बगलामुखी जयंती 2019 विशेष
बगला स्तोत्र , कवच, अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र और चालीसा
मित्रों
12 मई 2019 को माँ बगुलामुखी जयंती है और आप सबको अनेक शुभकामनायें। माँ आपको स्वस्थ सुरक्षित रखें और सभी संकटों से रक्षा करें तथा अभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
माँ बगलामुखी १० महाविद्याओं में आठवां स्वरुप हैं। ये महाविद्यायें भोग और मोक्ष दोनों को देने वाली हैं। सांख़यायन तन्त्र के अनुसार बगलामुखी को सिद्घ विद्या कहा गया है।
तन्त्र शास्त्र में इसे ब्रह्मास्त्र, स्तंभिनी विद्या, मंत्र संजीवनी विद्या तथा प्राणी प्रज्ञापहारका एवं षट्कर्माधार विद्या के नाम से भी अभिहित किया गया है।
कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीता बरा की साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि व्याधि से त्रस्त वर्तमान समय में मानव मात्र माँ पीतांबरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी समस्त अभिलाषाओं को प्राप्त कर सकता है।
बगलामुखी की साधना से साधक भयरहित हो जाता है और शत्रु से उसकी रक्षा होती है। बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक, शत्रुविनाशक एवं स्तंभनात्मक है। यजुर्वेद के पंचम अध्याय में ‘रक्षोघ्न सूक्त’ में इसका वर्णन है।
इसका आविर्भाव प्रथम युग में बताया गया है। देवी बगलामुखी जी की प्राकट्य कथा इस प्रकार है जिसके अनुसार :-
एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया. यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए.
इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती श्रीविद्या के के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ और तेज से भगवती पीतांबरा का प्राकट्य हुआ
उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका.जब समस्त संसार के नाश के लिए प्रकृति में आंधी तूफान आया उस समय विष्णु भगवान संसार की रक्षा के लिये तपस्या करने लगे।
उनकी तपस्या से सौराष्ट्र में पीत सरोवर में । इनका आविर्भाव वीर रात्रि को माना गया है। शक्ति संग तंत्र के काली खंड के त्रयोदश पटल में वीर रात्रि का वर्णन इस प्रकार है
चतुर्दशी संक्रमश्च कुलर्क्ष कुलवासरः अर्ध रात्रौ यथा योगो वीर रात्रिः प्रकीर्तिता।
भगवती पीतांबरा के मंत्र का छंद वृहती है। ऋषि ब्रह्मा हैं, जो सर्व प्रकार की वृद्घि करने वाले हैं। भगवती सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं। इसके भक्त धन धान्य से पूर्ण रहते हैं।
भगवती पीतांबरा की पूजा पीतोपचार से होती है। पीतपुष्ष, पीत वस्त्र, हरिद्रा की माला, पीत नैवेद्य आदि पीतरंग इनको प्रिय हैं। इनकी पूजा में प्रयुक्त की जाने वाली हर वस्तु पीले रंग की ही होती है।
भगवती के अनेक साधकों का वर्णन तंत्र ग्रंथों में उपलब्ध है। सर्व प्रथम ब्रह्मास्त्र रूपिणी बगला महाविद्या का उपदेश ब्रह्माजी ने सनकादि ऋषियों को दिया। वहाँ से नारद, परशुराम आदि को इस महाविद्या का उपदेश हुआ। भगवान परशुराम शाक्तमार्ग के आचार्य हैं।
भगवान परशुराम को स्तंभन शक्ति प्राप्त थी। स्तंभन शक्ति के बल से शत्रु को पराजित करते थे।
देवी बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहते हैं क्यूंकि ये स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.
माँ बगलामुखी का बीज मंत्र :- ह्लीं
मूल मंत्र :- !!ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं
स्तम्भय जिह्वां किलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा!!
ग्रंथों के अनुसार ये मन्त्र सवा लाख जप कर के सिद्ध हो जाता है किन्तु वास्तविकता कहिये या कलयुग के प्रभाव से ये इससे १० या और बी कई गुना अधिक जप के बाद ही सिद्ध होता है।
ये एक अति उग्र मंत्र है और गलत उच्चारण जप करने पर उल्टा नुकसान भी दे सकता है।
** ध्यान रहे **
बिना सही विधि के जप करने पर मन्त्र में शत्रु के नाश के लिए कही गयी बातें स्वयं पर ही असर कर सकती है अतः गुरु से दीक्षा लेने और विधान जानने के बाद ही माँ का जप या साधना करनी चाहिए।
दूसरी बात माँ का मूल मंत्र जो की सबसे प्रचलित भी है इसका असर दिखने में काफी समय लगता है या यूँ कहिये की माँ साधक के धैर्य की परीक्षा लेती हैं और उसके बाद ही अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं।
माँ का मूल मन्त्र करने से पूर्व गायत्री मंत्र या बीज मन्त्र या माँ का ही कोई अन्य सौम्य मंत्र कर लिया जाये तो इसका प्रभाव शीघ्र मिलता है।
जप आरम्भ करने से पूर्व बगलामुखी कवच और अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पथ करने से साधक सब प्रकार की बाधाओं और जप/ साधना में विघ्न उत्पन्न करने वाली शक्तियों से सुरक्षित रहता है और सफल होता है।
** जिनकी दीक्षा नहीं हुई किंतु माँ बगुलामुखी में श्रद्धा है और उनकी कृपा चाहते हैं वे कवच और अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करें।
जो किसी भी प्रकार सँस्कृत में पाठ नहीं कर सकते वे माँ बगलामुखी चालीसा का नित्य पाठ करें।
शास्त्रानुसार यदि सिर्फ कवच और अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का ही १००० बार निर्विघ्न रूप से साधनात्मक तरीके से पाठ कर लिया जाये तो ये जागृत हो जाते हैं और फिर साधक इनके माध्यम से भी कई कर संपन्न कर सकता है।
।। माँ बगलामुखी स्तोत्र ।।
विनियोग : अस्य श्री बगलामुखी स्तोत्रस्य नारद ऋषिः त्रिष्टुप छन्दः।
श्री बगलामुखी देवता, बीजं स्वाहा शक्तिः कीलकं मम श्री बगलामुखी प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
!! ध्यान !!
सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांषुकोल्लासिनीं, हेमाभांगरुचिं शषंकमुकुटां स्रक चम्पकस्त्रग्युताम्,
हस्तैमुद्गर, पाषबद्धरसनां संविभृतीं भूषणैव्यप्तिांगी बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तये ।
ऊँ मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेदीं, सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरणमाल्यविभूषितांगी देवीं भजामि धृतमुदग्रवैरिजिव्हाम्।।1।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवी, वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढयां द्विभुजां भजामि।। 2।।
चलत्कनककुण्डलोल्लसित चारु गण्डस्थलां, लसत्कनकचम्पकद्युतिमदिन्दुबिम्बाननाम्।।
गदाहतविपक्षकांकलितलोलजिह्वाचंलाम्। स्मरामि बगलामुखीं विमुखवांगमनस्स्तंभिनीम्।। 3।।
पीयूषोदधिमध्यचारुविलसद्रक्तोत्पले मण्डपे, सत्सिहासनमौलिपातितरिपुं प्रेतासनाध् यासिनीम्।
स्वर्णाभांकरपीडितारिरसनां भ्राम्य˜दां विभ्रमामित्थं ध्यायति यान्ति तस्य विलयं सद्योऽथ सर्वापदः।। 4।।
देवि त्वच्चरणाम्बुजार्चनकृते यः पीतपुष्पान्जलीन् । भक्तया वामकरे निधाय च मनुम्मन्त्री मनोज्ञाक्षरम्।
पीठध्यानपरोऽथ कुम्भकवषाद्वीजं स्मरेत् पार्थिवः। तस्यामित्रमुखस्य वाचि हृदये जाडयं भवेत् तत्क्षणात्।। 5।।
वादी मूकति रंकति क्षितिपतिवैष्वानरः शीतति। क्रोधी शाम्यति दुज्र्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खंजति।।
गर्वी खर्वति सर्वविच्च जडति त्वद्यन्त्रणायंत्रितः। श्रीनित्ये बगलामुखी प्रतिदिनं कल्याणि तुभ्यं नमः।। 6।।
मन्त्रस्तावदलं विपक्षदलनं स्तोत्रं पवित्रं च ते, यन्त्रं वादिनियन्त्रणं त्रिजगतां जैत्रं च चित्रं च ते।
मातः श्रीबगलेतिनामललितं यस्यास्ति जन्तोर्मुखे, त्वन्नामग्रहणेन संसदि मुखस्तम्भे भवेद्वादिनाम्।। 7।।
दष्टु स्तम्भ्नमगु विघ्नषमन दारिद्रयविद्रावणम भूभषमनं चलन्मृगदृषान्चेतः समाकर्षणम्।
सौभाग्यैकनिकेतनं समदृषां कारुण्यपूर्णाऽमृतम्, मृत्योर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपुः।। 8।।
मातर्भन्जय मे विपक्षवदनं जिव्हां च संकीलय, ब्राह्मीं मुद्रय नाषयाषुधिषणामुग्रांगतिं स्तम्भय।
शत्रूंश्रूचर्णय देवि तीक्ष्णगदया गौरागिं पीताम्बरे, विघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारूण्यपूर्णेक्षणे।। 9।।
मातभैरवि भद्रकालि विजये वाराहि विष्वाश्रये। श्रीविद्ये समये महेषि बगले कामेषि रामे रमे।।
मातंगि त्रिपुरे परात्परतरे स्वर्गापवगप्रदे। दासोऽहं शरणागतः करुणया विष्वेष्वरि त्राहिमाम्।। 10।।
सरम्भे चैरसंघे प्रहरणसमये बन्धने वारिमध् ये, विद्यावादे विवादे प्रकुपितनृपतौ दिव्यकाले निषायाम्।
वष्ये वा स्तम्भने वा रिपुबधसमये निर्जने वा वने वा, गच्छस्तिष्ठंस्त्रिकालं यदि पठति षिवं प्राप्नुयादाषुधीरः।। 11।।
त्वं विद्या परमा त्रिलोकजननी विघ्नौघसिंच्छेदिनी योषाकर्षणकारिणी त्रिजगतामानन्द सम्वध्र्नी ।
दुष्टोच्चाटनकारिणीजनमनस्संमोहसंदायिनी, जिव्हाकीलनभैरवि! विजयते ब्रह्मादिमन्त्रो यथा।। 12।।
विद्याः लक्ष्मीः सर्वसौभाग्यमायुः पुत्रैः पौत्रैः सर्व साम्राज्यसिद्धिः।
मानं भोगो वष्यमारोग्य सौख्यं, प्राप्तं तत्तद्भूतलेऽस्मिन्नरेण।। 13।।
यत्कृतं जपसन्नाहं गदितं परमेष्वरि।। दुष्टानां निग्रहार्थाय तद्गृहाण नमोऽस्तुते।। 14।।
ब्रह्मास्त्रमिति विख्यातं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्। गुरुभक्ताय दातव्यं न दे्यं यस्य कस्यचित्।। 15।।
पीतांबरा च द्वि-भुजां, त्रि-नेत्रां गात्र कोमलाम्। षिला-मुद्गर हस्तां च स्मरेत् तां बगलामुखीम्।। 16।।
नित्यं स्तोत्रमिदं पवित्रमहि यो देव्याः पठत्यादराद्- धृत्वा यन्त्रमिदं तथैव समरे बाहौ करे वा गले।
राजानोऽप्यरयो मदान्धकरिणः सर्पाः मृगेन्द्रादिका- स्तेवैयान्ति विमोहिता रिपुगणाः लक्ष्मीः स्थिरासिद्धयः।। 17।।
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श्री बगलामुखी कवच
ध्यान
सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीताशुकोल्लासिनीम्
हेमाभांगरुचिं शशांकमुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुदगर पाशवज्ररसनाः संबिभ्रतीं भूषणैः
व्याप्तागीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत्
विनियोगः
ॐ अस्य श्रीबगलामुखीब्रह्मास्त्रमन्त्रकवचस्य भैरव ऋषिः,
विराट् छन्दः श्रीबगलामुखी देवता, क्लीं बीजम्, ऐं शक्तिः, श्रीं कीलकं, मम परस्य च मनोभिलाषितेष्टकार्यसिद्धये विनियोगः
न्यास
शिरसि भैरव ऋषये नमः
मुखे विराट छन्दसे नमः
हृदि बगलामुखीदेवतायै नमः
गुह्ये क्लीं बीजाय नमः
पादयो ऐं शक्तये नमः
सर्वांगे श्रीं कीलकाय नमः
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः
ॐ ह्रां हृदयाय नमः
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्
ॐ ह्रैं कवचाय हुं
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ॐ ह्रः अस्त्राय फट्
मन्त्रोद्धारः
ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय
मामैश्वर्याणि देहि देहि, शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय
साधय ह्रीं स्वाहा.
कवच
शिरो मे पातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातु ललाटकम् ।
सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्री बगलानने ।।१।।
श्रुतौ मम् रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् ।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।।२।।
देहि द्वन्द्वं सदा जिहवां पातु शीघ्रं वचो मम ।
कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।।३।।
कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम ।
मायायुक्ता यथा स्वाहा हृदयं पातु सर्वदा ।।४।।
अष्टाधिक-चत्वारिंश-दण्डाढया बगलामुखी ।
रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम ।।५।।
ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु ।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।।६।।
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगला-अवतु ।
मुखि-वर्णद्वयं पातु लिगं मे मुष्क-युग्मकम् ।।७।।
जानुनी सर्व-दुष्टानां पातु मे वर्ण-पञ्चकम् ।
वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी ।।८।।
जंघायुग्मे सदापातु बगला रिपुमोहिनी ।
स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रय मम ।।९।।
जिहवा-वर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च ।
पादोर्ध्वं सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ।।१०।।
विनाशयपदं पातु पादांगुर्ल्योनखानि मे ।
ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।।११।।
सर्वागं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मे-अवतु ।
ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।।१२।।
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसे-अवतु ।
कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।।१३।।
वाराही च उत्तरे पातु नारसिंही शिवे-अवतु ।
ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदा-अवतु ।।१४।।
इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः ।
राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः ।।१५।।
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदा-अवतु ।
द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः ।।१६।।
योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम ।
फलश्रुति
इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।।१७।।
श्रीविश्वविजयं नाम कीर्तिश्रीविजयप्रदाम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं धीरं शूरं शतायुषम् ।।१८।।
निर्धनो धनमाप्नोति कवचास्यास्य पाठतः ।
जपित्वा मन्त्रराजं तु ध्यात्वा श्री बगलामुखीम् ।।१९।।
पठेदिदं हि कवचं निशायां नियमात् तु यः ।
यद् यत् कामयते कामं साध्यासाध्ये महीतले ।।२०।।
तत् तत् काममवाप्नोति सप्तरात्रेण शंकरि ।
गुरुं ध्यात्वा सुरां पीत्वा रात्रो शक्तिसमन्वितः ।।२१।।
कवचं यः पठेद् देवि तस्यासाध्यं न किञ्चन ।
यं ध्यात्वा प्रजपेन्मन्त्रं सहस्त्रं कवचं पठेत् ।।२२।।
त्रिरात्रेण वशं याति मृत्योः तन्नात्र संशयः ।
लिखित्वा प्रतिमां शत्रोः सतालेन हरिद्रया ।।२३।।
लिखित्वा हृदि तन्नाम तं ध्यात्वा प्रजपेन् मनुम् ।
एकविंशददिनं यावत् प्रत्यहं च सहस्त्रकम् ।।२४।।
जपत्वा पठेत् तु कवचं चतुर्विंशतिवारकम् ।
संस्तम्भं जायते शत्रोर्नात्र कार्या विचारण् ।।२५।।
विवादे विजयं तस्य संग्रामे जयमाप्नुयात् ।
श्मशाने च भयं नास्ति कवचस्य प्रभावतः ।।२६।।
नवनीतं चाभिमन्त्रय स्त्रीणां दद्यान्महेश्र्वरि ।
वन्ध्यायां जायते पुत्रो विद्याबलसमन्वितः ।।२७।।
श्मशानांगारमादाय भौमे रात्रौ शनावथ ।
पादोदकेन स्पृष्ट्वा च लिखेत् लोहशलाकया ।।२८।।
भूमौ शत्रोः स्वरुपं च हृदि नाम समालिखेत् ।
हस्तं तद्धृदये दत्वा कवचं तिथिवारकम् ।।२९।।
ध्यात्वा जपेन् मन्त्रराजं नवरात्रं प्रयत्नतः ।
म्रियते ज्वरदाहेन दशमेंऽहनि न संशयः ।।३०।।
भूर्जपत्रेष्विदं स्तोत्रमष्टगन्धेन संलिखेत् ।
धारयेद् दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा ।।३१।।
संग्रामे जयमप्नोति नारी पुत्रवती भवेत् ।
सम्पूज्य कवचं नित्यं पूजायाः फलमालभेत् ।।३२।।
ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि नैव कृन्तन्ति तं जनम् ।
वृहस्पतिसमो वापि विभवे धनदोपमः ।।३३।।
कामतुल्यश्च नारीणां शत्रूणां च यमोपमः ।
कवितालहरी तस्य भवेद् गंगाप्रवाहवत् ।।३४।।
गद्यपद्यमयी वाणी भवेद् देवी प्रसादतः ।
एकादशशतं यावत् पुरश्चरणमुच्यते ।।३५।।
पुरश्चर्याविहीनं तु न चेदं फलदायकम् ।
न देयं परशिष्येभ्यो दुष्टेभ्यश्च विशेषतः ।।३६।।
देयं शिष्याय भक्ताय पञ्चत्वं चान्यथा-अअप्नुयात् ।
इदं कवचमज्ञात्वा भजेद् यो बगलामुखीम् ।।३७।।
शतकोटिं जपित्वा तु तस्य सिद्धिर्न जायते ।
दाराढयो मनुजोअस्य लक्षजपतः प्राप्नोति सिद्धिं परां ।।३८।।
विद्यां श्रीविजयं तथा सुनियतं धीरं च वीरं वरम् ।
ब्रह्मास्त्राख्यमनुं विलिख्य नितरां भूर्जे-अष्टगन्धेन वै ।।३९।।
धृत्वा राजपुरं व्रजन्ति खलु ते दासोअस्ति तेषां नृपः
इति श्रीविश्वसारोद्धारतन्त्रे पार्वतीश्वरसंवादे
बगलामुखी कवचम् सम्पूर्णम्
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श्री बगलामुखी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम
श्रीगणेशाय नमः ।
नारद उवाच ।
भगवन्देवदेवेश सृष्टिस्थितिलयात्मक ।
शतमष्टोत्तरं नाम्नां बगलाया वदाधुना ॥ १॥
श्रीभगवानुवाच ।
शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।
पीताम्बर्यां महादेव्याः स्तोत्रं पापप्रणाशनम् ॥ २॥
यस्य प्रपठनात्सद्यो वादी मूको भवेत्क्षणात् ।
रिपुणां स्तम्भनं याति सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥ ३॥
विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीपीताम्बराष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, श्रीपीताम्बरा देवता,
श्रीपीताम्बराप्रीतये पाठे विनियोगः ।
ॐ बगला विष्णुवनिता विष्णुशङ्करभामिनी ।
बहुला वेदमाता च महाविष्णुप्रसूरपि ॥ ४॥
महामत्स्या महाकूर्म्मा महावाराहरूपिणी ।
नारसिंहप्रिया रम्या वामना बटुरूपिणी ॥ ५॥
जामदग्न्यस्वरूपा च रामा रामप्रपूजिता ।
कृष्णा कपर्दिनी कृत्या कलहा कलकारिणी ॥ ६॥
बुद्धिरूपा बुद्धभार्या बौद्धपाखण्डखण्डिनी ।
कल्किरूपा कलिहरा कलिदुर्गति नाशिनी ॥ ७॥
कोटिसूर्य्यप्रतीकाशा कोटिकन्दर्पमोहिनी ।
केवला कठिना काली कला कैवल्यदायिनी ॥ ८॥
केशवी केशवाराध्या किशोरी केशवस्तुता ।
रुद्ररूपा रुद्रमूर्ती रुद्राणी रुद्रदेवता ॥ ९॥
नक्षत्ररूपा नक्षत्रा नक्षत्रेशप्रपूजिता ।
नक्षत्रेशप्रिया नित्या नक्षत्रपतिवन्दिता ॥ १०॥
नागिनी नागजननी नागराजप्रवन्दिता ।
नागेश्वरी नागकन्या नागरी च नगात्मजा ॥ ११॥
नगाधिराजतनया नगराजप्रपूजिता ।
नवीना नीरदा पीता श्यामा सौन्दर्य्यकारिणी ॥ १२॥
रक्ता नीला घना शुभ्रा श्वेता सौभाग्यदायिनी ।
सुन्दरी सौभगा सौम्या स्वर्णाभा स्वर्गतिप्रदा ॥ १३॥
रिपुत्रासकरी रेखा शत्रुसंहारकारिणी ।
भामिनी च तथा माया स्तम्भिनी मोहिनी शुभा ॥ १४॥
रागद्वेषकरी रात्री रौरवध्वंसकारिणी ।
यक्षिणी सिद्धनिवहा सिद्धेशा सिद्धिरूपिणी ॥ १५॥
लङ्कापतिध्वंसकरी लङ्केशी रिपुवन्दिता ।
लङ्कानाथकुलहरा महारावणहारिणी ॥ १६॥
देवदानवसिद्धौघपूजिता परमेश्वरी ।
पराणुरूपा परमा परतन्त्रविनाशिनी ॥ १७॥
वरदा वरदाराध्या वरदानपरायणा ।
वरदेशप्रिया वीरा वीरभूषणभूषिता ॥ १८॥
वसुदा बहुदा वाणी ब्रह्मरूपा वरानना ।
बलदा पीतवसना पीतभूषणभूषिता ॥ १९॥
पीतपुष्पप्रिया पीतहारा पीतस्वरूपिणी ।
इति ते कथितं विप्र नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ २०॥
यः पठेत्पाठयेद्वापि शृणुयाद्वा समाहितः ।
तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो याति नैवात्र संशयः ॥ २१॥
प्रभातकाले प्रयतो मनुष्यः पठेत्सुभक्त्या परिचिन्त्य पीताम् ।
द्रुतं भवेत्तस्य समस्तबुद्धिर्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः ॥ २२॥
॥ इति श्रीविष्णुयामले नारदविष्णुसंवादे श्रीबगलाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥
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नमो महाविधा बरदा , बगलामुखी दयाल |
स्तम्भन क्षण में करे , सुमरित अरिकुल काल ||
चौपाई
नमो नमो पीताम्बरा भवानी , बगलामुखी नमो कल्यानी | १|
भक्त वत्सला शत्रु नशानी , नमो महाविधा वरदानी |२ |
अमृत सागर बीच तुम्हारा , रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा |३ |
स्वर्ण सिंहासन पर आसीना , पीताम्बर अति दिव्य नवीना |४ |
स्वर्णभूषण सुन्दर धारे , सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे |५ |
तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मुद्गर पाश कराला |६ |
भैरव करे सदा सेवकाई , सिद्ध काम सब विघ्न नसाई |७ |
तुम हताश का निपट सहारा , करे अकिंचन अरिकल धारा |८ |
तुम काली तारा भुवनेशी ,त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी |९ |
छिन्नभाल धूमा मातंगी , गायत्री तुम बगला रंगी |१० |
सकल शक्तियाँ तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे |११ |
दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन |१२ |
दुष्टोच्चाटन कारक माता , अरि जिव्हा कीलक सघाता |१३ |
साधक के विपति की त्राता , नमो महामाया प्रख्याता |१४ |
मुद्गर शिला लिये अति भारी , प्रेतासन पर किये सवारी |१५ |
तीन लोक दस दिशा भवानी , बिचरहु तुम हित कल्यानी |१६ |
अरि अरिष्ट सोचे जो जन को , बुध्दि नाशकर कीलक तन को |१७ |
हाथ पांव बाँधहु तुम ताके,हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके |१८ |
चोरो का जब संकट आवे , रण में रिपुओं से घिर जावे |१९ |
अनल अनिल बिप्लव घहरावे , वाद विवाद न निर्णय पावे |२० |
मूठ आदि अभिचारण संकट . राजभीति आपत्ति सन्निकट |२१ |
ध्यान करत सब कष्ट नसावे , भूत प्रेत न बाधा आवे |२२ |
सुमरित राजव्दार बंध जावे ,सभा बीच स्तम्भवन छावे |२३ |
नाग सर्प ब्रर्चिश्रकादि भयंकर , खल विहंग भागहिं सब सत्वर |२४ |
सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मूलच्चाटन कारी |२५ |
स्त्री पुरुष राज सम्मोहक , नमो नमो पीताम्बर सोहक |२६ |
तुमको सदा कुबेर मनावे , श्री समृद्धि सुयश नित गावें |२७ |
शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता , दुःख दारिद्र विनाशक माता |२८ |
यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता , शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता | २९ |
पीताम्बरा नमो कल्यानी , नमो माता बगला महारानी |३०|
जो तुमको सुमरै चितलाई ,योग क्षेम से करो सहाई |३१ |
आपत्ति जन की तुरत निवारो , आधि व्याधि संकट सब टारो |३२ |
पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूँ निहोरी |३३ |
मैं कुपुत्र अति निवल उपाया , हाथ जोड़ शरणागत आया |३४ |
जग में केवल तुम्हीं सहारा, सारे संकट करहुँ निवारा |३५|
नमो महादेवी हे माता , पीताम्बरा नमो सुखदाता |३६ |
सोम्य रूप धर बनती माता , सुख सम्पत्ति सुयश की दाता |३७ |
रोद्र रूप धर शत्रु संहारो , अरि जिव्हा में मुद्गर मारो |३८|
नमो महाविधा आगारा,आदि शक्ति सुन्दरी आपारा |३९ |
अरि भंजक विपत्ति की त्राता , दया करो पीताम्बरी माता | ४० |
दोहा
रिद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं , अरि समूल कुल काल |
मेरी सब बाधा हरो , माँ बगले तत्काल ||
बगुलामुखी यन्त्र
आज के इस भागदौड़ के युग में श्री बगलामुखी यंत्र की साधना अन्य किसी भी साधना से अधिक उपयोगी है। यह एक परीक्षित और अनुभवसिद्ध तथ्य है। इसे गले में पहनने के साथ-साथ पूजा घर में भी रख सकते हैं। इस यंत्र की पूजा पीले दाने, पीले वस्त्र, पीले आसन पर बैठकर निम्न मंत्र को प्रतिदिन जप करते हुए करनी चाहिए। अपनी सफलता के लिए कोई भी व्यक्ति इस यंत्र का उपयोग कर सकता है। इसका वास्तविक रूप में प्रयोग किया गया है। इसे अच्छी तरह से अनेक लोगों पर उपयोग करके देखा गया है।
शास्त्रानुसार और वरिष्ठ साधकों के अनुभव के अनुसार जिस घर में यह महायंत्र स्थापित होता है, उस घर पर कभी भी शत्रु या किसी भी प्रकार की विपत्ति हावी नहीं हो सकती। न उस घर के किसी सदस्य पर आक्रमण हो सकता है, न ही उस परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो सकती है। इसीलिए इसे महायंत्र की संज्ञा दी गई है। इससे दृश्य/अदृश्य बाधाएं समाप्त होती हैं। यह यंत्र अपनी पूर्ण प्रखरता से प्रभाव दिखाता है। उसके शारीरिक और मानसिक रोगों तथा ऋण, दरिद्रता आदि से उसे मुक्ति मिल जाती है। वहीं उसकी पत्नी और पुत्र सही मार्ग पर आकर उसकी सहायता करते हैं। उसके विश्वासघाती मित्र और व्यापार में साझीदार उसके अनुकूल हो जाते हैं।
शत्रुओं के शमन (चाहे बाहरी हो या घरेलू कलह , दरिद्रता या शराब / नशे व्यसन रूप में भीतरी शत्रु ),रोजगार या व्यापार आदि में आनेवाली बाधाओं से मुक्ति, मुकदमे में सफलता के लिए , टोने टोटकों के प्रभाव से बचाव आदि के लिए किसी साधक के द्वारा सिद्ध मुहूर्त में निर्मित, बगलामुखी तंत्र से अभिसिंचित तथा प्राण प्रतिष्ठित श्री बगलामुखी यंत्र घर में स्थापित करना चाहिए या कवच रूप में धारण करना चाहिए।
बगलामुखी हवन
१) वशीकरण : मधु, घी और शर्करा मिश्रित तिल से किया जाने वाला हवन (होम) मनुष्यों को वश में करने वाला माना गया है। यह हवन आकर्षण बढ़ाता है।
२) विद्वेषण : तेल से सिक्त नीम के पत्तों से किया जाने वाला हवन विद्वेष दूर करता है।
३) शत्रु नाश : रात्रि में श्मशान की अग्नि में कोयले, घर के धूम, राई और माहिष गुग्गल के होम से शत्रु का शमन होता है।
४) उच्चाटन : गिद्ध तथा कौए के पंख, कड़वे तेल, बहेड़े, घर के धूम और चिता की अग्नि से होम करने से साधक के शत्रुओं को उच्चाटन लग जाता है।
५) रोग नाश : दूब, गुरुच और लावा को मधु, घी और शक्कर के साथ मिलाकर होम करने पर साधक सभी रोगों को मात्र देखकर दूर कर देता है।
६ ) मनोकामना पूर्ति : कामनाओं की सिद्धि के लिए पर्वत पर, महावन में, नदी के तट पर या शिवालय में एक लाख जप करें।
७) विष नाश / स्तम्भन :
एक रंग की गाय के दूध में मधु और शक्कर मिलाकर उसे तीन सौ मंत्रांे से अभिमंत्रित करके पीने से सभी विषों की शक्ति समाप्त हो जाती है और साधक शत्रुओं की शक्ति तथा बुद्धि का स्तम्भन करने में सक्षम होता है।
अन्य किसी जानकारी , समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
जय माँ पीताम्बरा
।।जय श्री राम।।
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बगला स्तोत्र , कवच, अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र और चालीसा
मित्रों
12 मई 2019 को माँ बगुलामुखी जयंती है और आप सबको अनेक शुभकामनायें। माँ आपको स्वस्थ सुरक्षित रखें और सभी संकटों से रक्षा करें तथा अभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।
माँ बगलामुखी १० महाविद्याओं में आठवां स्वरुप हैं। ये महाविद्यायें भोग और मोक्ष दोनों को देने वाली हैं। सांख़यायन तन्त्र के अनुसार बगलामुखी को सिद्घ विद्या कहा गया है।
तन्त्र शास्त्र में इसे ब्रह्मास्त्र, स्तंभिनी विद्या, मंत्र संजीवनी विद्या तथा प्राणी प्रज्ञापहारका एवं षट्कर्माधार विद्या के नाम से भी अभिहित किया गया है।
कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीता बरा की साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि व्याधि से त्रस्त वर्तमान समय में मानव मात्र माँ पीतांबरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी समस्त अभिलाषाओं को प्राप्त कर सकता है।
बगलामुखी की साधना से साधक भयरहित हो जाता है और शत्रु से उसकी रक्षा होती है। बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक, शत्रुविनाशक एवं स्तंभनात्मक है। यजुर्वेद के पंचम अध्याय में ‘रक्षोघ्न सूक्त’ में इसका वर्णन है।
इसका आविर्भाव प्रथम युग में बताया गया है। देवी बगलामुखी जी की प्राकट्य कथा इस प्रकार है जिसके अनुसार :-
एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया. यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए.
इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती श्रीविद्या के के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ और तेज से भगवती पीतांबरा का प्राकट्य हुआ
उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका.जब समस्त संसार के नाश के लिए प्रकृति में आंधी तूफान आया उस समय विष्णु भगवान संसार की रक्षा के लिये तपस्या करने लगे।
उनकी तपस्या से सौराष्ट्र में पीत सरोवर में । इनका आविर्भाव वीर रात्रि को माना गया है। शक्ति संग तंत्र के काली खंड के त्रयोदश पटल में वीर रात्रि का वर्णन इस प्रकार है
चतुर्दशी संक्रमश्च कुलर्क्ष कुलवासरः अर्ध रात्रौ यथा योगो वीर रात्रिः प्रकीर्तिता।
भगवती पीतांबरा के मंत्र का छंद वृहती है। ऋषि ब्रह्मा हैं, जो सर्व प्रकार की वृद्घि करने वाले हैं। भगवती सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं। इसके भक्त धन धान्य से पूर्ण रहते हैं।
भगवती पीतांबरा की पूजा पीतोपचार से होती है। पीतपुष्ष, पीत वस्त्र, हरिद्रा की माला, पीत नैवेद्य आदि पीतरंग इनको प्रिय हैं। इनकी पूजा में प्रयुक्त की जाने वाली हर वस्तु पीले रंग की ही होती है।
भगवती के अनेक साधकों का वर्णन तंत्र ग्रंथों में उपलब्ध है। सर्व प्रथम ब्रह्मास्त्र रूपिणी बगला महाविद्या का उपदेश ब्रह्माजी ने सनकादि ऋषियों को दिया। वहाँ से नारद, परशुराम आदि को इस महाविद्या का उपदेश हुआ। भगवान परशुराम शाक्तमार्ग के आचार्य हैं।
भगवान परशुराम को स्तंभन शक्ति प्राप्त थी। स्तंभन शक्ति के बल से शत्रु को पराजित करते थे।
देवी बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहते हैं क्यूंकि ये स्वयं ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.
माँ बगलामुखी का बीज मंत्र :- ह्लीं
मूल मंत्र :- !!ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं
स्तम्भय जिह्वां किलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा!!
ग्रंथों के अनुसार ये मन्त्र सवा लाख जप कर के सिद्ध हो जाता है किन्तु वास्तविकता कहिये या कलयुग के प्रभाव से ये इससे १० या और बी कई गुना अधिक जप के बाद ही सिद्ध होता है।
ये एक अति उग्र मंत्र है और गलत उच्चारण जप करने पर उल्टा नुकसान भी दे सकता है।
** ध्यान रहे **
बिना सही विधि के जप करने पर मन्त्र में शत्रु के नाश के लिए कही गयी बातें स्वयं पर ही असर कर सकती है अतः गुरु से दीक्षा लेने और विधान जानने के बाद ही माँ का जप या साधना करनी चाहिए।
दूसरी बात माँ का मूल मंत्र जो की सबसे प्रचलित भी है इसका असर दिखने में काफी समय लगता है या यूँ कहिये की माँ साधक के धैर्य की परीक्षा लेती हैं और उसके बाद ही अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं।
माँ का मूल मन्त्र करने से पूर्व गायत्री मंत्र या बीज मन्त्र या माँ का ही कोई अन्य सौम्य मंत्र कर लिया जाये तो इसका प्रभाव शीघ्र मिलता है।
जप आरम्भ करने से पूर्व बगलामुखी कवच और अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पथ करने से साधक सब प्रकार की बाधाओं और जप/ साधना में विघ्न उत्पन्न करने वाली शक्तियों से सुरक्षित रहता है और सफल होता है।
** जिनकी दीक्षा नहीं हुई किंतु माँ बगुलामुखी में श्रद्धा है और उनकी कृपा चाहते हैं वे कवच और अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करें।
जो किसी भी प्रकार सँस्कृत में पाठ नहीं कर सकते वे माँ बगलामुखी चालीसा का नित्य पाठ करें।
शास्त्रानुसार यदि सिर्फ कवच और अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का ही १००० बार निर्विघ्न रूप से साधनात्मक तरीके से पाठ कर लिया जाये तो ये जागृत हो जाते हैं और फिर साधक इनके माध्यम से भी कई कर संपन्न कर सकता है।
।। माँ बगलामुखी स्तोत्र ।।
विनियोग : अस्य श्री बगलामुखी स्तोत्रस्य नारद ऋषिः त्रिष्टुप छन्दः।
श्री बगलामुखी देवता, बीजं स्वाहा शक्तिः कीलकं मम श्री बगलामुखी प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
!! ध्यान !!
सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांषुकोल्लासिनीं, हेमाभांगरुचिं शषंकमुकुटां स्रक चम्पकस्त्रग्युताम्,
हस्तैमुद्गर, पाषबद्धरसनां संविभृतीं भूषणैव्यप्तिांगी बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तये ।
ऊँ मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेदीं, सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरणमाल्यविभूषितांगी देवीं भजामि धृतमुदग्रवैरिजिव्हाम्।।1।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवी, वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढयां द्विभुजां भजामि।। 2।।
चलत्कनककुण्डलोल्लसित चारु गण्डस्थलां, लसत्कनकचम्पकद्युतिमदिन्दुबिम्बाननाम्।।
गदाहतविपक्षकांकलितलोलजिह्वाचंलाम्। स्मरामि बगलामुखीं विमुखवांगमनस्स्तंभिनीम्।। 3।।
पीयूषोदधिमध्यचारुविलसद्रक्तोत्पले मण्डपे, सत्सिहासनमौलिपातितरिपुं प्रेतासनाध् यासिनीम्।
स्वर्णाभांकरपीडितारिरसनां भ्राम्य˜दां विभ्रमामित्थं ध्यायति यान्ति तस्य विलयं सद्योऽथ सर्वापदः।। 4।।
देवि त्वच्चरणाम्बुजार्चनकृते यः पीतपुष्पान्जलीन् । भक्तया वामकरे निधाय च मनुम्मन्त्री मनोज्ञाक्षरम्।
पीठध्यानपरोऽथ कुम्भकवषाद्वीजं स्मरेत् पार्थिवः। तस्यामित्रमुखस्य वाचि हृदये जाडयं भवेत् तत्क्षणात्।। 5।।
वादी मूकति रंकति क्षितिपतिवैष्वानरः शीतति। क्रोधी शाम्यति दुज्र्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खंजति।।
गर्वी खर्वति सर्वविच्च जडति त्वद्यन्त्रणायंत्रितः। श्रीनित्ये बगलामुखी प्रतिदिनं कल्याणि तुभ्यं नमः।। 6।।
मन्त्रस्तावदलं विपक्षदलनं स्तोत्रं पवित्रं च ते, यन्त्रं वादिनियन्त्रणं त्रिजगतां जैत्रं च चित्रं च ते।
मातः श्रीबगलेतिनामललितं यस्यास्ति जन्तोर्मुखे, त्वन्नामग्रहणेन संसदि मुखस्तम्भे भवेद्वादिनाम्।। 7।।
दष्टु स्तम्भ्नमगु विघ्नषमन दारिद्रयविद्रावणम भूभषमनं चलन्मृगदृषान्चेतः समाकर्षणम्।
सौभाग्यैकनिकेतनं समदृषां कारुण्यपूर्णाऽमृतम्, मृत्योर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपुः।। 8।।
मातर्भन्जय मे विपक्षवदनं जिव्हां च संकीलय, ब्राह्मीं मुद्रय नाषयाषुधिषणामुग्रांगतिं स्तम्भय।
शत्रूंश्रूचर्णय देवि तीक्ष्णगदया गौरागिं पीताम्बरे, विघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारूण्यपूर्णेक्षणे।। 9।।
मातभैरवि भद्रकालि विजये वाराहि विष्वाश्रये। श्रीविद्ये समये महेषि बगले कामेषि रामे रमे।।
मातंगि त्रिपुरे परात्परतरे स्वर्गापवगप्रदे। दासोऽहं शरणागतः करुणया विष्वेष्वरि त्राहिमाम्।। 10।।
सरम्भे चैरसंघे प्रहरणसमये बन्धने वारिमध् ये, विद्यावादे विवादे प्रकुपितनृपतौ दिव्यकाले निषायाम्।
वष्ये वा स्तम्भने वा रिपुबधसमये निर्जने वा वने वा, गच्छस्तिष्ठंस्त्रिकालं यदि पठति षिवं प्राप्नुयादाषुधीरः।। 11।।
त्वं विद्या परमा त्रिलोकजननी विघ्नौघसिंच्छेदिनी योषाकर्षणकारिणी त्रिजगतामानन्द सम्वध्र्नी ।
दुष्टोच्चाटनकारिणीजनमनस्संमोहसंदायिनी, जिव्हाकीलनभैरवि! विजयते ब्रह्मादिमन्त्रो यथा।। 12।।
विद्याः लक्ष्मीः सर्वसौभाग्यमायुः पुत्रैः पौत्रैः सर्व साम्राज्यसिद्धिः।
मानं भोगो वष्यमारोग्य सौख्यं, प्राप्तं तत्तद्भूतलेऽस्मिन्नरेण।। 13।।
यत्कृतं जपसन्नाहं गदितं परमेष्वरि।। दुष्टानां निग्रहार्थाय तद्गृहाण नमोऽस्तुते।। 14।।
ब्रह्मास्त्रमिति विख्यातं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्। गुरुभक्ताय दातव्यं न दे्यं यस्य कस्यचित्।। 15।।
पीतांबरा च द्वि-भुजां, त्रि-नेत्रां गात्र कोमलाम्। षिला-मुद्गर हस्तां च स्मरेत् तां बगलामुखीम्।। 16।।
नित्यं स्तोत्रमिदं पवित्रमहि यो देव्याः पठत्यादराद्- धृत्वा यन्त्रमिदं तथैव समरे बाहौ करे वा गले।
राजानोऽप्यरयो मदान्धकरिणः सर्पाः मृगेन्द्रादिका- स्तेवैयान्ति विमोहिता रिपुगणाः लक्ष्मीः स्थिरासिद्धयः।। 17।।
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श्री बगलामुखी कवच
ध्यान
सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीताशुकोल्लासिनीम्
हेमाभांगरुचिं शशांकमुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुदगर पाशवज्ररसनाः संबिभ्रतीं भूषणैः
व्याप्तागीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत्
विनियोगः
ॐ अस्य श्रीबगलामुखीब्रह्मास्त्रमन्त्रकवचस्य भैरव ऋषिः,
विराट् छन्दः श्रीबगलामुखी देवता, क्लीं बीजम्, ऐं शक्तिः, श्रीं कीलकं, मम परस्य च मनोभिलाषितेष्टकार्यसिद्धये विनियोगः
न्यास
शिरसि भैरव ऋषये नमः
मुखे विराट छन्दसे नमः
हृदि बगलामुखीदेवतायै नमः
गुह्ये क्लीं बीजाय नमः
पादयो ऐं शक्तये नमः
सर्वांगे श्रीं कीलकाय नमः
ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः
ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः
ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः
ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः
ॐ ह्रां हृदयाय नमः
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्
ॐ ह्रैं कवचाय हुं
ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्
ॐ ह्रः अस्त्राय फट्
मन्त्रोद्धारः
ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय
मामैश्वर्याणि देहि देहि, शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय
साधय ह्रीं स्वाहा.
कवच
शिरो मे पातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातु ललाटकम् ।
सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्री बगलानने ।।१।।
श्रुतौ मम् रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् ।
पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।।२।।
देहि द्वन्द्वं सदा जिहवां पातु शीघ्रं वचो मम ।
कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।।३।।
कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम ।
मायायुक्ता यथा स्वाहा हृदयं पातु सर्वदा ।।४।।
अष्टाधिक-चत्वारिंश-दण्डाढया बगलामुखी ।
रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम ।।५।।
ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु ।
मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।।६।।
ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगला-अवतु ।
मुखि-वर्णद्वयं पातु लिगं मे मुष्क-युग्मकम् ।।७।।
जानुनी सर्व-दुष्टानां पातु मे वर्ण-पञ्चकम् ।
वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी ।।८।।
जंघायुग्मे सदापातु बगला रिपुमोहिनी ।
स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रय मम ।।९।।
जिहवा-वर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च ।
पादोर्ध्वं सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ।।१०।।
विनाशयपदं पातु पादांगुर्ल्योनखानि मे ।
ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।।११।।
सर्वागं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मे-अवतु ।
ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।।१२।।
माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसे-अवतु ।
कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।।१३।।
वाराही च उत्तरे पातु नारसिंही शिवे-अवतु ।
ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदा-अवतु ।।१४।।
इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः ।
राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः ।।१५।।
श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदा-अवतु ।
द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः ।।१६।।
योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम ।
फलश्रुति
इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।।१७।।
श्रीविश्वविजयं नाम कीर्तिश्रीविजयप्रदाम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं धीरं शूरं शतायुषम् ।।१८।।
निर्धनो धनमाप्नोति कवचास्यास्य पाठतः ।
जपित्वा मन्त्रराजं तु ध्यात्वा श्री बगलामुखीम् ।।१९।।
पठेदिदं हि कवचं निशायां नियमात् तु यः ।
यद् यत् कामयते कामं साध्यासाध्ये महीतले ।।२०।।
तत् तत् काममवाप्नोति सप्तरात्रेण शंकरि ।
गुरुं ध्यात्वा सुरां पीत्वा रात्रो शक्तिसमन्वितः ।।२१।।
कवचं यः पठेद् देवि तस्यासाध्यं न किञ्चन ।
यं ध्यात्वा प्रजपेन्मन्त्रं सहस्त्रं कवचं पठेत् ।।२२।।
त्रिरात्रेण वशं याति मृत्योः तन्नात्र संशयः ।
लिखित्वा प्रतिमां शत्रोः सतालेन हरिद्रया ।।२३।।
लिखित्वा हृदि तन्नाम तं ध्यात्वा प्रजपेन् मनुम् ।
एकविंशददिनं यावत् प्रत्यहं च सहस्त्रकम् ।।२४।।
जपत्वा पठेत् तु कवचं चतुर्विंशतिवारकम् ।
संस्तम्भं जायते शत्रोर्नात्र कार्या विचारण् ।।२५।।
विवादे विजयं तस्य संग्रामे जयमाप्नुयात् ।
श्मशाने च भयं नास्ति कवचस्य प्रभावतः ।।२६।।
नवनीतं चाभिमन्त्रय स्त्रीणां दद्यान्महेश्र्वरि ।
वन्ध्यायां जायते पुत्रो विद्याबलसमन्वितः ।।२७।।
श्मशानांगारमादाय भौमे रात्रौ शनावथ ।
पादोदकेन स्पृष्ट्वा च लिखेत् लोहशलाकया ।।२८।।
भूमौ शत्रोः स्वरुपं च हृदि नाम समालिखेत् ।
हस्तं तद्धृदये दत्वा कवचं तिथिवारकम् ।।२९।।
ध्यात्वा जपेन् मन्त्रराजं नवरात्रं प्रयत्नतः ।
म्रियते ज्वरदाहेन दशमेंऽहनि न संशयः ।।३०।।
भूर्जपत्रेष्विदं स्तोत्रमष्टगन्धेन संलिखेत् ।
धारयेद् दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा ।।३१।।
संग्रामे जयमप्नोति नारी पुत्रवती भवेत् ।
सम्पूज्य कवचं नित्यं पूजायाः फलमालभेत् ।।३२।।
ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि नैव कृन्तन्ति तं जनम् ।
वृहस्पतिसमो वापि विभवे धनदोपमः ।।३३।।
कामतुल्यश्च नारीणां शत्रूणां च यमोपमः ।
कवितालहरी तस्य भवेद् गंगाप्रवाहवत् ।।३४।।
गद्यपद्यमयी वाणी भवेद् देवी प्रसादतः ।
एकादशशतं यावत् पुरश्चरणमुच्यते ।।३५।।
पुरश्चर्याविहीनं तु न चेदं फलदायकम् ।
न देयं परशिष्येभ्यो दुष्टेभ्यश्च विशेषतः ।।३६।।
देयं शिष्याय भक्ताय पञ्चत्वं चान्यथा-अअप्नुयात् ।
इदं कवचमज्ञात्वा भजेद् यो बगलामुखीम् ।।३७।।
शतकोटिं जपित्वा तु तस्य सिद्धिर्न जायते ।
दाराढयो मनुजोअस्य लक्षजपतः प्राप्नोति सिद्धिं परां ।।३८।।
विद्यां श्रीविजयं तथा सुनियतं धीरं च वीरं वरम् ।
ब्रह्मास्त्राख्यमनुं विलिख्य नितरां भूर्जे-अष्टगन्धेन वै ।।३९।।
धृत्वा राजपुरं व्रजन्ति खलु ते दासोअस्ति तेषां नृपः
इति श्रीविश्वसारोद्धारतन्त्रे पार्वतीश्वरसंवादे
बगलामुखी कवचम् सम्पूर्णम्
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श्री बगलामुखी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम
श्रीगणेशाय नमः ।
नारद उवाच ।
भगवन्देवदेवेश सृष्टिस्थितिलयात्मक ।
शतमष्टोत्तरं नाम्नां बगलाया वदाधुना ॥ १॥
श्रीभगवानुवाच ।
शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।
पीताम्बर्यां महादेव्याः स्तोत्रं पापप्रणाशनम् ॥ २॥
यस्य प्रपठनात्सद्यो वादी मूको भवेत्क्षणात् ।
रिपुणां स्तम्भनं याति सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥ ३॥
विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीपीताम्बराष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, श्रीपीताम्बरा देवता,
श्रीपीताम्बराप्रीतये पाठे विनियोगः ।
ॐ बगला विष्णुवनिता विष्णुशङ्करभामिनी ।
बहुला वेदमाता च महाविष्णुप्रसूरपि ॥ ४॥
महामत्स्या महाकूर्म्मा महावाराहरूपिणी ।
नारसिंहप्रिया रम्या वामना बटुरूपिणी ॥ ५॥
जामदग्न्यस्वरूपा च रामा रामप्रपूजिता ।
कृष्णा कपर्दिनी कृत्या कलहा कलकारिणी ॥ ६॥
बुद्धिरूपा बुद्धभार्या बौद्धपाखण्डखण्डिनी ।
कल्किरूपा कलिहरा कलिदुर्गति नाशिनी ॥ ७॥
कोटिसूर्य्यप्रतीकाशा कोटिकन्दर्पमोहिनी ।
केवला कठिना काली कला कैवल्यदायिनी ॥ ८॥
केशवी केशवाराध्या किशोरी केशवस्तुता ।
रुद्ररूपा रुद्रमूर्ती रुद्राणी रुद्रदेवता ॥ ९॥
नक्षत्ररूपा नक्षत्रा नक्षत्रेशप्रपूजिता ।
नक्षत्रेशप्रिया नित्या नक्षत्रपतिवन्दिता ॥ १०॥
नागिनी नागजननी नागराजप्रवन्दिता ।
नागेश्वरी नागकन्या नागरी च नगात्मजा ॥ ११॥
नगाधिराजतनया नगराजप्रपूजिता ।
नवीना नीरदा पीता श्यामा सौन्दर्य्यकारिणी ॥ १२॥
रक्ता नीला घना शुभ्रा श्वेता सौभाग्यदायिनी ।
सुन्दरी सौभगा सौम्या स्वर्णाभा स्वर्गतिप्रदा ॥ १३॥
रिपुत्रासकरी रेखा शत्रुसंहारकारिणी ।
भामिनी च तथा माया स्तम्भिनी मोहिनी शुभा ॥ १४॥
रागद्वेषकरी रात्री रौरवध्वंसकारिणी ।
यक्षिणी सिद्धनिवहा सिद्धेशा सिद्धिरूपिणी ॥ १५॥
लङ्कापतिध्वंसकरी लङ्केशी रिपुवन्दिता ।
लङ्कानाथकुलहरा महारावणहारिणी ॥ १६॥
देवदानवसिद्धौघपूजिता परमेश्वरी ।
पराणुरूपा परमा परतन्त्रविनाशिनी ॥ १७॥
वरदा वरदाराध्या वरदानपरायणा ।
वरदेशप्रिया वीरा वीरभूषणभूषिता ॥ १८॥
वसुदा बहुदा वाणी ब्रह्मरूपा वरानना ।
बलदा पीतवसना पीतभूषणभूषिता ॥ १९॥
पीतपुष्पप्रिया पीतहारा पीतस्वरूपिणी ।
इति ते कथितं विप्र नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ २०॥
यः पठेत्पाठयेद्वापि शृणुयाद्वा समाहितः ।
तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो याति नैवात्र संशयः ॥ २१॥
प्रभातकाले प्रयतो मनुष्यः पठेत्सुभक्त्या परिचिन्त्य पीताम् ।
द्रुतं भवेत्तस्य समस्तबुद्धिर्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः ॥ २२॥
॥ इति श्रीविष्णुयामले नारदविष्णुसंवादे श्रीबगलाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥
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नमो महाविधा बरदा , बगलामुखी दयाल |
स्तम्भन क्षण में करे , सुमरित अरिकुल काल ||
चौपाई
नमो नमो पीताम्बरा भवानी , बगलामुखी नमो कल्यानी | १|
भक्त वत्सला शत्रु नशानी , नमो महाविधा वरदानी |२ |
अमृत सागर बीच तुम्हारा , रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा |३ |
स्वर्ण सिंहासन पर आसीना , पीताम्बर अति दिव्य नवीना |४ |
स्वर्णभूषण सुन्दर धारे , सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे |५ |
तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मुद्गर पाश कराला |६ |
भैरव करे सदा सेवकाई , सिद्ध काम सब विघ्न नसाई |७ |
तुम हताश का निपट सहारा , करे अकिंचन अरिकल धारा |८ |
तुम काली तारा भुवनेशी ,त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी |९ |
छिन्नभाल धूमा मातंगी , गायत्री तुम बगला रंगी |१० |
सकल शक्तियाँ तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे |११ |
दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन |१२ |
दुष्टोच्चाटन कारक माता , अरि जिव्हा कीलक सघाता |१३ |
साधक के विपति की त्राता , नमो महामाया प्रख्याता |१४ |
मुद्गर शिला लिये अति भारी , प्रेतासन पर किये सवारी |१५ |
तीन लोक दस दिशा भवानी , बिचरहु तुम हित कल्यानी |१६ |
अरि अरिष्ट सोचे जो जन को , बुध्दि नाशकर कीलक तन को |१७ |
हाथ पांव बाँधहु तुम ताके,हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके |१८ |
चोरो का जब संकट आवे , रण में रिपुओं से घिर जावे |१९ |
अनल अनिल बिप्लव घहरावे , वाद विवाद न निर्णय पावे |२० |
मूठ आदि अभिचारण संकट . राजभीति आपत्ति सन्निकट |२१ |
ध्यान करत सब कष्ट नसावे , भूत प्रेत न बाधा आवे |२२ |
सुमरित राजव्दार बंध जावे ,सभा बीच स्तम्भवन छावे |२३ |
नाग सर्प ब्रर्चिश्रकादि भयंकर , खल विहंग भागहिं सब सत्वर |२४ |
सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मूलच्चाटन कारी |२५ |
स्त्री पुरुष राज सम्मोहक , नमो नमो पीताम्बर सोहक |२६ |
तुमको सदा कुबेर मनावे , श्री समृद्धि सुयश नित गावें |२७ |
शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता , दुःख दारिद्र विनाशक माता |२८ |
यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता , शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता | २९ |
पीताम्बरा नमो कल्यानी , नमो माता बगला महारानी |३०|
जो तुमको सुमरै चितलाई ,योग क्षेम से करो सहाई |३१ |
आपत्ति जन की तुरत निवारो , आधि व्याधि संकट सब टारो |३२ |
पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूँ निहोरी |३३ |
मैं कुपुत्र अति निवल उपाया , हाथ जोड़ शरणागत आया |३४ |
जग में केवल तुम्हीं सहारा, सारे संकट करहुँ निवारा |३५|
नमो महादेवी हे माता , पीताम्बरा नमो सुखदाता |३६ |
सोम्य रूप धर बनती माता , सुख सम्पत्ति सुयश की दाता |३७ |
रोद्र रूप धर शत्रु संहारो , अरि जिव्हा में मुद्गर मारो |३८|
नमो महाविधा आगारा,आदि शक्ति सुन्दरी आपारा |३९ |
अरि भंजक विपत्ति की त्राता , दया करो पीताम्बरी माता | ४० |
दोहा
रिद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं , अरि समूल कुल काल |
मेरी सब बाधा हरो , माँ बगले तत्काल ||
बगुलामुखी यन्त्र
आज के इस भागदौड़ के युग में श्री बगलामुखी यंत्र की साधना अन्य किसी भी साधना से अधिक उपयोगी है। यह एक परीक्षित और अनुभवसिद्ध तथ्य है। इसे गले में पहनने के साथ-साथ पूजा घर में भी रख सकते हैं। इस यंत्र की पूजा पीले दाने, पीले वस्त्र, पीले आसन पर बैठकर निम्न मंत्र को प्रतिदिन जप करते हुए करनी चाहिए। अपनी सफलता के लिए कोई भी व्यक्ति इस यंत्र का उपयोग कर सकता है। इसका वास्तविक रूप में प्रयोग किया गया है। इसे अच्छी तरह से अनेक लोगों पर उपयोग करके देखा गया है।
शास्त्रानुसार और वरिष्ठ साधकों के अनुभव के अनुसार जिस घर में यह महायंत्र स्थापित होता है, उस घर पर कभी भी शत्रु या किसी भी प्रकार की विपत्ति हावी नहीं हो सकती। न उस घर के किसी सदस्य पर आक्रमण हो सकता है, न ही उस परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो सकती है। इसीलिए इसे महायंत्र की संज्ञा दी गई है। इससे दृश्य/अदृश्य बाधाएं समाप्त होती हैं। यह यंत्र अपनी पूर्ण प्रखरता से प्रभाव दिखाता है। उसके शारीरिक और मानसिक रोगों तथा ऋण, दरिद्रता आदि से उसे मुक्ति मिल जाती है। वहीं उसकी पत्नी और पुत्र सही मार्ग पर आकर उसकी सहायता करते हैं। उसके विश्वासघाती मित्र और व्यापार में साझीदार उसके अनुकूल हो जाते हैं।
शत्रुओं के शमन (चाहे बाहरी हो या घरेलू कलह , दरिद्रता या शराब / नशे व्यसन रूप में भीतरी शत्रु ),रोजगार या व्यापार आदि में आनेवाली बाधाओं से मुक्ति, मुकदमे में सफलता के लिए , टोने टोटकों के प्रभाव से बचाव आदि के लिए किसी साधक के द्वारा सिद्ध मुहूर्त में निर्मित, बगलामुखी तंत्र से अभिसिंचित तथा प्राण प्रतिष्ठित श्री बगलामुखी यंत्र घर में स्थापित करना चाहिए या कवच रूप में धारण करना चाहिए।
बगलामुखी हवन
१) वशीकरण : मधु, घी और शर्करा मिश्रित तिल से किया जाने वाला हवन (होम) मनुष्यों को वश में करने वाला माना गया है। यह हवन आकर्षण बढ़ाता है।
२) विद्वेषण : तेल से सिक्त नीम के पत्तों से किया जाने वाला हवन विद्वेष दूर करता है।
३) शत्रु नाश : रात्रि में श्मशान की अग्नि में कोयले, घर के धूम, राई और माहिष गुग्गल के होम से शत्रु का शमन होता है।
४) उच्चाटन : गिद्ध तथा कौए के पंख, कड़वे तेल, बहेड़े, घर के धूम और चिता की अग्नि से होम करने से साधक के शत्रुओं को उच्चाटन लग जाता है।
५) रोग नाश : दूब, गुरुच और लावा को मधु, घी और शक्कर के साथ मिलाकर होम करने पर साधक सभी रोगों को मात्र देखकर दूर कर देता है।
६ ) मनोकामना पूर्ति : कामनाओं की सिद्धि के लिए पर्वत पर, महावन में, नदी के तट पर या शिवालय में एक लाख जप करें।
७) विष नाश / स्तम्भन :
एक रंग की गाय के दूध में मधु और शक्कर मिलाकर उसे तीन सौ मंत्रांे से अभिमंत्रित करके पीने से सभी विषों की शक्ति समाप्त हो जाती है और साधक शत्रुओं की शक्ति तथा बुद्धि का स्तम्भन करने में सक्षम होता है।
अन्य किसी जानकारी , समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
जय माँ पीताम्बरा
।।जय श्री राम।।
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