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Thursday 2 April 2015

चन्द्रग्रहण Lunar eclipse 2015


दि.४-४-१५ पुर्णिमा पर होने वाला चन्द्रग्रहण आपके जीवन मे आने वाली समस्याओ से निजात दिला सकता है। दि ४-४-१५,शनिवार,तिथी-पुर्णिमा,विशेष-श्री हनुमान जन्मोत्सव।

ग्रहण हस्त नक्षत्र कन्या राशि में लग रहा है। सूतक ९ घंटे पहले शुरू होगा।  
चन्द्रमा का उपछाया प्रवेश-दोप-२.३३बजे,
चन्द्रमा का छाया प्रवेश-३.४७बजे,
ग्रहण काल प्रारंभ सांय-५.३१,
ग्रहण समाप्ति-७.३१,
चन्द्रमा का छाया निकासी पुर्ण मोक्ष-८.२९पर।


प्राचिन मान्यतानुसार ग्रहणकाल  मे राहु-केतु द्बारा चन्द्र या सुर्य को ग्रसित कर लिया जाता है,यदि किसी कुंडली मे चन्द्रमा के साथ राहु या केतु स्थित है या चन्द्रमा के घर मे ये दोनो मे से कोई ग्रह है तो यह स्थिती ग्रहण दोष कहलाती है,यह दोष जिस भाव मे होता है उससे संबंधित अशुभ प्रभाव देता है।चन्द्रमा मन का कारक है,इस दोष के प्रभाव से जातक कोई भी निर्णय लेने मे सक्षम नही होता,अनेक व्याधियो व शत्रुगत बाधाओ से पिडीत रहता है,मन कि अस्थिरता से आत्मविश्वास की कमी रहती है,व्यापार,व्यवसाय मे सदैव हानि उठानी पडती है।

चंद्रग्रहण  फल -
मेष के लिए कार्य सिद्धि, 
वृष राशि वालों की चिंता बढ़ेगी, 
मिथुन राशि के लिए रोग भय, 
कर्क राशि के लिए धन लाभ, 
सिंह राशि के लिए नुकसानदायक, 
कन्या राशि के लिए दुर्घटना, 
तुला राशि के लिए धन हानि,
वृश्चिक के लिए लाभ वृद्धि, 
धनु राशि वालों को वैभव, 
मकर राशि के लिए मानहानि, 
कुंभ राशि वालों को शरीर कष्ट 
मीन राशि के लिए दाम्पत्य कष्ट के फल का योग बन रहा है।

शांति हेतु : - उड़द, मूंग , गेहूं, जूते , छाते  और पुराने पहने हुए वस्त्र जो कटे फाटे न हों दान करें।  

ग्रहण में क्या करें :-

ग्रहण लगने से पूर्व स्‍नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना बहुत ही फलदायी साबित होगा। 

भगवान वेदव्यास जी के अनुसार चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म एक लाख गुणा और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुणा फलदायी होता है। 

यदि गंगा जल पास में हो तो पुण्यकर्म का फल चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुणा और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुणा बढ़ जाता है। 

ग्रहण के समय अपने गुरुमंत्र, इष्टमंत्र का जप अवश्य करें। जप न करने से आपके मंत्र को मलिनता प्राप्त होगी। 

ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्‍न, ज़रूरतमंदों को वस्त्र दान देने से अनेक गुणा पुण्‍य प्राप्‍त होता है। 

ग्रहण समाप्‍त हो जाने पर स्‍नान करके  दान देने से कष्टों का निवारण किया जा सकता है। 


ग्रहण विधि निषेध :-

1 जीव-जन्‍तु या किसी की हत्‍या करने से नारकीय योनी में भटकना पड़ता है ।

2  सूर्यग्रहण मे ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण मे तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये । बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुध्द बिम्बदेख कर भोजन करना चाहिये । (१ प्रहर = ३ घंटे)

3. ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए । बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहियेव दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना औरभोजन करना - ये सब कार्य वर्जित हैं ।ग्रहण के समय संभोग करने से सूअर की योनी मिलती है ।ग्रहण के समय किसी से धोखा या ठगी करने से सर्प की योनि मिलती है ।

4. ग्रहण के समय मूत्र् – त्‍यागने से घर में दरिद्रता आती है । शौच करने से पेट में क्रीमी रोग पकड़ता है । 

5 कोइ भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये और नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिये ।

6  ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थो मे तिल या कुशा डाली होती है, वे पदार्थ दुषित नहीं होते । जबकि पके हुएअन्न का त्याग करके गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिये ।

7 ग्रहण वेध के प्रारंभ मे तिल या कुशा मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति मे ही करना चाहिये और ग्रहण शुरु होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिये ।ग्रहण के समय भोजन अथवा मालिश किया तो कुष्‍ठ रोगी के शरीर में जाना पड़ेगा।

8 तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किंतु संतानयुक्त ग्रहस्थको ग्रहणऔर संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिये।

9 'स्कंद पुराण' के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षो का एकत्र किया हुआसब पुण्यनष्ट हो जाता है ।

10. 'देवी भागवत' में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये ।

ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कैंची, चाकू आदि से कुछ भी काटने को मना किया जाता है, क्‍योंकि ऐसी मान्‍यता है कि ऐसा करने से शिशु पर ग्रहण के दुष्प्रभाव की आशंका बहुत गुना बढ़ जाती है।

ग्रहण के समय  मंत्र् सिध्दि 

मित्रों ग्रहण काल में किया हुआ जप पूजन अनेक गुना फल देता है। 
शास्त्रों में भी ग्रहण काल को मन्त्र सिद्ध करने और सिद्धि प्राप्ति हेतु सर्वश्रेष्ठ समय माना गया है।

ग्रहण काल में अपने गुरु मन्त्र और इष्ट मन्त्र का अधिकाधिक जप करें। यदि कोई विशेष मन्त्र सिद्ध करना चाहते हैं तो गुरु मन्त्र और इष्ट मन्त्र की 3 -3 माला कर उक्त मन्त्र की वांछित संख्या जप कर उसे जागृत करें।
ग्रहण में बीज मन्त्रों का जप भी विशेष फल देता है।
शाबर मन्त्र इस समय बहुत जल्दी प्रभावी हो जाते हैं और दीर्घकाल तक फल देते हैं।

प्रस्तुत हैं कुछ सर्वोपयोगी सरल शाबर मंत्र :- 

१ देह रक्षा मंत्र:  

ऊँ नमः वज्र का कोठा, जिसमें पिंड हमारा बैठा। ईश्वर कुंजी ब्रह्मा का ताला, मेरे आठों धाम का यती हनुमन्त रखवाला।

 इस मंत्र को किसी भी ग्रहण काल में पूरे समय तक लगातार जप करके सिद्ध कर लें। किसी दुष्ट व्यक्ति से अहित का डर हो, ग्यारह बार मंत्र पढ़कर शरीर पर फूंक मारे तो आपका शरीर दुश्मन के आक्रमण से हर प्रकार सुरक्षित रहेगा। 

२ सर्व-कार्य-सिद्धि हेतु शाबर मन्त्र
1 “काली घाटे काली माँ, पतित-पावनी काली माँ, जवा फूले-स्थुरी जले। सई जवा फूल में सीआ बेड़ाए। देवीर अनुर्बले। एहि होत करिवजा होइबे। ताही काली धर्मेर। बले काहार आज्ञे राठे। कालिका चण्डीर आसे।”
विधिः- उक्त मन्त्र भगवती कालिका का बँगला भाषा में शाबर मन्त्र है। इस मन्त्र को तीन बार ‘जप’ कर दाएँ हाथ पर फूँक मारे और अभीष्ट कार्य को करे। कार्य में निश्चित सफलता प्राप्त होगी। गलत कार्यों में इसका प्रयोग न करें।

2 श्री भैरव मन्त्र

“ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र! हाजिर होके, तुम मेरा कारज करो तुरत। कमर बिराज मस्तङ्गा लँगोट, घूँघर-माल। हाथ बिराज डमरु खप्पर त्रिशूल। मस्तक बिराज तिलक सिन्दूर। शीश बिराज जटा-जूट, गल बिराज नोद जनेऊ। ॐ नमो भैंरुनाथ, काली का पुत्र ! हाजिर होके तुम मेरा कारज करो तुरत। नित उठ करो आदेश-आदेश।”
विधिः पञ्चोपचार से पूजन। रविवार से शुरु करके २१ दिन तक मृत्तिका की मणियों की माला से नित्य अट्ठाइस (२८) जप करे। भोग में गुड़ व तेल का शीरा तथा उड़द का दही-बड़ा चढ़ाए और पूजा-जप के बाद उसे काले श्वान को खिलाए। यह प्रयोग किसी अटके हुए कार्य में सफलता प्राप्ति हेतु है।

३ रोग-मुक्ति या आरोग्य-प्राप्ति मन्त्र 

“मां भयात् सर्वतो रक्ष, श्रियं वर्धय सर्वदा। शरीरारोग्यं मे देहि, देव-देव नमोऽस्तु ते।।”
विधि- ‘दीपावली’ की रात्री या ‘ग्रहण’ के समय उक्त मन्त्र का जितना हो सके, उतना जप करे। कम से कम १० माला जप करे। बाद में एक बर्तन में स्वच्छ जल भरे। जल के ऊपर हाथ रखकर उक्त मन्त्र का ७ या २७ बार जप करे। फिर जप से अभिमन्त्रित जल को रोगी को पिलाए। इस तरह प्रतिदिन करने से रोगी रोग मुक्त हो जाता है। जप विश्वास और शुभ संकल्प-बद्ध होकर करें।



४  नजर झारने के मन्त्र
 “हनुमान चलै, अवधेसरिका वृज-वण्डल धूम मचाई। टोना-टमर, डीठि-मूठि सबको खैचि बलाय। दोहाई छत्तीस कोटि देवता की, दोहाई लोना चमारिन की।”

विधि- उक्त मन्त्र से ११ बार झारे, तो बालकों को लगी नजर या टोना का दोष दूर होता है।



 ग्रह-बाधा-शान्ति मन्त्र
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं दह दह।”
विधि- सोम-प्रदोष से ७ दिन तक, माल-पुआ व कस्तुरी से उक्त मन्त्र से १०८ आहुतियाँ दें। इससे सभी प्रकार की ग्रह-बाधाएँ नष्ट होती है।


अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवं कुंडली विश्लेषण हेतु संपर्क कर सकते हैं।
।। जय श्री राम ।।
8909521616(whats app)
7579400465
7060202653

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