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Monday, 27 April 2015

Narsinh Jayanti / श्री नृसिंह जयंती

श्री नृसिंह जयंती
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को श्री नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है. ( इस वर्ष 2 मई 2015 को श्री नृसिंह जयंती पडता है) भगवान श्री नृसिंह शक्ति तथा पराक्रम के प्रमुख देवता हैं, पौराणिक मान्यता एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने श्री नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था.

हिन्दू पंचांग के अनुसार श्री नरसिंह जयंती का व्रत वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है. पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी पावन दिवस को भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने श्री नृसिंह रूप में अवतार लिया तथा दैत्यों का अंत कर धर्म कि रक्षा की. अत: इस कारणवश यह दिन भगवान श्री नृसिंह के जयंती रूप में बड़े ही धूमधाम और हर्सोल्लास के साथ संपूर्ण भारत वर्ष में मनाया जाता है.

श्री नरसिंह जयंती कथा

श्री नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है. श्री नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था. धर्म ग्रंथों में भगवान के इस अवतरण के बारे विस्तार पूर्वक विवरण प्राप्त होता है जो इस प्रकार है- प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे उनकी पत्नी का नाम दिति था. उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकशिपु था.
हिरण्याक्ष को भगवान श्री विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वाराह रूप धरकर मार दिया था. अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया. सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया, उसकी तपस्या से प्रसन्न हो ब्रह्माजी ने उसे 'अजेय' होने का वरदान दिया. वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, लोकपालों को मार भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया.

देवता निरूपाय हो गए थे वह असुर को किसी प्रकार वे पराजित नहीं कर सकते थे अहंकार से युक्त वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा. इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया एक राक्षस कुल में जन्म लेने पर भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का भक्त था तथा अपने पिता के अत्याचारों का विरोध करता था.

भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए, नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ तब उसने प्रह्लाद को मारने के षड्यंत्र रचे मगर वह सभी में असफल रहा. भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था.

इस बातों से क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने उसे अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया. होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती परंतु जब प्रल्हाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई किंतु प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ.
इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु को पूजने लगी, तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता, तेरा भगवान कहाँ है? इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं. क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि 'क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ (खंभे) में भी है? प्रह्लाद ने हाँ, में उत्तर दिया.

यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया तभी खंभे को चीरकर श्री नृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया. श्री नृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा अत: इस कारण से दिन को श्री नृसिंह जयंती-उत्सव के रूप में मनाया जाता है.

भगवान श्री नृसिंह जयंती पूजा |
श्री नृसिंह जयंती के दिन व्रत-उपवास एवं पुजा अर्चना कि जाती है इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए तथा भगवान श्री नृसिंह की विधी विधान के साथ पूजा अर्चना करें. भगवान श्री नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए तत्पश्चात वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए.  भगवान श्री नरसिंह जी की पूजा के लिए फल, पुष्प, पंचमेवा, कुमकुम केसर, नारियल, अक्षत व पीताम्बर रखें. गंगाजल, काले तिल, पञ्च गव्य, व हवन सामग्री का पूजन में उपयोग करें.
भगवान श्री नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके श्री नरसिंह गायत्री मंत्र का जाप करें. पूजा पश्चात एकांत में कुश के आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से इस श्री नृसिंह भगवान जी के मंत्र का जप करना चाहिए. इस दिन व्रती को सामर्थ्य अनुसार तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए. इस व्रत करने वाला व्यक्ति लौकिक दुःखों से मुक्त हो जाता है भगवान श्री नृसिंह अपने भक्त की रक्षा करते हैं व उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

भगवान् नरसिंह की उपासना सौम्य रूप में करनी चाहिए
भगवान नरसिंह के प्रमुख 10 रूप है
१) उग्र नरसिंह २) क्रोध नरसिंह ३) मलोल नरसिंह ४) ज्वल नरसिंह ५) वराह नरसिंह ६) भार्गव नरसिंह ७) करन्ज नरसिंह ८) योग नरसिंह ९) लक्ष्मी नरसिंह १०) छत्रावतार नरसिंह/पावन नरसिंह/पमुलेत्रि नरसिंह

दस नामों का उच्चारण करने से कष्टों से मुक्ति और गंभीर रोगों के नाश में लाभ मिलाता है

1 .  नरसिंह कवच

नृसिंहकवचं वक्ष्ये प्रह्लादेनोदितं पुरा | सर्वरक्षकरं पुण्यं सर्वोपद्रवनाशनम् |१||

सर्व सम्पत्करं चैव स्वर्गमोक्षप्रदायकम् |ध्यात्वा नृसिंहं देवेशं हेमसिंहासनस्थितम् ||२||

विवृतास्यं त्रिनयनं शरदिन्दुसमप्रभम् | लक्ष्म्यालिङ्गितवामाङ्गम् विभूतिभिरुपाश्रितम् ||३||

चतुर्भुजं कोमलाङ्गं स्वर्णकुण्डलशोभितम् |सरोजशोभितोरस्कं रत्नकेयूरमुद्रितम् ||४||

तप्त काञ्चनसंकाशं पीतनिर्मलवाससम् |इन्द्रादिसुरमौलिष्ठः स्फुरन्माणिक्यदीप्तिभिः ||५||

विरजितपदद्वन्द्वम् च शङ्खचक्रादिहेतिभिः |गरुत्मत्मा च विनयात् स्तूयमानम् मुदान्वितम् ||६||
स्व हृत्कमलसंवासं कृत्वा तु कवचं पठेत् |नृसिंहो मे शिरः पातु लोकरक्षार्थसम्भवः ||७||

सर्वगेऽपि स्तम्भवासः फलं मे रक्षतु ध्वनिम् |नृसिंहो मे दृशौ पातु सोमसूर्याग्निलोचनः ||८||

स्मृतं मे पातु नृहरिः मुनिवार्यस्तुतिप्रियः |नासं मे सिंहनाशस्तु मुखं लक्ष्मीमुखप्रियः ||९||

सर्व विद्याधिपः पातु नृसिंहो रसनं मम |वक्त्रं पात्विन्दुवदनं सदा प्रह्लादवन्दितः ||१०||

नृसिंहः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ भूभृदनन्तकृत् |दिव्यास्त्रशोभितभुजः नृसिंहः पातु मे भुजौ ||११||

करौ मे देववरदो नृसिंहः पातु सर्वतः |हृदयं योगि साध्यश्च निवासं पातु मे हरिः ||१२||

मध्यं पातु हिरण्याक्ष वक्षःकुक्षिविदारणः |नाभिं मे पातु नृहरिः स्वनाभिब्रह्मसंस्तुतः ||१३||

ब्रह्माण्ड कोटयः कट्यां यस्यासौ पातु मे कटिम् |गुह्यं मे पातु गुह्यानां मन्त्राणां गुह्यरूपदृक् ||१४||
ऊरू मनोभवः पातु जानुनी नररूपदृक् |जङ्घे पातु धराभर हर्ता योऽसौ नृकेशरी ||१५||

सुर राज्यप्रदः पातु पादौ मे नृहरीश्वरः |सहस्रशीर्षापुरुषः पातु मे सर्वशस्तनुम् ||१६||

महोग्रः पूर्वतः पातु महावीराग्रजोऽग्नितः |महाविष्णुर्दक्षिणे तु महाज्वलस्तु नैरृतः ||१७||

पश्चिमे पातु सर्वेशो दिशि मे सर्वतोमुखः |नृसिंहः पातु वायव्यां सौम्यां भूषणविग्रहः ||१८||

ईशान्यां पातु भद्रो मे सर्वमङ्गलदायकः |संसारभयतः पातु मृत्योर्मृत्युर्नृकेशई ||१९||

इदं नृसिंहकवचं प्रह्लादमुखमण्डितम् |भक्तिमान् यः पठेन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते ||२०||

पुत्रवान् धनवान् लोके दीर्घायुरुपजायते |कामयते यं यं कामं तं तं प्राप्नोत्यसंशयम् ||२१||

सर्वत्र जयमाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् |भूम्यन्तरीक्षदिव्यानां ग्रहाणां विनिवारणम् ||२२||

वृश्चिकोरगसम्भूत विषापहरणं परम् |ब्रह्मराक्षसयक्षाणां दूरोत्सारणकारणम् ||२३||

भुजेवा तलपात्रे वा कवचं लिखितं शुभम् |करमूले धृतं येन सिध्येयुः कर्मसिद्धयः ||२४||

देवासुर मनुष्येषु स्वं स्वमेव जयं लभेत् |एकसन्ध्यं त्रिसन्ध्यं वा यः पठेन्नियतो नरः ||२५||

सर्व मङ्गलमाङ्गल्यं भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति | द्वात्रिंशतिसहस्राणि पठेत् शुद्धात्मनां नृणाम् ||२६||
कवचस्यास्य मन्त्रस्य मन्त्रसिद्धिः प्रजायते |अनेन मन्त्रराजेन कृत्वा भस्माभिर्मन्त्रानाम् ||२७||

तिलकं विन्यसेद्यस्तु तस्य ग्रहभयं हरेत् |त्रिवारं जपमानस्तु दत्तं वार्याभिमन्त्र्य च ||२८||

प्रसयेद् यो नरो मन्त्रं नृसिंहध्यानमाचरेत् |तस्य रोगः प्रणश्यन्ति ये च स्युः कुक्षिसम्भवाः ||२९||

गर्जन्तं गार्जयन्तं निजभुजपतलं स्फोटयन्तं हतन्तं रूप्यन्तं तापयन्तं दिवि भुवि दितिजं क्षेपयन्तं क्षिपन्तम् |
क्रन्दन्तं रोषयन्तं दिशि दिशि सततं संहरन्तं भरन्तं वीक्षन्तं पूर्णयन्तं करनिकरशतैर्दिव्यसिंहं नमामि ||३०||

||इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे प्रह्लादोक्तं श्रीनृसिंहकवचं सम्पूर्णम्



2.  श्री अथर्वण वेदो क्त नृसिंहमालामन्त्रः

श्री गणेशाय नमः |

अस्य श्री नृसिंहमाला मन्त्रस्य नारदभगवान् ऋषिः | अनुष्टुभ् छन्दः | श्री नृसिंहोदेवता | आं बीजम् | लं शवित्तः | मेरुकीलकम् | श्रीनृसिंहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः |

ॐ नमो नृसिंहाय ज्वलामुखग्निनेत्रय शङ्खचक्रगदाप्र्हस्ताय | योगरूपाय हिरण्यकशिपुच्छेदनान्त्रमालाविभुषणाय हन हन दह दह वच वच रक्ष वो नृसिंहाय पुर्वदिषां बन्ध बन्ध रौद्रभसिंहाय दक्षिणदिशां बन्ध बन्ध पावननृसिंहाय पश्चिमदिशां बन्ध बन्ध दारुणनृसिंहाय उत्तरदिशां बन्ध बन्ध ज्वालानृसिंहाय आकाशदिशां बन्ध बन्ध लक्ष्मीनृसिंहाय पातालदिशां  बन्ध बन्ध कः कः कंपय कंपय आवेशय आवेशय अवतारय अवतारय शीघ्रं शीघ्रं | ॐ नमो नारसिंहाय नवकोटिदेवग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय अष्टकोटिगन्धर्व ग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय षट्कोटिशाकिनीग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय पंचकोटि पन्नगग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय चतुष्कोटि ब्रह्मराक्षसग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय द्विकोटिदनुजग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय कोटिग्रहोच्चाटनाय| ॐ नमो नारसिंहाय अरिमूरीचोरराक्षसजितिः वारं वारं | श्रीभय चोरभय व्याधिभय सकल भयकण्टकान् विध्वंसय विध्वंसय | शरणागत वज्रपंजराय विश्वहृदयाय प्रल्हादवरदाय क्षरौं श्रीं नृसिंहाय स्वाहा | ॐ नमो नारसिंहाय मुद्गल शङ्खचक्र गदापद्महस्ताय नीलप्रभांगवर्णाय भीमाय भीषणाय ज्वाला करालभयभाषित श्री नृसिंहहिरण्यकश्यपवक्षस्थलविदार्णाय | जय जय एहि एहि भगवन् भवन गरुडध्वज गरुडध्वज मम सर्वोपद्रवं वज्रदेहेन चूर्णय चूर्णय आपत्समुद्रं शोषय शोषय | असुरगन्धर्वयक्षब्रह्मराक्षस भूतप्रेत पिशाचदिन विध्वन्सय् विध्वन्सय् | पूर्वाखिलं मूलय मूलय | प्रतिच्छां स्तम्भय परमन्त्रपयन्त्र परतन्त्र परकष्टं छिन्धि छिन्धि भिन्धि हं फट् स्वाहा |

इति श्री अथर्वण वेदोवत्तनृसिंहमालामन्त्रः समाप्तः |
श्री नृसिम्हार्पणमस्तु ||


3.   नरसिंह गायत्री
ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्ण दंष्ट्राय धीमहि |तन्नो नरसिंह प्रचोदयात ||

पांच माला के जाप से आप पर भगवान नरसिंह की कृपा होगी
इस महा मंत्र के जाप से क्रूर ग्रहों का ताप शांत होता है
कालसर्प दोष, मंगल, राहु ,शनि, केतु का बुरा प्रभाव नहीं हो पाटा
एक माला सुबह नित्य करने से शत्रु शक्तिहीन हो जाते हैं
संध्या के समय एक माला जाप करने से कवच की तरह आपकी सदा रक्षा होती है
यज्ञ करने से भगवान् नरसिंह शीघ्र प्रसन्न होते हैं
जो बिधि-विधान से पूजा नहीं कर पाते और जो मनो कामना पूरी करना चाहते है, उन्हें बीज मंत्र द्वारा साधना करनी चाहिए

4 )संपत्ति बाधा नाशक मंत्र
यदि आपने किसी भी तरह की संपत्ति खरीदी है गाड़ी, फ्लेट, जमीन या कुछ और उसके कारण आया संकट या बाधा परेशान कर रही है तो संपत्ति का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान नरसिंह या विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें
धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें
सात दिये जलाएं
हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें

मंत्र-ॐ नृम मलोल नरसिंहाय पूरय-पूरय

मंत्र जाप संध्या के समय करने से शीघ्र फल मिलता है

5)ऋण मोचक नरसिंह मंत्र
है यदि आप ऋणों में उलझे हैं और आपका जीवन नरक हो गया है, आप तुरंत इस संकट से मुक्ति चाहते हैं तो ऋणमोचक नरसिंह मंत्र का जाप करें
भगवान नरसिंह की प्रतिमा का पूजन करें
पंचोपचार पूजन कर फल अर्पित करते हुये प्रार्थना करें
मिटटी के पात्र में गंगाजल अर्पित करें
हकीक की माला से छ: माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें

मंत्र-ॐ क्रोध नरसिंहाय नृम नम:

रात्रि के समय मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है

6 )शत्रु नाशक नरसिंह मंत्र

यदि आपको कोई ज्ञात या अज्ञात शत्रु परेशान कर रहा हो तो शत्रु नाश का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें
धूप दीप पुष्प सहित जटामांसी अवश्य अर्पित कर प्रार्थना करें
चौमुखे तीन दिये जलाएं
हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें

मंत्र-ॐ नृम नरसिंहाय शत्रुबल विदीर्नाय नमः

रात्री को मंत्र जाप से जल्द फल मिलता है

7 )यश रक्षक मंत्र
यदि कोई आपका अपमान कर रहा है या किसी माध्यम से आपको बदनाम करने की कोशिश कर रहा है तो यश रक्षा का नरसिंह मंत्र जपें
भगवान नरसिंह जी की प्रतिमा का पूजन करें
कुमकुम केसर गुलाबजल और धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें
सात तरह के अनाज दान में दें
हकीक की माला से सात माला मंत्र का जाप करें
काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें

मंत्र-ॐ करन्ज नरसिंहाय यशो रक्ष

संध्या के समय किया गया मंत्र शीघ्र फल देता है

8 . मृत्युंभय नाश केलिए

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्।।


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1 comment:

  1. लक्ष्मी-नृसिंह के मंत्र कौन से माला से जप करना है ?

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