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Saturday, 28 February 2015

GOMTI CHAKRA FOR HEALTH AND WEALTH गोमती चक्र विशेष प्रयोग

 गोमती चक्र विशेष प्रयोग / GOMTI CHAKRA  FOR HEALTH AND WEALTH
(होली एवं नवरात्री तंत्र विशेष भाग 2 )

गोमती चक्र से भली-भाँति परिचित हैं। गोमती चक्र समुद्र प्रदत्त  चामत्कारिक तंत्रोक्त वस्तु है गोमती  चक्र के प्रयोग अन्य तंत्रोक्त साधनाओं एंव प्रयोगों की भाँति कठिन अथवा दुष्कर नहीं हैं।गोमतीचक्र के प्रयोग बड़े ही सरल, किन्तु प्रभावकारी प्रयोग  होते है। यह लक्ष्मी जी की प्रिय वस्तुओं में से एक है और इसीलिए लक्ष्मी के आकर्षण और स्थायित्व के लिए प्रयोग किया जाता है।   शुभ मुहूर्तो में किए जा सकने वाले लाभकारी गोमती चक्र प्रयोगों के  कुछ प्रयोगों का वर्णन प्रस्तुत लेख में किया गया है।

(A) आर्थिक बाधा नाश और स्थायी लक्ष्मी हेतु :

1.  यदि आपको अचानक आर्थिक हानि होती हो, तो किसी भी मास के प्रथम सोमवार को २१ अभिमन्त्रित गोमती चक्रों को पीले अथवा लाल रेशमी वस्त्र में बांधकर धन रखने के स्थान पर रखकर हल्दी से तिलक करें । फिर मां लक्ष्मी का स्मरण करते हुए उस पोटली को लेकर सारे घर में घूमते हुए घर के बाहर आकर किसी निकट के मन्दिर में रख दें ।

2. यदि आपके परिवार में खर्च अधिक होता है, भले ही वह किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए ही क्यों न हो, तो शुक्रवार को २१ अभिमन्त्रित गोमती चक्र लेकर पीले या लाल वस्त्र पर स्थान देकर धूप-दीप से पूजा करें । अगले दिन उनमें से चार गोमती चक्र उठाकर घर के चारों कोनों में एक-एक गाड़ दें । ११  चक्रों को लाल वस्त्र में बांधकर धन रखने के स्थान पर रख दें और शेष किसी मन्दिर में अपनी समस्या निवेदन के साथ प्रभु को अर्पित कर दें ।

3. यदि आप कितनी भी मेहनत क्यों न करें, परन्तु आर्थिक समृद्धि आपसे दूर रहती हो और आप आर्थिक स्थिति से संतुष्ट न होते हों, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार को २१ अभिमंत्रित गोमती चक्र लेकर घर के पूजा स्थल में मां लक्ष्मी व श्री विष्णु की तस्वीर के समक्ष पीले रेशमी वस्त्र पर स्थान दें । फिर रोली से तिलक कर प्रभु से अपने निवास में स्थायी वास करने का निवेदन तथा समृद्धि के लिए प्रार्थना करके हल्दी की माला से
 “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र की तीन माला जप करें । इस प्रकार सवा महीने जप करने के बाद अन्तिम दिन किसी वृद्ध तथा ९ वर्ष से कम आयु की एक बच्ची को भोजन करवाकर दक्षिणा देकर विदा करें ।

(B) धन प्राप्ति , स्थायित्व एवं समृद्धि हेतु

1.धन लाभ के लिए 11 गोमती चक्र अपने पूजा स्थान में रखें। उनके सामने श्रीं श्रियै  नम: का जप करें। इससे आप जो भी कार्य या व्यवसाय करते हैं उसमें बरकत होगी और आमदनी बढऩे लगेगी।

2. आठ गोमतीचक्र,  आठ कौड़ी एंव आठ लाल गुंजा साथ लेकर उनका पुजन करें।  उन्हें दक्षिणावर्ती शंख में थोड़े से चावल डालकर स्थापित कर दें।रात्रि में ही उन्हें लाल कपडे में बाँधकर धर अथवा व्यवसाय स्थल की तिजौरी में स्थापित कर दें। यह प्रयोग आपकी आय में वृद्धि के लिए है।

3. 11 गोमती चक्र, 11 काली हल्दी, एक सुपारी और एक सिक्का  पीले वस्त्र में लपेट कर तिजोरी में रखें तो वर्ष भर तिजोरी भरी रहेगी।

4. सात गोमती चक्रों को यदि चांदी अथवा किसी अन्य धातु की डिब्बी में सिंदूर तथा चावल डालकर रखें तो ये शीघ्र शुभ फल देते हैं।

 (C) व्यापर वृद्धि हेतु:

1. अगर किसी का व्यापार न चल रहा हो या व्यापार को कोई नजर लग गई हो या व्यापार में कोई परेशानी बार बार आ रही हो तो अपने व्यापार कि चोखट पर ११  गोमती चक्र एवं ३ लघु नारियल सिद्ध करके शुभ महुर्त में किसी लाल कपड़े में बांध कर टांग दें व् उस पर लाल कामिया सिंदूर का तिलक कर दें ध्यान रखे ग्राहक उस के निचे से निकले बस कुछ ही दिनों में आप का व्यापार तरकी पर होगा

2.  व्यवसाय स्थान पर पीतल के लोटे में जल रखा जाये और साथ गोमती चक्र उसके अन्दर डालकर खुला रखा जाये तथा जिस स्थान पर व्यापारी की बैठक है उसके दक्षिण-पश्चिम दिशा में इसे ऊपर की तरफ़ स्थापित करने के बाद रखा जाये सुबह को उस लोटे से सभी गोमती चक्र को निकाल कर उस पानी को व्यसाय स्थान के बाहर छिडक दिया जाये और नया पानी भरकर फ़िर से गोमती चक्र डालकर रख दिया जाये तो व्यवसाय में बारह दिन के अन्दर ही फ़र्क मिलना शुरु हो जाता है।

3.  व्यापर स्थान पर ग्यारह सिद्ध  गोमती चक्र और एक ९ मुखी रुद्राक्ष  लाल कपड़े में बांध कर धन रखने वाले स्थान पर रख दे तो व्यापर में बढ़ोतरी होती जाएगी।

(D)धन वापसी हेतु :

1. किसी भी शुक्रवार की रात 11 बजे बाद स्नान करके साफ सफेद कपड़े पहनें व पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश/ऊन के आसन पर बैठ जाएं। लकड़ी का एक बाजोट (पटिया) लगाकर उस पर सफेद कपड़ा बिछा दें। बाजोट के ऊपर पांच तिल के तेल के दीपक एक पंक्ति से जलाकर रख दें। दीपकों के सामने ही कुंकुम से रंगे चावलों की पांच ढेरियां बनाएं।
इनके ऊपर पांच गोमती चक्र तथा पांच हकीक पत्थर स्थापित कर पांच और  पांच लघु नारियल स्थापित करें। इन सभी पर कुंकुम का तिलक करें, चावल व फूल चढ़ाएं। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र की 21 माला जप करें-

मंत्र- "ॐ ह्रीं चिर लक्ष्मी ऐं आगच्छ स्वाहा"

साधना समाप्ति के बाद यह पूरी सामग्री लाल कपड़े में बांधकर अपने घर में रख दें। तीन महीने के अंदर खोया हुआ धन वापस मिल जाएगा

2. यदि किसी व्यक्ति को दिया हुआ धन वापस नही मिल रहा हो, तो शनिवार को उस व्यक्ति के  नाम अक्षरों के बराबर गोमती चक्र  लेकर मन ही मन धन की पुनः प्राप्ति की कामना करते हुए गोमतीचक्र को एक हाथ गहरी भूमि खोदकर एकांत स्थान में गाड़ दें। इस प्रयोग से धन वापस मिल जाता है

(E) शत्रु नाश  हेतु :

1. शत्रुओं से परेशानी का अनुभव कर रहें हों, तो दीपावली की रात्रि में बारह बजे के पश्चात् छह गोमती चक्र लेकर शत्रु का नाम लेते हुए उस पर लाल सिन्दूर लगाएँ और किसी एकांत स्थान पर जाकर गाड़ दें। गाडना ऐसे चाहिए कि वे पुनः निकालें नहीं। ऐसा करने से शत्रु बाधा में शीघ्र ही कमी होगी।

2.  गोमती चक्र को होली के दिन थोड़ा सिंदूर लगाकर शत्रु का नाम उच्चारण करते हुए जलती हुई होली में फेंक दें। आपका शत्रु भी मित्र बन जाएगा।

3. अगर कोई व्यक्ति होली के दिन 7 गोमती चक्र को सवा मीटर कपड़े में बांधकर अपने पूरे परिवार के ऊपर से ऊतारकर किसी बहते जल में फेंक दे तो यह एक तरह से परिवार की तांत्रिक रक्षा कवच का कार्य करेगा।


(F) स्वास्थ्य  प्राप्ति हेतु :

1.  गोमती चक्र को साफ जल से धो कर एक लाल वस्त्र बिछा कर उस पर स्थापित करें। सिंदूर लगाएं, देशी घी का दीपक जलाये  धुप दें और निम्न   मंत्र का ११ माला  जप करें
“ॐ वॉ आरोग्यानिकारी रोगानशेषानंम”
 इस प्रकार जब ग्यारह मालाए सम्पन हो जाए तब साधक को वह गोमती चक्र सावधानी पूर्वक एक तरफ रख देना चाहिए वह गोमती चक्र तीन वर्ष तक प्रभावित रहेगा इस का प्रयोग बीमारी पर विशेष रूप से किया जाता है कोई बीमारी हो तो एक साफ गिलास में शुद्ध गंगा जल लेकर उस में यह गोमती चक्र डाल दे और ऊपर लिखे मन्त्र को इक्कीस बार मन ही मन उच्चारण कर उस गोमती चक्र को बाहर निकल दे व् वो पानी रोगी को पिला दें तो वह रोगी जल्दी ही ठीक होने लग जाएगा आश्चर्य कि बात यह है कि ऐसा प्रयोग किसी भी रोगी पर किया जा सकता है चाहे कोई भी रोग क्यों न हो
 तीन वर्ष के बाद इस प्रकार के गोमती चक्र को पुनः सिद्ध किया जा सकता है।

2.  यदि बीमार ठीक नहीं हो पा रहा हो अथवा दवाइयाँ नही लग रही हों, तो उसके सिरहाने पाँच गोमती चक्र उपरोक्त  मंत्र से अभिमंत्रित करके रखें। ऐसा करने से रोगी को शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ होगा।

3  रोग-मुक्ति के लिएः परिवार में यदि कोई असाध्य रोगी है, तो चार गोमती चक्र लाकर उन्हें जल से स्वच्छ करें। डंठल सहित दो पान के पत्ते लें। एक जोड़ा लौंग को घी में डुबोकर पान के पत्तों पर रखें और पान के पत्तों को इस प्रकार लपेट लें कि सारी सामग्री अंदर बंद हो जाए। चाहें तो काले धागे से बांध सकते हैं। अब दाएं हाथ में चार गोमती चक्र तथा बाएं हाथ में पान लेकर होलिका की 11 परिक्रमा करें। प्रत्येक परिक्रमा में रोगी के स्वस्थ होने के बारे में निवेदन करें। होलिका को प्रणाम करें और गोमती चक्र को घर ले आएं। वे चारों गोमती चक्र रोगी के पलंग के चारों पायों में बांध दें। रोगी की जो चिकित्सा चल रही है, उसे चलने दें। रोजाना सुबह उठते ही रोगी के स्वास्थ्य की कामना करें। लाभ मिलेगा।

 4 . यदि किसी का स्वास्थ्य अधिक खराबरहता हो अथवा जल्दी-जल्दी अस्वस्थहोता हो, तो चतुर्दशी को ११ अभिमंत्रित गोमती चक्रों को सफेद रेशमी वस्त्र पर रखकर सफेद चन्दन से तिलक करें । फिर भगवान् मृत्युंजय से अपने स्वास्थ्य रक्षा का निवेदन करें और यथा शक्ति महामृत्युंजय मंत्र का जप करें । पाठ के बाद छह चक्र उठाकर किसी निर्जन स्थान पर जाकर तीन चक्रों को अपने ऊपर से उसारकर अपने पीछे फेंक दें और पीछे देखे बिना वापस आ जायें । बाकि बचे तीन चक्रों को किसी शिव मन्दिर में भगवान्शि व का स्मरण करते हुए शिवलिंग पर अर्पित कर दें और प्रणाम करके घर आ जायें । घर आकर चार चक्रों को चांदी के तार में बांधकर अपने पंलग के चारों पायों पर बांध दें तथा शेष बचे एक को ताबीज का रुप देकर गले में धारण करें ।

5 .  चार गोमती चक्र लेकर उपरोक्त मंत्र से अभिमंत्रित कर रोगी के पलंग के चारों पायों में नकले धागे से बांध दें और स्वस्थ होने पर उन्हें पीपल के निचे गाड़ दें या प्रवाहित कर दें।

6 . पेट संबंधी रोग होने पर 10 गोमती चक्र लेकर रात को पानी में डाल दें तथा सुबह उस पानी को पी लें। इससे पेट संबंध के विभिन्न रोग दूर हो जाते हैं।

(G ) संतान बाधा हेतु :

1 .  महानिशा में माँ लक्ष्मी का ध्यान करते हुए एक गोमती चक्र एंव दो कौडी एक लाल कपड़े में बाँधकर गर्भवती महिला की कमर में बाँध दें। ऐसा करने से गर्भ गिरने की आशंका नहीं रहती है।

2 . अगर संतान कि प्राप्ति में किसी तरह की कोई बाधा आ रही हो तो यह प्रयोग अवश्य ही करे पाँच सिद्ध गोमती चक्र लेकर किसी नदी या तालाब में पाँच बार यह मन्त्र बोल कर विसर्जित कर दे तो संतान की बाधा समाप्त हो जाएगी मन्त्र इस प्रकार है
ओम गर्भरकक्षांम्बिकाय़ै च विद्महे, मंगल देवतायै च धीमहि, तन्नौ देवी प्रचोतयात्।

(H )  गृह क्लेश नाश हेतु ;

1  . यदि आप गृह क्लेश से पीडित है और आपकी सुख शांति दूर हो गई है, तो 3  गोमती चक्र लेकर एक डिब्बी में पहले सिन्दूर रखकर उसके ऊपर रख देना चाहिए और उस डिब्बी को किसी एकांत स्थान पर रख दें। यह प्रयोग घर में किसी अन्य सदस्य को भी नहीं बताएँ, ऐसा करने से शीघ्र ही आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।

2 . अगर पति पत्नी में रोजाना कोई लड़ाई होती हो या झगड़ा इतना बड़ गया हो कि बात तलाक तक पहुच गयी हो तो ऐसे में तीन सिद्ध किये हुए गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में हलु बलजाद कहकर फेकं दें ऐसा हफ्ते में तीन बार करे परेशानी कम हो जाएगी

3 . ग्यारह गोमती चक्र लेकर लाल सिंदूर की डिब्बी में भरकर अपने घर में रखने से दाम्पत्य प्रेम बढ़ता है।

(I ) नौकरी और सफलता हेतु :

1 . यदि गोमती चक्र को लकड़ी की डिब्बी में पीले सिंदूर के साथ रख दिया जाए, तो ऐसे व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलने लगती है। यदि धनागम के सभी मार्ग अवरूद्ध हो रहे हों तों वह प्रयोग करने से शीघ्र ही धन लाभ प्रराम्भ हो जाता है।

2 . अगर नोकरी न मिल रही हो या  नोकरी में कोई तरकी नही हो रही है  तो उसे सिद्ध किया हुआ एक गोमती चक्र रोजाना शिव लिंग पर चढ़ाना चाहिए ऐसा इक्कीस दिन लगातार करने पर नोकरी में बन रही कोई भी अड़चन समाप्त हो जाएगी।

3 . अगर किसी का भाग्य उदय न हो रहा हो तो उसे सिद्ध तीन गोमती चक्र का चूर्ण बना कर शुभ महूर्त में अपने घर के बाहर बिखेर देने से दुर्भाग्य समाप्त हो जाता है

(J ) कार्य सिद्धि  हेतु :
1 . यदि किसी व्यक्ति से कोई कार्य सिद्ध करवाना हो, तो उस व्यक्ति के ऊपर से गोमती चक्र पाँच बार बहते हुए जल में डाल दें।

(K ) विद्यार्थियों  हेतु :

 1. यदि किसी व्यक्ति का मन उखडा-उखडा रहता हो,  किसी काम में मन नही लगता हो, विधार्थियों को शिक्षा में एकाग्रता न मिल रही हो, तो गोमती चक्र को सात बार अपने सिर पर  फिराकर खुद ही अपने पीछें दक्षिण दिशा की ओर फेंक देना चाहिए। यह प्रयोग एकांत स्थान पर करना चाहिए तथा प्रयोग के बाद किसी से इनका जिक्र नहीं करना चाहिए।

(L ) ऊपरी बाधा हेतु :

1  अगर किसी को भुत प्रेत का उपद्रव हो तो सिद्ध किया हुआ गोमती चक्र दो दाने लेकर उस इन्सान के सर से ७ बार वार कर जलती अग्नि में डाल देने से भुत प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है अगर किसी के घर पर ऐसा हो तो पुरे घर पर या रसोई से वार कर अग्नि में डाल देने से घर का भी दोष समाप्त हो जाता है।

2  अगर किसी पर कोई किया कराये का असर है तो पाँच बुध वार लगातार  सिद्ध चार गोमती चक्र अपने सर से वार कर चारो दिशाओ में फ़ेंक दे दोष समाप्त हो जायेगा।

(M ) विवाद विजय हेतु :

 (1 ) अगर किसी को कोट कचहरी के चक्र पड रहे हो तो उसे सिद्ध दो गोमती चक्र लेकर अपने घर से निकलते समय अपने दाए पांव के निचे रख कर ऊपर से पांव रख कर कोट जाने से समस्या कम हो जायेगी।

(2 ) तीन गोमती चक्र को जेब में रखकर किसी मुकदमे या प्रतियोगिता के लिए जाएं तो निश्चित ही सफलता मिलेगी।

(N) सम्मान प्राप्ति हेतु :

 सम्मान की खातिर सिद्ध 5  गोमती चक्र को ५ गुरुवार मंदिर  में किसी ब्राह्मण को दान दे व् साथ में उसे भोजन अवश्य ही करवे राज्य संबंधी कोई भी समस्या हो समाप्त हो जायेगी


(O ) नज़र दोष हेतु :

1 .  अगर किसी बच्चे को नजर जल्दी लगती हो तो उसे सिद्ध गोमती चक्र चांदी में जड़वा कर पहना दे नजर दोष से मुक्ति मिलेगी व वो सवस्थ भी रहेगा ।

2 . यदि  नजर जल्दी लगती हो, तो पाँच गोमती चक्र लेकर किसी सुनसान स्थान पर जायें । फिर तीन चक्रों को अपने ऊपर से सात बार उसारकर अपने पीछे फेंक दें तथा पीछे देखे बिना वापस आ जायें । बाकी बचे
दो चक्रों को तीव्र प्रवाह के जल में प्रवाहीत कर दें ।

3 . यदि आपके बच्चे अथवा परिवार के किसी सदस्य को जल्दी-जल्दी नजर लगती हो, तो आप शुक्ल पक्ष
की प्रथमा तिथि को ११ अभिमंत्रित गोमती चक्र को घर के पूजा स्थल में मां दुर्गा की तस्वीर के आगे लाल या हरे रेशमी वस्त्र पर स्थान दें । फिर रोली आदि से तिलक करके नियमित रुप से मां दुर्गा को ५ अगरबत्ती अर्पित करें । अब मां दुर्गा का कोई भी मंत्र जप करें । जप के बाद अगरबत्ती के भभूत से सभी गोमती चक्रों पर तिलक करें । नवमी को तीन चक्र पीड़ित पर से उसारकर दक्षिण दिशा में फेंक दें और एक चक्र को हरे वस्त्र में बांधकर ताबीज का रुप देकर मां दुर्गा की तस्वीर के चरणों से स्पर्श करवाकर पीड़ित के गले में डाल दें । बाकि बचे सभी चक्रों को पीड़ित के पुराने धुले हुए वस्त्र में बांधकर अलमारी में रख दें ।

4 . यदि आपका बच्चा अधिक डरता हो, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को हनुमान् जी के मन्दिर में जाकर एक अभिमंत्रित गोमती चक्र पर श्री हनुमानजी के दाएं कंधे के सिन्दूर से तिलक करके प्रभु के चरणों में रख दें और एक बार श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें । फिर चक्र उठाकर लाल कपड़े में बांधकर बच्चे के गले में डाल दें।

आशा है आप इनमे से कुछ प्रयोग आगामी होली और नवरात्री पर अवश्य करेंगे और लाभ उठाएंगे। 

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवं कुंडली विश्लेषण हेतु संपर्क कर सकते हैं। 

।। जय श्री राम ।। 
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7060202653




Friday, 27 February 2015

Hattha Jodi uses Holi Tantra/ हत्था जोड़ी प्रयोग होली विशेष

हत्था जोड़ी के कुछ ताँत्रिक प्रयोग --
( होली एवम् नवरात्र तंत्र विशेष भाग -1)
मित्रों आज हत्था जोड़ी के कुछ विशेष प्रयोग दे रहा हूँ जिन्हें आप होली, दीपावली नवरात्रि या अन्य विशिष्ट मुहूर्त में भी प्रयोग कर लाभ उठा सकते हैं।
अत्यधिक प्रचार के कारण हत्था जोड़ी का नाम सब जानते हैं और बहुत लोगों ने खरीदी भी है पर प्रयोग कैसे करें इसकी जानकारी उनके पास नहीं है।
बहुत से मित्र कई बार ये प्रयोग मांग चुके हैं तो यहाँ कुछ प्रयोग दे रहा हूँ।
यदि आपके पास हत्था जोड़ी है और आपको कोई लाभ नहीं हुआ तो उसे सिंदूर डालकर चाँदी की डिब्बी में रखें । प्रतिदिन दो माला का जाप करें ऐसा करने से समस्त समस्याओं में लाभ मिलेगा।
मंत्र - ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं फट।

1.  लक्ष्मी प्राप्ति हेतु
प्राण प्रतिष्ठित की हुई हत्था जोड़ी लेकर मंगलवार के दिन लाल सिंदूर में डालकर पूजा स्थल पर रख दें. और प्रतिदिन संध्या में  घी का दीपक जलाकर इस मंत्र का जाप करें. व्यापारी अपने तिजोरी में रखें।
मंत्र - ह्रीं ऐश्वर्य श्रीं धन धान्याधिपत्यै ऐं पूर्णत्य
लक्ष्मी सिद्धये नमः।

2.   घर में शांति एवं दुर्घटना से सुरक्षा हेतु
समाधान - प्राण प्रतिष्ठित की हुई
हत्था जोड़ी लेकर पीले सिंदूर में डालकर शनिवार के दिन ब्रह्म मुहुर्त में तिल तेल का दीपक जलाकर एक माला जाप करें ऐसा प्रति शनिवार करें
मन्त्र - ॐ ह्रीं श्रीं श्रियै फट।

3. तंत्र टोने का उतारा
कोई व्यक्ति  डिप्रेशन में या मानसिक
संतुलन खो देता है या किसी शारीरिक व्याधि से पीड़ित है तो प्राण प्रतिष्ठित की हुई हत्था जोड़ी लेकर पीले सिंदूर में डालकर एक घी का दीपक जलाएं. दीपावली, होली, अमावस्या या किसी भी कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन 21 माला मंत्र का जाप करें।
मंत्र - ॐ ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं हुम् फट।

और अंत में व्यक्ति के ऊपर से उतार कर किसी सुनसान स्थान में गाड़ दें।
(उतारे का प्रयोग मात्र जानकारी हेतु दिया है, उतारा पूरी विधि से होगा अतः  उतारा किसी योग्य जानकार व्यक्ति से ही करवाएं अन्यथा निस्तारण के वक्त उक्त शक्ति पलटवार कर सकती है।)

4. राजनीतिक या मान सम्मान मुकदमा में
सफलता के लिए
प्राण प्रतिष्ठित हत्था जोड़ी वशीकरण
की अद्भुत शक्ति होती है. इसे अष्टगंध एवं लाल सिंदूर में डालकर पीले वस्त्र में लपेट कर दायीं भुजा में बाँधकर या दायीं जेब में रख कर किसी शुभ कार्य में अपने साथ ले जायें तो सफलता अवश्य मिलेगी। इसके लिए प्रतिदिन तीन माला का जाप 11 दीप प्रज्जवलित कर करें।
मंत्र - ॐ ह्रीं क्लीं फट।

5. तंत्र बाधा के कारण बदन कमर दर्द में
प्राण प्रतिष्ठित हत्थाजोड़ी को शनिवार को 11 माला जप कर लाल धागे में पिरोकर कमर में बांधें
मन्त्र- ॐ ह्रीं क्लीं ह्रीं स्वाहा।

6. सर्व सुख समृद्धि के लिए
प्राण प्रतिष्ठित हत्था जोड़ी को सिंदूर में लाल वस्त्र में लपेटकर पूजा स्थान में रख मंत्र का जाप करें। हवन करें.
मंत्र - ॐ श्रीं ह्रीं क्रीं ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं फट।

इसके अतिरिक्त वशीकरण, आकर्षण आदि के लिए भी इसका प्रयोग खूब होता है।
अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।
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Monday, 23 February 2015

Original rudraksh Identification and uses / असली रुद्राक्ष की पहचान और प्रयोग ( The Tantrik Herbs -10 )

असली रुद्राक्ष की पहचान और प्रयोग / Original rudraksh Identification and uses

आईये समझते हॆ असली रुद्धाक्ष की पहचान को :-
 शास्त्रों में कहा गया है की जो भक्त रुद्राक्ष धारण करते
हैं भगवान भोलेनाथ उनसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। लेकिन
सवाल यह उठता है अक्सर लोगों को रुद्राक्ष
की असली माला नहीं मिल पाती है जिससे भगवान शिव
की आराधना में खासा प्रभाव नहीं पड़ता है। अब हम
आपको रुद्राक्ष के बारे में कुछ जानकारियां देने जा रहे हैं
जिसके द्वारा आप असली और नकली रूद्राक्ष की पहचान
कर सकते है और किस तरह नकली रूद्राक्ष
बनाया जाता है -

रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए
पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर
किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा।
इसके आलावा आप रुद्राक्ष को पानी में डाल दें अगर वह
डूब जाता है तो असली नहीं नहीं नकली। लेकिन यह जांच
अच्छी नहीं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने
या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पके होने
पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष मेटल या किसी अन्य
भारी चीज से भी बना रुद्राक्ष भी पानी में डूब जाता है।
सरसों के तेल मे डालने पर रुद्राक्ष अपने रंग से गहरा दिखे
तो समझो वो एक दम असली है।

1- रूद्राक्ष को जल में डालने से यह डूब जाये
तो असली अन्यथा नकली। किन्तु अब यह पहचान
व्यापारियों के शिल्प ने समाप्त कर दी। शीशम
की लकड़ी के बने रूद्राक्ष आसानी से पानी में डूब जाते हैं।

2- तांबे का एक टुकड़ा नीचे रखकर उसके ऊपर रूद्राक्ष
रखकर फिर दूसरा तांबे का टुकड़ा रूद्राक्ष के ऊपर रख
दिया जाये और एक अंगुली से हल्के से दबाया जाये
तो असली रूद्राक्ष नाचने लगता है। यह पहचान अभी तक
प्रमाणिक हैं।

3- शुद्ध सरसों के तेल में रूद्राक्ष को डालकर 10 मिनट
तक गर्म किया जाये तो असली रूद्र्राक्ष होने पर वह
अधिक चमकदार हो जायेगा और यदि नकली है तो वह
धूमिल हो जायेगा। प्रायः पानी में डूबने वाला रूद्राक्ष
असली और जो पानी पर तैर जाए उसे नकली माना जाता है।
लेकिन यह सच नहीं है। पका हुआ रूद्राक्ष पानी में डूब
जाता है जबकी कच्चा रूद्राक्ष पानी पर तैर जाता है।
इसलिए इस प्रक्रिया से रूद्राक्ष के पके या कच्चे होने
का पता तो लग सकता है, असली या नकली होने का नहीं।

4) प्रायः गहरे रंग के रूद्राक्ष को अच्छा माना जाता है
और हल्के रंग वाले को नहीं। असलियत में रूद्राक्ष
का छिलका उतारने के बाद उस पर रंग चढ़ाया जाता है।
बाजार में मिलने वाली रूद्राक्ष की मालाओं को पिरोने के
बाद पीले रंग से रंगा जाता है। रंग कम होने से कभी-
कभी हल्का रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने
वाले रूद्राक्ष प्रायः इस्तेमाल किए हुए होते हैं,
ऐसा रूद्राक्ष के तेल या पसीने के
संपर्क में आने से होता है।

5) कुछ रूद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छेद होता है ऐसे
रूद्राक्ष बहुत शुभ माने जाते हैं। जबकि ज्यादातर
रूद्राक्षों में छेद करना पड़ता है। 

7) दो अंगूठों या दो तांबे के सिक्कों के बीच घूमने
वाला रूद्राक्ष असली है यह भी एक भ्रांति ही है। इस तरह
रखी गई वस्तु किसी दिशा में तो घूमेगी ही। यह उस पर
दिए जाने दबाव पर निर्भर करता है।

8) रूद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से कुरेदें। अगर
रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा।

9) नकली रूद्राक्ष के उपर उभरे पठार एकरूप हों तो वह
नकली रूद्राक्ष है। असली रूद्राक्ष की उपरी सतह
कभी भी एकरूप नहीं होगी। जिस तरह दो मनुष्यों के
फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते उसी तरह दो रूद्राक्षों के
उपरी पठार समान नहीं होते। हां नकली रूद्राक्षों में
कितनों के ही उपरी पठार समान हो सकते हैं।

10) कुछ रूद्राक्षों पर शिवलिंग, त्रिशूल या सांप आदी बने
होते हैं। यह प्राकृतिक रूप से नहीं बने होते बल्कि कुशल
कारीगरी का नमूना होते हैं। रूद्राक्ष को पीसकर उसके बुरादे
से यह आकृतियां बनाई जाती हैं। इनकी पहचान
का तरीका आगे लिखूंगा।

11) कभी-कभी दो या तीन रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े
होते हैं। इन्हें गौरी शंकर या गौरी पाठ रूद्राक्ष कहते हैं।
इनका मूल्य काफी अधिक होता है इस कारण इनके
नकली होने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। कुशल
कारीगर दो या अधिक रूद्राक्षों को मसाले से चिपकाकर
इन्हें बना देते हैं।

12) प्रायः पांच मुखी रूद्राक्ष के चार मुंहों को मसाला से
बंद कर एक मुखी कह कर बेचा जाता है जिससे
इनकी कीमत बहुत बढ़ जाती है। ध्यान से देखने पर
मसाला भरा हुआ दिखायी दे जाता है। कभी-कभी पांच
मुखी रूद्राक्ष को कुशल कारीगर और धारियां बना अधिक
मुख का बना देते हैं। जिससे इनका मूल्य बढ़ जाता है।
13) प्राकृतिक तौर पर बनी धारियों या मुख के पास के पठार
उभरे हुए होते हैं जबकी मानव निर्मित पठार सपाट होते हैं।
ध्यान से देखने पर इस बात का पता चल जाता है।
इसी के साथ मानव निर्मित मुख एकदम सीधे होते हैं
जबकि प्राकृतिक रूप से बने मुख पूरी तरह से सीधे
नहीं होते।

14) प्रायः बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर उन्हें
असली रूद्राक्ष कहकर बेच दिया जाता है। रूद्राक्ष
की मालाओं में बेर की गुठली का ही उपयोग किया जाता है।

15) रूद्राक्ष की पहचान का तरीका- एक कटोरे में
पानी उबालें। इस उबलते पानी में एक-दो मिनट के लिए
रूद्राक्ष डाल दें। कटोरे को चूल्हे से उतारकर ढक दें।
दो चार मिनट बाद ढक्कन हटा कर रूद्राक्ष निकालकर
ध्यान से देखें। यदि रूद्राक्ष में जोड़ लगाया होगा तो वह
फट जाएगा। दो रूद्राक्षों को चिपकाकर गौरीशंकर रूद्राक्ष
बनाया होगा या शिवलिंग, सांप आदी चिपकाए होंगे तो वह
अलग हो जाएंगे।

जिन रूद्राक्षों में सोल्यूशन भरकर उनके मुख बंद करे होंगे
तो उनके मुंह खुल जाएंगे। यदि रूद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर
फटा होगा तो थोड़ा और फट जाएगा। बेर
की गुठली होगी तो नर्म पड़ जाएगी, जबकि असली रूद्राक्ष
में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा।
यदि रूद्राक्ष पर से रंग उतारना हो तो उसे नमक मिले
पानी में डालकर गर्म करें उसका रंग हल्का पड़ जाएगा।
वैसे रंग करने से रूद्राक्ष को नुकसान नहीं होता है।
 रूद्राक्ष के २१ प्रकार::::::::::::::::::::::::
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1. एक मुखी रुद्राक्ष को साक्षात शिव का रूप माना जाता है। इस एकमुखी रुद्राक्ष द्वारा सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. तथा भगवान आदित्य का आशिर्वाद भी प्राप्त होता है।

2. दो मुखी रुद्राक्ष या द्विमुखी रुद्राक्ष शिव और शक्ति का स्वरुप माना जाता है। इसमें अर्धनारीश्व का स्वरूप समाहित है तथा चंद्रमा की शीतलता प्राप्त होती है।

3. तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि देव तथा त्रिदेवों का स्वरुप माना गया है। तीन मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा पापों का शमन होता है।

4. चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्म स्वरुप होता है। इसे धारण करने से नर हत्या जैसा जघन्य पाप समाप्त होता है। चतुर्मुखी रुद्राक्ष धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष को प्रदान करता है।

5. पांच मुखी रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र का स्वरूप माना जाता है। यह पंच ब्रह्म एवं पंच तत्वों का प्रतीक भी है। पंचमुखी को धारण करने से अभक्ष्याभक्ष्य एवं स्त्रीगमन जैसे पापों से मुक्ति मिलती है. तथा सुखों को प्राप्ति होती है।

6. छह मुखी रुद्राक्ष को साक्षात कार्तिकेय का स्वरूप माना गया है। इसे शत्रुंजय रुद्राक्ष भी कहा जाता है यह ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्ति तथा एवं संतान देने वाला होता है।

7. सात मुखी रुद्राक्ष या सप्तमुखी रुद्राक्ष दरिद्रता को दूर करने वाला होता है। इस सप्तमुखी रुद्राक्ष को धारण करने से महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

8. आठ मुखी रुद्राक्ष को भगवान गणेश जी का स्वरूप माना जाता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष राहु के अशुभ प्रभावों से मुक्ति दिलाता है तथा पापों का क्षय करके मोक्ष देता है।

9. नौ मुखी रुद्राक्ष को भैरव का स्वरूप माना जाता है। इसे बाईं भुजा में धारण करने से गर्भहत्या जेसे पाप से मुक्ति मिलती है। नौमुखी रुद्राक्ष को यम का रूप भी कहते हैं। यह केतु के अशुभ प्रभावों को दूर करता है।

10. दस मुखी रुद्राक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप कहा जाता है। दस मुखी रुद्राक्ष शांति एवं सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है। इसे धारण करने से समस्त भय समाप्त हो जाते हैं।

11. एकादश मुखी रुद्राक्ष साक्षात भगवान शिव का रूप माना जाता है। एकादश मुखी रुद्राक्ष को भगवान हनुमान जी का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने से ज्ञान एवं भक्ति की प्राप्ति होती है।
12. द्वादश मुख वाला रुद्राक्ष बारह आदित्यों का आशीर्वाद प्रदान करता है। इस बारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान यह फल प्रदान करता है।

13. तेरह मुखी रुद्राक्ष को इंद्र देव का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने पर व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।

14. चौदह मुखी रुद्राक्ष भगवान हनुमान का स्वरूप है। इसे सिर पर धारण करने से व्यक्ति परमपद को पाता है।

15. पंद्रह मुखी रुद्राक्ष पशुपतिनाथ का स्वरूप माना गया है। यह संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है।

16. सोलह मुखी रुद्राक्ष विष्णु तथा शिव का स्वरूप माना गया है। यह रोगों से मुक्ति एवं भय को समाप्त करता है।

17. सत्रह मुखी रुद्राक्ष राम-सीता का स्वरूप माना गया है। यह रुद्राक्ष विश्वकर्माजी का प्रतीक भी है। इसे धारण करने से व्यक्ति को भूमि का सुख एवं कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का मार्ग प्राप्त होता है।

18. अठारह मुखी रुद्राक्ष को भैरव एवं माता पृथ्वी का स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है.

19. उन्नीस मुखी रुद्राक्ष नारायण भगवान का स्वरूप माना गया है यह सुख एवं समृद्धि दायक होता है।

20. बीस मुखी रुद्राक्ष को जनार्दन स्वरूप माना गया है। इस बीस मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति को भूत-प्रेत आदि का भय नहीं सताता।

21. इक्कीस मुखी रुद्राक्ष रुद्र स्वरूप है तथा इसमें सभी देवताओं का वास है। इसे धारण करने से व्यक्ति ब्रह्महत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है।

गौरीशंकर रुद्राक्ष- 
यह शिव और शक्ति का मिश्रित स्वरूप माना जाता है। उभयात्मक शिव और शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है। यह आर्थिक दृष्टि से विशेष सफलता दिलाता है। पारिवारिक सामंजस्य, आकर्षण, मंगलकामनाओं की सिद्धी में सहायक है। यह शिव पार्वती का स्वरूप है। 
घर, पूजा ग्रह अथवा तिजोरी में मंगल कामना सिद्धि के लिये रखना लाभदायक है। इसे उपयोग में लाने से परिवार में सुख-शांति की वृद्धि होती है वातावरण शुद्ध बना रहता है। गले में धारण करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
गौरीशकर रुद्राख सर्वसिद्धि प्रदाता रुद्राक्ष कहा गया है। यह सात्त्विक शक्ति में वृद्धि करने वाला, मोक्ष प्रदाता रुद्राक्ष है। जिसके घर में यह रुद्राक्ष होता है वहां लक्ष्मी का स्थाई वास हो जाता है तथा उसका घर धन-धान्य, वैभव, प्रतिष्ठा और दैवीय कृपा से भर जाता है। संक्षेप में यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को देने वाला चतुर्वर्ग प्रदाता रुद्राक्ष है।गौरीशंकर रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष के दानें परस्पर जुड़े होते हैं इन्हें गौरीशंकर रुद्राक्ष कहते हैं। गौरीशकर रुद्राक्ष सभी लग्न के जातकों के लिए शुभ माना गया है इसे धारण करने से अनेक लाभ होता है।
उपयोग से लाभ:-
1-गौरीशंकर रुद्राक्ष 
धारण करने से अभक्ष्य-भक्षण और पर स्त्री गमन जैसे- जघंन्य अपराध भी भगवान शिव द्वारा नष्ट होता है।
2-इसे धारण करने से अनेक विपरीत लिंग के लोग आकर्षित होते हैं तथा उनका सुख प्राप्त होता है।
3-यह रुद्राक्ष धनागमन एवं व्यापार उन्नति में अत्यन्त सहायक माना गया है
4-गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करने से पुरुषों को स्त्री सुख प्राप्त होता है तथा परस्पर सहयोग एवं सम्मान तथा प्रेम की वृद्धि होती है।
5-यह रुद्राक्ष शिवभक्ति के लिए अधिक उपयोगी माना गया है भगवान शिव और मां शक्ति इस रुद्राक्ष में निवास करती हैं।

अधिक जानकारी समस्या समाधान एवम् कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।
 पं. अभिषेक पाण्डेय 
7579400465
8909521616(whats app .)

Sunday, 15 February 2015

Indrajal Mahaindrajal इंद्रजाल महाइन्द्रजाल ( The Tantrik Herbs -9 )

तंत्र में अति प्रचलित कुछ वस्तुएं

Indrajal  Maha Indrajaal
इंद्रजाल या महा इंद्रजाल :

मित्रों
इंद्रजाल एक ऐसा नाम है जिसे सुनते ही शरीर में एक रोमांच पैदा हो जाता है। प्राचीनकाल में तंत्र , जादू, काला जादू, भ्रम और रहस्यमय विद्या के लिए इंद्रजाल शब्द प्रयुक्त होता था।

आज हम बात कर रहे हैं इंद्रजाल नामक वनस्पति की। अपने नाम के अनुरूप ही ये भी बेहद जादुई और रहस्यमयी है। बेचने वाले कहते हैं इंद्रजाल सफेद लाल और पीला तीन रंग का आता है जो गलत है या कहिये उन्हें इससे अधिक पता ही नहीं है वो सिर्फ सुनी सुनाई बातें बता रहे हैं।

इंद्रजाल एक वनस्पति है जो समुद्रों में शैवालों मूंगे की चट्टानों और समुद्र की तलहटी में बेहद गहराई में पायी जाती है।

"ये डेढ़ दर्जन से अधिक रंगों में पायी जाती है और दुनिया भर के समुद्रों में इसकी 500 से अधिक् प्रजातियां अभी तक ज्ञात हैं। "

इसका आकार शिराओं की भांति लहरदार लकीरों के रूप में होता है।  प्रजाति के अनुरूप
कुछ में शिराओं के मध्य समस्त स्थान खाली रहता है तो कुछ की शिराओं में रोयेंदार भराव भी होता है।

इसे रखने का सबसे अच्छा तरीका है इसे फ्रेम करवाकर रखना जिससे ये सुरक्षित भी रहता है और प्रभाव में कोई कमी नहीं आती।

ये लक्ष्मी और भौतिक सुख प्रदान करने वाला माना जाता है। भारत में जहां इसे तंत्र से जोड़कर देखते हैं वहीँ पश्चिम में ये मात्र सजावट की वस्तु है पर बेहद महंगी।
मिस्र में इसे सुख समृद्धि और उन्नति का प्रतिक माना गया है। मान्यताओं के अनुसार-

सिद्ध इंद्रजाल को अपने पास रखने से नजरदोष, ऊपरी बाधा, नकारात्मक शक्तियों और जादू टोने का प्रभाव  आदि का प्रभाव क्षीण होता है।

यह प्रबल आकर्षण शक्ति संपन्न है।

अभिमन्त्रित कर ताबीज़ में भर कर धारण करने से सर्वजन पर वशीकरण प्रभाव होता है।

रवि पुष्य नक्षत्र, नवरात्र, होली दीपावली इत्यादि शुभ समय में मंत्रों से इंद्रजाल वनस्पति को मंत्रों से अभिमंत्रित कर साधक अपने कर्मक्षेत्र में और अध्यात्मिक क्षेत्र में लाभ प्राप्त कर सकता है।

घर के मुख्य द्वार पर लगाने से घर में नकारात्मक शक्तियों भूत प्रेत आदि का प्रवेश नहीं होता । वास्तु दोषों का नाश होता है।

रोगी व्यक्ति के दक्षिण दिशा में लगाने से मृत्यु भय नहीं होता और उत्तर में लगाने से स्वास्थ्य लाभ होता है।

दुकान व्यापार स्थल के दक्षिण दिशा में लगाने से व्यापार में उन्नति होती है और दुश्मनों प्रतिद्वंदियों द्वारा किये कराये के असर से बचाव होता है।

तंत्र में जहां एक ओर ये सुरक्षा करता है वहीँ दूसरी ओर इसके घातक प्रयोग भी है जैसे शत्रु को मतिमूढ़ यानि पागल करना, गम्भीर त्वचा रोग लगा देना और रक्त दोष उतपन्न करना।

वही चिकित्सा के क्षेत्र में पारंपरिक चिकित्सा में ये जीवन दायिनी भी है। अन्य वनस्पति यौगिकों के साथ मिलाकर ये लीवर के गम्भीर रोगों और पुरुषों के प्रोस्टेट समस्या और कैंसर के लिये अतिउपयोगी औषधि भी है।

अधिक जानकारी समस्या समाधान एवम् कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
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Wednesday, 4 February 2015

यज्ञ-हवन के लाभ Benefits of Yagya & Havan : A scientific review

यज्ञ /हवन के लाभ:-

मित्रों, 
यज्ञ / हवन को सनातन संस्कृति में बहुत अधिक महत्व दिया गया है। आध्यात्मिक दृष्टि के साथ साथ ये शारीरिक और मानसिक लाभ भी पहुँचाते हैं। पूर्वकाल की कई कथाएं प्रचलित हैं जहाँ यज्ञ के माध्यम से विभिन्न कार्य सिद्ध किये गए निसन्तानो. को संतान और कुरूप या रोगी को स्वस्थग और रूपवान  बना दिया गया। 

लेकिन आज परिस्तिथि पूर्णतः भिन्न है।  लोगों के पास पूजा का ही समय नही है तो  कहाँ से करें? कुछ दशक पूर्व तक संध्या करने वाले लोग भी नित्य हवन करते थे विशेषतः ब्राह्मण सामुदाय  परन्तु अब वहां भी इसका स्थान नही के बराबर ही रह गया है।  
अधार्मिक, नास्तिक, तर्कवादी और पश्चिमी सभ्यता के चाटुकार  आधुनिकतावादी और अतिवैज्ञानिक लोग यज्ञ के लाभ को नकारते हैँ परन्तु यज्ञ के मूल को नहीँ समझते ।

आइये देखते हैं यज्ञ के पीछे छिपा विज्ञानं :-

 यज्ञ के पीछे एक सांइटिफिक कारण होता है क्योँकि यज्ञ मेँ सब जड़ी बूटियाँ ही डाली जाती हैँ। आम की लकड़ी, देशी घी, तिल, जौँ, शहद, कपूर, अगर तगर, गुग्गुल, लौँग, अक्षत, नारियल शक्कर और अन्य निर्धारित आहूतियाँ भी बनस्पतियाँ ही होती हैँ। नवग्रह के लिए आक, पलाश, खैर,शमी,आपामार्ग,  पीपल, गूलर, कुश, दूर्वा आदि सब आयुर्वेद मेँ प्रतिष्ठित आषधियाँ हैँ। यज्ञ करने पर मंत्राचार के द्वारा न सिर्फ ये और अधिक शक्तिशाली हो जाती हैँ बल्कि मंत्राचार और इन जड़ीबूटियोँ के धुएँ से यज्ञकर्ता/ यजमान / रोगी की आंतरिक बाह्य और मानसिक शुद्धि भी होती है। साथ ही मानसिक और शारीरिक बल तथा सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है।  हमारे पूर्वजोँ ने इसे यूँ ही महत्व नहीँ दिया, यज्ञ मेँ जो  आहूतियाँ देते है, तब यज्ञ की अग्नि मेँ या इतने हाई टेम्परेचर मेँ Organic material जल जाता है और inorgnic residue शेष रह जाता है जो दो प्रकार का होता है। एक ओर कई complex chemical compounds टूट कर सिम्पल या सरल रूप मेँ आ जाते है वहीँ कुछ सरल और जटिल react कर और अधिक complex compound बनाते हैँ। ये सब यज्ञ के धुएँ के साथ शरीर मेँ श्वास और त्वचा से प्रवेश करते हैँ और उसे स्वस्थ बनाते हैँ।

 सभी वनस्पतियों में कुछ तरल / तैलीय द्रव्य होते हैं जिन्हे विज्ञानं की भाषा में एल्केलॉइड कहा जाता है।  आज  वैज्ञानिक इन्ही एलेकेलॉइड्स पर शोध कर वििभिन्न पौधों से  कई नई दवाइयाँ बना रहे हैं और पहले भी बना चुके हैं. परन्तु वैज्ञानिक इन एल्केलॉइड्स  केमिकल नकल ही बनाएंगे जो गोली/ कैप्सूल या सीरप  रूप में आप महंगे दामों पर खरीदेंगे क्यूंकि एक  दवा की रिसर्च में करोड़ों रूपए खर्च होते हैं जो कंपनिया आपसे ही वसूलती हैं।  साथ में साइड इफ़ेक्ट अलग क्यूंकि गोली कैप्सूल आदि को बनाने में कई अन्य केमिकल लगते हैं।  मनुष्य को दी जाने वाली तमाम तरह की दवाओं की तुलना में अगर औषधीय जड़ी बूटियां और औषधियुक्त हवन के धुएं से कई रोगों में ज्यादा फायदा होता है।  


 जबकि यज्ञ या हवन में जब ये वनस्पतियां जलती हैं तो ये अल्केलॉइड्स धुएं के साथ उड़ कर अआप्के शरीर से चिपक जाते हैं और और श्वास से भीतर जाते हैं और धुआं मनुष्य के शरीर में सीधे असरकारी होता है और यह पद्वति दवाओं की अपेक्षा सस्ती और टिकाउ भी है।  यानि सिर्फ हवन करने से ही नही. बल्कि हवन में हिस्सा लेने और उसके धुएं से भी आप विभिन्न रोगों से बच सकते हैं और अपने शरीर को स्वस्थ बना सकते हैं।

   कई बार आपने सुना होगा कि किसी बाबा ने भभूत खिलाकर रोगी को ठीक कर दिया या फलाँ जगह मँदिर आश्रम आदि की भभूत से चमत्कार हुऐ, रोगी ठीक हुए यह सत्य होता है और उसका वैज्ञानिक कारण मैँ आपको ऊपर बता चुका हूँ।   इसी प्रकार यज्ञ की शेष भभूत सिर्फ चुटकी भर माथे पर लगाने और खाने पर बेहद लाभ देती है क्योँकि ये भभूत  micronised/ nano particles के रूप मेँ होती है और शरीर के द्वारा बहुत आसानी से अवशोषित(absorb) कर ली जाती है। जिस हवन मेँ जौँ एवं तिल मुख्य घटक यानि आहूति सामग्री के रूप मेँ उपयोग किये गये होँ बहाँ से थोड़ी सी भभूत प्रसाद स्वरूप ले लेँ और बुखार, खाँसी, पेट दर्द, कमजोरी तथा मूत्र विकार आदि मेँ एक चुटकी सुबह शाम पानी से फाँक ले तो दो तीन दिन मेँ ही आराम मिल जाता है। प्राचीन काल से ऋषि मुनियों के साथ साथ युग पुरुष सवामी दयानंद सरस्वती ने भी ये सिद्ध किया की  यज्ञादि से वर्षा भी अच्छी होती है जिससे अन्न जल की कोई कमी नहीँ होती ये भी प्रमाणिक है।


क्या कहती है हवन पर हुई वैज्ञानिक खोजें:- 

यज्ञ के धूम्र / धुएं के लाभ 

(१) एक वेबसाइट  रिपोर्ट के अनुसार फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की।  जिसमे उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है।  जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक  एल्डिहाइड नमक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओ को मरती है तथा वातावरण को शुद्द करती है।  इस रिसर्च  के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।  गुड़  को जलने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।  

(२) टौटीक नामक वैज्ञानिक  ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।  
(३) हवन की मत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च करी की क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही.  

उन्होंने ग्रंथो. में वर्णित हवन सामग्री जुटाई  और जलने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है।  
फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा की सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलने से हवा में मौजूद विषाणु  बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर  आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बॅक्टेरिया का स्तर ९४ % कम हो गया। 
यही नही. उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद  जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओ का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था।  बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक  रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।  यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है।  

रिपोर्ट में लिखा गया की हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।



क्या हो हवन की समिधा (जलने वाली लकड़ी):- 
समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं।  
सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।

मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।
इनके अतिरिक्त देवताओं के लिए पलाश वृक्ष की समिधा जाननी चाहिए।


हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार

प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।

होम द्रव्य ४ प्रकार के कहे गये हैं-

 होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है।
(१) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़   पानड़ीआदि
(२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे  फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि
(३) मिष्ट - शक्कर, छूहारा, दाख आदि
(४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव  आमला  मालकांगनी हरताल तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दन  जटामांसी आदि

उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ हवन में प्रयोग होनी चाहिए। अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए। यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है।

 सामान्य हवन सामग्री

तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे  नागर मौथा  , इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल,  ब्राह्मी तुलसी  किशमिशग, बालछड़  , घी 

विभिन्न हवन सामग्रियाँ विभिन्न प्रकार के लाभ देती हैं विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता देती हैं. 
प्राचीन काल  में रोगी को स्वस्थ करने हेतु भी विभिन्न हवन होते थे।  जिसे वैद्य या चिकित्सक रोगी और रोग की प्रकृति के अनुसार करते थे पर कालांतर में ये यज्ञ या हवन मात्र धर्म से जुड़ कर ही रह गए और इनके अन्य उद्देश्य लोगों द्वारा भुला दिए गये.

सर भारी या दर्द  होने पर किस प्रकार हवन से इलाज होता था इस श्लोक से देखिये :-
                            श्वेता ज्योतिष्मती चैव हरितलं मनःशिला।। 
                          गन्धाश्चा गुरुपत्राद्या  धूमं  मुर्धविरेचनम्।।                 (चरक सू* ५/२६-२७)
अर्थात अपराजिता , मालकांगनी , हरताल, मैनसिल, अगर तथा तेज़पात्र  औषधियों को हवन करने से शिरो व्विरेचन होता है।  
परन्तु अब ये चिकित्सा पद्धति विलुप्त प्राय हो गयी है।  

एक नज़र कुछ रोगों और उनके नाश के लिए प्रयुक्त होने वाली हवन सामग्री पर 
१. सर के रोग:- सर दर्द, अवसाद, उत्तेजना, उन्माद मिर्गी  आदि के लिए
 ब्राह्मी, शंखपुष्पी , जटामांसी, अगर , शहद , कपूर , पीली  सरसो 

२ स्त्री रोगों, वात  पित्त, लम्बे समय से आ रहे  बुखार  हेतु 
बेल, श्योनक,  अदरख, जायफल, निर्गुण्डी, कटेरी, गिलोय इलायची, शर्करा, घी, शहद, सेमल, शीशम 

३ पुरुषों को पुष्ट बलिष्ठ करने और पुरुष रोगों हेतु 
सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , अश्वगंधा , पलाश , कपूर , मखाने,  गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र ,  लौंग , बड़ी इलायची , गोला 
४. पेट एवं लिवर  रोग हेतु 
भृंगराज , आमला , बेल ,  हरड़, अपामार्ग, गूलर, दूर्वा , गुग्गुल घी , इलायची

५ श्वास  रोगों हेतु 
वन तुलसी, गिलोय, हरड  , खैर  अपामार्ग, काली मिर्च, अगर तगर, कपूर, दालचीनी, शहद, घी, अश्वगंधा, आक, यूकेलिप्टिस



मित्रों हवन यज्ञ का विज्ञानं इतना वृहद है की एक लेख में समेत पाना मुश्किल है परन्तु एक छोटा  सा प्रयास किया है की इसके महत्त्व पर कुछ सूचनाएँ आप तक पहुंचा सकूँ। विभिन्न खोजें और हमारे ग्रन्थ यही निष्कर्ष देते हैं की सवस्थ पर्यावरण, समाज और शरीर के लिए हवन का आज भी बहुत महत्त्व है।  जरूरत बस इस बात की है की हम पहले इसके मूल कारण को समझे और फिर इसे अपनाएं। 

(ये मेरा वर्ष २०१२ में लिखा एक पुराना  लेख है , लेख को अधिक पुष्ट और प्रामाणिक बनाने के लिए एक भारतीय वैज्ञानिक का लेख जिसे उपर  वैज्ञानिक खोजें  नाम दिया है पूरा का पूरा अनुवादित कर लिया गया है)


।। जय  श्री राम।।
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Monday, 2 February 2015

श्री विद्या माँ राजराजेश्वरी ललिता त्रिपुरसुंदरी मन्त्र Ma Lalita Tripur sundari mantra

सभी मित्रों को माघ पूर्णिमा, राजराजेश्वरी माँ ललिता त्रिपुरसुंदरी जयंती और संत रैदास जयंती की शुभकामनायें।

माँ ललिता दस महाविद्याओं में से एक हैं. ललिता जयंती का व्रत भक्तजनों के लिए बहुत ही फलदायक होता है. ऐसी मान्यता है कि यदि कोई इस दिन मां ललिता देवी की पूजा भक्ति-भाव सहित करता है तो उसे देवी मां की कृपा अवश्य प्राप्त होती है और जीवन में हमेशा सुख शांति एवं समृद्धि बनी रहती है।

श्री ललिता जयंती कथा

देवी ललिता आदि शक्ति का वर्णन देवी पुराण में प्राप्त होता है. जिसके अनुसार पिता दक्ष द्वारा अपमान से आहत होकर जब दक्ष पुत्री सती ने अपने प्राण उत्सर्ग कर दिये तो सती के वियोग में भगवान शिव उनका पार्थिव शव अपने कंधों में उठाए चारों दिशाओं में घूमने लगते हैं. इस महाविपत्ति को यह देख भगवान विष्णु चक्र द्वारा सती के शव के 108 भागों में विभाजित कर देते हैं. इस प्रकार शव के टूकडे़ होने पर सती के शव के अंश जहां गिरे वहीं शक्तिपीठ की स्थापना हुई. उसी में एक माँ ललिता का स्थान भी है. भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से विख्यात हुईं इन्हें ललिता देवी के नाम से पुकारा जाने लगा.

एक अन्य कथा अनुसार ललिता देवी का प्रादुर्भाव तब होता है जब ब्रह्मा जी द्वारा छोडे गये चक्र से पाताल समाप्त होने लगा. इस स्थिति से विचलित होकर ऋषि-मुनि भी घबरा जाते हैं, और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जलमग्न होने लगती है. तब सभी ऋषि माता ललिता देवी की उपासना करने लगते हैं. उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर देवी जी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं. सृष्टि पुन: नवजीवन को पाती है.

श्री ललिता जयंती महत्व

मां ललिता देवी मंदिर में हमेशा ही भक्तों का तांता लगा रहता है, परन्तु जयंती के अवसर पर मां की पूजा-आराधना का कुछ विशेष ही महत्व होता है.

यह पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यतानुसार इस दिन देवी ललिता भांडा नामक राक्षस को मारने के लिए अवतार लेती हैं. राक्षस भांडा कामदेव के शरीर के राख से उत्पन्न होता है. इस दिन भक्तगण षोडषोपचार विधि से मां ललिता का पूजन करते है. इस दिन मां ललिता के साथ साथ स्कंदमाता और शिव शंकर की भी शास्त्रानुसार पूजा की जाती है.

श्री ललिता पूजा -

देवी ललिता जी का ध्यान रुप बहुत ही उज्जवल व प्रकाश मान है.
माँ की पूजा तीन स्वरूपों में होती है
1. बाल सुंदरी- 8 वर्षीया कन्या रूप में

2. षोडशी त्रिपुर सुंदरी - 16 वर्षीया सुंदरी

3. ललिता त्रिपुर सुंदरी- युवा स्वरूप

माँ की दीक्षा और साधना भी इसी क्रम में करनी चाहिए। ऐसा देखा गया है की सीधे ललिता स्वरूप की साधना करने पर साधक को शुरू में कई बार आर्थिक संकट भी आते हैं और फिर धीरे धीरे साधना बढ़ने पर लाभ होता है।

बृहन्नीला तंत्र के अनुसार काली के दो भेद कहे गए हैं कृष्ण वर्ण और रक्त वर्ण।

कृष्ण वर्ण काली दक्षिणकालिका स्वरुप है और
रक्त वर्ण त्रिपुर सुंदरी स्वरुप।

अर्थात माँ ललिता त्रिपुर सुंदरी रक्त काली स्वरूपा हैं।

महा विद्याओं में कोई स्वरुप भोग देने में प्रधान है तो कोई स्वरूप मोक्ष देने में परंतु त्रिपुरसुंदरी अपने साधक को दोनों ही देती हैं।

शुक्ल पक्ष के समय प्रात:काल  माता की पूजा उपासना करनी चाहिए. कालिकापुराण के अनुसार देवी की दो भुजाएं हैं, यह गौर वर्ण की, रक्तिम कमल पर विराजित हैं.

ललिता देवी की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है. दक्षिणमार्गी शाक्तों के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है.  इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है।

ये श्री यंत्र की मूल अधिष्ठात्री देवी हैं। आज श्री यंत्र को पंचामृत से स्नान करवा कर यथोचित पूजन और ललिता सहस्त्रनाम, ललिता त्रिशति ललितोपाख्यान और श्री सूक्त का पाठ करें।

ध्यान:-

बालार्क युत तैजसं त्रिनयनां रक्ताम्बरोल्लसिनीं।
नानालंकृतिराजमानवपुषं बालोडुराट शेखराम्।।
हस्तैरिक्षु धनुः सृणि सुमशरं पाशं मुदा विभ्रतीं।
श्री चक्र स्थितःसुन्दरीं त्रिजगतधारभूतां भजे।।

मन्त्र:-

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नमः।

इस ध्यान मन्त्र से माँ को रक्त पुष्प , वस्त्र आदि चढ़ाकर अधिकाधिक जप करें। आपकी आर्थिक भौतिक समस्याएं समाप्त होंगी।

माँ ललिताम्बा सबका कल्याण करें।

आज मंगलवार- कर्कपुष्य नक्षत्र-पूर्णिमा का भी दुर्लभ संयोग है।
आज के दिन श्री हनुमान जी का पूजन, चोला चढ़ाना , चालीस पाठ मन्त्र जप आदि भी बहुत शुभफलप्रद है।
मंगलदोष के निवारण और मंगल जनित रोगों पीड़ाओं के शमन के लिए भी आज का दिन अतिशुभ है।

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Sunday, 1 February 2015

मोती शंख / Moti Shankh

तंत्र में अतिप्रचलित कुछ वस्तुएं
मोती शंख
मोती शंख एक बहुत ही दुर्लभ प्रजाति का शंख माना जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार यह शंख बहुत ही चमत्कारी होता है। दिखने में बहुत ही सुंदर होता है। मोती जैसी चमकीली आभा के कारण इसे मोती शंख कहते हैं।
जिस प्रकार पूजन शंख को विष्णु और दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी स्वरुप माना जाता है। उसी प्रकार मोती शंख को सौभाग्य लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है।
- गृह कलह नाश और घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने  के लिए इसे एक ताम्बे के पात्र में जल भरकर उसके बीचों बीच घर के ईशान कोण या ब्रह्मस्थल में स्थापित करे।
-  यदि गुरु पुष्य योग में मोती शंख को कारखाने में स्थापित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है।
-  मोती शंख में जल भरकर लक्ष्मी के चित्र के साथ रखा जाए तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
-  किसी शुभ नक्षत्र या दीपावली में  मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज
श्री महालक्ष्मै नम:
108 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक करें। बाद में शंख और चावल एक लाल कपड़े की पोटली बनाकर तिजोरी या रूपये गहने आदि रखने के स्थान पर रख दें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।
- अक्षय तृतीया पर एक लाल कपड़े में मोती शंख , गोमती चक्र, लघु नारियल, पीली कौड़ी और चाँदी के सिक्के का माँ लक्ष्मी के सामने पूजन कर 21 पाठ  श्री सूक्त का करे और पोटली बना कर मन्दिर में स्थापित कर दें। पोटली खोले बिना नित्य ऊपर से ही धूप दीप करें। थोड़े ही दिनों में आर्थिक समस्या समाप्त होने लगेगी।
-  यदि व्यापार में घाटा हो रहा है तो एक मोती शंख धन स्थान पर रखने से व्यापार में वृद्धि होती है।
- रात्रि में इसमें जल भरकर रख दें और सुबह उससे चेहरे पर मसाज करने से चेहरे के दाग धब्बे खत्म हो जाते हैं और चेहरा कांतियुक्त हो जाता है।
- देशी चिकित्सा पद्धति में इससे नाद करने से फेफड़े और हृदय रोग में लाभ होना बताया गया है।
- अन्नभण्डार में स्थापित करने पर वो सदैव परिपूर्ण रहता है।
- इसमें बीज भरकर पूजा कर अगले दिन खेत में बोने से फसल अछि होती है। ऐसा भी एक प्रयोग सामने आया है।
- रोगी व्यक्ति को इसमें रखा जल पिलाने से वो शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करता है।
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