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Tuesday, 28 June 2016

Hanuman mantra for Pitra dosh पितृ दोष बाधा नाश हेतु हनुमान मन्त्र

सर्व बाधा नाशक हनुमान माला मन्त्र

मित्रों,
इस मन्त्र के नियमित 21 बार श्री हनुमान जी के विग्रह के सामने मदार की वर्तिका से चमेली की तेल का दीपक जलाकर 21 बार पाठ करने से सभी समस्याओ का निवारण होता हैं, पितृ दोष, ग्रह दोष दूर होते हैं तथा रुके काम बनने लगते हैं।

पाठ करने का उपयुक्त समय प्रातः 7-9 बजे अथवा रात्रि 10 बजे ।

ॐ नमो हनुमते रूद्रावताराय वायु सुताय अञ्जनी गर्भ सम्भुताय अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत पालन तत्पराय धवली कृत जगत् त्रितयाया ज्वलदग्नि सूर्यकोटी समप्रभाय प्रकट पराक्रमाय आक्रान्त दिग् मण्डलाय यशोवितानाय यशोऽलंकृताय शोभिताननाय महा सामर्थ्याय महा तेज पुञ्ज:विराजमानाय श्रीराम भक्ति तत्पराय श्रिराम लक्ष्मणानन्द कारकाय कपिसैन्य प्राकाराय सुग्रीव सौख्य कारणाय सुग्रीव साहाय्य कारणाय ब्रह्मास्त्र ब्रह्म शक्ति ग्रसनाय लक्ष्मण शक्ति भेद निबारणाय शल्य लिशल्यौषधि समानयनाय बालोदित भानु मण्डल ग्रसनाय अक्षयकुमार छेदनाय वन रक्षाकर समूह विभञ्जनाय द्रोण पर्वतोत्पाटनाय स्वामि वचन सम्पादितार्जुन संयुग संग्रामाय गम्भिर शव्दोदयाय दक्षिणाशा मार्तण्डाय मेरूपर्वत पीठिकार्चनाय दावानल कालाग्नी रूद्राय समुद्र लङ्घनाय सीताऽऽश्वासनाय सीता रक्षकाय राक्षसी सङ्घ विदारणाय अशोकबन विदारणाय लङ्कापुरी दहनाय दश ग्रीव शिर:कृन्त्तकाय कुम्भकर्णादि वधकारणाय बालि निबर्हण कारणाय मेघनादहोम विध्वंसनाय इन्द्रजीत वध कारणाय सर्व शास्त्र पारङ्गताय सर्व ग्रह विनाशकाय सर्व ज्वर हराय सर्व भय निवारणाय सर्व कष्ट निवारणाय सर्वापत्ती निवारणाय सर्व दुष्टादि निबर्हणाय सर्व शत्रुच्छेदनाय भूत प्रेत पिशाच डाकिनी शाकिनी ध्वंसकाय सर्वकार्य साधकाय प्राणीमात्र रक्षकाय रामदुताय स्वाहा॥

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।।जय श्री राम।।
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Saturday, 11 June 2016

धूमावती जयंती 2016 विशेष

      ॥ धूमावती कवचम् ॥
श्रीपार्वत्युवाच
धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतम् विस्तरतो मया ।
कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे ॥१॥
श्रीभैरव उवाच
शृणु देवि परङ्गुह्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।
कवचं श्रीधूमावत्या: शत्रुनिग्रहकारकम् ॥२॥
ब्रह्माद्या देवि सततम् यद्वशादरिघातिनः ।
योगिनोऽभवञ्छत्रुघ्ना यस्या ध्यानप्रभावतः ॥३॥
ओमस्य श्रीधूमावतीकवचस्य पिप्पलाद ऋषिरनुष्टुब्छन्दः
,श्रीधूमावती देवता, धूं बीजं ,स्वाहा शक्तिः ,धूमावती कीलकं ,
शत्रुहनने पाठे विनियोगः ॥
ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु ।
धूमा नेत्रयुगम्पात वती कर्णौ सदाऽवतु ॥१॥
दीर्ग्घा तुउदरमध्ये तु नाभिम्मे मलिनाम्बरा ।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी ॥२॥
मुखम्मे पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम् ।
सर्वा विद्याऽवतु कण्ठम् विवर्णा बाहुयुग्मकम् ॥३॥
चञ्चला हृदयम्पातु दुष्टा पार्श्वं सदाऽवतु ।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा ॥४॥
प्रवृद्धरोमा तु भृशङ्कुटिला कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्द्दिता देवी भयदा कलहप्रिया ॥५॥
सर्वाङ्गम्पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी ।
इति ते कवचम्पुण्यङ्कथितम्भुवि दुर्लभम् ॥६॥
न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे ।
पठनीयम्महादेवि त्रिसन्ध्यन्ध्यानतत्परैः ।।७॥
दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रन्नैव संस्पृशेत् । ७.१।
॥ इति भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीतन्त्रे धूमावतीकवचं 
सम्पूर्णम् ॥

३              धूमावती अष्टक स्तोत्रं

॥ अथ स्तोत्रं ॥
प्रातर्या स्यात्कुमारी कुसुमकलिकया जापमाला जपन्ती
मध्याह्ने प्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम् |
सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां
वहन्ती सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालिका पातु युष्मान् || १ ||
बद्ध्वा खट्वाङ्गकोटौ कपिलवरजटामण्डलम्पद्मयोनेः
कृत्वा दैत्योत्तमाङ्गैस्स्रजमुरसि शिर शेखरन्तार्क्ष्यपक्षैः |
पूर्णं रक्तै्सुराणां यममहिषमहाशृङ्गमादाय पाणौ
पायाद्वो वन्द्यमानप्रलयमुदितया भैरवः कालरात्र्याम् || २ ||
चर्वन्तीमस्थिखण्डम्प्रकटकटकटाशब्दशङ्घातम्-
उग्रङ्कुर्वाणा प्रेतमध्ये कहहकहकहाहास्यमुग्रङ्कृशाङ्गी |
नित्यन्नित्यप्रसक्ता डमरुडिमडिमां स्फारयन्ती मुखाब्जम्-
पायान्नश्चण्डिकेयं झझमझमझमा जल्पमाना भ्रमन्ती || ३ ||
टण्टण्टण्टण्टटण्टाप्रकरटमटमानाटघण्टां
वहन्ती
स्फेंस्फेंस्फेंस्कारकाराटकटकितहसा नादसङ्घट्टभीमा |
लोलम्मुण्डाग्रमाला ललहलहलहालोललोलाग्रवाचञ्चर्वन्ती
चण्डमुण्डं मटमटमटिते चर्वयन्ती पुनातु || ४ ||
वामे कर्णे मृगाङ्कप्रलयपरिगतन्दक्षिणे सूर्यबिम्बङ्कण्ठे
नक्षत्रहारंव्वरविकटजटाजूटके मुण्डमालाम् |
स्कन्धे कृत्वोरगेन्द्रध्वजनिकरयुतम्ब्रह्मकङ्कालभारं
संहारे धारयन्ती मम हरतु भयम्भद्रदा भद्रकाली || ५ ||
तैलाभ्यक्तैकवेणी त्रपुमयविलसत्कर्णिकाक्रान्तकर्णा
लौहेनैकेन कृत्वा चरणनलिनकामात्मनः पादशोभाम् |
दिग्वासा रासभेन ग्रसति जगदिदंय्या यवाकर्णपूरा
वर्षिण्यातिप्रबद्धा ध्वजविततभुजा सासि देवि त्वमेव || ६ ||
सङ्ग्रामे हेतिकृत्वैस्सरुधिरदशनैर्यद्भटानां
शिरोभिर्मालामावद्ध्य मूर्ध्नि ध्वजविततभुजा त्वं श्मशाने
प्रविष्टा |
दृष्टा भूतप्रभूतैः पृथुतरजघना वद्धनागेन्द्रकाञ्ची
शूलग्रव्यग्रहस्ता मधुरुधिरसदा ताम्रनेत्रा निशायाम् || ७ ||
दंष्ट्रा रौद्रे मुखेऽस्मिंस्तव विशति जगद्देवि सर्वं क्षणार्द्धात्
संसारस्यान्तकाले नररुधिरवशा सम्प्लवे भूमधूम्रे |
काली कापालिकी साशवशयनतरा योगिनी योगमुद्रा रक्तारुद्धिः
सभास्था भरणभयहरा त्वं शिवा चण्डघण्टा || ८ ||
धूमावत्यष्टकम्पुण्यं सर्वापद्विनिवारकम् |
यः पठेत्साधको भक्त्या सिद्धिं व्विन्दन्ति वाञ्छिताम् || ९ ||
महापदि महाघोरे महारोगे महारणे |
शत्रूच्चाटे मारणादौ जन्तूनाम्मोहने तथा || १० ||
पठेत्स्तोत्रमिदन्देवि सर्वत्र सिद्धिभाग्भवेत् |
देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः || ११ ||
सिंहव्याघ्रादिकास्सर्वे स्तोत्रस्मरणमात्रतः |
दूराद्दूरतरं य्यान्ति किम्पुनर्मानुषादयः || १२ ||
स्तोत्रेणानेन देवेशि किन्न सिद्ध्यति भूतले |
सर्वशान्तिर्ब्भवेद्देवि ह्यन्ते निर्वाणतां व्व्रजेत् || १३ ||
।। इत्यूर्द्ध्वाम्नाये धूमावतीअष्टक स्तोत्रं समाप्तम् ।।
 देवी की कृपा से साधक धर्म अर्थ काम और मोक्ष प्राप्त कर लेता है। गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में सिर्फ  पूजा करनी चाहिए।  

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Friday, 3 June 2016

Shani Jsyanti 2016 शनि जयंती 2016

शनि जयंती विशेष 2016
शुभ अशुभ शनि हेतु उपाय

सभी मित्रों को शनि जयंती की शुभकामनायें

इस वर्ष शनि जयंती पर थोडा मतभेद है  शनिवार को अमावस्या प्रातः 10:39 से रविवार प्रातः 8:26 तक रहेगी। शनिपूजन सांय काल ही होता है इसलिए आज करना ही उचित होगा । उदयतिथि के मत से मानने पर शनि जयंती कल रविवार 5 जून को मना सकते है।

पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर शनि का जन्म हुआ था। एक मान्यता के अनुसार भगवान शनिदेव का जन्म अपराह्न 12 बजे हुआ था। संयोग से इस बार शनि जयंती-शनि अमावस्या साथ है। अत: इस दिन शनिदेव का पूजन-अर्चना करना शुभ फलदायी रहेगा।  शनि की साढ़ेसाती व ढैया से प्रभावित लोगों को शनि महाराज को खुश करने के लिए दान-पुण्य के साथ-साथ उनके मंत्रों का जाप करना जरूरी है। खास तौर पर गरीबों को बांटे गए वस्त्र, कंबल, छत्री, असहायों को भोजन कराना, इमरती खिलाना, दान दक्षिणा देने जैसे कार्य करने से शनि की दृष्टि से प्रभावित भक्तों के कष्ट दूर होकर उन्हें सुख के अवसर प्राप्त होते हैं।

शनि शान्ति के उपाय:-

यदि शनि विपरीत फल दे रहा है या कष्टकारी है या आप शनि की महादशा अंतर्दशा ढैय्या या साढ़े साती में हैं तो निम्न उपाय लाभ प्रद होंगे

1- राजा दशरथ विरचित शनि स्तोत्र का नित्य पाठ करें।

 2- शनि मंदिर या चित्र पूजन कर प्रतिदिन इस मंत्र का पाठ करें:-
नमस्ते कोण संस्थाय, पिंगलाय नमोस्तुते। नमस्ते वभु्ररूपाय, कृष्णाय च नमोस्तुते ।।
नमस्ते रौद्रदेहाय, नमस्ते चांतकाय च। नमस्ते यमसंज्ञाय, नमस्ते सौरये विभौ।।
नमस्ते मंदसंज्ञाय, शनैश्चर नमोस्तुते। प्रसादं कुरू में देवेश, दीनस्य प्रणतस्य च।।

3- घर में पारद, स्फटिक या नर्मदेश्वर शिवलिंग स्थापित कर विधानपूर्वक पूजा अर्चना कर, रूद्राक्ष की माला से महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए।

4- सुंदरकाण्ड का पाठ एवं हनुमान उपासना, संकटमोचन का पाठ करें।

5- प्रति शनिवार , शनि अमावस्या शनि जयंती पर, शनि मंदिर जाकर, शनिदेव का अभिषेक कर दर्शन करें।

6- ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम: के 23,000 जप करें फिर 27 दिन तक शनि स्तोत्र के चार पाठ रोज करें।

7- शनिवार को सायंकाल पीपल के पेड के नीचे  तेल का दीपक जलाएं।

8- घर के मुख्य द्वार पर, काले घोडे की नाल, शनिवार के दिन लगावें।

9- काले तिल, ऊनी वस्त्र, कंबल, चमडे के जूते, काला छाता, तिल का तेल, उडद, लोहा, काली गाय, भैंस, कस्तूरी, स्वर्ण, तांबा आदि का दान करें।

10-घोडे की नाल अथवा नाव की कील का छल्ला बनवाकर मघ्यमा अंगुली में पहनें।

11- कडवे तेल में परछाई देखकर, उसे अपने ऊपर सात बार उसारकर दान करें, पहना हुआ वस्त्र भी दान दे दें ।

12- ध्यान रहे की शनि विग्रह के चरणों का दर्शन करें, मुख के दर्शन से बचें। जिससे उनकी दृष्टि आप पर न पड़े।

13- शनि देव को तेल का स्नान भी पीछे या बगल में खड़े होक कराएं सामने से नहीं।

14- शनिवार को श्मशान घाट में लकड़ी दान करें

15- सात शनिवार सरसों का तेल सारे शरीर में लगाकर और मालिश करके साबुन लगााकर नहाएं

16- शनिवार को शनि ग्रह की वस्तुएं न दान में लें और न ही बाजार से खरीदें।

17- मीट मांस शराब तथा सिगरेट का प्रयोग न करें।

18- सात प्रकार के धानों का दान तथा शनिवार को प्रातः पीपल का पूजन करें।

19- बिच्छु की जड़  की जड़ का पूजन कर अभिमंत्रित कर काले कपड़े में बाँधकर श्रवण नक्षत्र में विधि पूर्वक धारण करने से शनि दोष क्षीण होता है।

20- शनिव्रत : श्रावण मास के शुक्ल पक्ष से, शनिव्रत आरंभ करें, 33 व्रत करने चाहिएँ, तत्पश्चात् उद्यापन करके, दान करे

21- झूठ बोलने और धोखाधड़ी करने से बचें।

शुभ शनि के लिए उपाय:-

शुभ तथा सम शनि ग्रह के प्रभाव में वृद्धि करने के लिए निम्नलिखित उपाय करें।

1- शनिवार को नीलम रत्न धारण करें। नीलम रत्न चांदी अथवा लोहे की अंगूठी में मध्यमा अंगुली में धारण करना चाहिए। अंगूठी इस प्रकार बनवाएं कि नीलम नीचे से आपकी त्वचा को छूता रहे। नीलम धारण करने से पहले नीलम की अंगूठी अथवा लॉकेट को गंगा जल अथवा कच्चे दूध से धोकर सामने रखकर धूप-दीप आदि दिखाएं और कम से कम १०८ बार उपयुक्त शनि मन्त्र का जप करें। साथ में १०८ बार शिवजी के मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप कर लेना भी बहुत लाभदायक माना गया है।

2- शनि ग्रह से संबंधित वस्तुओं का उपयोग या व्यापार करें। शनि ग्रह से संबंधित वस्तुएं हैं :- लोहा, काली उड़द, काला तिल, कुलथी, तेल, भैंस काला कुत्ता, काला घोड़ा, काला कपड़ा, तथा लोहे से बने बर्तन व मशीनरी।

3- शनिवार को काले घोड़े की नाल की अंगूठी अथवा कड़ा धारण करे

4- शनिवार को पीपल में या शनि देव के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाए।

5- चारपाई अथवा बेड के चारों पायों में लोहे का एक-एक कील लगााएं।
मकान के चारों कोनों में लोहे का एक-एक कील लगाएं

6- घर में शमी का वृक्ष लगाएं और उसमे नित्य दीपक जलाएं। ये धन सौख्य देने वाला प्रयोग है।

7- सात मुखी, दस मुखी, ग्यारह मुखी, अथवा तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

8- शिंगणापुर शनिदेव का एक बार दर्शन अवश्य करें

9- एक सूखा नारियल लेकर उसमें चाकू से छोटा सा गोल छेद काट लें। इस छेद से नारियल में गेहूं के आटे को भूनकर बनाई पंजीरी और बूरा तथा सम्भव हो तो थोडा पञ्चमेवा यानि बादाम, काजू, किशमिश, पिस्ता, अखरोट या छुआरा भी भरें। अब इसे पुनः बन्द कर किसी पीपल के पास भूमि के अन्दर इस प्रकार गाड़ दें की चीटियां आसानी से तलाश लें, किन्तु अन्य जानवर न पा सकें। घर लौटकर पैर धोकर घर में प्रवेश करें। इस प्रकार ८ शनिवार तक यह क्रिया सम्पन्न करें।

10- शिवलिंग पर कच्चा दूध चढावें व “अमोघ शिव कवच“ का पाठ करें।

11- काली गाय व काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी रोटी, चने की दाल व गुड खिलाना लाभप्रद रहता है।

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।।जय श्री राम।।
अभिषेक पाण्डेय
नैनीताल
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7060202653

Dashrath krit Shani Stotra दशरथ कृत शनि स्तोत्र
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शनि अमावस्या और शनि मन्त्र पर विशेष लेख/ Shani amavasya and special shani mantras
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