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Monday, 23 February 2015

Original rudraksh Identification and uses / असली रुद्राक्ष की पहचान और प्रयोग ( The Tantrik Herbs -10 )

असली रुद्राक्ष की पहचान और प्रयोग / Original rudraksh Identification and uses

आईये समझते हॆ असली रुद्धाक्ष की पहचान को :-
 शास्त्रों में कहा गया है की जो भक्त रुद्राक्ष धारण करते
हैं भगवान भोलेनाथ उनसे हमेशा प्रसन्न रहते हैं। लेकिन
सवाल यह उठता है अक्सर लोगों को रुद्राक्ष
की असली माला नहीं मिल पाती है जिससे भगवान शिव
की आराधना में खासा प्रभाव नहीं पड़ता है। अब हम
आपको रुद्राक्ष के बारे में कुछ जानकारियां देने जा रहे हैं
जिसके द्वारा आप असली और नकली रूद्राक्ष की पहचान
कर सकते है और किस तरह नकली रूद्राक्ष
बनाया जाता है -

रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए
पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर
किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा।
इसके आलावा आप रुद्राक्ष को पानी में डाल दें अगर वह
डूब जाता है तो असली नहीं नहीं नकली। लेकिन यह जांच
अच्छी नहीं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने
या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पके होने
पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष मेटल या किसी अन्य
भारी चीज से भी बना रुद्राक्ष भी पानी में डूब जाता है।
सरसों के तेल मे डालने पर रुद्राक्ष अपने रंग से गहरा दिखे
तो समझो वो एक दम असली है।

1- रूद्राक्ष को जल में डालने से यह डूब जाये
तो असली अन्यथा नकली। किन्तु अब यह पहचान
व्यापारियों के शिल्प ने समाप्त कर दी। शीशम
की लकड़ी के बने रूद्राक्ष आसानी से पानी में डूब जाते हैं।

2- तांबे का एक टुकड़ा नीचे रखकर उसके ऊपर रूद्राक्ष
रखकर फिर दूसरा तांबे का टुकड़ा रूद्राक्ष के ऊपर रख
दिया जाये और एक अंगुली से हल्के से दबाया जाये
तो असली रूद्राक्ष नाचने लगता है। यह पहचान अभी तक
प्रमाणिक हैं।

3- शुद्ध सरसों के तेल में रूद्राक्ष को डालकर 10 मिनट
तक गर्म किया जाये तो असली रूद्र्राक्ष होने पर वह
अधिक चमकदार हो जायेगा और यदि नकली है तो वह
धूमिल हो जायेगा। प्रायः पानी में डूबने वाला रूद्राक्ष
असली और जो पानी पर तैर जाए उसे नकली माना जाता है।
लेकिन यह सच नहीं है। पका हुआ रूद्राक्ष पानी में डूब
जाता है जबकी कच्चा रूद्राक्ष पानी पर तैर जाता है।
इसलिए इस प्रक्रिया से रूद्राक्ष के पके या कच्चे होने
का पता तो लग सकता है, असली या नकली होने का नहीं।

4) प्रायः गहरे रंग के रूद्राक्ष को अच्छा माना जाता है
और हल्के रंग वाले को नहीं। असलियत में रूद्राक्ष
का छिलका उतारने के बाद उस पर रंग चढ़ाया जाता है।
बाजार में मिलने वाली रूद्राक्ष की मालाओं को पिरोने के
बाद पीले रंग से रंगा जाता है। रंग कम होने से कभी-
कभी हल्का रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने
वाले रूद्राक्ष प्रायः इस्तेमाल किए हुए होते हैं,
ऐसा रूद्राक्ष के तेल या पसीने के
संपर्क में आने से होता है।

5) कुछ रूद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छेद होता है ऐसे
रूद्राक्ष बहुत शुभ माने जाते हैं। जबकि ज्यादातर
रूद्राक्षों में छेद करना पड़ता है। 

7) दो अंगूठों या दो तांबे के सिक्कों के बीच घूमने
वाला रूद्राक्ष असली है यह भी एक भ्रांति ही है। इस तरह
रखी गई वस्तु किसी दिशा में तो घूमेगी ही। यह उस पर
दिए जाने दबाव पर निर्भर करता है।

8) रूद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से कुरेदें। अगर
रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा।

9) नकली रूद्राक्ष के उपर उभरे पठार एकरूप हों तो वह
नकली रूद्राक्ष है। असली रूद्राक्ष की उपरी सतह
कभी भी एकरूप नहीं होगी। जिस तरह दो मनुष्यों के
फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते उसी तरह दो रूद्राक्षों के
उपरी पठार समान नहीं होते। हां नकली रूद्राक्षों में
कितनों के ही उपरी पठार समान हो सकते हैं।

10) कुछ रूद्राक्षों पर शिवलिंग, त्रिशूल या सांप आदी बने
होते हैं। यह प्राकृतिक रूप से नहीं बने होते बल्कि कुशल
कारीगरी का नमूना होते हैं। रूद्राक्ष को पीसकर उसके बुरादे
से यह आकृतियां बनाई जाती हैं। इनकी पहचान
का तरीका आगे लिखूंगा।

11) कभी-कभी दो या तीन रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े
होते हैं। इन्हें गौरी शंकर या गौरी पाठ रूद्राक्ष कहते हैं।
इनका मूल्य काफी अधिक होता है इस कारण इनके
नकली होने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। कुशल
कारीगर दो या अधिक रूद्राक्षों को मसाले से चिपकाकर
इन्हें बना देते हैं।

12) प्रायः पांच मुखी रूद्राक्ष के चार मुंहों को मसाला से
बंद कर एक मुखी कह कर बेचा जाता है जिससे
इनकी कीमत बहुत बढ़ जाती है। ध्यान से देखने पर
मसाला भरा हुआ दिखायी दे जाता है। कभी-कभी पांच
मुखी रूद्राक्ष को कुशल कारीगर और धारियां बना अधिक
मुख का बना देते हैं। जिससे इनका मूल्य बढ़ जाता है।
13) प्राकृतिक तौर पर बनी धारियों या मुख के पास के पठार
उभरे हुए होते हैं जबकी मानव निर्मित पठार सपाट होते हैं।
ध्यान से देखने पर इस बात का पता चल जाता है।
इसी के साथ मानव निर्मित मुख एकदम सीधे होते हैं
जबकि प्राकृतिक रूप से बने मुख पूरी तरह से सीधे
नहीं होते।

14) प्रायः बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर उन्हें
असली रूद्राक्ष कहकर बेच दिया जाता है। रूद्राक्ष
की मालाओं में बेर की गुठली का ही उपयोग किया जाता है।

15) रूद्राक्ष की पहचान का तरीका- एक कटोरे में
पानी उबालें। इस उबलते पानी में एक-दो मिनट के लिए
रूद्राक्ष डाल दें। कटोरे को चूल्हे से उतारकर ढक दें।
दो चार मिनट बाद ढक्कन हटा कर रूद्राक्ष निकालकर
ध्यान से देखें। यदि रूद्राक्ष में जोड़ लगाया होगा तो वह
फट जाएगा। दो रूद्राक्षों को चिपकाकर गौरीशंकर रूद्राक्ष
बनाया होगा या शिवलिंग, सांप आदी चिपकाए होंगे तो वह
अलग हो जाएंगे।

जिन रूद्राक्षों में सोल्यूशन भरकर उनके मुख बंद करे होंगे
तो उनके मुंह खुल जाएंगे। यदि रूद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर
फटा होगा तो थोड़ा और फट जाएगा। बेर
की गुठली होगी तो नर्म पड़ जाएगी, जबकि असली रूद्राक्ष
में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा।
यदि रूद्राक्ष पर से रंग उतारना हो तो उसे नमक मिले
पानी में डालकर गर्म करें उसका रंग हल्का पड़ जाएगा।
वैसे रंग करने से रूद्राक्ष को नुकसान नहीं होता है।
 रूद्राक्ष के २१ प्रकार::::::::::::::::::::::::
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1. एक मुखी रुद्राक्ष को साक्षात शिव का रूप माना जाता है। इस एकमुखी रुद्राक्ष द्वारा सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. तथा भगवान आदित्य का आशिर्वाद भी प्राप्त होता है।

2. दो मुखी रुद्राक्ष या द्विमुखी रुद्राक्ष शिव और शक्ति का स्वरुप माना जाता है। इसमें अर्धनारीश्व का स्वरूप समाहित है तथा चंद्रमा की शीतलता प्राप्त होती है।

3. तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि देव तथा त्रिदेवों का स्वरुप माना गया है। तीन मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा पापों का शमन होता है।

4. चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्म स्वरुप होता है। इसे धारण करने से नर हत्या जैसा जघन्य पाप समाप्त होता है। चतुर्मुखी रुद्राक्ष धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष को प्रदान करता है।

5. पांच मुखी रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र का स्वरूप माना जाता है। यह पंच ब्रह्म एवं पंच तत्वों का प्रतीक भी है। पंचमुखी को धारण करने से अभक्ष्याभक्ष्य एवं स्त्रीगमन जैसे पापों से मुक्ति मिलती है. तथा सुखों को प्राप्ति होती है।

6. छह मुखी रुद्राक्ष को साक्षात कार्तिकेय का स्वरूप माना गया है। इसे शत्रुंजय रुद्राक्ष भी कहा जाता है यह ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्ति तथा एवं संतान देने वाला होता है।

7. सात मुखी रुद्राक्ष या सप्तमुखी रुद्राक्ष दरिद्रता को दूर करने वाला होता है। इस सप्तमुखी रुद्राक्ष को धारण करने से महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

8. आठ मुखी रुद्राक्ष को भगवान गणेश जी का स्वरूप माना जाता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष राहु के अशुभ प्रभावों से मुक्ति दिलाता है तथा पापों का क्षय करके मोक्ष देता है।

9. नौ मुखी रुद्राक्ष को भैरव का स्वरूप माना जाता है। इसे बाईं भुजा में धारण करने से गर्भहत्या जेसे पाप से मुक्ति मिलती है। नौमुखी रुद्राक्ष को यम का रूप भी कहते हैं। यह केतु के अशुभ प्रभावों को दूर करता है।

10. दस मुखी रुद्राक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप कहा जाता है। दस मुखी रुद्राक्ष शांति एवं सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है। इसे धारण करने से समस्त भय समाप्त हो जाते हैं।

11. एकादश मुखी रुद्राक्ष साक्षात भगवान शिव का रूप माना जाता है। एकादश मुखी रुद्राक्ष को भगवान हनुमान जी का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने से ज्ञान एवं भक्ति की प्राप्ति होती है।
12. द्वादश मुख वाला रुद्राक्ष बारह आदित्यों का आशीर्वाद प्रदान करता है। इस बारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान यह फल प्रदान करता है।

13. तेरह मुखी रुद्राक्ष को इंद्र देव का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने पर व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।

14. चौदह मुखी रुद्राक्ष भगवान हनुमान का स्वरूप है। इसे सिर पर धारण करने से व्यक्ति परमपद को पाता है।

15. पंद्रह मुखी रुद्राक्ष पशुपतिनाथ का स्वरूप माना गया है। यह संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है।

16. सोलह मुखी रुद्राक्ष विष्णु तथा शिव का स्वरूप माना गया है। यह रोगों से मुक्ति एवं भय को समाप्त करता है।

17. सत्रह मुखी रुद्राक्ष राम-सीता का स्वरूप माना गया है। यह रुद्राक्ष विश्वकर्माजी का प्रतीक भी है। इसे धारण करने से व्यक्ति को भूमि का सुख एवं कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का मार्ग प्राप्त होता है।

18. अठारह मुखी रुद्राक्ष को भैरव एवं माता पृथ्वी का स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है.

19. उन्नीस मुखी रुद्राक्ष नारायण भगवान का स्वरूप माना गया है यह सुख एवं समृद्धि दायक होता है।

20. बीस मुखी रुद्राक्ष को जनार्दन स्वरूप माना गया है। इस बीस मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति को भूत-प्रेत आदि का भय नहीं सताता।

21. इक्कीस मुखी रुद्राक्ष रुद्र स्वरूप है तथा इसमें सभी देवताओं का वास है। इसे धारण करने से व्यक्ति ब्रह्महत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है।

गौरीशंकर रुद्राक्ष- 
यह शिव और शक्ति का मिश्रित स्वरूप माना जाता है। उभयात्मक शिव और शक्ति की संयुक्त कृपा प्राप्त होती है। यह आर्थिक दृष्टि से विशेष सफलता दिलाता है। पारिवारिक सामंजस्य, आकर्षण, मंगलकामनाओं की सिद्धी में सहायक है। यह शिव पार्वती का स्वरूप है। 
घर, पूजा ग्रह अथवा तिजोरी में मंगल कामना सिद्धि के लिये रखना लाभदायक है। इसे उपयोग में लाने से परिवार में सुख-शांति की वृद्धि होती है वातावरण शुद्ध बना रहता है। गले में धारण करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
गौरीशकर रुद्राख सर्वसिद्धि प्रदाता रुद्राक्ष कहा गया है। यह सात्त्विक शक्ति में वृद्धि करने वाला, मोक्ष प्रदाता रुद्राक्ष है। जिसके घर में यह रुद्राक्ष होता है वहां लक्ष्मी का स्थाई वास हो जाता है तथा उसका घर धन-धान्य, वैभव, प्रतिष्ठा और दैवीय कृपा से भर जाता है। संक्षेप में यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को देने वाला चतुर्वर्ग प्रदाता रुद्राक्ष है।गौरीशंकर रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष के दानें परस्पर जुड़े होते हैं इन्हें गौरीशंकर रुद्राक्ष कहते हैं। गौरीशकर रुद्राक्ष सभी लग्न के जातकों के लिए शुभ माना गया है इसे धारण करने से अनेक लाभ होता है।
उपयोग से लाभ:-
1-गौरीशंकर रुद्राक्ष 
धारण करने से अभक्ष्य-भक्षण और पर स्त्री गमन जैसे- जघंन्य अपराध भी भगवान शिव द्वारा नष्ट होता है।
2-इसे धारण करने से अनेक विपरीत लिंग के लोग आकर्षित होते हैं तथा उनका सुख प्राप्त होता है।
3-यह रुद्राक्ष धनागमन एवं व्यापार उन्नति में अत्यन्त सहायक माना गया है
4-गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करने से पुरुषों को स्त्री सुख प्राप्त होता है तथा परस्पर सहयोग एवं सम्मान तथा प्रेम की वृद्धि होती है।
5-यह रुद्राक्ष शिवभक्ति के लिए अधिक उपयोगी माना गया है भगवान शिव और मां शक्ति इस रुद्राक्ष में निवास करती हैं।

अधिक जानकारी समस्या समाधान एवम् कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।
 पं. अभिषेक पाण्डेय 
7579400465
8909521616(whats app .)

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