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Monday, 21 November 2016

Tantrik Bhairav ashotottarshatnam तंत्रोक्त काल संकर्षण भैरव अष्टोत्तरशतनाम



*|| श्रीबटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्  ॥*
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥

॥ सिद्धपदस्थितगुरुमण्डलाय नमः ॥

॥ श्रीदीक्षाक्रमप्रदात्रेगुरवे नमः ॥

॥ श्रीभैरवाय नमः ॥

ॐ अस्य श्रीबटुकभैरवस्तोत्रमन्त्रस्य कालग्निरुद्र ऋषिः ।
अनुष्टुप् छन्दः । आपदुद्धारकबटुकभैरवो देवता । ह्रीं बीजम् ।
भैरवीवल्लभः शक्तिः । नीलवर्णो दण्डपाणिरिति कीलकम् ।
 सर्वाभीष्टप्रदाने  विनियोगः ॥

            *॥ ऋष्यादि न्यासः ॥*

ॐ कालाग्निरुद्र ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे ।
आपदुद्धारकश्रीबटुकभैरव देवतायै नमः हृदये ।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये । भैरवीवल्लभ शक्तये नमः पादयोः । निलवर्णोदंड पाणिति कीलकाय नमः नाभौ
 सर्वाभीष्टप्रदाने
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
॥ इति ऋष्यादि न्यासः ॥

॥दीक्षा क्रमेण मूलं प्रजप्य ||

              *॥ अथ ध्यानम् ॥*

नीलजीमूतसङ्काशो जटिलो रक्तलोचनः ।
दंष्ट्राकरालवदनः सर्पयज्ञोपवीतवान् ॥

             *॥ इति ध्यानम् ॥*

               *| अथ स्तोत्रम् ।*
ॐ ह्रीं बटुको वरदः शूरो भैरवः कालभैरवः ।
भैरवीवल्लभो भव्यो दण्डपाणिर्दयानिधिः ॥ १॥

वेतालवाहनो रौद्रो रुद्रभ्रुकुटिसम्भवः ।
कपाललोचनः कान्तः कामिनीवशकृद्वशी ॥ २॥

आआपदुद्धारणो धीरो हरिणाङ्कशिरोमणिः ।
दंष्ट्राकरालो दष्टोष्ठौ धृष्टो दुष्टनिबर्हणः ॥ ३॥

सर्पहारः सर्पशिराः सर्पकुण्डलमण्डितः ।
कपाली करुणापूर्णः कपालैकशिरोमणिः ॥ ४॥

श्मशानवासी मांसाशी मधुमत्तोऽट्टहासवान् ।
वाग्मी वामव्रतो वामो वामदेवप्रियङ्करः ॥ ५॥
वनेचरो रात्रिचरो वसुदो वायुवेगवान् ।
योगी योगव्रतधरो योगिनीवल्लभो युवा ॥ ६॥

वीरभद्रो विश्वनाथो विजेता वीरवन्दितः ।
भृतध्यक्षो भूतिधरो भूतभीतिनिवारणः ॥ ७॥

कलङ्कहीनः कङ्काली क्रूरकुक्कुरवाहनः ।
गाढो गहनगम्भीरो गणनाथसहोदरः ॥ ८॥

देवीपुत्रो दिव्यमूर्तिर्दीप्तिमान् दीप्तिलोचनः ।
महासेनप्रियकरो मान्यो माधवमातुलः ॥ ९॥

भद्रकालीपतिर्भद्रो भद्रदो भद्रवाहनः ।
पशूपहाररसिकः पाशी पशुपतिः पतिः ॥ १०॥
चण्डः प्रचण्डचण्डेशश्चण्डीहृदयनन्दनः ।
दक्षो दक्षाध्वरहरो दिग्वासा दीर्घलोचनः ॥ ११॥

निरातङ्को निर्विकल्पः कल्पः कल्पान्तभैरवः ।
मदताण्डवकृन्मत्तो महादेवप्रियो महान् ॥ १२॥

खट्वाङ्गपाणिः खातीतः खरशूलः खरान्तकृत् ।
ब्रह्माण्डभेदनो ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मणपालकः ॥ १३॥

दिग्चरो भूचरो भूष्णुः खेचरः खेलनप्रियः । दिग्चरो
सर्वदुष्टप्रहर्ता च सर्वरोगनिषूदनः ।
सर्वकामप्रदः शर्वः सर्वपापनिकृन्तनः ॥ १४॥

इत्थमष्टोत्तरशतं नाम्नां सर्वसमृद्धिदम् ।
आपदुद्धारजनकं बटुकस्य प्रकीर्तितम् ॥ १५॥
एतच्च शृणुयान्नित्यं लिखेद्वा स्थापयेद्गृहे ।
धारयेद्वा गले बाहौ तस्य सर्वा समृद्धयः ॥ १६॥

न तस्य दुरितं किञ्चिन्न चोरनृपजं भयम् ।
न चापस्मृतिरोगेभ्यो डाकिनीभ्यो भयं न हि ॥ १७॥

न कूष्माण्डग्रहादिभ्यो नापमृत्योर्न च ज्वरात् ।
मासमेकं त्रिसन्ध्यं तु शुचिर्भूत्वा पठेन्नरः ॥ १८॥

सर्वदारिद्र्यनिर्मुक्तो निधिं पश्यति भूतले ।
मासद्वयमधीयानः पादुकासिद्धिमान् भवेत् ॥ १९॥

अञ्जनं गुटिका खड्गं धातुवादरसायनम् ।
सारस्वतं च वेतालवाहनं बिलसाधनम् ॥ २०॥
कार्यसिद्धिं महासिद्धिं मन्त्रं चैव समीहितम् ।
वर्षमात्रमधीयानः प्राप्नुयात्साधकोत्तमः ॥ २१॥

एतत्ते कथितं देवि गुह्याद्गुह्यतरं परम् ।
कलिकल्मषनाशनं वशीकरणं चाम्बिके ॥ २२॥

॥ इति कालसङ्कर्षणतन्त्रोक्त
श्रीबटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

Saturday, 19 November 2016

Kal bhairav jayanti 2016 श्री भैरव अष्टमी/ जयंती 2016 विशेष

श्री भैरव जयंती विशेष

बटुक एवं काल भैरव कार्य सिद्धि एवं शत्रु नाशक प्रयोग
                                                                       ।।श्री काल-भैरव।।

भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के दो स्वरूप बताए गए हैं। एक स्वरूप में महादेव अपने भक्तों को अभय देने वाले विश्वेश्वरस्वरूप हैं वहीं दूसरे स्वरूप में भगवान शिव दुष्टों को दंड देने वाले कालभैरव स्वरूप में विद्यमान हैं। शिवजी का विश्वेश्वरस्वरूप अत्यंत ही सौम्य और शांत हैं यह भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है।वहीं भैरव स्वरूप रौद्र रूप वाले हैं, इनका रूप भयानक और विकराल होता है। इनकी पूजा करने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार डर कभी परेशान नहीं करता। कलयुग में काल के भय से बचने के लिए कालभैरव की आराधना सबसे अच्छा उपाय है। कालभैरव को शिवजी का ही रूप माना गया है। कालभैरव की पूजा करने वाले व्यक्ति को किसी भी प्रकार का डर नहीं सताता है।

भैरव शब्द का अर्थ ही होता है- भीषण, भयानक, डरावना।

भैरव को शिव के द्वारा उत्पन्न हुआ या शिवपुत्र माना जाता है। भगवान शिव के आठ विभिन्न रूपों में से भैरव एक है। वह भगवान शिव का प्रमुख योद्धा है। भैरव के आठ स्वरूप पाए जाते हैं। जिनमे प्रमुखत: काला और गोरा भैरव अतिप्रसिद्ध हैं।

रुद्रमाला से सुशोभित, जिनकी आंखों में से आग की लपटें निकलती हैं, जिनके हाथ में कपाल है, जो अति उग्र हैं, ऐसे कालभैरव को मैं वंदन करता हूं।- भगवान कालभैरव की इस वंदनात्मक प्रार्थना से ही उनके भयंकर एवं उग्ररूप का परिचय हमें मिलता है।

कालभैरव की उत्पत्ति की कथा शिवपुराण में इस तरह प्राप्त होती है-

एक बार मेरु पर्वत के सुदूर शिखर पर ब्रह्मा विराजमान थे, तब सब देव और ऋषिगण उत्तम तत्व के बारे में जानने के लिए उनके पास गए। तब ब्रह्मा ने कहा वे स्वयं ही उत्तम तत्व हैं यानि कि सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च हैं। किंतु भगवान विष्णु इस बात से सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि वे ही समस्त सृष्टि से सर्जक और परमपुरुष परमात्मा हैं। तभी उनके बीच एक महान ज्योति प्रकट हुई। उस ज्योति के मंडल में उन्होंने पुरुष का एक आकार देखा। तब तीन नेत्र वाले महान पुरुष शिवस्वरूप में दिखाई दिए। उनके हाथ में त्रिशूल था, सर्प और चंद्र के अलंकार धारण किए हुए थे। तब ब्रह्मा ने अहंकार से कहा कि आप पहले मेरे ही ललाट से रुद्ररूप में प्रकट हुए हैं। उनके इस अनावश्यक अहंकार को देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उस क्रोध से भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया। यह भैरव बड़े तेज से प्रज्जवलित हो उठा और साक्षात काल की भांति दिखने लगा।

इसलिए वह कालराज से प्रसिद्ध हुआ और भयंकर होने से भैरव कहलाने लगा। काल भी उनसे भयभीत होगा इसलिए वह कालभैरव कहलाने लगे। दुष्ट आत्माओं का नाश करने वाला यह आमर्दक भी कहा गया। काशी नगरी का अधिपति भी उन्हें बनाया गया। उनके इस भयंकर रूप को देखकर बह्मा और विष्णु शिव की आराधना करने लगे और गर्वरहित हो गए।

लौकिक और अलौकिक शक्तियों के द्वारा मानव जीवन में सफलता पायी जा सकती है, लेकिन शक्तियां जहां स्थिर रहती है, वहीं अलौकिक शक्तियां हर पल, हर क्षण मनुष्य के साथ-साथ रहती है। अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करने का श्रोत मात्र देवी देवताओं की साधना, उपासना शीघ्र फलदायी मानी गई है।

 कालभैरव भगवान शिव के पांचवें स्वरूप है तो विष्णु के अंश भी है। इनकी उपासना मात्र से ही सभी प्रकार के दैहिक, दैविक, मानसिक परेशानियों से शीघ्र मुक्ति मिलती है। कोई भी मानव इनकी पुजा, आराधना, उपासना से लाभ उठा सकता है। आज इस विषमता भरे युग में मानव को कदम-कदम पर बाधाओं, विपत्तियों और शत्रुओं का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में मंत्र साधना ही इन सब समस्याओं पर विजय दिलाता है। शत्रुओं का सामना करने, सुख-शान्ति समृद्धि में यह साधना अति उत्तम है।

शिव पुराण में वर्णित है--

भैरव: पूर्ण रूपोहि शंकर परात्मन: भूगेस्तेवैन जानंति मोहिता शिव भामया:।

देवताओं ने श्री कालभैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की तरह रौद्र होने के कारण यह कालराज है। मृत्यु भी इनसे भयभीत रहती है। यह कालभैरव है इसलिए दुष्टों और शत्रुओं का नाश करने में सक्षम है। तंत्र शास्त्र के प्रव‌र्त्तक आचार्यो ने प्रत्येक उपासना कर्म की सिद्धि के लिए किए जाने वाले जप पाठ आदि कर्र्मो के आरंभ में भगवान भैरवनाथ की आज्ञा प्राप्त करने का निर्देश किया है।

अतिक्रूर महाकाय, कल्पानत-दहनोपय,भैरवाय नमस्तुभ्यमेनुझां दातुमहसि।

इससे स्पष्ट है कि सभी पुजा पाठों की आरंभिक प्रक्रिया में भैरवनाथ का स्मरण, पूजन, मंत्रजाप आवश्यक होते है। श्री काल भैरव का नाम सुनते ही बहुत से लोग भयभीत हो जाते है और कहते है कि ये उग्र देवता है। अत: इनकी साधना वाम मार्ग से होती है इसलिए यह हमारे लिए उपयोगी नहीं है। लेकिन यह मात्र उनका भ्रम है। प्रत्येक देवता सात्विक, राजस और तामस स्वरूप वाले होते है, किंतु ये स्वरूप उनके द्वारा भक्त के कार्र्यो की सिद्धि के लिए ही धरण किये जाते है। श्री कालभैरव इतने कृपालु एवं भक्तवत्सल है कि सामान्य स्मरण एवं स्तुति से ही प्रसन्न होकर भक्त के संकटों का तत्काल निवारण कर देते है।

तंत्राचार्यों का मानना है कि वेदों में जिस परम पुरुष का चित्रण रुद्र में हुआ, वह तंत्र शास्त्र के ग्रंथों में उस स्वरूप का वर्णन 'भैरव' के नाम से किया गया, जिसके भय से सूर्य एवं अग्नि तपते हैं। इंद्र-वायु और मृत्यु देवता अपने-अपने कामों में तत्पर हैं, वे परम शक्तिमान 'भैरव' ही हैं। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है।

तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं।

वामकेश्वर तंत्र की योगिनीहदयदीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं-

'विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात्‌ सृष्टि-स्थिति-संहारकारी परशिवो भैरवः।'

भ- से विश्व का भरण, र- से रमश, व- से वमन अर्थात सृष्टि को उत्पत्ति पालन और संहार करने वाले शिव ही भैरव हैं। तंत्रालोक की विवेक-टीका में भगवान शंकर के भैरव रूप को ही सृष्टि का संचालक बताया गया है।

श्री तंत्वनिधि नाम तंत्र-मंत्र में भैरव शब्द के तीन अक्षरों के ध्यान के उनके त्रिगुणात्मक स्वरूप को सुस्पष्ट परिचय मिलता है, क्योंकि ये तीनों शक्तियां उनके समाविष्ट हैं

'भ' अक्षरवाली जो भैरव मूर्ति है वह श्यामला है, भद्रासन पर विराजमान है तथा उदय कालिक सूर्य के समान सिंदूरवर्णी उसकी कांति है। वह एक मुखी विग्रह अपने चारों हाथों में धनुष, बाण वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।

'र' अक्षरवाली भैरव मूर्ति श्याम वर्ण हैं। उनके वस्त्र लाल हैं। सिंह पर आरूढ़ वह पंचमुखी देवी अपने आठ हाथों में खड्ग, खेट (मूसल), अंकुश, गदा, पाश, शूल, वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।

'व' अक्षरवाली भैरवी शक्ति के आभूषण और नरवरफाटक के सामान श्वेत हैं। वह देवी समस्त लोकों का एकमात्र आश्रय है। विकसित कमल पुष्प उनका आसन है। वे चारों हाथों में क्रमशः दो कमल, वर एवं अभय धारण करती हैं।

स्कंदपुराण के काशी- खंड के 31वें अध्याय में उनके प्राकट्य की कथा है।

गर्व से उन्मत ब्रह्माजी के पांचवें मस्तक को अपने बाएं हाथ के नखाग्र से काट देने पर जब भैरव ब्रह्म हत्या के भागी हो गए, तबसे भगवान शिव की प्रिय पुरी 'काशी' में आकर दोष मुक्त हुए।

ब्रह्मवैवत पुराण के प्रकृति खंडान्तर्गत दुर्गोपाख्यान में आठ पूज्य निर्दिष्ट हैं- महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रूरू भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड भैरव, चंद्रचूड भैरव। लेकिन इसी पुराण के गणपति- खंड के 41वें अध्याय में अष्टभैरव के नामों में सात और आठ क्रमांक पर क्रमशः कपालभैरव तथा रूद्र भैरव का नामोल्लेख मिलता है।

तंत्रसार में वर्णित आठ भैरव असितांग, रूरू, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण संहार नाम वाले हैं।

भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं। शिव पुराण में भैरव को महादेव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। इनकी आराधना में कठोर नियमों का विधान भी नहीं है। ऐसे परम कृपालु एवं शीघ्र फल देने वाले भैरवनाथ की शरण में जाने पर जीव का निश्चय ही उद्धार हो जाता है।

भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।

जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्‍ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगानालाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।

भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।

खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं।

 वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, ‍लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे।

भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है।

शिव के अवतार श्री कालभैरव अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही इनकी आराधना करने पर हमारे कई बुरे गुण स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। आदर्श और उच्च जीवन व्यतीत करने के लिए कालभैरव से भी शिक्षा ली जा सकती हैं।

जीवन प्रबंधन से जुड़े कई संदेश श्री भैरव देते हैं-

भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप माना गया है। भगवान शंकर के इस अवतार से हमें अवगुणों को त्यागना सीखना चाहिए। भैरव के बारे में प्रचलित है कि ये अति क्रोधी, तामसिक गुणों वाले तथा मदिरा के सेवन करने वाले हैं। इस अवतार का मूल उद्देश्य है कि मनुष्य अपने सारे अवगुण जैसे- मदिरापान, तामसिक भोजन, क्रोधी स्वभाव आदि भैरव को समर्पित कर पूर्णत: धर्ममय आचरण करें। भैरव अवतार हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हर कार्य सोच-विचार कर करना ही ठीक रहता है। बिना विचारे कार्य करने से पद व प्रतिष्ठा धूमिल होती है।

श्रीभैरवनाथसाक्षात् रुद्र हैं। शास्त्रों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि वेदों में जिस परमपुरुष का नाम रुद्र है, तंत्रशास्त्रमें उसी का भैरव के नाम से वर्णन हुआ है।

तन्त्रालोक की विवेकटीका में भैरव शब्द की यह व्युत्पत्ति दी गई है- बिभíत धारयतिपुष्णातिरचयतीतिभैरव: अर्थात् जो देव सृष्टि की रचना, पालन और संहार में समर्थ है, वह भैरव है। शिवपुराणमें भैरव को भगवान शंकर का पूर्णरूप बतलाया गया है। तत्वज्ञानी भगवान शंकर और भैरवनाथमें कोई अंतर नहीं मानते हैं। वे इन दोनों में अभेद दृष्टि रखते हैं।

 भैरव शब्द के तीन अक्षरों भ-र-वमें ब्रह्मा-विष्णु-महेश की उत्पत्ति-पालन-संहार की शक्तियां सन्निहित हैं। नित्यषोडशिकार्णव की सेतुबन्ध नामक टीका में भी भैरव को सर्वशक्तिमान बताया गया है-भैरव: सर्वशक्तिभरित:।शैवोंमें कापालिकसम्प्रदाय के प्रधान देवता भैरव ही हैं। ये भैरव वस्तुत:रुद्र-स्वरूप सदाशिवही हैं। शिव-शक्ति एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की उपासना कभी फलीभूत नहीं होती। यतिदण्डैश्वर्य-विधान में शक्ति के साधक के लिए शिव-स्वरूप भैरवजीकी आराधना अनिवार्य बताई गई है।

रुद्रयामल में भी यही निर्देश है कि तन्त्रशास्त्रोक्तदस महाविद्याओंकी साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए उनके भैरव की भी अर्चना करें। उदाहरण के लिए कालिका महाविद्याके साधक को भगवती काली के साथ कालभैरवकी भी उपासना करनी होगी। इसी तरह प्रत्येक महाविद्या-शक्तिके साथ उनके शिव (भैरव) की आराधना का विधान है। दुर्गासप्तशतीके प्रत्येक अध्याय अथवा चरित्र में भैरव-नामावली का सम्पुट लगाकर पाठ करने से आश्चर्यजनक परिणाम सामने आते हैं, इससे असम्भव भी सम्भव हो जाता है। श्रीयंत्रके नौ आवरणों की पूजा में दीक्षाप्राप्तसाधक देवियों के साथ भैरव की भी अर्चना करते हैं।

अष्टसिद्धि के प्रदाता भैरवनाथके मुख्यत:आठ स्वरूप ही सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं पूजित हैं। इनमें भी कालभैरव तथा बटुकभैरव की उपासना सबसे ज्यादा प्रचलित है। काशी के कोतवाल कालभैरवकी कृपा के बिना बाबा विश्वनाथ का सामीप्य नहीं मिलता है। वाराणसी में निíवघ्न जप-तप, निवास, अनुष्ठान की सफलता के लिए कालभैरवका दर्शन-पूजन अवश्य करें। इनकी हाजिरी दिए बिना काशी की तीर्थयात्रा पूर्ण नहीं होती। इसी तरह उज्जयिनीके कालभैरवकी बडी महिमा है। महाकालेश्वर की नगरी अवंतिकापुरी(उज्जैन) में स्थित कालभैरवके प्रत्यक्ष मद्य-पान को देखकर सभी चकित हो उठते हैं।

धर्मग्रन्थों के अनुशीलन से यह तथ्य विदित होता है कि भगवान शंकर के कालभैरव-स्वरूपका आविर्भाव मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की प्रदोषकाल-व्यापिनीअष्टमी में हुआ था, अत:यह तिथि कालभैरवाष्टमी के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन भैरव-मंदिरों में विशेष पूजन और श्रृंगार बडे धूमधाम से होता है। भैरवनाथके भक्त कालभैरवाष्टमी के व्रत को अत्यन्त श्रद्धा के साथ रखते हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी से प्रारम्भ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रदोष-व्यापिनी अष्टमी के दिन कालभैरवकी पूजा, दर्शन तथा व्रत करने से भीषण संकट दूर होते हैं और कार्य-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। पंचांगों में इस अष्टमी को कालाष्टमी के नाम से प्रकाशित किया जाता है।

ज्योतिषशास्त्र की बहुचíचत पुस्तक लाल किताब के अनुसार शनि के प्रकोप का शमन भैरव की आराधना से होता है।  भैरवनाथके व्रत एवं दर्शन-पूजन से शनि की पीडा का निवारण होगा। कालभैरवकी अनुकम्पा की कामना रखने वाले उनके भक्त तथा शनि की साढेसाती, ढैय्या अथवा शनि की अशुभ दशा से पीडित व्यक्ति इस कालभैरवाष्टमीसे प्रारम्भ करके वर्षपर्यन्तप्रत्येक कालाष्टमीको व्रत , भैरवनाथकी उपासना करें।

कालाष्टमीमें दिन भर उपवास रखकर सायं सूर्यास्त के उपरान्त प्रदोषकालमें भैरवनाथकी पूजा करके प्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है।

मन्त्रविद्याकी एक प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपि से महाकाल भैरव का यह मंत्र मिला है-

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नम:।

इस मंत्र का 21हजार बार जप करने से बडी से बडी विपत्ति दूर हो जाती है।।

साधक भैरव जी के वाहन श्वान (कुत्ते) को नित्य कुछ खिलाने के बाद ही भोजन करे।

साम्बसदाशिवकी अष्टमूíतयोंमें रुद्र अग्नि तत्व के अधिष्ठाता हैं। जिस तरह अग्नि तत्त्‍‌व के सभी गुण रुद्र में समाहित हैं, उसी प्रकार भैरवनाथभी अग्नि के समान तेजस्वी हैं। भैरवजीकलियुग के जाग्रत देवता हैं। भक्ति-भाव से इनका स्मरण करने मात्र से समस्याएं दूर होती हैं।

इनका आश्रय ले लेने पर भक्त निर्भय हो जाता है। भैरवनाथअपने शरणागत की सदैव रक्षा करते हैं

सामान्य व्यक्ति भक्ति भाव से इनकी पूजा कर इनकी कृपा प्राप्त कर सकता है, किंतु इनकी साधना के लियर पहले इनकी दीक्षा लें उसके बाद ही साधना करें।

क्योंकि भैरव जयंती के दिन श्री भैरव जी का प्राकट्य हुआ था इसलिए इनका बाल स्वरुप भी अति पूजनीय और अति शीघ्र फल देने वाला है।

इनकी प्रसन्नता हेतु इनके कवच, मन्त्र का जप और अष्टोत्तरशत नाम का पाठ अति फलदायी है।

यदि ये प्रयोग 41 दिन तक कर लिया जाये तो व्यक्ति का असम्भव लगने वाला कठिन से कठिन कार्य भी श्री बटुक भैरव की कृपा से अति शीघ्र सिद्ध हो जाता है।

श्री वटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम का विशेष महत्व है ।इसके 21 पाठ मन्त्र सहित विधि सहित कोई नित्य करें तो ये सिद्ध हो जाता है और फिर जाग्रत रूप से कार्य करता है।रोग दोष आधी व्याधि का नाश करता है।इससे अभिमन्त्रित भस्म जल किसी रोगी पर छिड़कने से रोग दूर हो जाता है किसी पर कोई ऊपरी बाधा हो तो वो दूर हो जाती है।बहुत ही अच्छा और कृपा
करने वाला है।कलियुग में अन्य देवता तो समय आने पर फल देते है पर भगवान वटुक भैरव जिस दिन से इन्हें पूजो उसी दिन से अपना प्रभाव दिखाने लगते है।

बटुक भैरव रक्षार्थ है और देवी के पुत्र स्वरूप है।

तांत्रोक्त भैरव कवच

ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ||
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ||
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ||

इस आनंददायक कवच का प्रतिदिन पाठ करने से प्रत्येक विपत्ति में सुरक्षा प्राप्त होती है| यदि योग्य गुरु के निर्देशन में इस कवच का अनुष्ठान सम्पन्न किया जाए तो साधक सर्वत्र विजयी होकर यश, मान, ऐश्वर्य, धन, धान्य आदि से पूर्ण होकर सुखमय जीवन व्यतीत करता है|

भैरव अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र:-

व ध्यान –वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल -दण्डौ दधानम्॥

अर्थात्  भगवान् श्री बटुक-भैरव बालक रुपी हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुँघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं। वे उज्जवल रुपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं। कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल औरदण्ड धारण किए हुए हैं।

भगवान श्री बटुक-भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है।

मानसिक पूजन करे :-ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः।
ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।

ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट् ॥
श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः॥
कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः॥
शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः।
अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी – पतिः॥
धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्।
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्॥
कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।
त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्॥
त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय।
बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग -वर – धारकः॥
भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु – लोचनः॥
प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः।
अष्ट -मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान- चक्षुस्तपो-मयः॥
अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः।
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः॥
कपाल-धारी मुण्डी च , नाग- यज्ञोपवीत-वान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा॥
शुद्द – नीलाञ्जन – प्रख्य – देहः मुण्ड -विभूषणः।
बलि-भुग्बलि-भुङ्- नाथो, बालोबाल –
पराक्रम॥
सर्वापत् – तारणो दुर्गो, दुष्ट- भूत- निषेवितः।
कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी वश-कृद्वशी॥
जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया – मन्त्रौषधी -मयः।
सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ – विष्णुरितीव हि॥
॥फल-श्रुति॥

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम्॥
य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट – शतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा॥
न शत्रुभ्यो भयंकिञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः॥
मारी-भये राज-भये, तथा चौ राग्निजे भये।
औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नज भये॥
बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः।
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव – कीर्तनात्॥

॥ क्षमा-प्रार्थना ॥
आवाहन न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।
पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर॥
मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर।
मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे॥

श्री बटुक-बलि-मन्त्रः

घर के बाहर दरवाजे के बायीं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें । निम्न तीनों में से किसी एक मन्त्र २१ का उच्चारण करें, आपके घर के विघ्न बाधा और उपद्रव शांत होंगे।

१. ॥ॐ ॐ ॐ एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारण-बटुक-भैरव-नाथ, सर्व-विघ्नान् नाशय नाशय, इमं स्तोत्र-पाठ-पूजनं सफलं कुरु कुरु सर्वोपचार-सहितं बलि मिमं गृह्ण गृह्ण स्वाहा, एष बलिर्वं बटुक-भैरवाय नमः॥

२. ॥ॐ ह्रीं वं एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारक-बटुक-भैरव-नाथ कपिल-जटा-भारभासुर ज्वलत्पिंगल-नेत्र सर्व-कार्य-साधक मद्-दत्तमिमं यथोपनीतं बलिं गृह्ण् मम् कर्माणि साधय साधय सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वशत्रून् संहारय ते नमः वं ह्रीं ॐ॥

३. ॥ॐ बलि-दानेन सन्तुष्टो, बटुकः सर्व-सिद्धिदः रक्षां करोतु मे नित्यं, भूत-वेताल-सेवितः॥

पाठ से पहले एक माला वटुक मन्त्र की सभी पाठो के बाद एक माला वटुक भैरव की अनिवार्य है, ॐ के बाद ह्रीं लगाकर करें।

प्रत्येक पाठ के पहले और बाद में वटुक भैरव मन्त्र का सम्पुट लगाये।

तेल का दीपक के सामने पाठ करे।और वहीँ एक लड्डू या गुड़ रख ले पूजा होने पर पूजा समर्पण करे और उसके बाद उस लड्डू को घर से बाहर
रख आये या कोई कुत्ता मिले उसे खिला दे कोई न मिले तो चौराहे पर रख दे। ये बलिद्रव्य होता है।

आसन से उठने से पहले आसन के नीचे की भूमि मस्तक से लगाये फिर आसन से उठे ऐसा न करने पर पूजा का आधा फल इंद्र ले लेता है।

1. शत्रु नाश् उपाय :

मित्रों, काफी मित्रों ने पूछा की आज यानि भैरव अष्टमी पर क्या करें तो ये प्रयोग आप आज शाम अपने घर या भैरव मंदिर में कर सकते हैं।

1-यदि आप भी अपने शत्रुओं से परेशान हैं तो आज शाम ये उपाए करें और अपने शत्रुओं से मुक्ति पायें।

एक सफ़ेद कागज़ पर भैरव मंत्र जपते हुए काजल से शत्रु या शत्रुओं के नाम लिखें और उनसे मुक्त करने की प्रार्थना करते हुए एक छोटी सी शहद की शीशी जो 15₹ की किसी भी कंपनी की मिल जाएगी में ये कागज़ मोड़ के डुबो दें व् ढक्कन बंद कर किसी भी भैरव मंदिर या शनि मंदिर में गाड़ दें। यदि संभव न हो तो किसी पीपल के नीचे भी गाड़ सकते हैं। कुछ दिनों में शत्रु स्वयं कष्ट में होगा और आपको छोड़ देगा।

मंत्र जप पूरी प्रक्रिया के दौरान करते रहना होगा। अर्थात नाम लिखने से लेकर गाड़ने तक।
मंत्र:

ॐ क्षौं क्षौं भैरवाय स्वाहा।
ॐ न्यायागाम्याय शुद्धाय योगिध्येयाय ते नम:।
नम: कमलाकांतय कलवृद्धाय ते नम:।

2.शत्रुओं से छुटकारा पाने हेतु एक लघु प्रयोग:-

इस प्रयोग से एक बार से ही शत्रु शांत हो जाता है और परेशान करना छोड़ देता है पर यदि जल्दी न सुधरे तो पांच बार तक प्रयोग कर सकते हैं।

ये प्रयोग शनी, राहु एवं केतु ग्रह पीड़ित लोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

इसके लिए किसी भी मंगलवार या शनिवार को भैरवजी के मंदिर जाएँ और उनके सामने एक आटे का चौमुखा दीपक जलाएं। दीपक की बत्तियों को रोली से लाल रंग लें। फिर शत्रु या शत्रुओं को याद करते हुए एक चुटकी पीली सरसों दीपक में डाल दें। फिर निम्न श्लोक से उनका ध्यान कर 21बार निम्न मन्त्र का जप करते हुए एक चुटकी काले उड़द के दाने दिए में डाले। फिर एक चुटकी लाल सिंदूर दिए के तेल के ऊपर इस तरह डालें जैसे शत्रु के मुंह पर डाल रहे हों। फिर 5 लौंग ले प्रत्येक पर 21 21 जप करते हुए शत्रुओं का नाम याद कर एक एक कर दिए में ऐसे डालें जैसे तेल में नहीं किसी ठोस चीज़ में गाड़ रहे हों। इसमें लौंग के फूल वाला हिस्सा ऊपर रहेगा।

फिर इनसे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करते हुए प्रणाम कर घर लौट आएं।


ध्यान :-

ध्यायेन्नीलाद्रिकान्तम शशिश्कलधरम

                                     मुण्डमा
लं महेशम्।

दिग्वस्त्रं पिंगकेशं डमरुमथ सृणिं

                                   खडगपाशाभयानि।।

नागं घण्टाकपालं करसरसिरुहै

                                      र्बिभ्रतं भीमद्रष्टम।

दिव्यकल्पम त्रिनेत्रं मणिमयविलसद

                                किंकिणी नुपुराढ्यम।।


मन्त्र:-


ॐ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नमः।


यदि भैरव मन्दिर न हो तो शनि मन्दिर में भी ये प्रयोग कर सकते हैं।


दोनों न हों तो पूरी क्रिया घर में दक्षिण मुखी बैठ कर भैरव जी का पूजन कर उनके समक्ष कर लें और दीपक मध्य रात्रि में किसी चौराहे पर रख आएं। चौराहे पर भी ये प्रयोग कर सकते हैं। परन्तु याद रहे चौराहे पर करेंगे तो कोई देखे न वरना कोई टोक सकता है जादू टोना करने वाला भी समझ सकता है। चौराहें पर करें तो चुपचाप बिना पीछे देखे घर लौट आएं हाथ मुंह धोकर ही किसी से बात करें।

यदि एक बार में शत्रु पूर्णतः शांत न हो तो 5 बार तक एक एक हफ्ते बाद कर सकते हैं।


उक्त प्रयोग शत्रु के उच्चाटन हेतु भी कर सकते हैं पर उसमे बत्ती मदार के कपास की बनेगी और दीपक शत्रु के मुख्य द्वार के सामने जलाना होगा। उच्चाटन प्रयोग सोच समझ के करें क्योंकि किसी ने देख लिया तो बहुत पिटाई होगी। पिटाई से बचाने की मेरी कोई गारन्टी नहीं है।


किसी प्रकार की जानकारी ,कुंडली विश्लेषण या समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Monday, 7 November 2016

Saptamukhi hanuman sadhna for Serious Diseases रोगनाशक सप्तमुखी हनुमान साधना

असाध्य रोग नाशक श्री सप्तमुखी हनुमान साधना
 सप्तमुखी हनुमान कवच

मित्रों,
आज के समय में असंयमित जीवन शैली और खान पान के कारण अनेकानेक रोग से लोग परेशान रहते है। डॉक्टरों के पास चक्कर लगाते लगाते एड़ियां घिस जाती हैं और जेब खाली हो जाती है।
कई बार रोगी समाप्त हो जाता है किंतु रोग समाप्त नहीं होता। रोगी को ठीक करने के प्रयास में पूरा परिवार मानसिक रूप से रोगी हो जाता है, निराश हो जाता है।

आज आपको श्री सप्तमुखी हनुमान जी का एक प्रयोग दे रहा हूँ जो असाध्य रोगों में भी बेहद लाभकारी है।

हालाँकि इसमें मेहनत अवश्य है किंतु जितनी मेहनत आप डॉक्टर और हस्पतालों के चक्कर लगाने में करते हैं उसमें से कुछ प्रतिशत ऊर्जा आध्यात्मिक रूप से भी कर दें तो निराशा के गहरे अंधकार से निकलकर चमत्कारिक फल मिलने की संभावना है।

श्री हनुमान जी का तीव्र रोगनाशक मंत्र का जप करनें,जल,दवा अभिमंत्रित कर पीने से बड़े से बड़ा असाध्य रोग भी दूर होता है।
प्रयोग यदि दीक्षित व्यक्ति करें तो ज्यादा उत्तम होगा।

ये प्रयोग 36 दिन का है, इसके लिए किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार से ये प्रयोग शुरू करें।
सूर्योदय का समय सर्वश्रेष्ठ है, अन्यथा सांय काल 7 बजे के बाद करें।

सर्वप्रथम हाथ में जल, अक्षत, रोली और पुष्प लेकर सप्तमुखी हनुमान जी का ध्यान करते हुए संकल्प करें की मैं (नाम) पुत्रश्री(पिता का नाम) गोत्र आज मंगलवार .....तिथि को अपने(या रोगी का नाम) के रोग के समूल नाश के लिए श्री सप्तमुखी हनुमान जी के रोगनाशक मंत्र का 36 दिन तक प्रतिदिन 21 माला जप करूँगा। श्री हनुमान जी मुझसे प्रसन्न हो शीघ्र मेरी मनोकामना पूर्ण करें।

फिर एक भोजपत्र पर चमेली की कलम से अष्टगन्ध की स्याही से निम्नांकित हनुमान यंत्र बना लें और इसका नियमित पंचोपचार पूजन करें।

मित्रों ये हनुमान जी का विशिष्ट यंत्र है जो उनका अनुग्रह दिलवाता है, इसके पूजन से उनकी कृपा शीघ्र मिलती है।

एक तांबे के पात्र में जल भरकर सामने  रख लें ।
इसके बाद श्री सप्तमुखी हनुमान जी के कवच के 5 पाठ करें और फिर सप्तमुखी हनुमान जी के रोग हरण मन्त्र का जप कर जल अभिमंत्रित कर रोगी को पिलाएं।

सप्तमुखी हनुमत्कवचम्

विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीसप्तमुखीवीर हनुमत्कवचस्तोत्रमन्त्रस्य  नारदऋषिः  अनुष्टुप्छन्दः श्रीसप्तमुखीकपिः परमात्मादेवता ह्रां बीजम्  ह्रीं शक्तिः ह्रूं कीलकम् मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।

ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः |ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः |ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः |ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः |ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः |ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः |ॐ ह्रां हृदयाय नमः |ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा |ॐ ह्रूं शिखायै वषट् |ॐ ह्रैं कवचाय हुं |ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् |ॐ ह्रः अस्त्राय फट् |

दिग्बन्ध:- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः इतिदिग्बन्ध

ब्रह्मोवाच :

सप्तशीर्ष्णः प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् जप्त्वा हनुमतो नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते

सप्तस्वर्गपतिः पायाच्छिखां मे मारुतात्मजः सप्तमूर्धा शिरोऽव्यान्मे सप्तार्चिर्भालदेशकम्

त्रिःसप्तनेत्रो नेत्रेऽव्यात्सप्तस्वरगतिः श्रुती नासां सप्तपदार्थोऽव्यान्मुखं सप्तमुखोऽवतु

सप्तजिह्वस्तु रसनां रदान्सप्तहयोऽवतु सप्तच्छन्दो हरिः पातु कण्ठं पातु गिरिस्थितः

करौ चतुर्दशकरो भूधरोऽव्यान्ममाङ्गुलीः सप्तर्षिध्यातो हृदयमुदरं कुक्षिसागरः

सप्तद्वीपपतिश्चित्तं सप्तव्याहृतिरूपवान् कटिं मे सप्तसंस्थार्थदायकः सक्थिनी मम

सप्तग्रहस्वरूपी मे जानुनी जङ्घयोस्तथा सप्तधान्यप्रियः पादौ सप्तपातालधारकः

पशून्धनं च धान्यं च लक्ष्मीं लक्ष्मीप्रदोऽवतु दारान् पुत्रांश्च कन्याश्च कुटुम्बं विश्वपालकः

अनुक्तस्थानमपि मे पायाद्वायुसुतः सदा चौरेभ्यो व्यालदंष्ट्रिभ्यः श्रृङ्गिभ्यो भूतराक्षसात्

दैत्येभ्योऽप्यथ यक्षेभ्यो ब्रह्मराक्षसजंगायात् दंष्ट्राकरालवदनो हनुमान् मां सदाऽवतु

परशस्त्रमन्त्रतन्त्र यन्त्राग्निजलविद्युतः रुद्रांशः शत्रुसङ्ग्रामात्सर्वावस्थासुसर्वभृत

् ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय आद्यकपिमुखाय वीरहनुमतेसर्वशत्रुसंहारणाय ठं ठं ठं ठं ठं ठं ठं ॐ नमः स्वाहा

ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय द्वीतीयनारसिंहास्याय अत्युग्रतेजोवपुषेभीषणाय भयनाशनाय हं हं हं हं हं हं हं ॐ नमः स्वाहा

ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय तृतीयगरुडवक्त्राय वज्रदंष्ट्रायमहाबलाय सर्वरोगविनाशनाय मं मं मं मं मं मं मं ॐ नमः स्वाहा

ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय चतुर्थक्रोडतुण्डाय सौमित्रिरक्षकायपुत्राद्यभिवृद्धिकराय लं लं लं लं लं लं लं ॐ नमः स्वाहा

ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय पञ्चमाश्ववदनाय रुद्रमूर्तये सर्व-वशीकरणाय सर्वनिगमस्वरूपाय रुं रुं रुं रुं रुं रुं रुं ॐ नमः स्वाहा

ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय षष्ठगोमुखाय सूर्यस्वरूपायसर्वरोगहराय मुक्तिदात्रे ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ नमः स्वाहा

ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय सप्तममानुषमुखाय रुद्रावताराय

अञ्जनीसुताय सकलदिग्यशोविस्तारकाय वज्रदेहाय सुग्रीवसाह्यकराय

उदधिलङ्घनाय सीताशुद्धिकराय लङ्कादहनाय अनेकराक्षसान्तकाय

रामानन्ददायकाय अनेकपर्वतोत्पाटकाय सेतुबन्धकाय कपिसैन्यनायकाय

रावणान्तकाय ब्रह्मचर्याश्रमिणे कौपीनब्रह्मसूत्रधारकाय रामहृदयाय

सर्वदुष्टग्रहनिवारणाय शाकिनीडाकिनीवेतालब्रह्मराक्षसभैरवग्रह-यक्षग्रहपिशाचग्रहब्रह्मग्रहक्षत्रियग्रहवैश्यग्रह-शूद्रग्रहान्त्यजग्रहम्लेच्छग्रहसर्पग्रहोच्चाटकाय ममसर्व कार्यसाधकाय

सर्वशत्रुसंहारकाय सिंहव्याघ्रादिदुष्टसत्वाकर्षकायै काहिकादिविविधज्वरच्छेदकाय

परयन्त्रमन्त्रतन्त्रनाशकाय सर्वव्याधिनिकृन्तकाय सर्पादिसर्वस्थावरजङ्गमविषस्तम्भनकराय

सर्वराजभयचोरभयाऽग्निभयप्रशमनाया आधिव्याधिप्रशमनायाध्यात्मिकाधि-दैविकाधिभौतिकतापत्रयनिवारणाय

सर्वविद्यासर्वसम्पत्सर्वपुरुषार्थ-दायकायाऽसाध्यकार्यसाधकाय

सर्ववरप्रदायसर्वाऽभीष्टकराय

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः ॐ नमः स्वाहा य इदं कवचं नित्यं सप्तास्यस्य हनुमतः

त्रिसन्ध्यं जपतो नित्यं सर्वशत्रुविनाशनम् पुत्रपौत्रप्रदं सर्वं सम्पद्राज्यप्रदंपरम्

सर्वरोगहरं चाऽऽयुःकीर्त्तिदं पुण्यवर्धनम् राजानं स वशं नीत्वा त्रैलोक्यविजयी भवेत

् इदं हि परमं गोप्यं देयं भक्तियुताय च न देयं भक्तिहीनाय दत्वा स निरयं व्रजेत्

।।ॐ श्रीअथर्वणरहस्येसप्तमुखीहनुमत्कवचं सम्पूर्णम्।।

श्री हनुमान जी कासप्तमुखी ध्यान कर मंत्र जप करें।

मंत्र:-ॐ नमो भगवते सप्त वदनाय षष्ट गोमुखाय,सूर्य स्वरुपाय सर्व रोग हराय मुक्तिदात्रे ॐ नम: स्वाहा, को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।

जल अभिमंत्रित करने के दो तरीके हैं

एक तो मंत्र जप करते समय अपने सीधे हाथ की एक अंगुली इस जल सेस्पर्श कराये रखे या जितना आप को मंत्र जप करना हैं उतना कर ले और फिर पूरे श्रद्धा विस्वाससे इस जल में एक फूंक मार दे ..यह मन में भावना रखते हुए की इस मंत्र की परम शक्ति अब जल में निहित हैं । चाहे तो दोनों भी कर सकते हैं।

इसके बाद हनुमान जी की आरती करें और भोग लगाएं। फिर पुनः उनसे प्रार्थना करते हुए उक्त जल को रोगी को पिला दें।

हनुमान जी की कृपा से स्वास्थ्य लाभ अवश्य होगा।

सम्पूर्ण साधना काल में मानसिक और शारीरिक पवित्रता बनाएं रखें।

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।।जय श्री राम।।
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Friday, 4 November 2016

Tantrik herb Aam ka banda for wealth धन प्राप्ति और कर्ज मुक्ति हेतु आम का बाँदा

धन प्राप्ति और कर्ज मुक्ति हेतु आम का बाँदा

वनस्पति तंत्र
तांत्रिक जड़ी-बूटियां भाग -12

मित्रों,
  जैसा की पिछले कई वर्षों से अपने विभिन्न लेखों के माध्यम से मैं आपको वनस्पति तंत्र और इनके विशिष्ट प्रयोगों के विषय में बताता आया हूँ। जैसे की हत्थाजोड़ी, काली हल्दी, एकाक्षी नारियल, सहदेवी, बेर का बाँदा, गुंजा, काकजंघा, हरसिंगार, शमी इत्यादि।

इनके अतिरिक्त विभिन्न बाँदो के विषय में भी लेख लिखा था और लोग इनपर अक्सर जानकारी लेने हेतु सम्पर्क करते रहते हैं तो आज सर्व प्रथम आम के बांदे से ही शुरुआत करते हैं।

मित्रों, अधकचरी जानकारी वाले फेसबुकिया तांत्रिक और गूगल गुरु के सिद्ध साधक बांदे के विषय में ये बता देते हैं कि पेड़ पर पेड़ उग गया तो बाँदा हो गया जो की बिलकुल गलत है। यदि ऐसा होता तो बांदे का इतना महत्व न् होता। ऐसे पेड़ तो आपके गली मोहल्ले या पास के पार्क या खेत में कई जगह मिल जायेंगे।

बाँदा स्वयं में एक विशिष्ट प्रजाति की वनस्पति है जो सर्वथा अलग है और बेहद दुर्लभता से मिलती है।

भारतीय तंत्र ज्ञानी इसका सैकडों वर्षों से विभिन्न सिद्धियों और कार्य साधने हेतु प्रयोग करते आये हैं।

वहीं अब पश्चिमी विज्ञानी भी विभिन्न शारीरिक रोगों हेतु इस पर रिसर्च कर रहे हैं। अल्ज़ाइमर, मिर्गी, याददाश्त बढ़ाने से लेकर हृदय रोग और ट्यूमर तक का इलाज बांदे में खोजा जा रहा है और इस खोज के शुरुआती नतीजे काफी अच्छे और उत्साहवर्धक हैं।

वैसे सिर्फ बांदे पर ही 4 पेज का विस्तृत लेख लिख सकता हूँ, उसकी वैज्ञानिक एनेटॉमी, फिजियोलॉजी और पहचान पर
साथ ही तांत्रिक रूप से उनके भेद और उस भेद अनुसार उपयोग पर किंतु फिर ये शीघ्र ही नकलचियों के नाम पेटेंट हो जायेगा इसलिए ऊपर दी जानकारी पर्याप्त है।

किसी भी बांदे को प्राप्त करना इतना सरल नहीं है ये एक मेहनत भरा काम है क्योंकि सर्वप्रथम सही बांदे की पहचान, फिर उचित नक्षत्र, मुहूर्त तक उसकी प्राप्ति का इंतज़ार, फिर विधि पूर्वक प्राप्त करना और कार्यानुरूप उसे सिध्द करना।

अब बात करते हैं आम के बांदे की:-

आम के बांदे को कई अवसरों पर निकाला जा सकता है जैसे रवि-पुष्य नक्षत्र में, उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में, मृगशिरा नक्षत्र में और दीपावली

जिस दिन बाँदा प्राप्त करना हो उससे एक दिन पूर्व संध्या काल में जाकर जल, रोली और मिठाई आदि से उक्त बांदे को निमंत्रण देकर आएं।

अगले दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत्त हो ब्रह्ममुहूर्त में जाकर पुनः उक्त वृक्ष का गन्धाक्षत और मिष्ठान्न से पूजन करें ।

पूजन के समय लगातार (गुप्त) मन्त्र जप करते रहें।

फिर समस्त वस्त्रों को त्याग कर अर्थात नग्न होकर वृक्ष से आज्ञा लेकर उस पर चढ़ें और खैर की लकड़ी की बनी 9 अंगुल प्रमाण की कील से उक्त बांदे को निकाल लें या आवश्यकता अनुसार हिस्सा हाथ से तोड़ लें।

फिर उसे घर लाकर उसका विधिवत पंचोपचार पूजन करें । फिर भोजपत्र पर श्रीमाया यंत्र का अष्टगन्ध की स्याही से अनार की कलम से निर्माण करें और दोनों को गुग्गुल की धूप देते हुए निम्न मंत्र का कम से कम 5 माला जप करें।

*मन्त्र पुनः गुप्त रखा है।*

फिर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और बांदे को यंत्र में लपेट कर किसी लाल वस्त्र में लपेट कर भुजा में धारण करें अथवा अपने मंदिर में ही स्थापित कर नित्य पूजन करें।

तंत्र विद्वानों के अनुसार:-

ऐसा करने से लक्ष्मी निरन्तर प्राप्त होती रहती है और अक्षय रहती है।
यदि कर्ज में डूबे हैं तो इसके प्रयोग से लक्ष्मी प्राप्त कर कर्ज मुक्त और लक्ष्मीवान हो जायेंगे।

आम के बांदे के कुछ अन्य प्रयोग:-

1. भूमिगत धन हेतु:-

आम के बांदे को प्राप्त कर इष्ट मन्त्र से सवा लाख जप से सिद्ध किया जाये और फिर उसका तिलक किया जाये तो गुप्त धन, भूमिगत धन/गड़ा हुआ धन देखने की शक्ति / सिद्धि मिलती है।
( कुछ विद्वानों अनुसार भूमिगत धन प्राप्त होता है।
कुछ विद्वान इसके साथ गोखरू और शाखोट के प्रयोग की भी विधि कहते हैं।)

2. दाम्पत्य सुख हेतु:-

उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में प्राप्त आम के बांदे को प्राप्त या धारण करने से दाम्पत्य जीवन मधुर रहता है और पति पत्नी में कभी मनमुटाव नहीं होता।

3. पति पत्नी से मनमुटाव समाप्ति हेतु:-

आम के बांदे और गौरी शंकर रुद्राक्ष को धारण करने से जीवन साथी से लंबे समय से चला आ रहा मनमुटाव समाप्त होता है। तलाक तक आ गयी नौबत भी ईश्वर कृपा से टल जाती है।

4. सुख समृद्धि हेतु:-

दीपावली पर इसका पूजन कर तिजोरी में रखने से धन और समृद्धि में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है।

5. शत्रुओं से विजय हेतु:-

आम का बाँदा धारण करने से व्यक्ति शत्रुओं को परास्त कर देता है और अजेय बन जाता है।

 मित्रों, पहली बार मैं अपनी किसी पोस्ट में मंत्र नहीं लिख रहा हूँ ये मेरे लिए भी अजीब है किंतु इन नकलची बंदरों के लिए अन्य कोई उपाय नहीं है।

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।।जय श्री राम।।
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