श्रीहनुमत्स्तोत्रम्
(नववर्ष 2019 विशेष)
अक्षादिराक्षसहरं दशकण्ठदर्प-
निर्मूलनं रघुवराङ्घ्रिसरोजभक्तम्।
सीताविषह्यदुःखनिवारकं तं वायोः
सुतं गिलितभानुमहं नमामि॥ १ ॥
मां पश्य पश्य हनुमन् निजदृष्टिपातैः
मां रक्ष रक्ष परितो रिपुदुःखवर्गात्।
वश्यां कुरु त्रिजगतीं वसुधाधिपानां
मे देहि देहि महतीं वसुधांश्रियं च ॥२॥
आपद्भ्यो रक्ष सर्वत्र आञ्जनेय नमोऽस्तुते ।
बन्धनं छिन्धि मे नित्यं कपिवीर नमोऽस्तु ते ॥३॥
दुष्टरोगान् हन हन रामदूत नमोऽस्तुते ।
उच्चाटय रिपून् सर्वान् मोहनंकुरु भूभुजाम् ॥४॥
विद्वेषिणो मारय त्वं त्रिमूर्त्यात्मक सर्वदा ।
सञ्जीवपर्वतोद्धार मनोदुःखंनिवारय ॥५॥
घोरानुपद्रवान् सर्वान् नाशयाक्षासुरान्तक।
एवं स्तुत्वा हनूमन्तं नरःश्रद्धासमन्वितः
पुत्रपौत्रादिसहितः सर्वसौख्यमवाप्नुयात् ॥६॥
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।।जय श्री राम।।
Abhishek B. Pandey
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सुतं गिलितभानुमहं नमामि॥ १ ॥
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मां रक्ष रक्ष परितो रिपुदुःखवर्गात्।
वश्यां कुरु त्रिजगतीं वसुधाधिपानां
मे देहि देहि महतीं वसुधांश्रियं च ॥२॥
आपद्भ्यो रक्ष सर्वत्र आञ्जनेय नमोऽस्तुते ।
बन्धनं छिन्धि मे नित्यं कपिवीर नमोऽस्तु ते ॥३॥
दुष्टरोगान् हन हन रामदूत नमोऽस्तुते ।
उच्चाटय रिपून् सर्वान् मोहनंकुरु भूभुजाम् ॥४॥
विद्वेषिणो मारय त्वं त्रिमूर्त्यात्मक सर्वदा ।
सञ्जीवपर्वतोद्धार मनोदुःखंनिवारय ॥५॥
घोरानुपद्रवान् सर्वान् नाशयाक्षासुरान्तक।
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