Translate

Saturday 17 July 2021

सर्वकार्य सिद्धिदायक भस्म

सर्वकार्य सिद्धिदायक भस्म

मित्रों, 
गुप्त नवरात्रि पर बहुत से प्रयोग मंत्रादि सब जगह अब सहज मिल रहे हैं किंतु आज मैं आपको एक बहुत खास प्रयोग बताने जा रहा हूँ जो है विशुद्ध भस्म के निर्माण का।
इस भस्म को आयुर्वेदिक दवा और भूत प्रेत जादू टोना नज़र इत्यादि दूर करने के लिए तथा भगवान शिव के श्रृंगार के लिए आराम से प्रयोग किया जा सकता है।

भस्म निर्माण के लिए सबसे पहले आपको चाहिए देसी गाय से प्राप्त पंचगव्य, पंचगव्य आप समान मात्रा में दूध दही घी गौमूत्र और गोमय  (गोबर का रस) मिलाकर बना सकते हैं, चाहें तो विशुद्ध आयुर्वेदिक पद्धति से भी बना सकते हैं जिसके बारे में आप हमारे पेज अमृतम पर पढ़ सकते हैं।

इस पंचगव्य को आप सबसे पहले किसी मिट्टी के स्वच्छ पात्र में बना कर तैयार कर लें फिर पलाश या कमल के पत्ते से बड़े से दोने(कटोरे) में एक बेल फल रखकर उसे इस पंचगव्य से स्नान कराएं।

स्नान के बाद इष्ट देवता के मन्त्र, गुरु मन्त्र या पंचाक्षरी ॐ नमः शिवाय का 1100 जप करें।

जप के उपरांत बेल फल निकाल कर किसी स्वच्छ स्थान पर रखें ये बेल फल भी संस्कारित माना गया है। ये सब प्रकार से रक्षा करता है और सुख समृद्धि देने वाला है।
सबसे अच्छा हो कि इसे अपने घर मे  मिट्टी में गाड़ लें या किसी प्रियजन के घर मे गड़वा दें जिसे सुख समृद्धि की जरूरत हो।

इसके बाद पंचगव्य को पुनः दोने समेत मिट्टी के पात्र में डालकर लकड़ियों पर जलाई हुई अग्नि में रखें।

इसके बाद इसमें 
पलाश और गूलर वृक्षों की छाल, 
मलयागिरिचन्दन, 
गुग्गुल, 
केशर, हल्दी गांठ, 
कूठ,
विल्व का पञ्चाङ्ग 
अपामार्ग ,
 तिल,
 दूर्वा, 
जौं, 
सहदेवी 
श्यामा और रामा दोनों प्रकार की तुलसी, 
कुशा, 
गोरोचन, 
कमल का फूल
 गोमय रस में भिगोई हुई  वचा, 
विष्णुकान्ता और 
श्वेतार्क की छाल

ये सब सामग्री डालकर पकने दें और इसका क्वाथ बनने दें, उसके बाद भी इसे तब तक पकने दें जब तक ये पूरी तरह जलकर भस्म न बन जाये।

जब ये प्रक्रिया होती हो उस समय निरन्तर मन्त्र का जप करते रहें।
जब ये भस्म बन कर तैयार हो जाये तब इसे पलाश या कमल के पत्ते पर रखें और सबसे अच्छा हो इस भस्म को किसी कांटेदार पत्तों वाले पौधे के पत्तों का पत्तल बना कर उसमें रखें जैसे कटेरी।

इसके बाद इस भस्म पर फिर से 21000 जप करें।

इस प्रकार से तैयार भस्म को शिर पर छिड़क दे और सर्वांग में लेप भी कर दे तो ऐसा करने से कृत्या जन्य उपद्रव, शत्रुद्रोह, ग्रहबाधा, उन्माद एवं व्याधि तथा अन्य प्रकार के दुःखों का निवारण हो जाता है।
 इससे शत्रुबाधा शान्त हो जाती है, सारे पाप दूर हो जाते हैं यह भस्म सब प्रकार का कल्याण करता है और समस्त विपत्तियों का विनाश करता है ॥

इस भस्म को दवा के रूप में खाया भी जा सकता है नज़र टोटके ऊपरी हवा आदि से पीड़ित व्यक्ति को लगाने के साथ खिलाया भी जा सकता है। इनके कारण होने वाले भय, ज्वर अनिद्रा को ये भस्म दूर करती है।
सही नक्षत्र मुहूर्त में किये गए वशीकरण आदि प्रयोगों के लिए भी ये भस्म सर्वोत्तम है।( शास्त्र वचन है)

इस प्रकार का भस्म गर्भिणी, बालक तथा रोगीजनों को विशेष रूप से लाभदायी है, इस लोक में इससे बढ़कर अन्य कोई रक्षा का उपाय नहीं कहा गया है ।

Friday 18 June 2021

धूमावती जयंती 2021 विशेष

माँ धूमावती जयंती की शुभकामनाएं

जब सब पूजा पाठ तंत्र मंत्र यन्त्र विफल हो जाएं तो धूमावती की शरण लें ये अंतिम उपाय है अंत मे ही करें

देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है

स्तुति :- 

विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा,

विवरणकुण्डला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,

काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,

सूर्यहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,

प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,

क्षुतपिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहप्रिया.

*****  ॥ सौभाग्यदात्री धूमावती कवचम् ॥ *****

धूमावती मुखं पातु  धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी ।

ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ॥१॥

कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके ।

सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ॥२॥

सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः ।

सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देविपुरं ययौ ॥३॥

॥ श्री सौभाग्यधूमावतीकल्पोक्त धूमावतीकवचम् ॥

*****।।श्री धूमावती अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र।।*****

ईश्वर उवाचधूमावती धूम्रवर्णा धूम्रपानपरायणा ।

धूम्राक्षमथिनी धन्या धन्यस्थाननिवासिनी ॥ १॥

अघोराचारसन्तुष्टा अघोराचारमण्डिता ।

अघोरमन्त्रसम्प्रीता अघोरमन्त्रपूजिता ॥ २॥

अट्टाट्टहासनिरता मलिनाम्बरधारिणी ।

वृद्धा विरूपा विधवा विद्या च विरलद्विजा ॥ ३॥

प्रवृद्धघोणा कुमुखी कुटिला कुटिलेक्षणा ।

कराली च करालास्या कङ्काली शूर्पधारिणी ॥ ४॥

काकध्वजरथारूढा केवला कठिना कुहूः ।

क्षुत्पिपासार्दिता नित्या ललज्जिह्वा दिगम्बरी ॥ ५॥

दीर्घोदरी दीर्घरवा दीर्घाङ्गी दीर्घमस्तका ।

विमुक्तकुन्तला कीर्त्या कैलासस्थानवासिनी ॥ ६॥

क्रूरा कालस्वरूपा च कालचक्रप्रवर्तिनी ।

विवर्णा चञ्चला दुष्टा दुष्टविध्वंसकारिणी ॥ ७॥

चण्डी चण्डस्वरूपा च चामुण्डा चण्डनिस्वना ।

चण्डवेगा चण्डगतिश्चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ ८॥

चाण्डालिनी चित्ररेखा चित्राङ्गी चित्ररूपिणी ।

कृष्णा कपर्दिनी कुल्ला कृष्णारूपा क्रियावती ॥ ९॥

कुम्भस्तनी महोन्मत्ता मदिरापानविह्वला ।

चतुर्भुजा ललज्जिह्वा शत्रुसंहारकारिणी ॥ १०॥

शवारूढा शवगता श्मशानस्थानवासिनी ।

दुराराध्या दुराचारा दुर्जनप्रीतिदायिनी ॥ ११॥

निर्मांसा च निराकारा धूतहस्ता वरान्विता ।

कलहा च कलिप्रीता कलिकल्मषनाशिनी ॥ १२॥

महाकालस्वरूपा च महाकालप्रपूजिता ।

महादेवप्रिया मेधा महासङ्कटनाशिनी ॥ १३॥

भक्तप्रिया भक्तगतिर्भक्तशत्रुविनाशिनी ।

भैरवी भुवना भीमा भारती भुवनात्मिका ॥ १४॥

भेरुण्डा भीमनयना त्रिनेत्रा बहुरूपिणी ।

त्रिलोकेशी त्रिकालज्ञा त्रिस्वरूपा त्रयीतनुः ॥ १५॥

त्रिमूर्तिश्च तथा तन्वी त्रिशक्तिश्च त्रिशूलिनी ।

इति धूमामहत्स्तोत्रं नाम्नामष्टोत्तरात्मकम् ॥ १६॥

मया ते कथितं देवि शत्रुसङ्घविनाशनम् ।

कारागारे रिपुग्रस्ते महोत्पाते महाभये ॥ १७॥

इदं स्तोत्रं पठेन्मर्त्यो मुच्यते सर्वसङ्कटैः ।

गुह्याद्गुह्यतरं गुह्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ॥ १८॥

चतुष्पदार्थदं नॄणां सर्वसम्पत्प्रदायकम् ॥ १९॥

इति श्रीधूमावत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

विशेष उपाय: 

माई को सफेद वस्त्र, श्वेतार्क पुष्प, पंचमेवा, पूड़ी कचौड़ी समोसे, सफेद मिठाई, गुड़, पँचमेवे का भोग लगाएं।

जिनके लिए सम्भव हो
लकड़ी या गोबर के उपले पर सूखे नारियल गोले में गुड़, घी, पंचमेवा, शहद और जटामांसी कालीमिर्च भरकर रख दे, उसके बाद स्तुति, कवच और अष्टोत्तरशतनाम का अधिकाधिक संख्या में पाठ करें।

।।जय माँ धूमावती।।

890521616
7579400465

Monday 24 May 2021

नरसिंह जयंती छिन्नमस्ता जयंती 2021


भगवान नरसिंह एवं माँ छिन्नमस्ता जयंती की शुभकामनाएं

श्री गणेशाय नमः ।
अस्य श्री नृसिंहमालामन्त्रस्य नारदभगवान् ऋषिः ।
अनुष्टुभ् छन्दः । श्री नृसिंहोदेवता । आं बीजम् ।
लं शवित्तः । मेरुकीलकम् ।
श्रीनृसिंहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

ॐ नमो नृसिंहाय ज्वलामुखग्निनेत्रय शङ्खचक्रगदाप्र्हस्ताय ।
योगरूपाय हिरण्यकशिपुच्छेदनान्त्रमालाविभुषणाय हन हन दह
दह वच वच रक्ष वो नृसिंहाय पुर्वदिषां बन्ध बन्ध
रौद्रभसिंहाय दक्षिणदिशां बन्ध बन्ध पावननृसिंहाय
पश्चिमदिशां बन्ध बन्ध दारुणनृसिंहाय उत्तरदिशां बन्ध
बन्ध ज्वालानृसिंहाय आकाशदिशां बन्ध बन्ध लक्ष्मीनृसिंहाय
पातालदिशां बन्ध बन्ध कः कः कम्पय कम्पय आवेशय आवेशय
अवतारय अवतारय शीघ्रं शीघ्रं ।

ॐ नमो नारसिंहाय नवकोटिदेवग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय अष्टकोटिगन्धर्व ग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय षट्कोटिशाकिनीग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय पञ्चकोटि पन्नगग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय चतुष्कोटि ब्रह्मराक्षसग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय द्विकोटिदनुजग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय कोटिग्रहोच्चाटनाय ।
ॐ नमो नारसिंहाय अरिमूरीचोरराक्षसजितिः वारं वारं ॥

श्रीभय चोरभय व्याधिभय सकलभयकण्टकान् विध्वंसय विध्वंसय ।
शरणागत वज्रपञ्जराय विश्वहृदयाय प्रह्लादवरदाय
क्षरौं श्रीं नृसिंहाय स्वाहा ।
ॐ नमो नारसिंहाय मुद्गलशङ्खचक्रगदापद्महस्ताय
नीलप्रभाङ्गवर्णाय भीमाय भीषणाय ज्वालाकरालभयभाषित
श्रीनृसिंहहिरण्यकश्यपवक्षस्थलविदार्णाय ।
जय जय एहि एहि भगवन् भवन गरुडध्वज गरुडध्वज
मम सर्वोपद्रवं वज्रदेहेन चूर्णय चूर्णय
       आपत्समुद्रं शोषय शोषय ।
असुरगन्धर्वयक्षब्रह्मराक्षस भूतप्रेत
       पिशाचदिन विध्वन्सय् विध्वन्सय् ।
पूर्वाखिलं मूलय मूलय ।
प्रतिच्छां स्तम्भय परमन्त्रपयन्त्र परतन्त्र परकष्टं
छिन्धि छिन्धि भिन्धि हं फट् स्वाहा ।

इति श्रीअथर्वण वेदोवत्तनृसिंहमालामन्त्रः समाप्तः ।
श्री नृसिंहार्पणमस्तु ॥

****छिन्‍नमस्‍तका अष्‍टोत्‍तरशत नाम स्‍तोत्र*****

पार्वत्युवाच

नाम्नां सहस्रमं परमं छिन्नमस्ता-प्रियं शुभम्।
कथितं भवता शम्भो सद्यः शत्रु-निकृन्तनम्।।1।।
पुनः पृच्छाम्यहं देव कृपां कुरु ममोपरि।
सहस्र-नाम-पाठे च अशक्तो यः पुमान् भवेत्।।2।।
तेन किं पठ्यते नाथ तन्मे ब्रूहि कृपामय।

श्री सदाशिव उवाच

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां पठ्यते तेन सर्वदा।
सहस्र्-नाम-पाठस्य फलं प्राप्नोति निश्चितम् .
ॐ अस्य श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तर-शत-नाअम-स्तोत्रस्य सदाशिव
ऋषिरनुष्टुप् छन्दः श्रीछिन्नमस्ता देवता
मम-सकल-सिद्धि-प्राप्तये जपे विनियोगः।

ॐ छिन्नमस्ता महाविद्या महाभीमा महोदरी .
चण्डेश्वरी चण्ड-माता चण्ड-मुण्ड्-प्रभञ्जिनी।।4।।
महाचण्डा चण्ड-रूपा चण्डिका चण्ड-खण्डिनी।
क्रोधिनी क्रोध-जननी क्रोध-रूपा कुहू कला ।।5।।
कोपातुरा कोपयुता जोप-संहार-कारिणी ।
वज्र-वैरोचनी वज्रा वज्र-कल्पा च डाकिनी।।6।।
डाकिनी कर्म्म-निरता डाकिनी कर्म-पूजिता।
डाकिनी सङ्ग-निरता डाकिनी प्रेम-पूरिता।।7।।
खट्वाङ्ग-धारिणी खर्वा खड्ग-खप्पर-धारिणी ।
प्रेतासना प्रेत-युता प्रेत-सङ्ग-विहारिणी ।।8।।
छिन्न-मुण्ड-धरा छिन्न-चण्ड-विद्या च चित्रिणी ।
घोर-रूपा घोर-दृष्टर्घोर-रावा घनोवरी ।।9।।
योगिनी योग-निरता जप-यज्ञ-परायणा।
योनि-चक्र-मयी योनिर्योनि-चक्र-प्रवर्तिनी ।।10।।
योनि-मुद्रा-योनि-गम्या योनि-यन्त्र-निवासिनी ।
यन्त्र-रूपा यन्त्र-मयी यन्त्रेशी यन्त्र-पूजिता ।।11।।
कीर्त्या कपर्दिनी: काली कङ्काली कल-कारिणी।
आरक्ता रक्त-नयना रक्त-पान-परायणा ।।12।।
भवानी भूतिदा भूतिर्भूति-दात्री च भैरवी ।
भैरवाचार-निरता भूत-भैरव-सेविता।।13।।
भीमा भीमेश्वरी देवी भीम-नाद-परायणा ।
भवाराध्या भव-नुता भव-सागर-तारिणी ।।14।।
भद्रकाली भद्र तनुर्भद्र-रूपा च भद्रिका।
भद्ररूपा महाभद्रा सुभद्रा भद्रपालिनी।।15।।
सुभव्या भव्य-वदना सुमुखी सिद्ध-सेविता ।
सिद्धिदा सिद्धि-निवहा सिद्धासिद्ध-निषेविता।।16।।
शुभदा शुभगा शुद्धा शुद्ध-सत्वा-शुभावहा ।
श्रेष्ठा दृष्टिमयी देवी दृष्ठि-संहार-कारिणी।।17।।
शर्वाणी सर्वगा सर्वा सर्व-मङ्गल-कारिणी ।
शिवा शान्ता शान्ति-रूपा मृडानी मदनातुरा ।।18।।
इति ते कथितं देवि स्तोत्रं परम-दुर्लभम्।
गुह्याद्-गुह्यतरं गोप्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ।।19।।
किमत्र बहुनोक्तेन त्वदग्रं प्राण-वल्लभे।
मारणं मोहनं देवि ह्युच्चाटनमतः परमं .।।20।।
स्तम्भनादिक-कर्म्माणि ऋद्धयः सिद्धयोऽपि च।
त्रिकाल-पठनादस्य सर्वे सिध्यन्त्यसंशयः ।।21।।
महोत्तमं स्तोत्रमिदं वरानने मयेरितं नित्य मनन्य-बुद्धयः।
पठन्ति ये भक्ति-युता नरोत्तमा भवेन्न तेषां रिपुभिः पराजयः ।।22।।
    इति श्रीछिन्नमस्तका अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

अन्य किसी जानकारी , कुंडली विश्लेषण और समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

7579400465
8909521616(whats ap)

 हमसे जुड़ने और लगातार नए एवं सरल उपयो के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें:-
https://www.facebook.com/Astrology-paid-service-552974648056772/

हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब करें:-
http://jyotish-tantra.blogspot.com

Wednesday 19 May 2021

बगुलामुखी जयंती 2021 विशेष

सभी मित्रों को बगुलामुखी जयंती की शुभकामनाएं

बगलामुखी माला मंत्र (लघु)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्र ह्रौं ह्रः बगले चतुर्भुजे मुद्गरशर
संयुक्ते दक्षिणे जिह्वावज्र संयुक्ते वामे श्रीमहाविद्येपीतवस्त्रे पञ्चमहाप्रेताधिरूढे सिद्ध विद्याधर वन्दिते ब्रह्म विष्णु रुद्रपूजिते आनन्दस्वरूपे विश्वसृष्टिस्वरूपे महाभैरवरुपधारिणि स्वर्ग मृत्यु पाताल स्तम्भिनि वाममार्गाश्रिते श्रीबगले ब्रह्म विष्णु रुद्ररूप निर्मिते षोडशकला परिपूरिते दानवरूप सहस्त्रादित्य शोभिते त्रिवर्णे एहि एहि रविमण्डलमध्याद् अवतर अवतर सान्निध्यं कुरु कुरु मम हृदयँ प्रवेशय प्रवेशय शत्रुमुखं स्तम्भय स्तम्भय अन्यभूत पिशाचां खादय खादय अरिसैन्यं विदारय विदारय परविद्यां परचक्रं छेदय छेदय वीरचक्रं धनुषा सम्भारय सम्भारय त्रिशूलेन छिन्धि छिन्धि पाशेन बन्धय बन्धय भूपतिं वश्यं कुरु कुरु सम्मोहय सम्मोहय विना जाप्येन सिद्धय सिद्धय विना मन्त्रेण सिद्धिं कुरु कुरु सकल दुष्टां घातय घातय मम त्रैलोक्यं वश्यं कुरु कुरु सकल कुल राक्षसान दह दह पच पच मथ मथ हन हन मर्दय मर्दय मारय मारय भक्षय भक्षय मां रक्ष रक्ष विस्फोटकाटिन नाशय नाशय ॐ ह्रीं विषमज्वरं नाशय नाशय विषं निर्विषं कुरु कुरु ॐ ह्रीं बगलामुखि हुम् फट स्वाहा ||

8909521616

Wednesday 10 February 2021

मौनी अमावस्या 2021

 मौनी अमावस्या 11 फरवरी 2021

पितृ पूजन-शांति का विशेष योग


सामान्यतः माघ अमावस्या को उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा और पूर्वाभाद्रपद में से किसी एक नक्षत्र का योग रहता है। इस वर्ष श्रवण नक्षत्र (प्रातः) और धनिष्ठा नक्षत्र (अपराह्न) का योग है।


माघ अमावस्या को श्रवण नक्षत्र, रविवार, व्यतिपात योग में अद्भ्धोंदय योग बनता है जो अतिदुर्लभ है।


"माघेमासि आमावस्या यदि अर्कयुता भवेत्। 


नक्षत्रे श्रवणे देवि! व्यतीपातो भवेद्यदा। 

अद्द्धोदयः स विज्ञेयः सूर्य्यपर्वशतैःसमः। 

दिवैव योगः शस्तोऽयं न च रात्रौ कदाचन।

 अद्भ्धोदये तु सम्प्राप्ते सर्वं गङ्गासमं जलम्।

 शुद्धात्मानो द्विजाः सर्वे भवेयुर्ब्रह्मसस्मिताः।

 यत् किञ्चित् क्रियते दानम् तद्दानं सेतुसन्निभमिति” निर्णयामृत


स्कन्दपुराण, नारदपुराण, पद्मपुराण में अद्धा महात्म्य का विशेष वर्णन मिलता है।


जो पुरुष देवताओं एवं पितृगण को तृप्त करना चाहते हैं उनके लिये धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद अथवा शतभिषा नक्षत्र से युक्त अमावस्या अत्यन्त दुर्लभ हैं ऐसा वर्णन विष्णु पुराण, तृतीयांश अध्याय १४ में प्राप्त होता है।


वासवाजैकपादः पितृणां तृप्तिमिच्छताम्। 

वारुणे वाप्यमावास्या देवानामपि दुर्लभा।। ९


साथ ही माघ अमावस्या को धनिष्ठा नक्षत्र के साथ संयोग के विषय में लिखा है


काले धनिष्ठा यदि नाम तस्मिन्भवेत्तु भूपाल तदा पितृभ्यः।

दत्तं जलान्नं प्रददाति तृप्तिं वर्षायुतं तत्कुलजैर्मनुष्यैः

।।१६।।


यदि माघ मास की अमावस्या का धनिष्ठा नक्षत्र से योग हो जाये तो उस समय अपने कुल में उत्पन्न पुरुष द्वारा दिये हुए अन्न एवं जल से पितृगण दस हजार वर्ष के लिये तृप्त हो जाते है।


उपाय :-


1. पितरों को जल तर्पण करें

2. पितृ शांति हेतु पिंडदान करें

3. ब्राह्मणों/ जरूरतमंदों को भोजन कराएं वस्त्र दें

4. पीपल में जल चढ़ाएं और दीपक जलाएं

5. गाय को भोजन दें

6. पितृ सूक्त- स्तोत्र का पाठ करें

7. श्रीमद्भागवत पुराण का पाठ करें या कराएं


अन्य किसी जानकारी,  समस्या समाधान अथवा कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं


।।जय श्री राम।।


Abhishek B. Pandey


8909521616 (what's app)

7579400465


हमसे जुड़ने और लगातार नए एवं सरल उपायो के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें:-

https://www.facebook.com/Astrology-paid-service-552974648056772/


हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब करें:-

http://jyotish-tantra.blogspot.com