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Wednesday, 21 September 2016

Havan for diseases हवन चिकित्सा

यज्ञ से विभिन्न रोगों की चिकित्सा

मित्रों,
इससे पूर्ववर्ती लेखों में हम चर्चा कर चुके हैं क़ि यज्ञ- हवन के लाभ क्या हैं और उनका वैज्ञानिक आधार क्या है, साथ ही हवन सामग्री शुद्ध हो तभी इनका पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।

प्राचीन काल  में रोगी को स्वस्थ करने हेतु भी विभिन्न हवन होते थे।  जिसे वैद्य या चिकित्सक रोगी और रोग की प्रकृति के अनुसार करते थे पर कालांतर में ये यज्ञ या हवन मात्र धर्म से जुड़ कर ही रह गए और इनके अन्य उद्देश्य लोगों द्वारा भुला दिए गये.

यज्ञ पर्यावरण की शुद्धि का सर्वश्रेष्ठ साधन है | यह वायुमंडल को शुद्ध रखता है | वर्षा होकर धनधान्य की आपूर्ति होती है | इससे वातावरण शुद्ध व रोग रहित होता है | ऐसी ऐसी ओषध है जो सुगंध भी देती है, पुष्टि भी देती है तथा वातावरण को रोगमुक्त रहता है | इसे करने वाला व्यक्ति सदा रोग मुक्त व प्रसन्नचित रहता है |

इतना होने पर भी कभी कभी मानव किन्ही संक्रमित रोगाणुओं के आक्रमण से रोग ग्रसित हो जाता है | इस रोग से छुटकारा पाने के लिए उसे अनेक प्रकार की दवा लेनी होती है | हवन यज्ञ जो बिना किसी कष्ट व् पीड़ा के रोग के रोगाणुओं को नष्ट कर मानव को शीघ्र निरोग करने की क्षमता रखते हैं | इस पर अनेक अनुसंधान भी हो चुके हैं तथा पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं |

ऋग्वेद से लेकर तंत्र शास्त्रों तक अनेकों पुस्तकों में अनेक जड़ी बूटियों का वर्णन किया गया है , जिनका उपयोग विभिन्न रोगों में करने से बिना किसी अन्य ओषध के प्रयोग के केवल यज्ञ द्वारा ही रोग ठीक हो जाते हैं | इन पुस्तकों के आधार पर आगे हम कुछ रोगों के निदान के लिए उपयोगी सामग्री का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि यदि इस सामग्री के उपयोग सेपूर्ण आस्था के साथ यज्ञ किया जावे तो निश्चत ही लाभ होगा |

आयुर्वेद का एक महत्व पूर्ण अंग था धूम्र चिकित्सा।

सर भारी या दर्द  होने पर किस प्रकार हवन से इलाज होता था इस श्लोक से देखिये :-

     श्वेता ज्योतिष्मती चैव हरितलं मनःशिला।।

      गन्धाश्चा गुरुपत्राद्या  धूमं  मुर्धविरेचनम्।।                 (चरक सू* ५/२६-२७)

अर्थात अपराजिता , मालकांगनी , हरताल, मैनसिल, अगर तथा तेज़पात्र  औषधियों को हवन करने से शिरो व्विरेचन होता है।

परन्तु अब ये चिकित्सा पद्धति विलुप्त प्राय हो गयी है।

जहाँ विभिन्न औषधियों के धुएं के माध्यम से रोगी को स्वास्थ्य लाभ करवाया जाता था। ये उन रोगियों में भी बेहद लाभकारी था जो निश्चेतन होते थे अथवा खाने पीने में असमर्थ थे। औषधीय धुंआ श्वास के माध्यम से शरीर के भीतर पहुंचकर लाभ देता था।
इसके दो भाग प्रचलित थे :-
1 यज्ञ- हवन
2 धूनी

यज्ञ हवन के बारे में सभी जानते हैं , तब काफी वैद्य तंत्र मंत्र के भी निपुण ज्ञाता होते थे और वे मंत्रोच्चार करते हुए हवन भी करवा देते थे।

वहीं जहाँ थोड़ी थोड़ी मात्रा में नित्य जरूरत होती थी वहां धूनी का प्रयोग होता था , जिसमे किसी पात्र में आम या अन्य औषधीय लकड़ी या गाय के गोबर से बने उपले जलाकर जब लाल अंगारे  बन जाते थे तब उसके ऊपर औषधि मिश्रण डाल कर उसे रोगी की चारपाई के नीचे रख दिया जाता था। उससे पैदा होने वाला धुआं रोगी को लाभ देता था।

मित्रों, जब इस विषय पर बात कर रहे हैं तो उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध सन्त श्री श्री 1008 नानतिन महाराज का भी उल्लेख्य करना चाहूंगा।
नानतिन बाबा सुपथ्य के बड़े समर्थक थे और कहते थे कि जैसा अन्न खाओगे वैसा ही शरीर पाओगे। वे आहार नियंत्रण के माध्यम से ही कई रोगों को दूर करने की क्षमता रखते थे।
उन्होंने भयंकर रोगों से ग्रस्त, मरणासन्न रोगियों व हताश रोगियों को भी अपने आयुर्वेद के ज्ञान से पुर्नजीवन प्रदान किया। उन्हें आयुर्वेद और जड़ी-बूटियों का अगाध ज्ञान था। वे अपने जड़ी-बूटियों के अगाध ज्ञान द्वारा भक्तों की दुष्कर बीमारियों को निरन्तर दूर करते थे और भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान के माध्यम से सकारात्मक जीवन दर्शन प्रदान करते थे।
हालाँकि मुझे उनके दर्शन का सौभाग्य नहीं मिला किंतु परिवार के बुजुर्गों से सुनता हूँ की 70 के दशक में अनेक केंसर रोगियों को ठीक किया यानि उस वक्त जब भारत में कैंसर के आगे मेडिकल साइंस भी लाचार थी और केंसर मृत्यु का ही दूसरा नाम था।
इलाज में बाबा चीड़ के पेड़ की घास काई को अन्य जड़ियों संग धातु पात्र पर पेट या पीड़ित अंग पर जलाते थे। उस वक्त के शहर के कई नामचीन व्यक्तियों को बाबा की ये कृपा प्राप्त हुई थी।

एक नज़र कुछ रोगों और उनके नाश के लिए प्रयुक्त होने वाली हवन सामग्री पर

1. सर के रोग:- सर दर्द, अवसाद, उत्तेजना, उन्माद मिर्गी  आदि के लिए

 ब्राह्मी, शंखपुष्पी , जटामांसी, अगर , शहद , कपूर , पीली  सरसो

2. स्त्री रोगों, वात  पित्त, लम्बे समय से आ रहे  बुखार  हेतु

बेल, श्योनक,  अदरख, जायफल, निर्गुण्डी, कटेरी, गिलोय इलायची, शर्करा, घी, शहद, सेमल, शीशम

3. पुरुषों को पुष्ट बलिष्ठ करने और पुरुष रोगों हेतु

सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , अश्वगंधा , पलाश , कपूर , मखाने,  गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र ,  लौंग , बड़ी इलायची , गोला

4. पेट एवं लिवर  रोग हेतु

भृंगराज , आमला , बेल ,  हरड़, अपामार्ग, गूलर, दूर्वा , गुग्गुल घी , इलायची

5. श्वास  रोगों हेतु

वन तुलसी, गिलोय, हरड  , खैर  अपामार्ग, काली मिर्च, अगर तगर, कपूर, दालचीनी, शहद, घी, अश्वगंधा, आक, यूकेलिप्टिस

6. कैंसर नाशक हवन:-

गुलर के फूल, अशोक की छाल, अर्जन की छाल, लोध, माजूफल, दारुहल्दी, हल्दी, खोपारा, तिल, जो , चिकनी सुपारी, शतावर , काकजंघा, मोचरस, खस, म्न्जीष्ठ, अनारदाना, सफेद चन्दन, लाल चन्दन, ,गंधा विरोजा, नारवी ,जामुन के पत्ते, धाय के पत्ते, सब को सामान मात्रा में लेकर चूर्ण करें तथा इस में दस गुना शक्कर व एक गुना केसर से हवन करें |

7. संधि गत ज्वर ( जोड़ों का दर्द ) :-

संभालू ( निर्गुन्डी ) के पत्ते , गुग्गल, सफ़ेद सरसों, नीम के पत्ते, गुग्गल, सफ़ेद सरसों, नीम के पत्ते, रल आदि का संभाग लेकर चूरन करें , घी मिश्रित धुनी दें, हवन करें।

8. निमोनियां नाशक हवन :-

पोहकर मूल, वाच, लोभान, गुग्गल, अधुसा, सब को संभाग ले चूरन कर घी सहित हवं करें व धुनी दें |

9. जुकाम नाशक :-

खुरासानी अजवायन, जटामासी , पश्मीना कागज, लाला बुरा ,सब को संभाग ले घी सचूर्ण कर हित हवं करें व धुनी दें |

10. पीनस ( बिगाड़ा हुआ जुकाम ) :-

बरगद के पत्ते, तुलसी के पत्ते, नीम के पत्ते, वा|य्वडिंग,सहजने की छाल , सब को समभाग ले चूरन कर इस में धूप का चूरा मिलाकर हवन करें व धूनी दें।

11. श्वास – कास नाशक :-

बरगद के पत्ते, तुलसी के पत्ते, वच, पोहकर मूल, अडूसा – पत्र, सब का संभाग कर्ण लेकर घी सहित हवं कर धुनी दें |

12. सर दर्द नाशक :-

काले तिल और वाय्वडिंग चूरन संभाग ले कर घी सहित हवं करने से व धुनी देने से लाभ होगा |

13. चेचक नाशक –
खसरा गुग्गल, लोभान, नीम के पत्ते, गंधक , कपूर, काले तिल, वाय्वासिंग , सब का संभाग चूरन लेकर घी सहित हवं करें व धुनी दें।

14. जिह्वा तालू रोग नाशक:-

मुलहठी, देवदारु, गंधा विरोजा, राल, गुग्गल, पीपल, कुलंजन, कपूर और लोभान सब को संभाग ले घी सहित हवं करीं व धुनी दें |

15. टायफायड :-

यह एक मौसमी व भयानक रोग होता है | इस रोग के कारण इससे यथा समय उपचार न होने से रोगी अत्यंत कमजोर हो जाता है तथा समय पर निदान न होने से मृत्यु भी हो सकती है |  यदि ऐसे रोगी के पास नीम , चिरायता , पितपापडा , त्रिफला , आदि जड़ी बूटियों को समभाग लेकर इन से हवन किया जावे तथा इन का धुआं रोगी को दिया जावे तो लाभ होगा |

16. ज्वर :-

ज्वर भी व्यक्ति को अति परेशान करता है किन्तु जो व्यक्ति प्रतिदिन यग्य करता है , उसे ज्वर नहीं होता | ज्वर आने की अवास्था में अजवायन से यज्ञ करें तथा इस की धुनी रोगी को दें | लाभ होगा |

17. नजला :-

लगातार बना रहने वाला सिरदर्द जुकाम यह मानव को अत्यंत परेशान करता है | इससे श्रवण शक्ति , आँख की शक्ति कमजोर हो जाते हैं तथा सर के बाल सफ़ेद होने लगते हैं | लम्बे समय तक यह रोग रहने पर इससे दमा आदि भयानक रोग भी हो सकते हैं | इन के निदान के लिए मुनका से हवन करें तथा इस की धुनी रोगी को देने से लाभ होता है |

18. नेत्र ज्योति :-

नेत्र ज्योति बढ़ाने का भी हवन एक उत्तम साधन है | इस के लिए हवन में शहद की आहुति देना लाभकारी है | शहद का धुआं आँखों की रौशनी को बढ़ता है।

19. मस्तिष्क बल :-

मस्तिष्क की कमजोरी मनुष्य को भ्रांत बना देती है | इसे दूर करने के लिए शहद तथा सफ़ेद चन्दन से धूनी देना उपयोगी होता है |

20. वातरोग :-

वातरोग में जकड़ा व्यक्ति जीवन से निराश हो जाता है | इस रोग से बचने के लिए यज्ञ सामग्री में पिप्पली ,शिरीष छाल तथा हरड़ का उपयोग करना चाहिए | इस के धुएं से रोगी को लाभ मिलता है |

21. मनोविकार :-

मनोरोग से रोगी जीवित ही मृतक समान हो जाता है | इस के निदान के लिए गुग्गल तथा अपामार्ग का उपयोग करना चाहिए | इस का धुआं रोगी को लाभ देता है |

22. मधुमेह :

यह रोग भी रोगी को अशक्त करता है | इस रोग से छुटकारा पाने के लिए हवन में गुग्गल, लोबान , जामुन वृक्ष की छाल, करेला का द्न्थल, सब संभाग मिला आहुति दें व् इस की धुनी से रोग में लाभ होता है |

23. उन्माद:-

मानसिक यह रोग भी रोगी को मृतक सा ही बना देता है | सीताफल के बीज और जटामासी चूरन समभाग लेकर हवन में डालें तथा इस का धुआं दें तो लाभ होगा |

24. चित्तभ्रम :--

यह भी एक भयंकर रोग है | इस के लिए कचूर ,खास, नागरमोथा, महया , सफ़ेद चन्दन, गुग्गल, अगर, बड़ी इलायची ,नारवी और शहद संभाग लेकर यग्य करें तथा इसकी धुनी से लाभ होगा |

25. :पीलिया :-

इस के लिए देवदारु , चिरायत, नागरमोथा, कुटकी, वायविडंग संभाग लेकर हवन में डालें | इस का धुआं रोगी को लाभ देता है |

26. क्षय रोग :-

यह रोग भी मनुष्य को क्षीण कर देता है तथा उसकी मृत्यु का कारण बनता है | ऐसे रोगी को बचाने के लिए गुग्गल, सफेद चन्दन, गिलोय , बांसा(अडूसा) सब का १०० – १०० ग्राम का चूरन कपूर ५- ग्राम, १०० ग्राम घी , सब को मिला कर हवन में डालें | इस के धुएं से रोगी को लाभ होगा |

27.मलेरिया :-

मलेरिया भी भयानक पीड़ा देता है | ऐसे रोगी को बचाने के लिए गुग्गल , लोबान , कपूर, हल्दी , दारुहल्दी, अगर, वाय्वडिंग, बाल्छाद, ( जटामासी) देवदारु, बच , कठु, अजवायन , नीम के पते समभाग लेकर संभाग ही घी डाल हवन करें | इस का धुआं लाभ देगा |

28. अपराजित या सर्वरोग नाशक धूप :-

गुग्गल, बच, असगंध,  नीम के पते, अगर, राल, देवदारु, छिलका सहित मसूर संभाग घी के साथ हवन करें | इसके धुआं से लाभ होगा तथा परिवार रोग से बचा रहेगा|

मित्रों,
   अब बात आती है कि किन मंत्रों का प्रयोग इन हवनों में किया जाये तो इसमें ज्ञानीजन के भिन्न मत हैं। कुछ का मानना है कि पहले निश्चित संख्या में जप हो फिर दशांश हवन वहीं दूसरा मत है कि सीधे ही हवन किया जाये।
अब ये आप अपने गुरु, आचार्य या पुरोहित जी से विमर्श कर तय कर सकते हैं।

रोग नाश में प्रयुक्त होने वाले मुख्य मंत्र:-

1. गायत्री मंत्र
2. महामृत्युंजय मंत्र
3. रोगनाश महाविद्या मंत्र
4. महाविद्या सम्पुटित मूल मंत्र
5. पीड़ित अंग सम्बन्धी मन्त्र
6. रोग-अंग सम्बन्धी ग्रह नक्षत्र मंत्र
7. कुल देवता, इष्ट देवता मन्त्र
8. नरसिंह/ हनुमान / भैरव रक्षा मन्त्र
9. नाग देवता, लोक देवता मंत्र

हवन यज्ञ में किस मन्त्र का और किस प्रकार प्रयोग करना है इसका निर्णय आप अपने गुरु जी या पुरोहित जी से विमर्श कर करें।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान, कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
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