पुत्र, यौवन और स्वास्थ्य के लिए अक्षय नवमी पूजन
अक्षय नवमी , 29 अक्टूबर 2017, रविवार
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी और आंवला नवमी कहा जाता है।इस तिथि के विषय में भगवान कहते है अक्षय नवमी मे जो भी पुण्य और उत्तम कर्म किये जाते हैं उससे प्राप्त पुण्य कभी नष्ट नहीं होते, यही कारण है कि इसे नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा गया है।
मान्यताओं के अनुसार:-
1. अक्षय नवमी के दिन ही त्रेता युग का आरम्भ हुआ था।
2. इसी दिन कुष्मांडा देवी का प्राकट्य हुआ था इसलिए इसे कुष्मांड नवमी भी कहते हैं और इस दिन कुष्मांड यानी कुम्हड़े का दान बेहद महत्वपूर्ण है।
3. एक अन्य मान्यता अनुसार भगवान विष्णु ने इसी दिन कुष्मांडक नामक राक्षस का वध किया था जिसके शरीर से कुष्मांड की बेले निकली हुई थी।
4. देवी पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण के परामर्श से माता कुंती ने भी अक्षय प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत किया था, तभी से इस व्रत का प्रचलन शुरू हो गया ।
5. इस दिन श्रद्धापूर्वक आंवले के नीचे भगवान विष्णु का पूजन करें तो निश्चित ही पुत्र/ सन्तान होती है।
इस दिन प्रात: काल स्नान करके भगवान विष्णु और शिव जी के दर्शन करने से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है. इस तिथि को पूजा, दान, यज्ञ, तर्पण करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है.
शास्त्रों में ब्रह्महत्या को घोर पाप बताया गया है. यह पाप करने वाला अपने दुष्कर्म का फल अवश्य भोगता है, लेकिन अगर वह अक्षमय नवमी के दिन स्वर्ण, भूमि, वस्त्र एवं अन्नदान करे वह आंवले के वृक्ष के नीचे लोगों को भोजन करायें तो इस पाप से मुक्त हो सकता है। इस नवमी को आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने व कराने का बहुत महत्व है यही कारण है कि इसे धातृ नवमी भी कहा जाता है। संस्कृत में धातृ या धात्री आंवले को कहा जाता है।
अक्षय नवमी कथा
कथा के अनुसार, एक बार देवी लक्ष्मी तीर्थाटन पर निकली तो रास्ते में उनकी इच्छा हुई कि भगवान विष्णु और शिव की पूजा की जाये। देवी लक्ष्मी उस समय सोचने लगीं कि एक मात्र चीज़ क्या हो सकती है जिसे भगवान विष्णु और शिव जी पसंदीद करते हों उसे ही प्रतीक मानकर पूजा की जाये। इस प्रकार काफी विचार करने पर देवी लक्ष्मी को ध्यान पर आया कि धात्री ही ऐसी है जिसमें तुलसी और विल्व दोनों के गुण मजूद हैं फलत: इन्हीं की पूजा करनी चाहिए। देवी लक्ष्मी तब धात्री के वृक्ष की पूजा की और उसी वृक्ष के नीचे प्रसाद ग्रहण किया। इस दिन से ही धात्री के वृक्ष की पूजा का प्रचलन हुआ।
अक्षय नवमी पूजा विधि
अक्षय नवमी के दिन संध्या काल में आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर लोगों को खाना खिलाने से बहुत ही पुण्य मिलता है. ऐसी मान्यता है कि भोजन करते समय थाली में आंवले का पत्ता गिरे तो बहुत ही शुभ माना जाता है साथ ही यह संकेत होता है कि आप वर्ष भर स्वस्थ रहेंगे.
अक्षय दिन का पूजा विधान इस प्रकार है. आंवले के वृक्ष के सामने पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें. धातृ के वृद्ध की पंचोपचार सहित पूजा करें फिर वृक्ष की जड़ को दूध से सिंचन करें। कच्चे सूत को लेकर धात्री के तने में लपेटें अंत में घी और कर्पूर से आरती और परिक्रमा करें.
आंवला वृक्ष का पूजन
आंवला नवमी के दिन सुबह स्नान कर दाहिने हाथ में जल, चावल, फूल आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें-
अद्येत्यादि अमुकगोत्रोमुकम (अपना नाम एवं गोत्र बोलें) ममाखिल-पापक्षयपूर्वक-धर्मार्थकाममोक्ष-सिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये।
ऐसा संकल्प कर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके
ॐ धात्र्यै नम:
मंत्र से आवाहनादि पंचोपचार/ षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मंत्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें-
पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिवन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से
कच्चे सूत को परिक्रमा कर तने पर लपेटें-
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।
इसके बाद कर्पूर या शुद्ध घी के दिए से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें -
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे ही ब्राह्मणों को भोजन भी कराना चाहिए और अंत में स्वयं भी आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना चाहिए। एक पका हुआ कुम्हड़ा (कद्दू) लेकर उसके अंदर रत्न, सोना, चांदी या रुपए आदि रखकर निम्न संकल्प करें-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्यादीनामुक्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये।
इसके बाद योग्य ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कुम्हड़ा दे दें और यह प्रार्थना करें-
कूष्णाण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्णा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।
पितरों के शीत निवारण के लिए यथाशक्ति कंबल आदि ऊनी कपड़े भी योग्य ब्राह्मण को देना चाहिए।
घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा, दानादि करने की भी परंपरा है अथवा गमले में आंवले का पौधा रोपित कर घर में यह कार्य संपन्न कर लेना चाहिए।
क्या करें:-
सुबह घर की अच्छी तरह साफ सफाई करें ताकि अलक्ष्मी दूर हो भगवान विष्णु संग लक्ष्मी आगमन हो।
1. इस दिन आंवले के रस को जल में मिलाकर स्नान करने से सुंदरता और यौवन की प्राप्ति होती है।
2. अक्षय नवमी पर घर में अथवा किसी मंदिर में अथवा किसी पार्क आदि में आंवले का वृक्ष लगाएं।
3.आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का स्मरण कर तर्पण करने से पित्र दोष शांत होता है।
4. इस दिन आंवला फल या उसकी पत्ती घर लाने से धन बढ़ता है और यश व ज्ञान की भी प्राप्ति होती है । पूजन करते समय या भोजन करते समय जो पत्तियां गिरें उन्हें लाना ज्यादा अच्छा माना जाता है।
5. आंवले के पेड़ में नीचे ब्रह्माजी, बीच में विष्णुजी और तने में महेशजी निवास करते हैं । इसलिए इस दिन कुंवारी लड़कियां अगर व्रत रखती हैं तो उनका विवाह और विद्यार्थियों को विद्या की प्राप्ति होती है ।
6. जिन लोगों के सन्तान या पुत्र न हो वे पति पत्नी इस दिन श्रद्धापूर्वक आंवले के नीचे भगवान विष्णु का पूजन करें तो निश्चित ही पुत्र/ सन्तान होती है।
7. अगर दाम्पत्य जीवन कटु चल रहा है तो पति-पत्नी के बीच मिठास पैदा होती है । जिस तरह पेड़ में सूत लपेटा जाता है, उसी तरह रिश्ते भी एक-दूसरे से बंध जाते हैं ।
8. अक्षय नवमी को गौ, जमीन, हिरण, सोना व वस्त्राभूषण आदि दान करने से ब्रह्म हत्या जैसे महापाप भी मिट जाते हैं । इसीलिए इसे धात्री नवमी भी कहा गया है ।
9. जिनकी आंखें कमजोर होती हैं, अगर वह इस दिन कुम्हड़ा के अंदर पैसे, सोना, चांदी आदि रखकर पूजा कर ब्राह्मण को दान करते हैं तो उनको लाभ मिलता है ।
11. फलदार आंवले के पेड़ के नीचे ही पूजा करें, तभी फल मिलेगा ।
12. कुछ पण्डित घर मे आंवले की डाल लेकर पूजन करने की सलाह देते हैं किंतु इस दिन आंवले का पेड़ काटना निषेध है।
मित्रों, ये तो थीं धार्मिक बातें किंतु यदि आयुर्वेद और विज्ञान की दृष्टि से देखें तो शीत ऋतु का आगमन हो चुका है और आंवला नवमी एक शिक्षा भी है ऋतु अनुसार पथ्य अपथ्य का। इस समय से आंवला खाना शुरू करें और आंवला एकादशी तक यानी मार्च- अप्रैल तक तो साल भर स्वस्थ सुंदर निरोगी रहेंगे।
ऊपर कथा में भी बताया गया कि आंवले में तुलसी और बेल दोनो के गुण समाहित होते हैं तो एक आंवला आपकी हजार बीमारियां दूर कर देता है।
च्यवन ऋषि भी आंवले यानी च्यवनप्राश जिसका मुख्य घटक आंवला है खाकर ही पुनःयुवा हुए थे।
सर्दी के मौसम में पित्त बढ़ता है और लोगो को विभिन्न व्याधियां, खुजली इत्यादि हो जाते हैं ऐसे में आंवले का सेवन उस बढ़े हुए पित्त को नियंत्रित कर शरीर की इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर आपको स्वस्थ रखता है।
इसलिए इस पर्व को परम्परा का ढकोसला न समझें न ही बोझमानकर मनाएं बल्कि अपने पूर्वजों की वैज्ञानिक सोच का सम्मान करते हुए आनन्द और आदरपूर्वक मनाएं।
।।जय श्री राम।।
Abhishek B. Pandey
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अक्षय नवमी , 29 अक्टूबर 2017, रविवार
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी और आंवला नवमी कहा जाता है।इस तिथि के विषय में भगवान कहते है अक्षय नवमी मे जो भी पुण्य और उत्तम कर्म किये जाते हैं उससे प्राप्त पुण्य कभी नष्ट नहीं होते, यही कारण है कि इसे नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा गया है।
मान्यताओं के अनुसार:-
1. अक्षय नवमी के दिन ही त्रेता युग का आरम्भ हुआ था।
2. इसी दिन कुष्मांडा देवी का प्राकट्य हुआ था इसलिए इसे कुष्मांड नवमी भी कहते हैं और इस दिन कुष्मांड यानी कुम्हड़े का दान बेहद महत्वपूर्ण है।
3. एक अन्य मान्यता अनुसार भगवान विष्णु ने इसी दिन कुष्मांडक नामक राक्षस का वध किया था जिसके शरीर से कुष्मांड की बेले निकली हुई थी।
4. देवी पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण के परामर्श से माता कुंती ने भी अक्षय प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत किया था, तभी से इस व्रत का प्रचलन शुरू हो गया ।
5. इस दिन श्रद्धापूर्वक आंवले के नीचे भगवान विष्णु का पूजन करें तो निश्चित ही पुत्र/ सन्तान होती है।
इस दिन प्रात: काल स्नान करके भगवान विष्णु और शिव जी के दर्शन करने से अनन्त पुण्य की प्राप्ति होती है. इस तिथि को पूजा, दान, यज्ञ, तर्पण करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है.
शास्त्रों में ब्रह्महत्या को घोर पाप बताया गया है. यह पाप करने वाला अपने दुष्कर्म का फल अवश्य भोगता है, लेकिन अगर वह अक्षमय नवमी के दिन स्वर्ण, भूमि, वस्त्र एवं अन्नदान करे वह आंवले के वृक्ष के नीचे लोगों को भोजन करायें तो इस पाप से मुक्त हो सकता है। इस नवमी को आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने व कराने का बहुत महत्व है यही कारण है कि इसे धातृ नवमी भी कहा जाता है। संस्कृत में धातृ या धात्री आंवले को कहा जाता है।
अक्षय नवमी कथा
कथा के अनुसार, एक बार देवी लक्ष्मी तीर्थाटन पर निकली तो रास्ते में उनकी इच्छा हुई कि भगवान विष्णु और शिव की पूजा की जाये। देवी लक्ष्मी उस समय सोचने लगीं कि एक मात्र चीज़ क्या हो सकती है जिसे भगवान विष्णु और शिव जी पसंदीद करते हों उसे ही प्रतीक मानकर पूजा की जाये। इस प्रकार काफी विचार करने पर देवी लक्ष्मी को ध्यान पर आया कि धात्री ही ऐसी है जिसमें तुलसी और विल्व दोनों के गुण मजूद हैं फलत: इन्हीं की पूजा करनी चाहिए। देवी लक्ष्मी तब धात्री के वृक्ष की पूजा की और उसी वृक्ष के नीचे प्रसाद ग्रहण किया। इस दिन से ही धात्री के वृक्ष की पूजा का प्रचलन हुआ।
अक्षय नवमी पूजा विधि
अक्षय नवमी के दिन संध्या काल में आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर लोगों को खाना खिलाने से बहुत ही पुण्य मिलता है. ऐसी मान्यता है कि भोजन करते समय थाली में आंवले का पत्ता गिरे तो बहुत ही शुभ माना जाता है साथ ही यह संकेत होता है कि आप वर्ष भर स्वस्थ रहेंगे.
अक्षय दिन का पूजा विधान इस प्रकार है. आंवले के वृक्ष के सामने पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें. धातृ के वृद्ध की पंचोपचार सहित पूजा करें फिर वृक्ष की जड़ को दूध से सिंचन करें। कच्चे सूत को लेकर धात्री के तने में लपेटें अंत में घी और कर्पूर से आरती और परिक्रमा करें.
आंवला वृक्ष का पूजन
आंवला नवमी के दिन सुबह स्नान कर दाहिने हाथ में जल, चावल, फूल आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें-
अद्येत्यादि अमुकगोत्रोमुकम (अपना नाम एवं गोत्र बोलें) ममाखिल-पापक्षयपूर्वक-धर्मार्थकाममोक्ष-सिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये।
ऐसा संकल्प कर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके
ॐ धात्र्यै नम:
मंत्र से आवाहनादि पंचोपचार/ षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मंत्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें-
पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिवन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से
कच्चे सूत को परिक्रमा कर तने पर लपेटें-
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।
इसके बाद कर्पूर या शुद्ध घी के दिए से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें -
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे ही ब्राह्मणों को भोजन भी कराना चाहिए और अंत में स्वयं भी आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना चाहिए। एक पका हुआ कुम्हड़ा (कद्दू) लेकर उसके अंदर रत्न, सोना, चांदी या रुपए आदि रखकर निम्न संकल्प करें-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्यादीनामुक्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये।
इसके बाद योग्य ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कुम्हड़ा दे दें और यह प्रार्थना करें-
कूष्णाण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्णा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।
पितरों के शीत निवारण के लिए यथाशक्ति कंबल आदि ऊनी कपड़े भी योग्य ब्राह्मण को देना चाहिए।
घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा, दानादि करने की भी परंपरा है अथवा गमले में आंवले का पौधा रोपित कर घर में यह कार्य संपन्न कर लेना चाहिए।
क्या करें:-
सुबह घर की अच्छी तरह साफ सफाई करें ताकि अलक्ष्मी दूर हो भगवान विष्णु संग लक्ष्मी आगमन हो।
1. इस दिन आंवले के रस को जल में मिलाकर स्नान करने से सुंदरता और यौवन की प्राप्ति होती है।
2. अक्षय नवमी पर घर में अथवा किसी मंदिर में अथवा किसी पार्क आदि में आंवले का वृक्ष लगाएं।
3.आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु का स्मरण कर तर्पण करने से पित्र दोष शांत होता है।
4. इस दिन आंवला फल या उसकी पत्ती घर लाने से धन बढ़ता है और यश व ज्ञान की भी प्राप्ति होती है । पूजन करते समय या भोजन करते समय जो पत्तियां गिरें उन्हें लाना ज्यादा अच्छा माना जाता है।
5. आंवले के पेड़ में नीचे ब्रह्माजी, बीच में विष्णुजी और तने में महेशजी निवास करते हैं । इसलिए इस दिन कुंवारी लड़कियां अगर व्रत रखती हैं तो उनका विवाह और विद्यार्थियों को विद्या की प्राप्ति होती है ।
6. जिन लोगों के सन्तान या पुत्र न हो वे पति पत्नी इस दिन श्रद्धापूर्वक आंवले के नीचे भगवान विष्णु का पूजन करें तो निश्चित ही पुत्र/ सन्तान होती है।
7. अगर दाम्पत्य जीवन कटु चल रहा है तो पति-पत्नी के बीच मिठास पैदा होती है । जिस तरह पेड़ में सूत लपेटा जाता है, उसी तरह रिश्ते भी एक-दूसरे से बंध जाते हैं ।
8. अक्षय नवमी को गौ, जमीन, हिरण, सोना व वस्त्राभूषण आदि दान करने से ब्रह्म हत्या जैसे महापाप भी मिट जाते हैं । इसीलिए इसे धात्री नवमी भी कहा गया है ।
9. जिनकी आंखें कमजोर होती हैं, अगर वह इस दिन कुम्हड़ा के अंदर पैसे, सोना, चांदी आदि रखकर पूजा कर ब्राह्मण को दान करते हैं तो उनको लाभ मिलता है ।
11. फलदार आंवले के पेड़ के नीचे ही पूजा करें, तभी फल मिलेगा ।
12. कुछ पण्डित घर मे आंवले की डाल लेकर पूजन करने की सलाह देते हैं किंतु इस दिन आंवले का पेड़ काटना निषेध है।
मित्रों, ये तो थीं धार्मिक बातें किंतु यदि आयुर्वेद और विज्ञान की दृष्टि से देखें तो शीत ऋतु का आगमन हो चुका है और आंवला नवमी एक शिक्षा भी है ऋतु अनुसार पथ्य अपथ्य का। इस समय से आंवला खाना शुरू करें और आंवला एकादशी तक यानी मार्च- अप्रैल तक तो साल भर स्वस्थ सुंदर निरोगी रहेंगे।
ऊपर कथा में भी बताया गया कि आंवले में तुलसी और बेल दोनो के गुण समाहित होते हैं तो एक आंवला आपकी हजार बीमारियां दूर कर देता है।
च्यवन ऋषि भी आंवले यानी च्यवनप्राश जिसका मुख्य घटक आंवला है खाकर ही पुनःयुवा हुए थे।
सर्दी के मौसम में पित्त बढ़ता है और लोगो को विभिन्न व्याधियां, खुजली इत्यादि हो जाते हैं ऐसे में आंवले का सेवन उस बढ़े हुए पित्त को नियंत्रित कर शरीर की इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर आपको स्वस्थ रखता है।
इसलिए इस पर्व को परम्परा का ढकोसला न समझें न ही बोझमानकर मनाएं बल्कि अपने पूर्वजों की वैज्ञानिक सोच का सम्मान करते हुए आनन्द और आदरपूर्वक मनाएं।
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