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Saturday 30 May 2015

For Sharp Mind - Aarudha Saraswati stotra / ॥ आरूढ़ा सरस्वती स्तोत्र ॥

॥ आरूढ़ा सरस्वती स्तोत्र ॥

प्रार्थना

आरूढ़ा श्वेतहंसैर्भ्रमति च गगने दक्षिणे चाक्षसूत्रं
वामे हस्ते च दिव्याम्बरकनकमयं पुस्तकं ज्ञानगम्यम्
सा वीणां वादयन्ती स्वकरकरजपै: शास्त्रविज्ञानशब्दै:
क्रीडन्ती दिव्यरूपा करकमलधरा भारती सुप्रसन्ना ॥1॥
श्वेतपद्मासना देवी श्वेतगन्धानुलेपना
अर्चिता मुनिभि: सर्वैर्ॠषिभि: स्तूयते सदा
एवं ध्यात्वा सदा देवीं वाञ्छितं लभते नरै: ॥2॥
या कुन्देंदुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणा वरदण्डमंडितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा ॥3॥
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद् व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहां
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥ 4॥

बीजमन्त्रगर्भित स्तुति

ह्रीं ह्रीं ह्रद्यैकबीजे शशिरुचिकमले कल्पविस्पष्टशोभे
भव्ये भव्यानुकूले कुमतिवनदवे विश्ववन्द्याङ्घ्रिपद्मे
पद्मे पद्मोपविष्टे प्रणतजनमनोमोदसम्पादयित्रि
प्रोत्फुल्लज्ञानकूटे हरिनिजदयिते देवि संसारसारे ॥5॥
ऐं ऐं ऐं दृष्टमन्त्रे कमलभवमुखाम्भोजभूतस्वरूपे
रूपारूपप्रकाशे सकलगुणमये निर्गुणे निर्विकारे
न स्थूले नैव सूक्ष्मेऽप्यविदितविभवे नापि विज्ञानतत्त्वे
विश्वे विश्वान्तरात्मे सुरवरनमिते निष्कले नित्यशुद्धे ॥6॥
ह्रीं ह्रीं ह्रीं जाप्यतुष्टे शशिरुचिमुकुटे वल्लकीव्यग्रहस्ते
मातर्मातर्नमस्ते दह दह जड़तां, देहि बुद्धिं प्रशस्तां
विद्ये वेदान्तवेद्ये परिणतपठिते मोक्षदे मुक्तिमार्गे
मार्गातीतस्वरूपे भव मम वरदा शारदे शुभ्रहारे ॥7॥
धीं धीं धीं धारणाख्ये धृतिमतिनतिर्नामभि: कीर्तनीये
नित्येऽनित्ये निमित्ते मुनिगणनमिते नूतने वै पुराणे
पुण्ये पुण्यप्रवाहे हरिहरनमिते नित्यशुद्धे सुवर्णे
मातर्मात्रार्धतत्त्वे मतिमतिमतिदे माधवप्रीतिमोदे ॥8॥
हूं हूं हूं स्वरूपे दह दह दुरितं पुस्तकव्यग्रहस्ते
सन्तुष्टाकारचित्ते स्मितमुखि सुभगे जृम्भिणि स्तम्भविद्ये
मोहे मुग्धप्रवाहे कुरु मम विमतिध्वान्तविध्वंसमीड्ये
गीर्गौरवाग्भारति त्वं कविवररसनासिद्धिदे सिद्धिसाध्ये ॥9॥
आत्मनिवेदन
स्तौमि त्वां त्वां च वन्दे मम खलु रसनां नो कदाचित्त्यजेथा
मा मे बुद्धिर्विरुद्धा भवतु न च मनो देवि मे यातु पापम्
मा मे दु:खं कदाचित् क्वचिदपि विषयेऽप्यस्तु मे नाकुलत्वं
शास्त्रे वादे कवित्वे प्रसरतु मम धीर्मास्तु कुण्ठा कदापि ॥10॥
इत्येतै: श्लोकमुख्यै: प्रतिदिनमुषसि स्तौति यो भक्तिनम्रो
वाणीं वाचस्पतेरप्यविदितविभवो वाक्पटुमृष्टकण्ठ:
या स्यादिष्टार्थलाभै: सुतमिव सततं वर्धते सा च देवी
सौभाग्यं तस्य लोके प्रभवति कवितां विघ्नमस्तं प्रयाति॥11॥
निर्विघ्नं तस्य विद्या प्रभवति सततं चाश्रुतग्रन्थबोध:
कीर्तिस्त्रैलोक्यमध्ये निवसित वदने शारदा तस्य साक्षात्
दीर्घायुर्लोकपूज्य: सकलगुणनिधि: सन्ततं राजमान्यो
वाग्देव्या: सम्प्रसादात् त्रिजगति विजयी सत्सभासु प्रपूज्य: ॥12॥

फलश्रुति
ब्रह्मचारी व्रती मौनी त्रयोदश्यां निरामिष:
सारस्वतो जन: पाठात्सकृदिष्टार्थलाभवान्
पक्षद्वये त्रयोदश्यां एकविंशतिसंख्यया
अविच्छिन: पठेद् धीमान् ध्यात्वा देवीं सरस्वतीं ॥14॥
सर्वपापविनिर्मुक्त: सुभगो लोकविश्रुत:
वाञ्छितं फलमाप्नोति लोकेऽस्मिन्नात्र संशय:
ब्रह्मणेति स्वयं प्रोक्तं सरस्वत्या: स्तवं शुभम्
प्रयत्नेन पठेन्नित्यं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥15॥
॥ इति आरूढ़ा सरस्वती स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

प्रजापति ब्रह्माजी द्वारा रचित यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली है। बचपन से ही इसके पाठ की आदत विद्यार्थी में होना चाहिए। 
इसके नित्य पाठ से बुद्धि तीव्र होती है, स्मरणशक्ति प्रबल होती है, प्रतिभा विकसित होती है एवं दोनों पक्ष (कृष्ण तथा शुक्ल) की त्रयोदशी को निरामिष रह 21 बार निरंतर पाठ करने से वाञ्छित फल प्राप्त होता है।

अन्य किसी जानकारी , कुंडली विश्लेषण और समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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8909521616(whats app)
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Pashupatastra stotra / पाशुपतास्त्र स्तोत्रम

पाशुपतास्त्र स्तोत्रम ( pashupatastra stotra )


इस पाशुपत स्तोत्र का मात्र एक बार जप करने पर ही मनुष्य समस्त विघ्नों का नाश कर सकता है ।

 सौ बार जप करने पर समस्त उत्पातो को नष्ट कर सकता है तथा युद्ध आदि में विजय प्राप्त के सकता है ।

 इस मंत्र का घी और गुग्गल से हवं करने से मनुष्य असाध्य कार्यो को पूर्ण कर सकता है ।

इस पाशुपातास्त्र मंत्र के पाठ मात्र से समस्त क्लेशो की शांति हो जाती है ।

स्तोत्रम
ॐ नमो भगवते महापाशुपतायातुलबलवीर्यपराक्रमाय त्रिपन्चनयनाय नानारुपाय नानाप्रहरणोद्यताय सर्वांगडरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशान वेतालप्रियाय सर्वविघ्ननिकृन्तन रताय सर्वसिध्दिप्रदाय भक्तानुकम्पिने असंख्यवक्त्रभुजपादाय तस्मिन् सिध्दाय वेतालवित्रासिने शाकिनीक्षोभ जनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभन्जनाय सूर्यसोमाग्नित्राय विष्णु कवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदण्डवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलज्जिह्राय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षय कारिणे ।

ॐ कृष्णपिंग्डलाय फट । हूंकारास्त्राय फट । वज्र हस्ताय फट । शक्तये फट । दण्डाय फट । यमाय फट । खडगाय फट । नैऋताय फट । वरुणाय फट । वज्राय फट । पाशाय फट । ध्वजाय फट । अंकुशाय फट । गदायै फट । कुबेराय फट । त्रिशूलाय फट । मुदगराय फट । चक्राय फट । पद्माय फट । नागास्त्राय फट । ईशानाय फट । खेटकास्त्राय फट । मुण्डाय फट । मुण्डास्त्राय फट । काड्कालास्त्राय फट । पिच्छिकास्त्राय फट । क्षुरिकास्त्राय फट । ब्रह्मास्त्राय फट । शक्त्यस्त्राय फट । गणास्त्राय फट । सिध्दास्त्राय फट । पिलिपिच्छास्त्राय फट । गंधर्वास्त्राय फट । पूर्वास्त्रायै फट । दक्षिणास्त्राय फट । वामास्त्राय फट । पश्चिमास्त्राय फट । मंत्रास्त्राय फट । शाकिन्यास्त्राय फट । योगिन्यस्त्राय फट । दण्डास्त्राय फट । महादण्डास्त्राय फट । नमोअस्त्राय फट । शिवास्त्राय फट । ईशानास्त्राय फट । पुरुषास्त्राय फट । अघोरास्त्राय फट । सद्योजातास्त्राय फट । हृदयास्त्राय फट । महास्त्राय फट । गरुडास्त्राय फट । राक्षसास्त्राय फट । दानवास्त्राय फट । क्षौ नरसिन्हास्त्राय फट । त्वष्ट्रास्त्राय फट । सर्वास्त्राय फट । नः फट । वः फट । पः फट । फः फट । मः फट । श्रीः फट । पेः फट । भूः फट । भुवः फट । स्वः फट । महः फट । जनः फट । तपः फट । सत्यं फट । सर्वलोक फट । सर्वपाताल फट । सर्वतत्व फट । सर्वप्राण फट । सर्वनाड़ी फट । सर्वकारण फट । सर्वदेव फट । ह्रीं फट । श्रीं फट । डूं फट । स्त्रुं फट । स्वां फट । लां फट । वैराग्याय फट । मायास्त्राय फट । कामास्त्राय फट । क्षेत्रपालास्त्राय फट । हुंकरास्त्राय फट । भास्करास्त्राय फट । चंद्रास्त्राय फट । विघ्नेश्वरास्त्राय फट । गौः गां फट । स्त्रों स्त्रौं फट । हौं हों फट । भ्रामय भ्रामय फट । संतापय संतापय फट । छादय छादय फट । उन्मूलय उन्मूलय फट । त्रासय त्रासय फट । संजीवय संजीवय फट । विद्रावय विद्रावय फट । सर्वदुरितं नाशय नाशय फट ।

अन्य किसी जानकारी , कुंडली विश्लेषण और समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Monday 25 May 2015

Dhoomavati jayanti 2015 धूमावती जयंती विशेष

धूमावती जयंती विशेष
26 मई 2015

 दस  महाविद्याओं  में सातवीं  महाविद्या हैं माँ धूमावती। इन्हे अलक्ष्मी या ज्येष्ठालक्ष्मी यानि लक्ष्मी की बड़ी बहन भी कहा जाता है। 
ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी को माँ धूमावती जयन्ति के रूप मइ मनाया जाता है।

 मां धूमावती विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं तथा इनका वाहन कौवा है, ये श्वेत वस्त्र धारण कि हुए, खुले केश रुप में होती हैं।  धूमावती महाविद्या ही ऐसी शक्ति हैं जो व्यक्ति की दीनहीन अवस्था का कारण हैं। विधवा के आचरण वाली यह महाशक्ति दुःख दारिद्रय की स्वामिनी होते हुए भी अपने भक्तों पर कृपा करती हैं।

इनका ध्यान इस प्रकार बताया है ’- अत्यन्त लम्बी, मलिनवस्त्रा, रूक्षवर्णा, कान्तिहीन, चंचला, दुष्टा, बिखरे बालों वाली, विधवा, रूखी आखों वाली, शत्रु के लिये उद्वेग कारिणी, लम्बे विरल दांतों वाली, बुभुक्षिता, पसीने से आद्‍​र्र, स्तन नीचे लटके हो, सूप युक्ता, हाथ फटकारती हुई, बडी नासिका, कुटिला , भयप्रदा,कृष्णवर्णा, कलहप्रिया, तथा जिसके रथ पर कौआ बैठा हो ऐसी देवी। 

देवी का मुख्य अस्त्र है सूप जिसमे ये समस्त विश्व को समेत कर महाप्रलय कर देती हैं।  

दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है।  शाप देने नष्ट करने व  संहार  करने की जितनी भी क्षमताएं है वो देवी के कारण ही है।  क्रोधमय ऋषियों की मूल शक्ति धूमावती हैं जैसे दुर्वासा, अंगीरा, भृगु, परशुराम आदि।  

सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है ,  चौमासा ही देवी का प्रमुख समय होता है जब इनको प्रसन्न किया जाता है। नरक चतुर्दशी देवी का ही दिन होता है जब वो पापियों को पीड़ित व दण्डित करती हैं।  
देश के कयी भागों में नर्क चतुर्दशी पर घर से कूड़ा करकट साफ कर उसे घर से बाहर कर अलक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है की आप हमारे सारे दारिद्र लेकर विदा होइए।

ज्योतिष शास्त्रानुसार मां धूमावती का संबंध केतु ग्रह तथा इनका नक्षत्र ज्येष्ठा है। इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है। ज्योतिष शस्त्र अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु ग्रह श्रेष्ठ जगह पर कार्यरत हो अथवा केतु ग्रह से सहयता मिल रही ही तो व्यक्ति के जीवन में दुख दारिद्रय और दुर्भाग्य से छुटकारा मिलता है। केतु ग्रह की प्रबलता से व्यक्ति सभी प्रकार के कर्जों से मुक्ति पाता है और उसके जीवन में धन, सुख और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। 

देवी का प्राकट्य :-

 पहली कहानी तो यह है कि जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जला कर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआँ निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ. इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं. यानी धूमावती धुएँ के रूप में सती का भौतिक स्वरूप है. सती का जो कुछ बचा रहा- उदास धुआँ। 

 दूसरी कहानी यह है कि एक बार सती शिव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थी. तभी उन्हें ज़ोरों की भूख लगी. उन्होने शिव से कहा-” मुझे भूख लगी है. मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें.” शिव ने कहा-” अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता.” तब सती ने कहा-” ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूँ।  ” और वे शिव को ही निगल गयीं।  शिव, जो इस जगत के सर्जक हैं, परिपालक हैं। 

फिर शिव ने उनसे अनुरोध किया कि’ मुझे बाहर निकालो’, तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया. निकालने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि ‘ अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी.’

तभी से वे विधवा हैं-अभिशप्त और परित्यक्त.भूख लगना और पति को निगल जाना सांकेतिक है. यह इंसान की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी ख़त्म नही होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है. माँ धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं। 

नोट :-  

अनुभवी साधको का मन्ना है की गृहस्त लोगों को देवी की साधना नही करनी चाहिए।  वहीँ कुछ का ऐसा मन्ना है की यदि इनकी साधना करनी भी हो घर से दूर एकांत स्थान में अथवा एकाँकी रूप से करनी चाहिए।  

विशेष ध्यान देने की बात ये है की इन महाविद्या का स्थायी आह्वाहन नहीं होता अर्थात इन्हे लम्बे समय तक घर में स्थापित या विराजमान होने की कामना नहीं करनी चाहिए क्यूंकि ये दुःख क्लेश और दरिद्रता की देवी हैं ।  इनकी पूजा के समय ऐसी भावना करनी चाहिए की देवी प्रसन्न होकर मेरे समस्त दुःख, रोग , दरिद्रता ,कष्ट ,विघ्न ,बढ़ाये, क्लेशादी को अपने सूप में समेत कर मेरे घर से विदा हो रही हैं और हमें धन , लक्ष्मी ,  सुख एवं शांति का आशीर्वाद दे रही हैं । 

निरंतर इनकी स्तुति करने वाला कभी धन विहीन नहीं होता व उसे दुःख छूते भी नहीं , बड़ी से बड़ी शक्ति भी इनके सामने नहीं टिक पाती इनका तेज सर्वोच्च कहा जाता है।  श्वेतरूप व धूम्र अर्थात धुंआ इनको प्रिय है पृथ्वी के आकाश में स्थित बादलों में इनका निवास होता है। 

देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है

स्तुति :- 

विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा,

विवरणकुण्डला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,

काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,

सूर्यहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,

प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,

क्षुतपिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहप्रिया.

१       ॥ सौभाग्यदात्री धूमावती कवचम् ॥ 

धूमावती मुखं पातु  धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी ।

ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ॥१॥

कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके ।

सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ॥२॥

सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः ।

सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देविपुरं ययौ ॥३॥

॥ श्री सौभाग्यधूमावतीकल्पोक्त धूमावतीकवचम् ॥

२                ॥ धूमावती कवचम् ॥

श्रीपार्वत्युवाच

धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतम् विस्तरतो मया ।

कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे ॥१॥

श्रीभैरव उवाच

शृणु देवि परङ्गुह्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।

कवचं श्रीधूमावत्या: शत्रुनिग्रहकारकम् ॥२॥

ब्रह्माद्या देवि सततम् यद्वशादरिघातिनः ।

योगिनोऽभवञ्छत्रुघ्ना यस्या ध्यानप्रभावतः ॥३॥

ओमस्य श्रीधूमावतीकवचस्य पिप्पलाद ऋषिरनुष्टुब्छन्दः

,श्रीधूमावती देवता, धूं बीजं ,स्वाहा शक्तिः ,धूमावती कीलकं ,

शत्रुहनने पाठे विनियोगः ॥

ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु ।

धूमा नेत्रयुगम्पात वती कर्णौ सदाऽवतु ॥१॥

दीर्ग्घा तुउदरमध्ये तु नाभिम्मे मलिनाम्बरा ।

शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी ॥२॥

मुखम्मे पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।

सर्वा विद्याऽवतु कण्ठम् विवर्णा बाहुयुग्मकम् ॥३॥

चञ्चला हृदयम्पातु दुष्टा पार्श्वं सदाऽवतु ।

धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ॥४॥

प्रवृद्धरोमा तु भृशङ्कुटिला कुटिलेक्षणा ।

क्षुत्पिपासार्द्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ॥५॥

सर्वाङ्गम्पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी ।

इति ते कवचम्पुण्यङ्कथितम्भुवि दुर्लभम् ॥६॥

न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।

पठनीयम्महादेवि त्रिसन्ध्यन्ध्यानतत्परैः ।।७॥

दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रन्नैव संस्पृशेत् । ७.१।

॥ इति भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीतन्त्रे धूमावतीकवचं 

सम्पूर्णम् ॥

३              धूमावती अष्टक स्तोत्रं

॥ अथ स्तोत्रं ॥

प्रातर्या स्यात्कुमारी कुसुमकलिकया जापमाला जपन्ती

मध्याह्ने प्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम् |

सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां

वहन्ती सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालिका पातु युष्मान् || १ ||

बद्ध्वा खट्वाङ्गकोटौ कपिलवरजटामण्डलम्पद्मयोनेः

कृत्वा दैत्योत्तमाङ्गैस्स्रजमुरसि शिर शेखरन्तार्क्ष्यपक्षैः |

पूर्णं रक्तै्सुराणां यममहिषमहाशृङ्गमादाय पाणौ

पायाद्वो वन्द्यमानप्रलयमुदितया भैरवः कालरात्र्याम् || २ ||

चर्वन्तीमस्थिखण्डम्प्रकटकटकटाशब्दशङ्घातम्-

उग्रङ्कुर्वाणा प्रेतमध्ये कहहकहकहाहास्यमुग्रङ्कृशाङ्गी |

नित्यन्नित्यप्रसक्ता डमरुडिमडिमां स्फारयन्ती मुखाब्जम्-

पायान्नश्चण्डिकेयं झझमझमझमा जल्पमाना भ्रमन्ती || ३ ||

टण्टण्टण्टण्टटण्टाप्रकरटमटमानाटघण्टां

वहन्ती

स्फेंस्फेंस्फेंस्कारकाराटकटकितहसा नादसङ्घट्टभीमा |

लोलम्मुण्डाग्रमाला ललहलहलहालोललोलाग्रवाचञ्चर्वन्ती

चण्डमुण्डं मटमटमटिते चर्वयन्ती पुनातु || ४ ||

वामे कर्णे मृगाङ्कप्रलयपरिगतन्दक्षिणे सूर्यबिम्बङ्कण्ठे

नक्षत्रहारंव्वरविकटजटाजूटके मुण्डमालाम् |

स्कन्धे कृत्वोरगेन्द्रध्वजनिकरयुतम्ब्रह्मकङ्कालभारं

संहारे धारयन्ती मम हरतु भयम्भद्रदा भद्रकाली || ५ ||

तैलाभ्यक्तैकवेणी त्रपुमयविलसत्कर्णिकाक्रान्तकर्णा

लौहेनैकेन कृत्वा चरणनलिनकामात्मनः पादशोभाम् |

दिग्वासा रासभेन ग्रसति जगदिदंय्या यवाकर्णपूरा

वर्षिण्यातिप्रबद्धा ध्वजविततभुजा सासि देवि त्वमेव || ६ ||

सङ्ग्रामे हेतिकृत्वैस्सरुधिरदशनैर्यद्भटानां

शिरोभिर्मालामावद्ध्य मूर्ध्नि ध्वजविततभुजा त्वं श्मशाने

प्रविष्टा |

दृष्टा भूतप्रभूतैः पृथुतरजघना वद्धनागेन्द्रकाञ्ची

शूलग्रव्यग्रहस्ता मधुरुधिरसदा ताम्रनेत्रा निशायाम् || ७ ||

दंष्ट्रा रौद्रे मुखेऽस्मिंस्तव विशति जगद्देवि सर्वं क्षणार्द्धात्

संसारस्यान्तकाले नररुधिरवशा सम्प्लवे भूमधूम्रे |

काली कापालिकी साशवशयनतरा योगिनी योगमुद्रा रक्तारुद्धिः

सभास्था भरणभयहरा त्वं शिवा चण्डघण्टा || ८ ||

धूमावत्यष्टकम्पुण्यं सर्वापद्विनिवारकम् |

यः पठेत्साधको भक्त्या सिद्धिं व्विन्दन्ति वाञ्छिताम् || ९ ||

महापदि महाघोरे महारोगे महारणे |

शत्रूच्चाटे मारणादौ जन्तूनाम्मोहने तथा || १० ||

पठेत्स्तोत्रमिदन्देवि सर्वत्र सिद्धिभाग्भवेत् |

देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः || ११ ||

सिंहव्याघ्रादिकास्सर्वे स्तोत्रस्मरणमात्रतः |

दूराद्दूरतरं य्यान्ति किम्पुनर्मानुषादयः || १२ ||

स्तोत्रेणानेन देवेशि किन्न सिद्ध्यति भूतले |

सर्वशान्तिर्ब्भवेद्देवि ह्यन्ते निर्वाणतां व्व्रजेत् || १३ ||

।। इत्यूर्द्ध्वाम्नाये धूमावतीअष्टक स्तोत्रं समाप्तम् ।।

 देवी की कृपा से साधक धर्म अर्थ काम और मोक्ष प्राप्त कर लेता है। गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में सिर्फ  पूजा करनी चाहिए।  

ऐसा मन जाता है की कुण्डलिनी चक्र के मूल में स्थित कूर्म में इनकी शक्ति विद्यमान होती है। देवी साधक के पास बड़े से बड़ी बाधाओं से लड़ने और उनको जीत लेने की क्षमता आ जाती है।  

महाविद्या धूमावती के मन्त्रों से  बड़े से बड़े दुखों का नाश होता है।  

१-   देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र है-

ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा

अथवा

ॐ धूं धूं धूमावती ठ: ठ: 

इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं व देवी को पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए केवल पुष्पों के होम से ही देवी कृपा कर देती है,आप भी मनोकामना के लिए यज्ञ कर सकते हैं,जैसे-

1. राई में नमक मिला कर होम करने से बड़े से बड़ा शत्रु भी समूल रूप से नष्ट हो जाता है 

2.नीम की पत्तियों सहित घी का होम करने से लम्बे समस से चला आ रहा ऋण नष्ट होता है 

3.जटामांसी और कालीमिर्च से होम करने पर काल्सर्पादी दोष नष्ट होते हैं व क्रूर ग्रह भी नष्ट होते हैं 

4. रक्तचंदन घिस कर शहद में मिला लेँ व जौ से मिश्रित कर होम करें तो दुर्भाग्यशाली मनुष्य का भाग्य भी चमक उठता है 

5.गुड व गाने से होम करने पर गरीबी सदा के लिए दूर होती है 

6 .केवल काली मिर्च से होम करने पर कारागार में फसा व्यक्ति मुक्त हो जाता है 

7 .मीठी रोटी व घी से होम करने पर बड़े से बड़ा संकट व बड़े से बड़ा रोग अति शीग्र नष्ट होता है 

२-   धूमावती गायत्री मंत्र:- 

ओम धूमावत्यै विद्महे संहारिण्यै धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात। 

वाराही विद्या में इन्हे धूम्रवाराही कहा गया है जो शत्रुओं के मारन और उच्चाटन में प्रयोग की जाती है।  

३ ) देवी धूमावती का शत्रु नाशक मंत्र 

ॐ ठ ह्रीं ह्रीं वज्रपातिनिये स्वाहा 

सफेद रंग के वस्त्र और पुष्प देवी को अर्पित करें, नवैद्य प्रसाद,पुष्प,धूप दीप आरती आदि से पूजन करें। 

रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें, रात्री में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है 

सफेद रंग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें  दक्षिण दिशा की ओर मुख रखें 

यदि शत्रु से दुखी हैं तो इनकी पूजा करते हुए ऐसी कामना करनी चाहिए की देवी समस्त दुःख रोग क्लेश दारिद्र  के साथ अपने रौद्र रूप में शत्रु के घर में स्थायी रूप से विराजमान हो गयी हैं। देवी के वहां कौए ने अपने कुटुंब के साथ शत्रु के घर को अपना डेरा बना लिया है और शत्रु का घर निर्जन होने लगा है। 

४ ) देवी धूमावती का धन प्रदाता मंत्र

ॐ धूं धूं सः ह्रीं धुमावतिये फट 

नारियल, कपूर व पान देवी को अर्पित करें, काली मिर्च से हवन करें , रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें। 

५ ) देवी धूमावती का ऋण मोचक मंत्र

ॐ धूं धूं ह्रीं आं हुम 

देवी को वस्त्र व इलायची समर्पित करें , रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें।

किसी बृक्ष के किनारे बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है। सफेद रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें , उत्तर दिशा की ओर मुख रखें।  खीर प्रसाद रूप में चढ़ाएं।

६ ) देवी धूमावती का सौभाग्य बर्धक मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं धूं धूं धुमावतिये ह्रीं ह्रीं स्वाहा 

देवी को पान अर्पित करना चाहिए 

पूर्व दिशा की ओर मुख रख रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें।  एकांत में बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है , सफेद रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें। 

 पेठा प्रसाद रूप में चढ़ाएं। 

७ ) देवी धूमावती का ग्रहदोष नाशक मंत्र

ॐ ठ: ठ: ठ: ह्रीं हुम स्वाहा 

देवी को पंचामृत अर्पित करें

उत्तर दिशा की ओर मुख रख रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें।  देवी की मूर्ती के निकट बैठ कर मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है  सफेद रग का वस्त्र आसन के रूप में रखें या उनी कम्बल का आसन रखें। 

नारियल प्रसाद रूप में चढ़ाएं

विशेष पूजा सामग्रियां-          पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है 

सफेद रंग के फूल, आक के फूल, सफेद वस्त्र व पुष्पमालाएं ,  केसर, अक्षत, घी, सफेद तिल, धतूरा, आक, जौ, सुपारी व नारियल , चमेवा व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें। 
सूप की आकृति पूजा स्थान पर रखें 
दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो मिटटी के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें। 

देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-

बिना गुरु दीक्षा के इनकी साधना कदापि न करें। थोड़ी सी भी चूक होने पर विपरीत फल प्राप्त होगा और पारिवारिक कलह दरिद्र का शिकार होंगे।
लाल वस्त्र देवी को कभी भी अर्पित न करें 
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में गुड व गन्ने का प्रयोग न करें 
देवी भक्त ध्यान व योग के समय भूमि पर बिना आसन कदापि न बैठें 
पूजा में कलश स्थापित न करें 

व्यक्तिगत अनुभव :-
एक मित्र जो माँ धूमावती की साधना करते थे ने एक अष्टाक्षरी मन्त्र दिया था। रोज 21 जप मात्र करता था।
अचानक कुछ ऐसा हुआ की बड़ी देनदारी हो गयी और कुछ समझ नहीं आया की अब पैसे का इंतज़ाम कैसे हो।
माँ के उसी मन्त्र का जप शुरू कर दिया। 4 दिन में ही माँ की कृपा हुई और पैसों का इंतज़ाम हो गया।
ऐसा दो बार हुआ है इसलिए व्यक्तिगत अनुभव से तो यही कहूँगा की कृपा करने और धन देने में माँ धूमावती किसी दूसरी महाविद्या से कम नहीं हैं।

अन्य किसी जानकारी , कुंडली विश्लेषण और समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Thursday 21 May 2015

Tantra for Lottery, share profitt, gambling ( Tantrik herbs )आकस्मिक / फंसा धन प्राप्ति प्रयोग(शेयर, लॉटरी, सट्टा एवम् प्रॉपर्टी में विशेष लाभदायक)

आकस्मिक धन प्राप्ति प्रयोग
(शेयर, लॉटरी, सट्टा एवम् प्रॉपर्टी में विशेष लाभदायक)
तांत्रिक जड़ीबूटियां भाग 4
मित्रों,
    वनस्पति तंत्र के ऐसे कई प्रयोग हैं जो अविश्वसनीय रूप से लाभ पहुंचाते हैं।
ऐसी ही एक अद्भुद तंत्रोक्त वनस्पति है
हरसिंगार यानि पारिजात।
विद्वतजनों के अनुसार पुराणों में कल्पवृक्ष के नाम से सम्बोधन पाने वाला वृक्ष पारिजात है।
हरसिंगार के बारे में पुराणों में वर्णन है की ये समुद्रमन्थन में प्रकट हुआ और इसकी अभूतपूर्व सुंदरता के कारण देवराज इंद्र इसे अपने साथ स्वर्ग ले गए और वहां इसका रोपण किया।
भगवान शिव को इसके पुष्प अति प्रिय हैं और इसके पुष्पों से उनका श्रृंगार होने के कारण ही इसे हर सिंगार कहते हैं।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार नारद ऋषि ने इसके फूल स्वर्ग से लाकर भगवान् कृष्ण की पत्नी सत्यभामा को दिए। इन पुष्पों की सुंदरता से अभिभूत सत्यभामा ने श्री कृष्ण से ये वृक्ष लाने की जिद की। वे इसे अपने प्रांगण में लगाना चाहती थीं। कृष्ण ने पहले इंद्र से माँगा पर जब उन्होंने मना किया तो वे स्वर्ग पर आक्रमण कर युद्ध में इंद्र को परास्त कर इसे ले आये।
समुद्रोत्प्नना होने के कारण ये माँ लक्ष्मी का सहोदर हुआ और इसलिए उन्हें अति प्रिय है।
ये वृक्ष हनुमान जी को भी अति प्रिय है और वर्णन है कि
आञ्जनेय मति पाटलालनं
काञ्चनाद्रिकमनीय विग्रहं
पारिजात तरु मूल वासिनं
भावयामि पवमान नन्दनम।।
इस वृक्ष का महात्म्य इसी से समझा जा सकता है की इसके पुष्पों को हाथ से नहीं तोडा जाता और तोड़ने पर देवकोप का भाजन बनना पड़ता है। वृक्ष के नीचे रात्रि में चादर बिछा दी जाती है और रात्रि में जो पुष्प उस पर स्वयं टूट कर गिरते हैं उनसे ही प्रातः भगवान् का श्रृंगार होता है।
जिस घर में ये वृक्ष मात्र लगा हो वहां कभी दरिद्रता नहीं आती।
जहाँ इसका नित्य पूजन होता है वो घर समृद्धिशाली होता है।
इसके नीचे विद्यार्जन यानि पठन पाठन करने से माँ सरस्वती का आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता है।
यह पौधा चंद्र से संबंध रखता है। घर के बीचोबीच या घर के पिछले हिस्से में इसको लगाना लाभकारी होता है। इसकी सुगंध से मानसिक शांति मिलती है।आयुर्वेद में भी ये बेहद महत्वपूर्ण औषधि है।
ग्रामीण भाषा में इसे हडजोड़  भी कहते हैं ,क्योकि ग्रामीण क्षेत्रों में टूटी हुई हड्डी आदि को जोड़ने के लिए इसकी टहनियों को कुचलकर टूटी जगह लगाकर बांधने से हड्डी आपस में जुड़कर ठीक हो जाती है |
इसके अलावा गठिया में इसके पत्तों की चटनी खाने से लाभ होता है।
इसकी पत्तियों और बीज को तिल के तेल में पकाकर उस तेल की मालिश करने से गंजे के सर में भी बाल आ जाते हैं और ये प्रमाणिक प्रयोग है। बालों के टूटने झड़ने सफ़ेद होने से बचाने के लिए भी ये राम बाण प्रयोग है।
ऊपरी बाधा से ग्रसित व्यक्ति को इसका अभिमंत्रित मूल पहनाने से लाभ होता है।
इसके बहुत से तांत्रिक उपयोग हैं ,जैसे पारिवारिक कलह हटाने के लिए समृद्धि और सर्वत्र विजय के लिए।
आकस्मिक धन प्राप्ति हेतु प्रयोग
आकस्मिक धन प्राप्ति के लिए रवि पुष्य नक्षत्र में प्राप्त हर सिंगार की जड़ और श्वेत गूंजा के ग्यारह दाने और उसी नक्षत्र में निर्मित और अभिमंत्रित प्राण प्रतिष्ठित विजय लक्ष्मी यन्त्र चांदी के ताबीज में धारण करने से आकस्मिक धन प्राप्ति के साधन बनते रहते हैं ।
शेयर मार्किट , रिस्क इन्वेस्टमेंट, जुआ ,सट्टा, लाटरी , जमीन प्रापर्टी ,सेल्स से जुड़े लोगों के लिए यह बहुत कारगर हो सकता है ।
इसे अपने कार्यस्थल, केबिन- डेस्क , या दुकान प्रतिष्ठान में स्थापित किया जा सकता है।
बाजार में फंसे धन की प्राप्ति
यदि आप व्यापारी हैं और आपका पैसा बाजार में फंसा अटका है। काम पूरा करने के बाद भी पेमेंट बहुत धीरे धीरे टुकड़ों में मिलती है तो उपरोक्त सामग्री यानि पारिजात मूल, श्वेत गुंजा, और विजय लक्ष्मी यंत्र को कुश के बांदे के साथ अपने दुकान प्रतिष्ठान के मन्दिर में स्थापित करें। शीघ्र ही फंसे पैसे वापस आने शुरू हो जायेंगे।
अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।
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Saturday 16 May 2015

Shani jayanti 2015 शनि जयन्ती 2015


शनि जयंती विशेष 2015
शुभ अशुभ शनि हेतु उपाय

सभी मित्रों को शनि जयंती की शुभकामनायें

इस वर्ष शनि जयंती पर थोडा मतभेद है  उदयतिथि के मत से शनि जयंती 18 मई सोमवार को है।

पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर शनि का जन्म हुआ था। एक मान्यता के अनुसार भगवान शनिदेव का जन्म अपराह्न काल यानि दोपहर 12 बजे माना जाता है  और सोमवार 18 मई को अमावस्या सुबह 9:14 बजे तक ही है इसीलिए 17 मई को दोपहर 11.48 मिनट से लगने वाली अमावस्या में ही शनि जयंती मनाना श्रेष्ठ रहेगा, ऐसा ज्योतिषाचार्यों का मत है।  संयोग से इस बार शनि जयंती-सोमवती अमावस्या साथ है। अत: इस दिन शनिदेव का पूजन-अर्चना करना शुभ फलदायी रहेगा।  शनि की साढ़ेसाती व ढैया से प्रभावित लोगों को शनि महाराज को खुश करने के लिए दान-पुण्य के साथ-साथ उनके मंत्रों का जाप करना जरूरी है। खास तौर पर गरीबों को बांटे गए वस्त्र, कंबल, छत्री, असहायों को भोजन कराना, इमरती खिलाना, दान दक्षिणा देने जैसे कार्य करने से शनि की दृष्टि से प्रभावित भक्तों के कष्ट दूर होकर उन्हें सुख के अवसर प्राप्त होते हैं।

शनि शान्ति के उपाय:-

यदि शनि विपरीत फल दे रहा है या कष्टकारी है या आप शनि की महादशा अंतर्दशा ढैय्या या साढ़े साती में हैं तो निम्न उपाय लाभ प्रद होंगे

1- राजा दशरथ विरचित शनि स्तोत्र का नित्य पाठ करें।

 2- शनि मंदिर या चित्र पूजन कर प्रतिदिन इस मंत्र का पाठ करें:-
नमस्ते कोण संस्थाय, पिंगलाय नमोस्तुते। नमस्ते वभु्ररूपाय, कृष्णाय च नमोस्तुते ।।
नमस्ते रौद्रदेहाय, नमस्ते चांतकाय च। नमस्ते यमसंज्ञाय, नमस्ते सौरये विभौ।।
नमस्ते मंदसंज्ञाय, शनैश्चर नमोस्तुते। प्रसादं कुरू में देवेश, दीनस्य प्रणतस्य च।।

3- घर में पारद, स्फटिक या नर्मदेश्वर शिवलिंग स्थापित कर विधानपूर्वक पूजा अर्चना कर, रूद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए।

4- सुंदरकाण्ड का पाठ एवं हनुमान उपासना, संकटमोचन का पाठ करें।

5- प्रति शनिवार , शनि अमावस्या शनि जयंती पर, शनि मंदिर जाकर, शनिदेव का अभिषेक कर दर्शन करें।

6- ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम: के 23,000 जप करें फिर 27 दिन तक शनि स्तोत्र के चार पाठ रोज करें।

7- शनिवार को सायंकाल पीपल के पेड के नीचे  तेल का दीपक जलाएं।

8- घर के मुख्य द्वार पर, काले घोडे की नाल, शनिवार के दिन लगावें।

9- काले तिल, ऊनी वस्त्र, कंबल, चमडे के जूते, काला छाता, तिल का तेल, उडद, लोहा, काली गाय, भैंस, कस्तूरी, स्वर्ण, तांबा आदि का दान करें।

10-घोडे की नाल अथवा नाव की कील का छल्ला बनवाकर मघ्यमा अंगुली में पहनें।

11- कडवे तेल में परछाई देखकर, उसे अपने ऊपर सात बार उसारकर दान करें, पहना हुआ वस्त्र भी दान दे दें ।

12- ध्यान रहे की शनि विग्रह के चरणों का दर्शन करें, मुख के दर्शन से बचें। जिससे उनकी दृष्टि आप पर न पड़े।

13- शनि देव को तेल का स्नान भी पीछे या बगल में खड़े होक कराएं सामने से नहीं।

14- शनिवार को श्मशान घाट में लकड़ी दान करें

15- सात शनिवार सरसों का तेल सारे शरीर में लगाकर और मालिश करके साबुन लगााकर नहाएं

16- शनिवार को शनि ग्रह की वस्तुएं न दान में लें और न ही बाजार से खरीदें।

17- मीट मांस शराब तथा सिगरेट का प्रयोग न करें।

18- सात प्रकार के धानों का दान तथा शनिवार को प्रातः पीपल का पूजन करें।

19- बिच्छु की जड़  की जड़ का पूजन कर अभिमंत्रित कर काले कपड़े में बाँधकर श्रवण नक्षत्र में विधि पूर्वक धारण करने से शनि दोष क्षीण होता है।

20- शनिव्रत : श्रावण मास के शुक्ल पक्ष से, शनिव्रत आरंभ करें, 33 व्रत करने चाहिएँ, तत्पश्चात् उद्यापन करके, दान करे

21- झूठ बोलने और धोखाधड़ी करने से बचें।

शुभ शनि के लिए उपाय:-

शुभ तथा सम शनि ग्रह के प्रभाव में वृद्धि करने के लिए निम्नलिखित उपाय करें।

1- शनिवार को नीलम रत्न धारण करें। नीलम रत्न चांदी अथवा लोहे की अंगूठी में मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए। अंगूठी इस प्रकार बनवाएं कि नीलम नीचे से आपकी त्वचा को छूता रहे। नीलम धारण करने से पहले नीलम की अंगूठी अथवा लॉकेट को गंगा जल अथवा कच्चे दूध से धोकर सामने रखकर धूप-दीप आदि दिखाएं और कम से कम १०८ बार उपयुक्त शनि मन्त्र का जप करें। साथ में १०८ बार शिवजी के मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप कर लेना भी बहुत लाभदायक माना गया है।

2- शनि ग्रह से संबंधित वस्तुओं का उपयोग या व्यापार करें। शनि ग्रह से संबंधित वस्तुएं हैं :- लोहा, काली उड़द, काला तिल, कुलथी, तेल, भैंस काला कुत्ता, काला घोड़ा, काला कपड़ा, तथा लोहे से बने बर्तन व मशीनरी।

3- शनिवार को काले घोड़े की नाल की अंगूठी अथवा कड़ा धारण करे

4- शनिवार को पीपल में या शनि देव के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाए।

5- चारपाई अथवा बेड के चारों पायों में लोहे का एक-एक कील लगााएं।
मकान के चारों कोनों में लोहे का एक-एक कील लगाएं

6- घर में शमी का वृक्ष लगाएं और उसमे नित्य दीपक जलाएं। ये धन सौख्य देने वाला प्रयोग है।

7- सात मुखी, दस मुखी, ग्यारह मुखी, अथवा तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

8- शिंगणापुर शनिदेव का एक बार दर्शन अवश्य करें

9- एक सूखा नारियल लेकर उसमें चाकू से छोटा सा गोल छेद काट लें। इस छेद से नारियल में गेहूं के आटे को भूनकर बनाई पंजीरी और बूरा तथा सम्भव हो तो थोडा पञ्चमेवा यानि बादाम, काजू, किशमिश, पिस्ता, अखरोट या छुआरा भी भरें। अब इसे पुनः बन्द कर किसी पीपल के पास भूमि के अन्दर इस प्रकार गाड़ दें की चीटियां आसानी से तलाश लें, किन्तु अन्य जानवर न पा सकें। घर लौटकर पैर धोकर घर में प्रवेश करें। इस प्रकार ८ शनिवार तक यह क्रिया सम्पन्न करें।

10- शिवलिंग पर कच्चा दूध चढावें व “अमोघ शिव कवच“ का पाठ करें।

11- काली गाय व काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी रोटी, चने की दाल व गुड खिलाना लाभप्रद रहता है।

अन्य किसी जानकारी , कुंडली विश्लेषण और समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
अभिषेक पाण्डेय
नैनीताल
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Dashrath krit Shani Stotra दशरथ कृत शनि स्तोत्र http://jyotish-tantra.blogspot.com/2015/04/dashrath-krit-shani-stotra.html

शनि अमावस्या और शनि मन्त्र पर विशेष लेख/ Shani amavasya and special shani mantras http://jyotish-tantra.blogspot.com/2014/11/blog-post_99.html