हवन पूजन सामग्री देख जाँच कर खरीदें
मित्रों,
हवन और यज्ञ का महत्व वैसे तो हम सब जानते ही हैं चाहे अध्यात्मिक हो, घर परिवार धन या स्वस्थ्य लाभ के लिए।
पिछले कुछ समय से आ रही ख़बरों ने चौंका सा दिया है की हवन के बाद साँस में तकलीफ, आंख में तकलीफ और कभी कभी त्वचा रोग भी हो रहे हैं।
ये सारा चमत्कार बाज़ार में बिक रही नकली हवन और पूजन सामग्री का है। हवन में प्रायः शुद्ध देशी घी, धार ,अगर तगर ,शहद ,चन्दन की लकड़ी और बुरादा, सप्त्म्रित्तिका ,सप्त्धन, रोली सिंदूर, कपूर ,मौली, दूध दही, हल्दी, इत्र ,तिल का तेल, केसर ,भोजपत्र ,नैवेद्य ,गुग्गुल कमलगट्टा ,जटामांसी आदि का प्रयोग मुख्यतः होता है। इनके अलावा अन्य कई सामग्रियां स्वयं ही जुटानी पड़ती हैं।
प्राचीन कल में लोग एक एक सामग्री जंगल, बाग़ बगीचों से ,गाँव से एकत्र करते थे पर अब इस शहरी युग में हर चीज़ मिलने का एक स्थान बाज़ार ही है।
सबसे पहले हवन सामग्री की ही बात करते हैं जो 15₹ - 100₹ तक आराम से उपलब्ध है। जो लोग हवन सामग्री में पड़ने वाली वस्तुओं का ज्ञान रखते हैं वे आसानी से असली उर नकली सामग्री में अंतर कर सकते हैं पर ऐसे लोग हैं ही कितने?
आप पैकेट लेकर देखिये उसमे आपको लकड़ी का बुरादा झाड़ू का बुरादा कागज और कूड़ा करकट की मात्र ही अधिक मिलेगी। साथ ही गाजर घास के अंश जो सब जगह आसानी से मिल जाती है और टीबी ,दमा ,नेत्र रोगों को जन्म देती है। ऐसी हवन सामग्री से हवन कर आपको क्या लाभ होगा। आपकी श्रद्धा के बल पर जो मिलना होगा वाही मिलेगा बाकि जब अप कूड़ा हाथ में लेकर स्वाहा कहेन्गे और देवता कूड़ा ग्रहण करेंगे तो प्रतिफल क्या होगा आप खुद समझ सकते हैं। और फिर आप भारतीय पूजा पद्धति मंत्र, तंत्र, यंत्र ,ज्योतिष सब पर प्रश्न चिन्ह लगा देंगे।
अब दूसरा नंबर घी का। भारत में दूध की नदियाँ बहती थीं इतना पशुधन था पर शायद आज तबके मुकाबले दूध दही घी के सागर बह रहे हैं। न्यूज़ चेनेल हर त्यौहार पर दिखा रहे हैं की गाय भैंस से ज्यादा दूध आदमी दे रहे हैं।
आज जहाँ अच्छा घी 450 ₹ किलो से उपर बिक रहा है और फुटकर पैकेट भी 90-100₹ पाव या 250 ग्राम वहीँ आप एक बार दुकानदार से कह के देखिये की हवन के लिए घी चाहिए तुरंत 40₹- 70₹ पाव का पेकेट दिखा देगा। आप यदि उसे ध्यान से पढेंगे तो कहीं न कहीं लिखा मिल जायेगा की "नोट फॉर इंटरनल यूज़ या ह्यूमन यूज़ या नॉन एडिबल।" क्यूंकि उनमे पेट्रोलियम जेली और पशुओं की चर्बी होती है घी की बस खुशबु होती है। अब ऐसे घी से हवन कर आप क्या स्वस्थ्य लाभ लेंगे और क्या मेघ उन्नत कृषि के लिए जल देंगे?
मित्रों, हवन का एक बेहद महत्वपूर्ण अव्यव है गुग्गुल। शुद्ध गुग्गुल क्वालिटी अनुसार 1500 से 2500 रूपये प्रति किलो तक मिलता है वहीं आज अधिकतर पंसारियों के पास 700 से 1000 रूपये किलो में मिल रहा है। पता चला है कि
मुंबई और सूरत में व्यापारी बड़ी मात्रा में नकली गूगल तैयार करवाते हैं। इसके लिए विदेशों से मिलने वाले रेजिन नामक केमिकल रसायन का उपयोग किया जाता है। इस केमिकल में समुद्र की गरम रेत, रंग और खुशबू मिलाते हैं। इसे मशीन से टुकड़ों में तोड़ा जाता है। जब हवनकुंड में इसे डाला जाता है तो केमिकल चूंकि ज्वलनशील होता है तो वो जल जाता है और रेत व अन्य चीजें बाकी सामग्रियों के साथ मिल जाती हैं। यही वजह है कि हवन के दौरान गुग्गुल की जो ह्रदय तृप्त करने वाली विशेष सुगंध वाला धुआं आना चाहिए, वैसा नहीं आता, बल्कि इससे छींक, सिर चकराना, चक्कर आना जैसी शिकायतें हो जाती हैं।
अगर बत्ती और धुप बत्ती का मुद्दा तो पुराना हो गया है। अगरबत्ती में जहाँ खुशबूदार बुरादा बांस की डंडी में चिपका होता है वहीँ धूप बत्ती में मोबिल आयल का कचरा, नकली तेलों के ड्रमों के पेंदे में जमा गंदगी और खुशबु दर बुरादा रहता है। अब इतनी उत्तम चीजों की खुशबु से भगवन तो क्या प्रेत भी प्रसन्न नहीं होंगे।
इसके अलावा धार यानि सूखे फलों के चूर्ण के नाम पर सड़ के सूखे फलों का चूर्ण।
अशुद्ध हवन सामग्री एवं अनुचित मात्रा सर्वथा त्याज्य है।
सप्तधान में जहाँ मात्रा है की तिल का आधा चावल और चावल का आधा जौं आदि होगी वहीँ अब रेडीमेड पैकेट आ रहे हैं जिसमे तिल ही सबसे कम रहता है क्यूंकि सबसे महंगा है। ऐसी मान्यता है की ये मात्रा सही न होने पर यज्ञ करता और यजमान दोनों ही गंभीर रोगों के शिकार बनते हैं। पर अब ये भी 5₹-20₹ के पैकेट में उपलब्ध है मात्र कौन देखता है।
शहद में शीरा मिला होता है। चन्दन की लकड़ी और बुरादे के नाम पर नकली लकड़ियाँ बिकती हैं एसेंस डाल कर चन्दन के साथ भिगो कर।
सप्तमृत्तिका यानि सात स्थानों की मिटटी जिसमे हाथी के खुर, घोड़े के खुर ,दीमक की बाम्बी, राजा के घर की ,तीर्थ स्थल की ,गोशाला की और नदी तट की मिटटी चाहिए होती है। अब इसके भी पैकेट आने लगे हैं । अब किस्मे कितना और क्या होगा भगवान ही जाने?
कपूर आजकल 2₹ की एक टिक्की मिलती है इतनी शानदार की आरती ख़तम दीपक शांत पर टिक्की सलामत बची रहती है। असली कपूर में अपने बचपन में कभी अपने ऐसा देखा। असली कपूर की पहचान ही यही थी कि खुला रखा हो तो हवा में उड़ जायेगा और जलेगा तो जलने के बाद कुछ शेष नहीं बचता था।
वो कपूर लोग सर में लगाते थे , पेट ठीक ने होने पर एक चुटकी फांक लेते थे ,दांत दर्द में दांत के निचे दबाते थे। पर इस पैकेट वाले कपूर में लिखा होता है "नॉन एडिबल या नॉट फॉर इंटरनल यूज़।"
केसर की मिलावट के बारे में तो जितना कहें कम है। रोली भी सिंथेटिक आ रही है रंग मिली और सिंदूर भी। आज सुबह तिलक करो तो परसों तक माथे पे निशान बना रहे ऐसी। इतनी पक्की।
कलावा भी कच्चे सूत की जगह सिंथेटिक धागे और पक्के सूत का आने लगा है।
कमलगट्टा जैसी चीज़ भी अब नकली आने लगी है तो लक्ष्मी माता कहाँ से प्रसन्न हों।
जटामांसी भी नकली आती है उसके जैसी दिखने वाली वनस्पतिओन में अन्यथा किसी भी पौधे के चूर्ण में एसेंस दल कर जटामांसी चूर्ण के नाम। पे बिकता है।
तिल का तेल भी 30-50% मिलावट युक्त आ रहा है और हल्दी भी।
मित्रों ये मात्र एक छोटी से झलक है और पिक्चर बहुत बड़ी। अतः आप सबसे अनुरोध है की किसी भी प्रकार की पूजन और हवं सामग्री किसी भरोसे के स्थान से खरीदें या स्वयं एकत्र करें। ये महंगी अवश्य होगी पर इसके इस्तेमाल के बाद आपको इनका असर भी नज़र आयेगा। अन्यथा नकली कूड़ा करकट केमिकल एसेंस मिली पूजन हवं सामग्री के इस्तेमाल से न सिर्फ आपके धन का नुकसान होगा बल्कि आपकी श्रद्धा और विश्वास को चोट लगेगी। स्वास्थय को नुकसान बोनस में। और फिर आप इस पूजा को बताने वाले पंडित या ज्योतिषी को बड़े बड़े उद्गारों से नवाजेंगे और पूजा पाठ हवन सबको झूठा सिद्ध करने में जुट जायेंगे।
हवन के लिए बाजार से पैकेट बन्द सामग्री लेने के स्थान पर घर में मौजूद चीजों से ही मुख्य सामग्री तैयार कर हवन करें ।
जौं का दोगुना चावल, उसका दोगुना तिल, जौं सम्भाग शक्कर दोगुना घी होना चाहिए। इसके दशांश में गुग्गुल, सूखे मेवे जैसे बादाम, किशमिश मुनक्का अंजीर , मखाने, चिरौंजी, और पँचन्श में अगर तगर नागकेसर तेजपत्र, तमालपत्र, हल्दी दारुहल्दी, केसर, इंद्रजौं, कमलगट्टे, भोजपत्र, जटामासी, चन्दन लौंग इलायची इत्यादि।
किसी जानकारी, समस्या समाधान, कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।
7579400465
8909521616(whats app)
For more easy & useful remedies visit:-
https://jyotish-tantra.blogspot.in
मित्रों,
हवन और यज्ञ का महत्व वैसे तो हम सब जानते ही हैं चाहे अध्यात्मिक हो, घर परिवार धन या स्वस्थ्य लाभ के लिए।
पिछले कुछ समय से आ रही ख़बरों ने चौंका सा दिया है की हवन के बाद साँस में तकलीफ, आंख में तकलीफ और कभी कभी त्वचा रोग भी हो रहे हैं।
ये सारा चमत्कार बाज़ार में बिक रही नकली हवन और पूजन सामग्री का है। हवन में प्रायः शुद्ध देशी घी, धार ,अगर तगर ,शहद ,चन्दन की लकड़ी और बुरादा, सप्त्म्रित्तिका ,सप्त्धन, रोली सिंदूर, कपूर ,मौली, दूध दही, हल्दी, इत्र ,तिल का तेल, केसर ,भोजपत्र ,नैवेद्य ,गुग्गुल कमलगट्टा ,जटामांसी आदि का प्रयोग मुख्यतः होता है। इनके अलावा अन्य कई सामग्रियां स्वयं ही जुटानी पड़ती हैं।
प्राचीन कल में लोग एक एक सामग्री जंगल, बाग़ बगीचों से ,गाँव से एकत्र करते थे पर अब इस शहरी युग में हर चीज़ मिलने का एक स्थान बाज़ार ही है।
सबसे पहले हवन सामग्री की ही बात करते हैं जो 15₹ - 100₹ तक आराम से उपलब्ध है। जो लोग हवन सामग्री में पड़ने वाली वस्तुओं का ज्ञान रखते हैं वे आसानी से असली उर नकली सामग्री में अंतर कर सकते हैं पर ऐसे लोग हैं ही कितने?
आप पैकेट लेकर देखिये उसमे आपको लकड़ी का बुरादा झाड़ू का बुरादा कागज और कूड़ा करकट की मात्र ही अधिक मिलेगी। साथ ही गाजर घास के अंश जो सब जगह आसानी से मिल जाती है और टीबी ,दमा ,नेत्र रोगों को जन्म देती है। ऐसी हवन सामग्री से हवन कर आपको क्या लाभ होगा। आपकी श्रद्धा के बल पर जो मिलना होगा वाही मिलेगा बाकि जब अप कूड़ा हाथ में लेकर स्वाहा कहेन्गे और देवता कूड़ा ग्रहण करेंगे तो प्रतिफल क्या होगा आप खुद समझ सकते हैं। और फिर आप भारतीय पूजा पद्धति मंत्र, तंत्र, यंत्र ,ज्योतिष सब पर प्रश्न चिन्ह लगा देंगे।
अब दूसरा नंबर घी का। भारत में दूध की नदियाँ बहती थीं इतना पशुधन था पर शायद आज तबके मुकाबले दूध दही घी के सागर बह रहे हैं। न्यूज़ चेनेल हर त्यौहार पर दिखा रहे हैं की गाय भैंस से ज्यादा दूध आदमी दे रहे हैं।
आज जहाँ अच्छा घी 450 ₹ किलो से उपर बिक रहा है और फुटकर पैकेट भी 90-100₹ पाव या 250 ग्राम वहीँ आप एक बार दुकानदार से कह के देखिये की हवन के लिए घी चाहिए तुरंत 40₹- 70₹ पाव का पेकेट दिखा देगा। आप यदि उसे ध्यान से पढेंगे तो कहीं न कहीं लिखा मिल जायेगा की "नोट फॉर इंटरनल यूज़ या ह्यूमन यूज़ या नॉन एडिबल।" क्यूंकि उनमे पेट्रोलियम जेली और पशुओं की चर्बी होती है घी की बस खुशबु होती है। अब ऐसे घी से हवन कर आप क्या स्वस्थ्य लाभ लेंगे और क्या मेघ उन्नत कृषि के लिए जल देंगे?
मित्रों, हवन का एक बेहद महत्वपूर्ण अव्यव है गुग्गुल। शुद्ध गुग्गुल क्वालिटी अनुसार 1500 से 2500 रूपये प्रति किलो तक मिलता है वहीं आज अधिकतर पंसारियों के पास 700 से 1000 रूपये किलो में मिल रहा है। पता चला है कि
मुंबई और सूरत में व्यापारी बड़ी मात्रा में नकली गूगल तैयार करवाते हैं। इसके लिए विदेशों से मिलने वाले रेजिन नामक केमिकल रसायन का उपयोग किया जाता है। इस केमिकल में समुद्र की गरम रेत, रंग और खुशबू मिलाते हैं। इसे मशीन से टुकड़ों में तोड़ा जाता है। जब हवनकुंड में इसे डाला जाता है तो केमिकल चूंकि ज्वलनशील होता है तो वो जल जाता है और रेत व अन्य चीजें बाकी सामग्रियों के साथ मिल जाती हैं। यही वजह है कि हवन के दौरान गुग्गुल की जो ह्रदय तृप्त करने वाली विशेष सुगंध वाला धुआं आना चाहिए, वैसा नहीं आता, बल्कि इससे छींक, सिर चकराना, चक्कर आना जैसी शिकायतें हो जाती हैं।
अगर बत्ती और धुप बत्ती का मुद्दा तो पुराना हो गया है। अगरबत्ती में जहाँ खुशबूदार बुरादा बांस की डंडी में चिपका होता है वहीँ धूप बत्ती में मोबिल आयल का कचरा, नकली तेलों के ड्रमों के पेंदे में जमा गंदगी और खुशबु दर बुरादा रहता है। अब इतनी उत्तम चीजों की खुशबु से भगवन तो क्या प्रेत भी प्रसन्न नहीं होंगे।
इसके अलावा धार यानि सूखे फलों के चूर्ण के नाम पर सड़ के सूखे फलों का चूर्ण।
अशुद्ध हवन सामग्री एवं अनुचित मात्रा सर्वथा त्याज्य है।
सप्तधान में जहाँ मात्रा है की तिल का आधा चावल और चावल का आधा जौं आदि होगी वहीँ अब रेडीमेड पैकेट आ रहे हैं जिसमे तिल ही सबसे कम रहता है क्यूंकि सबसे महंगा है। ऐसी मान्यता है की ये मात्रा सही न होने पर यज्ञ करता और यजमान दोनों ही गंभीर रोगों के शिकार बनते हैं। पर अब ये भी 5₹-20₹ के पैकेट में उपलब्ध है मात्र कौन देखता है।
शहद में शीरा मिला होता है। चन्दन की लकड़ी और बुरादे के नाम पर नकली लकड़ियाँ बिकती हैं एसेंस डाल कर चन्दन के साथ भिगो कर।
सप्तमृत्तिका यानि सात स्थानों की मिटटी जिसमे हाथी के खुर, घोड़े के खुर ,दीमक की बाम्बी, राजा के घर की ,तीर्थ स्थल की ,गोशाला की और नदी तट की मिटटी चाहिए होती है। अब इसके भी पैकेट आने लगे हैं । अब किस्मे कितना और क्या होगा भगवान ही जाने?
कपूर आजकल 2₹ की एक टिक्की मिलती है इतनी शानदार की आरती ख़तम दीपक शांत पर टिक्की सलामत बची रहती है। असली कपूर में अपने बचपन में कभी अपने ऐसा देखा। असली कपूर की पहचान ही यही थी कि खुला रखा हो तो हवा में उड़ जायेगा और जलेगा तो जलने के बाद कुछ शेष नहीं बचता था।
वो कपूर लोग सर में लगाते थे , पेट ठीक ने होने पर एक चुटकी फांक लेते थे ,दांत दर्द में दांत के निचे दबाते थे। पर इस पैकेट वाले कपूर में लिखा होता है "नॉन एडिबल या नॉट फॉर इंटरनल यूज़।"
केसर की मिलावट के बारे में तो जितना कहें कम है। रोली भी सिंथेटिक आ रही है रंग मिली और सिंदूर भी। आज सुबह तिलक करो तो परसों तक माथे पे निशान बना रहे ऐसी। इतनी पक्की।
कलावा भी कच्चे सूत की जगह सिंथेटिक धागे और पक्के सूत का आने लगा है।
कमलगट्टा जैसी चीज़ भी अब नकली आने लगी है तो लक्ष्मी माता कहाँ से प्रसन्न हों।
जटामांसी भी नकली आती है उसके जैसी दिखने वाली वनस्पतिओन में अन्यथा किसी भी पौधे के चूर्ण में एसेंस दल कर जटामांसी चूर्ण के नाम। पे बिकता है।
तिल का तेल भी 30-50% मिलावट युक्त आ रहा है और हल्दी भी।
मित्रों ये मात्र एक छोटी से झलक है और पिक्चर बहुत बड़ी। अतः आप सबसे अनुरोध है की किसी भी प्रकार की पूजन और हवं सामग्री किसी भरोसे के स्थान से खरीदें या स्वयं एकत्र करें। ये महंगी अवश्य होगी पर इसके इस्तेमाल के बाद आपको इनका असर भी नज़र आयेगा। अन्यथा नकली कूड़ा करकट केमिकल एसेंस मिली पूजन हवं सामग्री के इस्तेमाल से न सिर्फ आपके धन का नुकसान होगा बल्कि आपकी श्रद्धा और विश्वास को चोट लगेगी। स्वास्थय को नुकसान बोनस में। और फिर आप इस पूजा को बताने वाले पंडित या ज्योतिषी को बड़े बड़े उद्गारों से नवाजेंगे और पूजा पाठ हवन सबको झूठा सिद्ध करने में जुट जायेंगे।
हवन के लिए बाजार से पैकेट बन्द सामग्री लेने के स्थान पर घर में मौजूद चीजों से ही मुख्य सामग्री तैयार कर हवन करें ।
जौं का दोगुना चावल, उसका दोगुना तिल, जौं सम्भाग शक्कर दोगुना घी होना चाहिए। इसके दशांश में गुग्गुल, सूखे मेवे जैसे बादाम, किशमिश मुनक्का अंजीर , मखाने, चिरौंजी, और पँचन्श में अगर तगर नागकेसर तेजपत्र, तमालपत्र, हल्दी दारुहल्दी, केसर, इंद्रजौं, कमलगट्टे, भोजपत्र, जटामासी, चन्दन लौंग इलायची इत्यादि।
किसी जानकारी, समस्या समाधान, कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।
7579400465
8909521616(whats app)
For more easy & useful remedies visit:-
https://jyotish-tantra.blogspot.in
No comments:
Post a Comment