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Saturday, 21 March 2015

Mantra Importance and method / मंत्र महत्व


मंत्रविद्या असम्भव को सम्भव बनाती हैं मंत्र चिकित्सा अध्यात्म विद्या का महत्त्वपूर्ण आयाम है। इसके द्वारा असाध्य रोगों को ठीक किया जा सकता है। कठिनतम परिस्थितियों पर विजय पायी जा सकती है। व्यक्तित्व की कैसी भी विकृतियाँ व अवरोध दूर किये जा सकते हैं। अनुभव कहता है कि मंत्र विद्या से असम्भव- सम्भव बनता है, असाध्य सहज साध्य होता है। जो इस विद्या के सिद्धान्त एवं प्रयोगों से परिचित हैं वे प्रकृति की शक्तियों को मनोनुकूल मोड़ने में समर्थ होते हैं। प्रारब्ध उनके वशवर्ती होता है। जीवन की कर्मधाराएँ उनकी इच्छित दिशा में मुड़ने और प्रवाहित होने के लिए विवश होती हैं। इन पंक्तियों को पाठक अतिशयोक्ति समझने की भूल न करें। बल्कि इसे विशिष्ट साधकों की कठिन साधना का सार निष्कर्ष मानें।
मंत्र है क्या? तो इसके उत्तर में कहेंगे- ‘मननात् त्रायते इति मंत्रः’ जिसके मनन से त्राण मिले। यह अक्षरों का ऐसा दुर्लभ एवं विशिष्ट संयोग है, जो चेतना जगत् को आन्दोलित एवं उद्वेलित करने में सक्षम होता है। कई बार बुद्धिशील व्यक्ति मंत्र को पवित्र विचार के रूप मं परिभाषित करते हैं। उनका ऐसा कहना- मानना गलत नहीं है।
उदाहरण के लिए गायत्री महामंत्र सृष्टि का सबसे पवित्र विचार है। इसमें परमात्मा से सभी के लिए सद्बुद्धि एवं सन्मार्ग की प्रार्थना की गयी है। लेकिन इसके बावजूद इस परिभाषा की सीमाएँ सँकरी हैं। इसमें मंत्र के सभी आयाम नहीं समा सकते। मंत्र का कोई अर्थ हो भी सकता है और नहीं भी। यह एक पवित्र विचार हो भी सकता है और नहीं भी। कई बार इसके अक्षरों का संयोजन इस रीति से होता है कि उससे कोई अर्थ प्रकट होता है और कई बार यह संयोजन इतना अटपटा होता है कि इसका कोई अर्थ नहीं खोजा जा सकता।
दरअसल मंत्र की संरचना किसी विशेष अर्थ या विचार को ध्यान में रख कर की नहीं जाती। इसका तो एक ही मतलब है- ब्रह्माण्डीय ऊर्जा की किसी विशेष धारा से सम्पर्क, आकर्षण, धारण और उसके सार्थक नियोजन की विधि का विकास है। मंत्र कोई भी हो वैदिक अथवा पौराणिक या फिर तांत्रिक इसी विधि के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इस क्रम में यह भी ध्यान रखने की बात है कि मंत्र की संरचना या निर्माण कोई बौद्धिक क्रियाकलाप नहीं है। कोई भी व्यक्ति भले ही कितना भी प्रतिभावान् या बुद्धिमान क्यों न हो, वह मंत्रों की संरचना नहीं कर सकता। यह तो तप साधना के शिखर पर पहुँचे सूक्ष्म दृष्टाओं व दिव्यदर्शियों का काम है।
ये महासाधक अपनी साधना के माध्यम से ब्रह्माण्डीय ऊर्जा की विभिन्न व विशिष्ट धाराओं को देखते हैं। इनकी अधिष्ठातृ शक्तियाँ जिन्हें देवी या देवता कहा जाता है, उन्हें प्रत्यक्ष करते हैं। इस प्रत्यक्ष के प्रतिबिम्ब के रूप में मंत्र का संयोजन उनकी भावचेतना में प्रकट होता है। इसे ऊर्जाधारा या देवशक्ति का शब्द रूप भी कह सकते हैं।
मंत्र विद्या में इसे देव शक्ति का मूल मंत्र कहते हैं। इस देवशक्ति के ऊर्जा अंश के किस आयाम को और किस प्रयोजन के लिए ग्रहण- धारण करना है उसी के अनुरूप इस देवता के अन्य मंत्रों का विकास होता है। यही कारण है कि एक देवता या देवी के अनेकों मंत्र होते हैं। यथार्थ में इनमें से प्रत्येक मंत्र अपने विशिष्ट प्रयोजन को सिद्ध व सार्थक करने में समर्थ होते हैं।
प्रक्रिया की दृष्टि से तो मंत्र की कार्यशैली अद्भुत है। इसकी साधना का एक विशिष्ट क्रम पूरा होते ही यह साधक की चेतना का सम्पर्क ब्रह्माण्ड की विशिष्ट ऊर्जा धारा या देवशक्ति से कर देता है। यह इसके कार्य का एक आयाम है। इसके दूसरे आयाम के रूप में यह साथ ही साथ साधक के अस्तित्व या व्यक्तित्व को उस विशिष्ट ऊर्जाधारा अथवा देव शक्ति के लिए ग्रहणशील बनाता है। इसके लिए मंत्र साधना द्वारा साधक के कतिपय गुह्य केन्द्र जागृत हो जाते हैं। ऐसा होने पर ही वह सूक्ष्म शक्तियों को ग्रहण करने- धारण करने एवं उनका नियोजन करने में समर्थ होता है। ऐसा होने पर ही कहा जाता है कि मंत्र सिद्ध हो गया।
यह मंत्र सिद्धि केवल मंत्र को रटने या दुहराने भर से नहीं मिलती। और यही वजह है कि सालों- साल किसी मंत्र की साधना करने वालों को बुरी तरह से निराश होना पड़ता है। पहले तो उनको कोई फल ही नहीं मिलता और यदि किसी तरह कुछ मिला भी तो वह काफी नगण्य व आधा- अधूरा सा होता है। इस स्थिति के लिए दोष मंत्र का नहीं, स्वयं साधक का है। ध्यान रहे किसी मंत्र की साधना में साधक को मंत्र की प्रकृति के अनुसार अपने जीवन की प्रकृति बनानी पड़ती है।
मंत्र साधना के विधि- विधान के सम्यक् निर्वाह के साथ उसे अपने खानपान, वेश- विन्यास, आचरण- व्यवहार देवता या देवी की प्रकृति के अनुसार ढालना पड़ता है। उदाहरण के लिए कहीं तो श्वेत वस्त्र, श्वेत खानपान आवश्यक होते हैं, तो कहीं यह रंग पीला हो जाता है। आचरण- व्यवहार में भी पवित्रता का सम्यक् समावेश जरूरी है।
यदि सब कुछ सही रीति से निभाया जाय तो मंत्र का सिद्ध होना अनिवार्य है। मंत्र सिद्ध होने का मतलब है कि मंत्र की शक्तियों का साधक की चेतना में क्रियाशील हो जाना। यह स्थिति कुछ इसी तरह से है जैसे कि कोई श्रमशील किसान किसी महानदी से पर्याप्त बड़ी नहर खोदकर उसका पानी अपने खेतों तक ले आये। जेसे नदी से नहर आने पर किसान के समूचे क्षेत्र में जलधाराएँ उफनती- उमड़ती रहती हैं। उसी तरह से मंत्र सिद्ध होने पर देव शक्ति का ऊर्जा प्रवाह हर पल- हर क्षण साधक की अन्तर्चेतना में उफनता- उमड़ता रहता है। इसका वह मनचाहे ढंग से अपने संकल्प के अनुसार नियोजन कर सकता है। मंत्र की शक्ति व प्रकृति के अनुसार वह असाध्य बीमारियों को ठीक कर सकता है।
पश्चिम बंगाल के स्वामी निगमानन्द ऐसे ही मंत्र सिद्ध महात्मा थे। उन्होंने अनेकों मंत्रों- महामंत्रों को सिद्ध किया था। उनकी वाणी, संकल्प, दृष्टि व स्पर्श सभी कुछ चमत्कारी थे। मरणासन्न रोगी उनके संकल्प मात्र से ठीक हो जाते थे। एक बार ये महात्मा सुमेरपुकुर नामके गाँव में गये। साँझ हो चुकी थी, आसमान से अँधियारा झरने लगा था। गाँव के जिस छोर पर वह पहुँचे वहाँ सन्नाटा था। आसपास से गुजरने वाले उदास और मायूस थे। पूछने पर पता चला कि गाँव के सबसे बड़े महाजन ईश्वरधर का सुपुत्र महेन्द्रलाल महीनों से बीमार है। आज तो उसकी स्थिति कुछ ऐसी है कि रात कटना भी मुश्किल है। गाँव के वृद्ध कविराज ने सारी आशाएँ छोड़ दी हैं।
इस सूचना के मिलने पर वह ईश्वरधर के घर गये। घरवालों ने एक संन्यासी को देखकर यह सोचा कि ये भोजन व आश्रय के लिए आये हैं। उन्होंने कहा- महाराज आप हमें क्षमा करें, आज हम आप की सेवा करने में असमर्थ हैं। उनकी ये बातें सुनकर निगमानन्द ने कहा- आप सब चिंता न करें। हम आपके यहाँ सेवा लेने नहीं, बल्कि सेवा देने आये हैं। निगमानन्द की बातों का घर वाले विश्वास तो न कर पाये, किन्तु फिर भी उन्होंने उनकी इच्छा के अनुसार आसन, जलपात्र, पुष्प, धूप आदि लाकर रख दिये। निगमानन्द ने मरणासन्न रोगी के पास आसन बिछाया, धूप जलाई और पवित्रीकरण के साथ आँख बन्द करके बैठ गये। घर के लोगों ने देखा कि उनके होंठ धीरे- धीरे हिल रहे हैं।
थोड़ी देर बाद मरणासन्न महेन्द्रलाल ने आँखें खोल दी। कुछ देर और बीतने पर उसके चेहरे का रंग बदलने लगा। आधा- पौन घण्टे में तो वह उठकर अपने बिछौने पर बैठ गया। और उसने पानी माँग कर पिया। उस रात उसे अच्छी नींद आयी। दूसरे दिन उसने अपनी पसन्द का खाना खाया। इस अनोखे चमत्कार पर सभी चकित थे। गाँव के वृद्ध वैद्य ने पूछा- यह किस औषधि से हो सका। निगमानन्द बोले- वैद्यराज यह औषधि प्रभाव से नहीं मंत्र के प्रभाव से हुआ है। यह जगन्माता के मंत्र का असर है। जब औषधियाँ विफल हो जाती हैं। सारे लौकिक उपाय असफल हो जाते हैं, तब एक मंत्र ही है जो मरणासन्न में जीवन डालता है। मंत्र चिकित्सा कभी भी विफल नहीं होती है। हाँ इसके साथ तप के प्रयोग जुड़े होने चाहिये।
मंत्र जप के प्रभाव~
जब तक किसी विषय वस्तु के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं होती तो व्यक्ति वह कार्य आधे अधूरे मन से करता है और आधे-अधूरे मन से किये कार्य में सफलता नहीं मिल सकती है| मंत्र के बारे में भी पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है, मंत्र केवल शब्द या ध्वनि नहीं है, मंत्र जप में समय, स्थान, दिशा, माला का भी विशिष्ट स्थान है| मंत्र-जप का शारीरिक और मानसिक प्रभाव तीव्र गति से होता है| इन सब प्रश्नों का समाधान आपके लिये -
गुरु दीक्षा
मन्त्र जप या साधना से पूर्व सबसे जरूरी है गुरु के द्वारा दीक्षा। दीक्षा प्राप्त करने से कोई चमत्कार नहीं हो जायेगा अपितु आपको एक अभिभावक मिल जायेगा जो आपको मार्गदर्शन देगा। माला घुमाते रहे और हुआ कुछ नहीं । इस परिस्थिति से बचाएगा। अपने अनुभवों से आपको गलतियां करने से रोकेगा जिससे आपक  सफल होने में समय और मेहनत कम लगेगी।
किसी मंत्र का बार-बार उच्चारण करना ही 'मंत्र-जप' कहलाता है, लेकिन प्रश्न यह उठता है, कि वास्तव में मंत्र जप क्या है? जप से क्या परिणाम होते निकलता है?
व्यक्त-अव्यक्त चेतना
१. व्यक्त चेतना (Conscious mind).
२. अव्यक्त चेतना (Unconscious mind).
हमारा जो जाग्रत मन है, उसी को व्यक्त चेतना कहते हैं| अव्यक्त चेतना में हमारी अतृप्त इच्छाएं, गुप्त भावनाएं इत्यादि विद्यमान हैं| व्यक्त चेतना की अपेक्षा अव्यक्त चेतना अत्यंत शक्तिशाली है| हमारे संस्कार, वासनाएं - ये सब अव्यक्त चेतना में ही स्थित होते हैं|
किसी मंत्र का जब ताप होता है, तब अव्यक्त चेतना पर उसका प्रभाव पड़ता है| मंत्र में एक लय (Rythm) होता है, उस मंत्र ध्वनि का प्रभाव अव्यक्त चेतना को स्पन्दित करता है| मंत्र जप से मस्तिष्क की सभी नाड़ियों में चैतन्यता का प्रादुर्भाव होने लगता है और मन की चंचलता कम होने लगाती है|
मंत्र जप के माध्यम से दो तरह के प्रभाव उत्पन्न होते हैं -
१. मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Psychological effect)
२. ध्वनि प्रभाव (Sound effect)
मनोवैज्ञानिक प्रभाव तथा ध्वनि प्रभाव के समन्वय से एकाग्रता बढ़ती है और एकाग्रता बढ़ने से इष्ट सिद्धि का फल मिलता ही है| मंत्र जप का मतलब है इच्छा शक्ति को तीव्र बनाना| इच्छा शक्ति की तीव्रता से क्रिया शक्ति भी तीव्र बन जाति है, जिसके परिणाम स्वरुप इष्ट का दर्शन या मनोवांछित फल प्राप्त होता ही है| मंत्र अचूक होते हैं तथा शीघ्र फलदायक भी होते हैं|
मंत्र जप और स्वास्थ्य :-
लगातार मंत्र जप करने से उछ रक्तचाप, गलत धारणायें, गंदे विचार आदि समाप्त हो जाते हैं|
मंत्र में विद्यमान हर एक बीजाक्षर शरीर की नसों को उद्दिम करता है, इससे शरीर में रक्त संचार सही ढंग से गतिशील रहता है|
"क्लीं ह्रीं" इत्यादि बीजाक्षरों का एक लयात्मक पद्धति से उच्चारण करने पर ह्रदय तथा फेफड़ों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है व् उनके विकार नष्ट होते हैं|
जप के लिये ब्रह्म मुहूर्त को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उस समय पूरा वातावरण शान्ति पूर्ण रहता है, किसी भी प्रकार का कोलाहर या शोर नहीं होता| कुछ विशिष्ट साधनाओं के लिये रात्रि का समय अत्यंत प्रभावी होता है| गुरु के निर्देशानुसार निर्दिष्ट समय में ही साधक को जप करना चाहिए| सही समय पर सही ढंग से किया हुआ जप अवश्य ही फलप्रद होता है|
अपूर्व आभा :- मंत्र जप करने वाले साधक के चेहरे से एक अपूर्व आभा आ जाति है| आयुर्वेद की दृष्टि से देखा जाय, तो जब शरीर शुद्ध और स्वास्थ होगा, शरीर स्थित सभी संस्थान सुचारू रूप से कार्य करेंगे, तो इसके परिणाम स्वरुप मुखमंडल में नवीन कांति का प्रादुर्भाव होगा ही|
जप माला :- जप करने के लिए माला एक साधन है| शिव या काली के लिए रुद्राक्ष माला, हनुमान के लिए मूंगा माला, लक्ष्मी के लिए कमलगट्टे की माला, गुरु के लिए स्फटिक माला - इस प्रकार विभिन्न मंत्रो के लिए विभिन्न मालाओं का उपयोग करना पड़ता है|
मानव शरीर में हमेशा विद्युत् का संचार होता रहता है| यह विद्युत् हाथ की उँगलियों में तीव्र होता है| इन उँगलियों के बीच जब माला फेरी जाती है, तो लयात्मक मंत्र ध्वनि (Rythmic sound of the Hymn) तथा उँगलियों में माला का भ्रमण दोनों के समन्वय से नूतन ऊर्जा का प्रादुर्भाव होता है|
जप माला के स्पर्श (जप के समय में) से कई लाभ हैं -
* रुद्राक्ष से कई प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं|
* कमलगट्टे की माला से शीतलता एव आनंद की प्राप्ति होती है|
* स्फटिक माला से मन को अपूर्व शान्ति मिलती है|
दिशा :- दिशा को भी मंत्र जप में आत्याधिक महत्त्व दिया गया है| प्रत्येक दिशा में एक विशेष प्रकार की तरंगे (Vibrations) प्रवाहित होती रहती है| सही दिशा के चयन से शीघ्र ही सफलता प्राप्त होती है|
जप-तप :- जप में तब पूर्णता आ जाती है, पराकाष्टा की स्थिति आ जाती है, उस 'तप' कहते हैं| जप में एक लय होता है| लय का सरथ है ध्वनि के खण्ड| दो ध्वनि खण्डों की बीच में निःशब्दता है|  इस  निःशब्दता पर मन केन्द्रित करने की जो कला है, उसे तप कहते हैं| जब साधक तप की श्तिति को प्राप्त करता है, तो उसके समक्ष सृष्टि के सारे रहस्य अपने आप अभिव्यक्त हो जाते हैं| तपस्या में परिणति प्राप्त करने पर धीरे-धीरे हृदयगत अव्यक्त नाद सुनाई देने लगता है, तब वह साधक उच्चकोटि का योगी बन जाता है| ऐसा साधक गृहस्थ भी हो सकता है और संन्यासी भी|
कर्म विध्वंस :- मनुष्य को अपने जीवन में जो दुःख, कष्ट, दारिद्य, पीड़ा, समस्याएं आदि भोगनी पड़ती हैं, उसका कारण प्रारब्ध है| जप के माध्यम से प्रारब्ध को नष्ट किया जा सकता है और जीवन में सभी दुखों का नाश कर, इच्छाओं को पूर्ण किया जा सकता है, इष्ट देवी या देवता का दर्शन प्राप्त किया जा सकता है|
गुरु उपदेश :- मंत्र को सदगुरू के माध्यम से ही ग्रहण करना उचित होता है| सदगुरू ही सही रास्ता दिखा सकते हैं, मंत्र का उच्चारण, जप संख्या, बारीकियां समझा सकते हैं, और साधना काल में विपरीत परिश्तिती आने पर साधक की रक्षा कर सकते हैं|
साधक की प्राथमिक अवशता में सफलता व् साधना की पूर्णता मात्र सदगुरू की शक्ति के माध्यम से ही प्राप्त होती है| यदि साधक द्वारा अनेक बार साधना करने पर भी सफलता प्राप्त न हो, तो सदगुरू विशेष शक्तिपात द्वारा उसे सफलता की मंजिल तक पहुंचा देते हैं|
इस प्रकार मंत्र जप के माध्यम से जीवन के दुखों को मिटाया जा सकता है तथा अदभुद आनन्द, असीम शान्ति व् पूर्णता को प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि मंत्र जप का अर्थ मंत्र कुछ शब्दों को रटना नहीं है, अपितु मंत्र जप का अर्थ है - जीवन को पूर्ण बनाना ।
अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान, कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।  
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Wednesday, 18 March 2015

तंत्रोक्त सामग्री से व्यापर वृद्धि के कुछ सरल प्रयोग (नवरात्री विशेष) / Business growth By Tantra articles

 तंत्रोक्त सामग्री  से व्यापर वृद्धि के कुछ सरल प्रयोग (नवरात्री विशेष) 

A - गोमती चक्र

1. अगर किसी का व्यापार न चल रहा हो या व्यापार को कोई नजर लग गई हो या व्यापार में कोई परेशानी बार बार आ रही हो तो अपने व्यापार कि चोखट पर ११  गोमती चक्र एवं ३ लघु नारियल सिद्ध करके शुभ महुर्त में किसी लाल कपड़े में बांध कर टांग दें व् उस पर लाल कामिया सिंदूर का तिलक कर दें ध्यान रखे ग्राहक उस के निचे से निकले बस कुछ ही दिनों में आप का व्यापार तरकी पर होगा

2.  व्यवसाय स्थान पर पीतल के लोटे में जल रखा जाये और साथ गोमती चक्र उसके अन्दर डालकर खुला रखा जाये तथा जिस स्थान पर व्यापारी की बैठक है उसके दक्षिण-पश्चिम दिशा में इसे ऊपर की तरफ़ स्थापित करने के बाद रखा जाये सुबह को उस लोटे से सभी गोमती चक्र को निकाल कर उस पानी को व्यसाय स्थान के बाहर छिडक दिया जाये और नया पानी भरकर फ़िर से गोमती चक्र डालकर रख दिया जाये तो व्यवसाय में बारह दिन के अन्दर ही फ़र्क मिलना शुरु हो जाता है।

3.  व्यापर स्थान पर ग्यारह सिद्ध  गोमती चक्र और एक ९ मुखी रुद्राक्ष  लाल कपड़े में बांध कर धन रखने वाले स्थान पर रख दे तो व्यापर में बढ़ोतरी होती जाएगी।


B - हत्था जोड़ी   

प्राण प्रतिष्ठित की हुई हत्था जोड़ी लेकर मंगलवार के दिन लाल सिंदूर में डालकर पूजा स्थल पर रख दें. और प्रतिदिन संध्या में  घी का दीपक जलाकर इस मंत्र का जाप करें. व्यापारी अपने तिजोरी में रखें।
मंत्र - ह्रीं ऐश्वर्य श्रीं धन धान्याधिपत्यै ऐं पूर्णत्य
लक्ष्मी सिद्धये नमः।

C - सियार सिंगी 

सिद्ध सियार सिंगी के जोड़े को व्यापर स्थल में स्थापित करने से समुचित धन लाभ होता है किन्तु ये व्यक्ति की गृह दशा से भी प्रभावित होती है और ऐसे में कभी कभी लाभ नहीं देती।  
यदि ऐसा हो तो सियार सिंगी को शमी और नागदोन की जड़ के साथ व्यापर स्थल में स्थापित करें।  नित्य धूप दें।  कुछ ही दिनों में असर दिखने लगेगा। 

D- इंद्रजाल 

दुकान व्यापार स्थल के दक्षिण दिशा में लगाने से व्यापार में उन्नति होती है और दुश्मनों प्रतिद्वंदियों द्वारा किये कराये के असर से बचाव होता है।

E- मोती शंख 

-  किसी शुभ नक्षत्र या दीपावली में  मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज
श्री महालक्ष्मै नम: 
108 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक करें। बाद में शंख और चावल एक लाल कपड़े की पोटली बनाकर तिजोरी या रूपये गहने आदि रखने के स्थान पर रख दें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।

F- सहदेवी 

. धन-धान्य-व्यापार वृद्धि के लिए :-
A.  विधिवत सिद्ध की हुई जड़ को लाल वस्त्र में लपेट कर तिजोरी मे रखने से अभीष्ट धन-वृद्धि होती है l
B . दुकान या व्यापारिक प्रतिष्ठान के प्रवेश द्वार के ऊपर लाल  वस्त्र में लघु नारियल के साथ अभिमंत्रित कर भीतर की और लटकने से व्यापार में उन्नति होती है।  

G- काली हल्दी 

1 किसी की जन्मपत्रिका में गुरू और शनि पीडि़त है, जिससे धन न रुकता हो या कम धंधा बार बार ठप हो जाता हो तो वह जातक यह उपाय करें- शुक्लपक्ष के प्रथम गुरूवार से नियमित रूप से काली हल्दी पीसकर तिलक लगाने से ये दोनों ग्रह शुभ फल देने लगेंगे।

2 . यदि किसी के पास धन आता तो बहुत है किन्तु टिकता नहीं है, उन्हे यह उपाय अवश्य करना चाहिए। शुक्लपक्ष के प्रथम शुक्रवार को चांदी की डिब्बी में काली हल्दी, नागकेशर व सिन्दूर को साथ में रखकर मां लक्ष्मी के चरणों से स्पर्श करवा कर धन रखने के स्थान पर रख दें। यह उपाय करने से धन रूकने लगेगा।

3 . यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार
ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः
का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है।

4 . यदि आपका व्यवसाय मशीनों से सम्बन्धित है, और आये दिन कोई मॅहगी मशीन आपकी खराब हो जाती है, तो आप काली हल्दी को पीसकर केशर व गंगा जल मिलाकर प्रथम बुधवार को उस मशीन पर स्वास्तिक बना दें। यह उपाय करने से मशीन जल्दी खराब नहीं होगी।

H- दक्षिणावर्ती शंख

- विधिवत सिद्ध दक्षिणावर्ती शंख को व्यापारिक संसथान में स्थापित करने से ग्राहकों की कभी कमी नहीं होती और व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता है।

- इसमें रात्रि में गंगाजल मिश्रित दूध भर कर सुबह व्यापारिक प्रतिष्ठान में बाहर से भीतर की ओर छिड़कते हुए जाने से धंधे को किसी भी पडोसी या प्रतिद्वंदी की नज़र नहीं लगती, किसी भी प्रकार का तंत्र मंत्र द्वारा किया गया व्यापार बंध निष्फल हो जाता है।

I - डाब / कुश का बाँदा
किसी शुभ नक्षत्र या विशेषतः भरणी नक्षत्र में इसे प्राप्त कर विधि विधान श्री सुक्त या लक्ष्मी मंत्र से पूजन कर घर की या दुकान की तिजोरी में रखने से दुकान के द्वार के भीतरी ओर लटकाने से धन में वृद्धि होती है ग्राहकों का आवक बनी रहती है और धन चक्र उत्तम गति से चलता है।

J- श्वेतार्क गणपति

जिनके पास धन न रूकता हो या कमाया हुआ पैसा उल्टे सीधे कामोँ मेँ जाता हो उन्हेँ अपने घर मेँ श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए।

जो लोग कर्ज मेँ डूबे हैँ उनके लिए कर्ज मुक्ति का इससे सरल अन्य कोई उपाय नही है।

दुकान में अलमारी या गल्ले में रखने से धनागम सुचारू रूप से चलता रहता है और व्यापर में न तो मंदी आती है न किसी विरोधी की बुरी नज़र या किये कराये का असर होता है।

K- जल कुम्भी 

यदि व्यापर मंदा हो तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को जल कुम्भी (तालाबों में उगने वाली बेल) करीब डेढ़ फुट लम्बी लाकर स्वछ जल से धोकर एक चौकी पर पिला वस्त्र बिछकर  स्थापित करे। लक्ष्मी स्वरुप मानकर उसका विधिवत पूजन करे चन्दन रोली अर्पित करें अक्षत चढ़ाएं लौंग  इलायची चढ़ाएं और सवा पाव चावल , ३ हल्दी की गांठ और  7  कमल गट्टे के बीज की ढेरी  के साथ लपेट कर उसे उत्तर दिशा में लटका दें।  नित्य धुप दें परन्तु बार बार खोलकर न देखे। 
कुछ ही दिनों में आर्थिक स्थिरता आने लगेगी. 

L - नवग्रह की समिधा 
     नवग्रह की स्समिधा लाकर उनका पूजन कर प्रतेक गृह के बीज मन्त्रों का २१ बार जप करें और उन्हें एक सफ़ेद वस्त्र में लपेट कर अपनी दुकान के मंदिर में स्थापित करें।  इससे यदि ग्रहों के दुष्प्रभाव से व्यापर में मंडी आ रही होगी तो लाभ मिलेगा। 

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान, कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
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व्यापार बन्धन खोलने के कुछ सरल प्रयोग (नवरात्रि विशेष)/ Remedies for Removing Black Magic from Business (Navratri Tantra Special)

कभी-कभी देखने में आता है कि खूब चलती हुईदूकान भी एकदम से ठप्प हो जाती है ।जहाँ पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ती थी, वहाँ सन्नाटापसरने लगता है । यदि किसी चलती हुई दुकान को कोई तांत्रिकबाँध दे, तोऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, अतः इससे बचने के लिए निम्नलिखितप्रयोग करने चाहिए -
१॰ दुकान में लोबान की धूप लगानी चाहिए ।

२॰ शनिवार के दिन दुकान के मुख्य द्वार पर बेदाग नींबू एवं सात हरी मिर्चें लटकानी चाहिए ।

३॰ नागदमन के पौधे की जड़ लाकर इसे दुकान केबाहर लगा देना चाहिए । इससे बँधी हुई दुकान खुल जाती है ।

४॰ दुकान के गल्ले में शुभ-मुहूर्त में एकाक्षी नारियल वस्त्र में लपेटकर रखना चाहिए और नित्य पूजन करना चाहिए।

५॰ प्रतिदिन संध्या के समय दुकान में मातालक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित कर श्री सूक्त का पाठ करना चाहिए ।

६॰ दुकान अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान की दीवारपर शूकर-दंत इस प्रकार लगाना चाहिए कि वह दिखाई देता रहे ।

७॰ व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा दुकान को नजर सेबचाने के लिए काले-घोड़े की नाल को मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर ठोकना चाहिए ।

८॰ दुकान में मोरपंख की झाडू लेकर निम्नलिखितमंत्र के द्वारा सभी दिशाओंमेंझाड़ू को घुमाकर वस्तुओं को साफ करना चाहिए । मंत्रः-“ॐह्रीं ह्रींक्रीं”

९॰ शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सम्मुखमोगरे अथवा चमेली के पुष्प अर्पित करने चाहिए ।

१०॰ यदि आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान में चूहेआदि जानवरों के बिल हों, तोउन्हें बंद करवाकर बुधवार के दिन गणपति को प्रसाद चढ़ाना चाहिए ।
११॰सोमवार के दिन अशोक वृक्ष के अखंडित पत्ते लाकर स्वच्छ जल से धोकरदुकानअथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्यद्वार पर टांगना चाहिए । सूती धागे कोपीसी हल्दी में रंगकर उसमें अशोक के पत्तों को बाँधकर लटकाना चाहिए ।

१२॰ यदि आपको यह शंका हो कि किसी व्यक्ति नेआपके व्यवसाय को बाँध दिया हैयाउसकी नजर आपकी दुकान को लग गई है, तो उस व्यक्तिका नाम काली स्याही सेभोज-पत्रपर लिखकर पीपल वृक्ष के पास भूमि खोदकर दबा देना चाहिए तथा इसप्रयोग को करते समय किसी अन्य व्यक्तिको नहीं बताना चाहिए । यदि पीपल वृक्ष निर्जन स्थान में हो, तो अधिक अनुकूलता रहेगी ।

१३॰ कच्चा सूत लेकर उसे शुद्ध केसर में रंगकरअपनी दुकान पर बाँध देना चाहिए ।

१४॰ हुदहुद पक्षी की कलंगी रविवार के दिनप्रातःकाल दुकान पर लाकर रखने सेव्यवसाय को लगी नजर समाप्त होती है और व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धिहोतीहै ।

१५॰ कभी अचानक ही व्यवसाय में स्थिरता आ गई हो, तो निम्नलिखितमंत्र का प्रतिदिन ग्यारह माला जप करने से व्यवसाय में अपेक्षा केअनुरुपवृद्धि होती है । मंत्रः-“ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्वरीअन्नपूर्णा स्वाहा ।”

१६॰ यदि कोई शत्रु आपसी जलन या द्वेष, व्यापारिकप्रतिस्पर्धाके कारण आप पर तंत्र-मंत्र का कोई प्रयोग करके आपके व्यवसायमें बाधा डाल रहा हो, तो ईसे में नीचे लिखे सरल शाबर मंत्र का प्रयोग करकेआप अपनी तथा अपने व्यवसाय की रक्षा करसकते हैं । सर्वप्रथम इस मंत्र की दसमाला जपकर हवन करें । मंत्र सिद्ध हो जाने पर रविवार या मंगलवार कीरातइसका प्रयोग करें
मंत्रः-“उलटतवेद पलटत काया, जाओ बच्चा तुम्हें गुरु ने बुलाया, सत नाम आदेश गुरु का ।”
रविवार या मंगलवार की रात को11 बजे के बाद घर से निकलकर चौराहे की ओरजाएँ, अपने साथ थोड़ी-सी शराब लेते जाएँ ।मार्ग में सात कंकड़ उठाते जाएँ ।चौराहे पर पहुँचकर एक कंकड़ पूर्व दिशा की ओर फेंकते हुए उपर्युक्तमंत्रपढ़ें, फिरएक दक्षिण, फिर क्रमशः पश्चिम, उत्तर, ऊपर, नीचेतथा सातवींकंकड़ चौराहे केबीच रखकर उस शराब चढ़ा दें । यह सब करते समय निरन्तर उक्तमन्त्र का उच्चारण करते रहें । फिर पीछे पलट करसीधे बिना किसी से बोले औरबिनापीछे मुड़कर देखे अपने घर वापस आ जाएँ ।
घर पर पहले से द्वार केबाहर पानी रखे रहें । उसी पानी सेहाथ-पैर धोकर कुछ जल अपने ऊपर छिड़क कर, तबअन्दर जाएँ । एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि आते-जाते समय आपके घर काकोई सदस्य आपके सामने न पड़े और चौराहेसे लौटते समय यदि आपको कोई बुलाए याकोई आवाज सुनाई दे, तब भी मुड़कर नदेखें ।
१७॰ यदि आपके लाखप्रयत्नों के उपरान्त भी आपके सामान की बिक्री निरन्तर घटती जा रहीहो, तोबिक्री में वृद्धि हेतु किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के गुरुवार के दिनसेनिम्नलिखित क्रिया प्रारम्भ करनी चाहिए -
व्यापार स्थल अथवा दुकान केमुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल सेधोकर स्वच्छ कर लें । इसके उपरान्तहल्दी से स्वस्तिक बनाकर उस पर चने की दाल और गुड़ थोड़ी मात्रा मेंरख दें। इसके बाद आप उस स्वस्तिक को बार-बारनहीं देखें । इस प्रकार प्रत्येकगुरुवार को यह क्रिया सम्पन्न करने से बिक्री में अवश्य ही वृद्धिहोती है ।इस प्रक्रिया कोकम-से-कम11 गुरुवार करें।
आशा है आप इनमे से कुछ प्रयोग आगामी होली और नवरात्री पर अवश्य करेंगे और लाभ उठाएंगे। 
नोट:- ये सभी उपाय सिर्फ तभी कारगर हैं जब आपके व्यापार को नज़र लगई हो या उसे रोकने के लिए किसी ने कुछ टोना टोटका आदि किया हो।
यदि आप पर कुछ और तंत्र प्रयोग हुआ है और उसके असर से व्यपार बन्द हुआ है तो इनसे अधिक लाभ नहीं मिलेगा।
अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवं कुंडली विश्लेषण हेतु संपर्क कर सकते हैं।
।। जय श्री राम ।।
8909521616(whats app)
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7060202653
व्यापार बन्धन खोलने का एक उपाय पहले भी पोस्ट किया है जो आप इसी पेज या निचे दिए ब्लॉग पर देख सकते हैं।

Monday, 16 March 2015

हनुमान रक्षा मन्त्र Hanuman Raksha Mantra (Navratri Special)

हनुमान रक्षा मन्त्र
(नवरात्र विशेष)
ध्यान:-
मनोजवं मारुततुल्यवेगं,जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानर यूथमुख्यं, श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
मन्त्र:
वज्रान्ङ पिंगलेशाढ्य्यं स्वर्णकुण्डलमण्डितम्।
नियुद्धमुपसंक्रम्य पारावारपराक्रमम्।।
वामहस्ते गदायुक्तं पाशहस्तं कमण्डलम्।
ऊर्ध्वदक्षिणदोर्दण्डं हनुमन्तं विचिन्तयेत्।।
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम्।
शत्रु संहार मां रक्ष श्रीमन्नापदउद्धरम्॥
नियम पूर्वक हनुमान जी  के इस मन्त्र का 21बार  जप पूजन साधना या ध्यान शुरू करने से पूर्व प्रतिदिन किया जाय तो शरीर और आध्यात्म बल की सुरक्षा होती है। भूत प्रेत बाधा परेशान नहीं करती। जादू टोने से सुरक्षा होती है। शत्रु के भय से छुटकारा मिलता है एवं मनुष्य निर्भय होता है।
अधिक जानकारी समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।
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