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Saturday, 6 September 2025

नाग पंचमी 2025

नाग पंचमी 2025 विशेष: कथा, नाग मन्त्र, स्तोत्र एवं उपाय

मित्रों, 
 कल 29 जुलाई 2025 को नाग पंचमी का पर्व है जो देश भर में मनाया जाएगा। 

नाग पंचमी के पूजन का शुभ मुहूर्त

सुबह 5:42 से सुबह 8:31 तक
सुबह 10:47 से दोपहर 12:28 तक
दोपहर 12:27 से 2:09 तक  
दोपहर 3:51 से शाम को 5:32 तक
प्रदोष काल 

विशेष योग:-
 इस वर्ष नागपंचमी का विशेष महत्व और शुभदायक है।
इस वर्ष सौभाग्य योग और शिव योग बन रहे हैं।

***पूजा के लिए नीचे बना यंत्र सफेद कागज पे बना सकते हैं दिशानुरूप सर्पों का नाम लिख कर अष्ट नाग का पूजन करें।

मनुष्यों और नागों का संबंध पौराणिक कथाओं में झलकता रहा है । शेषनाग के सहस्र फनों पर पृथ्वी टिकी है, भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषशय्या पर सोते हैं, शिवजी के गले में सर्पों के हार हैं, कृष्ण-जन्म पर नाग की सहायता से ही वसुदेवजी ने यमुना पार की थी । जनमेजय ने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने हेतु सर्पों का नाश करनेवाला जो सर्पयज्ञ आरम्भ किया था, वह आस्तीक मुनि के कहने पर इसी पंचमी के दिन बंद किया था । यहाँ तक कि समुद्र-मंथन के समय देवताओं की भी मदद वासुकि नाग ने की थी । अतः नाग देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है – नागपंचमी

नाग पंचमी के आरंभिक इतिहास के संबंध में श्रीवराह पुराण में लिखा है कि इस शुभ तिथि को सृजन शक्ति के अधिष्ठता ब्रम्हाजी ने अपने प्रसाद से शेषनाग को अलंकृत किया और पृथ्वी का भार धारण करने जैसी सेवा के लिए जनता ने उनकी प्रशंसा की थी। कहा जाता है कि तभी से इस त्योहार को नाग जाति के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने का प्रतीक मान लिया गया है। यजुर्वेद में भी नागों के गुण, कीर्ति, प्रशंसा और पूजन का उल्लेख मिलता है। इस व्रत का माहात्म्य पढऩे या सुनने मात्र से ही समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

कहीं घरके मन्दिर आले में स्थापना गेरू चन्दन से की जाती है तो कहीं द्वार पर। कहीं मूर्ति पूजी जाती है तो कहीं बाम्बी। कहीं पञ्च नाग , कहीं अष्ट नाग तो कहीं 9 नाग पूजे जाते है ।

 नाग पंचमी की कथा, नाग मन्त्र एवम् स्तोत्र:-

नागपंचमी का पौराणिक कथा एवं इतिहास : 

नाग पंचमी पर स्थानीय कथाएं अधिक प्रचलित होती हैं  जिनमे कहीं राजा और नागदेव, कहीं सती पत्नी और नागदेव तो कहीं किसान और नागदेव की कथाएँ अधिक प्रचलित हैं।

पुराणों से:-

 राक्षसों और देवताओं में संधि के उपरांत दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया । इस मंथन से अनेकों तत्व सहित अत्यन्त श्वेत उच्चैःश्रवा नमक  एक अश्व भी निकला। जिसे देखकर नाग माता कद्रु अपनी सौतन विनता को बोली की देखो, यह अश्व सफेद है, परन्तु इसके बाल काले दिखाई पड़ते हैं। विनता ने कहा  नहीं, न तो यह अश्व श्वेत रंग का है न ही काला। इतना सुनकर कद्रु ने बोली आप मेरे साथ चाहो तो शर्त लगा लो जो भी शर्त हारेगी वो दूसरे की दासी बन होगी ।

विनता सत्य बोल रही थी अतएव उसने शर्त स्वीकार कर ली। तदोपरांत दोनों अपने स्थान पर चली गईं। उधर कद्रु ने अपने पुत्र नागों को बुला कर और सारा वृतान्त सुनाया और बोली कि आप सभी सूक्ष्म रूप के होकर इस अश्व से चिपक जाओ जिससे  मैं शर्त जीतकर विनता को दासी बना सकूं। अपनी माता के कथन सुनकर नागों ने बोला – मां हम आपका साथ नहीं दे सकते चाहे आप शर्त जीतो या हारो, परन्तु हम इस प्रकार छल नहीं करेंगे।

कद्रु ने कहा- तुमने मेरी बात नहीं मानी ? इसका दंड झेलने के लिए तैयार रहो मैं तुम्हें श्राप दे रही हूँ कि ‘पांडवों के वंशज  जनमेजय द्वारा जब सर्प यज्ञ किया जायेगा, तब तुम सब उस हवन अग्नि जल जाओगे। माता का श्राप सुन सभी घबरा गए  और बासुकि नाग को साथ लेकर ब्रह्म लोक  ब्रह्मा जी के पास गए और आप बीती घटना कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने बोले – चिन्ता न करो, यायावर वंश में एक तपस्वी जरतकारु नामक ब्राह्मण का जन्म होगा। उसके साथ तुम्हारी बहन का विवाह होगा। उन दोनों का के घर आस्तिक नमक विख्यात पुत्र जन्म लेगा, वह जनमेजय द्वारा सर्प यज्ञ को रोक कर तुम्हारी रक्षा करेगा।

ब्रह्मा जी ने श्रावण शुक्ल पंचमी पंचमी के दिन ये वरदान  दिया था तथा आस्तिक मुनि ने भी उक्त कथानुसार  पंचमी को ही इन नागों की रक्षा की थी। इस लिए  तब से नागपंचमी की तिथि नाग वंश को अत्यन्त प्रिय है।
 कहते हैं जो लोग श्रावण शुक्ल पंचमी को व्रत कर नागों की पूजा करते हैं । बारह मास तक चतुर्थी तिथि को एक बार भोजन कर पंचमी को व्रत करते हैं एवं १२ प्रमुख नाग क्रमश अनंत, बासुकि, शंख व पद्म, कंबल, कर्कोटक तथा अश्वतर, घृतराष्ट,शंखपाल, एवं कालिया, तक्षक, और पिंगल इन सभी  नागों की बारह माह में क्रमशः पूजा विधान के साथ करते है। जिस यज्ञ विधान से जनमेजय अपने पिता परीक्षित के लिए यज्ञ  किया था।

जो कोई नाग पंचमी के दिन श्रद्धापूर्वक यह व्रत करता है उसे शुभफल सहित सर्प भय दूर हो जाता है । यह भी माना जाता है की इस दिन नागों को दूध से स्नान-पान कराने  नाग देव अभय दान देते हैं ।उनके परिवार में सर्पभय दूर हो जाता है। ऐसे जातक पर से वर्तमान में  कालसर्पयोग भी क्षीण हो जाता है।

नाग पंचमी पर इन सूक्त, स्तोत्र के पाठ और मन्त्र जप करते हुए भगवान शिव का पूजन, अभिषेक करने से, नाग देवता की पूजा करने से सर्प भय का नाश होता है और सर्प दंश से रक्षा होती है।

।।श्री सर्प सूक्तम।।

ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।

कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।

सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।

पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।

ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।

समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।

रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।

(१)नाग गायत्री मंत्र :-

ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि
तन्नो सर्प: प्रचोदयात ll

(२) सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र—

महाभारत में जब राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षक से बदला लेने के लिए सर्पनाश का यज्ञ किया तो सब सांप मरने लगे , उस समय उन्हें आस्तिक नामक मुनि ने बचाया जो भगवान शिव की मानस पुत्री मनसा देवी के पुत्र थे।

मनसा देवी के इस स्तोत्र का पाठ करने से सर्प दंश से रक्षा होती है और मनसा देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

ध्यानः-
चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् ।
नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।।

।। मूल-स्तोत्र ।।

।। श्रीनारायण उवाच ।।
नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः ।
 नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।।
बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः । 
नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।।
तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः । 
साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।।

।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् ।
 यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।।
न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति ।
 वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।।

(३) यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है । जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता ।

जो पुरुष पूजा के समय इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे तथा उसके वंशज को भी सर्प का भय नहीं हो सकता। इन बारह नामों से विश्व इनकी पूजा करता है। उसके सामने उग्र से उग्र सर्प भी शांत हो जाता है।

जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।
 वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।। जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीति च ।
 महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।। 
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत् ।
 तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।।

 
 (४)कालसर्प योग एवम राहु केतु शांति हेतु:-

चांदी और तांबे के 1-1 जोड़ी सर्प लेकर नाग देवता मन्दिर में अर्पण करें। दूध से अभिषेक एवं चन्दन का तिलक कर भोग अर्पण करें।

नाग मन्दिर न हो तो शिव लिंग पर इन्हें चढ़ाकर ॐ नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र से यथासम्भव अधिकाधिक जप करते हुए अभिषेक करें।

(५) नाग देवता कृपा प्राप्ति मंत्र :- 

इस मंत्र का जप करते हुए सांप की बाम्बी या किसी बड़े वृक्ष जिसके नीचे बिल या कोटर हो मिट्टी के पात्र में दूध चढ़ाएं।

'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।। 
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:। 
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।' 

अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम...। 

(६) धन धान्य प्राप्ति:-

 मान्यता है कि पृथ्वी के नीचे पाताल पुरी के सप्तलोकों में एक नाग लोक भी है जिसके राजा नागदेवता हैं। पाताल लोक सोने चांदी, बहुमूल्य रत्नों और विभिन्न प्रकार के दुर्लभ मणियों से भरा है। नाग देवता की नियमित पूजा करने पर वो प्रसन्न होकर वे अपने अमूल्य खजाने से व्यक्ति को धन और ऐश्वर्य से परिपूर्ण कर देते हैं। 

।।नवनाग स्तोत्र ll

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत

ll इति श्री नवनाग स्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll

(७) भय नाश एवं रक्षा हेतु:-

श्री नाग स्तोत्र

अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।
सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका: ॥१॥

मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात् ।
विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डल ॥२॥

अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक: ।
कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥३॥

यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर: ।
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥४॥

॥ इति श्रीनागस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
 

(८) कन्या के विवाह हेतु:-

जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो वे नाग देवता के मंदिर में ऐसी प्रतिमा जिसमें नाग नागिन का जोड़ा हो या दो नाग सम्मुख आलिंगन बद्ध यानी लिपटे हुए हों, उनका देवी एवं देवता का अलग अलग श्रृंगार चढ़कर कर विधि विधान से पूजन करवाएं।

(९) विशेष भोग:-

नाग देवता की प्रसन्नता के लिए  इस दिन खीर बनाकर पूजन कर भोग लगाकर किसी पेड़ की नीचे खीर रख दें।
( विशेष बात: ये खीर सिर्फ नाग देवता के लिये होती है इसे भूलकर भी स्वयम न खायें न ही बच्चों या किसी अन्य व्यक्ति को दें, इसलिए थोड़ी ही बनाएं और भगवान को अर्पित कर दें)

 अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

7579400465

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चंद्र ग्रहण 2025

पूर्ण चन्द्रग्रहण, 07 सितम्बर 2025, भारत में दिखेगा

भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा, दिनांक 07 सितम्बर, रविवार को यह ग्रहण अंटार्कटिका, पश्चिमी प्रशांत महासागर, आस्ट्रेलिया, एशिया, हिन्द महासागर, यूरोप, पूर्वी अटलांटिक महासागर के कुछ हिस्सों में दिखाई देगा। आइसलैण्ड, अफ्रीका के पाश्चिमी भाग और अटलांटिक महासागर के कुछ भाग में उपच्छागा का अंत चन्द्रोदय के समय दिखाई देगा। यह ग्रहण भारत के सभी हिस्सो में दिखाई देगा। पूरे देश में ग्रहण के आरम्भ से अंत तक सभी चरण दिखेगें इसका सूतक दोपहर 12:56 से आरम्भ हो जायेगा


ग्रहण समय

उपच्छाया प्रवेश रात्रि 08:56 से

ग्रहण प्रारम्भ रात्रि 09:56 से

पूर्णता प्रारम्भ मध्यरात्रि 11:00 से

ग्रहण मध्य मध्यरात्रि 11:41 से

पूर्णता समाप्त मध्यरात्रि 12:23 से

ग्रहण समाप्त (मोक्ष) मध्य रात्रि 01:26 पर।

उपच्छाया अन्त मध्यरात्रि 02.26 पर

ग्रहण (परिमाण) 1:36

ग्रहण की अवधि 3 घण्टे 30 मिनट

पूर्णता की अवधि 01 घंटा 23 मिनट

यह ग्रहण सम्पूर्ण भारत मे पूर्ण रूप से दिखाई देगा अतः धर्मनिष्ठ एवं श्रद्धालुजनों को ग्रहण-संबंधी पथ्य-अपथ्य का विचार करते हुए ग्रहण संबंधी व्रत-दानादि का अनुष्ठान करना चाहिए। 

ग्रहण-सूतक काल:

चंद्र ग्रहण का सूतक 3 पहर पूर्व यानी 9 घंटे पहले शुरू होता है, उपछाया प्रवेश रात 8:56 से है तो सूतक दिन में 12 :56 से मान्य होगा।

सूतक में क्या करें: 
सूतक के समय तथा ग्रहण के समय दान तथा जापादि का महत्व माना गया है. पवित्र नदियों अथवा तालाबों में स्नान किया जाता है और मंत्र जप और सिद्धि की जाती है।

# किंतु सूर्यास्त के पश्चात नदी अथवा तालाब में स्नान वर्जित है और ये ग्रहण रात्रि के समय है इसलिए नदी अथवा तालाब में स्नान न करें।
( कुंभ का उदाहरण नहीं चलेगा बहुत मनमानी हुई) फिर कहां करें ?
मंदिर बंद रहेंगे, नदी में करना नहीं है तो अपने घर में या किसी गौशाला में करें।

दान -
 किसी योग्य ब्राह्मण के परामर्श से दान की जाने वाली वस्तुओं को इकठ्ठा कर के रख लेना चाहिए फिर अगले दिन सुबह सूर्योदय के समय दुबारा स्नान कर संकल्प के साथ उन वस्तुओं को योग्य व्यक्ति को दे देना चाहिए।

# ग्रहण के दान का सबसे सुपात्र व्यक्ति होता है स्वच्छक यानि सफाई कर्मी, उसे दें यदि न मिले तो किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दें।

सूतक आरंभ होने से पहले ही अचार, मुरब्बा, दूध, दही अथवा अन्य खाद्य पदार्थों में कुशा तृण डाल देना चाहिए जिससे ये खाद्य पदार्थ ग्रहण से दूषित नहीं होगें। अगर कुशा नहीं है तो तुलसी का पत्ता भी डाल सकते हैं. घर में जो सूखे खाद्य पदार्थ हैं उनमें कुशा अथवा तुलसी पत्ता डालना आवश्यक नहीं है।

ग्रहण-सूतक में वर्जित:

सूतक के समय और ग्रहण के समय भगवान की मूर्ति को स्पर्श करना निषिद्ध माना गया है। खाना-पीना, सोना, नाखून काटना, भोजन बनाना, तेल लगाना आदि कार्य भी इस समय वर्जित हैं. इस समय झूठ बोलना, छल-कपट, बेकार का वार्तालाप और मूत्र विसर्जन से परहेज करना चाहिए।
#सूतक काल में बच्चे, बूढ़े, गर्भावस्था स्त्री आदि को उचित भोजन लेने में कोई परहेज नहीं हैं।

ग्रहण में क्या करें :

1. चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके 'ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्धि होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है। 

2. ईष्ट मंत्र का जप करें
3. कुलदेवी कुलदेवता का जप करें
4. गुरु मंत्र का जप करें 
5. इनमें से कुछ नहीं पता तो 
    A. राम / कृष्ण नाम जप 
    B. ॐ नमः शिवाय जप 
6. जप नहीं कर सकते या जप के अतिरिक्त 
     A. विष्णु सहस्त्रनाम 
     B. शिव सहस्त्रनाम
     C. देवी सहस्त्रनाम या शतनाम स्तोत्र
     D. हनुमान चालीसा/ बजरंग बाण/हनुमान अष्टक
     E. सुंदरकांड 
     F. श्रीसूक्त 
     G. गणपति अथर्वशीर्ष/ देवी अथर्वशीर्ष 

इनमें से जो कुछ संभव हो वो करें और अधिकाधिक पुण्यलाभ लें।

पितृदोष पीड़ा निवारण के लिए

ग्रहण काल में जप या स्तोत्र पाठ आरम्भ करने से पूर्व संकल्प करें कि पितृ शांति के लिए जप/ पाठ कर रहा हूं।

अंत में पुनः निवेदन करें कि मेरे द्वार किए इस जप/पाठ का फल मेरे पितरों को प्राप्त हो और प्रसन्न हों मेरी समस्त पीड़ाओं का हरण करें।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवं कुंडली विश्लेषण हेतु संपर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
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