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Wednesday, 28 November 2018

Sarv karya siddhi prad bhairav shabar stotra सर्वकार्य सिद्धिप्रद भैरव स्तोत्र

कालभैरव जयंती 20818 विशेष


सर्व-कार्य-सिद्धि-प्रद भैरव शाबर स्तोत्र

ॐ अस्य श्री भैरव-स्तोत्रस्य सप्त-ऋषिः ऋषयः, मातृका छन्दः, श्रीवटुक-भैरो देवता, ममेप्सित-सिद्धयर्थ जपे विनियोगः ।

“ॐ काल-भैरौ, वटुक भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता-सर्व-सिद्धिर्भवेत् । शोक-दुःख-क्षय-करं निरञ्जनं, निराकारं नारायणं, भक्ति-पूर्ण त्वं महेशं । सर्व-काम-सिद्धिर्भवेत् । काल-भैरव, भूषण-वाहनं काल-हन्ता रुपं च, भैरव गुनी । महात्मनः योगिनां महा-देव-स्वरुपं । सर्व सिद्धयेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।।१।।

ॐ त्वं ज्ञानं, त्वं ध्यानं, त्वं तत्त्वं, त्वं वीजं, महात्मानं त्वं शक्तिः, शक्ति-धारणं त्वं महा-देव-स्वरुपं । सर्व-सिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।।।२।।

ॐ काल-भैरव ! त्वं नागेश्वरं, नाग-हारं च त्वं, वन्दे परमेश्वरं । ब्रह्म-ज्ञानं, ब्रह्म-ध्यानं, ब्रह्म-योगं, ब्रह्म-तत्त्वं, ब्रह्म-बीजं महात्मनः । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।।३।।

त्रिशूल-चक्र-गदा-पाणिं, शूल-पाणि पिनाक-धृक् ! ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं विना गन्धं, विना धूपं, विना दीपं सर्व-शत्रु-विनाशनं । सर्व-सिद्धिर्भवेत् । विभूति-भूति-नाशाय, दुष्ट-क्षय-कारकं, महा-भैरवे नमः । सर्व-दुष्ट-विनाशनं सेवकं सर्व-सिद्धिं कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं महा-ज्ञानी, महा-ध्यानी, महा-योगी, महा-बली, तपेश्वर ! देहि मे सिद्धिं सर्व । त्वं भैरव भीम-नादं च नादनम् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं । अमुकं मारय मारय, उच्चाटय उच्चाटय, मोहय मोहय, वशं कुरु कुरु । सर्वार्थकस्य सिद्धि-रुपं त्वं महा-काल ! काल-भक्षणं महा-देव-स्वरुपं त्वं । सर्व-सिद्धयेत् ! ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं गोविन्द, गोकुलानन्द ! गोपालं, गोवर्द्धनं धारणं त्वं । वन्दे परमेश्वरं । नारायणं नमस्कृत्य, त्वं धाम-शिव-रुपं च । साधकं सर्व सिद्धयेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं राम-लक्ष्मणं, त्वं श्रीपति-सुन्दरं, त्वं गरुड़-वाहनं, त्वं शत्रु-हन्ता च, त्वं यमस्य रुपम् । सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं ब्रह्म-विष्णु-महेश्वरं, त्वं जगत्-कारणं, सृष्टि-स्थिति-संहार-कारकं, रक्त-बीजं, महा-सैन्यं, महा-विद्या, महा-भय-विनाशनम् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं आहार मद्य, मांसं च, सर्व-दुष्ट-विनाशनं, साधकं सर्व-सिद्धि-प्रदा । ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अघोर-अघोर, महा-अघोर, सर्व-अघोर, भैरव-काल ! ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं । ॐ आं क्लीं क्लीं क्लीं । ॐ आं क्रीं क्रीं क्रीं । ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं, रुं रुं रुं, क्रूं क्रूं क्रूं । मोहन ! सर्व-सिद्धिं कुरु कुरु । ॐ आ ह्रीं ह्रीं ह्रीं । अमुकै उच्चाटय उच्चाटय, मारय-मारय । प्रूं प्रूं, प्रें प्रें, खं खं । दुष्टान् हन-हन । अमुकं फट् स्वाहा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ बटुक-बटुक योगं च बटुकनाथ महेश्वरः । बटुकै वट-वृक्षै बटुकं प्रत्यक्ष सिद्धयेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव, शमशान-भैरव, काल-रुप काल-भैरव ! मेरो वैरी तेरो आहार रे । काढ़ी करेजा चखन करो कट-कट । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ नमो हंकारी वीर ज्वाला-मुखी ! तूं दुष्टन बध करो । बिना अपराध जो मोहिं सतावे, तेकर करेजा छिंदि परै, मुख-वाट लोहू आवे । को जाने ? चन्द्र, सूर्य जाने की आदि-पुरुष जाने । काम-रुप कामाक्षा देवी । त्रिवाचा सत्य, फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं डाकिनी, शाकिनी, भूत-पिशाचश्च । सर्व-दुष्ट-निवारणं कुरु-कुरु, साधकानां रक्ष-रक्ष । देहि मे हृदये सर्व-सिद्धिम् । त्वं भैरव-भैरवीभ्यो, त्वं महा-भय-विनाशनं कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं । पच्छिम दिशा में सोने का मठ, सोने का किवाड़, सोने का ताला, सोने की कुञ्जी, सोने का घण्टा, सोने की सांकुली ।
 पहिली साँकुली अठारह कुल नाग के बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति के बाँधों, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन के बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी के बाँधों, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत के बाँधों ।
जरती अगिन बाँधों, जरता मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, सात समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं । उत्तर दिशा में रुपे का मठ, रुपे का किवार, रुपे का ताला, रुपे की कुञ्जी, रुपे का घण्टा, रुपे की सांकुली । पहिली साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को बाँधूँ, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन को बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी को बाँधों, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों । जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं । पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे का किवार, तामे का ताला, तामे की कुञ्जी, तामे का घण्टा, तामे की साँकुली । पहिली साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को बाँधूँ, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन को बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी को बाँधों, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों । जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं । दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ, अस्थि का किवार, अस्थि का ताला, अस्थि की कुञ्जी, अस्थि का घण्टा, अस्थि की साँकुली । पहिली साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को बाँधूँ, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन को बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी को बाँधों, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों । जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं आकाशं, त्वं पातालं, त्वं मृत्यु-लोकं । चतुर्भुजं, चतुर्मुखं, चतुर्बाहुं, शत्रु-हन्ता च त्वं भैरव ! भक्ति-पूर्ण कलेवरम् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! तुम जहाँ जाहु, जहाँ दुश्मन बैठ होय, तो बैठे को मारो । चलत होय, तो चलते को मारो । सोवत होय, तो सोते को मारो । पूजा करत होय, तो पूजा में मारो । जहाँ होय, तहाँ मारो । व्याघ्र लै भैरव, दुष्ट को भक्षौ । सर्प लै भैरव ! दुष्ट को डँसो । खड्ग से मारो, भैरव ! दुष्ट को शिर गिरैवान से मारो, दुष्टन करेजा फटै । त्रिशूल से मारो, शत्रु छिदि परै, मुख वाट लोहू आवे । को जाने ? चन्द्र, सूरज जाने की आदि-पुरुष जाने । काम-रुप कामाक्षा देवी । त्रि-वाचा सत्य फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव त्वं । वाचा चूकै, उमा सुखै, दुश्मन मरै अपने घर में । दुहाई काल-भैरव की । जो मोर वचन झूठा होय, तो ब्रह्मा के कपाल टूटै शिवजी के तीनों नेत्र फूटैं । मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं भूतस्य भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः । त्वं भैरव, सर्व-सिद्धिं कुरु-कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं ज्ञानी, त्वं ध्यानी, त्वं योगी, त्वं जंगम-स्थावरं, त्वं सेवित सर्व-काम-सिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं वन्दे परमेश्वरं, ब्रह्म-रुपं, प्रसन्नो भव । गुनि, महात्मनां महा-देव-स्वरुपं सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।”

विधिः-
 इस स्तोत्र का एक पाठ नित्य प्रातः सायं करने से सर्व-कार्य-सिद्धि होती है ।
शुभ मुहूर्त, पर्व काल में संयम पूर्वक 1100 पाठ कर बलि एवं भोग देने से स्तोत्र सिद्ध होता है।
बटुक भैरव मंदिर में करें तो दूध का भोग दें।
काल भैरव या श्मशान भैरव को मदिरा का भोग दें।

रक्षा हेतु : सिर से पाँव तक लाल धागा नाप कर उक्त स्तोत्र का एक पाठ कर एक गांठ लगाएं , ऐसा करते हुए सात गाँठ लगाकर गले में पहनाने से  सर्व व्याधि, दुर्घटना, अभिचार एवं ऊपरी बाधा से रक्षा होती है ।

नज़र हेतु: 3 पाठ कर भस्म से तिलक करने/ झाड़ने से नज़र दोष तुरन्त हट जाता है।

इसके अतिरिक्त शत्रु निवारण, वशीकरण भी होता है।
स्तोत्र सिद्ध होने पर त्वरित इच्छा पूर्ति भी हो जाती है।

इस दुर्लभ स्तोत्र से सिद्ध कवच धारण करने से समस्त भय से रक्षा और सर्व कार्यसिद्धू होते हैं।

अन्य किसी जानकारी,  समस्या समाधान अथवा कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं

।।जय श्री राम।।

Abhishek B. Pandey

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Monday, 19 November 2018

Tulsi vivah pujan vidhi तुलसी विवाह पूजन विधि

हरि प्रबोधिनी/ देवोत्थानी एकादशी/ तुलसी विवाह की शुभकामनाएं

जगत दुलारे जगन्नाथ श्री विष्णु को जगाने का मन्त्र

इयं तु द्वादशी देव प्रबोधार्थं विनिर्मिता।
त्वय्येव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना ॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते ।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम् ॥
उत्थिते चेष्टते सर्वम् उत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव ।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज ॥
उत्तिष्ठ कमालाकान्त त्रैलोक्यं मङ्गलं कुरु ॥
गता मेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मला दिशः ।
शारदानि च पुष्पाणि ग्रहाण मम केशव ॥

मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरुडध्वजः ।
मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः, मंगलाय तनो हरिः ॥

 भगवान को जगाने के पश्चात सायंकाल तुलसी पूजन करें,

 गंगाजल, हल्दी कुमकुम , धूप दीप , नव वस्त्र, यज्ञोपवीत से तुलसी शालिग्राम का पूजन कर तुलसी स्तोत्र का पाठ करें  

तुलसी स्तोत्रं

जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥

नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥

तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा ।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥

नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् ।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥

तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥

नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाजलिं कलौ ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥

तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले ।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥

तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥

तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः ।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥

नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे ।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥

इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता ।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी ।
धर्म्या धर्नानना देवी देवीदेवमनः प्रिया ॥

लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला ।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् ।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥

तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे ।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनः प्रिये ॥

  ।।इति श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

इसके बाद नवविवाहित वर वधु यानी श्री तुलसी शालिग्राम जी पर पुष्प वर्षा करते हुए मंगलाष्टक का पाठ करें

ॐमत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः। चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः। प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥१॥

गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ, गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः। गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥२॥

नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम्। गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥३॥

 बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः। मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥४॥

गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती। स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥५॥

गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका। शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥६॥

 लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः। अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥७॥

 ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः। विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥८॥
।।जय श्री राम।।

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Saturday, 17 November 2018

श्री महाविष्णु लघु स्मरणिका

अक्षय नवमी पर श्रीमहाविष्णु वंदन

श्री महाविष्णु लघु स्मरणिका

ॐ विश्वं विष्णु:वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः ।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः ।।

रुद्रो बहु-शिरा बभ्रु: विश्वयोनिः शुचि-श्रवाः ।
अमृतः शाश्वतः स्थाणु: वरारोहो महातपाः ।।

सर्वगः सर्वविद्-भानु:विष्वक-सेनो जनार्दनः ।
वेदो वेदविद-अव्यंगो वेदांगो वेदवित् कविः ।।

लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृता-कृतः ।
चतुरात्मा चतुर्व्यूह:-चतुर्दंष्ट्र:-चतुर्भुजः ।।

वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः।
अति-इंद्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः ।।

महाबुद्धि: महा-वीर्यो महा-शक्ति: महा-द्युतिः।
अनिर्देश्य-वपुः श्रीमान अमेयात्मा महाद्रि-धृक ।।
पद्मनाभो-अरविंदाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत ।
महर्धि-ऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुड़ध्वजः ।।

अनिवर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृत्-शिवः ।
श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमतां वरः ।।

श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीनिधिः श्रीविभावनः ।
श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमान्-लोकत्रयाश्रयः ।।

महाक्रमो महाकर्मा महातेजा महोरगः ।
महाक्रतुर्महायज्वा महायज्ञो महाहविः ।।

विश्वमूर्तिमहार्मूर्ति:दीप्तमूर्ति: अमूर्तिमान ।
अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः ।।

एको नैकः सवः कः किं यत-तत-पद्मनुत्तमम ।
लोकबंधु: लोकनाथो माधवो भक्तवत्सल:।।

चतुर्मूर्ति: चतुर्बाहु:श्चतुर्व्यूह:चतुर्गतिः ।
चतुरात्मा चतुर्भाव:चतुर्वेदविदेकपात ।।

समावर्तो-अनिवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रमः ।
दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दुरारिहा ।।

शुभांगो लोकसारंगः सुतंतुस्तंतुवर्धनः ।
इंद्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः ।।

उद्भवः सुंदरः सुंदो रत्ननाभः सुलोचनः ।
अर्को वाजसनः श्रृंगी जयंतः सर्वविज-जयी ।।

सुवर्णबिंदुरक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरेश्वरः ।
महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधः ।।

सहस्रार्चिः सप्तजिव्हः सप्तैधाः सप्तवाहनः ।
अमूर्तिरनघो-अचिंत्यो भयकृत्-भयनाशनः ।।

प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत प्राणजीवनः ।
तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्यु जरातिगः ।।

भूर्भवः स्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः ।
यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञांगो यज्ञवाहनः ।।

यज्ञभृत्-यज्ञकृत्-यज्ञी यज्ञभुक्-यज्ञसाधनः ।
यज्ञान्तकृत-यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव च ।।

आत्मयोनिः स्वयंजातो वैखानः सामगायनः ।
देवकीनंदनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः ।।

शंखभृन्नंदकी चक्री शार्ङ्गधन्वा गदाधरः ।
रथांगपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः ।।

सर्वप्रहरणायुध ॐ नमः इति।

वनमालि गदी शार्ङ्गी शंखी चक्री च नंदकी ।
श्रीमान् नारायणो विष्णु: वासुदेवोअभिरक्षतु ।

।।जय श्री राम।।

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।।जय श्री राम।।

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Tuesday, 6 November 2018

महालक्ष्मी स्तुति दीपावली 2018 mahalakshmi stuti deepawali 2018

महालक्ष्मी पूजन/दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

महालक्ष्मी स्तुति मंत्र

आदि लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु परब्रह्म स्वरूपिणि।
यशो देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।1।।

सन्तान लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पुत्र-पौत्र प्रदायिनि।
पुत्रां देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।2।।

विद्या लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु ब्रह्म विद्या स्वरूपिणि।
विद्यां देहि कलां देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।3।।

धन लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व दारिद्र्य नाशिनि।
धनं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।4।।

धान्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वाभरण भूषिते।
धान्यं देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।5।।

मेधा लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु कलि कल्मष नाशिनि।
प्रज्ञां देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।6।।

गज लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वदेव स्वरूपिणि।
अश्वांश गोकुलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।7।।

धीर लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पराशक्ति स्वरूपिणि।
वीर्यं देहि बलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।8।।

जय लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व कार्य जयप्रदे।
जयं देहि शुभं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।9।।

भाग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सौमाङ्गल्य विवर्धिनि।
भाग्यं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।10।।

कीर्ति लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु विष्णुवक्ष स्थल स्थिते।
कीर्तिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।11।।

आरोग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व रोग निवारणि।
आयुर्देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।12।।

सिद्ध लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व सिद्धि प्रदायिनि।
सिद्धिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।13।।

सौन्दर्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वालङ्कार शोभिते।
रूपं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।14।।

साम्राज्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि।
मोक्षं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।15।।

मङ्गले मङ्गलाधारे माङ्गल्ये मङ्गल प्रदे।
मङ्गलार्थं मङ्गलेशि माङ्गल्यं देहि मे सदा।।16।।

सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तुते।।17।।

शुभं भवतु कल्याणी आयुरारोग्य सम्पदाम्।

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Sunday, 4 November 2018

धनतेरस 2018: धन्वन्तरि मन्त्र, स्तोत्र

धनवंतरी त्रयोदशी की शुभकामनाएं

भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने का अत्यंत सरल मंत्र है:

ॐ धन्वंतराये नमः॥

आरोग्य प्राप्ति हेतु धन्वंतरि देव का पौराणिक मंत्र

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय
धन्वंतराये: अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय
 सर्व रोगनिवारणाय त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

अर्थात् परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है।

पवित्र  धन्वंतरि स्तो‍त्र :

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥

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