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Friday 3 April 2015

Hanuman jayanti हनुमान जयंती विशेष


अंजनीसुत महावीर श्रीराम भक्त हनुमान ऐसे भारतीय पौराणिक चरित्र हैं जिनके व्यक्तित्व के सम्मुख युक्ति, भक्ति, साहस एवं बल स्वयं ही बौने नजर आते हैं। संपूर्ण रामायण महाकाव्य के वह केंद्रीय पात्र हैं। श्री राम के प्रत्येक कष्ट को दूर करने में उनकी प्रमुख भूमिका है।

भक्त शिरोमणि हुनमान का नाम लेने से ही सारे संकट दूर हो जाते हैं। उनकी जन्म कथा कई रहस्यों से भरी है। भूख लगी तो सूर्य को निगलने दौड़ पड़े, संजीवनी बूटी न मिली तो पर्वत ही पूरा उखाड़ लिया, आइए जानें, ऐसे तेजस्वी और बलशाली हनुमान का जन्म किस प्रकार हुआ ...

श्री हनुमानजी के अवतरण की पुराणों मे कई कथाएं मिलती हैं, परंतु सर्वमान्यता है कि ये भगवान शिवजी के 11वें रुद्रावतार हैं। 
‘वायु पुराण’ में बताया गया है: 

‘‘अंजनीगर्भ सम्भूतो हनुमान पवनात्मजः। यदा जातो महादेवो हनुमान सत्य विक्रमः।।’’
‘स्कंदपुराण में हनुमानजी को साक्षात् शिव जी का अवतार माना गया है: 

‘‘यो वै चैकादशो रुद्रो हनुमान सः महाकविः। अवतीर्णः सहायतार्थ विष्णोरमित तेजसः।।’’
गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी दोहावली में कहा है:

‘‘जेंहि शरीर रति राम सौं सोई आदरहि सुजान। रुद्रदेह तजि नेहबस बानर भे हनुमान।।"

वायु पुराण के अनुसार त्रेतायुग में रामावतार के पूर्व एक बार समाधि टूटने पर शिवजी को अति प्रसन्न देखकर माता पार्वती ने कारण जानने की जिज्ञासा प्रकट की। शिवजी ने बताया कि उनके इष्ट श्रीराम, रावण संहार के लिए पृथ्वी पर अवतार लेने वाले हैं। अपने इष्ट की सशरीर सेवा करने का उनके लिए यह श्रेष्ठ अवसर है। 

पार्वती जी दुविधा में बोलीं- ‘‘स्वामी इससे तो मेरा आपसे बिछोह हो जाएगा। दूसरे, रावण आपका परम भक्त है। उसके विनाश में आप कैसे सहायक हो सकते हैं?’’

पार्वतीजी की शंका का समाधान करते हुए शिवजी ने कहा कि ‘निस्संदेह रावण मेरा परम भक्त है, परंतु वह आचरणहीन हो गया है। उसने अपने दस सिर काट कर मेरे दस रूपों की सेवा की है। परंतु मेरा एकादश रूप अपूजित है। अतः मैं दस रूपों में तुम्हारे पास रहूंगा और एकादश रुद्र के अंशावतार रूप में अंजना के गर्भ से जन्म लेकर अपने इष्ट श्री राम द्वारा रावण के विनाश में सहायक बनूंगा।’
हनुमान जी की माता अंजना देवराज इंद्र की सभा में पुंचिकस्थला नाम की अप्सरा थी जिसको ऋषि श्राप के कारण पृथ्वी पर वानरी बनना पड़ा। बहुत अनुनय विनय करने पर ऋषि ने शापानुग्रह करते हुए उसे रूप बदलने की छूट दी, कि वह जब चाहे वानर और जब चाहे मनुष्य रूप धारण कर सकती है। पृथ्वी पर वह वानर राजकेसरी की पत्नी बनी। दोनों में बड़ा प्रेम था। अपने संकल्प के अनुसार शिवजी ने पवनदेव को याद किया तथा उनसे अपना दिव्य पुंज अंजना के गर्भ में स्थापित करने को कहा। एक दिन जब केसरी और अंजना मनुष्य रूप में उद्यान में विचरण कर रहे थे उस समय एक तेज हवा के झोंके ने उसका आंचल सिर से हटा दिया और उसे लगा कि कोई उसका स्पर्श कर रहा है। उसी समय पवनदेव ने शिवजी के दिव्य पुंज को कान द्वारा अंजना के गर्भ में स्थापित करते हुए कहा, ‘देवी! मैंने तुम्हारा पतिव्रत भंग नहीं किया है। तुम्हें एक ऐसा पुत्र रत्न प्राप्त होगा जो बल और बुद्धि में विलक्षण होगा, तथा कोई उसकी समानता नहीं कर सकेगा। मैं उसकी रक्षा करूंगा और वह भी राम का परम प्रिय बनेगा।’

अपना कार्य संपूर्ण कर पवनदेव जब शिवजी के सामने उपस्थित हुए तब उन्होंने प्रसन्न होकर उनसे वर मांगने को कहा। पवनदेव ने स्वयं को अंजना के पुत्र का पिता कहलाने का सौभाग्य मांगा और शिवजी ने तथास्तु कह दिया।
इस प्रकार हनुमानजी 

‘शंकर सुवन केसरी नंदन’ तथा 
‘अंजनी पुत्र पवनसुत नामा’ कहलाए।

चैत्र शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार को रामनवमी के तुरंत बाद अंजना के गर्भ से भगवान शिव वानर रूप में अवतरित हुए।

शिवजी का अंश होने के कारण वानर बालक अति तेजस्वी था और उसे पवनदेव ने उड़ने की शक्ति प्रदान की थी। अतः वह शीघ्र ही अपने माता-पिता को अपनी अद्भुत लीलाओं से आश्चर्यचकित करने लगा। एक दिन माता अंजना बालक को अकेला छोड़कर फल-फूल लाने गई। पिता केसरी भी घर पर नहीं थे। भूख लगने पर बालक ने ईधर-ऊधर खाने की वस्तु ढूंढ़ी। अंत में उसकी दृष्टि प्रातः काल के लाल सूर्य पर पड़ी और वह उसे एक स्वादिष्ट फल समझकर खाने के लिये आकाश में उड़ने लगा। देवता, दानव, यक्ष सभी उसे देखकर विस्मित हुए। पवनदेव भी अपने पुत्र के पीछे-पीछे चलने लगे और हिमालय की शीतल वायु छोड़ते रहे। सूर्य ने देखा कि स्वयं भगवान शिव वानर बालक के रूप में आ रहे हैं तो उन्होंने भी अपनी किरणं शीतल कर दीं। बालक सूर्य के रथ पर पहुंच गया और उनके साथ खेलने लगा। उस दिन ग्रहण लगना था। राहु भी सूर्य को ग्रसने के लिये आया। वानर बालक को रथ पर देखकर उसे आश्चर्य हुआ परंतु उसकी परवाह नहीं की। सूर्य को ग्रसित करने का प्रयास करने पर बालक ने राहु को पकड़ लिया। तब उसने किसी प्रकार अपने को छुड़ा कर सीधे इंद्र से शिकायत की क्या आपने सूर्य को ग्रसने का अधिकार किसी और को दे दिया है?’ इंद्र ने राहु को फटकार कर पुनः सूर्य के पास भेज दिया। दोबारा राहु को देखकर वानर बालक को अपनी भूख याद आ गई और वह राहु पर टूट पड़ा । इंद्र को आता देख बालक राहु को छोड़कर, इंद्र को पकड़ने दौड़ा। इंद्र ने घबरा कर अपने वज्र से प्रहार किया जिससे बालक की बायीं हनु (ठुड्ढी) टूट गई और वह घायल होकर पहाड़ पर गिर पड़ा।

पवनदेव बालक को उठाकर गुफा में ले गए। उन्हें इंद्र पर बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी गति बंद कर दी। सबकी सांस घुटने लगी। देवता भी घबराए और इंद्र ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्माजी ने वृत्तांत सुनकर गुफा को प्रस्थान किया और बालक पर अपना हाथ फेर कर उसे स्वस्थ कर दिया। पवनदेव प्रसन्न हुए और उन्होंने पुनः जगत में वायु संचार कर दिया। ब्रह्माजी ने देवताओं को बताया कि यह बालक साधारण नहीं है। वह देवताओं का कार्य करने के लिये ही प्रकट हुआ है। इसलिये वे सब उसे वरदान दें। इंद्र ने कहा - ‘मेरे वज्र के द्वारा उसकी हनु टूट गई है। इसलिये इसको हनुमान कहा जाएगा और कभी भी मेरा वज्र उस पर असर नहीं करेगा।’ सूर्य ने कहा कि ‘मैं अपना शतांश तेज इसे देता हूं। मेरी शक्ति से यह अपना रूप बदल सकेगा। और मैं इसे संपूर्ण शास्त्रों का अध्ययन करा दूंगा।’ 
वरुण ने उसे अपने पाश से और जल से निर्भय होने का वर दिया। कुबेर ने भी हनुमान को वर दिया तथा विश्वकर्मा ने उन्हें अपने दिव्यास्त्रों से अवध्य होने का वर दिया। ब्रह्माजी ने ब्रह्मज्ञान दिया और चिरायु करने के साथ ही ब्रह्मास्त्र और ब्रह्मपाश से भी मुक्त कर दिया। चलते समय ब्रह्माजी ने वायुदेव से कहा -‘तुम्हारा पुत्र बड़ा ही वीर, ईच्छानुसार रूप धारण करने वाला और मन के समान तीव्रगामी होगा। उसकी कीर्ति अमर होगी और राम-रावण युद्ध में यह राम का परम सहायक होगा। इस प्रकार सारे देवताओं ने हनुमान को अतुलित बलशाली बना दिया।

बचपन में हनुमान बड़े ही नटखट थे। एक तो वानर, दूसरे बच्चे और तीसरे देवताओं से प्राप्त बल। रुद्र के अन्श तो वे थे ही। प्रायः वे ऋषियों के आसन उठाकर पेड़ पर टांग देते, उनके कमंडल का जल गिरा देते, उनके वस्त्र फाड़ डालते, कभी उनकी गोद में बैठकर खेलते और एकाएक उनकी दाढ़ी नोचकर भाग खड़े होते। उन्हें कोई रोक नहीं सकता था। अंजना और केसरी ने कई उपाय किए परंतु हनुमान राह पर नहीं आए। अंत में ऋषियों ने विचार करके यह निश्चय किया कि हनुमान को अपने बल का घमंड है अतः उन्हें अपने बल भूलने का शाप दिया जाए और जब तक कोई उन्हें उनके बल का स्मरण नहीं कराएगा वह भूले रहेंगे। 

केसरी ने हनुमान को सूर्य के पास विद्याध्ययन के लिये भेजा और वह शीघ्र ही सर्वविद्या पारंगत होकर लौटे। सीताहरण के बाद हनुमान ने श्री राम और सुग्रीव की मित्रता कराई।

सीता का पता लगाने के समय जाम्बवन्त के याद दिलाने पर उन्हें अपनी अपार शक्ति की पुनः याद आ गई । मानस में तुलसीदास जी ने जाम्बवंत जी द्वारा हनुमान जी को उनकी अतुलित शक्ति यद् दिलाने का वर्णन   किष्किन्धा कांड में कुछ इस प्रकार किया है :
चौपाई :
* अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा॥
जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सबही कर नायक॥1॥

भावार्थ:-अंगद ने कहा- मैं पार तो चला जाऊँगा, परंतु लौटते समय के लिए हृदय में कुछ संदेह है। जाम्बवान्‌ ने कहा- तुम सब प्रकार से योग्य हो, परंतु तुम सबके नेता हो, तुम्हे कैसे भेजा जाए?॥1॥

* कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥2॥

भावार्थ:-ऋक्षराज जाम्बवान्‌ ने श्री हनुमानजी से कहा- हे हनुमान्‌! हे बलवान्‌! सुनो, तुमने यह क्या चुप साध रखी है? तुम पवन के पुत्र हो और बल में पवन के समान हो। तुम बुद्धि-विवेक और विज्ञान की खान हो॥2॥

* कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्बताकारा॥3॥

भावार्थ:-जगत्‌ में कौन सा ऐसा कठिन काम है जो हे तात! तुमसे न हो सके। श्री रामजी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान्‌जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए॥3॥

* कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहुँ अपर गिरिन्ह कर राजा॥
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहिं नाघउँ जलनिधि खारा॥4॥

भावार्थ:-उनका सोने का सा रंग है, शरीर पर तेज सुशोभित है, मानो दूसरा पर्वतों का राजा सुमेरु हो। हनुमान्‌जी ने बार-बार सिंहनाद करके कहा- मैं इस खारे समुद्र को खेल में ही लाँघ सकता हूँ॥4॥

* सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी॥
जामवंत मैं पूँछउँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही॥5॥

भावार्थ:- और सहायकों सहित रावण को मारकर त्रिकूट पर्वत को उखाड़कर यहाँ ला सकता हूँ। हे जाम्बवान्‌! मैं तुमसे पूछता हूँ, तुम मुझे उचित सीख देना (कि मुझे क्या करना चाहिए)॥5॥

* एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई॥
तब निज भुज बल राजिवनैना। कौतुक लागि संग कपि सेना॥6॥

भावार्थ:-(जाम्बवान्‌ ने कहा-) हे तात! तुम जाकर इतना ही करो कि सीताजी को देखकर लौट आओ और उनकी खबर कह दो। फिर कमलनयन श्री रामजी अपने बाहुबल से (ही राक्षसों का संहार कर सीताजी को ले आएँगे, केवल) खेल के लिए ही वे वानरों की सेना साथ लेंगे॥6॥

और उन्होंने समुद्र को लांघ कर अशोक वाटिका में सीता जी का पता लगाया तथा लंका दहन किया। उनका बल पौरुष देखकर सीताजी को बड़ा संतोष हुआ और उन्होंने हनुमानजी को अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के स्वामी होने का वरदान दिया।
इस प्रकार हनुमान जी सर्वशक्तिमान देवता बने और श्री राम की सेवा में रत रहे।
हनुमान जी अपने भक्तों के संकट क्षण में हर लेते हैं। (संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।) वह शिवजी के समान अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और उन्हीं की भांति अपने उपासकों को भूत-पिशाच के भय से मुक्त रखते हैं। चाहे कैसे भी दुर्गम कार्य हैं उनकी कृपा से सुगम हो जाते हैं।

उनकी उपासना से सारे रोगों और सभी प्रकार के कष्टों का निवारण हो जाता है।

भक्त अपनी श्रद्धा अनुसार हनुमान जी के विविध रूपों में उनकी आराधना करते हैं
बालाजी रूप मे
संकट मोचन रूप में
महावीर रूप में 
रामभक्त रूप में
वृद्ध हनुमान रूप में
शनि त्रासक काले रूप में
कृष्ण प्यारे श्यामल रूप में
कहीं ह्रदय में सियाराम के दर्शन कराते 
कहीं पञ्च मुखी तो कहीं
एकादश मुखी

इसके अतिरिक्त भी देश में हनुमान जी के सैकड़ों स्वरुप पूजनीय हैं जिनका वर्णन  असंभव है।

हनुमान जयंती और चन्द्र ग्रहण की युति के मुहूर्त में करें ये उपाय :-
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धर्म ग्रंथों के अनुसार चैत्र मास की पूर्णिमा को हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 4 अप्रैल, शनिवार को है। शनिवार को हनुमान जयंती का शुभ योग बनने से इस दिन किए जाने वाले उपायों से न सिर्फ हनुमान प्रसन्न होंगे बल्कि शनिदेव का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा। इस दिन हनुमानजी तथा शनिदेव दोनों से संबंधित उपाय किए जा सकते हैं। दोनों के ही उपायों से शुभ फल प्राप्त होंगे।

चूंकि इस दिन चंद्रग्रहण भी है, इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखें कि ये उपाय ग्रहण के दौरान न करें। ग्रहण का समय दोपहर 03.31 से आरंभ होकर शाम को 07.07 बजे तक रहेगा। ग्रहण के पहले व बाद में ये उपाय किए जा सकते हैं। ये उपाय इस प्रकार हैं-

 हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचारी व महायोगी भी हैं। इसलिए सबसे जरूरी है कि उनकी किसी भी तरह की उपासना में वस्त्र से लेकर विचारों तक पावनता, ब्रह्मचर्य व इंद्रिय संयम को अपनाएं।

1. हनुमान जयंती पर हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढाएं। हनुमानजी को चोला चढ़ाने से पहले स्वयं स्नान कर शुद्ध हो जाएं और साफ वस्त्र धारण करें। सिर्फ लाल रंग की धोती पहने तो और भी अच्छा रहेगा। पूर्णिमा तिथि या शनिवार को हनुमानजी को तिल या चमेली का तेल मिले सिंदूर से चोला चढ़ाने से सारी भय, बाधा और मुसीबतों का अंत हो जाता है। चोला चढ़ाते वक्त इस मंत्र का स्मरण करें -

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यसुखवर्द्धनम्। शुभदं चैव
माङ्गल्यं सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।।

चोला चढ़ाने के लिए चमेली के तेल का उपयोग करें। साथ ही, चोला चढ़ाते समय एक दीपक हनुमानजी के सामने जला कर रख दें। दीपक में भी चमेली के तेल का ही उपयोग करें ।

चोला चढ़ाने के बाद हनुमानजी को गुलाब के फूल की माला पहनाएं और केवड़े का इत्र हनुमानजी की मूर्ति के दोनों कंधों पर थोड़ा-थोड़ा छिटक दें। अब एक साबूत पान का पत्ता लें और इसके ऊपर थोड़ा गुड़ व चना रख कर हनुमानजी को इसका भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद उसी स्थान पर थोड़ी देर बैठकर तुलसी की माला से नीचे लिखे मंत्र का जाप करें। कम से कम 5 माला जाप अवश्य करें।

मंत्र- राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने।।

अब हनुमानजी को चढाए गए गुलाब के फूल की माला से एक फूल तोड़ कर उसे एक लाल कपड़े में लपेटकर अपने धन स्थान यानी तिजोरी में रखें। आपको कभी धन की कमी नहीं होगी।

2. हनुमान जयंती को शाम के समय समीप स्थित किसी ऐसे मंदिर जाएं, जहां भगवान श्रीराम व हनुमानजी दोनों की ही प्रतिमा हो। वहां जाकर श्रीराम व हनुमानजी की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी के दीपक जलाएं। इसके बाद वहीं भगवान श्रीराम की प्रतिमा के सामने बैठकर हनुमान चालीसा तथा हनुमान प्रतिमा के सामने बैठकर राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। इस उपाय से भगवान श्रीराम व हनुमानजी दोनों की ही कृपा आपको प्राप्त होगी।

3 हनुमानजी को प्रसन्न करने का यह बहुत प्राचीन टोटका है।

हनुमान जयंती पर सुबह स्नान आदि करने के बाद बड़ के पेड़ से 11 या 21 पत्ते तोड़ लें। ध्यान रखें कि ये पत्ते पूरी तरह से साफ व साबूत हों। अब इन्हें स्वच्छ पानी से धो लें और इनके ऊपर चंदन से भगवान श्रीराम का नाम लिखें। अब इन पत्तों की एक माला बनाएं। माला बनाने के लिए पूजा में उपयोग किए जाने वाले रंगीन धागे का इस्तेमाल करें। अब समीप स्थित किसी हनुमान मंदिर जाएं और हनुमान प्रतिमा को यह माला पहना दें। 
  ऐसे ही श्री राम लिखे एक पत्ते को अपने पर्स में रख लें। साल भर आपका पर्स पैसों से भरा रहेगा। इसके बाद जब दोबारा हनुमान जयंती का पर्व आए तो इस पत्ते को किसी नदी में प्रवाहित कर दें और इसी प्रकार से एक और पत्ता अभिमंत्रित कर अपने पर्स में रख लें।

४ . अगर आप शनि या राहु के  दोष से पीड़ित हैं तो हनुमान जयंती पर काली उड़द व कोयले की एक पोटली बनाएं। इसमें एक रुपए का सिक्का रखें। इसके बाद इस पोटली को अपने ऊपर से उसार कर किसी नदी में प्रवाहित कर दें और फिर किसी हनुमान मंदिर में जाकर राम नाम का जाप करें इससे शनि दोष का प्रभाव कम हो जाएगा।
हनुमानजी शिव के अवतार हैं और शनिदेव परम शिव भक्त और सेवक हैं। इसलिए शरद पूर्णिमा पर शनि दशा या अन्य ग्रहदोष से आ रही कई परेशानियों और बाधाओं से फौरन निजात पाने के लिए श्रीहनुमान चालीसा, बजरंगबाण, हनुमान अष्टक का पाठ करें। श्रीहनुमान की गुण, शक्तियों की महिमा से भरे मंगलकारी सुन्दरकाण्ड का परिजनों या इष्टमित्रों के साथ शिवालय में पाठ करें। यह भी संभव न हो तो शिव मंदिर में हनुमान मंत्र ‘हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्’ का रुद्राक्ष माला से जप करें या फिर सिंदूर चढ़े दक्षिणामुखी या पंचमुखी हनुमान के दर्शन कर चरणों में नारियल चढ़ाकर उनके चरणों का सिंदूर मस्तक पर लगाएं। इससे ग्रहपीड़ा या शनिपीड़ा का अंत होता है।

निम्न स्तुति का फल भी अपरम्पार है। चाहे रोग हो अथवा राहू केतु शनि मंगल आदि ग्रह जनित दोष कष्ट इसके पाठ से सब शांत हो जाते हैं। 

यदि निम्न स्तुति की हर पंक्ति के अंत में नमामि लगा कर पाठ करें तो यह हनुमानाष्टक के समान फल प्रदान करती है।
अतुलित बलधामं स्वर्ण शैलाभ देहं ।
दनुज वन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् ।।
सकल गुण निधानं वानराणामधीशं। 
रघुपति प्रिय भक्तं वातजात नमामि।।


5 . शास्त्रों में हनुमानजी की भक्ति तंत्र मार्ग व सात्विक मार्ग दोनों ही तरह से बताई गई है। इसके लिए मंत्र जप भी प्रभावी माने गए हैं।   सात्विक तरीकों से कामनापूर्ति के लिए मंत्र जप रुद्राक्ष माला से और तंत्र मार्ग से लक्ष्य
पूरा करने के लिए मूंगे की माला से मंत्र जप बड़े ही असरदार होते हैं. 

6. मनचाही मुराद पूरी करने के लिए सिंदूर लगे एक नारियल पर मौली या कलेवा लपेटकर हनुमानजी के चरणों में अर्पित करें।

7. हनुमानजी को नैवेद्य चढ़ाने के लिए भी शास्त्रों में अलग- अलग वक्त पर विशेष नियम उजागर हैं। इनके मुताबिक सवेरे हनुमानजी को नारियल का गोला या गुड़ या गुड़ से बने लड्डू का भोग लगाना चाहिए। इसी तरह दोपहर में हनुमान की पूजा में घी और गुड़ या फिर गेहूं की मोटी रोटी बनाकर उसमें ये दोनों चीजें मिलाकर बनाया चूरमा अर्पित करना चाहिए। वहीं, शाम या रात के वक्त हनुमानजी को विशेष तौर पर फल का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। हनुमानजी को जामफल, केले, अनार या आम के फल बहुत प्रिय बताए गए हैं। इस तरह हनुमानजी को मीठे फल व नैवेद्य अर्पित करने वाले की दु:ख व असफलताओं की कड़वाहट दूर होती है और वह सुख व सफलता का स्वाद चखता है।


8 . शाम के वक्त हनुमानजी को लाल फूलों के साथ जनेऊ, सुपारी अर्पित करें और उनके सामने चमेली के तेल का पांच बत्तियों का दीपक नीचे लिखे मंत्र के साथ लगाएं

 - साज्यं च वर्तिसं युक्त वह्निनां योजितं मया।
 दीपं गृहाण देवेश प्रसीद परमेश्वर। 
यह उपाय किसी भी विघ्र-बाधा को फौरन दूर करने वाला माना जाता है




9 . पूर्णिमा पर पूर्ण कलाओं के साथ उदय होने वाले चंद्रमा की रोशनी नई उमंग, उत्साह, ऊर्जा व आशाओं के साथ असफलताओं व निराशा के अंधेरों से निकल नए लक्ष्यों और सफलता की ओर बढऩे की प्रेरणा देती है।
लक्ष्यों को भेदने के लिये इस दिन अगर शास्त्रों में बताए श्रीहनुमान चरित्र के अलग-अलग 12 स्वरूपों का ध्यान एक खास मंत्र स्तुति से किया जाए तो आने वाला वक्त बहुत ही शुभ व मंगलकारी साबित हो सकता है। इसे हर रोज भी सुबह या रात को सोने से पहले स्मरण करना न चूकें –

हनुमानञ्जनी सूनुर्वायुपुत्रो महाबल:। 
रामेष्ट: फाल्गुनसख:पिङ्गाक्षोमितविक्रम:।। 
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:। 
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
 एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।। 
तस्य सर्वभयंनास्ति रणे च विजयी भवेत्।। 

इस खास मंत्र स्तुति में श्री हनुमान के 12 नाम उनके गुण व शक्तियों को भी उजागर करते
हैं ।



(2) जीवन के हर क्षेत्र में हनुमान जी की कृपा प्राप्ति के लिए निम्न श्लोकों का पाठ करना चाहिए।

जयत्यतिबलो रामो लक्ष्मणश्च महाबलः। 
राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालितः।। 
दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्ट कर्मणः। 
हनूमान शत्रुसैन्यानां निहन्ता मारुतात्मजः।। 
न रावणसहस्रं मे युद्धे प्रतिबलं भवेत्। 
शिलाभिश्च प्रहरतः पादपैश्च सहस्रशः।। 
अर्दयित्वा पुरीं लंकामभिवाद्य च मैथिलीम्। 
समृद्धार्थो गमिष्यामि मिषतां सर्वरक्षसाम्।। (वा.रा. 5/42/33-36)

(3) हनुमान बाहुक के पाठ से सभी रोग एवं पीड़ाएं दूर हो जाती हैं। एक बार जब तुलसी दास जी स्वयं गंभीर रोग से पीड़ित हुए और कोई दवा वैद्य पूजा उनके कम न आई तो उन्होंने उसी असहय पीड़ा में हनुमान बाहुक नामक स्तोत्र की रचना की और स्तवन किया। हनुमान जी की कृपा से वे शीघ्र ही स्वस्थ हो गए।

हनुमान जी की भक्ति स्त्री, पुरुष, बालक, वृद्ध सभी समान रूप से कर सकते हैं। भक्त की भक्तवत्सलता, श्रद्धा भाव, संबंध, समर्पण ही श्री हनुमान जी की कृपा का मूल का मंत्र है। 

ॐ हं हनुमते रुद्रत्मकाये हुम् फट।


(7) आय  / व्यापर वृद्धि के लिए

एक नींबू, पांच साबुत सुपारियां, एक हल्दी की गांठ, काजल की डिबिया, 16 साबुत काली मिर्च, पांच लौंग तथा रुमाल के आकार का लाल कपड़ा घर या मंदिर में एकांत में बैठ जाएं। उक्त मंत्र का 108 बार जप करके उक्त सामग्री को लाल कपड़े में बांध लें। इस पोटली को घर या दुकान के मुख्य द्वार पर लगा दें, आय में वृद्धि होगी तथा व्यापार बंधन किये कराये आदि संकटों से मुक्ति मिलेगी। इस प्रयोग से कर्मचारियों की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है और नौकरी व्यापार में स्थायित्व भी आ जाता है।


इसके अतिरिक्त हनुमान जी की प्रसन्नता और कृपा प्राप्ति के लिए हनुमान यन्त्र का भी पूजन किया जाता है।
जो लोग कमजोर मनोबल के हो, दिन रात सदैव डर लगता हो, डरावने सपने आते हों, या बार बार काम बदलते हों, कुंडली में उच्च या नीच का मंगल कष्टकारी हो उन्हें ये यन्त्र किसी योग्य ब्राह्मण से विधि पूर्वक सिद्ध करवा कर गले में ताबीज में डालकर पहनना चाहिए।

जिनके घर में सदा क्लेश हो, क़र्ज़ बढ़ गए हों, तरक्की न होती हो या संतान गलत दिशा में भटक गयी हो अथवा रोज कोई न कोई अपशकुन होता हो उन्हें ताम्बे में बना ये यन्त्र विधि पूर्वक प्रतिष्ठित करवा कर अपने घर मे स्थापित करना चाहिए व् इसका नित्य पूजन करना चाहिए।ं

।।जय श्री राम।।
ज्योतिषी अभिषेक पाण्डेय
हल्द्वानी, नैनीताल
7579400465
8909521616

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