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Monday 1 August 2022

नाग पंचमी 2022 विशेष


नाग पंचमी 2022 विशेष: नाग मन्त्र, स्तोत्र एवं उपाय

मित्रों, 
 कल 2 अगस्त 2022 को नाग पंचमी का पर्व है जो देश भर में मनाया जाता है। 

पंचांग से:-
 
पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त –  सुबह 05 बजकर 43 मिनट से 08 बजकर 25 मिनट तक

नाग पंचमी पूजा विधि
 इस दिन गृह-द्वार के दोनों तरफ गाय के गोबर से सर्पाकृति बनाकर अथवा सर्प का चित्र लगाकर उन्हें घी, दूध, जल अर्पित करना चाहिए। इसके पश्चात दही, दूर्वा, धूप, दीप एवं नीलकंठी, बेलपत्र और मदार-धतूरा के पुष्प से विधिवत पूजन करें। फिर नागदेव को धान का लावा, गेहूँ और दूध का भोग लगाना चाहिए।

नाग पंचमी पर इन सूक्त, स्तोत्र के पाठ और मन्त्र जप करते हुए भगवान शिव का पूजन, अभिषेक करने से, नाग देवता की पूजा करने से सर्प भय का नाश होता है और सर्प दंश से रक्षा होती है।

।।श्री सर्प सूक्तम।।

ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।

कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।

सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।

पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।

ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।

समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।

रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।

(१)नाग गायत्री मंत्र :-

ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि
तन्नो सर्प: प्रचोदयात ll

(२) सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र—

महाभारत में जब राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षक से बदला लेने के लिए सर्पनाश का यज्ञ किया तो सब सांप मरने लगे , उस समय उन्हें आस्तिक नामक मुनि ने बचाया जो भगवान शिव की मानस पुत्री मनसा देवी के पुत्र थे।

मनसा देवी के इस स्तोत्र का पाठ करने से सर्प दंश से रक्षा होती है और मनसा देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

ध्यानः-
चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् ।
नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।।

।। मूल-स्तोत्र ।।

।। श्रीनारायण उवाच ।।
नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः ।
 नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।।
बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः । 
नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।।
तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः । 
साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।।

।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् ।
 यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।।
न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति ।
 वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।।

(३) यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है । जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता ।

जो पुरुष पूजा के समय इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे तथा उसके वंशज को भी सर्प का भय नहीं हो सकता। इन बारह नामों से विश्व इनकी पूजा करता है। उसके सामने उग्र से उग्र सर्प भी शांत हो जाता है।

जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।
 वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।। जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीति च ।
 महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।। 
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत् ।
 तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।।

 
 (४)कालसर्प योग एवम राहु केतु शांति हेतु:-

चांदी और तांबे के 1-1 जोड़ी सर्प लेकर नाग देवता मन्दिर में अर्पण करें। दूध से अभिषेक एवं चन्दन का तिलक कर भोग अर्पण करें।

नाग मन्दिर न हो तो शिव लिंग पर इन्हें चढ़ाकर ॐ नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र से यथासम्भव अधिकाधिक जप करते हुए अभिषेक करें।

(५) नाग देवता कृपा प्राप्ति मंत्र :- 

इस मंत्र का जप करते हुए सांप की बाम्बी या किसी बड़े वृक्ष जिसके नीचे बिल या कोटर हो मिट्टी के पात्र में दूध चढ़ाएं।

'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।। 
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। 
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।' 

अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम...। 

(६) धन धान्य प्राप्ति:-

 मान्यता है कि पृथ्वी के नीचे पाताल पुरी के सप्तलोकों में एक नाग लोक भी है जिसके राजा नागदेवता हैं। पाताल लोक सोने चांदी, बहुमूल्य रत्नों और विभिन्न प्रकार के दुर्लभ मणियों से भरा है। नाग देवता की नियमित पूजा करने पर वो प्रसन्न होकर वे अपने अमूल्य खजाने से व्यक्ति को धन और ऐश्वर्य से परिपूर्ण कर देते हैं। 

।।नवनाग स्तोत्र ll

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत

ll इति श्री नवनाग स्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll

(७) भय नाश एवं रक्षा हेतु:-

श्री नाग स्तोत्र

अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।
सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका: ॥१॥

मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात् ।
विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डल ॥२॥

अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक: ।
कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥३॥

यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर: ।
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥४॥

॥ इति श्रीनागस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
 

(८) कन्या के विवाह हेतु:-

जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो वे नाग देवता के मंदिर में ऐसी प्रतिमा जिसमें नाग नागिन का जोड़ा हो या दो नाग सम्मुख आलिंगन बद्ध यानी लिपटे हुए हों, उनका देवी एवं देवता का अलग अलग श्रृंगार चढ़कर कर विधि विधान से पूजन करवाएं।

(९) विशेष भोग:-

नाग देवता की प्रसन्नता के लिए  इस दिन खीर बनाकर पूजन कर भोग लगाकर किसी पेड़ की नीचे खीर रख दें।
( विशेष बात: ये खीर सिर्फ नाग देवता के लिये होती है इसे भूलकर भी स्वयम न खायें न ही बच्चों या किसी अन्य व्यक्ति को दें, इसलिए थोड़ी ही बनाएं और भगवान को अर्पित कर दें)

 अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Sunday 8 May 2022

वनस्पति तन्त्र: अतिदुर्लभ कुश का डबल बाँदा



मित्रों,
जैसा आप सब जानते हैं कि कुश का बाँदा एक अति दुर्लभ वनस्पति है जो
धन प्राप्ति
लक्ष्मी आकर्षण
व्यापार वृद्धि
सुख शांति
समृद्धि

के लिए बहुत ही असरदार है
इसमें एक अन्य वनस्पति कुश का डबल बाँदा 
जो अत्यंत दुर्लभ या दुर्लभतम है
जिसमें कुश के 2 बांदे होते हैं और दोगुना असरदार और तीव्र फलदायी माना जाता है।

प्राप्त करने के लिए सम्पर्क करें
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बगुलामुखी जयंती 2022 विशेष

बगलामुखी जयंती  विशेष 
(2015 की पोस्ट)
बगल स्तोत्र , कवच एवम् अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

मित्रों
         आज माँ बगुलामुखी जयंती है और आप सबको अनेक शुभकामनायें।  माँ  आपको स्वस्थ सुरक्षित रखें और सभी संकटों से रक्षा करें तथा अभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।

माँ बगलामुखी १० महाविद्याओं में आठवां  स्वरुप हैं।  ये महाविद्यायें भोग और मोक्ष दोनों को देने वाली हैं। सांख़यायन तन्त्र के अनुसार बगलामुखी को सिद्घ विद्या कहा गया है।

तन्त्र शास्त्र में इसे ब्रह्मास्त्र, स्तंभिनी विद्या, मंत्र संजीवनी विद्या तथा प्राणी प्रज्ञापहारका एवं षट्कर्माधार विद्या के नाम से भी अभिहित किया गया है।

 कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीता बरा की साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि व्याधि से त्रस्त वर्तमान समय में मानव मात्र माँ पीतांबरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी समस्त अभिलाषाओं को प्राप्त कर सकता है।

बगलामुखी की साधना से साधक भयरहित हो जाता है और शत्रु से उसकी रक्षा होती है। बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक, शत्रुविनाशक एवं स्तंभनात्मक है। यजुर्वेद के पंचम अध्याय में ‘रक्षोघ्न सूक्त’ में इसका वर्णन है।
इसका आविर्भाव प्रथम युग में बताया गया है। देवी बगलामुखी जी की प्राकट्य कथा इस प्रकार  है जिसके अनुसार :-

एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया. यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए.

इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती श्रीविद्या के  के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ और तेज से भगवती पीतांबरा का प्राकट्य हुआ

उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका.जब समस्त संसार के नाश के लिए प्रकृति में आंधी तूफान आया उस समय विष्णु भगवान संसार की रक्षा के लिये तपस्या करने लगे।
उनकी तपस्या से सौराष्ट्र में पीत सरोवर में । इनका आविर्भाव वीर रात्रि को माना गया है। शक्ति संग तंत्र के काली खंड के त्रयोदश पटल में वीर रात्रि का वर्णन इस प्रकार है

चतुर्दशी संक्रमश्च कुलर्क्ष कुलवासरः अर्ध रात्रौ यथा योगो वीर रात्रिः प्रकीर्तिता।

भगवती पीतांबरा के मंत्र का छंद वृहती है। ऋषि ब्रह्मा हैं, जो सर्व प्रकार की वृद्घि करने वाले हैं। भगवती सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं। इसके भक्त धन धान्य से पूर्ण रहते हैं।

भगवती पीतांबरा की पूजा पीतोपचार से होती है। पीतपुष्ष, पीत वस्त्र, हरिद्रा की माला, पीत नैवेद्य आदि पीतरंग इनको प्रिय हैं। इनकी पूजा में प्रयुक्त की जाने वाली हर वस्तु पीले रंग की ही होती है।

भगवती के अनेक साधकों का वर्णन तंत्र ग्रंथों में उपलब्ध है। सर्व प्रथम ब्रह्मास्त्र रूपिणी बगला महाविद्या का उपदेश ब्रह्माजी ने सनकादि ऋषियों को दिया। वहाँ से नारद, परशुराम आदि को इस महाविद्या का उपदेश हुआ। भगवान परशुराम शाक्तमार्ग के आचार्य हैं।

भगवान परशुराम को स्तंभन शक्ति प्राप्त थी। स्तंभन शक्ति के बल से शत्रु को पराजित करते थे।

 देवी बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहते हैं क्यूंकि ये स्वयं  ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.

माँ बगलामुखी का  बीज मंत्र :- ह्लीं

मूल मंत्र :-  !!ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं
                 स्तम्भय जिह्वां किलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा!!

ग्रंथों के अनुसार ये मन्त्र सवा लाख जप कर के सिद्ध हो जाता है किन्तु वास्तविकता कहिये या कलयुग के प्रभाव से ये इससे १०  या और बी कई गुना अधिक जप के बाद ही सिद्ध होता है।

 ये एक अति उग्र मंत्र है और गलत उच्चारण  जप करने पर उल्टा नुकसान भी दे सकता है।

** ध्यान रहे **

बिना सही विधि के जप करने पर मन्त्र में शत्रु के नाश के लिए कही गयी बातें स्वयं पर ही असर कर सकती है अतः गुरु से दीक्षा लेने और विधान जानने के बाद ही माँ का जप या साधना करनी चाहिए।

दूसरी बात माँ का मूल मंत्र जो की सबसे प्रचलित भी है इसका  असर दिखने में काफी समय लगता है या यूँ कहिये की माँ साधक के धैर्य की परीक्षा लेती हैं और उसके बाद ही अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं।

माँ का मूल मन्त्र करने से पूर्व गायत्री मंत्र या बीज मन्त्र या माँ का ही कोई अन्य सौम्य मंत्र कर लिया जाये तो इसका प्रभाव शीघ्र मिलता है।

बगला गायत्री मंत्र :-

 विभिन्न गुरु परम्पराओं से कई प्रकार के बगला गायत्री मंत्र प्राप्त होते हैं

1. ॐ ह्लीं ब्रह्मस्त्राय विद्महे स्तम्भनाबाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात।

2. ॐ ब्रह्मस्त्रविद्याय च विद्महे स्तंभनाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात।

3. ॐ बगलाननाय विद्महे पीताम्बराय धीमहि तन्नो स्तम्भिनी प्रचोदयात।

4. ॐ बग्लामुखै च विद्महे स्तम्भिनये धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात।

5. ॐ ह्ल्रीं बगलामुख्यै विद्महे पीताम्बरायै  धीमहि तन्नो स्तम्भिनी प्रचोदयात ।

( आप वो बगला गायत्री करे जो आपके गुरु बताएं )

जप आरम्भ करने से पूर्व बगलामुखी कवच और अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पथ करने से साधक सब प्रकार की बाधाओं और जप/ साधना  में विघ्न उत्पन्न करने वाली शक्तियों से सुरक्षित रहता है और सफल होता है।

** जिनकी दीक्षा नहीं हुई किंतु माँ बगुलामुखी में श्रद्धा है और उनकी कृपा चाहते हैं वे कवच और अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करें।

शास्त्रानुसार यदि सिर्फ कवच और अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का ही १००० बार निर्विघ्न रूप से साधनात्मक तरीके से पाठ  कर लिया जाये तो ये जागृत हो जाते हैं और फिर साधक इनके माध्यम से भी कई कर संपन्न कर सकता है।

बगलामुखी स्तोत्र

नमो देवि बगले! चिदानंद रूपे, नमस्ते जगद्वश-करे-सौम्य रूपे।
नमस्ते रिपु ध्वंसकारी त्रिमूर्ति, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।।
सदा पीत वस्त्राढ्य पीत स्वरूपे, रिपु मारणार्थे गदायुक्त रूपे।
सदेषत् सहासे सदानंद मूर्ते, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।।
त्वमेवासि मातेश्वरी त्वं सखे त्वं, त्वमेवासि सर्वेश्वरी तारिणी त्वं।
त्वमेवासि शक्तिर्बलं साधकानाम, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते।।
 रणे, तस्करे घोर दावाग्नि पुष्टे, विपत सागरे दुष्ट रोगाग्नि प्लुष्टे।।
त्वमेका मतिर्यस्य भक्तेषु चित्ता, सषट कर्मणानां भवेत्याशु दक्षः।।

 बगलामुखी कवचं

श्रुत्वा च बगलापूजां स्तोत्रं चाप महेश्वर ।
इदानी श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ॥ १ ॥
वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाSशुभविनाशनम् ।
शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दु:खनाशनम् ॥२॥
-----------
श्रीभैरव उवाच :
कवचं शृणु वक्ष्यामि भैरवीप्राणवल्लभम् ।
पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ॥३॥
---------------
ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषि: ।
अनुष्टप्छन्द: । बगलामुखी देवता । लं बीजम् ।
ऐं कीलकम् पुरुषार्थचष्टयसिद्धये जपे विनियोग: ।
ॐ शिरो मे बगला पातु हृदयैकाक्षरी परा ।
ॐ ह्ली ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी ॥१॥
गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी ।
वैरिजिह्वाधरा पातु कण्ठं मे वगलामुखी ॥२॥
उदरं नाभिदेशं च पातु नित्य परात्परा ।
परात्परतरा पातु मम गुह्यं सुरेश्वरी ॥३॥
हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे ।
विवादे विषमे घोरे संग्रामे रिपुसङ्कटे ॥४॥
पीताम्बरधरा पातु सर्वाङ्गी शिवनर्तकी ।
श्रीविद्या समय पातु मातङ्गी पूरिता शिवा ॥५॥
पातु पुत्रं सुतांश्चैव कलत्रं कालिका मम ।
पातु नित्य भ्रातरं में पितरं शूलिनी सदा ॥६॥
रंध्र हि बगलादेव्या: कवचं मन्मुखोदितम् ।
न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥ ७॥
पाठनाद्धारणादस्य पूजनाद्वाञ्छतं लभेत् ।
इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीम् ॥८॥
पिवन्ति शोणितं तस्य योगिन्य: प्राप्य सादरा: ।
वश्ये चाकर्षणो चैव मारणे मोहने तथा ॥९॥
महाभये विपत्तौ च पठेद्वा पाठयेत्तु य: ।
तस्य सर्वार्थसिद्धि: स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति ॥१०॥
-----------------
(इति श्रीरुद्रयामले बगलामुखी कवचं सम्पूर्ण )

माता बगलामुखी अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र
--------------------------
ब्रह्मास्त्ररुपिणी देवी माता श्रीबगलामुखी ।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च ब्रह्मानन्द-प्र
दायिनी ।। १ ।।
महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमंगला ।। २ ।।
ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छीन्नमस्ता च तारा काली सरस्वती ।।
३ ।।
जगत्पूज्या महामाया कामेशी भगमालिनी ।
दक्षपुत्री शिवांकस्था शिवरुपा शिवप्रिया ।। ४
।।
सर्व-सम्पत्करी देवी सर्वलोक वशंकरी ।
विदविद्या महापूज्या भक्ताद्वेषी भयंकरी ।। ५
।।
स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च दुष्टस्तम्भनकारिणी ।
भक्तप्रिया महाभोगा श्रीविद्या ललिताम्बिका ।।
६ ।।
मैनापुत्री शिवानन्दा मातंगी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च नृपाराध्या नरोत्तमा ।। ७
।।
नागिनी नागपुत्री च नगराजसुता उमा ।
पीताम्बा पीतपुष्पा च पीतवस्त्रप्रिया शुभा ।।
८ ।।
पीतगन्धप्रिया रामा पीतरत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्धचन्द्रधरी देवी गदामुद्गरधारिणी ।। ९ ।।
सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योराग विवर्धिनी ।
विष्णुरुपा जगन्मोहा ब्रह्मरुपा हरिप्रिया ।। १०
।।
रुद्ररुपा रुद्रशक्तिश्चिन्मयी भक्तवत्सला ।
लोकमाता शिवा सन्ध्या शिवपूजनतत्परा ।। ११
।।
धनाध्यक्षा धनेशी च नर्मदा धनदा धना ।
चण्डदर्पहरी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी ।। १२ ।।
राजराजेश्वरी देवी महिषासुरमर्दिनी ।
मधूकैटभहन्त्री देवी रक्तबीजविनाशिनी ।। १३ ।।
धूम्राक्षदैत्यहन्त्री च भण्डासुर विनाशिनी ।
रेणुपुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ।। १४
।।
ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्रपूज्या च गुहमाता गुणेश्वरी ।। १५
।।
वज्रपाशधरा देवी ज्ह्वामुद्गरधारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी बगला परमेश्वरी ।। १६ ।।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिपुबाधाविनिर्मुक्तः लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात् ।।
१७ ।।
भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रहपीड़ानिवारणम् ।
राजानो वशमायांति सर्वैश्वर्यं च विन्दति ।। १८
।।
नानाविद्यां च लभते राज्यं प्राप्नोति निश्चितम्
भुक्तिमुक्तिमवाप्नोति साक्षात् शिवसमो भवेत् ।।

(श्री रुद्रयामले सर्वसिद्धिप्रद बगला अष्टोत्तरशतनाम स्त्रोत्रम )

बगुलामुखी यन्त्र

आज के इस भागदौड़ के युग में श्री बगलामुखी यंत्र की साधना अन्य किसी भी साधना से अधिक उपयोगी है। यह एक परीक्षित और अनुभवसिद्ध तथ्य है। इसे गले में पहनने के साथ-साथ पूजा घर में भी रख सकते हैं। इस यंत्र की पूजा पीले दाने, पीले वस्त्र, पीले आसन पर बैठकर निम्न मंत्र को प्रतिदिन जप करते हुए करनी चाहिए। अपनी सफलता के लिए कोई भी व्यक्ति इस यंत्र का उपयोग कर सकता है। इसका वास्तविक रूप में प्रयोग किया गया है। इसे अच्छी तरह से अनेक लोगों पर उपयोग करके देखा गया है। 

शास्त्रानुसार और वरिष्ठ सड़कों के अनुभव के अनुसार  जिस घर में यह महायंत्र स्थापित होता है, उस घर पर कभी भी शत्रु या किसी भी प्रकार की विपत्ति  हावी नहीं हो सकती। न उस घर के किसी सदस्य पर आक्रमण हो सकता है, न ही उस परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो सकती है। इसीलिए इसे महायंत्र की संज्ञा दी गई है।  इससे दृश्य/अदृश्य बाधाएं समाप्त होती हैं। यह यंत्र अपनी पूर्ण प्रखरता से प्रभाव दिखाता है। उसके शारीरिक और मानसिक रोगों तथा ऋण, दरिद्रता आदि से उसे मुक्ति मिल जाती है। वहीं उसकी पत्नी और पुत्र सही मार्ग पर आकर उसकी सहायता करते हैं। उसके विश्वासघाती मित्र और व्यापार में साझीदार उसके अनुकूल हो जाते हैं।

 शत्रुओं के शमन (चाहे बाहरी हो या घरेलू कलह , दरिद्रता या शराब / नशे व्यसन रूप में भीतरी शत्रु ),रोजगार या व्यापार आदि में आनेवाली बाधाओं से मुक्ति, मुकदमे में सफलता के लिए , टोने टोटकों के प्रभाव से बचाव आदि के लिए किसी साधक के द्वारा सिद्ध मुहूर्त में निर्मित, बगलामुखी तंत्र से अभिसिंचित तथा प्राण प्रतिष्ठित श्री बगलामुखी यंत्र घर में स्थापित करना चाहिए या कवच रूप में धारण करना चाहिए।

बगलामुखी हवन

 १)  वशीकरण : मधु, घी और शर्करा मिश्रित तिल से किया जाने वाला हवन (होम) मनुष्यों को वश में करने वाला माना गया है। यह हवन आकर्षण बढ़ाता है।

२) विद्वेषण : तेल से सिक्त नीम के पत्तों से किया जाने वाला हवन विद्वेष दूर करता है।

३) शत्रु नाश : रात्रि में श्मशान की अग्नि में कोयले, घर के धूम, राई और माहिष गुग्गल के होम से शत्रु का शमन होता है।

४) उच्चाटन : गिद्ध तथा कौए के पंख, कड़वे तेल, बहेड़े, घर के धूम और चिता की अग्नि से होम करने से साधक के शत्रुओं को उच्चाटन लग जाता है।

५) रोग नाश : दूब, गुरुच और लावा को मधु, घी और शक्कर के साथ मिलाकर होम करने पर साधक सभी रोगों को मात्र देखकर दूर कर देता है।

६ ) मनोकामना पूर्ति : कामनाओं की सिद्धि के लिए पर्वत पर, महावन में, नदी के तट पर या शिवालय में एक लाख जप  करें।

७) विष नाश / स्तम्भन :

एक रंग की गाय के दूध में मधु और शक्कर मिलाकर उसे तीन सौ मंत्रांे से अभिमंत्रित करके पीने से सभी विषों की शक्ति समाप्त हो जाती है और साधक शत्रुओं की शक्ति तथा बुद्धि का स्तम्भन करने में सक्षम होता है।

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जय माँ पीताम्बरा
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Tuesday 3 May 2022

Akshay Tritiya: Unlimited Benefits अक्षय तृतीया: अतुल फलदायी

इस बार अक्षय तृतीया पर 11 साल बाद महामंगल योग बन रहा है. 21 अप्रैल को सूर्य मेष, चंद्रमा वृषभ और गुरु कर्क राशि में रहकर मंगलकारी योग बनाएंगे.

इस दिन दोपहर 11.59 बजे तक कृतिका व इसके बाद रोहिणी नक्षत्र लगेगा. चंद्रमा के उच्च राशि में रहने से दोनों नक्षत्र भी हर प्रकार के कार्यों में शुभता बढ़ाएंगे.

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को “अक्षय तृतीया” या “आखा तृतीया” अथवा “आखातीज” भी कहते हैं। “अक्षय” का शब्दिक अर्थ है – जिसका कभी नाश (क्षय) न हो अथवा जो स्थायी रहे। स्थायी वहीं रह सकता है जो सर्वदा सत्य है। सत्य केवल परमात्मा है जो अक्षय, अखण्ड और सर्वव्यापक है।

-> यह अक्षय तृतीया तिथि “ईश्वर तिथि” है।

-> इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है।

-> परशुरामजी की गिनती चिंरजीवी महात्माओं में की जाती है। अत: यह तिथि “चिरंजीवी तिथि” भी कहलाती है।

-> चारों युगों – सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग में से त्रेतायुग का आरंभ इसी आखातीज से हुआ है जिससे इस तिथि को युग के आरंभ की तिथि “युर्गाद तिथि” भी कहते हैं।

-> मातंगी जयंती : शक्ति साधकों के लिए भी ये अतिमहत्वपूर्ण दिन है क्योंकि ये दस महाविद्याओं में से एक देवी मातंगी की भी जयंती है इस्लीये कला संगीत का अभ्यास या अध्ययन का आरंभ करने के लिए यह काल सर्वश्रेष्ठ है।

भौतिकता के अनुयायी इस काल को स्वर्ण खरीदने का श्रेष्ठ काल मानते हैं। इसके पीछे शायद इस तिथि की ‘अक्षय’ प्रकृति ही मुख्य कारण है। यानी सोच यह है कि यदि इस काल में हम यदि घर में स्वर्ण लाएंगे तो अक्षय रूप से स्वर्ण आता रहेगा। अक्षय तृतीया कुंभ स्नान व दान पुण्य के साथ पितरों की आत्मा की शांति के लिए अराधना का दिन भी माना गया है। 

अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें बरकत होती है। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ेगा।

धरती पर देवताओं ने 24 रूपों में अवतार लिया। इनमें छठा अवतार भगवान परशुराम का था। पुराणों में उनका जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था। इस दिन भगवान विष्णु के चरणों से धरती पर गंगा अवतरित हुई।

मातंगी : मतंग शिव का नाम है। शिव की यह शक्ति असुरों को मोहित करने वाली और साधकों को अभिष्ट फल देने वाली है। गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए लोग इनकी पूजा करते हैं। अक्षय तृतीया अर्थात वैशाख शुक्ल की तृतीया को इनकी जयंती आती है।
यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं।

पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।

शास्त्रों की इस मान्यता को वर्तमान में व्यापारिक रूप दे दिया गया है जिसके कारण अक्षय तृतीया के मूल उद्देश्य से हटकर लोग खरीदारी में लगे रहते हैं। वास्तव में यह वस्तु खरीदने का दिन नहीं है। वस्तु की खरीदारी में आपका संचित धन खर्च होता है

। “न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्। 
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गङग्या समम्।।” 

मत्स्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन अक्षत पुष्प दीप आदि द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से विष्णु भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा सँतान भी अक्षय बनी रहती है इस दिन दीन दुःखीयोँ की सेवा करना,वस्त्रादि का दान करना ओर शुभ कर्मोँ की ओर अग्रसर रहते हुए मन वचन ओर अपने कर्म से अपने मनुष्य धर्म का पालन करना ही अक्षय तृतीया पर्व की सार्थकता है कलियुग के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करके दान अवश्य करना चाहिए|ऐसा करने से निश्चय ही अगले जन्म मेँ समृद्धि ऐश्वर्य व सुख की प्राप्ति होती है

दान को वैज्ञानिक तर्कों में उर्जा के रूपांतरण से जोड़ कर देखा जा सकता है।दान करने से जाने-अनजाने हुए पापों का बोझ हल्का होता है और पुण्य की पूंजी बढ़ती है। अक्षय तृतीया के विषय में कहा गया है कि इस दिन किया गया दान खर्च नहीं होता है, यानी आप जितना दान करते हैं उससे कई गुणा आपके अलौकिक कोष में जमा हो जाता है।

क्या करें दान

अक्षय तृतीया को पवित्र तिथी माना गया है इस दिन गँगा यमुना आदि पवित्र नदियोँ मेँ स्नान करके श्रद्धा भाव से अपने सामर्थ्य के अनुसार जल,अनाज,गन्ना,दही,सत्तू,फल,सुराही,हाथ से बने पँखे वस्त्रादि का दान करना विशेष फल प्रदान करने वाला माना गया है।

दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए यह दिवस सर्वश्रेष्ठ है।

धन के इच्छुक लोगों को-ब्राहमण पूजा करते हुये दानादि शुभ कर्म करने चाहिए व गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए, अक्षय तृतीया के दिन मंत्र साधना भी अक्षय फल प्रदान करती है अक्षय तृतीया के दिन माँ लक्ष्मी सहित व्बिष्णु जी व देवी शक्ति सहित शिव की पूजा करनी चाहिए, विशेष तौर पर गणपति की पूजा घर में धन वैभव ले कर आती है, पूजा के समय घर पर यन्त्र स्थापित करना चाहिए जो आयु आरोग्य और धन प्रदान करें,

कुछ प्रयोग:-

(1) कार्य में सफलता हेतु

श्वेतार्क या स्फटिक के गणपति जी की स्थापना और पूजन करना चाहिए। यदि काम बनते बनते बिगड़ जाते हैं या मन्ज़िल तक पहुँच कर हाथ से निकल जाते हैं तो किसी विद्वान ब्राह्मण से श्वेतार्क का ताबीज़ बनवा कर सिद्ध करवा कर पहनना चाहिए।

(2) लक्ष्मी प्राप्ति हेतु

(क)-ग्रंथों में लक्ष्मी, यश- कीर्ति की प्राप्ति उपाय के रूप में कई उपाय मिलते हैं। लक्ष्मी गायत्री मंत्र का निरंतर जाप भी इष्टप्रद है।

'महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च
धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।'
कमल गट्टे की माला से कम से कम 11 माला जप करें।

(ख) माता लक्ष्मी जी की प्रतिमा या चित्र को ताम्बे की बड़ी थाली में स्थापित कर पूजना चाहिए, देवी को धूप दीप, नवैद्य,पंचामृत व दक्षिणा अर्पित करें, उत्तर दिशा की ओर मुख रख कर मंत्र का जाप करें, 9 माला मंत्र जाप 21 दिन करना चाहिए, लाल रंग के आसन पर बैठ कर ही जाप करें, खीर का प्रसाद चढ़ाएं व बाँटें, देवी को नारियल व पुष्प माला अर्पित करें
मंत्र-

ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं श्रीं कमलवासिन्यै स्वाहा:।

(ग) चांदी की एक छोटी सी ढक्कन वाली डिबिया लें। इसमें नागकेसर व शहद भरकर शुक्ल पक्ष के शुक्रवार की रात को या अन्य किसी शुभ मुहूर्त में अपने गल्ले या तिजोरी में रख दें। आपकी धन में अचानक वृद्धि होने लगेगी। - नागकेसर के फूल लेकर शुक्रवार के दिन पूजन के बाद एक कपड़े में लपेटकर अपनी दुकान के गल्ले या अपने ऑफिस के केश बॉक्स में रखें तो धन की आवक कभी कम नहीं होगी। 

(घ) यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार
ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः
का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है।

( ङ) अक्षय तृतीया पर एक लाल कपड़े में मोती शंख , गोमती चक्र, लघु नारियल, पीली कौड़ी और चाँदी के सिक्के का माँ लक्ष्मी के सामने पूजन कर 21 पाठ  श्री सूक्त का करे और पोटली बना कर मन्दिर में स्थापित कर दें। पोटली खोले बिना नित्य ऊपर से ही धूप दीप करें। थोड़े ही दिनों में आर्थिक समस्या समाप्त होने लगेगी।

(3) सियार सिंगी से आकस्मिक धन प्राप्ति

यदि आपके पास सियार सिंगी है और आपको कुछ प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिल रहा तो अक्षय तीज की शाम माँ महालक्ष्मी का यथासम्भव पूजन कर चाँदी की प्लेट या सिक्के पर या फिर भोज पत्र पर केसर की स्याही और चमेली की कलम से निम्न यंत्र का निर्माण करें 

____________
l६६ l ७७ l३३ ।
l४४ l६६  l४४ ।
l७७ l ४४ l७७ ।
------------

धूप दीप गंगाजल शहद फल फूल अक्षत चढ़ा कर देवी के यन्त्र को प्रतिष्ठित करें,

ॐ श्रीं श्रियै नमः ।झटिति लक्ष्मी देहि देहि स्वाहा।

मन्त्र का कम से कम 5 माला जप करें।
फिर सियार सिंगी के करीब 1/2 से 1 इंच बाल काट कर इस यंत्र पर रखें। इस पर सिंदूर और 11 अक्षत चढ़ाएं। इस भोजपत्र को मोड़कर एक पुड़िया बना लें और सामर्थ्यनुसार 50,100 या 500 के नोट में रख कर उसकी भी पुड़िया बना लें।
इसे आप अपने पर्स तिजोरी गल्ले आदि में रखें और रोज ऊपर से ही धुप दें।
ये प्रयोग निश्चित रूप से आकस्मिक धन लाभ करवाता है।

(4) आरोग्य और संतान हेतु

आरोग्य और सन्तान प्राप्ति हेतु भग७वान शिव का रुद्राभिषेक करवाएं। यदि सम्भव न हो तो रोगी के परिवार जन शिव सहस्त्रनाम का पाठ करें और रोगी स्वयं जलाभिषेक करे। निसन्तान दम्पति में पति साउच्चारण सहस्त्रनाम पाठ करे और पत्नी लिंग पर अटूट जलाभिषेक करे।

(5) अभिनय कला संगीत में सफलता हेतु

मातंगी माता का मंत्र स्फटिक की माला से बारह माला करना चाहिए

‘ऊँ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:’

(6) पारिवारिक सुख शांति उन्नति हेतु

माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करके घर- परिवार में वैभव की प्रतिष्ठा की जा सकती है। प्रातः काल, स्नानादि व तुलसी सेवन करके

'हरिजागरणं प्रातः स्नानं तुलसीसेवनम्। 
उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके॥'

इस मंत्र के साथ दीपदान करें| इसी मंत्र के द्वारा सत्यभामा ने अक्षय सुख, सौभाग्य और संपदा के साथ सर्वेश्वर को सुलभ किया था।

(7) हनुमान जी को करें प्रसन्न

मंगलवार को अक्षय तीज पड़ने से हनुमान जी के भक्तों के लिए भी ये एक विशिष्ट मौका है।
इस दिन हनुमान जी की प्रसन्नता के लिए उनके मन्दिर जाकर उनके सम्मुख आटे का 5 बत्ती का लौंग युक्त घी या तिल के तेल का दीपक जलाएं। गुलाब या आक के फूल अर्पित करें। गुग्गुल की धूप जलाकर
सुन्दरकाण्ड
हनुमान चालीसा या बजरँग बाण के 108 पाठ करें।

(7) अबूझ मुहूर्त और अक्षय फलदायी होने के कारण विभिन तंत्रोक्त वस्तुओं के जागरण, पैन प्रतिष्ठा और स्थापना के लिए भी ये स्वर्णिम अवसर है।

(8) रुद्राक्ष और रुद्राक्ष माला, इन्द्राक्षी माला की प्राण प्रतिष्ठा और धारण करना भी महाफलदायि है।

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Thursday 7 April 2022

किन मन्त्रों से हवन नहीं करना चाहिए



नवरात्रि विशेष: किन मन्त्रों से हवन नहीं करना चाहिए
(संकलन पोस्ट)

मित्रों, 
शक्ति साधना का महापर्व नवरात्रि अब अपने पारण की ओर है, कुल परम्परा अनुसार लोग सप्तमी से दशमी तक  पूजन कर नवरात्रि व्रत का पारण करते हैं।

इसमें कुछ लोग दैनिक और अधिकतर लोग अंतिम दिन सप्तशती के पाठ के पश्चात सप्तशती के मंत्रों का हवन करते हैं।

जिन्हें अपने गुरु के माध्यम से अथवा कुल परम्परा के माध्यम से सही जानकारी है वे तो सही करते हैं।

किंतु अधिकतर लोग जिन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं है और जिन्होंने सप्तशती का पाठ और हवन फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया से जानकारी मिलने के बाद या इसपर मौजूद किसी जानकार व्यक्ति की बात को पूरा न समझ कर किया है वो अक्सर हवन में गलती कर जाते हैं।

इस पोस्ट के माध्यम से आपको इसके विषय मे सही जानकारी प्राप्त होगी आप इसे भविष्य के लिए सेव कर के रख सकते हैं।

सप्तशती का प्रत्येक भाग बेहद शक्तिशाली है किंतु मूल पाठ के अतिरिक्त जिस स्तोत्र का सबसे अधिक महत्व है वो है सिद्धकुंजिका स्तोत्र। इसकी सिद्धि के भी अत्यधिक विधान सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। जो कि वास्तव में अधकचरे ही हैं।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का होम न करने की आज्ञा स्वयं महादेव नें दी है

इसका प्रथम कारण है की ,
कुंजिका देवी सिद्धियों की एकमात्र कुंजी है ।
ओर कुंजी का रक्षण किया जाता है आहूत नहीं किया जा सकता ।

यदि यदि कुंजी का ही लोप हो जाएगा तो सिद्धी के द्वार का खुलना असम्भव हो जाएगा ।

दूसरा का कारण यह की 
सप्तशती में आता की याचना स्तोत्र , कवच एवं कवच मन्त्रों की आहुति नहीं की जाती अन्यथा विनाश ही होता है ।

कवचं वार्गलाचैव , कीलकोकुंजिकास्तथा ।
स्वप्नेकुर्वन्नहोमं च , जुहुयात्सर्वत्रनष्ट्यते: ।।

भगवान शिव भैरव स्वरूप में स्थित होकर कहते हैं ! 
कवच , अर्गला , कीलक , तथा कुंजिका का होम स्वप्न में भी न करें स्वप्न मात्र में भी होम करने से सर्वत्र नाश की संभावनाएँ प्रकट हो जाती है ।

बुद्धिनाषोहुजेत् देवि, अर्गलाऽनर्गलोभवेत् ।
सिद्धीर्नाषगत:होता, विद्यां च विस्मृतोर्भभवेत् ।।

अर्गला के होमकर्म से सिद्धीयों का नाश हो जाता है । तथा होता की समस्त विद्याएँ विस्मृत हो जाती है , अर्गला अनर्गल सिद्ध हो जाती है ।

कीलितोजायतेमन्त्र: ,होमे वा कीलकस्तथा ।
ममकण्ठसमंयस्य: ,कीलकोत्कीलकं हि च ।।

कीलक के होमकर्म से होता के समस्त मन्त्र सदा सर्वदा के लिए कीलित हो जाते हैं ।
इसे मेरा उत्किलित कण्ठ ही जानें जो जो कीलक का कारक है ।

धनधान्ययुतंभद्रे , पुत्र:प्राण:विनष्यते: ।
रोगशोकोर्व्रिते:कृत्वा, कवचंहोमकर्मण: ।।

कवच के होम से धन,धान्य, पुत्र तथा प्राण का विनाश निश्चित है । एवं वह होता रोग तथा शोकों से घिर जाता है ।

स्वप्ने वा हुज्यते देवि , कुंजिकायं च कुंजिकां ।
षड्मासे च भवेन्मृत्यु , सत्यं सत्यं न संशय: ।
होमे च कुंजिकायास्तु , सकुटुम्बंविनाश्यती: ।

कुंजिका के होमकर्म के प्रभाव से होता की छः मास में मृत्यु निश्चित जानें । तथा होता का सकूटुंब विनाश हो जाता है यह सत्य हे सत्य हे इसमें कोई संशय नहीं करना चाहिए ।

यस्यं च दोषमात्रेण , प्रसन्नार्मृत्युदेवता: ।
कुंजिकाहोममात्रेण , रावण:प्रलयंगत: ।।

ईसी के दोष से मृत्युदेवता अत्यंत प्रसन्न होकर होता का सकूटुंब भक्षण करते हैं ।
कुंजिका के होममात्र के प्रभाव से ही रावण का सम्पूर्ण विनाश सम्भव हुआ ।

*भैरवयामले भैरवभैरवी संवादे ।।*
*चतुर्विंश प्रभागे होमप्रकरणे ।।*

मातृका:बीजसंयुक्ता: , प्राणाप्राणविबोधिनी ।
प्राणदा:कुंजिका:मायां , सर्वप्राण:प्रभाविनी ।।

कुंजिका में बीज मातृकाएँ उपस्थित हैं ।
प्राण को देविप्राण का बोधप्रदान करती हैं ।
यह प्राणज्ञान प्रदान करने वाली महामाया कुंजिका प्राण को प्रभावित करने वाली हैं ।

# इसके अतिरिक्त एक अन्य विशेष बात है कि जिन मन्त्रों के हवन को ऊपर निषेध बताया गया है उनका भी हवन होता है लेकिन सिर्फ विशेष परिस्थिति में ।
किसी विशेष और असाध्य कार्यसिद्धि के हेतु उसका तरीका विधि विधान अलग है।

इन मंत्रों का हवन अनुष्ठान कब और कैसे करना है ये आपको कोई विशेषज्ञ ही बताएगा , कारण समझ कर, अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर।

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Tuesday 5 April 2022

मिर्गी की आयुर्वेदिक कारगर दवा

माता वाराही की कृपा से अब मिर्गी नाशक कवच के साथ


मिर्गी एवं दौरे के लिए आयुर्वेदिक दवा उपलब्ध है


जिनके दौरे एलोपैथी से भी बंद नहीं हो रहे वो भी साथ साथ ले सकते हैं


मिर्गी और दौरे अलग अलग लिखा है क्योंकि दोनो अलग हैं

सब दौरे मिर्गी नहीं होते 


ये दवा दोनों में कारगर है


8 साल से अधिक उम्र के लिए


सिर्फ 5  माह का कोर्स


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