्ट कचहरी तक पहुँच गया हो तो लोहे का कूर्म बना कर शनि मंदिर में दान करना चाहिए ।<br />
<br />
9) शत्रु मुक्ति<br />
<br />
घर की छत में कूर्म की स्थापना से शत्रु नाश होता है उनपर विजय मिलती है।<br />
<br />
10)भूमि दोष नाशक मंत्र उपाय<br />
<br />
यदि आपका घर या जमीन ऐसी जगह है जहाँ भूमि में ही दोष है<br />
आपका घर किसी श्मशान भूमि ,कब्रगाह ,दुर्घटना स्थल या युद्ध भूमि पर बना है या कोई अशुभ साया या जमीनी अशुभ तत्व स्थान में समाहित हों<br />
जिस कारण सदा भय कलह हानि रोग तानाब बना रहता हो तो जमीन में मिटटी के कूर्म की स्थापना करनी चाहिए<br />
एक मिटटी का कछुआ ले कर उसका पूजन करें<br />
पूजन के लिए घर के ब्रह्मस्थल में भूमि पर लाल वस्त्र बिछा लेँ<br />
फिर गंगाजल से स्नान करवा कर कुमकुम से तिलक करें<br />
पंचोपचार पूजा करें अर्थात धूप दीप जल वस्त्र फल अर्पित करें चने का प्रसाद बनाये व बांटे<br />
<br />
7 माला मंत्र जाप पूर्व दिशा की और मुख रख कर करें<br />
<br />
मंत्र-ॐ आधार पुरुषाय जाग्रय-जाग्रय तर्पयामि स्वाहा।<br />
<br />
साथ ही एक माला पूरी होने पर एक बार कछुए पर पानी छिड़कें<br />
<br />
संध्या के समय भूमि में तीन फिट गढ्ढा कर गाड़ दें<br />
समस्त भूमि दोष दूर होंगे<br />
<br />
11) अदृश्य शक्ति नाशक प्रयोग<br />
<br />
यदि आपको लगता है कि आपके घर में कोई अदृश्य शक्ति है ,किसी तरह की कोई बाधा है तो कूर्म की पूजा कर उसे मौली बाँध दें ,लाल कपडे में बंद कर धूप दीप करें , निम्न मन्त्र का 11 माला जप करें<br />
<br />
मंत्र-ॐ हां ग्रीं कूर्मासने बाधाम नाशय नाशय ।<br />
<br />
रात के समय इसे द्वार पर रखे तथा सुबह नदी में प्रवाहित कर दें<br />
इससे घर में शीघ्र शांति हो जायेगी।<br />
<br />
12)भूमि भवन सुख दायक प्रयोग<br />
<br />
यदि आपको लगता है कि आपके पास ही घर क्यों नहीं है? आपके पास ही संपत्ति क्यों नहीं है?<br />
क्या इतनी बड़ी दुनिया में आपको थोड़ी सी जगह मिलेगी भी या नहीं ? तो इसके लिए केवल कूर्म स्वरुप विष्णु जी की पूजा कीजिये<br />
<br />
विष्णु जी की प्रतिमा के सामने कूर्म की प्रतिमा रखें या कागज पर बना कर स्थापित करें<br />
इस कछुए के नीचे नौ बार नौ का अंक लिख दें<br />
भगवान् को पीले फल व पीले वस्त्र चढ़ाएं<br />
तुलसी दल कूर्म पर रखें और पुष्प अर्पित कर भगवान् की आरती करें<br />
आरती के बाद प्रसाद बांटे व कूर्म को ले जा कर किसी अलमारी आदि में छुपा कर रख लेँ<br />
इस प्रयोग से भूमि संपत्ति भवन के योग रहित जातक को भी इनका सुख प्राप्त होता है।<br />
<br />
13) वास्तु स्थापन प्रयोग<br />
यदि आपका दरवाजा खिड़की कमरा रसोई घर सही दिशा में नहीं हैं तो उनको तोड़ने की बजाये<br />
उनपर कछुए का निशान इस तरह से बनाये कि कछुए का मुख नीचे जमीन की ओर हो और पूंछ आकाश की ओर<br />
ये प्रयोग शाम को गोधुली की बेला में करना चाहिए<br />
कछुए को रक्त चन्दन ,कुमकुम ,केसर के मिश्रण से बनी स्याही से बनाएं।<br />
कछुए का निर्माण करते समय मानसिक मंत्र का जाप करते रहें<br />
मंत्र-ॐ कूर्मासनाय नम:<br />
कछुया बन जाने पर धूप दीप कर गंगा जल के छीटे दें<br />
और धूप दिखाएँ।<br />
इस तरह प्रयोग करने से गलत दिशा में बने द्वार खिड़की कक्ष आदि को तोड़ने की आवश्यकता नहीं होती ऐसा विद्वानों का कथन है।<br />
<br />
14) व्यापार वृद्धि हेतु<br />
<br />
अष्टधातु या चाँदी से निर्मित कूर्म विधिवत पूजन कर अपने कैश काउंटर या मेज पर इस प्रकार रखें की उसका मुख बाहर प्रवेश द्वार की ओर रहे। आने जाने वाले सभी लोगों की नज़र उस पर पड़े।<br />
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श्री नरसिंह एवं माँ छिन्नमस्ता जयंती की शुभकामनाएं<br />
<br />
छिन्नमस्ता गायत्री मंत्र:-<br />
<br />
ॐ वैरोचनीयै च विदमहे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥<br />
<br />
छिन्नमस्ता शाबर मन्त्र:-<br />
<br />
सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया । काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या । पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी । देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी । चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी । छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे । काल ना खाये ।<br />
<br />
मंत्र श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्रवैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा।<br />
<br />
****श्री नरसिंह****<br />
<br />
नरसिंह गायत्री:-<br />
<br />
ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्ण दंष्ट्राय धीमहि |तन्नो नरसिंह प्रचोदयात ||<br />
<br />
नृसिंह शाबर मन्त्र :-<br />
<br />
ॐ नमो भगवते नारसिंहाय -घोर रौद्र महिषासुर रूपाय<br />
,त्रेलोक्यडम्बराय रोद्र क्षेत्रपालाय ह्रों ह्रों<br />
क्री क्री क्री ताडय<br />
ताडय मोहे मोहे द्रम्भी द्रम्भी<br />
क्षोभय क्षोभय आभि आभि साधय साधय ह्रीं<br />
हृदये आं शक्तये प्रीतिं ललाटे बन्धय बन्धय<br />
ह्रीं हृदये स्तम्भय स्तम्भय किलि किलि ईम<br />
ह्रीं डाकिनिं प्रच्छादय २ शाकिनिं प्रच्छादय २ भूतं<br />
प्रच्छादय २ प्रेतं प्रच्छादय २ ब्रंहंराक्षसं सर्व योनिम<br />
प्रच्छादय २ राक्षसं प्रच्छादय २ सिन्हिनी पुत्रं<br />
प्रच्छादय २ अप्रभूति अदूरि स्वाहा एते डाकिनी<br />
ग्रहं साधय साधय शाकिनी ग्रहं साधय साधय<br />
अनेन मन्त्रेन डाकिनी शाकिनी भूत<br />
प्रेत पिशाचादि एकाहिक द्वयाहिक् त्र्याहिक चाथुर्थिक पञ्च<br />
वातिक पैत्तिक श्लेष्मिक संनिपात केशरि डाकिनी<br />
ग्रहादि मुञ्च मुञ्च स्वाहा मेरी भक्ति गुरु<br />
की शक्ति स्फ़ुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा ll<br />
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