जिस मंगलवार को चतुर्थी हो उसे अंगारक गणेश चतुर्थी कहते हैं। अंगारक चतुर्थी के व्रत करनें से बड़ी से बडी विघ्न बाधा, ग्रह क्लेश का नाश होता है, मंगलिक दोष का निवारण होता हैं।
गणेश पुराण की एक कथा में पृथ्वी देवी ने भरद्वाज मुनि के जपापुष्प के तुल्य अरूण पुत्र का पालन करके सात वर्ष की आयु होने पर भरद्वाज मुनि के पास पहुँचा दिया। भरद्वाज मुनि ने अपने पुत्र का विधि पूर्वक उपनयन (जनेऊ) संस्कार कराकर उसे वेद, शास्त्रो आदि विद्याओं का अध्ययन करवाने के बाद उसे गणपति मंत्र देकर श्री गणपति जी को प्रसन्न करने की आज्ञा दी। उस बालक ने सहस्त्रवर्ष तक गणेश जी का ध्यान लगाकर मंत्र जाप किया जिससे प्रसन्न होकर माघ माह की कृष्ण चतुर्थी को चन्द्र उदय होने पर गणेश जी ने आठ भुजाओं वाले और चन्द्रभाल रुप में दर्शन दिए उन्होनें मुनि पुत्र को इच्छित वरदान दिया। मुनि पुत्र ने अन्त्यन्त विनय के साथ श्री गणेश जी की स्तुति की, जो अंगारक स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई। श्री गणेश जी ने मुनि पुत्र का नाम मंगल रखा अौर उसे वरदान दिया - "हे मेदिनी नन्दन तुम देवताओं के साथ सुधा पान करोगे, तुम्हारा मंगल सर्वत्र विख्यात होगा, तुम धरणी के पुत्र हो और तुम्हारा रंग लाल हैं, इसलिए तुम्हारा नाम अंगारक नाम भी प्रसिद्ध होगा, यह तिथि अंगारक चतुर्थी के नाम से प्रख्यात होगी, पृथ्वी पर इस व्रत को जो भी करेगा उसे वर्ष पर्यन्त की चतुर्थी के व्रत करने का फल प्राप्त होगा अौर उसके किसी कार्य में विध्न नही आयेगा।
तब से यह व्रत अंगारक चतुर्थी व्रत के नाम से प्रख्यात हुआ, यह व्रत पुत्र, पौत्र आदि और समृद्धि प्रदान कर समस्त कामनाओं की पूर्ति करता हैं। नारद पुराण अौर विष्णु पुराण के अनुसार जिस किसी माह की चतुर्थी रविवार या मंगलवार को होती हैं, तो वह विशेष फलदायिनी होती हैं, उसे आंगारक चतुर्थी कहते हैं। अंगारक चतुर्थी के दिन व्रत करने वाली कन्या या महिला के मंगलिक दोष का निवारण होता है। अंगारक चतुर्थी को मंगलमुर्ति गणेशजी का पूजन मंगल देवता का पूजन और अंगारक स्तोत्र का पाठ करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
गणेश पुराण की एक कथा में पृथ्वी देवी ने भरद्वाज मुनि के जपापुष्प के तुल्य अरूण पुत्र का पालन करके सात वर्ष की आयु होने पर भरद्वाज मुनि के पास पहुँचा दिया। भरद्वाज मुनि ने अपने पुत्र का विधि पूर्वक उपनयन (जनेऊ) संस्कार कराकर उसे वेद, शास्त्रो आदि विद्याओं का अध्ययन करवाने के बाद उसे गणपति मंत्र देकर श्री गणपति जी को प्रसन्न करने की आज्ञा दी। उस बालक ने सहस्त्रवर्ष तक गणेश जी का ध्यान लगाकर मंत्र जाप किया जिससे प्रसन्न होकर माघ माह की कृष्ण चतुर्थी को चन्द्र उदय होने पर गणेश जी ने आठ भुजाओं वाले और चन्द्रभाल रुप में दर्शन दिए उन्होनें मुनि पुत्र को इच्छित वरदान दिया। मुनि पुत्र ने अन्त्यन्त विनय के साथ श्री गणेश जी की स्तुति की, जो अंगारक स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध हुई। श्री गणेश जी ने मुनि पुत्र का नाम मंगल रखा अौर उसे वरदान दिया - "हे मेदिनी नन्दन तुम देवताओं के साथ सुधा पान करोगे, तुम्हारा मंगल सर्वत्र विख्यात होगा, तुम धरणी के पुत्र हो और तुम्हारा रंग लाल हैं, इसलिए तुम्हारा नाम अंगारक नाम भी प्रसिद्ध होगा, यह तिथि अंगारक चतुर्थी के नाम से प्रख्यात होगी, पृथ्वी पर इस व्रत को जो भी करेगा उसे वर्ष पर्यन्त की चतुर्थी के व्रत करने का फल प्राप्त होगा अौर उसके किसी कार्य में विध्न नही आयेगा।
तब से यह व्रत अंगारक चतुर्थी व्रत के नाम से प्रख्यात हुआ, यह व्रत पुत्र, पौत्र आदि और समृद्धि प्रदान कर समस्त कामनाओं की पूर्ति करता हैं। नारद पुराण अौर विष्णु पुराण के अनुसार जिस किसी माह की चतुर्थी रविवार या मंगलवार को होती हैं, तो वह विशेष फलदायिनी होती हैं, उसे आंगारक चतुर्थी कहते हैं। अंगारक चतुर्थी के दिन व्रत करने वाली कन्या या महिला के मंगलिक दोष का निवारण होता है। अंगारक चतुर्थी को मंगलमुर्ति गणेशजी का पूजन मंगल देवता का पूजन और अंगारक स्तोत्र का पाठ करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
मंगल दोष :
जिन जातकों की जन्म कुंडली के 1,4,7,8 और 12 वें भाव में मंगल होता है, उन्हें मांगलिक दोष होता है। इस दोष के कारण जातक को कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है जैसे उनके भूमि से संबंधित कार्यो में बाधा आती है। विवाह में विलंब होता है। मंगल के अशुभ प्रभाव से अत्यधिक् क्रोध, रक्त सम्बन्धी रोग, दुर्घटना, ऋण से छुटकारा नही मिलता, वास्तु दोष उतपन्न हो सकता है।
—-मंगल दोष शांति के विशेष दान :—-
शास्त्रानुसार लाल वस्त्र धारण करने से व किसी ब्रह्मण अथवा क्षत्रिय को मंगल की निम्न वास्तु का दान करने से जिनमे – गेहू, गुड, माचिस, तम्बा, स्वर्ण, गौ, मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य तथा भूमि दान करने से मंगल दोष दूर होता है | लाल वस्त्र में मसूर दाल, रक्त चंदन, रक्त पुष्प, मिष्टान एवं द्रव्य लपेट कर नदी में प्रवाहित करने से मंगल जनित अमंगल दूर होता है |
इसके लिए एक अन्य विशेष उपाय है अंगारक स्तोत्र का पाठ
ईसके नित्य पाठ से मंगल ग्रह की शांति होती है, अशुभ फल नहीं मिलते, ऋण, रोग , दरिद्रता का नाश होता है और धन तथा वैभव प्राप्त होते हैं।
विनियोगःअस्य श्री अङ्गारकस्तोत्रस्य विरूपाङ्गिरस ऋषिः |अग्निर्देवता गायत्री छन्दः |भौमप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः |
अङ्गारकस्तोत्रम्
अङ्गारकः शक्तिधरो लोहिताङ्गो धरासुतः |
कुमारो मङ्गलो भौमो महाकायो धनप्रदः ||१||
ऋणहर्ता दृष्टिकर्ता रोगकृद्रोगनाशनः |
विद्युत्प्रभो व्रणकरः कामदो धनहृत् कुजः||२||
सामगानप्रियो रक्तवस्त्रो रक्तायतेक्षणः|
लोहितो रक्तवर्णश्च सर्वकर्मावबोधकः ||३||
रक्तमाल्यधरो हेमकुण्डली ग्रहनायकः |
नामान्येतानि भौमस्य यः पठेत्सततं नरः||४||
ऋणं तस्य च दौर्भाग्यं दारिद्र्यं च विनश्यति |
धनं प्राप्नोति विपुलं स्त्रियं चैव मनोरमाम् ||५||
वंशोद्द्योतकरं पुत्रं लभते नात्र संशयः |
योऽर्चयेदह्नि भौमस्य मङ्गलं बहुपुष्पकैः ||६||
सर्वा नश्यति पीडा च तस्य ग्रहकृता ध्रुवम् ||७||
||इति श्रीस्कन्दपुराणे अङ्गारकस्तोत्रं संपूर्णम् ||
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।।जय श्री राम।।
अभिषेक बी पाण्डेय
देवभूमि नैनीताल
उत्तराखण्ड
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