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Friday 1 December 2017

Vajikaran : science of romance वाजीकरण: प्रेम और यौवन का ज्ञान

बाजीकरण आयुर्वेद शास्त्र आठ अंगो में विभक्त है। सातवा अंग रसायन और आठवा अंग बाजीकरन है। कुछ समय से पाठ्को की बाजीकरन की चिकित्सा के बारे मे जानने की इच्छा थी। अत: इसके बारे मे कुछ जानकारी यहा पर दे रहे है। रसायन व वाजीकरण चिकित्सा मानव कल्याणार्थ महर्षि वैज्ञानिको द्वारा खोजी गई है। आयुष्य, स्वास्थ्य और पौरुष का लाभ तो इनके द्वारा आवश्य प्राप्त होता है। 

आपने निजी विचार अनुसार इस चिकित्सा का अतिरिक्त उदेश्य भी है यथा वयक्तिगत रुप से व सम्षिटरुप से आपने देशवासियो के स्वास्थ्य के स्तर को गिरने न देना, उतरोतर उन्नत बनाए रखना, सन्क्रामक व अन्य रोगो से बचाना और रोगक्षमता व रक्ष्ण शकित का सम्वर्धन। 

बाजीकरण चिकित्सा की सार्थकता- बाजीकरण चिकित्सा व औषधियो के सम्बन्ध मे कुछ गलत धारणाए प्रचलित है। कुछ अज्ञानी लोग इस चिकित्सा को लिग-योनि चिकित्सा तथा यौन भावनाओ का प्रसार करने वाली ही मानते है। यह विचार नितान्त भ्रान्त और मिथ्या है जिस का कोई वैज्ञानिक आधार नही है।

 यह चिकित्सा आत्मवान के लिये कही गई है – 
वाजीकरणगनिवच्छेत पुरुषोनित्यमात्मवान। तदायक्तौहि धर्मारथौ प्रीतिश्च यश एव च।। 
पुत्र्स्यायत्न्न ह्येतद गुणाश्चैते सुताश्र्या:। -च . चि

 बाजीकरण सेवन से शुक्र की व्रद्धि होती है और शुक्र की व्रध्दि से पुत्र की उत्पति होती है पुत्रोत्पति एक धर्म कार्य है। कन्या के बारे मे भी ऐसा ही समझना चाहिए। 

वीर्यवान पुरुष ही धर्म, अर्थ, प्रीति और यश का भागी होता है- 

मगलयोऽयं प्रशस्यऽयं धनयोऽयं वीर्यवानयमः। 

बाजीकरण की परिभाषा- बाजीकरण को यूनानी चिकित्सा शास्त्र में ममक्षिक (कुवत बाह को बढाना) और एलोपैथी में एफ्रोडीसायक कहा गया है। 

शारंग्धर ने बाजीकरण की सामान्या परिभाषा में कहा है:- 

यस्माद द्रव्याद्भवेतः स्त्रीपुरुषो बाजीकरणं च तत.।

 अर्थात:- जिस द्रव्य के सेवन से मैथुन में स्त्री-पुरुष दोनों को हर्ष अथवा आनंद की प्रतीति हो उसे बाजीकरण कहते है। यह एक आम सरल परिभाषा है जिसे सर्वसाधारण जन सुगमता से समझ सकते है। 

चरक संहिता व अ. सं. में परिभाषा को विशेष रुप दिया गया है– 

येन नारिषु सामर्थ्य बाजिबल्लभते नर:। ब्रजेच्चाभ्याधिकं येन बाजिकरण्मेव त्तत।। 
बाजीबात बलो येन यात्यप्रतिह्त: स्त्रिय:। भवत्यतिप्रिय: स्त्रिणां येन येनोपचियते।।
 तद्वाजीकरणं तद्धि देहसयौजस्करं परम:।। – च. चि. बाजीकरण 

आर्थात:- जिस द्रव्य के सेवन से अश्व की तरह मैथुन शक्ति हो जाऐ, शीघ्रपतन न हो, पुरुष बिना रुकावट के मैथुन कर सके, स्त्रिया जिस पर मैथुन शक्ति के कारण मोहित {वश में} हो, धातुओं की भरपुर व्रद्धि हो और देह ओज व तेज से भरपुर हो जाऐ वह द्र्व्या ही सच्चा बाजीकरण है।

 सुश्रुत ने बाजीकरण की परिभाषा इस प्रकार कही है:-

 बाजीकरण तन्त्रं (बाजीकरणं) नामाल्य दुष्ट्क्षीण-विशुष्क-रेतसामाप्यायन-प्रसादोपच्य-जनननिमितं प्रह्ष्रजननार्थ च। सेव्यमानो यदौचित्याद्वाजिवात्यर्थ वेगवानं। नारीस्तपर्यते तेन बाजीकरणंमुच्यते।।

 अर्थात:- वाजीकरण तन्त्र अल्पवीर्य, दुष्टवीर्य, क्षीणवीर्य, और शुष्कवीर्य वालों के हित के लिये कहा गया है। जिस द्रव्य के सेवन से पुरुष अत्यन्त वेगवान होकर नारी की तुष्टी करन में समर्थ हो वह द्रव्य बाजीकरण होता है। बाजीकरण प्रक्रिया वीर्य व्रद्धि तथा वीर्य को गुणवान बनाने की प्रक्रिया है। 

शुक्र की रक्षा करने वाले अथवा शुक्रसार पुरुषो के गुण:- ते स्त्रीस्त्रियोप्भोगा बलवन्त: सुखैश्वर्यारोग्या वितसंमानापत्यभाजश्च भवन्ति। च. चि। 

जिस द्रव्य द्वारा पुरुष को प्रभुत गुणों की उपलब्धि होती है, बाजीकरण प्रक्रिया द्वारा उसका व्यर्थ में नाश करना कदापि अभीष्ट नहीं हो सकता। शरीर के तीन उपस्तम्भ कहे गये है। एक उपस्तम्भ ब्रह्मचर्य (संयम से रहना) शरीर की रक्षा और धारण के लिये नितान्त आवश्यक माना जाता है।

 दोषयुक्त शुक्र के उपद्र्व:- 

शुक्रस्य दोषात क्लैव्यम्हर्षणम। रोगी वाक्लीवमालयायार्ववर्रुपं वा प्रजायत।। 
न वा संजायते गर्भ: पतति प्रस्त्रावत्यपि। शुक्रं हि दुष्टं सापत्यं सदारं बाधते नरमं।।  च. सु. 

शुक्र को निर्दोष और समर्थ बनाये रखने के लिए आयुर्वेद शास्त्र ने व्यर्थ में ही इस तथ्य पर बल नहीं दिया। 

बाजीकरण के भेद:-
 १. शुक्रल- जो द्रव्य शुक्र की व्रद्धि करते हैं उन्हें शुक्रल कहते है।
 २. शुक्र प्रवर्तक- शुक्र का प्रवर्तक मात्र करने वाले द्रव्य। 
३. शुक्रस्त्रुति- व्रद्धीकर, कुछ द्र्व्य शुक्रजनन और शुक्र प्रवर्तक दोनो कार्य करते है।
 ४. शुक्रस्तम्भन- जो द्रव्य शुक्र धातु का स्तम्भन करके रतिकाल को लम्बा करते है उन्हें शुक्रस्तम्भन कहा जाता है। 

आयुर्वेद शास्त्र में ब्रष्या कर्म से पूर्व शरीर शुद्धि का निर्देश है। 

स्त्रोतस्सु शुद्धैष्वगम्नो शरीरे व्रष्यं प्रदाल मियमक्ति काले। 
व्रष्याते तेन परं मनुष्यस्तद्ध्रंणं चैव बलप्रदं च।। 

अर्थात:- मलिन शरीर में व्रष्य योग सिद्ध नहीं होते। इसी कारण कई रोगी व्रष्य योगों से लाभान्ति नही हो सकते। 

बाजीकर (व्रष्य) औषधियां व आहार विहार- आयुर्वेद शास्त्र में पौरुष प्रदान करने वाली औषधियों तथा आहार द्रव्यों का एक विशाल ज्ञान है अगर इन्हें विधिवत प्रयोग में लाया जाए तो सफलता अवश्य प्राप्त होगी।

अपने आगामी लेखों में आपको सरल आयुर्वेदिक वाजीकरण योगों को जानकारी देने की कोशिश करेंगे जो आप स्वयम बना सकें और उपयोग कर सकें। हानि रहित/ जिनके कोई साइड इफेक्ट न हों।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवम कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।

Abhishek B. Pandey
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