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Friday 27 October 2017

Akshay Navmi for health and male child पुत्र एवम यौवन के लिए अक्षय नवमी पूजन

पुत्र, यौवन और स्वास्थ्य के लिए अक्षय नवमी पूजन

अक्षय नवमी , 29 अक्टूबर 2017, रविवार

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी और आंवला नवमी कहा जाता है।इस तिथि के विषय में भगवान कहते है अक्षय नवमी मे जो भी पुण्य और उत्तम कर्म किये जाते हैं उससे प्राप्त पुण्य कभी नष्ट नहीं होते, यही कारण है कि इसे नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा गया है।

मान्यताओं के अनुसार:-

1. अक्षय नवमी के दिन ही त्रेता युग का आरम्भ हुआ था।

2. इसी दिन कुष्मांडा देवी का प्राकट्य हुआ था इसलिए इसे कुष्मांड नवमी भी कहते हैं और इस दिन कुष्मांड यानी कुम्हड़े का दान बेहद महत्वपूर्ण है।

3. एक अन्य मान्यता अनुसार भगवान विष्णु ने इसी दिन कुष्मांडक नामक राक्षस का वध किया था जिसके शरीर से कुष्मांड की बेले निकली हुई थी।

4. देवी पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण के परामर्श से माता कुंती ने भी अक्षय प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत किया था, तभी से इस व्रत का प्रचलन शुरू हो गया ।

5.  इस दिन श्रद्धापूर्वक आंवले के नीचे भगवान विष्णु का पूजन करें तो निश्चित ही पुत्र/ सन्तान होती है।

 इस दिन प्रात: काल स्नान करके भगवान विष्णु और शिव जी के दर्शन करने से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है. इस तिथि को पूजा, दान, यज्ञ, तर्पण करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है.

शास्त्रों में ब्रह्महत्या को घोर पाप बताया गया है. यह पाप करने वाला अपने दुष्कर्म का फल अवश्य भोगता है, लेकिन अगर वह अक्षमय नवमी के दिन स्वर्ण, भूमि, वस्त्र एवं अन्नदान करे वह आंवले के वृक्ष के नीचे लोगों को भोजन करायें तो इस पाप से मुक्त हो सकता है। इस नवमी को आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने व कराने का बहुत महत्व है यही कारण है कि इसे  धातृ नवमी भी कहा जाता है। संस्कृत में धातृ या धात्री आंवले को कहा जाता है।

अक्षय नवमी कथा

कथा के अनुसार, एक बार देवी लक्ष्मी तीर्थाटन पर निकली तो रास्ते में उनकी इच्छा हुई कि भगवान विष्णु और शिव की पूजा की जाये। देवी लक्ष्मी उस समय सोचने लगीं कि एक मात्र चीज़ क्या हो सकती है जिसे भगवान विष्णु और शिव जी पसंदीद करते हों उसे ही प्रतीक मानकर पूजा की जाये।  इस प्रकार काफी विचार करने पर देवी लक्ष्मी को ध्यान पर आया कि धात्री ही ऐसी है जिसमें तुलसी और विल्व दोनों के गुण मजूद हैं फलत: इन्हीं की पूजा करनी चाहिए। देवी लक्ष्मी तब धात्री के वृक्ष की पूजा की और उसी वृक्ष के नीचे प्रसाद ग्रहण किया। इस दिन से ही धात्री के वृक्ष की पूजा का प्रचलन हुआ।

अक्षय नवमी पूजा विधि

अक्षय नवमी के दिन संध्या काल में आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर लोगों को खाना खिलाने से बहुत ही पुण्य मिलता है. ऐसी मान्यता है कि भोजन करते समय थाली में आंवले का पत्ता गिरे तो बहुत ही शुभ माना जाता है साथ ही यह संकेत होता है कि आप वर्ष भर स्वस्थ रहेंगे.

अक्षय दिन का पूजा विधान इस प्रकार है. आंवले के वृक्ष के सामने पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें. धातृ के वृद्ध की पंचोपचार सहित पूजा करें फिर वृक्ष की जड़ को दूध से सिंचन करें। कच्चे सूत को लेकर धात्री के तने में लपेटें अंत में घी और कर्पूर से आरती और परिक्रमा करें.

आंवला वृक्ष का पूजन

आंवला नवमी के दिन सुबह स्नान कर दाहिने हाथ में जल, चावल, फूल आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें-

अद्येत्यादि अमुकगोत्रोमुकम (अपना नाम एवं गोत्र बोलें) ममाखिल-पापक्षयपूर्वक-धर्मार्थकाममोक्ष-सिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये।

ऐसा संकल्प कर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके

 ॐ धात्र्यै नम:

मंत्र से आवाहनादि पंचोपचार/ षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मंत्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें-

पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिवन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।

इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से
कच्चे सूत को परिक्रमा कर तने पर लपेटें-

दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।

इसके बाद कर्पूर या शुद्ध घी के दिए से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें -

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।

इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे ही ब्राह्मणों को भोजन भी कराना चाहिए और अंत में स्वयं भी आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना चाहिए। एक पका हुआ कुम्हड़ा (कद्दू)  लेकर उसके अंदर रत्न, सोना, चांदी या रुपए आदि रखकर निम्न संकल्प करें-

ममाखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्यादीनामुक्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये।

इसके बाद योग्य ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कुम्हड़ा दे दें और यह प्रार्थना करें-

कूष्णाण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्णा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।

पितरों के शीत निवारण के लिए यथाशक्ति कंबल आदि ऊनी कपड़े भी योग्य ब्राह्मण को देना चाहिए।

घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा, दानादि करने की भी परंपरा है अथवा गमले में आंवले का पौधा रोपित कर घर में यह कार्य संपन्न कर लेना चाहिए।

क्या करें:-

सुबह घर की अच्छी तरह साफ सफाई करें ताकि अलक्ष्मी दूर हो भगवान विष्णु संग लक्ष्मी आगमन हो।
1. इस दिन आंवले के रस को जल में मिलाकर स्नान करने से सुंदरता और यौवन की प्राप्ति होती है।

2. अक्षय नवमी पर घर में अथवा किसी मंदिर में अथवा किसी पार्क आदि में आंवले का वृक्ष लगाएं।

3.आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का स्मरण कर तर्पण करने से पित्र दोष शांत होता है।

4. इस दिन आंवला फल या उसकी पत्ती घर लाने से धन बढ़ता है और यश व ज्ञान की भी प्राप्ति होती है । पूजन करते समय या भोजन करते समय जो पत्तियां गिरें उन्हें लाना ज्यादा अच्छा माना जाता है।

5. आंवले के पेड़ में नीचे ब्रह्माजी, बीच में विष्णुजी और तने में महेशजी निवास करते हैं । इसलिए इस दिन कुंवारी लड़कियां अगर व्रत रखती हैं तो उनका विवाह और विद्यार्थियों को विद्या की प्राप्ति होती है ।

6. जिन लोगों के सन्तान या पुत्र न हो वे पति पत्नी इस दिन श्रद्धापूर्वक आंवले के नीचे भगवान विष्णु का पूजन करें तो निश्चित ही पुत्र/ सन्तान होती है।

7. अगर दाम्पत्य जीवन कटु चल रहा है तो पति-पत्नी के बीच मिठास पैदा होती है । जिस तरह पेड़ में सूत लपेटा जाता है, उसी तरह रिश्ते भी एक-दूसरे से बंध जाते हैं ।

8. अक्षय नवमी को गौ, जमीन, हिरण, सोना व वस्त्राभूषण आदि दान करने से ब्रह्म हत्या जैसे महापाप भी मिट जाते हैं । इसीलिए इसे धात्री नवमी भी कहा गया है ।
9. जिनकी आंखें कमजोर होती हैं, अगर वह इस दिन कुम्हड़ा के अंदर पैसे, सोना, चांदी आदि रखकर पूजा कर ब्राह्मण को दान करते हैं तो उनको लाभ मिलता है ।

11. फलदार आंवले के पेड़ के नीचे ही पूजा करें, तभी फल मिलेगा ।

12. कुछ पण्डित घर मे आंवले की डाल लेकर पूजन करने की सलाह देते हैं किंतु इस दिन आंवले का पेड़ काटना निषेध है।

मित्रों, ये तो थीं धार्मिक बातें किंतु यदि आयुर्वेद और विज्ञान की दृष्टि से देखें तो शीत ऋतु का आगमन हो चुका है और आंवला नवमी एक शिक्षा भी है ऋतु अनुसार पथ्य अपथ्य का। इस समय से आंवला खाना शुरू करें और आंवला एकादशी तक यानी मार्च- अप्रैल तक तो साल भर स्वस्थ सुंदर निरोगी रहेंगे।

ऊपर कथा में भी बताया गया कि आंवले में तुलसी और बेल दोनो के गुण समाहित होते हैं तो एक आंवला आपकी हजार बीमारियां दूर कर देता है।

च्यवन ऋषि भी आंवले यानी च्यवनप्राश जिसका मुख्य घटक आंवला है खाकर ही पुनःयुवा हुए थे।

सर्दी के मौसम में पित्त बढ़ता है और लोगो को विभिन्न व्याधियां, खुजली इत्यादि हो जाते हैं ऐसे में आंवले का सेवन उस बढ़े हुए पित्त को नियंत्रित कर शरीर की इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर आपको स्वस्थ रखता है।

इसलिए इस पर्व को परम्परा का ढकोसला न समझें न ही बोझमानकर मनाएं बल्कि अपने पूर्वजों की वैज्ञानिक सोच का सम्मान करते हुए आनन्द और आदरपूर्वक मनाएं।

।।जय श्री राम।।

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Wednesday 18 October 2017

Diwali 2017 Lakshmi suktam दीपावली 2017 विशेष लक्ष्मी सूक्तं

आप सभी मित्रों को दीपावली एवम लक्ष्मी  प्रकटोत्सव  की हार्दिक शुभकामनाएं।

माँ महालक्ष्मी आपको आपको धन, सुख, सौभाग्य, आरोग्य, समृद्धि, और सफलता प्रदान करें।

ध्यान:

ॐ या सा पद्मासनस्था,
विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी।
गम्भीरावर्त-नाभिः,
स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।।
लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। मणि-गज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः।
नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।।

काम, क्रोध, लोभ वृत्ति से मुक्ति प्राप्त कर धन, धान्य, सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए उपयोगी स्तोत्र ह

श्री लक्ष्मीसूक्त पाठ

पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व॥१।।

- हे लक्ष्मी देवी! आप कमलमुखी, कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं। सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं। हे देवी! आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।



पद्मानने पद्मऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे।
तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्‌॥२।।

- हे लक्ष्मी देवी! आपका श्रीमुख, ऊरु भाग, नेत्र आदि कमल के समान हैं। आपकी उत्पत्ति कमल से हुई है। हे कमलनयनी! मैं आपका स्मरण करता हूँ, आप मुझ पर कृपा करें।

अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।
धनं मे जुष तां देवि सर्वांकामांश्च देहि मे॥३।।

- हे देवी! अश्व, गौ, धन आदि देने में आप समर्थ हैं। आप मुझे धन प्रदान करें। हे माता! मेरी सभी कामनाओं को आप पूर्ण करें।

पुत्र पौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम्‌।
प्रजानां भवसी माता आयुष्मंतं करोतु मे॥४।।

- हे देवी! आप सृष्टि के समस्त जीवों की माता हैं। आप मुझे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, हाथी-घोड़े, गौ, बैल, रथ आदि प्रदान करें। आप मुझे दीर्घ-आयुष्य बनाएँ।

धनमाग्नि धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसु।
धन मिंद्रो बृहस्पतिर्वरुणां धनमस्तु मे॥५।।

- हे लक्ष्मी! आप मुझे अग्नि, धन, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन की प्राप्ति कराएँ।


वैनतेय सोमं पिव सोमं पिवतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः॥६।।

- हे वैनतेय पुत्र गरुड़! वृत्रासुर के वधकर्ता, इंद्र, आदि समस्त देव जो अमृत पीने वाले हैं, मुझे अमृतयुक्त धन प्रदान करें।

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभामतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां सूक्त जापिनाम्‌॥७।।

- इस सूक्त का पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती, वे सत्कर्म की ओर प्रेरित होते हैं।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक गंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरी प्रसीद मह्यम्‌॥८।।

- हे त्रिभुवनेश्वरी! हे कमलनिवासिनी! आप हाथ में कमल धारण किए रहती हैं। श्वेत, स्वच्छ वस्त्र, चंदन व माला से युक्त हे विष्णुप्रिया देवी! आप सबके मन की जानने वाली हैं। आप मुझ दीन पर कृपा करें।

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्‌।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम॥९।।


- भगवान विष्णु की प्रिय पत्नी, माधवप्रिया, भगवान अच्युत की प्रेयसी, क्षमा की मूर्ति, लक्ष्मी देवी मैं आपको बारंबार नमन करता हूँ।

महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्‌॥१०।।

- हम महादेवी लक्ष्मी का स्मरण करते हैं। विष्णुपत्नी लक्ष्मी हम पर कृपा करें, वे देवी हमें सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त करें।

चंद्रप्रभां लक्ष्मीमेशानीं सूर्याभांलक्ष्मीमेश्वरीम्‌।
चंद्र सूर्याग्निसंकाशां श्रिय देवीमुपास्महे॥११।।

- जो चंद्रमा की आभा के समान शीतल और सूर्य के समान परम तेजोमय हैं उन परमेश्वरी लक्ष्मीजी की हम आराधना करते हैं।

श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाभिधाच्छ्रोभमानं महीयते।
धान्य धनं पशु बहु पुत्रलाभम्‌ सत्संवत्सरं दीर्घमायुः॥१२।।

- इस लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति श्री, तेज, आयु, स्वास्थ्य से युक्त होकर शोभायमान रहता है। वह धन-धान्य व पशु धन सम्पन्न, पुत्रवान होकर दीर्घायु होता है।

॥ इति श्रीलक्ष्मी सूक्तम्‌ संपूर्णम्‌ ॥

।।जय श्री राम।।

Abhishek B. Pandey

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नरक चतुर्दशी पर पितरो की शांति के लिए उपाय

नरक चतुर्दशी पर एक आसान उपाय

नरक चतुर्दशी यानि की छोटी दिवाली के दिन अपने पितृ की आत्मा की शांति के लिए

एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुख दीया तथा सोलह छोटे दीप तेल के जलाएं ।

पर उन्हें जलाने से पहले व्यक्ति को अपने ईष्ट देव की पूजा करें ।

 उसके बाद चौमुख दीया को अपने घर के दरवाजे पर रखें और बाकी दिए को घर के अलग स्थान पर रख दें !

एक दिया दक्षिण की ओर अवश्य जलाएं।

 ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं होता।

।।जय श्री राम।।

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Monday 16 October 2017

धनतेरस 2017 विशेष उपाय Dhanteras 2017 remedy for money

धनतेरस 2017 का विशेष उपाय

धन प्राप्ति के लिए सबसे आसान और अचूक उपाय

मित्रों

धन तेरस यानी धन त्रयोदशी और लक्ष्मी पूजा बिना शिव के पूर्ण नहीं होता।
उस पर आज भौम प्रदोष है यानी मंगलवार को धनतेरस के होना एक अति लाभदायक संयोग।

ये बेहद सरल और सबसे अचूक उपाय है जो न सिर्फ अचानक धन प्राप्ति करवाता है बल्कि लगातार यहां वहां से धन प्रबन्ध करता करवाता रहता है।

ये प्राचीन , परम्परागत और अनगिनत लोगों का आजमाया हुआ प्रयोग है

इसके लिए बाज़ार से दो कमल के पुष्प , दो बिल्व यानि बेल के फल और कुछ बिल्व पत्र ले आएं।

माह की दोनों प्रदोष यानि त्रयोदशी तिथि पर जो आज भी है प्रदोष काल यानि शाम में भगवान शिव का जल से अभिषेक करें।

फिर भगवान शिव को बेल पत्र, कमल पुष्प और बेल फल चढ़ाएं, धूप दीप से पूजन कर खीर से भोग लगाएं।
शिव पञ्चाक्षरी मन्त्र का जप करें।
ॐ नमः शिवाय

फिर इसी प्रकार माँ महालक्ष्मी का भी धूप दीप से पूजन करें, कमल पुष्प , अर्पित कर बिल्व फल अर्पित करें और खीर का भोग लगाएं।
माँ महालक्ष्मी के मन्त्र का जप करें।

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नमः।

जप जितने अधिक करेंगे उतना ही उत्तम और शीघ्र फल मिलेगा।

4 से 5 त्रयोदशी होते होते स्वयं इस पूजन का लाभ देख लेंगे।

सभी सामग्रियाँ सहजता से उपलब्ध हो जाती हैं।

 इस उपाय का तांत्रिक रहस्य है। कम से कम 5 प्रदोष अवश्य करें । क्योंकि जब लाभ होने लगेगा तो आप स्वतः हर प्रदोष ये स्वयं करने लगेंगे।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Wednesday 4 October 2017

Sharad / Kojagiri purnima for health and wealth शरद/ कोजागिरी पूर्णिमा स्वास्थ्य और धनलाभ का पर्व

शरद पूर्णिमा : स्वास्थ्य और धनलाभ का पर्व

शरद पूर्णिमा पर व्रत कथा :-

शरद पूर्णिमा से संबंधित व्रत कथा इस प्रकार है। एक साहूकार था। उसके दो पुत्रिया थीं, उनमें से एक शरद पूर्णिमा का व्रत रखती थीं व दूसरी व्रत को अधूरा छोड़ देती थीं। परिणामस्वरूप दूसरी के जो संतान होती थी वह मर जाया करती थी।
 इससे दुखी होकर उसने पंडितों से इसका कारण जानना चाहा तो मालूम हुआ कि व्रत पूरा न करने की वजह से ऐसा होता है। इसके बाद वह पूरा व्रत करने लगी किंतु फिर भी लड़का होने के बाद वह मर गया तो वह अपनी बहन को बुला लाई। उसकी साड़ी को छूते ही मृतक पुन: जीवित हो गया।
इससे उसके मन में व्रत के प्रति स्नेह हुआ व आस्था बढ़ी। इसके बाद शरद पूर्णिमा के व्रत का महत्व बढ़ गया ओर इसी कारण से इस व्रत को संतान सुख देने वाला भी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को जो औरत गर्भ धारण करती है, वह निश्चित रूप से प्रतिभाशाली, स्वस्थ चंद्र जैसी काति वाले पुत्र को जन्म देती है।

गीता में श्री कृष्ण भगवान ने भी कहा है,

'पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।'

'रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं।' (गीताः15.13)

हमारे शास्त्रों में अनेक मान्यताएं है जिनके अनुरूप शरद पूर्णिमा की खीर का विशेष महत्व है ।

शरद पूर्णिमा का अध्यात्मिक महत्व एवं मान्यताएं :-

हिंदू संस्कृति में आश्रि्वन मास की पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा को आनंद व उल्लास का पर्व माना जाता है। इस पर्व का धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व भी है।

*ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान शकर एवं माँ पार्वती कैलाश पर्वत पर रमण करते हैं, तथा संपूर्ण कैलाश पर्वत पर चंद्रमा जगमगा जाता है।

* भगवान कृष्ण ने भी शरद पूर्णिमा को रास-लीला की थी, तथा मथुरा-वृंदावन सहित अनेक स्थानों पर इस रात को रास-लीलाओं का आयोजन किया जाता है। लोग शरद पूर्णिमा को व्रत भी रखते हैं, तथा शास्त्रों में इसे कौमुदी व्रत भी कहा गया है।

*लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।

* ये भी माना जाता है कि इस रात माता लक्ष्मी अपने धनाधिपति कुबेर संग रात्रि भृमण करती हैं और जो लोग रात में जगते हुए, उनका पूजन स्मरण आदि करते मिलते हैं उन्हें मालामाल कर देती हैं।

*लक्ष्मी प्राप्ति की कामना से लोग चन्द्र दर्शन के प्रथम पहर में चन्द्र अमृत वर्षा उपरांत इस खीर से माता लक्ष्मी का भोग अर्ध रात्रि में लगाते हैं तो कहीं कहीं पर अगले दिन प्रातः काल फिर ब्राह्मण आदि को इसे खिलाकर स्वयम खाते हैं
यानी ऐसा पर्व जो धन और स्वास्थ्य दोनो के लिए लाभकारी है।

*ऐसी भी अति प्रचलित मान्यता है कि इस रात चन्द्रमा की रोशनी में सुई में धागा डालने से नेत्र ज्योति बरकरार रहती है।

* वहीं शरद पूर्णिमा की रात्रि चन्द्रदेव पर त्राटक अभ्यास भी नेत्र ज्योति के लिए लाभदायक माना जाता है।

*पूर्णिमा को चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है
जिससे चंद्रमा के प्रकाश की किरणें पृथ्वी पर स्वास्थ्य की बौछारे करती हैं।

* कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से नाग का विष भी अमृत बन जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि प्रकृति इस दिन धरती पर अमृत वर्षा करती है।

*चेहरे पर काति आती है :-
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा का पूजन कर भोग लगाया जाता है, जिससे आयु बढ़ती है व चेहरे पर कान्ति आती है , एवं शरीर स्वस्थ रहता है। शरद पूर्णिमा की मनमोहक सुनहरी रात में वैद्यों द्वारा जड़ी बूटियों से औषधि का निर्माण किया जाता है।

चंद्र किरणों में तैयार स्वास्थ्य खीर :-
* इसी प्रकार वैद्य लोग विभिन्न प्रकार के रोगियों के लिए इस रात चंद्र किरणों में खीर तैयार करते है।

सामान्य खीर में कालीमिर्च, सोंठ, पिप्पली, दशमूल, वंशलोचन, अमृता, इलायची, केसर, शहद आदि प्रयोग किये जाते हैं वहीं रोगी एवम रोग अनुसार भी औषधि एवं अनुपात का सामंजस्य किया जाता है।

*व्रत रखने वाले लोग चंद्र किरणों में पकाई गई खीर को अगले रोज प्रसाद के रूप में ग्रहण कर अपना व्रत खोलते है।

*सौंदर्य व छटा मन हर्षित करने वाली शरद पूर्णिमा की रात को नौका विहार करना, नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है।

शरद पूर्णिमा की रात प्रकृति का सौंदर्य व छटा मन को हर्षित करने वाली होती है। नाना प्रकार के पुष्पों की सुगंध इस रात में बढ़ जाती है, जो मन को लुभाती है वहीं तन को भी मुग्ध करती है। यह पर्व स्वास्थ्य, सौंदर्य व उल्लास बढ़ाने वाला माना गया है।

* इससे रोगी को सांस और कफ दोष के कारण होने वाली तकलीफों में काफी लाभ मिलता है I रात्रि जागरण के महत्व के कारण ही इसे जागृति (कोजागिरी यानी कौन जग रहा है) पूर्णिमा भी कहा जाता है , इसका एक कारण रात्रि में स्वाभाविक कफ के प्रकोप को जागरण से कम करना हैI

 *इस खीर को मधुमेह से पीड़ित रोगी भी ले सकते हैं, बस इसमें मिश्री की जगह प्राकृतिक स्वीटनर स्टीविया की पत्तियों को मिला दें I

हमारी हर प्राचीन परंपरा में वैज्ञानिकता का दर्शन होता हैं अज्ञानता का नहीं..

आप जानते होंगे की शरद ऋतु के प्रारम्भ में दिन थोड़े गर्म और रातें शीतल हो जाया करती हैं I

आयुर्वेद अनुसार यह पित्त दोष के प्रकोप का काल माना जाता है और मधुर तिक्त कषाय रस पित्त दोष का शमन करते हैं।

खीर खाने से पित्त का शमन होता है । शरद में ही पितृ पक्ष (श्राद्ध) आता है पितरों का मुख्य भोजन है खीर । इस दौरान 5-7 बार खीर खाना हो जाता है । इसके बाद शरद पुर्णिमा को रातभर पात्र में रखी खीर सुबह खाई जाती है

 (चाँदी का पात्र न हो तो चाँदी का चम्मच खीर मे डाल दे, लेकिन बर्तन मिट्टी, काँसा या पीतल का हो।

 क्योंकि स्टील जहर और एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी महा-जहर है)

यह खीर विशेष ठंडक पहुंचाती है । गाय के दूध की हो तो अति उत्तम, विशेष गुणकारी (आयुर्वेद मे घी से अर्थात गौ घी और दूध )

👳ध्यान रहे : अधिक पित्त वाले इस में बनाई खीर में केसर और मेंवों का प्रयोग न करे । ये गर्म प्रवृत्ति के होने से पित्त बढ़ा सकते है। सिर्फ इलायची डाले ।

ऊपर बताई औषधियों का स्वयम प्रयोग न करें। यदि कोई जानकार वैद्य हों तो उनसे परामर्श लें अथवा पारिवारिक परम्परा अनुसार या सिर्फ इलायची मिश्री युक्त खीर बनाएं।

अन्य किसी जानकारी , कुंडली विश्लेषण और समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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