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Saturday 21 May 2016

कूर्म जयंती kurma jayanti vastu tips

 श्री
कूर्म भगवान : माँ बगलाशक्ति के विष्णु अवतार

भगवान विष्णु के कूर्म अवतार रूप में वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन कूर्म जयंती का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष कूर्म जयंती 20 मई 2016 के दिन मनाई जाएगी. हिंदु धार्मिक मान्यता अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने कूर्म(कछुए) का अवतार लिया था और मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण करने समुद्र मंथन में सहायता की थी.

भगवान विष्णु के सभी अवतार दस महाविद्या की शक्तियों से युत् रहे।

आगम तन्त्र अनुसार

श्री आद्या का पुरूषरूप ही श्री कृष्ण है। वह स्वयं बताती हैं-

‘ममैव पौरूषं रूपं-गोपिकाजन मोहनम्’

(गोपियों का मनमोहने वाला मेरा पुरूषरूप श्री कृष्ण है)

‘‘कदाचिदाद्या ललिता- पुंरूपा कृष्णविग्रहा’। कदाचिदाद्या श्री तारा-पुंरूपा राम विग्रहा।’’

(कभी त्रिपुरसुन्दरी श्री कृष्ण का रूप धारण कर लेती हैं तथा कभी तारा श्री राम का रूप धारण कर लेती हैं)

श्री काली एवं श्री कृष्ण में मूलतः कोई भेद नहीं है। श्री कृष्ण के अधिकांश मंत्रों में ‘कामबीज’ की ही प्रधानता है। शक्ति-ग्रन्थों में श्री विष्णु के दश अवतारों की दश महाविद्याओं से एकरूपता सिद्ध की गई है, यथा -

‘‘कृष्णस्तु कालिका साक्षात्-राम मूर्तिश्च तारिणी

............................................................................

धूमावती वामनस्यात्-कूर्मस्तु वगुलामुखी’’।

अर्थात् कालिका ही पुरूषरूप में श्री कृष्ण हैं।
तारा-राम हैं। भुवनेश्वरी-वराहरूप हैं।

त्रिपुरभैरवी-नृसिंह, धूमावती-वामन रूप,

छिन्नमस्ता-परशुराम, लक्ष्मी-मत्स्य,

वगुलामुखी-कूर्म, मातंगी-बौद्ध तथा

त्रिपुरसुन्दरी-कल्कि रूप में है।

जब समुद्रमंथन के समय मन्दरांचल पर्वत के भार से धरती धंसने लगी और पर्वत समुद्र में डूबने लगा तब स्तम्भन कारिणी माँ बगलामुखी की शक्ति से भगवान विष्णु ने कच्छप रूप धर पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया और समुद्रमंथन हो पाया।

कूर्म अवतार कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस अवतार में भगवान के कच्छप रूप के दर्शन होते हैं. कूर्म अवतार का संबंध समुद्र मंथन के प्रायोजन से ही हो पाया. धर्म ग्रंथों में निहित कथा कहती है कि दैत्यराज बलि के शासन में असुर दैत्य व दानव बहुत शक्तिशाली हो गए थे और उन्हें दैत्यगुरु शुक्राचार्य की महाशक्ति भी प्राप्त थी.

देवता उनका कुछ भी अहित न कर सके क्योंकि एक बार अपने घमंड में चूर देवराज इन्द्र को किसी कारण से नाराज़ हो कर महर्षि दुर्वासा ने श्राप देकर श्रीहीन कर दिया था जिस कारण इन्द्र शक्तिहीन हो गये थे. इस अवसर का लाभ उठाकर दैत्यराज बलि नें तीनों लोकों पर अपना राज्य स्थापित कर लिया और इन्द्र सहित सभी देवतागण भटकने लगे.

सभी देवता ब्रह्मा जी के पास जाकर प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें इस संकट से बाहर निकालें. तब ब्रह्मा जी संकट से मुक्ति के लिए देवताओं समेत भगवान विष्णु जी के समक्ष पहुँचते हैं और भगवान विष्णु को अपनी विपदा सुनाते हैं. देवगणों की विपदा सुनकर भगवान विष्णु उन्हें दैत्यों से मिलकर समुद्र मंथन करने के कि सलाह देते हैं जिससे क्षीर सागर को मथ कर देवता उसमें से अमृत निकाल कर उस अमृत का पान कर लें और अमृत पीकर वह अमर हो जाएंगे तथा उनमें दैत्यों को मारने का सामर्थ्य आ जायेगा.

भगवान विष्णु के आदेश अनुसार इंद्र दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए जाते हैं. समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया जाता है. मंदराचल को उखाड़ उसे समुद्र की ओर ले चले तथा जब मन्दराचल पर्वत को समुद्र में डाला जाता है तो वह डूबने लगता है.

तब भगवान श्री विष्णु कूर्म अर्थात कच्छप अवतार लेकर समुद्र में जाकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रख लेते हैं. समस्त लोकपाल दिक्पाल उनकी कूर्म आकृति में स्थित हो जाते हैं और भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा तथा इस प्रकार समुद्र मंथन का संपन्न हो सका.

कूर्म जयंती महत्व

जिस दिन भगवान विष्णु जी ने कूर्म का रूप धारण किया था उसी तिथि को कूर्म जयंती के रूप में मनाया जाता है. शास्त्रों नें इस दिन की बहुत महत्ता मानी गई है. इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू किया जाना बेहद शुभ माना जाता है, क्योंकि योगमाया स्वरूपा बगलामुखी स्तम्भित शक्ति के साथ कूर्म में निवास करती है. कूर्म जयंती के अवसर पर वास्तु दोष दूर किए ज सकते हैं, नया घर भूमि आदि के पूजन के लिए यह सबसे उत्तम समय होता है तथा बुरे वास्तु को शुभ में बदला जा सकता है.

श्री कूर्म भगवान मन्त्र

ॐ श्रीं कूर्माय नम:।


श्री कूर्म भगवान के कुछ सरल प्रयोग

1) महावास्तु दोष निवारक मंत्र
दुर्भाग्य बश यदि आपका पूरा मकान निवास स्थान या फ्लेट ही वास्तु विरुद्ध बन गया हो और आप किसी भी हालत में उसमें सुधार नहीं कर सकते
तो केवल महावास्तु मंत्र का जाप एवं कूर्म देवता की पूजा करनी चाहिए जिसका विधान है कि

सबसे पहले लाल चन्दन और केसर कुमकुम मिला कर एक पवित्र स्थान पर कछुए की आकृति बना लेँ
कछुए के मुख की ओर सूर्य तथा पूछ की ओर चन्द्रमा बना लेँ
सुबिधानुसार आप धातु का बना कछुआ भी पूजन हेतु प्रयुक्त कर सकते हैं
फिर धूप दीप फल ओर गंगाजल या समुद्र का जल अर्पित करें
भूमि पर ही आसन बिछ कर रुद्राक्ष माला से 11 माला मंत्र का जाप करें।

मंत्र- ॐ ह्रीं कूर्माय वास्तु पुरुषाय स्वाहा

जाप पूरा होने के बाद घर अथवा निवास स्थान के चारों ओर एक एक कछुए का छोटा निशान बना दें
ऐसा करने से पूरी तरह वास्तु दोष से ग्रसित घर भी दोष मुक्त हो जाता है दिशाएं नकारात्मक प्रभाव नहीं दे पाती उर्जा परिवर्तित हो जाती है

2)वास्तु दोष निवारक महायंत्र
यदि आप ऐसी हालत में भी नहीं हैं कि पूजा पाठ या मंत्र का जाप कर सकें और आप नकारात्मक वास्तु के कारण बेहद परेशान है
घर दूकान या आफिस को बिना तोड़े फोड़े सुधारना चाहते हैं तो उसका दिव्य उपाय है महायंत्र
वास्तु का तीब्र प्रभावी यन्त्र
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121 177 944
----------------------------------
533 291 311
----------------------------------
657 111 312
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यन्त्र को आप सादे कागज़ भोजपत्र या ताम्बे चाँदी अष्टधातु पर बनवा सकते हैं
यन्त्र के बन जाने पर यन्त्र की प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए
प्राण प्रतिष्ठा के लिए पुष्प धूप दीप अक्षत आदि ले कर यन्त्र को अर्पित करें
पंचामृत से सनान कराते हुये या छींटे देते हुये 21 बार मंत्र का उच्चारण करें

मंत्र-ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नम:

अब पीले रंग या भगवे रंग के वस्त्र में लपेट कर इस यन्त्र को घर दूकान या कार्यालय में स्थापित कर दीजिये

पुष्प माला अवश्य अर्पित करें
इस प्रयोग से शीघ्र ही वास्तु दोष हट जाएगा

3) तनाव मुक्ति हेतु

चांदी के गिलास बर्तन या पात्र पर कछुए का चिन्ह बना कर भोजन करने व पानी पीने से भारी से भारी तनाब नष्ट होता है ।

4) उत्तम स्वास्थ्य हेतु

चार पायी बेड अथवा शयन कक्ष में धातु का कूर्म अर्थात कछुआ रखने से गहरी और सुखद निद्रा आती है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी होती है ।

रसोई घर में कूर्म की स्थापना करने से वहां पकने वाला भोजन रोगमुक्ति के गुण लिए भक्त को स्वास्थ्य लाभ पहुंचाता है ।

5) कूर्म श्री यन्त्र

कछुवे की पीठ पर श्री यन्त्र समतल अथवा पिरामिड आकार में प्रायः देखने को मिल जाता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से जहां ये काम, क्रोध, लोभ, मोह का शमन कर कुंडली जागरण द्वारा मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है। वहीं दूसरी ओर भौतिक सुखों की छह रखने वालों के लिए ये स्थिर लक्ष्मी, सम्पदा, सौख्य और विजय देने का भी प्रतीक माना जाता है।

6) नए भवन निर्माण में समृद्धि हेतु

यदि नया भवन बना रहे हैं तो आधार में चाँदी का कछुआ ड़ाल देने से घर में रहने वाला परिवार खूब फलता-फूलता है ।

7) शिक्षा में स्थिर चित्त हेतु

बच्चों को विद्या लाभ व राजकीय लाभ मिले इसके लिए उनसे कूर्म की उपासना करवानी चाहिए तथा मिटटी के कछुए उनके कक्ष में स्थापित करें ।

8) विवाद विजय में

यदि आपका घर किसी विवाद में पड़ गया हो या घर का संपत्ति का विवाद कोर्ट कचहरी तक पहुँच गया हो तो लोहे का कूर्म बना कर शनि मंदिर में दान करना चाहिए ।

9) शत्रु मुक्ति

घर की छत में कूर्म की स्थापना से शत्रु नाश होता है उनपर विजय मिलती है।

10)भूमि दोष नाशक मंत्र उपाय

यदि आपका घर या जमीन ऐसी जगह है जहाँ भूमि में ही दोष है
आपका घर किसी श्मशान भूमि ,कब्रगाह ,दुर्घटना स्थल या युद्ध भूमि पर बना है या कोई अशुभ साया या जमीनी अशुभ तत्व स्थान में समाहित हों
जिस कारण सदा भय कलह हानि रोग तानाब बना रहता हो तो जमीन में मिटटी के कूर्म की स्थापना करनी चाहिए
एक मिटटी का कछुआ ले कर उसका पूजन करें
पूजन के लिए घर के ब्रह्मस्थल में भूमि पर लाल वस्त्र बिछा लेँ
फिर गंगाजल से स्नान करवा कर कुमकुम से तिलक करें
पंचोपचार पूजा करें अर्थात धूप दीप जल वस्त्र फल अर्पित करें चने का प्रसाद बनाये व बांटे

7 माला मंत्र जाप पूर्व दिशा की और मुख रख कर करें

मंत्र-ॐ आधार पुरुषाय जाग्रय-जाग्रय तर्पयामि स्वाहा।

साथ ही एक माला पूरी होने पर एक बार कछुए पर पानी छिड़कें

संध्या के समय भूमि में तीन फिट गढ्ढा कर गाड़ दें
समस्त भूमि दोष दूर होंगे

11) अदृश्य शक्ति नाशक प्रयोग

यदि आपको लगता है कि आपके घर में कोई अदृश्य शक्ति है ,किसी तरह की कोई बाधा है तो कूर्म की पूजा कर उसे मौली बाँध दें ,लाल कपडे में बंद कर धूप दीप करें , निम्न मन्त्र का 11 माला जप करें

मंत्र-ॐ हां ग्रीं कूर्मासने बाधाम नाशय नाशय ।

रात के समय इसे द्वार पर रखे तथा सुबह नदी में प्रवाहित कर दें
इससे घर में शीघ्र शांति हो जायेगी।

12)भूमि भवन सुख दायक प्रयोग

यदि आपको लगता है कि आपके पास ही घर क्यों नहीं है? आपके पास ही संपत्ति क्यों नहीं है?
क्या इतनी बड़ी दुनिया में आपको थोड़ी सी जगह मिलेगी भी या नहीं ? तो इसके लिए केवल कूर्म स्वरुप विष्णु जी की पूजा कीजिये

विष्णु जी की प्रतिमा के सामने कूर्म की प्रतिमा रखें या कागज पर बना कर स्थापित करें
इस कछुए के नीचे नौ बार नौ का अंक लिख दें
भगवान् को पीले फल व पीले वस्त्र चढ़ाएं
तुलसी दल कूर्म पर रखें और पुष्प अर्पित कर भगवान् की आरती करें
आरती के बाद प्रसाद बांटे व कूर्म को ले जा कर किसी अलमारी आदि में छुपा कर रख लेँ
इस प्रयोग से भूमि संपत्ति भवन के योग रहित जातक को भी इनका सुख प्राप्त होता है।

13) वास्तु स्थापन प्रयोग
यदि आपका दरवाजा खिड़की कमरा रसोई घर सही दिशा में नहीं हैं तो उनको तोड़ने की बजाये
उनपर कछुए का निशान इस तरह से बनाये कि कछुए का मुख नीचे जमीन की ओर हो और पूंछ आकाश की ओर
ये प्रयोग शाम को गोधुली की बेला में करना चाहिए
कछुए को रक्त चन्दन ,कुमकुम ,केसर के मिश्रण से बनी स्याही से बनाएं।
कछुए का निर्माण करते समय मानसिक मंत्र का जाप करते रहें
मंत्र-ॐ कूर्मासनाय नम:
कछुया बन जाने पर धूप दीप कर गंगा जल के छीटे दें
और धूप दिखाएँ।
इस तरह प्रयोग करने से गलत दिशा में बने द्वार खिड़की कक्ष आदि को तोड़ने की आवश्यकता नहीं होती ऐसा विद्वानों का कथन है।

14) व्यापार वृद्धि हेतु

अष्टधातु या चाँदी से निर्मित कूर्म विधिवत पूजन कर अपने कैश काउंटर या मेज पर इस प्रकार रखें की उसका मुख बाहर प्रवेश द्वार की ओर रहे। आने जाने वाले सभी लोगों की नज़र उस पर पड़े।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवं कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
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Friday 20 May 2016

नरसिंह जयंती 2016 नरसिंह अष्टोत्तरशतनाम एवम् अष्टकम Narsinh jayanti 2016 108 names & ashtakam

*_॥श्रीनृसिंहाष्टोत्तरशतनामावली ॥_*
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          ॥ श्रीः ॥

ॐ श्रीनृसिंहाय नमः ।
ॐ महासिंहाय नमः ।
ॐ दिव्यसिंहाय नमः ।
ॐ महाबलाय नमः ।
ॐ उग्रसिंहाय नमः ।
ॐ महादेवाय नमः ।
ॐ उपेन्द्राय नमः ।
ॐ अग्निलोचनाय नमः ।
ॐ रौद्राय नमः ।
ॐ शौरये नमः । १०।
ॐ महावीराय नमः ।
ॐ सुविक्रमपराक्रमाय नमः ।
ॐ हरिकोलाहलाय नमः ।
ॐ चक्रिणे नमः ।
ॐ विजयाय नमः ।
ॐ अजयाय नमः ।
ॐ अव्ययाय नमः ।
ॐ दैत्यान्तकाय नमः ।
ॐ परब्रह्मणे नमः ।
ॐ अघोराय नमः । २०।
ॐ घोरविक्रमाय नमः ।
ॐ ज्वालामुखाय नमः ।
ॐ ज्वालमालिने नमः ।
ॐ महाज्वालाय नमः ।
ॐ महाप्रभवे नमः ।
ॐ निटिलाक्षाय नमः ।
ॐ सहस्राक्षाय नमः ।
ॐ दुर्निरीक्ष्याय नमः ।
ॐ प्रतापनाय नमः ।
ॐ महादंष्ट्राय नमः । ३०।
ॐ प्राज्ञाय नमः ।
ॐ हिरण्यक निषूदनाय नमः ।
ॐ चण्डकोपिने नमः ।
ॐ सुरारिघ्नाय नमः ।
ॐ सदार्तिघ्नाय नमः ।
ॐ सदाशिवाय नमः ।
ॐ गुणभद्राय नमः ।
ॐ महाभद्राय नमः ।
ॐ बलभद्राय नमः ।
ॐ सुभद्रकाय नमः । ४०।
ॐ करालाय नमः ।
ॐ विकरालाय नमः ।
ॐ गतायुषे नमः ।
ॐ सर्वकर्तृकाय नमः ।
ॐ भैरवाडम्बराय नमः ।
ॐ दिव्याय नमः ।
ॐ अगम्याय नमः ।
ॐ सर्वशत्रुजिते नमः ।
ॐ अमोघास्त्राय नमः ।
ॐ शस्त्रधराय नमः । ५०।
ॐ सव्यजूटाय नमः ।
ॐ सुरेश्वराय नमः ।
ॐ सहस्रबाहवे नमः ।
ॐ वज्रनखाय नमः ।
ॐ सर्वसिद्धये नमः ।
ॐ जनार्दनाय नमः ।
ॐ अनन्ताय नमः ।
ॐ भगवते नमः ।
ॐ स्थूलाय नमः ।
ॐ अगम्याय नमः । ६०।
ॐ परावराय नमः ।
ॐ सर्वमन्त्रैकरूपाय नमः ।
ॐ सर्वयन्त्रविदारणाय नमः ।
ॐ अव्ययाय नमः ।
ॐ परमानन्दाय नमः ।
ॐ कालजिते नमः ।
ॐ खगवाहनाय नमः ।
ॐ भक्तातिवत्सलाय नमः ।
ॐ अव्यक्ताय नमः ।
ॐ सुव्यक्ताय नमः । ७०।
ॐ सुलभाय नमः ।
ॐ शुचये नमः ।
ॐ लोकैकनायकाय नमः ।
ॐ सर्वाय नमः ।
ॐ शरणागतवत्सलाय नमः ।
ॐ धीराय नमः ।
ॐ धराय नमः ।
ॐ सर्वज्ञाय नमः ।
ॐ भीमाय नमः ।
ॐ भीमपराक्रमाय नमः । ८०।
ॐ देवप्रियाय नमः ।
ॐ नुताय नमः ।
ॐ पूज्याय नमः ।
ॐ भवहृते नमः ।
ॐ परमेश्वराय नमः ।
ॐ श्रीवत्सवक्षसे नमः ।
ॐ श्रीवासाय नमः ।
ॐ विभवे नमः ।
ॐ सङ्कर्षणाय नमः ।
ॐ प्रभवे नमः । ९०।
ॐ त्रिविक्रमाय नमः ।
ॐ त्रिलोकात्मने नमः ।
ॐ कालाय नमः ।
ॐ सर्वेश्वराय नमः ।
ॐ विश्वम्भराय नमः । ९५
ॐ स्थिराभाय नमः ।
ॐ अच्युताय नमः ।
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः ।
ॐ अधोक्षजाय नमः ।
ॐ अक्षयाय नमः । १००।
ॐ सेव्याय नमः ।
ॐ वनमालिने नमः ।
ॐ प्रकम्पनाय नमः ।
ॐ गुरवे नमः ।
ॐ लोकगुरवेनमः । १०५।
ॐ स्रष्ट्रे नमः ।
ॐ परस्मैज्योतिषे नमः ।
ॐ परायणाय नमः ।

*_॥ श्री नृसिंहाष्टोत्तरशतनामावलिः संपूर्णा ॥_*


*॥श्रीनृसिंहाष्टकम् ॥*
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श्रीमदकलङ्क परिपूर्ण! शशिकोटि-
श्रीधर! मनोहर! सटापटल कान्त!।
पालय कृपालय! भवांबुधि-
निमग्नंदैत्यवरकाल! नरसिंह! नरसिंह! ॥ १॥

पादकमलावनत पातकि-जनानां
     पातकदवानल! पतत्रिवर-केतो!।
भावन! परायण! भवार्तिहरया मां
     पाहि कृपयैव नरसिंह! नरसिंह! ॥ २॥

तुङ्गनख-पङ्क्ति-दलितासुर-वरासृक्
     पङ्क-नवकुङ्कुम-विपङ्किल-महोरः ।
पण्डितनिधान-कमलालय नमस्ते
     पङ्कजनिषण्ण! नरसिंह! नरसिंह! ॥ ३॥

मौलेषु विभूषणमिवामर वराणां
     योगिहृदयेषु च शिरस्सु निगमानाम् ।
राजदरविन्द-रुचिरं पदयुगं ते
     देहि मम मूर्ध्नि नरसिंह! नरसिंह! ॥ ४॥

वारिजविलोचन! मदन्तिम-दशायां
     क्लेश-विवशीकृत-समस्त-करणायाम् ।
एहि रमया सह शरण्य! विहगानां
     नाथमधिरुह्य नरसिंह! नरसिंह! ॥ ५॥

हाटक-किरीट-वरहार-वनमाला
     धाररशना-मकरकुण्डल-मणीन्द्रैः ।
भूषितमशेष-निलयं तव वपुर्मे
      चेतसि चकास्तु नरसिंह! नरसिंह! ॥ ६॥

इन्दु रवि पावक विलोचन! रमायाः
     मन्दिर! महाभुज!-लसद्वर-रथाङ्ग!।
सुन्दर! चिराय रमतां त्वयि मनो मे
     नन्दित सुरेश! नरसिंह! नरसिंह! ॥ ७॥

माधव! मुकुन्द! मधुसूदन! मुरारे!
     वामन! नृसिंह! शरणं भव नतानाम् ।
कामद घृणिन् निखिलकारण नयेयं
     कालममरेश नरसिंह! नरसिंह! ॥ ८॥

अष्टकमिदं सकल-पातक-भयघ्नं
     कामदं अशेष-दुरितामय-रिपुघ्नम् ।
यः पठति सन्ततमशेष-निलयं ते
     गच्छति पदं स नरसिंह! नरसिंह! ॥ ९॥
🦁🦁🦁🦁🦁🦁🦁
           *॥ इति श्री नृसिंहाष्टकम् ॥*
                

Sunday 8 May 2016

अक्षय तृतीय पर धन प्राप्ति का सरल उपाय

मित्रों
    अक्षय तृतीया पर्व है अक्षय फल प्राप्ति का। आज इसे खरीददारी का पर्व बना दिया गया है की सोना खरीदें, चाँदी खरीदें, कार बाइक खरीदें। किन्तु ये पर्व है अक्षय पुण्य फल प्राप्ति का जो खरीदकर नहीं अपितु दान देकर प्राप्त होगा।

खरीदने और दान देने के लिए जरूरी है की स्वयं का पर्स भरा रहे। आज एक सरल सा उपाय बता रहा हूँ जिसे करने से आपके पर्स में कभी भी लक्ष्मी यानि पैसों की कमी नहीं होगी।

कल शाम सूर्यास्त के समय निम्न यन्त्र को अष्टगन्ध की स्याही से चमेली की कलम से सादे सफेद कागज पर 108 बार लिखें।
फिर 109 वां यन्त्र भोजपत्र पर लिखें।

ध्यान मन्त्र:-

ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः पद्मानने पद्मिनि पद्म-हस्ते पद्म-प्रिये पद्म-दलायताक्षि।विश्वे-प्रिये विष्णु-मनोनुकूले, त्वत्-पाद-पद्मं मयि सन्निधत्स्व।।पद्मानने पद्म-उरु, पद्माक्षी पद्म-सम्भवे।त्वन्मा भजस्व पद्माक्षि, येन सौख्यं लभाम्यहम्।

मन्त्र:-

ॐ श्रीं ह्रीँ क्लीं ॐ ऐं स्वाहा।

प्रत्येक यन्त्र में बीज अंक भरते समय मन्त्र का जप करें। इस प्रकार 108 यंत्र में 9 अंक भरते हुए
 109 x9= 981 जप हो जायेंगे।
भोजपत्र पर बने यन्त्र का पंचोपचार धूप दीप से पूजन कर हल्दी से रंगे 21 अक्षत चढ़ाएं, और 1 माला जप करें।
फिर इसे मोड़ कर अपने पर्स में रख लें।

माँ लक्ष्मी की कृपा आपके पर्स पर सदैव बनी रहेगी लेकिन तभी जब आप इसका सदुपयोग करें और जरूरत मन्दो की मदद करें दान के रूप में।

 शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया पर किए गए दान का महत्व अन्य मास की किसी भी शुभ तिथि और अवसरों पर किए गए दान से अधिक है।
शास्त्रों के मुताबिक अक्षय तृतीया पर कुछ खास चीजों का दान सुयोग्य व्यक्ति को करने से भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं।

1. जल से भरा मिट्टी का घड़ा, कलश व वस्त्र
2. कलश के साथ ककड़ी या खरबूजा
3. पंखा, चरण पादुका (जूते या चप्पल)
4. छाता
5. अनाज
6. जौ, गेंहूं
7. चने का सत्तू
8. दही-चावल
9. मौसमी फल जैसे खरबूजा, आम आदि।
10. खारक
11. गुड़ और अरहर यानी तुवर की दाल
12. चना या चने की दाल
13. गर्मी के मौसम में उपयोगी पदार्थ और वस्तु
14. गन्ने का रस
15. दूध से बनी मिठाइयां
16. भूमि
17. जल दान
18. केशर
19. अष्टगंध
20. लाल चंदन
21. गोरोचन
22. शंख
23. चाँदी के बर्तन में घी
24. कस्तूरी
25. घंटी या घंटाल
26. मोती या मोती की माला
27. काँसे के बर्तन में सोना
28. माणिक रत्न
29. सोने के बर्तन
30. गाय

तो आप भी अपने सामर्थ्य अनुसार कल कुछ न कुछ अवश्य दान करें और इस यन्त्र को बनाकर अपने पर्स में रखें।

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