नाग पंचमी की कथा, नाग मन्त्र एवम् स्तोत्र
मित्रों,
कल 7 अगस्त 2016 को नाग पंचमी का पर्व है जो देश भर में मनाया जाता है। प्रान्त अनुसार पूजन के तरिको में कुछ फर्क हो सकता है किन्तु महत्व सब जगह एक समान ही है। कहीं घरके मन्दिर आले में स्थापना गेरू चन्दन से की जाती है तो कहीं द्वार पर। कहीं मूर्ति पूजी जाती है तो कहीं बाम्बी। कहीं पञ्च नाग , कहीं अष्ट नाग तो कहीं 9 नाग पूजे जाते है ।
प्रस्तुत है नाग पंचमी की कथा, नाग मन्त्र एवम् स्तोत्
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नागपंचमी का पौराणिक कथा एवं इतिहास : सत्य सनातन धर्म (आज के हिन्दू) ग्रन्थों व पुराणों के अनुसार, राक्षसों और देवताओं में संधि के उपरांत दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया । इस मंथन से अनेकों तत्व सहित अत्यन्त श्वेत उच्चैःश्रवा नमक एक अश्व भी निकला। जिसे देखकर नाग माता कदू्र अपनी सौतन विनता को बोली की देखो, यह अश्व सफेद है, परन्तु इसके बाल काले दिखाई पड़ते हैं। विनता ने कहा नहीं, न तो यह अश्व श्वेत रंग का है न ही काला। इतना सुनकर कदू्र ने बोली आप मेरे साथ चाहो तो शर्त लगा लो जो भी शर्त हारेगी वो दूसरे की दासी बन होगी ।
विनता सत्य बोल रही थी अतएव उसने शर्त स्वीकार कर ली। तदोपरांत दोनों अपने स्थान पर चली गईं। उधर कदू्र ने अपने पुत्र नागों को बुला कर और सारा वृतान्त सुनाया और बोली कि आप सभी सूक्ष्म रूप के होकर इस अश्व से चिपक जाओ जिससे मैं शर्त जीतकर विनता को दासी बना सकूं। अपनी माता के कथन सुनकर नागों ने बोला – मां हम आपका साथ नहीं दे सकते चाहे आप शर्त जीतो या हारो, परन्तु हम इस प्रकार छल नहीं करेंगे।
कदू्र ने कहा- तुमने मेरी बात नहीं मानी ? इसका दंड झेलने के लिए तैयार रहो मैं तुम्हें श्राप दे रही हूँ कि ‘पांडवों के वंशज जनमेजय द्वारा जब सर्प यज्ञ किया जायेगा, तब तुम सब उस हवन अग्नि जल जाओगे। माता का श्राप सुन सभी घबरा गए और बासुकि नाग को साथ लेकर ब्रह्म लोक ब्रह्मा जी के पास गए और आप बीती घटना कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने बोले – चिन्ता न करो, यायावर वंश में एक तपस्वी जरतकारु नामक ब्राह्मण का जन्म होगा। उसके साथ तुम्हारी बहन का विवाह होगा। उन दोनों का के घर आस्तिक नमक विख्यात पुत्र जन्म लेगा, वह जनमेजय द्वारा सर्प यज्ञ को रोक कर तुम्हारी रक्षा करेगा।
ब्रह्मा जी ने श्रावण शुक्ल पंचमी पंचमी के दिन ये वरदान दिया था तथा आस्तिक मुनि ने भी उक्त कथानुसार पंचमी को ही इन नागों की रक्षा की थी। इस लिए तब से नागपंचमी की तिथि नाग वंश को अत्यन्त प्रिय है। कहते हैं जो लोग श्रावण शुक्ल पंचमी को व्रत कर नागों की पूजा करते हैं । बारह मास तक चतुर्थी तिथि को एक बार भोजन कर पंचमी को व्रत करते हैं एवं १२ प्रमुख नाग क्रमश अनंत, बासुकि, शंख व पद्म, कंबल, कर्कोटक तथा अश्वतर, घृतराष्ट,शंखपाल, एवं कालिया, तक्षक, और पिंगल इन सभी नागों की बारह माह में क्रमशः पूजा विधान के साथ करते है। जिस यज्ञ विधान से जनमेजय अपने पिता परीक्षित के लिए यज्ञ किया था।
जो कोई नाग पंचमी के दिन श्रद्धापूर्वक यह व्रत करता है उसे शुभफल सहित सर्प भय दूर हो जाता है । यह भी माना जाता है की इस दिन नागों को दूध से स्नान-पान कराने नाग देव अभय दान देते हैं ।उनके परिवार में सर्पभय दूर हो जाता है। ऐसे जातक पर से वर्तमान में कालसर्पयोग भी क्षीण हो जाता है।
।।श्री सर्प सूक्तम।।
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।
l नवनाग स्तोत्र ll
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत
ll इति श्री नवनाग स्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll
नाग गायत्री मंत्र :-
ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि
तन्नो सर्प: प्रचोदयात ll
नाग देवता कृपा प्राप्ति मंत्र :-
'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।'
अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम...।
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।।जय श्री राम।।
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मित्रों,
कल 7 अगस्त 2016 को नाग पंचमी का पर्व है जो देश भर में मनाया जाता है। प्रान्त अनुसार पूजन के तरिको में कुछ फर्क हो सकता है किन्तु महत्व सब जगह एक समान ही है। कहीं घरके मन्दिर आले में स्थापना गेरू चन्दन से की जाती है तो कहीं द्वार पर। कहीं मूर्ति पूजी जाती है तो कहीं बाम्बी। कहीं पञ्च नाग , कहीं अष्ट नाग तो कहीं 9 नाग पूजे जाते है ।
प्रस्तुत है नाग पंचमी की कथा, नाग मन्त्र एवम् स्तोत्
र
नागपंचमी का पौराणिक कथा एवं इतिहास : सत्य सनातन धर्म (आज के हिन्दू) ग्रन्थों व पुराणों के अनुसार, राक्षसों और देवताओं में संधि के उपरांत दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया । इस मंथन से अनेकों तत्व सहित अत्यन्त श्वेत उच्चैःश्रवा नमक एक अश्व भी निकला। जिसे देखकर नाग माता कदू्र अपनी सौतन विनता को बोली की देखो, यह अश्व सफेद है, परन्तु इसके बाल काले दिखाई पड़ते हैं। विनता ने कहा नहीं, न तो यह अश्व श्वेत रंग का है न ही काला। इतना सुनकर कदू्र ने बोली आप मेरे साथ चाहो तो शर्त लगा लो जो भी शर्त हारेगी वो दूसरे की दासी बन होगी ।
विनता सत्य बोल रही थी अतएव उसने शर्त स्वीकार कर ली। तदोपरांत दोनों अपने स्थान पर चली गईं। उधर कदू्र ने अपने पुत्र नागों को बुला कर और सारा वृतान्त सुनाया और बोली कि आप सभी सूक्ष्म रूप के होकर इस अश्व से चिपक जाओ जिससे मैं शर्त जीतकर विनता को दासी बना सकूं। अपनी माता के कथन सुनकर नागों ने बोला – मां हम आपका साथ नहीं दे सकते चाहे आप शर्त जीतो या हारो, परन्तु हम इस प्रकार छल नहीं करेंगे।
कदू्र ने कहा- तुमने मेरी बात नहीं मानी ? इसका दंड झेलने के लिए तैयार रहो मैं तुम्हें श्राप दे रही हूँ कि ‘पांडवों के वंशज जनमेजय द्वारा जब सर्प यज्ञ किया जायेगा, तब तुम सब उस हवन अग्नि जल जाओगे। माता का श्राप सुन सभी घबरा गए और बासुकि नाग को साथ लेकर ब्रह्म लोक ब्रह्मा जी के पास गए और आप बीती घटना कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने बोले – चिन्ता न करो, यायावर वंश में एक तपस्वी जरतकारु नामक ब्राह्मण का जन्म होगा। उसके साथ तुम्हारी बहन का विवाह होगा। उन दोनों का के घर आस्तिक नमक विख्यात पुत्र जन्म लेगा, वह जनमेजय द्वारा सर्प यज्ञ को रोक कर तुम्हारी रक्षा करेगा।
ब्रह्मा जी ने श्रावण शुक्ल पंचमी पंचमी के दिन ये वरदान दिया था तथा आस्तिक मुनि ने भी उक्त कथानुसार पंचमी को ही इन नागों की रक्षा की थी। इस लिए तब से नागपंचमी की तिथि नाग वंश को अत्यन्त प्रिय है। कहते हैं जो लोग श्रावण शुक्ल पंचमी को व्रत कर नागों की पूजा करते हैं । बारह मास तक चतुर्थी तिथि को एक बार भोजन कर पंचमी को व्रत करते हैं एवं १२ प्रमुख नाग क्रमश अनंत, बासुकि, शंख व पद्म, कंबल, कर्कोटक तथा अश्वतर, घृतराष्ट,शंखपाल, एवं कालिया, तक्षक, और पिंगल इन सभी नागों की बारह माह में क्रमशः पूजा विधान के साथ करते है। जिस यज्ञ विधान से जनमेजय अपने पिता परीक्षित के लिए यज्ञ किया था।
जो कोई नाग पंचमी के दिन श्रद्धापूर्वक यह व्रत करता है उसे शुभफल सहित सर्प भय दूर हो जाता है । यह भी माना जाता है की इस दिन नागों को दूध से स्नान-पान कराने नाग देव अभय दान देते हैं ।उनके परिवार में सर्पभय दूर हो जाता है। ऐसे जातक पर से वर्तमान में कालसर्पयोग भी क्षीण हो जाता है।
।।श्री सर्प सूक्तम।।
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।
l नवनाग स्तोत्र ll
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत
ll इति श्री नवनाग स्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll
नाग गायत्री मंत्र :-
ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि
तन्नो सर्प: प्रचोदयात ll
नाग देवता कृपा प्राप्ति मंत्र :-
'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।'
अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम...।
अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।
7579400465
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