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Tuesday, 17 April 2018

Akshay Tritiya 2018 Matangi Jayanti 2018 अक्षय तृतीया 2018 मातङ्गी जयंती 2018

अक्षय तृतीया 2018 विशेष

मातङ्गी जयंती एवं परशुराम जयंती की शुभकामनाएं।

नवम महाविद्या : देवी मातंगी

महाविद्याओं में नौवीं देवी मातंगी, उत्कृष्ट तंत्र ज्ञान से सम्पन्न, कला और संगीत पर महारत प्रदान करने वाली देवी हैं।

देवी मातंगी दस महाविद्याओं में नवें स्थान पर अवस्थित हैं। तंत्र शास्त्रों के अनुसार देवी के प्रादुर्भाव वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था।

देवी मातङ्गी वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप हैं और श्री कुल के अंतर्गत पूजित हैं। यह सरस्वती ही हैं और वाणी ,संगीत ,ज्ञान ,विज्ञान ,सम्मोहन ,वशीकरण ,मोहन की अधिष्ठात्री हैं।
त्रिपुरा ,काली और मातंगी का स्वरुप लगभग एक सा है। यद्यपि अन्य महाविद्याओं से भी वशीकरण ,मोहन ,आकर्षण के कर्म होते हैं और संभव हैं किन्तु इस क्षेत्र का आधिपत्य मातंगी [सरस्वती] को प्राप्त हैं ।

देवी, केवल मात्र वचन द्वारा त्रिभुवन में समस्त प्राणियों तथा अपने घोर शत्रु को भी वश करने में समर्थ हैं, जिसे सम्मोहन क्रिया कहा जाता हैं, देवी सम्मोहन विद्या एवं वाणी की अधिष्ठात्री हैं।

यह जितनी समग्रता ,पूर्णता से इस कार्य को कर सकती हैं कोई अन्य नहीं क्योकि सभी अन्य की अवधारणा अन्य विशिष्ट गुणों के साथ हुई है।
उन्हें वशीकरण ,मोहन के कर्म हेतु अपने मूल गुण के साथ अलग कार्य करना होगा जबकि मातंगी वशीकरण ,मोहन की देवी ही हैं अतः यह आसानी से यह कार्य कर देती हैं।

 देवी उच्छिष्ट चांडालिनी या महा-पिशाचिनी से भी देवी विख्यात हैं तथा देवी का सम्बन्ध नाना प्रकार के तंत्र क्रियाओं, विद्याओं से हैं।

 इंद्रजाल विद्या या जादुई शक्ति में देवी पारंगत हैं साथ ही वाक् सिद्धि, संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में निपुण हैं, नाना सिद्ध विद्याओं से सम्बंधित हैं; देवी तंत्र विद्या में पारंगत हैं।

देवी का सम्बन्ध प्रकृति, पशु, पक्षी, जंगल, वन, शिकार इत्यादि से हैं, जंगल में वास करने वाले आदिवासी-जनजातियों सेदेवी मातंगी अत्यधिक पूजिता हैं। निम्न तथा जन जाती द्वारा प्रयोग की जाने वाली नाना प्रकार की परा-अपरा विद्या देवी द्वारा ही उन्हें प्रदत्त हैं।

देवी मातंगी, मतंग मुनि के पुत्री के रूप से भी जानी जाती हैं।

देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध उच्छिष्ट भोजन पदार्थों से हैं, परिणामस्वरूप देवी, उच्छिष्ट चांडालिनी के नाम से विख्यात हैं, देवी की आराधना हेतु उपवास की आवश्यकता नहीं होती हैं। देवी की आराधना हेतु उच्छिष्ट सामाग्रीयों की आवश्यकता होती हैं क्योंकि देवी की उत्पत्ति शिव तथा पार्वती के उच्छिष्ट भोजन से हुई थी।

देवी की आराधना सर्वप्रथम भगवान विष्णु द्वारा की गई, माना जाता हैं तभी से वे सुखी, सम्पन्न, श्री युक्त तथा उच्च पद पर विराजित हैं।

देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं, किन्तु बौद्ध धर्म के प्रारंभ में देवी का कोई अस्तित्व नहीं था। कालांतर में देवी बौद्ध धर्म में मातागिरी नाम से जानी जाने लगी।

ऐसा माना जाता हैं कि देवी की ही कृपा से वैवाहिक जीवन सुखमय होता हैं, देवी ग्रहस्त के समस्त कष्टों का निवारण करती हैं। देवी की उत्पत्ति शिव तथा पार्वती के प्रेम से हुई हैं।

देवी मातंगी का सम्बन्ध मृत शरीर या शव तथा श्मशान भूमि से हैं। देवी अपने दाहिने हाथ पर महा-शंख (मनुष्य खोपड़ी) या खोपड़ी से निर्मित खप्पर, धारण करती हैं। पारलौकिक या इंद्रजाल, मायाजाल से सम्बंधित रखने वाले सभी देवी-देवता श्मशान, शव, चिता, चिता-भस्म, हड्डी इत्यादि से सम्बंधित हैं, पारलौकिक शक्तियों का वास मुख्यतः इन्हीं स्थानों पर हैं।

तंत्रो या तंत्र विद्या के अनुसार देवी तांत्रिक सरस्वतीनाम से जानी जाती हैं एवं श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरीके रथ की सारथी तथा मुख्य सलाहकार हैं।

देवी मातंगी का भौतिक स्वरूप विवरण:-

।।श्रीमातङ्गीध्यानम् ।।

तालीदलेनार्पितकर्णभूषां माध्वीमदोद्घूर्णितनेत्रपद्माम्। घनस्तनीं शम्भुवधूं नमामि । तडिल्लताकान्तिमनर्घ्यभूषाम् ॥१॥

घनश्यामलाङ्गीं स्थितां रत्नपीठे शुकस्योदितं शृण्वतीं रक्तवस्त्राम् । सुरापानमत्तां सरोजस्थितां श्रीं भजे वल्लकीं वादयन्तीं मतङ्गीम् ॥२॥

माणिक्याभरणान्वितां स्मितमुखीं नीलोत्पलाभां वरां रम्यालक्तक लिप्तपादकमलां नेत्रत्रयोल्लासिनीम् । वीणावादनतत्परां सुरनुतां कीरच्छदश्यामलां मातङ्गीं शशिशेखरामनुभजे ताम्बूलपूर्णाननाम् ॥३॥

श्यामाङ्गीं शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैर्बिभ्रतीं पाशं खेटमथाङ्कुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम् । रत्नालङ्करणप्रभोज्वलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां मातङ्गीं मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धिप्रदाम्॥४॥

 देवीं षोडशवार्षिकीं शवगतां माध्वीरसाघूर्णितां श्यामाङ्गीमरुणाम्बरां पृथुकुचां गुञ्जावलीशोभिताम् । हस्ताभ्यां दधतीं कपालममलं तीक्ष्णां तथा कर्त्रिकां ध्यायेन्मानसपङ्कजेभगवतीमुच्छिष्टचाण्डालिनीम्ल ।।५॥
।।इति श्रीमातङ्गीध्यानम्।।

देवी मातंगी का शारीरिक वर्ण गहरे नीले रंग या श्याम वर्ण का है, अपने मस्तक पर देवी अर्ध चन्द्र धारण करती हैं तथा देवी तीन नशीले नेत्रों से युक्त हैं। देवी अमूल्य रत्नों से युक्त रत्नमय सिंहासन पर बैठी हैं एवं नाना प्रकार के मुक्ता-भूषण से सुसज्जित हैं, जो उनकी शोभा बड़ा रहीं हैं।

 कहीं-कहीं देवी! कमल के आसन तथा शव पर भी विराजमान हैं। देवी मातंगी गुंजा के बीजों की माला धारण करती हैं, लाल रंग के आभूषण देवी को प्रिय हैं तथा सामान्यतः लाल रंग के ही वस्त्र-आभूषण इत्यादि धारण करती हैं।
देवी सोलह वर्ष की एक युवती जैसी स्वरूप धारण करती हैं जिनकी शारीरिक गठन पूर्ण तथा मनमोहक हैं। देवी चार हाथों से युक्त हैं, इन्होंने अपने दायें हाथों में वीणा तथा मानव खोपड़ी धारण कर रखी हैं तथा बायें हाथों में खड़ग धारण करती हैं एवं अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं। इनके आस पास पशु-पक्षियों को देखा जा सकता हैं, सामान्यतः तोते इनके साथ रहते हैं।

देवी मातंगी के प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा।

कथा(१)
शक्ति संगम तंत्र के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी जी,भगवान शिव तथा पार्वती से मिलने हेतु उनके निवास स्थानकैलाश शिखर पर गये। भगवान विष्णु अपने साथ कुछ खाने की सामग्री ले गए तथा उन्होंने वह खाद्य प्रदार्थ शिव जी को भेट स्वरूप प्रदान की।भगवान शिव तथा पार्वती ने, उपहार स्वरूप प्राप्त हुए वस्तुओं को खाया, भोजन करते हुए खाने का कुछ अंश नीचे धरती पर गिरे; उन गिरे हुए भोजन के भागों से एक श्याम वर्ण वाली देवी ने जन्म लिया, जो मातंगी नाम से विख्यात हुई।
 देवी का प्रादुर्भाव उच्छिष्ट भोजन से हुआ, परिणामस्वरूप देवी का सम्बन्ध उच्छिष्ट भोजन सामग्रियों से हैं तथा उच्छिष्ट वस्तुओं से देवी की आराधना होती हैं। देवी उच्छिष्ट मातंगी नाम से जानी जाती हैं।

कथा(२)
प्राणतोषिनी तंत्र के अनुसार, एक बार पार्वती देवी ने, अपने पति भगवान शिव से अपने पिता हिमालय राज के यहाँ जाकर, अपने माता तथा पिता से मिलने की अनुमति मांगी। परन्तु, भगवान शिव नहीं चाहते थे की वे उन्हें अकेले छोड़ कर जाये। भगवान शिव के सनमुख बार-बार प्रार्थना करने पर, उन्होंने देवी को अपने पिता हिमालय राज के यहाँ जाने की अनुमति दे दी। साथ ही उन्होंने एक शर्त भी रखी कि! वे शीघ्र ही माता-पिता से मिलकर वापस कैलाश आ जाएगी। तदनंतर, अपनी पुत्री पार्वती को कैलाश से लेन हेतु, उनकी माता मेनका ने एक बगुला वाहन स्वरूप भेजा। कुछ दिन पश्चात भगवान शिव, बिन पार्वती के विरक्त हो गए तथा उन्हें वापस लाने का उपाय सोचने लगे; उन्होंने अपना भेष एक आभूषण के व्यापारी के रूप में बदला तथाहिमालय राज के घर गए। देवी इस भेष में देवी पार्वती की परीक्षा लेना चाहते थे, वे पार्वती के सनमुख गए और अपनी इच्छा अनुसार आभूषणों का चुनाव करने के लिया कहा। पार्वती ने जब कुछ आभूषणों का चुनाव कर लिया तथा उनसे मूल्य ज्ञात करना चाहा! व्यापारी रूपी भगवान शिव ने देवी से आभूषणों के मूल्य के बदले, उनसे सम्मोह की इच्छा प्रकट की। देवी पार्वती अत्यंत क्रोधित हुई अंततः उन्होंने अपनी अलौकिक शक्तिओं से उन्होंने पहचान ही लिया। तदनंतर देवी सम्भोग हेतु तैयार हो गई तथा व्यापारी से कुछ दिनों पश्चात आने का निवेदन किया।

कुछ दिनों पश्चात देवी पार्वती भी भेष बदल कर,भगवान शिव के सनमुख कैलाश पर्वत पर गई।भगवान शिव अपने नित्य संध्योपासना के तैयारी कर रहे थे। देवी पार्वती लाल वस्त्र धारण किये हुए, बड़ी-बड़ी आँखें कर, श्याम वर्ण तथा दुबले शरीर से युक्त अपने पति के सनमुख प्रकट हुई।भगवान शिव ने देवी से उनका परिचय पूछा, देवी ने उत्तर दिया कि वह एक चांडाल की कन्या हैं तथा तपस्या करने आई हैं। भगवान शिव ने देवी को पहचान लिया तथा कहाँ! वे तपस्वी को तपस्या का फल प्रदान करने वाले हैं। यह कहते हुए उन्होंने देवी का हाथ पकड़ लिया और प्रेम में मग्न हो गए। तत्पश्चात, देवी ने भगवान शिव से वार देने का निवेदन किया; भगवान शिव ने उनके इसी रूप को चांडालिनी वर्ण से अवस्थित होने का आशीर्वाद प्रदान किया तथा कई अलौकिक शक्तियां प्रदान की।

देवी मातंगी के सन्दर्भ में अन्य तथ्य:-

देवी हिन्दू समाज के सर्व निम्न जाती चांडाल या डोमसे सम्बद्ध हैं, देवी चांडालिनी हैं तथा भगवान शिव चांडाल। (चांडाल श्मशान में शव दाह से सम्बंधित कार्य करते हैं)।

तंत्र शास्त्र में देवी की उपासना विशेषकर वाक् सिद्धि (जो बोला जाये वही सिद्ध होना) हेतु, पुरुषार्थ सिद्धि तथा भोग-विलास में पारंगत होने हेतु की जाती हैं। देवी मातंगी चौंसठ प्रकार के ललित कलाओं से सम्बंधित विद्याओं में निपुण हैं तथा तोता पक्षी इनके बहुत निकट हैं।

नारदपंचरात्र के अनुसार, कैलाशपति भगवान शिवको चांडाल तथा देवी शिवा को ही उछिष्ट चांडालिनी कहा गया हैं।
एक बार मतंग मुनि ने सभी जीवों को वश में करने के उद्देश्य से, नाना प्रकार के वृक्षों से परिपूर्ण वन में देवी श्री विद्या त्रिपुरा की आराधना की। मतंग मुनि के कठिन साधना से संतुष्ट हो देवी त्रिपुरसुंदरी ने अपने नेत्रों से एक श्याम वर्ण की सुन्दर कन्या का रूप धारण किया; उन्हें राज मातंगी कहा गया जो देवी मातंगी का ही एक स्वरूप हैं। देवी, मतंग कन्या के नाम से भी जानी जाती हैं कारणवश इन्हें मातंगी नाम से जाना जाता हैं।
देवी के सनमुख बैठा तोता ह्रीं मन्त्र का उच्चारण करता है, जो बीजाक्षर हैं। कमल सृष्टि का, शंख पात्र ब्रह्मरंध, मधु अमृत, शुक या तोता शिक्षा का प्रतिक हैं।

रति, प्रीति, मनोभाव, क्रिया, शुधा, अनंग कुसुम, अनंग मदन तथा मदन लसा, देवी मातंगी की आठ शक्तियां हैं।

देवी के स्वरूप। एवं सम्बन्धित जानकारी :-

भगवती मातंगी के कई नाम हैं। इनमें प्रमुख हैं-
१.सुमुखी,
२.लघुश्यामा या श्यामला,
३.उच्छिष्टचांडालिनी,
४.उच्छिष्टमातंगी,
५.राजमातंगी,
६.कर्णमातंगी,
७.चंडमातंगी,
८.वश्यमातंगी,
९.मातंगेश्वरी,
१०.ज्येष्ठमातंगी,
११.सारिकांबा,
१२.रत्नांबा मातंगी एवं
१३.वर्ताली मातंगी।

भैरव : मतंग
कुल : श्री कुल।
दिशा : वायव्य कोण।
स्वभाव : सौम्य स्वभाव।
कार्य : सम्मोहन एवं वशीकरण, तंत्र विद्या पारंगत, संगीत तथा ललित कला निपुण।
शारीरिक वर्ण : काला या गहरा नीला।

                ।। मातङ्गी कवच ।।

।।श्रीदेव्युवाच ।।
साधु-साधु महादेव ! कथयस्व सुरेश्वर !
मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ।।

                ।। श्री ईश्वर उवाच ।।
श्रृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं ।
गोपनीयं महा-देवि ! मौनी जापं समाचरेत् ।।

विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋष्यादि-न्यासः-
श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि ।
विराट् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि ।
चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

            ।।  कवच ।।
ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।
तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ।।
पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।
त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ।।
ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।
महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ।।
अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी ।
ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ।।
रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च ।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ।।
महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।
लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ।।
चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः ।
स-विसर्ग महा-देवि ! हृदयं पातु सर्वदा ।।
नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।
उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ।।
उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका ।
भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ।।
जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।
विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ।।
नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा ।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ।।
रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।
ऊर्घ्वं पातु महा-देवि ! देवानां हित-कारिणी ।।
पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी ।
प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ।।
मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।
सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ।।

      ।।श्रीमातङ्गीअष्टोत्तरशतनामावली ।।

श्रीमहामत्तमातङ्गिन्यै नमः । श्रीसिद्धिरूपायै नमः । श्रीयोगिन्यै नमः । श्रीभद्रकाल्यै नमः । श्रीरमायै नमः । श्रीभवान्यै नमः । श्रीभयप्रीतिदायै नमः । श्रीभूतियुक्तायै नमः । श्रीभवाराधितायै नमः । श्रीभूतिसम्पत्तिकर्यै नमः । १०।

श्रीजनाधीशमात्रे नमः । श्रीधनागारदृष्ट्यै नमः । श्रीधनेशार्चितायै नमः । श्रीधीवरायै नमः । श्रीधीवराङ्ग्यै नमः । श्रीप्रकृष्टायै नमः । श्रीप्रभारूपिण्यै नमः । श्रीकामरूपायै नमः । श्रीप्रहृष्टायै नमः । श्रीमहाकीर्तिदायै नमः । २०।

श्रीकर्णनाल्यै नमः । श्रीकाल्यै नमः । श्रीभगाघोररूपायै नमः । श्रीभगाङ्ग्यै नमः । श्रीभगावाह्यै नमः । श्रीभगप्रीतिदायै नमः । श्रीभिमरूपायै नमः । श्रीभवानीमहाकौशिक्यै नमः । श्रीकोशपूर्णायै नमः । श्रीकिशोर्यै नमः । ३०।

श्रीकिशोरप्रियानन्दईहायै नमः । श्रीमहाकारणायै नमः । श्रीकारणायै नमः । श्रीकर्मशीलायै नमः । श्रीकपाल्यै नमः । श्रीप्रसिद्धायै नमः । श्रीमहासिद्धखण्डायै नमः । श्रीमकारप्रियायै नमः । श्रीमानरूपायै नमः । श्रीमहेश्यै नमः । ४०।
 श्रीमहोल्लासिन्यै नमः । श्रीलास्यलीलालयाङ्ग्यै नमः । श्रीक्षमायै नमः । श्रीक्षेमशीलायै नमः । श्रीक्षपाकारिण्यै नमः । श्रीअक्षयप्रीतिदाभूतियुक्ताभवान्यै नमः । श्रीभवाराधिताभूतिसत्यात्मिकायै नमः । श्रीप्रभोद्भासितायै नमः । श्रीभानुभास्वत्करायै नमः । श्रीचलत्कुण्डलायै नमः । ५०।
 श्रीकामिनीकान्तयुक्तायै नमः । श्रीकपालाऽचलायै नमः । श्रीकालकोद्धारिण्यै नमः । श्रीकदम्बप्रियायै नमः । श्रीकोटर्यै नमः । श्रीकोटदेहायै नमः । श्रीक्रमायै नमः । श्रीकीर्तिदायै नमः । श्रीकर्णरूपायै नमः । श्रीकाक्ष्म्यै नमः । ६०।
 श्रीक्षमाङ्यै नमः । श्रीक्षयप्रेमरूपायै नमः । श्रीक्षपायै नमः । श्रीक्षयाक्षायै नमः । श्रीक्षयाह्वायै नमः । श्रीक्षयप्रान्तरायै नमः । श्रीक्षवत्कामिन्यै नमः । श्रीक्षारिण्यै नमः । श्रीक्षीरपूषायै नमः । श्रीशिवाङ्ग्यै नमः । ७०।
 श्रीशाकम्भर्यै नमः । श्रीशाकदेहायै नमः । श्रीमहाशाकयज्ञायै नमः । श्रीफलप्राशकायै नमः । श्रीशकाह्वाशकाख्याशकायै नमः । श्रीशकाक्षान्तरोषायै नमः । श्रीसुरोषायै नमः । श्रीसुरेखायै नमः । श्रीमहाशेषयज्ञोपवीतप्रियायै नमः । श्रीजयन्तीजयाजाग्रतीयोग्यरूपायै नमः । ८०।

 श्रीजयाङ्गायै नमः । श्रीजपध्यानसन्तुष्टसंज्ञायै नमः । श्रीजयप्राणरूपायै नमः । श्रीजयस्वर्णदेहायै नमः । श्रीजयज्वालिन्यै नमः । श्रीयामिन्यै नमः । श्रीयाम्यरूपायै नमः । श्रीजगन्मातृरूपायै नमः । श्रीजगद्रक्षणायै नमः । श्रीस्वधावौषडन्तायै नमः ।९०।

 श्रीविलम्बाविलम्बायै नमः । श्रीषडङ्गायै नमः । श्रीमहालम्बरूपाऽसिहस्ताऽऽप्दाहारिण्यै नमः । श्रीमहामङ्गलायै नमः । श्रीमङ्गलप्रेमकीर्त्यै नमः । श्रीनिशुम्भक्षिदायै नमः । श्रीशुम्भदर्पत्वहायै नमः । आनन्दबीजादिस्वरूपायै नमः । श्रीमुक्तिस्वरूपायै नमः । श्रीचण्डमुण्डापदायै नमः । १००।

 श्रीमुख्यचण्डायै नमः । श्रीप्रचण्डाऽप्रचण्डायै नमः । श्रीमहाचण्डवेगायै नमः । श्रीचलच्चामरायै नमः । श्रीचामराचन्द्रकीर्त्यै नमः । श्रीसुचामिकरायै नमः । श्रीचित्रभूषोज्ज्वलाङ्ग्यै नमः । श्रीसुसङ्गीतगीतायै नमः । १०८।

देवी मातङ्गी के कुछ मन्त्र:-

इनके मंत्र और यंत्र का उपयोग अधिकतर प्रवचनकर्ता ,धर्म गुरु ,तंत्र गुरु ,बौद्धिक लोग करते हैं जिन्हें समाज-भीड़-लोगों के समूह का नेतृत्व अथवा सामना करना होता है ,ज्ञान विज्ञानं की जानकारी चाहिए होती है। मातंगि शक्ति से इनमे सम्मोहन -वशीकरण की शक्ति होती है।

(१) अष्टाक्षर मातंगी मंत्र-

 कामिनी रंजनी स्वाहा

विनियोग— अस्य मंत्रस्य सम्मोहन ऋषि:, निवृत् छंद:, सर्व सम्मोहिनी देवता सम्मोहनार्थे जपे विनियोकग:।

ध्यान-
 श्यामंगी वल्लकीं दौर्भ्यां वादयंतीं सुभूषणाम्। चंद्रावतंसां विविधैर्गायनैर्मोहतीं जगत्।

फल व विधि-  20 हजार जप कर मधुयुक्त मधूक पूष्पों से हवन करने पर अभीष्ट की सिद्धि होती है।

(२) दशाक्षर मंत्र-
           ॐ ह्री क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।

विनियोग— अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि:र्विराट् छंद:, मातंगी देवता, ह्रीं बीजं, हूं शक्ति:, क्लीं कीलकं, सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोग:।

अंगन्यास--- ह्रां, ह्रीं, ह्रूं, ह्रैं, ह्रौं, ह्र: से हृदयादि न्यास करें।

फल व विधि- साधक छह हजार जप नित्य करते हुए 21 दिन प्रयोग करें। फिर दशांस हवन करें। चतुष्पद श्मसान या कलामध्य में मछली, मांस, खीर व गुगल का धूप दे तो कवित्व शक्ति की प्राप्ति होती है। इससे जल, अग्नि एवं वाणी का स्तंभन भी संभव है। इसकी साधना करने वाला वाद-विवाद में अजेय बन जाता है। उसके घर में स्वयं कुबेर आकर धन देते हैं।

(३) लघुश्यामा मातंगी का विंशाक्षर मंत्र-

ऐं नम: उच्छिष्ट चांडालि मातंगी सर्ववशंकरि स्वाहा।

विधि- विनियोग व न्यास आदि के साथ देवी की पूजा कर 11, 21, 41 दिन या पूर्णिमा/आमावास्या से पूर्णिमा/आमावास्या तक एक लाख जप पूर्ण करें।
मंत्र से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका जप उच्छिष्ट मुंह किया जाना चाहिए। ऐसा किया भी जा सकता है लेकिन विभिन्न ग्रंथों में इसे पवित्र होकर करने का भी विधान है।
अत: साधक गुरुआज्ञानुसार जप करें। जप पू्र्ण होने के बाद महुए के फूल व लकड़ी के दशांस होम कर तर्पन व मार्जन करें।

फल- इसके प्रयोग से डाकिनी, शाकिनी एवं भूत-प्रेत बाधा नहीं पहुंचा सकते हैं। इसकी साधना से प्रसन्न होकर देवी साधक को देवतुल्य बना देती है। उसकी समस्त अभिलाषाएं  पूरी होती हैं। चूंकि मातंगी वशीकरण विद्या की देवी हैं, इसलिए इसके साधक की वह शक्ति भी अद्भुत बढ़ती है। राजा-प्रजा सभी उसके वश में रहते हैं।

(४) एकोन विंशाक्षर उच्छिष्ट मातंगी तथा द्वात्रिंशदक्षरों मातंगी मंत्र

मंत्र (एक)--- नम: उच्छिष्ट चांडालि मातंगी सर्ववशंकरि स्वाहा।

मंत्र (दो)---- ऊं ह्रीं ऐं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्टचांडालि श्रीमातंगेश्वरि सर्वजन वशंकरि स्वाहा।

विधि- विधिपूर्वक दैनिक पूजन के बाद निश्चित (जो साधक जप से पूर्व तय करे) समयावधि (घंटे या दिन) में दस हजार जप कर पुरश्चरण करे। उसके बाद दशांस हवन करे।

फल- मधुयुक्त महुए के फूल व लकड़ी से हवन करने पर वशीकरण का प्रयोग सिद्ध होता है। मल्लिका फूल के होम से योग सिद्धि, बेल फूल के हवन से राज्य प्राप्ति, पलास के पत्ते व फूल के हवन में जन वशीकरण, गिलोय के हवन से रोगनाश, थोड़े से नीम के टुकड़ों व चावल के हवन से धन प्राप्ति, नीम के तेल से भीगे नमक से होम करने पर शत्रुनाश, केले के फल के हवन से समस्त कामनाओं की सिद्धि होती है। खैर की लकड़ी से हवन कर मधु से भीगे नमक के पुतले के दाहिने पैर की ओर हवन की अग्नि में तपाने से शत्रु वश में होता है।

(५) सुमुखी मातंगी प्रयोग

इसमें दो मंत्र हैं जिसमें सिर्फ ई की मात्रा का अंतर है पर ऋषि दोनों के अलग-अलग हैं। इसमें फल समान है।

मंत्र(१)  उच्छिष्ट चांडालिनी सुमुखी देवी महापिशाचिनी ह्रीं ठ: ठ: ठ:।

इसके ऋषि अज, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।

विधि- देवी के विधिपूर्वक पूजन के बाद जूठे मुंह आठ हजार जप करने से ही इसका पुरश्चरण होता है। साधक को धन की प्राप्ति होती है और उसका आभामंडल बढ़ता है। हवन की विधि नीचे है।

मंत्र(२) उच्छिष्ट चांडालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठ: ठ: ठ:।

इसके ऋषि भैरव, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।

विधि- इसकी कई विधियां हैं। एक में एक लाख मंत्र जप का भी विधान वर्णित है। जानकरों के अनुसार देवी के विधिपूर्वक पूजन के बाद जूठे मुंह दस हजार जप करने से ही इसका पुरश्चरण होता है और साधक को धन की प्राप्ति होती है तथा उसका आभामंडल बढ़ता है।

हवन विधि- दही मिश्रित पीली सरसो व चावल से हवन करने पर राजा-मंत्री सभी वश में हो जाते हैं। बिल्ली के मांस से हवन करने पर शस्त्र का वसीकरण होता है। बकरे के मांस के हवन से धन-समृद्धि मिलती है। खीर के हवन से विद्या प्राप्ति तथा मधु व घी युक्त पान के पत्तों के हवन से महासमृद्धि की प्राप्ति होती है। कौवे व उल्लू के पंख के हवन से शत्रुओं का विद्वेषण होता है।

(६) कर्ण मातंगी साधना मंत्र

ऐं नमः श्री मातंगि अमोघे सत्यवादिनि ममकर्णे अवतर अवतर सत्यं कथय एह्येहि श्री मातंग्यै नमः।

ऐं बीज से षडंगन्यास करें।
पुरश्चरण के लिए आठ हजार की संख्या में जप करें।
कई बार प्रतिकूल ग्रह स्थिति रहने पर जप संख्या थोड़ी बढ़ानी भी पड़ती है।
41 दिन मे साधना पूर्ण होती है ।
दोनों मे से किसी एक मंत्र का जाप कर सकते है ।
लाल चन्दन की या मूँगे या रुद्राक्ष की माला मंत्र जाप के लिए श्रेष्ठ है ।

इसमें हवन भी आवश्यक नहीं है।
खीर को प्रसाद रूप में माता को चढ़ा कर उससे हवन करना अतिरिक्त ताकत देता है।
इसके साधक को माता कर्ण मातंगी भविष्य में घटने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं की जानकारी स्वप्न में देती हैं।
इच्छुक साधक को माता से प्रश्न का जवाब भी मिल जाता है। भक्ति-पूर्वक एवं निष्काम साधना करने पर माता साधक का पथ-प्रदर्शन करती हैं।

(७) मातङ्गी गायत्री:-
  ॐ शुकप्रियाये विद्महे श्रीकामेश्वर्ये धीमहि
    तन्न: श्यामा प्रचोदयात।

(८) मातंगी शाबर मन्त्र

ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते । ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये । तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।

(९) मातङ्गी यन्त्र:-

जिनके घर में सदा क्लेश हो, पति पत्नी में मतभेद बढ़ गए हों, एक दूसरे की तरफ प्रेम न हो, तरक्की न होती हो या संतान गलत दिशा में भटक गयी हो अथवा रोज कोई न कोई अपशकुन होता हो उन्हें किसी सिध्द मातङ्गी साधक से मातङ्गी यन्त्र विधि पूर्वक प्रतिष्ठित करवा कर अपने घर मे स्थापित करना चाहिए व् इसका नित्य पूजन करना चाहिए।

नोट==◆ मातंगी महाविद्या का मंत्र ,मातंगी साधक ही प्रदान कर सकता है ,अन्य किसी महाविद्या का साधक इनके मंत्र को प्रदान करने का अधिकारी नहीं है ।
स्वयं मंत्र लेकर जपने से महाविद्याओं के मंत्र सिद्ध नहीं होते ,अतः जब भी मंत्र लिया जाए मातंगी साधक से ही लिया जाए ,यद्यापि मातंगी साधक खोजे नहीं मिलते जबकि अन्य महाविद्या के साधक मिल जाते
हैं । अतः किसी भी मन्त्र प्रयोग से पूर्व किसी सिद्ध मातङ्गी साधक से दीक्षा अवश्य लें।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान, कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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