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Friday 30 March 2018

Hanuman Jayanti 2018 vibhishan krit Apaduddharan Hanumat stotram हनुमान जयंती 2018 विशेष विभीषण कृत अपदुद्धरण हनुमत स्तोत्रम

हनुमान जन्मोत्सव 2018 विशेष उपाय

***** विभीषण कृत आपदुद्धरण-हनुमतस्तोत्र *****

धर्म ग्रंथों के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमानजी का जन्मोत्सव पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 31 मार्च, शनिवार को है।
हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचारी व महायोगी भी हैं। इसलिए सबसे जरूरी है कि उनकी किसी भी तरह की उपासना में वस्त्र से लेकर विचारों तक पावनता, ब्रह्मचर्य व इंद्रिय संयम को अपनाएं।



आपदुद्धरणहनुमत्स्तोत्रम् (विभीषणकृतम्)

वामे करे वैरिभिदं वहन्तं
शैलं परे शृङ्घलहारिटङ्कम् ।

दधानमच्छच्छवि यज्ञसूत्रं भजे ज्वलत्कुण्डलमाञ्जनेयम्।।१।।

सुपीतकौपीनमुदञ्चितांगुलिं
समुज्ज्वलन् मौञ्ज्यजिनोपवीतिनम् ।

सकुण्डलं लम्बशिखासमावृतं
तमाञ्जनेयं शरणं प्रपद्ये ॥ २ ॥

आपन्नाखिललोकार्तिहारिणे श्रीहनूमते ।
अकस्मादागतोत्पातनाशनाय नमोऽस्तु ते ॥ ३ ॥

सीतावियुक्तश्रीरामशोकदुःखभयापह ।
तापत्रितयसंहारिन् आञ्जनेय नमोऽस्तु ते ॥ ४ ॥

आधिव्याधिमहामारीग्रहपीडापहारिणे ।
प्राणापहर्त्रे दैत्यानां रामप्राणात्मने नमः ॥ ५ ॥

संसारसागरावर्तौ कर्तव्यभ्रान्तचेतसाम् ।
शरणागतमर्त्यानां शरण्याय नमोऽस्तु ते ॥ ६ ॥

राजद्वारि बिलद्वारि प्रवेशे भूतसङ्कुले ।
गजसिंहमहाव्याघ्र चोरभीषणकानने ॥ ७ ॥

शरणाय शरण्याय वातात्मज नमोऽस्तु ते ।
नमः प्लवगसैन्यानां प्राणभूतात्मने नमः ॥ ८ ॥

रामेष्टं करुणापूर्णं हनूमन्तं भयापहम् ।
शत्रुनाशकरं भीमं सर्वाभीष्टफलप्रदम् ॥ ९ ॥

प्रदोषे वा प्रभाते वा ये स्मरन्त्यञ्जनासुतम् ।
अर्थसिद्धिं यशः कीर्तिं प्राप्नुवन्ति न संशयः ॥ १० ॥

कारागृहे प्रयाणे च संग्रामे देशविप्लवे ।
ये स्मरन्ति हनूमन्तं तेषां नास्ति विपद्सदा ॥ ११ ॥

वज्रदेहाय कालाग्निरुद्रायामिततेजसे ।
ब्रह्मास्त्रस्थंभनायास्मै नमः श्री रुद्रमूर्तये ॥ १२ ॥

जप्त्वा स्तोत्रमिदं मन्त्रं प्रतिवारं पठेन्नरः ।
राजस्थाने सभास्थाने प्राप्तवादे जपेत् ध्रुवम् ॥ १३ ॥

विभीषणकृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतो नरः ।
सर्वापद्भ्यो विमुच्येत नात्र कार्या विचारणा ॥ १४ ॥

मर्कटेश महोत्साह सर्वशोकविनाशक ।
शत्रून् संहर मां रक्ष श्रियं दासाय देहि मे ॥ १५ ॥

हनुमानजी की कृपा प्राप्ति हेतु करें निम्न उपाय:-

1. हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढाएं। जानकारों के अनुसार पूर्णिमा तिथि या शनिवार को हनुमानजी को तिल या चमेली का तेल मिले सिंदूर से चोला चढ़ाने से सारी भय, बाधा और मुसीबतों का अंत हो जाता है। चोला चढ़ाते वक्त इस मंत्र का स्मरण करें -

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यसुखवर्द्धनम्।
शुभदं चैवमाङ्गल्यं सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम।।

दीपक में भी चमेली के तेल का ही उपयोग करें । चमेली के तेल का पांच बत्तियों का दीपक नीचे लिखे मंत्र के साथ लगाएं

 साज्यं च वर्तिसं युक्त वह्निनां योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश प्रसीद परमेश्वर।

यह उपाय किसी भी विघ्र-बाधा को फौरन दूर करने वाला माना जाता है।

श्रृंगार:

जनेऊ ,लाल लंगोट, अंग वस्त्र, कुंडल, मुकुट, ध्वजा

गुलाब एवं मदार पुष्पों की माला, तुलसी पत्र- मंजरी की माला, केवड़े का इत्र

पान का बीड़ा अर्पित करें।

भोग:

हनुमानजी को नैवेद्य चढ़ाने के लिए भी शास्त्रों में अलग- अलग वक्त पर विशेष नियम उजागर हैं। इनके मुताबिक

प्रातःकाल: नारियल का गोला या गुड़ या गुड़ से बने लड्डू का भोग लगाना चाहिए।

मध्याह्न:  दोपहर में घी और गुड़ या फिर गेहूं की मोटी रोटी बनाकर उसमें ये दोनों चीजें मिलाकर बनाया चूरमा अर्पित करना चाहिए।

सायंकाल: विशेष तौर पर फल एवं नैवेद्य चढ़ाना चाहिए।

हनुमानजी को जामफल, केले, अनार या आम के फल बहुत प्रिय बताए गए हैं। इस तरह हनुमानजी को मीठे फल व नैवेद्य अर्पित करने वाले की दु:ख व असफलताओं की कड़वाहट दूर होती है और वह सुख व सफलता का स्वाद चखता है।

2. धन प्राप्ति के लिए:

  एक साबूत पान का पत्ता लें और इसके ऊपर थोड़ा गुड़ व चना रख कर हनुमानजी को इसका भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद उसी स्थान पर थोड़ी देर बैठकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र का जाप करें। कम से कम 5 माला जाप अवश्य करें।

मंत्र- राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने।।

अब हनुमानजी को चढाए गए गुलाब के फूल की माला से एक फूल तोड़ कर उसे एक लाल कपड़े में लपेटकर अपने धन स्थान यानी तिजोरी में रखें। आपको कभी धन की कमी नहीं होगी।

3 हनुमानजी को प्रसन्न करने का यह बहुत प्राचीन टोटका है।

हनुमान जनमोत्सव पर सुबह स्नान आदि करने के बाद बड़ के पेड़ से 11 या 21 पत्ते तोड़ लें। ध्यान रखें कि ये पत्ते पूरी तरह से साफ व साबूत हों। अब इन्हें स्वच्छ पानी से धो लें और इनके ऊपर रक्त चंदन से भगवान श्रीराम का नाम लिखें। अब इन पत्तों की एक माला बनाएं और मंदिर जाकर हनुमानजी को यह माला पहना दें और उनके समक्ष राम नाम का जप करें।

4. संकट नाश हेतु:

यदि निम्न स्तुति की हर पंक्ति के अंत में नमामि लगा कर पाठ करें तो यह हनुमानाष्टक के समान फल प्रदान करती है।

अतुलित बलधामं स्वर्ण शैलाभ देहं ।
दनुज वन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।।
सकल गुण निधानं वानराणामधीशं।
रघुपति प्रिय भक्तं वातजात नमामि।।

5. ग्रह शान्ति हेतु :

सवा मुठ्ठी साबुत उड़द एवं सिंदूर लगे एक नारियल पर मौली या कलेवा लपेटकर हनुमानजी के चरणों में अर्पित करें।

6. जो लोग अधिक पूजा पाठ नहीं कर पाते या कर सकते वे लोग श्रीहनुमान चरित्र के अलग-अलग 12 स्वरूपों का ध्यान एक खास मंत्र स्तुति से करें तो आने वाला वक्त बहुत ही शुभ व मंगलकारी साबित हो सकता है।

इसे हर रोज भी सुबह या रात को सोने से पहले स्मरण करना न चूकें –

हनुमानञ्जनी सूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख:पिङ्गाक्षोमितविक्रम:।।
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
तस्य सर्वभयंनास्ति रणे च विजयी भवेत्।।

7: हनुमान यन्त्र पूजन:

  हनुमान जी की प्रसन्नता और कृपा प्राप्ति के लिए हनुमान यन्त्र का भी पूजन किया जाता है।

जो लोग कमजोर मनोबल के हो, दिन रात सदैव डर लगता हो, डरावने सपने आते हों, या बार बार काम बदलते हों, कुंडली में उच्च या नीच का मंगल कष्टकारी हो उन्हें ये यन्त्र किसी योग्य ब्राह्मण से विधि पूर्वक सिद्ध करवा कर गले में ताबीज में डालकर पहनना चाहिए।

विशेष कार्य सिद्धि हेतु हनुमत बीसा यन्त्र को घर या दुकान में स्थापित करना चाहिए।

8. मंगल शांति

अग्नि तत्व वाले मंगल ग्रह का वक्री होना उन सभी लोगों के लिये कष्टकर हो सकता है जो की जन्मकुंडली अनुसार मंगली हैं, या उच्च नीच या पाप / कष्ट भावस्थ होने से परेशान हैं।
ऐसे में मंगल देव की शांति के लिये हनुमान जी की पूजा अर्चना और जप विशेष लाभदायी हैं।

जिनके घर में सदा क्लेश हो, क़र्ज़ बढ़ गए हों, तरक्की न होती हो या संतान गलत दिशा में भटक गयी हो अथवा रोज कोई न कोई अपशकुन होता हो उन्हें ताम्बे में बना ये यन्त्र विधि पूर्वक प्रतिष्ठित करवा कर अपने घर मे स्थापित करना चाहिए व् इसका नित्य पूजन करना चाहिए।

9. इनके अतिरिक्त
    सुंदरकांड
    हनुमान चालीसा
    हनुमानाष्टक
    बजरंग बाण
    हनुमान बाहुक अथवा
    शाबर मंत्रादि के यथाशक्ति पाठ और हवन से भी हनुमानजी की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवम कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

Abhishek B. Pandey
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Saturday 24 March 2018

ShriRam tandav stotra श्रीराम तांडव स्तोत्रं

अतिदुर्लभ श्री राम तांडव स्तोत्र

श्रीराम नवमी की शुभकामनाएं।

राम तांडव स्तोत्र संस्कृत के राम कथानक पर आधारित महाकाव्य श्रीराघवेंद्रचरितम् से उद्धृत है। इसमें प्रमाणिका छंद के बारह श्लोकों में राम रावण युद्ध एवं इंद्रआदि देवताओं के द्वारा की गई श्रीराम स्तुति का वर्णन है।

तपस्या में लीन अवस्था में श्रीभागवतानंद गुरु को स्वप्न में श्रीरामचंद्र जी ने शक्तिपात के माध्यम से कुण्डलिनी शक्ति का उद्बोधन कराया एवं बाद में उन्हें भगवान शिव ने श्रीरामकथा पर आधारित ग्रन्थ श्रीराघवेंद्रचरितम् लिखने की प्रेरणा दी।

इस स्तोत्र की शैली और भाव वीर रस एवं युद्ध की विभीषिका से भरे हुए हैं।

कहा जाता है कि इतिहास में युगों युगों तक सबसे भीषण युध्द भगवान श्री राम और रावण का ही हुआ था।
ताण्डव का एक अर्थ उद्धत उग्र संहारात्मक क्रिया भी है।रामायण के अनुसार राम रावण युद्ध के समान घोर तथा उग्र युद्ध कोई नहीं है।

इसीलिये यह भी कहा जाता है
 "रामरावणयोर्युद्धं रामरावणयोरिव"
 (राम रावण के युद्ध की तुलना  सिर्फ राम- रावण  युद्ध  से ही हो सकती है)

श्रीराम तांडव स्तोत्रम्

इंद्रादयो उवाच:

जटाकटाहयुक्तमुण्डप्रान्तविस्तृतम् हरे:
अपांगक्रुद्धदर्शनोपहार चूर्णकुन्तलः।
प्रचण्डवेगकारणेन पिंजलः प्रतिग्रहः
स क्रुद्धतांडवस्वरूपधृक् विराजते हरि: ॥१॥

अथेह व्यूहपार्ष्णिप्राग्वरूथिनी निषंगिनः
तथांजनेयऋक्षभूपसौरबालिनन्दना:।
प्रचण्डदानवानलं समुद्रतुल्यनाशका:
नमोऽस्तुते सुरारिचक्रभक्षकाय मृत्यवे ॥२॥

कलेवरे कषायवासहस्तकार्मुकं हरे:
उपासनोपसंगमार्थधृग्विशाखमंडलम्।
हृदि स्मरन् दशाकृते: कुचक्रचौर्यपातकम्
विदार्यते प्रचण्डतांडवाकृतिः स राघवः ॥३॥

प्रकाण्डकाण्डकाण्डकर्मदेहछिद्रकारणम्
कुकूटकूटकूटकौणपात्मजाभिमर्दनम्।
तथागुणंगुणंगुणंगुणंगुणेन दर्शयन्
कृपीटकेशलंघ्यमीशमेक राघवं भजे ॥४॥

सवानरान्वितः तथाप्लुतम् शरीरमसृजा
विरोधिमेदसाग्रमांसगुल्मकालखंडनैः।
महासिपाशशक्तिदण्डधारकै: निशाचरै:
परिप्लुतं कृतं शवैश्च येन भूमिमंडलम् ॥५॥

विशालदंष्ट्रकुम्भकर्णमेघरावकारकै:
तथाहिरावणाद्यकम्पनातिकायजित्वरै:।
सुरक्षिताम् मनोरमाम् सुवर्णलंकनागरीम्
निजास्त्रसंकुलैरभेद्यकोटमर्दनम् कृतः ॥६॥

प्रबुद्धबुद्धयोगिभिः महर्षिसिद्धचारणै:
विदेहजाप्रियः सदानुतो स्तुतो च स्वस्तिभिः।
पुलस्त्यनंदनात्मजस्य मुण्डरुण्डछेदनम्
सुरारियूथभेदनं विलोकयामि साम्प्रतम् ॥७॥

करालकालरूपिणं महोग्रचापधारिणम्
कुमोहग्रस्तमर्कटाच्छभल्लत्राणकारणम्।
विभीषणादिभिः सदाभिषेणनेऽभिचिन्तकम्
भजामि जित्वरम् तथोर्मिलापते: प्रियाग्रजम् ॥८॥

इतस्ततः मुहुर्मुहु: परिभ्रमन्ति कौन्तिकाः
अनुप्लवप्रवाहप्रासिकाश्च वैजयंतिका:।
मृधे प्रभाकरस्य वंशकीर्तिनोऽपदानतां
अभिक्रमेण राघवस्य तांडवाकृते: गताः ॥९॥

निराकृतिं निरामयं तथादिसृष्टिकारणम्
महोज्ज्वलं अजं विभुं पुराणपूरुषं हरिम्।
निरंकुशं निजात्मभक्तजन्ममृत्युनाशकम्
अधर्ममार्गघातकम् कपीशव्यूहनायकम् ॥१०॥

करालपालिचक्रशूलतीक्ष्णभिंदिपालकै:
कुठारसर्वलासिधेनुकेलिशल्यमुद्गरै:।
सुपुष्करेण पुष्करांच पुष्करास्त्रमारणै:
सदाप्लुतं निशाचरै: सुपुष्करंच पुष्करम् ॥११॥

प्रपन्नभक्तरक्षकम् वसुन्धरात्मजाप्रियम्
कपीशवृंदसेवितं समस्तदूषणापहम्।
सुरासुराभिवंदितं निशाचरान्तकम् विभुं
जगद्प्रशस्तिकारणम् भजेह राममीश्वरम् ॥१२॥

इति श्रीभागवतानंद गुरुणा विरचिते श्रीराघवेंद्रचरिते इन्द्रादि देवगणै: कृतं श्रीराम तांडव स्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।

समस्त प्रकार के दुःख, भय शोक एवं संताप को हरने वाला यह स्तोत्र बेहद उग्र है।

साभार

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Thursday 22 March 2018

Shri krishna krit Durga stotra श्री कृष्ण कृत दुर्गा स्तोत्र

श्री कृष्ण कृत दुर्गा स्तोत्र

त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी। त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्। परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेज:स्वरूपा परमा भक्त ानुग्रहविग्रहा। सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया। सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी। सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी।
त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्। दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया। क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा। सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा। शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥
देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी। हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥
योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्। सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी। भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे। सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥
महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी। रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा। ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥
विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्। मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी। सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥
तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते। कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥
दुरत्यया मे माया त्वं यया सम्मोहितं जगत्। यया मुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्। पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वाञ्िछता॥
वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥
कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी। श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्‍‌नीभेदे च दुर्गत:। श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥
राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले। हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥
गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते। स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:। विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥

इस स्तोत्र का स्तवन भगवान् श्रीकृष्ण ने भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए किया था 
इस स्तोत्र के पाठ सेसभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है। बन्ध्या, काकबन्धया ओर मृत बच्चों को जन्म देने वाली स्त्री पुत्रवती होती है।
टीबी, कोढ़, भयंकर शारीरिक पीड़ा और ज्वर से मुक्त हो जाता है। विभिन्न प्रकार के भेदभाव और अभावों से ग्रस्त व्यक्ति मात्र 1 माह इस स्तोत्र के नियमित पाठ से सब पुनः प्राप्त कर लेता है। राजा के पास, श्मशान में , युध्द स्थल एवम जंगल में किसी प्रकार की हानि नहीं होती। दावानल, चोर डाकुओं से गृह रक्षा होती है, शत्रु सेना भी हानि नहीं पहुंचा सकती।
महादरिद्र और महामूर्ख व्यक्ति इसके 1 वर्ष पर्यंत पाठ से धनवान और विद्यावान हो जाता है।

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Sunday 18 March 2018

Samandar result 2075 सम्वत्सर फल 2075 विस्तृत

सम्वत्सर फल विस्तृत : विक्रमी 2075 "विरोधकृत"

विक्रम संवत 2075 रुद्रविंशती के अंतर्गत 9वें युग का 5वां विरोधकृत नाम का नया संवत होगा।

 विरोधकृत नाम का यह नया विक्रम संवत 2075 चैत्र मास अमावस्या की समाप्ति होने पर चैत्र मास के 4 प्रविष्टे शनिवार को शाम 6:42 पर कन्या लग्न में प्रवेश करेगा। परंतु शास्त्र नियम के अनुसार नव संवत का प्रारंभ तथा राजा आदि का निर्णय चैत्र मास शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के वार के अनुसार ही किया जाता है।

विरोधकृत नामक नव विक्रम संवत 2075 और चैत्र नवरात्रों का प्रारंभ 18 मार्च, रविवार के चैत्र के 5 प्रविष्टे को उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में होगा।

इस संवत्सर का राजा सूर्य है और मन्त्री शनि है। सूर्य ग्रह मेघेश है, शुक्र रसेश विभाग है। धान्येश सूर्य है, बुध रसेश है, चन्द्र फलेश है, गुरू धनेश है, दुर्गेश यानि सुरक्षा का कारक गुरू ग्रह है।

विरोधकृत संवत्सर का फल शास्त्रो के अनुसार इस प्रकार वर्णित किया गया है। -

खण्डवृष्टिर्भवेद् देवि सस्यहानिश्च जायते।
कोंकणे मध्यदेशेषु विरोधे चाहिमण्डले।।
विरोधकृद्वत्सरे तु परस्पर विरोधिनः।
सर्वेजनानृपाश्चैव मध्य सस्यार्धवृष्टयः।।

अर्थात - विरोधकृत नामक संवत्सर आने से वर्षभर अल्प और छिटपुट अर्थात कभी कभी, खंड वर्षा और अकाल आदि परिस्थितियों के कारण फसलों की हानि होगी। फलस्वरूप आनाज, गेंहू और चावल आदि उपयोगी फसलों के उत्पादन में कमी आएगी। प्रशासकों तथा साधरण प्रजा में भी परस्पर टकराव, विरोध और प्रतिद्वंद्वता (होड़) की भावना अधिक रहेगी। उनके इस पारस्परिक विरोध तथा आवश्यक वस्तुयों के मूल्यों में अत्यधिक वृद्धि के कारण साधारण प्रजा (लोग) दुखी रहेंगे। राजनेता विवाद परायण रहेंगे अर्थात विवादों में ही फंसे रहेंगे।

रोहिणी का वास - विक्रम संवत 2075 में मेष सक्रांति का प्रवेश उत्तर भाद्रपद नक्षत्र कालीन है। इसलिये रोहिणी का वास संधि में है।

संधिसंस्थं यदा ब्राह्य भंजायते।
खण्डवृष्टिस्तदा सर्वधान्याप्तयः।।

अर्थात रोहिणी का वास संधि में होने से इस वर्ष देश मे खंड वृष्टि अर्थात असमान वर्षा होगी। कुछ प्रदेशो में अत्यधिक वर्षा के कारण बाढ़ का प्रकोप होगा, भूस्खलन, अग्निकांड, विस्फोट आदि के कारण जन हानि होगी, धन कृषि आदि की हानि होगी कुछ प्रदेशो में बहुत कम वर्षा होने के कारण कही सूखा, कही आनाज और कही पेयजल की कमी के कारण जन व धन की हानि होगी और आनाज की कमी होगी। सब्जियों, दालों के मूल्यों में विशेष वृद्धि होगी।

संवत्सर का वास - वणिक के घर

सर्वधान्यं महर्घं स्यात् वणिक् वेश्मनि संस्थिते।

अर्थात संवत्सर का वास वणिक के घर होने से नय वर्ष में धन का प्रसार अधिक होगा। सभी जगहों पर  उपयोगी और अनुकूल वर्षा की कमी रहेगी अर्थात विपरीत जलवायु रहने से सभी आनाज, धान्य आदि के मूल्यों में और अधिक तेजी होगी। राजनीति और व्यापारादि सभी क्षेत्रों में लोभ व स्वार्थपरता बढ़ेगी। खाद्यान्न व्यवसाय में संलग्न व्यापारी वर्ग विशेष रूप से लाभान्वित होंगे। सामान्य लोगों में भी लोभ-लालच का प्रभाव रहेगा।

संवत का वाहन -

राजानो विग्रह यान्ति वृष्टिनाशो महर्घता।
भूमिकम्यो भयं घोरं हयारूढे तु वत्सरे।।

विक्रम संवत 2075 का राजा सूर्य होने से संवत का वाहन अश्व (घोड़ा) होगा, जिससे देश मे कही बहुत अधिक, कही पर बहुत कम बारिश होगी अर्थात असमान बारिश होगी। कुछ प्रदेशो में ज्यादा वर्ष के कारण  भूस्खलन, बाढ़, किसानों को हानि होगी और भूकंप आदि प्राकृतिक प्रकोपों का भय रहेगा। तो कही पर अल्प वर्षा के कारण अकाल, दुर्भिक्ष जैसी परिस्थितियां रहेंगी, राजनीतिक क्षेत्रों में मतभेद और अनिश्चितताएं रहेंगी। कही उलट-फेर छत्रभंग होगा। ज्यादातर लोग बाह्य आकर्षणों में आसक्त रहेंगे। तापमान में वृद्धि होगी।

संवत्सर 2075 के राजा सूर्य का फल-

तीक्ष्णोर्कः स्वल्प-सस्यश्च गतमेघोति तस्करः।
बहूरग-व्याधिगणो भास्कराब्दो रणाकुलः।।

अर्थात

सूर्य के राजा होने से इस संवत् 2075 में कृषि एवं फलादि का उत्पादन कम होगा, समयानुसार वर्षा न होने से खड़ी फसलों को हानि होगी। नानाविधि असाध्य रोग, अग्निकाण्ड एवं घातक शस्त्रास्त्रों का अधिक प्रयोग हो।   शासकों एवं आम जनता में मतभेद उजागर होंगे।

मन्त्री शनि का फल-शनि संवत्सर का मन्त्री होने के कारण अपने कर्तव्य एवं परम्परा की उपेक्षा करने वाले शासकों को जनता सबक सिखायेगी। भारत की वैश्विक स्तर पर ख्याति बढ़ेगी। देश व राज्य विरोधियों तथा अपराधियों को कड़ा दंड मिलेगा। जनहित के कार्य सफल होंगे।

सस्येश चन्द्र का फल-चन्द्र के सस्येश होने से कृषकों को, दुधारू पशुओं के लिए यह वर्ष अच्छा रहेगा। अच्छी वर्षा के आसार हैं। दूध, दही और घी का उत्पादन व खरीफ की फसल उत्तम रहने से किसानों में उत्साह रहेगा।

धान्येश सूर्य का फल-सूर्य के धान्येश होने से वर्षा कम होती है, अनकेत्र दुर्भिक्ष की स्थिति भी बनने के योग है।  गेंहूं, जौ, चना, सरसों आदि रबी की पैदावार उत्तम रहेगी,  मूॅग, दलहन, तिल आदि में तेजी बनी रहेगी। लेकिन व्यापार में तेजी का रूख रह सकता है।

धनेश चन्द्र का फल-धनेश चन्द्र होने से रस पदार्थो के स्टाॅक एवं पेय, मिठाई आदि के व्यापार से लाभ मिलेगा। वस्त्र, चावल, सुगन्धित, पदार्थ, घी, एवं तेल-तिलहन के व्यापार से व्यापारी लाभ पाते है। जनता कानूनों का सहर्ष पालन करते हुये समुचित करों का भुगतान करके देश की समृद्धि एंव मंगलकामना करती है

मेघेश शुक्र का फल-वर्षा सुखद एवं पर्याप्त हो, फसल एवं सभी कृषि-कर्म से प्राप्त उत्पादन अच्छा होने से राजकोष में वृद्धि हो एवं जनकल्याणार्थ शासक नीति निर्धारित करेंगे।

रसेश- बुध ग्रह के इस पद पर होने से तरल पदार्थों का उचित मात्रा में उत्पादन होगा। घी, दूध, तेल व भौतिक सुख सुविधाओं में बढ़ोतरी होगी।

नीरसेश - चंद्रमा को यह पद मिलने से धातु व वस्त्र उत्पादन अच्छा रहेगा। सूखे पदार्थों सहित कागज, चावल, चांदी, सफेद वस्तुओं की प्रचुरता  रहेगी।

फलेश- देव गुरु के पास फलेश पद होने से फल, फूल की अधिकता रहेगी। वन क्षेत्र बढ़ेगा। मौसम की मार नहीं झेलनी होगी।

दुर्गेश- शुक्र के सेनापति होने से सेना का मनोबल बढ़ेगा। शुक्र की कूटनीति के कारण देश-विदेश में अच्छे संबंध स्थापित होंगे।

निष्कर्ष:- सूर्य के राजा होने से शासन व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने के प्रयास होंगे एवं सामाजिक विकास कार्यों में गति आएगी। किन्तु गर्मी का भीषण प्रकोप रहेगा। वर्षा भरपूर किन्तु असामान्य होगी जिससे कहीं सूखे और कहीं बाढ़ की स्थिति हो सकती है। देश मे अनाज की कमी नहीं होगी किन्तु किसानों को भरपूर लाभ नहीं मिलेगा। जिससे महंगाई बढ़ेगी और आम जन में असंतोष वयाप्त होगा फलस्वरूप जनता और शशन में विरोधाभास और द्वंद बढ़ेगा।पशुपालन के क्षेत्र में लाभ होगा। वैज्ञानिक उपलब्धि से देश के नाम रोशन होगा। विद्यार्थियों और नौकरी चाहने वाले लोगो के लिए अच्छा समय है। व्यापारी वर्ग में सन्तोष रहेगा किन्तु लाभ भरपूर मिलेगा।

ग्रहण विचार :-
विरोधकृत संवत्सर में तीन सूर्यग्रहण एवं दो चंद्रग्रहण होंगें।
तीनों सूर्यग्रहण भारत में दृश्य नहीं होंगे।
शेष दो चंद्रग्रहण में से केवल एक चंद्रग्रहण भारत में दृश्य होगा, जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा दिन शुक्रवार दिनांक 27 जुलाई 2018 होगा। यह खग्रास चंद्रग्रहण संपूर्ण भारत में दृश्य एवं मान्य होगा।

साढ़े साती एवं ढैय्या:

वृश्चिक राशि वालों पर साढ़ेसाती अंतिम चरण में है वहीं धनु का दूसरा और मकर राशि के प्रथम चरण में।
वृष व कन्या राशि के जातक ढैय्या से पीड़ित रहेंगे।

नक्षत्रों पर प्रभाव
(लाभ , हानि, रोगादि विचार)

रेवती अश्विनी भरणी नक्षत्र वालों को वर्षभर प्रतिकूलता है उनकी संक्रांति बाये पैर में है जो रोग इत्यादि का भय  रहेगा।

कृतिका रोहिणी मृगशिरा के संक्रांति दाहिने पैर में है जो निरर्थक भ्रमण रहेगा ।

आर्द्रा पुनर्वसु पुष्य के संक्रांति बाये हाथ में है जो खर्च अधिक होगा ।

अश्लेषा मघा पूर्वा फाल्गुनी के संक्रांति दाहिने हाथ में है जो दांपत्य सुख रहेगा।

उत्तरा फाल्गुनी  हस्त चित्रा स्वाति विशाखा के  संक्रांति ह्रदय में है जो धन लाभ होगा।

अनुराधा ज्येष्ठा मूल के संक्राति मुख में है जो विद्या उन्नति के लिए अच्छा है।

पूर्वाषाढ़ उत्तराषाढ़ श्रवण धनिष्ठा शतभिषा पूर्वा भाद्रपदा उत्तराभाद्रपदा के संक्रांति शिर पर है जो विशेष रूप से यश की प्राप्ति होती है।

अनुकूलन उपाय---दही चावल सफेद वस्त्र चाँदी का पैर इत्यादि दान करना हितकर रहेगा।

आय-व्यय के अनुसार--
मेष वृष मिथुन कन्या तुला वृच्छिक राशि वालों को विजय प्राप्त होगी।
कर्क धनु मीन राशि में लाभ प्राप्त होगा।
सिंह मकर कुम्भ राशि में अपयश रहेगा।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवम कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

Abhishek B. Pandey
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Saturday 17 March 2018

Shani amavasya 2018 शनि अमावस्या 2018

शनि अमावस्या 2018

17 मार्च 2018 को शनिश्चरी अमावस्या है।हिन्दू धर्म में अमावस्या का विशेष महत्व है और अमावस्या यदि शनिवार के दिन पड़े तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।और इस दिन पितृपक्ष की भी आमवस्या पड़े फिर तो सोने में सुहागा वाली बात हो जाती है।तो दोस्तो इस बार ऐसा ही हो रहा है।

'शनिश्चरीअमावस्या', को 'पितृकार्य अमावस्या'भी कहते है।शनि अमावस्या के दिन श्राद्ध आदि कर्म पूर्ण करने से व्यक्ति पितृदोष आदि से मुक्त हो जाता है और उसे कार्यों में सफलता मिलती है।'ढैय्या' तथा 'साढ़ेसाती' सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए 'शनि अमावस्या' एक दुर्लभ दिन व महत्त्वपूर्ण समय होता है।

 पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं में 'शनि अमावस्या' की काफ़ी महत्ता बतलाई गई है। इस दिन व्रत, उपवास, और दान आदि करने का बड़ा पुण्य मिलता है।

'शनि अमावस्या' के दिन पवित्र नदी के जल से या नदी में स्नान कर शनि देव का आवाहन और दर्शन करना चाहिए। शनि देव को नीले रंग के पुष्प, बिल्व वृक्ष के बिल्व पत्र, अक्षत अर्पण करें।

भगवान शनि देव को प्रसन्न करने हेतु शनि मंत्र

ॐ शं शनैश्चराय नम:, अथवा

ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नम: ।

मंत्र का जाप करना चाहिए।

इस दिन सरसों के तेल, उड़द की दाल, काले तिल, कुलथी, गुड़ शनि यंत्र और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री को शनि देव पर अर्पित करना चाहिए और शनि देव का तैलाभिषेक करना चाहिए।छाया दान भी करें।

 शनि अमावस्या के दिन 'शनि चालीसा', 'हनुमान चालीसा' या 'बजरंग बाण' का पाठ अवश्य करना चाहिए।जो लोग इस दिन यात्रा में जा रहे हैं और उनके पास समय की कमी है,

वह सफर में ही 'कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णौ रौद्रोंतको यम:। सौरी: शनिश्चरो मंद:पिप्पलादेन संस्तुत:।।'

 मंत्र का जप करते हैं तो शनि देव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है।

जिन दोस्तों के कुंडली में शनि ग्रह पीड़ित हो और शनि की महादशा चल रहा हो या साढ़े साती या ढैया चल रहा हो और जिनके कुंडली में पितृदोष और काल सर्पयोग हो तो वो लोग ये मौका हाथ से न जाने दे शनि देव को प्रसन्न करके दुःखो से राहत पाये।

इस अवसर पर शनि देव को प्रसन्न करने के लिए हम आपको पांच शनि मंत्रो से अवगत करा रहे है। इन मंत्रो मे से किसी भी मन्त्र काजाप अपने आवश्यकता अनुसार इस शनिश्चरी अमावस्या से शुरू कर प्रतिदिन कर के देखिये आप चमत्कारिक रूप से इनके लाभ को स्वयं महसूस करेंगे।

(1)प्रतिदिन श्रध्दानुसार 'शनि गायत्री' का जाप करने से घर में सदैव मंगलमय वातावरण बना रहता है।शनि मंत्र व स्तोत्र सर्वबाधा निवारक है।

वैदिक गायत्री मंत्र-
"ॐ भगभवाय विद्महे मृत्युरुपाय धीमहि, तन्नो शनि: प्रचोदयात्।"

(2)वैदिक शनि मंत्र-यह शनि देव को प्रसन्न करने का सबसे पवित्र और अनुकूल मंत्र है।
इसकी दो माला सुबह शाम करने से शनि देव की भक्ति व प्रीति मिलती है।
"ॐ शन्नोदेवीरमिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्रवन्तुन:।"

(3)पौराणिक मन्त्र:
नीलांजनम समाभासं रविपुत्रम यमाग्रजं।
छायामार्तंड सम्भूतं तम नमामी शनैश्चरम।।

(4)कष्ट निवारण शनि मंत्र नीलाम्बर- इस मंत्र से अनावश्यक समस्याओं से छुटकारा मिलता है। प्रतिदिन एक माला सुबह शाम करने से शत्रु चाह कर भी नुकसान नहीं पहुँचा पायेगा।

"शूलधर: किरीटी गृघ्रस्थितस्त्रसकरो धनुष्मान्।
चर्तुभुज: सूर्यसुत: प्रशान्त: सदाऽस्तुं मह्यं वरंदोऽल्पगामी॥"

(5)सुख-समृद्धि दायक शनि मंत्र- इस शनि स्तुति का प्रात:काल पाठ करने से शनि जनित कष्ट नहीं व्यापते और सारा दिन सुख पूर्वक बीतता है।

"कोणस्थ:पिंगलो वभ्रु: कृष्णौ रौद्रान्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरौ मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:॥"

(6)शनि पत्नी नाम स्तुति- यह बहुत ही अद्भुत और रहस्यमय स्तुति है। यदि कारोबारी, पारिवारिक या शारीरिक समस्या हो, तब इस मंत्र का विधिविधान से जाप और अनुष्ठान किया जाये तो कष्ट कोसों दूर रहेंगे।

"ॐ शं शनैश्चराय नम: ध्वजनि धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिया।
कंटकी कलही चाऽथ तुरंगी महिषी अजा॥
ॐ शं शनैश्चराय नम:"।

॥ श्रीशनि वज्रपंजर कवचम् ॥

 शनि कवच का पाठ शनि कृत सभी कष्टों से मुक्ति प्रदान करने वाला और शनि देव को प्रसन्न करने वाला है।

 यदि जन्म चक्र में द्वितीय, सप्तम, अष्टम द्वादश अथवा रोग स्थान पर स्थित शनि पीड़ा देता हो अथवा शनि की दशा, ढैय्या एवम साढ़ेसाती से पीड़ित हों तो उक्त कवच का पाठ शनि पीड़ाओं से मुक्ति प्रदान करता है।

श्री गणेशाय नमः ॥

विनियोगः ।
ॐ अस्य श्रीशनैश्चरवज्रपञ्जर कवचस्य कश्यप ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, श्री शनैश्चर देवता,
श्रीशनैश्चर प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥

ऋष्यादि न्यासः ।
श्रीकश्यप ऋषयेनमः शिरसि ।
अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीशनैश्चर देवतायै नमः हृदि ।
श्रीशनैश्चरप्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ॥

ध्यानम् ।
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् ।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद् वरदः प्रशान्तः ॥ १॥

ब्रह्मा उवाच ॥

शृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ॥ २॥

कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् ।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ ३॥

ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनन्दनः ।
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कणौं यमानुजः ॥ ४॥

नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा ।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः ॥ ५॥

स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु-शुभप्रदः ।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा ॥ ६॥

नाभिं ग्रहपतिः पातु मन्दः पातु कटिं तथा ।
ऊरू ममान्तकः पातु यमो जानुयुगं तथा ॥ ७॥

पादौ मन्दगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः ।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दनः ॥ ८॥

इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य यः ।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः ॥ ९॥

व्यय-जन्म-द्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा ।
कलत्रस्थो गतो वाऽपि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ॥ १०॥

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ॥ ११॥

इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।
द्वादशाऽष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा ।
जन्मलग्नस्थितान् दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः ॥ १२॥

॥ इति श्री ब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे
शनिवज्रपंजरकवचम् सम्पूर्णम् ॥

जो लोग संस्कृत में जप या पाठ नहीं कर सकते वे शनि चालीसा का पाठ अवश्य करें

श्री शनि चालीसा

दोहा

जय-जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महराज।
करहुं कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज।।

चौपाई

जयति-जयति शनिदेव दयाला।
    करत सदा भक्तन प्रतिपाला।।
चारि भुजा तन श्याम विराजै।
    माथे रतन मुकुट छवि छाजै।।
परम विशाल मनोहर भाला।
    टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला।।
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।
    हिये माल मुक्तन मणि दमकै।।
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
    पल विच करैं अरिहिं संहारा।।
पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।
    यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन।।
सौरि मन्द शनी दश नामा।
    भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा।।
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
    रंकहु राउ करें क्षण माहीं।।
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
    तृणहंू को पर्वत करि डारत।।
राज मिलत बन रामहि दीन्हा।
    कैकइहूं की मति हरि लीन्हा।।
बनहूं में मृग कपट दिखाई।
    मात जानकी गई चुराई।।
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।
    मचि गयो दल में हाहाकारा।।
दियो कीट करि कंचन लंका।
    बजि बजरंग वीर को डंका।।
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
    चित्रा मयूर निगलि गै हारा।।
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
    हाथ पैर डरवायो तोरी।।
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
    तेलिहुं घर कोल्हू चलवायौ।।
विनय राग दीपक महं कीन्हो।
    तब प्रसन्न प्रभु ह्नै सुख दीन्हों।।
हरिशचन्द्रहुं नृप नारि बिकानी।
    आपहुं भरे डोम घर पानी।।
वैसे नल पर दशा सिरानी।
    भूंजी मीन कूद गई पानी।।
श्री शकंरहि गहो जब जाई।
    पारवती को सती कराई।।
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
    नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा।।
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
    बची द्रोपदी होति उघारी।।
कौरव की भी गति मति मारी।
    युद्ध महाभारत करि डारी।।
रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
    लेकर कूदि पर्यो पाताला।।
शेष देव लखि विनती लाई।
    रवि को मुख ते दियो छुड़ाई।।
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
    गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना।।
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
    सो फल ज्योतिष कहत पुकारी।।
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
    हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं।।
गर्दभहानि करै बहु काजा।
    सिंह सिद्धकर राज समाजा।।
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।
    मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
    चोरी आदि होय डर भारी।।
तैसहिं चारि चरण यह नामा।
    स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा।।
लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।
    धन सम्पत्ति नष्ट करावैं।।
समता ताम्र रजत शुभकारी।
    स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी।।
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।
    कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै।।
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
    करैं शत्राु के नशि बल ढीला।।
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
    विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई।।
पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।
    दीप दान दै बहु सुख पावत।।
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
    शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा।।

दोहा

प्रतिमा श्री शनिदेव की, लोह धातु बनवाय।
प्रेम सहित पूजन करै, सकल कष्ट कटि जाय।।
चालीसा नित नेम यह, कहहिं सुनहिं धरि ध्यान।
नि ग्रह सुखद ह्नै, पावहिं नर सम्मान।।

आज के दिन दान का भी बहुत महत्व होता है।

शनि की कोई भी वस्तु, जैसे- काला तिल, लोहे की वस्तु, काला चना, कंबल, नीला फूल दान करना तिल से बने पकवान, उड़द की दाल से बने पकवान गरीबों को दान करें।उड़द दाल की खिचड़ी दरिद्र नारायण को दान करें।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवम कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Friday 16 March 2018

Mahakali yantra T-shirts & caps महाकाली यन्त्र टीशर्ट एवं कैप

ज्योतिष- तंत्र महाकाली यन्त्र टीशर्ट एवम कैप अब उपलब्ध है।

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Thursday 15 March 2018

Puranokta Hanuman raksha mantra पौराणिक हनुमान रक्षा मंत्र

हनुमान रक्षा मन्त्र
(नवरात्र विशेष)

ध्यान:-

मनोजवं मारुततुल्यवेगं,जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानर यूथमुख्यं, श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये॥

मन्त्र:
वज्रान्ङ पिंगलेशाढ्य्यं स्वर्णकुण्डलमण्डितम्।
नियुद्धमुपसंक्रम्य पारावारपराक्रमम्।।
वामहस्ते गदायुक्तं पाशहस्तं कमण्डलम्।
ऊर्ध्वदक्षिणदोर्दण्डं हनुमन्तं विचिन्तयेत्।।
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम्।
शत्रु संहार मां रक्ष श्रीमन्नापदउद्धरम्॥

नियम पूर्वक हनुमान जी  के इस मन्त्र का 21बार  जप पूजन साधना या ध्यान शुरू करने से पूर्व प्रतिदिन किया जाय तो शरीर और आध्यात्म बल की सुरक्षा होती है। भूत प्रेत बाधा परेशान नहीं करती। जादू टोने से सुरक्षा होती है। शत्रु के भय से छुटकारा मिलता है एवं मनुष्य निर्भय होता है।

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Shaligram: Detailed info pujan & importance शालिग्राम प्रकार, पूजन एवम महत्व सम्पूर्ण जानकारी

Shaligram : शालिग्राम: साक्षात् श्री नारायण
एकादशी विशेष

कार्तिक मास का इंतज़ार सनातन धर्म के मानने वालों और भगवान विष्णु, श्री जगन्नाथ और श्री कृष्ण के भक्तों एवं प्रेमियों को बड़ी आतुरता से रहता है।

विशेषतः एकादशी का क्यूंकि इस दिन उनके प्रभु निद्रा से जागते हैं और परम सती भगवती स्वरूपा माँ तुलसी से उनका विवाह होता है।
ये दिन देव प्रबोधिनी/ देवोत्थानी एकादशी के रूप में जन मानस में जाना जाता है।
इसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल द्वादशी को तुलसी विवाह होता है जिसमे श्री शालिग्राम और तुलसी का विवाह होता है।

तुलसी विवाह की चर्चा बिना भगवान् नारायण के शालिग्राम स्वरुप का महात्म्य जाने बिना नहीं हो सकती।

भगवान शालिग्राम श्री नारायण का साक्षात् और स्वयंभू स्वरुप माने जाते हैं।
आश्चर्य की बात है की त्रिदेव में से दो भगवान शिव और विष्णु दोनों ने ही जगत के कल्याण के लिए पार्थिव रूप धारण किया।
जिसप्रकार नर्मदा नदी में निकलने वाले पत्थर नर्मदेश्वर या बाण लिंग साक्षात् शिव स्वरुप माने जाते हैं और स्वयंभू होने के कारन उनकी किसी प्रकार प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती।

ठीक उसी प्रकार शालिग्राम भी नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकने, अंडाकार पत्थर को कहते हैं। स्वयंभू होने के कारण इनकी भी प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती और भक्त जन इन्हें घर अथवा मन्दिर में सीधे ही पूज सकते हैं।

शालिग्राम भिन्न भिन्न रूपों में प्राप्त होते हैं कुछ मात्र अंडाकार होते हैं तो कुछ में एक छिद्र होता है तथा पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं। कुछ पत्थरों पर सफेद रंग की गोल धारियां चक्र के समान होती हैं। दुर्लभ रूप से कभी कभी पीताभा युक्त शालिग्राम भी प्राप्त होते हैं।
जानकारों व् संकलन कर्ताओं ने इनके विभिन्न रूपों का अध्यन कर इनकी संख्या 80 से लेकर 124 तक बताई है।

शालिग्राम का स्वरूप वर्गीकरण और महिमा का वर्णन

1. - जिस शालिग्राम-शिला में द्वार-स्थान पर परस्पर सटे हुए दो चक्र हों, जो शुक्ल वर्ण की रेखा से अंकित और शोभा सम्पन्न दिखायी देती हों, उसे भगवान "श्री गदाधर का स्वरूप" समझना चाहिये.

2.- "संकर्षण मूर्ति" में दो सटे हुए चक्र होते हैं, लाल रेखा होती है और उसका पूर्वभाग कुछ मोटा होता है.

3.- "प्रद्युम्न" के स्वरूप में कुछ-कुछ पीलापन होता है और उसमें चक्र का चिह्न सूक्ष्म रहता है.

4. - "अनिरुद्ध की मूर्ति" गोल होती है और उसके भीतरी भाग में गहरा एवं चौड़ा छेद होता है; इसके सिवा, वह द्वार भाग में नीलवर्ण और तीन रेखाओं से युक्त भी होती है.

5. - "भगवान नारायण" श्याम वर्ण के होते हैं, उनके मध्य भाग में गदा के आकार की रेखा होती है और उनका नाभि-कमल बहुत ऊँचा होता है.

6. - "भगवान नृसिंह" की मूर्ति में चक्र का स्थूल चिह्न रहता है, उनका वर्ण कपिल होता है तथा वे तीन या पाँच बिन्दुओं से युक्त होते हैं. ब्रह्मचारी के लिये उन्हीं का पूजन विहित है. वे भक्तों की रक्षा करनेवाले हैं.

7. - जिस शालिग्राम-शिला में दो चक्र के चिह्न विषम भाव से स्थित हों, तीन लिंग हों तथा तीन रेखाएँ दिखायी देती हों, वह "वाराह भगवान का स्वरूप" है, उसका वर्ण नील तथा आकार स्थूल होता है.

8.- "कच्छप" की मूर्ति श्याम वर्ण की होती है. उसका आकार पानी की भँवर के समान गोल होता है. उसमें यत्र-तत्र बिन्दुओं के चिह्न देखे जाते हैं तथा उसका पृष्ठ-भाग श्वेत रंग का होता है.

9. - "श्रीधर की मूर्ति" में पाँच रेखाएँ होती हैं,

10.- "वनमाली के स्वरूप" में गदा का चिह्न होता है.

11. - गोल आकृति, मध्यभाग में चक्र का चिह्न तथा नीलवर्ण, यह "वामन मूर्ति" की पहचान है.

12.- जिसमें नाना प्रकार की अनेकों मूर्तियों तथा सर्प-शरीर के चिह्न होते हैं, वह भगवान "अनन्त की" प्रतिमा है.

13. - "दामोदर" की मूर्ति स्थूलकाय एवं नीलवर्ण की होती है. उसके मध्य भाग में चक्र का चिह्न होता है. भगवान दामोदर नील चिह्न से युक्त होकर संकर्षण के द्वारा जगत की रक्षा करते हैं.

14. - जिसका वर्ण लाल है, तथा जो लम्बी-लम्बी रेखा, छिद्र, एक चक्र और कमल आदि से युक्त एवं स्थूल है, उस शालिग्राम को "ब्रह्मा की मूर्ति" समझनी चाहिये.

15. - जिसमें बृहत छिद्र, स्थूल चक्र का चिह्न और कृष्ण वर्ण हो, वह "श्रीकृष्ण का स्वरूप" है. वह बिन्दुयुक्त और बिन्दुशून्य दोनों ही प्रकार का देखा जाता है.

16. - "हयग्रीव मूर्ति" अंकुश के समान आकार वाली और पाँच रेखाओं से युक्त होती है.

17. - "भगवान वैकुण्ठ" कौस्तुभ मणि धारण किये रहते हैं. उनकी मूर्ति बड़ी निर्मल दिखायी देती है. वह एक चक्र से चिह्नित और श्याम वर्ण की होती है.

18. - "मत्स्य भगवान" की मूर्ति बृहत कमल के आकार की होती है. उसका रंग श्वेत होता है तथा उसमें हार की रेखा देखी जाती है.

19.- जिस शालिग्राम का वर्ण श्याम हो, जिसके दक्षिण भाग में एक रेखा दिखायी देती हो तथा जो तीन चक्रों के चिह्न से युक्त हो, वह भगवान "श्रीरामचंद्र जी" का स्वरूप है, वे भगवान सबकी रक्षा करनेवाले हैं.

20. - द्वारिका पुरी में स्थित शालिग्राम स्वरूप "भगवान गदाधर" को नमस्कार है, उनका दर्शन बड़ा ही उत्तम है.भगवान गदाधर एक चक्र से चिह्नित देखे जाते हैं.

21.- "लक्ष्मीनारायण" दो चक्रों से,

22. - "त्रिविक्रम" तीन से,

23.- "चतुर्व्यूह" चार से,

24. - "वासुदेव" पाँच से,

25.- "प्रद्युम्न" छ: से,

26. - "संकर्षण" सात से,

27. - "पुरुषोत्तम" आठ से,

28.- "नवव्यूह" नव से,

29. - "दशावतार" दस से,

30. - "अनिरुद्ध" ग्यारह से और

31.- "द्वादशात्मा" बारह चक्रों से युक्त होकर जगत की रक्षा करते हैं.

32.- इससे अधिक चक्र चिह्न धारण करने वाले भगवान का नाम "अनन्त" है.

दण्ड, कमण्डलु और अक्षमाला धारण करनेवाले चतुर्मुख ब्रह्मा तथा पाँच मुख और दस भुजाओं से सुशोभित वृषध्वज महादेव जी अपने आयुधों सहित शालग्रामशिला में स्थित रहते हैं.

गौरी, चण्डी,सरस्वती और महालक्ष्मी आदि माताएँ, हाथ में कमल धारण करने वाले सूर्यदेव, हाथी के समान कंधेवाले गजानन गणेश, छ: मुखों वाले स्वामी कार्तिकेय तथा और भी बहुत-से देवगण शालिग्राम प्रतिमा में मौजूद रहते हैं,अत: मन्दिर में शालिग्राम शिला की स्थापना अथवा पूजा करने पर ये उपर्युक्त देवता भी स्थापित और पूजित होते हैं. जो पुरुष ऐसा करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि की प्राप्ति होती है।

विभिन्न शालिग्राम के नाम और प्रकार -

शास्त्रों में लगभग 40 प्रकार के प्रमुख शालिग्राम शिलाओ का वर्णन आता है, विभिन्न आकार एवं लक्षणों के आधार पर जिनके नाम इस प्रकार हैं  -

1. – श्री विष्णु शालिग्राम
2. – जनार्दन शालिग्राम
3. – पद्मनाभा शालिग्राम
4. – प्रजापति शालिग्राम
5. – चक्रधर शालिग्राम
6. - त्रिविक्रमा शालिग्राम
7. – नारायण शालिग्राम
8. – श्रीधर शालिग्राम
9. – गोविन्द शालिग्राम
10. – मधुसूदना शालिग्राम
11. – नरसिंह शालिग्राम
12. – जलशयिना शालिग्राम
13. – वराह शालिग्राम
14. – रघुनन्दन शालिग्राम
15. – वामन शालिग्राम
16. – माधव शालिग्राम
17. – सन्थन गोपाल शालिग्राम
18. – हयग्रीव शालिग्राम
19. – लक्ष्मी नरसिंह शालिग्राम
20. – लक्ष्मी नारायण शालिग्राम
21. – रत्न गर्व ज्योति शालिग्राम
22. – कल्की शालिग्राम
23. – बुद्ध शालिग्राम
24. – परशुराम शालिग्राम
25. – राम शालिग्राम
26. – कृष्ण शालिग्राम
27. – विश्वम्भर शालिग्राम
28. – अष्टवक्र शालिग्राम
29. - अच्युत शालिग्राम
30. – श्वेत लक्ष्मी शालिग्राम
31. – मणि प्रभा शालिग्राम
32. – संकर्षण शालिग्राम
33. – नवव्यूह शालिग्राम
34. – दश अवतार शालिग्राम
35. - प्रधुम्न शालिग्राम
36. – पुरुषोतम शालिग्राम
37. – अनिरुद्र शालिग्राम
38. - सुदर्शन और सुदर्शना चक्र शालिग्राम
39. - वैकुण्ठ शिला (बैकुण्ठ शालिग्राम)
40. – केशव शालिग्राम
41.- दामोदर शालिग्राम

श्री शालिग्राम को एक विलक्षण व मूल्यवान पत्थर माना गया है । इसे बहुत सहेज कर रखना चाहिए क्यूंकि ऐसी मान्यता है की शालिग्राम के भीतर अल्प मात्रा में स्वर्ण भी होता है। जिसे प्राप्त करने के लिए चोर इन्हें चुरा लेते हैं।

भगवान् शालिग्राम का पूजन तुलसी के बिना पूर्ण नहीं होता और तुलसी अर्पित करने पर वे तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं।
(किस प्रकार भगवान शिव की मदद हेतु भगवान नारायण दैत्यराज जलंधर को हराने के लिए उसकी पत्नी और अपनी परम भक्त वृंदा यानि तुलसी के श्राप के कारन शिला/ पत्थर रूप कप प्राप्त हुए वो एक दिव्य कथा है)

श्री शालिग्राम पूजन लाभ:-

(1) कार्तिक मास शुक्ल पक्ष द्वादशी को
श्री शालिग्राम और भगवती स्वरूपा तुलसी का विवाह करने से सारे अभाव, कलह, पाप ,दुःख और रोग को दूर हो जाते हैं।

(2)तुलसी शालिग्राम विवाह करवाने से वही पुण्य फल प्राप्त होता है जो की कन्यादान करने से मिलता है।

(3)दैनिक पूजन में श्री शालिग्राम जी को स्नान कराकर चन्दन लगाकर तुलसी दल अर्पित करना और चरणामृत ग्रहण करना। यह उपाय मन, धन व तन की सारी कमजोरियों व दोषों को दूर करने वाला माना गया है।

(4)पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि जिस घर में भगवान शालिग्राम हो, वह घर समस्त तीर्थों से भी श्रेष्ठ है। इनके दर्शन व पूजन से समस्त भोगों का सुख मिलता है।

(5)भगवान शिव ने भी स्कंदपुराण के कार्तिक माहात्मय में भगवान शालिग्राम की स्तुति की है।

(6)ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड अध्याय में उल्लेख है कि जहां भगवान शालिग्राम की पूजा होती है वहां भगवान विष्णु के साथ भगवती लक्ष्मी भी निवास करती है।

(7)पुराणों में यह भी लिखा है कि शालिग्राम शिला का जल जो अपने ऊपर छिड़कता है, वह समस्त यज्ञों और संपूर्ण तीर्थों में स्नान के समान फल पा लेता है।

(8)जो निरंतर शालिग्राम शिला का जल से अभिषेक करता है, वह संपूर्ण दान के पुण्य तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है।

(9)मृत्युकाल में इनके चरणामृत का जलपान करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक चला जाता है।

(10)जिस घर में शालिग्राम का नित्य पूजन होता है उसमें वास्तु दोष और बाधाएं स्वतः समाप्त हो जाती है।

(11)पुराणों के अनुसार श्री शालिग्राम जी का तुलसीदल युक्त चरणामृत पीने से भयंकर से भयंकर विष का भी तुरंत नाश हो जाता है।

वृन्दावन के श्री राधारमण लालजू का विग्रह भी अपने अनन्य भक्त श्री गोपाल भट्ट की भक्ति से प्रसन्न हो 472 वर्ष पूर्व प्रकट हुआ था।

तुलसी शालिग्राम का सम्बन्ध कैसा अटूट है इसे इस कहावत से समझा जा सकता है जो इनके लिए ग्रामीण अंचलों में प्रयोग होती है की

" आठ पहर चौसठ घड़ी,
ठाकुर पे ठकुराइन चढ़ी।"

श्री शालिग्राम पूजन विधि:-

श्री शालिग्राम जी को प्रतिदिन प्रातः पंचामृत अथवा गंगाजल युक्त जल अथवा शुद्धजल से स्नान करवाकर श्वेत/ पीले चन्दन का तिलक कर तुलसी जी अर्पण करनी चाहिए। पीले पुष्प अर्पण करने चाहिए। आकर्षक गद्दीदार सिंहासन पर विराजमान कराना चाहिए।

मन्त्र:-

1- ॐ नमो नारायणाय।
2- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।

पूजन स्तोत्र:-

॥ शालिग्रामस्तोत्रम् ॥

श्री गणेशाय नमः ।

अस्य श्रीशालिग्रामस्तोत्रमन्त्रस्य श्रीभगवान् ऋषिः,
नारायणो देवता, अनुष्टुप् छन्दः,
श्रीशालिग्रामस्तोत्रमन्त्रजपे विनियोगः ॥

युधिष्ठिर उवाच ।

श्रीदेवदेव देवेश देवतार्चनमुत्तमम् ।
तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामि ब्रूहि मे पुरुषोत्तम ॥ १॥

श्रीभगवानुवाच ।

गण्डक्यां चोत्तरे तीरे गिरिराजस्य दक्षिणे ।
दशयोजनविस्तीर्णा महाक्षेत्रवसुन्धरा ॥ २॥
शालिग्रामो भवेद्देवो देवी द्वारावती भवेत् ।
उभयोः सङ्गमो यत्र मुक्तिस्तत्र न संशयः ॥ ३॥
शालिग्रामशिला यत्र यत्र द्वारावती शिला ।
उभयोः सङ्गमो यत्र मुक्तिस्तत्र न संशयः ॥ ४॥
आजन्मकृतपापानां प्रायश्चित्तं य इच्छति ।
शालिग्रामशिलावारि पापहारि नमोऽस्तु ते ॥ ५॥
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम् ।
विष्णोः पादोदकं पीत्वा शिरसा धारयाम्यहम् ॥ ६॥
शङ्खमध्ये स्थितं तोयं भ्रामितं केशवोपरि ।
अङ्गलग्नं मनुष्याणां ब्रह्महत्यादिकं दहेत् ॥ ७॥
स्नानोदकं पिवेन्नित्यं चक्राङ्कितशिलोद्भवम् ।
प्रक्षाल्य शुद्धं तत्तोयं ब्रह्महत्यां व्यपोहति ॥ ८॥
अग्निष्टोमसहस्राणि वाजपेयशतानि च ।
सम्यक् फलमवाप्नोति विष्णोर्नैवेद्यभक्षणात् ॥ ९॥
नैवेद्ययुक्तां तुलसीं च मिश्रितां विशेषतः पादजलेन विष्णोः ।
योऽश्नाति नित्यं पुरतो मुरारेः प्राप्नोति यज्ञायुतकोटिपुण्यम् ॥ १०॥
खण्डिताः स्फुटिता भिन्ना वन्हिदग्धास्तथैव च ।
शालिग्रामशिला यत्र तत्र दोषो न विद्यते ॥ ११॥
न मन्त्रः पूजनं नैव न तीर्थं न च भावना ।
न स्तुतिर्नोपचारश्च शालिग्रामशिलार्चने ॥ १२॥
ब्रह्महत्यादिकं पापं मनोवाक्कायसम्भवम् ।
शीघ्रं नश्यति तत्सर्वं शालिग्रामशिलार्चनात् ॥ १३॥
नानावर्णमयं चैव नानाभोगेन वेष्टितम् ।
तथा वरप्रसादेन लक्ष्मीकान्तं वदाम्यहम् ॥ १४॥
नारायणोद्भवो देवश्चक्रमध्ये च कर्मणा ।
तथा वरप्रसादेन लक्ष्मीकान्तं वदाम्यहम् ॥ १५॥
कृष्णे शिलातले यत्र सूक्ष्मं चक्रं च दृश्यते ।
सौभाग्यं सन्ततिं धत्ते सर्व सौख्यं ददाति च ॥ १६॥
वासुदेवस्य चिह्नानि दृष्ट्वा पापैः प्रमुच्यते ।
श्रीधरः सुकरे वामे हरिद्वर्णस्तु दृश्यते ॥ १७॥
वराहरूपिणं देवं कूर्माङ्गैरपि चिह्नितम् ।
गोपदं तत्र दृश्येत वाराहं वामनं तथा ॥ १८॥
पीतवर्णं तु देवानां रक्तवर्णं भयावहम् ।
नारसिंहो भवेद्देवो मोक्षदं च प्रकीर्तितम् ॥ १९॥
शङ्खचक्रगदाकूर्माः शङ्खो यत्र प्रदृश्यते ।
शङ्खवर्णस्य देवानां वामे देवस्य लक्षणम् ॥ २०॥
दामोदरं तथा स्थूलं मध्ये चक्रं प्रतिष्ठितम् ।
पूर्णद्वारेण सङ्कीर्णा पीतरेखा च दृश्यते ॥ २१॥
छत्राकारे भवेद्राज्यं वर्तुले च महाश्रियः ।
चिपिटे च महादुःखं शूलाग्रे तु रणं ध्रुवम् ॥ २२॥
ललाटे शेषभोगस्तु शिरोपरि सुकाञ्चनम् ।
चक्रकाञ्चनवर्णानां वामदेवस्य लक्षणम् ॥ २३॥
वामपार्श्वे च वै चक्रे कृष्णवर्णस्तु पिङ्गलम् ।
लक्ष्मीनृसिंहदेवानां पृथग्वर्णस्तु दृश्यते ॥ २४॥
लम्बोष्ठे च दरिद्रं स्यात्पिङ्गले हानिरेव च ।
लग्नचक्रे भवेद्याधिर्विदारे मरणं ध्रुवम् ॥ २५॥
पादोदकं च निर्माल्यं मस्तके धारयेत्सदा ।
विष्णोर्द्दष्टं भक्षितव्यं तुलसीदलमिश्रितम् ॥ २६॥
कल्पकोटिसहस्राणि वैकुण्ठे वसते सदा ।
शालिग्रामशिलाबिन्दुर्हत्याकोटिविनाशनः ॥ २७॥
तस्मात्सम्पूजयेद्ध्यात्वा पूजितं चापि सर्वदा ।
शालिग्रामशिलास्तोत्रं यः पठेच्च द्विजोत्तमः ॥ २८॥
स गच्छेत्परमं स्थानं यत्र लोकेश्वरो हरिः ।
सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति ॥ २९॥
दशावतारो देवानां पृथग्वर्णस्तु दृश्यते ।
ईप्सितं लभते राज्यं विष्णुपूजामनुक्रमात् ॥ ३०॥
कोट्यो हि ब्रह्महत्यानामगम्यागम्यकोटयः ।
ताः सर्वा नाशमायान्ति विष्णुनैवेद्यभक्षणात् ॥ ३१॥
विष्णोः पादोदकं पीत्वा कोटिजन्माघनाशनम् ।
तस्मादष्टगुणं पापं भूमौ बिन्दुनिपातनात् ॥ ३२॥

।।इति श्रीभविष्योत्तरपुराणे श्रीकृष्णयुधिष्ठिरसंवादे
शालिग्रामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

ये लेख एक छोटा सा प्रयास मात्र है इनके अतुलित और अपरम्पार महात्म्य की एक छोटी सी झलक देने का बाकि विराट स्वरुप धारी श्री नारायण भगवान जगन्नाथ के बारे में कुछ कह सकने लायक न मुझे ज्ञान है न क्षमता।

नोट:- ध्यान देने योग्य बात ये है कि आज बाजारवाद के दौर में शालिग्राम जी के भी नकली विग्रह धड़ल्ले से बिक रहे हैं।
काले सीमेंट और पेंट से सांचे में ढाल कर बनाये जा रहे हैं। अतः सरश्रेष्ठ यही होगा यदि आप स्वयम नेपाल जाकर श्रीशालीग्राम शिला प्राप्त करें अथवा किसी बेहद भरोसेमंद व्यक्ति से प्राप्त करें।

अन्य किसी प्रकार की जानकारी ,कुंडली विश्लेषण या समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

Abhishek B. Pandey

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