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Wednesday, 18 September 2013

धन प्राप्ति, ऋण और दरिद्रता मुक्ति का अचूक उपाय ::-

धन प्राप्ति, ऋण और दरिद्रता मुक्ति का अचूक उपाय ::-

मित्रोँ, 
जयोतिषिओँ के पास जाने वाले अधिकाँश लोगोँ का पहला प्रश्न लगभग यही होता है कि 
"पैसा कब आयेगा? या
कमाते तो हैँ पर बचता नहीँ है क्या ऊपाय करेँ? अथवा
बहुत कर्ज मेँ डूबे हैँ कब तक पूरा चुका पाएँगे?"

आपको यहाँ धन प्राप्ति दरिद्रता नाश और ऋण मुक्ति का अचूक उपाय बता रहा हूँ जिसे आप इस श्रावण मास मेँ शुरू करेँ तो अति उत्तम होगा। यह कष्ट किसीदुष्ट ग्रह की दशा अतँर्दशा के कारण हो या अन्य से, एक बात का ध्यान रखेँ कि इनमेँ से कोई भी काम सिर्फ एक दिन के पूजा पाठ या जलाभिषेक से पूर्ण नहीँ होगा जैसा कि अक्सर टीवी वाले "विश्व विख्यात ज्योतिषगण" बता कर गुमराह करते हैँ।
ये उपाय आपको कम से कम एक वर्ष तक रोज करना होगा और तीन महीने के बाद आपको स्वयँ अपने जीवन मेँ परिवर्तन दिखने लगेगा।
किसी भी शुभ दिन से शुरू कर सकते हैँ सर्वप्रथम अपने पितृगण और गुरू को नमन करेँ, फिर भगवान गणेश , फिर माता लक्ष्मी और फिर भगवान शिव का अभिषेक और पँचोपचार पूजन करेँ, (भगवान गणेश और माता लक्ष्मी को सिँदूर और भगवान शिव को पीला चँदन लगाएँ। तीनोँ को ही कमल के पुष्प अर्पित करेँ। सँभव न हो तो लाल गुलाब अन्यथा श्री गणेश व माता लक्ष्मी को लाल गुड़हल और भगवान शिव को धतूरे, आक या सफेद कनेर के फूल अर्पित करेँ। गणेशजी को दूर्वा यानि दूब घास अवश्य अर्पित करेँ तथा भगवान शिव को बेल पत्र व बेल फल और माँ लक्ष्मी को भी बेल फल अर्पित करेँ) फिर नीचे दिये गये स्तोत्रोँ का इसी क्रम मेँ 3 बार पाठ करेँ, अँत मेँ आरती करेँ और भोग लगाएँ।

||ऋणहर्ता गणेश स्तोत्र ||

सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फलसिद्धये |सदैव पार्वती पुत्र ऋणनाशं करोतु मे ||
त्रिपुरस्य वधात् पूर्व शम्भुना सम्यगर्चितः |सदैव पार्वती पुत्र ऋणनाशं करोतु मे ||
हिरण्यकश्यपादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः |सदैव पार्वती पुत्र ऋणनाशं करोतु मे ||
महिषस्य वधे देव्या गणनाथः प्रपूजितः |सदैव पार्वती पुत्र ऋणनाशं करोतु मे ||
तारकस्य वधात् पूर्व कुमारेण प्रपूजितः |सदैव पार्वती पुत्र ऋणनाशं करोतु मे ||
भास्करेण गणेशस्तु पूजितश्छवि सिद्धये |सदैव पार्वती पुत्र ऋणनाशंकरोतु मे ||
शशिना कान्तिसिद्ध्यथें पूजितो गणनायक: |सदैव पार्वती पुत्र ऋणनाशं करोतु मे ||
पालनाय च तपसा विश्वामित्रेण पूजितः|सदैव पार्वती पुत्र ऋणनाशं करोतु मे||
इदं तु ऋणहरण स्तोत्रं तीव्रदारिद्र्य नाशनम् |एक वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं समाहितः ||
दारिद्रम् दारुण त्यक्त्वा कुबेर समतां व्रजेत | फडन्तोऽयं महामंत्र: सार्धपञ्चदशाक्षर: ||

।।दरिद्र दहन स्तोत्र।।

विश्र्वेश्र्वराय नरकार्णव तारणाय
कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय
कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय
दारिद्र्य दुःख दहनाय नमः शिवाय||

गौरिप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्ग्कणाय
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय
दारिद्र्य दुःख दहनाय नमः शिवाय||

भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनुत्यकाय
दारिद्र्य दुःख दहनाय नमःशिवाय।।

चर्मम्बराय शवभस्मविलेपनाय
भालेक्षणाय मणिकुण्डल मण्डिताय
मंझीर पादयुगलाय जटाधराय
दारिद्र्य दुःख दहनाय नमः शिवाय||

पञ्चाननाय फणिराज विभूषणाय
हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय
आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय
दारिद्र्य दुःख दहनाय नमः शिवाय||

भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
कालान्तकाय कमलासनपूजिताय
नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय
दारिद्र्य दुःख दहनाय नमः शिवाय||

रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय
दारिद्र्य दुःख दहनाय नमः शिवाय||

मुक्तेश्र्वराय फलदाय गणेश्र्वराय
गीतप्रियाय व्रुषभेश्र्वरवाहनाय
मातङ्गचर्मवसनाय महेश्र्वराय
दारिद्र्य दुःख दहनाय नमः शिवाय||

।।श्री सूक्त ।।
हरिःॐ
हिरण्यवर्णांहरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।चन्द्रांहिरण्मयींलक्ष्मीं जातवेदोमआवह॥१॥

तां मआवह जातवेदोलक्ष्मी मनपगामिनीम् ।यस्यां हिरण्यंविन्देयं गामश्वंपुरुषानहम् ॥२॥

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम्।श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मादेवीजुषताम् ॥३।।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तींतृप्तांतर्पयन्तीम् ।पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वयेश्रियम् ॥४॥

चन्द्रांप्रभासां यशसाज्वलन्तीं श्रियंलोकेदेवजुष्टामुदाराम् । तां पद्मिनीमीं शरणमहंप्रपद्ये ऽलक्ष्मीर्मेनश्यतां त्वांवृणे॥५॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथबिल्वः ।तस्यफलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥६॥

उपैतुमां देवसखः कीर्तिश्चमणिनासह ।प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्कीर्तिमृद्धिंददातुमे ॥७॥

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।अभूतिम समृद्धिंचसर्वांनिर्णुद मेगृहात्॥८॥

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टांकरीषिणीम् ।ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वयेश्रियम् ॥९॥

मनसःकाममाकूतिं वाचःसत्यमशीमहि ।पशूनां रूपमन्नस्यमयि श्रीःश्रयतांयशः ॥१०॥

कर्दमेन प्रजाभूतामयिसम्भवकर्दम ।श्रियंवासयमेकुले मातरंपद्ममालिनीम् ॥११॥

आपःसृजन्तुस्निग्धानि चिक्लीतवसमेगृहे। निचदेवींमातरं श्रियंवासयमेकुले ॥१२॥

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिंपिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।चन्द्रां हिरण्मयींलक्ष्मीं जातवेदोमआवह॥१३॥

आर्द्रां यःकरिणीं यष्टिंसुवर्णां हेममालिनीम् ।सूर्यां हिरण्मयींलक्ष्मीं जातवेदोमआवह॥१४॥

तां मआवहजातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।यस्यां हिरण्यंप्रभूतं गावोदास्योऽश्वान्विन्देयं पूरुषानहम् ॥१५॥

यःशुचिःप्रयतोभूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। सूक्तंपञ्चदशर्चंच श्रीकामःसततंजपेत् ॥१६॥

मित्रोँ यूँ तो ये तीनोँ ही स्तोत्र अत्यँत प्रभावशाली हैँ कि इनमेँ से किसी एक का पाठ ही चमत्कार कर सकता है और भिखारी को भी मालामाल कर सकता है परँतु तीनोँ का इस क्रम मेँ रोज 3 बार किया गया पाठ अतिशीघ्र व कई गुना अधिक फल देता है।

अन्य किसी जानकारी के लिए सम्पर्क कर सकते हैँ
8909521616

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