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Wednesday, 28 October 2015

अति दुर्लभ बेर का बाँदा Rarest Ber ka banda (first ever image on internet)

अति दुर्लभ बेर का बाँदा (first ever image on internet)

मित्रों,
काफी सारे लोग अक्सर बान्दे के बारे में प्रश्न करते हैं व मांगते हैं।
अतः आज इन्टरनेट पर पहली बार अतिदुर्लभ बेर के बान्दे का चित्र डाल रहा हूँ जो सौभाग्यवश इस नवरात्रि में पुनः प्राप्त हुआ।

बाँदा अपने आप में पूर्ण वनस्पति है और इसमें फल फूल भी लगते हैं।

चित्र में बान्दे का मूल और तना तथा फल के चित्र हैं।

लाभ और प्रयोग विधि:

बाँदा सौभाग्य से ही मिल सकता है।यदि कहीं दिख जाये, तो स्वाती नक्षत्र में विधिवत निमंत्रण देकर घर लाना चाहिए। घर आकर देव-प्रतिमा-स्थापन की संक्षिप्त विधि से स्थापन करके पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें।

इसके बाद ग्यारह माला शिव पंचाक्षर एवं ग्यारह माला देवी-नवार्ण मंत्रों का जप,हवन,तर्पण,मार्जन सम्पन्न करके कम से कम एक ब्राह्मण और एक दरिद्रनारायण को भोजन दक्षिणा सहित प्रदान करें।इस प्रकार आपका कार्य पूरा हो गया।

अब, जब भी आवश्यकता हो,उस पूजित काष्ठ में से थोड़ा अंश काट कर लाल या पीले कपड़े या तांबे के ताबीज में भरकर प्रयोग कर सकते हैं।

कल्याण भावना से (व्यापार नहीं)किसी को दे भी सकते हैं।

इस बदरी-बाँदा का एक मात्र कार्य है- मनोनुकूलता प्रदान करना यानि किसी से कुछ सहयोग लेना हो,कोई कार्य करवाना हो तो विधिवत धारण करके उस व्यक्ति के पास जाकर अपने इष्ट मंत्रों का मानसिक जप करते हुए प्रस्ताव रखना चाहिए।

अन्य ग्रंथ मतानुसार:-

अनेन ग्राह्येत स्वाति-नक्षत्रे बदरीभवम।
वन्दाकम तत्करे धृत्वा यदवस्तु प्राप्यते नरः।
तत्क्षणात प्राप्यते सर्व, म्न्त्रवाम्स्तु कथ्यते।

स्वाति नक्षत्र में निम्न मन्त्र से अभिमंत्रित करने पर अभीष्ट वस्तु देने वाला होता है।

मन्त्र:-
ॐ अन्तरिक्षाय स्वाहा।

अन्य किसी जानकारी , समस्या समाधान अथवा कुंडली विश्लेष्ण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
7579400465
8909521616

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Wednesday, 21 October 2015

Money tree Shami स्वर्ण वृक्ष शमी


स्वर्ण वृक्ष शमी

सभी मित्रों को विजयदशमी की शुभकामनायें

मित्रों
आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण हैं, एक ओर जहां रावण दहन होगा वहीं दूसरी ओर माँ अपराजिता का पूजन विजय प्राप्ति और शक्ति प्राप्ति की कामना से होगा।
दशहरा वर्ष के 4 अबूझ मुहूर्तों में से भी एक है और आज विभिन्न  तंत्रोक्त वस्तुओं , यंत्रों की सिद्धि और निर्माण के लिए भी उत्तम मुहूर्त है।

शमी में अग्नि का वास होने से वैदिक काल से ही यज्ञ के लिए अरणी मंथन क्रिया द्वारा इसकी मोटी टहनियों को रगड़कर अग्नि प्रज्वलित की जाती रही है.आज भी पारंपरिक वैदिक पंडित यज्ञ में अग्नि आमंत्रण अरणी मंथन द्वारा ही करते हैं.स्वर्ण अग्नि का वीर्य है और अग्नि का वास इस वृक्ष में होने से यह स्वर्ण उगलता है,ऐसा विश्वास किया जाता है.

रघुवंश में भी इस बारे में रोचक कथा का वर्णन मिलता है.प्राचीन काल में गुरुकुल शिक्षा की पूर्णता पर शिष्य द्वारा गुरु दक्षिणा भेंट करना अति आवश्यक था.गुरु आरुणि के आश्रम में एक बार निर्धन परिवार से कौस्तेय नामक शिष्य आया.शिक्षा पूर्ण होने पर उसने गुरुदेव से दक्षिणा के लिए आग्रह किया.शिष्य की स्थिति को जानते हुए गुरु ने सहर्ष गुरुकुल छोड़ने की आज्ञा प्रदान की,लेकिन कौस्तेय अड़ा रहा कि उससे गुरु दक्षिणा ली जाए.

गुरु आरुणि ने आवेश में उससे दास लाख स्वर्ण मुद्राएं गुरु दक्षिणा के रूप में मांग लीं.इतनी अपुल राशि का अर्जन तो उसके लिए असंभव था,अतः उसने राजा रघु के पास जाने का निश्चय किया.राजा रघु प्रत्येक बारहवें वर्ष अपना समस्त राज्य-कोष,स्व एवं पत्नी के वस्त्राभूषण भी प्रजा को दान कर देते थे और सादा जीवन बिताते थे.सरल जीवन एवं उनके तप के प्रभाव से राज्यकोष पुनः स्वर्णपूरित हो जाता था.उस समय राजा रघु अपना सर्वस्व दान कर सादा जीवन व्यतीत कर रहे थे.

कौस्तेय राजा रघु के दरबार में पहुंचा लेकिन वहां की स्थिति जानकार अभिप्राय बताने में संकोच का अनुभव हो रहा था.राजा रघु द्वारा बार-बार पूछने पर कौस्तेय ने अपने आने का उद्देश्य बताया.राजा रघु ने दक्षिणा के लिए पूर्ण आश्वासित किया और धनपति कुबेर पर आक्रमण करने का निश्चय किया.यात्रा में रात्रि में एक वन में रुके.यह शमी का वृक्ष था.इसी अंतराल कुबेर को ज्ञात हो गया कि राजा रघु एक शिष्य की गुरु दक्षिणा के लिए आक्रमण हेतु राह में है.उसी रात्रि शमी वृक्षों के सारे पत्ते स्वर्ण मुद्रा में परिवर्तित हो गए और सारा वन स्वर्ण आभा से जगमगा उठा.प्रातः राजा रघु को इसकी जानकारी मिली.आक्रमण का विचार निरस्त कर उन्होंने कौस्तेय को गुरु दक्षिणा के लिए अनुरोध किया.कौस्तेय ने गिनकर दास लाख स्वर्ण मुद्रा ली और गुरु दक्षिणा अर्पित की.अपुल धन राशि  से राजा रघु का राज्य कोष पुनः स्वर्ण पूरित हो गया.

विजयादशमी के आस-पास घटी इस घटना के कारण आज भी अनेक राज-परिवारों में इस वृक्ष की पूजा विजयादशमी पर की जाती है.

शमी का महत्व:

1)बंगाल में दुर्गापूजा पर शमी वृक्ष की पत्तियां स्वर्ण प्रतीक रूप में परस्पर सद्भावना के लिए वितरित की जाती हैं.

2)इन्हें पूजा घर,तिजोरी में शुभ प्रतीक के रूप में रखा जाता है.

3)भगवान शिव,देवी दुर्गा,लक्ष्मी पूजन आदि में इस वृक्ष के फूल एवं ऋद्धि-सिद्धिदाता गणेश को पत्तियां अर्पित की जाती हैं.

4)इस वृक्ष की मोटी टहनियां अरणी मंथन द्वारा अग्नि उत्पन्न के लिए प्रधान यंत्र के अलावा पतली-सूखी टहनियां भी यज्ञ समिधा का भाग होती हैं.

5)भगवान राम ने अपने वनवास के समय जिस झोपड़ी का निर्माण किया था उसमें शमी वृक्ष की लकड़ियों का ही उपयोग किया गया था.

6)शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को स्वर्ण फूल चढ़ाने के बराबर सिर्फ आक का एक फूल चढ़ाने का चढ़ाने से फल मिलता है , हजार आक  के फूलो की अपेक्षा एक कनेर का फूल , हजार कनेर के फूल की अपेक्षा एक बिल्वपत्र , हजार बिल्वपत्र के बराबर एक द्रोण का फूल फलदाई है हजार द्रोण उनके बराबर फल एक चिचड़ा देता है हजार चिचड़ा  के बराबर फल एक कुश का पुष्प फल देता है हजार खुश फूलो के बराबर एक शमी का पत्ता फल देता है हजार शमी के पत्तो के बराबर एक नीलकमल और हज़ार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा फल देता है और 1000 दूर से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ पर फल और पूर्ण देने वाला होता है ।

7)विजयदशमी के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है मानता है कि भगवान राम का भी प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पूर्व होने समय की पूजा की थी और विजय होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था ।

8) महाभारत काल में भी मिलता है अपने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास में पांडवों ने अपने सारे अस्त्र शस्त्र इसी के ऊपर छिपाये थे जिस में अर्जुन का गांडीव धनुष भी था । कुरुक्षेत्र में कौरवों से युद्ध के लिए जाने से पहले पांडवों ने भी शमी की पूजा की थी और उसे शक्ति और विजय प्राप्त की कामना की थी कभी समय तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी सुरक्षित की पूजा करता है उसे शक्ति और विजय की प्राप्ति होती है।

9) शमी का पूजन व् सेवा शनि के द्वारा दिए जा रहे कष्टों को कम करता है और शनि को प्रसन्न करता है।

10) घर के बाहर ईशान कोण में लगाने और नित्य सेवा से घर में धन की कभी कमी नहीं होती और ऊपरी बाधाओं और दुर्घटनाओं से रक्षा होती है।

11) शमी की समिधा से हवन करने से एक ओर जहाँ शनि की शांति होती है वहीँ दूसरी ओर ऊपरी बाधा अभिचार नाश के लिए भी शमी समिधा का प्रयोग तीव्रतम असर करता है।

12) कुछ ज्योतिषाचार्य शनि शांति के लिए शमी की जड़ धारण करने की सलाह देते हैं हालाँकि ये शास्त्र सम्मत नहीं है।
नीलम के स्थान पर बिछू घास का ही प्रयोग करना उचित है।

व्यक्तिगत अनुभव से भी यही ज्ञात होता है की अभिमन्त्रित शमी मूल रखने से धन प्राप्ति के अवसर बढ़ते हैं किन्तु शनि के कुप्रभाव पर अधिक असर नहीं दिखा।
हाँ वृक्ष का नियमित पूजन अवश्य अतुलित फलदायी और शमी के कुप्रभाव को खत्म कर शनिदेव को प्रसन्न करता है।

कैसे करें पूजन:

प्रातः काल शमी वृक्ष के नीचे जाएँ और एक लोटा जल अर्पित करें। शाम के समय वृक्ष के पास जाकर नमन करें, धूप दीप करें, सफ़ेद कच्चा सूत या कच्चे सूत से बने कलावा लेकर सात परिक्रमा कर बांधे। प्रसाद स्वरुप बताशे और भुने चने अर्पित करें।
पूजन के पश्चात शमी की कुछ पत्तियां तोड़ कर घर ले आएं और सर्व प्रथम घर के मन्दिर में रखें। वहां से कुछ पत्तियां लेकर तिजोरी या गल्ले में रखें , और कुछ पत्तियां (5-7 पत्तियां) घर के प्रत्येक सदस्य को दें जिसे वे अपने पर्स में रखें।

नियमित पूजन में शमी पर प्रातः जल और शाम को धूप दीप अर्पित करें।

निम्न मन्त्र के द्वारा शमी का पूजन करें:-

शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।

अन्य किसी जानकारी,  समस्या समाधान अथवा कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
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