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Tuesday, 17 December 2019

Paush Amavasya 2019 dhumavati Sadhna पौष अमावस्या 2019 धूमावती साधना

मित्रों,
 पिछले 3 वर्षों की भांति इस वर्ष पुनः पौष अमावस्या दिनांक 26 दिसम्बर 2019 को माँ धूमावती का विशाल हवन किया जाएगा जो प्रातः 8 बजे से रात्रि 9 बजे तक होगा।

सूर्य ग्रहण होने से बने इस दुर्लभ संयोग में मां धूमावती की विशिष्ट साधना की जाएगी और विशिष्ट मन्त्रों से विभिन्न कार्य साधक यंत्रों का निर्माण भी किया जाएगा।

विशेष संयोग के कारण इस वर्ष सिर्फ मां धूमा के साधक ही इसमे सम्मिलित होंगे। पिछले वर्षोँ की भांति आप सबको इस बार शामिल न कर सकने के लिए क्षमा प्रार्थी हैं।

हवन और यंत्र निर्माण को 4 चरणों मे विभाजित किया गया है

1. प्रथम चरण: सर्व रक्षा, पितृ एवं ग्रह शान्ति हेतु
2. द्वितीय चरण: रोग नाश
3. तृतीय चरण: दरिद्रता नाश और स्मृद्धि हेतु
4: चतुर्थ चरण: भूत-प्रेत एवं तंत्र बाधा निवारण हेतु

प्रत्येक चरण में इन्हीं से सम्बंधित मां धूमावती के विभिन्न यंत्र कवच का निर्माण एवं प्रतिष्ठित सिद्ध किया जाएगा।

प्रत्येक चरण के सिर्फ 5 यंत्र कवच बनाये जाएंगे।

आप लोग इनका लाभ उठा सकते हैं, बड़ा आयोजन होने के कारण सर्वसम्मति से इनकी दक्षिणा राशि भी उचित तय की गई है।

प्रत्येक यंत्र कवच की दक्षिणा:- 2750/- मात्र

आप मे से जो भी बन्धु चाहें इन यंत्र कवच को धारण कर सकते हैं या घर दुकान आदि में स्थापित कर सकते हैं। एक या अधिक यंत्र कवच अपनी जरूरत और समस्या अनुसार ले सकते हैं।

प्राप्त करने या पहले ही बुक करने के लिए निम्न नम्बरों पर सम्पर्क करें।
धन्यवाद
।।जय माँ धूमावती।।
।।जय श्री राम।।

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Wednesday, 11 December 2019

अन्नपूर्णा जयंती 2019 Annapurna Jayanti 2019

श्रीअन्नपूर्णा जयंती की शुभकामनाएं

भगवती अन्नपूर्णा स्तोत्र :

ध्यानम्‌

अर्कोन्मुक्तशशाङ्ककोटिवदनामापीनतुङ्गस्तनीं
चन्द्रार्धाङ्कितमस्तकां मधुमदामालोलनेत्रत्रयीम् ।
बिभ्राणामनिशं वरं जपपटीं शूलं कपालं करैः
आद्यां यौवनगर्वितां लिपितनुं वागीश्वरीमाश्रये।।

नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौंदर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिल-घोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी।
प्रालेयाचल-वंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपुर्णेश्वरी॥1॥


नानारत्न-विचित्र-भूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहार-विलम्बमान विलसद्वक्षोज-कुम्भान्तरी।
काश्मीरा-ऽगुरुवासिता रुचिकरी काशीपुराधीश्वरी।
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥2॥

योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्माऽर्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानल-भासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी।
सर्वैश्वर्य-समस्त वांछितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥3॥


कैलासाचल-कन्दरालयकरी गौरी उमा शंकरी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओंकारबीजाक्षरी।
मोक्षद्वार-कपाट-पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥4॥

दृश्याऽदृश्य-प्रभूतवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपांकुरी।
श्री विश्वेशमन प्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥5॥


उर्वी सर्वजनेश्वरी भगवती माताऽन्नपूर्णेश्वरी
वेणीनील-समान-कुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी।
सर्वानन्दकरी दृशां शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी माताऽन्नपूर्णेश्वरी॥6॥

आदिक्षान्त-समस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरा त्रिपुरेश्वरी त्रिनयनि विश्वेश्वरी शर्वरी ।
स्वर्गद्वार-कपाट-पाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 7 ॥

 देवी सर्वविचित्र-रत्नरुचिता दाक्षायिणी सुन्दरी
वामा-स्वादुपयोधरा प्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 8 ॥

 चन्द्रार्कानल-कोटिकोटि-सदृशी चन्द्रांशु-बिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्नि-समान-कुण्डल-धरी चन्द्रार्क-वर्णेश्वरी
 माला-पुस्तक-पाशसाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 9 ॥

 क्षत्रत्राणकरी महाभयकरी माता कृपासागरी
सर्वानन्दकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरी श्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ 10 ॥

 अन्नपूर्णे सादापूर्णे शङ्कर-प्राणवल्लभे ।
ज्ञान-वैराग्य-सिद्धयर्थं बिक्बिं देहि च पार्वती ॥ 11 ॥

 माता च पार्वतीदेवी पितादेवो महेश्वरः ।
बान्धवा: शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ 12 ॥

विशेष मन्त्र:-

ऐं ह्रीं सौं श्रीं क्लीमोन्नमो भगवत्यन्नपूर्णे
ममाभिलषितमन्नं देहि स्वाहा ।।

अन्य किसी जानकारी,  समस्या समाधान अथवा कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं

।।जय श्री राम।।

Abhishek B. Pandey

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Thursday, 24 October 2019

Dhanteras 2019 धनतेरस 2019

धनतेरस/ धनवंतरी त्रयोदशी की शुभकामनाएं

भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने का अत्यंत सरल मंत्र है:

ॐ धन्वंतराये नमः॥

आरोग्य प्राप्ति हेतु धन्वंतरि देव का पौराणिक मंत्र

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय
धन्वंतराये: अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय
 सर्व रोगनिवारणाय त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

अर्थात् परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है।

पवित्र  धन्वंतरि स्तो‍त्र :

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥

कुबेर मन्त्र:

ध्यानम्
मनुजबाह्यविमानवरस्तुतं
गरुडरत्ननिभं निधिनायकम् ।
शिवसखं मुकुटादिविभूषितं
वररुचिं तमहमुपास्महे सदा ॥

मन्त्र:

ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः ।
ॐ यक्षराजाय विद्महे अलकाधीशाय धीमहि ।
तन्नः कुबेरः प्रचोदयात् ।

ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय
धनधान्याधिपतये धनधान्यादि
समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा ।
श्रीसुवर्णवृष्टिं कुरु मे गृहे श्रीकुबेर ।
महालक्ष्मी हरिप्रिया पद्मायै नमः ।
राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
समेकामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ।
कुबेराज वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

 धनतेरस पर क्या नही खरदना:-

कांच, शीशा, प्लास्टिक/ रबर की वस्तु, अल्युमिनियम की वस्तु, काला कपड़ा, जूते चप्पल
तेल, घी, काली उड़द या दाल, कोई भी काली वस्तु:-फल, पेन,मिठाई,
काले मोती के आभूषण,
नुकीली वस्तु, चाकू, छुरी, सुई, लोहा, स्टील,

धनतेरस पर क्या खरीदे:-

कमल गट्टा, पिली कोड़ी, गुंजा,गोमती चक्र 11-11या फिर 5-5, कुबेर, धन्वन्तरी की फ़ोटो या मूर्ति,
कमल गट्टा या रुद्राक्ष की माला,
खड़ा नमक,खाने का नमक, झाड़ू 3, खड़ा धनिया, हरा धनिया, नए दिए 21,
तांबा के वर्तन,प्लेट, पूजा पाठ के लिए,या घर के उपयोग के लिए,
सोना,चांदी, पीतल का दीपक, वर्तन, गणेश,पितल या चांदी के
चांदी का सिक्का
मोर पंख,
महिला श्रृंगार जिसमे काले मोती नहीं हों,
आभूषण जिसमे काले दाने या मोती नही हों,
हिसाब के लिए लाल डायरी, लाल पैन
धनतेरस पर लाकर धनतेरस से लेकर दीपावली पूजन तक कुबेर ओर धन्वन्तरी के साथ पूजा करें

मुहूर्त: अपने पंडित जी से पूछें
         हर कोई एक दूसरे के विपरीत समय बता रहा है

अन्य किसी जानकारी,  समस्या समाधान अथवा कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं

।।जय श्री राम।।

Abhishek B. Pandey

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Saturday, 28 September 2019

Tripur sundari adhyayan त्रिपुरसुंदरी अष्टकम

शारदीय नवरात्रि की शुभकामनाएं

श्री राजराजेश्वरी अष्टकम

ब्रह्मण्ड को भण्ड नाम के असुर के त्रास से मुक्ति देने के लिए महायागानलोत्पन्ना श्री माता राजराजेश्वरी ललिता परमेश्वरी का प्रादूर्भव हुआ ऐसी कथा ब्रह्मण्ड पुराण के उत्तर भाग के इक्तीसवें अध्याय में आयी है। ब्रह्मर्षी अगस्त्य जी के पूछने पर हयग्रवी भगवान कहते है –

“यथा चक्ररथं प्राप्य पूर्वोक्तैर्लक्षणैयुर्तम्।
महायागान्लोत्पनन्ना ललिता परमेश्वरी।।
कृत्वा वैवाहिकीं लीलां ब्रह्माद्यैः प्रार्थिता पुनः।
व्यजेष्ठ भण्डनामानमसुरं लोककण्टकम्।।
तदा देवा महेन्द्राद्याः सन्तोष बहु मेजिरे।।”

माता ललिता के विहार करने के लिए विश्वकर्मा ने अद्भुद प्रासाद की रचना की थी। श्रीपुर नवकूट परिवृत है जहाँ बिन्दुमण्डल मध्यवासिनी का मुख्य स्थान है। भगवती को पचप्रेतासनासीना भी कहा गया है। जो भगवती के व्यापकता व अक्षुण्ण सत्ता का भी बोधक है। महाराज्ञी विष्णु, ब्रह्मा एवं शिव के भी न रहने पर स्थित होकर अपने प्रेयस कामेश्वर की आराधना व विहार करती है। ऐसी भागवती को अनेको देवों ने पूजा, ईष्ट बनाया और अलभ्य पदार्थों की, पदों की प्राप्ति की जैसे-विष्णु, चन्द्र, कुबेर, मनु, लोपामुद्रा, अगस्त्य, नन्दिकेश्वर, इन्द्र, सूर्य, शंकर एवं दुर्वासा आदि।

अन्य भी अनेकों उपसकों ने इशित्वादि अष्टसिद्धियों को प्राप्त करने के लिए मोक्ष, ज्ञान, धन आदिकों की प्राप्ति के लिए कामदुधा त्रिपुरसुन्दरी की उपासना की है।

माँ ललिता को ही लम्बोदरप्रसू भी कहा गया है जिसका भाष्य करते हुए शंकराचार्य भगवान ने कहा है- “लम्बोदरस्य महागणेशस्य प्रसूः जनयित्री मातेत्यर्थः, लम्बोदरं प्रसूत इति वा”, विघ्नहर्ता की जननी यही जगत्जननी है।।

।। श्री राजराजेश्वरी अष्टकम् ।।

अम्बा शाँभवि चन्द्रमौलि रमलाऽपर्णा उमा पार्वती काली हैमवती शिवा त्रिनयनी कात्यायनी भैरवी ।
सावित्री नवयौवना शुभकरी साम्राज्य लक्ष्मीप्रदा चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा मोहिनी देवता त्रिभुवनी आनन्द सन्दायिनी वाणी पल्लव पाणि वेणु मुरली गानप्रिया लोलिनी ।
कल्याणी उडुराजबिंब वदना धूम्राक्ष संहारिणी चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा नूपुर रत्न कंकणधरी केयूर हारावली जाती चंपक वैजयन्ति लहरी ग्रैवेयकै राजिता ।
वीणा वेणु विनोद मण्डित करा वीरासने संस्थिता चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा रौद्रिणि भद्रकालि बगला ज्वालामुखी वैष्णवी ब्रह्माणी त्रिपुरान्तकी सुरनुता देदीप्यमानोज्वला ।
चामुण्डा श्रितरक्ष पोष जननी दाक्षायणी वल्लवी चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा शूल धनु: कशाँकु़शधरी अर्धेन्दु बिम्बाधरी वाराही मधुकैटभ प्रशमनी वाणी रमा सेविता ।
मल्लाद्यासुर मूकदैत्य मथनी माहेश्वरी चाम्बिका चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा सृष्टिविनाश पालनकरी आर्या विसंशोभिता गायत्री प्रणवाक्षरामृतरस: पूर्णनुसन्धी कृता ।
ओंकारी विनतासुतार्चित पदा उद्दण्ड दैत्यापहा चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा शाश्वत आगमादि विनुता आर्या महादेवता या ब्रह्मादि पिपलिकान्त जननी या वै जगन्मोहिनी ।
या पन्चप्रणवादि रेफजननी या चित्कला मालिनी चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

अम्बा पालित भक्तराजमनिशं अम्बाष्टकमं य: पठेत अम्बा लोल कटाक्षवीक्ष ललितं चैश्वर्यमव्याहतम् ।
अम्बा पावन मन्त्र राज पठनात् अन्ते च मोक्षप्रदा चिद्रूपी परदेवता भगवती श्री राजराजेश्वरी ।।

।।जय श्री राम।।
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Monday, 2 September 2019

गणेश गायत्री 5 रूप Ganesha Gayatri 5 versions

॥ श्रीगणेश गायत्री ॥

श्री गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं
प्रस्तुत है भगवान गणेश के 5 गायत्री मंत्र

1 :- लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि ।
तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥ (अग्निपुराण ७१ अध्याय)

 2:- महोत्कटाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥ (अग्निपुराण, १७९ अध्याय)

3:- एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥ (गणपत्यथर्वशीर्ष)

4:- तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि ।
तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥ (मैत्रायणीय-संहिता)

5:- तत्पुरूषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥ (तैत्तिरीयारण्यक-नारायणोपनिषद्)

श्रावण पूर्णिमा विशेष
15 अगस्त 2019

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।।जय श्री राम।।

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Tuesday, 13 August 2019

Shravan purnima special remedy for disease श्रावण पूर्णिमा पर रोगनाश हेतु विशेश उपाय

श्रावण पूर्णिमा /
रक्षा बंधन विशेष
15 अगस्त 2019

भगवान शिव के इस स्तोत्र का जो भी व्यक्ति सुबह जाप करता है, उसका पूरा दिन बिना किसी रुकावट के बीतता है और जो नियमित रुप से इसका जाप करते हैं उनका सारा जीवन रोगों और समस्याओं से रहित रहता है.

प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम् ।
विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥

अर्थ : उन गिरीशको (शिव) मैं प्रातः नमन करता हूं, जिनके अर्ध भागमें देवी गिरिजा (पार्वती) विराजती हैं, जो उत्पत्ति, स्थिति और लय तीनोंके मूल कारण हैं जो विश्वेश्वर हैं और सम्पूर्ण विश्वको अपने मनोरमतासे जीत लेते हैं, जो अपने औषधिसे सांसरिक बंधन रूपी रोगका नाश करते हैं और अद्वितीय हैं ।

किसी खास असाध्य रोग हेतु महामृत्युंजय मन्त्र से सम्पुट कर अधिकाधिक जप करना शीघ्र फल देता है।

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Sunday, 4 August 2019

Nag Panchami 2019 नाग पंचमी 2019 पूजा विधि

नाग पंचमी 2019 विशेष: नाग मन्त्र, स्तोत्र एवं उपाय

मित्रों,
 कल 5 अगस्त 2019 को नाग पंचमी का पर्व है जो देश भर में मनाया जाता है।

पंचांग से:-

पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त – 5 अगस्त को सुबह 06:22 से 10:39 तक

नाग पंचमी पूजा विधि
 इस दिन गृह-द्वार के दोनों तरफ गाय के गोबर से सर्पाकृति बनाकर अथवा सर्प का चित्र लगाकर उन्हें घी, दूध, जल अर्पित करना चाहिए। इसके पश्चात दही, दूर्वा, धूप, दीप एवं नीलकंठी, बेलपत्र और मदार-धतूरा के पुष्प से विधिवत पूजन करें। फिर नागदेव को धान का लावा, गेहूँ और दूध का भोग लगाना चाहिए।

नाग पंचमी पर इन सूक्त, स्तोत्र के पाठ और मन्त्र जप करते हुए भगवान शिव का पूजन, अभिषेक करने से, नाग देवता की पूजा करने से सर्प भय का नाश होता है और सर्प दंश से रक्षा होती है।

।।श्री सर्प सूक्तम।।

ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।

कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।

सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।

पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।

ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।

समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।

रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।

(१)नाग गायत्री मंत्र :-

ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि
तन्नो सर्प: प्रचोदयात ll

(२) सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र—

महाभारत में जब राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षक से बदला लेने के लिए सर्पनाश का यज्ञ किया तो सब सांप मरने लगे , उस समय उन्हें आस्तिक नामक मुनि ने बचाया जो भगवान शिव की मानस पुत्री मनसा देवी के पुत्र थे।

मनसा देवी के इस स्तोत्र का पाठ करने से सर्प दंश से रक्षा होती है और मनसा देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

ध्यानः-
चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् ।
नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।।

।। मूल-स्तोत्र ।।

।। श्रीनारायण उवाच ।।
नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः ।
 नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।।
बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः ।
नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।।
तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः ।
साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।।

।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् ।
 यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।।
न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति ।
 वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।।

(३) यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है । जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता ।

जो पुरुष पूजा के समय इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे तथा उसके वंशज को भी सर्प का भय नहीं हो सकता। इन बारह नामों से विश्व इनकी पूजा करता है। उसके सामने उग्र से उग्र सर्प भी शांत हो जाता है।

जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।
 वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।। जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीति च ।
 महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।।
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत् ।
 तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।।


 (४)कालसर्प योग एवम राहु केतु शांति हेतु:-

चांदी और तांबे के 1-1 जोड़ी सर्प लेकर नाग देवता मन्दिर में अर्पण करें। दूध से अभिषेक एवं चन्दन का तिलक कर भोग अर्पण करें।

नाग मन्दिर न हो तो शिव लिंग पर इन्हें चढ़ाकर ॐ नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र से यथासम्भव अधिकाधिक जप करते हुए अभिषेक करें।

(५) नाग देवता कृपा प्राप्ति मंत्र :-

इस मंत्र का जप करते हुए सांप की बाम्बी या किसी बड़े वृक्ष जिसके नीचे बिल या कोटर हो मिट्टी के पात्र में दूध चढ़ाएं।

'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।'

अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम...।

(६) धन धान्य प्राप्ति:-

 मान्यता है कि पृथ्वी के नीचे पाताल पुरी के सप्तलोकों में एक नाग लोक भी है जिसके राजा नागदेवता हैं। पाताल लोक सोने चांदी, बहुमूल्य रत्नों और विभिन्न प्रकार के दुर्लभ मणियों से भरा है। नाग देवता की नियमित पूजा करने पर वो प्रसन्न होकर वे अपने अमूल्य खजाने से व्यक्ति को धन और ऐश्वर्य से परिपूर्ण कर देते हैं।

।।नवनाग स्तोत्र ll

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत

ll इति श्री नवनाग स्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll

(७) भय नाश एवं रक्षा हेतु:-

श्री नाग स्तोत्र

अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।
सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका: ॥१॥

मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात् ।
विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डल ॥२॥

अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक: ।
कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥३॥

यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर: ।
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥४॥

॥ इति श्रीनागस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥


(८) कन्या के विवाह हेतु:-

जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो वे नाग देवता के मंदिर में ऐसी प्रतिमा जिसमें नाग नागिन का जोड़ा हो या दो नाग सम्मुख आलिंगन बद्ध यानी लिपटे हुए हों, उनका देवी एवं देवता का अलग अलग श्रृंगार चढ़कर कर विधि विधान से पूजन करवाएं।

(९) विशेष भोग:-

नाग देवता की प्रसन्नता के लिए  इस दिन खीर बनाकर पूजन कर भोग लगाकर किसी पेड़ की नीचे खीर रख दें।
( विशेष बात: ये खीर सिर्फ नाग देवता के लिये होती है इसे भूलकर भी स्वयम न खायें न ही बच्चों या किसी अन्य व्यक्ति को दें, इसलिए थोड़ी ही बनाएं और भगवान को अर्पित कर दें)

 अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Sunday, 21 July 2019

सावन विशेष : रुद्र सूक्त

रूद्र-सूक्त

 सभी दुखों एवं शत्रुओं का नाश करने में ‘रूद्र-सूक्त’ बेमिसाल है। ‘रूद्र-सूक्त’ जहाँ सभी दुखों का नाश करता है, और शत्रुओं का नाश करता है, वहीं यह अपने साधक कि सम्पूर्ण रूप से रक्षा भी करता है।
‘रूद्र-सूक्त’ का पाठ करने वाला साधक सम्पूर्ण पापों, दुखों और भयों से छुटकारा पाकर अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है। शास्त्रों में ‘रूद्र-सूक्त को ‘अमृत’ प्राप्ति का ‘साधन’ बताया गया है।

।।रूद्र-सूक्त ।।

नमस्ते रुद्र मन्यवऽ उतो तऽ इषवे नमः।
बाहुभ्याम् उत ते नमः॥1॥

या ते रुद्र शिवा तनूर-घोरा ऽपाप-काशिनी।
तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशंताभि चाकशीहि ॥2॥

यामिषुं गिरिशंत हस्ते बिभर्ष्यस्तवे ।
शिवां गिरित्र तां कुरु मा हिन्सीः पुरुषं जगत् ॥3॥

शिवेन वचसा त्वा गिरिशाच्छा वदामसि ।
यथा नः सर्वमिज् जगद-यक्ष्मम् सुमनाऽ असत् ॥4॥

अध्य वोचद-धिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक् ।
अहींश्च सर्वान जम्भयन्त् सर्वांश्च यातु-धान्यो ऽधराचीः परा सुव ॥5॥

असौ यस्ताम्रोऽ अरुणऽ उत बभ्रुः सुमंगलः।
ये चैनम् रुद्राऽ अभितो दिक्षु श्रिताः सहस्रशो ऽवैषाम् हेड ऽईमहे ॥6॥

असौ यो ऽवसर्पति नीलग्रीवो विलोहितः।
उतैनं गोपाऽ अदृश्रन्न् दृश्रन्नु-दहारयः स दृष्टो मृडयाति नः ॥7॥

नमोऽस्तु नीलग्रीवाय सहस्राक्षाय मीढुषे।
अथो येऽ अस्य सत्वानो ऽहं तेभ्यो ऽकरम् नमः ॥8॥

प्रमुंच धन्वनः त्वम् उभयोर आरत्न्योर ज्याम्।
याश्च ते हस्तऽ इषवः परा ता भगवो वप ॥9॥

विज्यं धनुः कपर्द्दिनो विशल्यो बाणवान्ऽ उत।
अनेशन्नस्य याऽ इषवऽ आभुरस्य निषंगधिः॥10॥

या ते हेतिर मीढुष्टम हस्ते बभूव ते धनुः ।
तया अस्मान् विश्वतः त्वम् अयक्ष्मया परि भुज ॥11॥

परि ते धन्वनो हेतिर अस्मान् वृणक्तु विश्वतः।
अथो यऽ इषुधिः तवारेऽ अस्मन् नि-धेहि तम् ॥12॥

अवतत्य धनुष्ट्वम् सहस्राक्ष शतेषुधे।
निशीर्य्य शल्यानां मुखा शिवो नः सुमना भव ॥13॥

नमस्तऽ आयुधाय अनातताय धृष्णवे।
उभाभ्याम् उत ते नमो बाहुभ्यां तव धन्वने ॥14॥

मा नो महान्तम् उत मा नोऽ अर्भकं मा नऽ उक्षन्तम् उत मा नऽ उक्षितम्।
मा नो वधीः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास् तन्वो रूद्र रीरिषः॥15॥

मा नस्तोके तनये मा नऽ आयुषि मा नो गोषु मा नोऽ अश्वेषु रीरिषः।
मा नो वीरान् रूद्र भामिनो वधिर हविष्मन्तः सदमित् त्वा हवामहे॥16॥

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Wednesday, 12 June 2019

गंगा दशहरा 2019

गंगा दशहरा की शुभकामनाएं नहीं

 तब तक नहीं जब तक हरिद्वार से गंगासागर तक गंगाजल सीधे गिलास भर पीने लायक नहीं होती

एक बात समझ लें

यदि आप उत्तर भारत के रहने वाले हैं तो आपके घर से निकलने वाला गन्दा पानी 90% गंगा में जाकर मिलेगा क्योंकि यहां की लगभग सभी नदियां कहीं न कहीं गंगा में मिलती हैं।
तो दिया जलाकर , नदी में नहाकर , आरती करके आप ढकोसला कर सकते हैं।
आपकी भावनाएं साफ हो सकती हैं लेकिन जिस नदी को आप पूज रहे हैं वो साफ नहीं हो सकती।

* कहते हैं जब अकबर ने राजधानी दिल्ली से हटाकर फतेहपुर सीकरी में बनवाई तो वहां पठारी हिस्सा होने से पानी की कमी थी। जो पानी था वो पीने के लिहाज से निम्न श्रेणी का था।

तब अकबर हरिद्वार से पीने के लिए गंगाजल मंगवाता था।

* अंग्रेज जब भारत आये तो वापस जाने या माल ले जाने के लिए भारत से ब्रिटेन जाने वाले समुद्री जहाज को एक से डेढ़ महिने का वक्त लगता था।
इतनी अवधि में किसी भी प्रकार का जल पीने योग्य नहीं रहता था।

ऐसे में अंग्रेज भी बैरलों यानी ड्रमों में भरकर गंगाजल ले जाते थे क्योंकि ये हमेशा साफ शुद्ध रहता था।

* अब आते हैं गंगा के गंदे होने के इतिहास पर

तो भारत मे प्राचीन काल से कोई सीवेज सिस्टम नहीं अपनाया गया था

मलमूत्र के लिए आम आदमी खेत, मैदान, जंगल का प्रयोग करते थे
जबकि राजा, सामंत,अमीरों या सेठों के यहां 2 तरह के शौचालय हुआ करते थे।

1. एक मे पक्के फर्श का कमरा हुआ करता था, जिसे लोग शौच के लिए प्रयोग करते थे जिसे बाद में मेहतर साफ किया करते थे।

2. दूसरी खड़ी टट्टी कहि जाती है जिसमे फर्श में एक पाइप लगा होता था जो नीचे जाकर किसी ड्रम नुमा बर्तन या डलिया/ टोकरी में था जिससे मैला उसमे गिरता था।
इसे सफाई वाला उठा कर ले जाता था और गांव शहर से दूर जंगल मे किसी स्थान पर गिरा देता था।

मैला ढोने की प्रथा को घृणित मन गया जो थी भी की किसी अमीर व्यक्ति की टट्टी कोई गरीब आदमी सिर पर उठाए और इन पर रोक लगाने की समय समय पर मांग की गयी।
कारण छुआछूत और जातिवाद के अंतर को समाप्त करना भी था।

लोग नदी, नहर , तालाब या नौले ,  बावड़ी स्थानीय स्तर पर जो भी जल स्रोत था उसे पूजते थे। कुआं, बावड़ी, आदि शादी ब्याह में  देव स्थल के रूप में पूजे जाते थे। अब भी पूजे जाते हैं चाहे 98% अब सूख चुके हैं पर परम्परा का बोझ अब भी ढोया जा रहा है बिना उसके पीछे कारण समझे।

जल को अशुद्ध करना पाप माना जाता था।

पहले किसी प्रकार का साबुन नहीं था, कोई केमिकल नहीं।

लोग नदी, तालाब, नहर में नहाते थे या कुए के पास नहाते थे, पानी उसी मिट्टी में मिल जाता था, कुछ वाष्पीकृत होता तो कुछ जमीन सोख लेती।

बर्तन रसोई के पास ही धुलते थे जो पानी घर से बाहर जाकर कहीं मिट्टी में ही मिल जाता था।

बर्तन मिट्टी राख से मांजे जाते थे 100% नेचुरल एंटीबैक्टीरियल और पानी को साफ करने वाली चीज।

आज नहाने के लिए साबुन, शैम्पू, जेल, कंडीशनर, लोशन और न जाने क्या क्या ड्रामे,

बर्तन धोने के लिए भी साबुन और जेल

यही नहीं  इसके अलावा फिनायल, हार्पिक,लाइजोल और न जाने कितने 20 से 40% HCl यानी हाइड्रोक्लोरिक एसिड युक्त किचन, टॉयलेट, बाथरूम फ़्लोर क्लीनर।
टॉयलेट के लिए नीला और बाथरूम का लाल।

जहां तक मेरी जानकारी है

पिछली शताब्दी की शुरुआत तक हम अपनी हजारों वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार ही चल रहे थे।
नदी, नहरें तालाब सब साफ और लबालब थे। हालांकि जल संचयन की तकनीक या विचार पर कभी काम नहीं हुआ क्योंकि पूरी आबादी, सरकार , किसान और परम्परा   मानसून पर निर्भर थे और अधिकतर जगह पर्याप्त जल व्यबस्था थी।

हालांकि तिब्बत, दक्षिण के कुछ शहरों और मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में सदियों पूर्व ही पानी की कमी के कारण जल संचयन और सुनियोजित ड्रेनेज की व्यवस्था की गई थी ताकि सबको जरूरत का पानी मिल सके।

लेकिन बाकी जगहों पर इसे नहीं अपनाने का कारण शायद तब वहां प्रयाप्त या जरूरत भर व्यवस्था होना होगा।

हालांकि अकाल और सूखा हमारे देश की सबसे बड़ी आपदा हमेशा रही है जो राजा रानी की कहानियों से मुगलो और अंग्रेजो तक के अत्यचार की कहानियों में अक्सर ही सुनने पढ़ने को मिलती है।

सन  1930 में जनरल हेमिल्टन नाम का अंग्रेज अधिकारी आया जिसने कुलषित भाव से गंगा के प्रति लोगो की श्रद्धा और धर्म के नाम पर अपार जनसमूह बनारस में उमड़ता देख वहां ड्रेनेज सीवेज सिस्टम की शुरुआत की।

फिर आपके हमारे सब घरों की टट्टी पेशाब और घरेलू प्रयोग का गन्दा पानी नालियों से नाले में और नालों से गंगा में समाता गया।

सरकार और लोगों को भी ये सिस्टम सुविधाजनक लगा, मैला और धीरे धीरे ये राष्ट्रव्यापी हो गया।

मैं हल्द्वानी( नैनीताल) में रहता हूँ, यहां भी भूगर्भीय जल कई सौ फुट नीचे है, हैण्डपम्प और कुएं नहीं है।

अंग्रेजो ने जल व्यवस्था के लिए पूरे शहर में नहरों का जाल बिछाया था। लोग उसी पानी को सब काम मे प्रयोग करते थे। ये पानी पहाड़ के स्रोतों और झरनों से आता था,
बुजुर्ग कहते हैं कि सन 93 94 तक भी हम इसमे नहा लेते थे, घर के बर्तन कपड़े यही पानी बाल्टियों से घर लाकर धो लेते थे।

आज ये भी उसी ड्रेनेज सिस्टम का हिस्सा बन चुकी हैं
और शुद्ध पानी की जगह  गंदे पानी ने ले ली है।
नहरें नाला बन चुकी हैं।
गिनती की नहरे हैं जिनमे कुछ किलोमीटर साफ पानी दिखता है।

जगह जगह नहरों में कचरा, गन्दगी पॉलीथिन दिख जाते है

हमारी सभी नदियां जिनमे साफ पानी की नहरों से पानी आता था वो नहरे नालों में तब्दील हो गईं और

राम तेरी गंगा मैली हो गयी।

हिंदुस्तानियों की टट्टी ढोते ढोते।

ढकोसले छोड़ दो
सरकार भरोसे मत रहो अपने स्तर पर कुछ शुरू करें
अपने घरवालों, दोस्तो, रिश्तेदारों से बात करें

अपने स्तर से कोशिश करो कि कम से कम केमिकल युक्त चीजों का प्रयोग हो।

आपके घर से कम से कम पानी बहकर नालियों में जाये।

नहाने के लिए या बर्तन धोने के लिए कम पानी प्रयोग करें।

छत की टँकी में अलार्म लगाएं ताकि पानी बहते हुए बर्बाद न हो।

कूड़े कचरे को कूड़ेदान या कूड़े की गाड़ी में डालें।

प्लास्टिक का उपयोग न्यूनतम करें किसी भी रूप में।

कुछ आंकड़े जो आपको जानने चाहियें

* 445 नदियों पर सर्वेक्षण किया गया है, सर्वेक्षण से पता चला कि इनमें से एक चौथाई नदियाँ भी स्नान के योग्य नहीं है।
* भारतीय शहर हर दिन 10 अरब गैलन या 38 बिलियन लीटर नगरपालिका वाला अपशिष्ट जल उत्पन्न करते हैं, जिनमें से केवल 29% का उपचार किया जाता है।

* केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह भी कहा है कि 2011 में किए गए सर्वेक्षण में लगभग 8,000 शहरों में केवल 160 सीवेज प्रणाली और सीवेज उपचार संयंत्र थे।
* भारतीय शहरों में दैनिक रूप से उत्पादित लगभग 40,000 मिलियन लीटर सीवेज में से केवल 20% का उपचार किया जाता है।

प्रदूषित गंगा और यमुना

यमुना नदी एक कचरे के ढेर का क्षेत्र बन चुकी है जिसमें दिल्ली का 57% से अधिक कचरा फेंका जाता है।

दिल्ली के केवल 55% निवासियों को एक उचित सीवरेज प्रणाली से जोड़ा गया है।

विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) के अनुसार, यमुना नदी के प्रदूषण में लगभग 80% अनुपचारित सीवेज है।

गंगा को भारत में सबसे प्रदूषित नदी माना जाता है।
गंगा नदी में नियमित रूप से लगभग 1 बिलियन लीटर कच्चे अनुपचारित सीवेज को प्रवाहित किया जाता है।
गंगा नदी में प्रति 100 मिलीलीटर जल में 60,000 फ्रैकल कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है।

जय प्रदूषित गंगा

।।जय श्री राम।।
 अभिषेक बी पाण्डेय
नैनीताल, उत्तराखंड

Monday, 10 June 2019

Dhumavati jayanti 2019 धूमावती जयंती 2019

धूमावती जयंती विशेष
10 जून 2019
दुःख, दरिद्रता, रोग और क्लेश का नाश करने वाली देवी

 दस  महाविद्याओं  में सातवीं  महाविद्या हैं माँ धूमावती। इन्हे अलक्ष्मी या ज्येष्ठालक्ष्मी यानि लक्ष्मी की बड़ी बहन भी कहा जाता है।

ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी को माँ धूमावती जयन्ति के रूप मइ मनाया जाता है।

 मां धूमावती विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं तथा इनका वाहन कौवा है, ये श्वेत वस्त्र धारण कि हुए, खुले केश रुप में होती हैं।  धूमावती महाविद्या ही ऐसी शक्ति हैं जो व्यक्ति की दीनहीन अवस्था का कारण हैं। विधवा के आचरण वाली यह महाशक्ति दुःख दारिद्रय की स्वामिनी होते हुए भी अपने भक्तों पर कृपा करती हैं।

इनका ध्यान इस प्रकार बताया है ’-

 अत्यन्त लम्बी, मलिनवस्त्रा, रूक्षवर्णा, कान्तिहीन, चंचला, दुष्टा, बिखरे बालों वाली, विधवा, रूखी आखों वाली, शत्रु के लिये उद्वेग कारिणी, लम्बे विरल दांतों वाली, बुभुक्षिता, पसीने से आद्‍​र्र, स्तन नीचे लटके हो, सूप युक्ता, हाथ फटकारती हुई, बडी नासिका, कुटिला , भयप्रदा,कृष्णवर्णा, कलहप्रिया, तथा जिसके रथ पर कौआ बैठा हो ऐसी देवी। 

देवी का मुख्य अस्त्र है सूप जिसमे ये समस्त विश्व को समेट कर महाप्रलय कर देती हैं।  

दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है।  शाप देने नष्ट करने व  संहार  करने की जितनी भी क्षमताएं है वो देवी के कारण ही है।  क्रोधमय ऋषियों की मूल शक्ति धूमावती हैं जैसे दुर्वासा, अंगीरा, भृगु, परशुराम आदि।  
सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है ,  चौमासा ही देवी का प्रमुख समय होता है जब इनको प्रसन्न किया जाता है। नरक चतुर्दशी देवी का ही दिन होता है जब वो पापियों को पीड़ित व दण्डित करती हैं। 

देश के कयी भागों में नर्क चतुर्दशी पर घर से कूड़ा करकट साफ कर उसे घर से बाहर कर अलक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है की आप हमारे सारे दारिद्र लेकर विदा होइए।

ज्योतिष शास्त्रानुसार मां धूमावती का संबंध केतु ग्रह तथा इनका नक्षत्र ज्येष्ठा है। इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है। ज्योतिष शस्त्र अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु ग्रह श्रेष्ठ जगह पर कार्यरत हो अथवा केतु ग्रह से सहयता मिल रही ही तो व्यक्ति के जीवन में दुख दारिद्रय और दुर्भाग्य से छुटकारा मिलता है। केतु ग्रह की प्रबलता से व्यक्ति सभी प्रकार के कर्जों से मुक्ति पाता है और उसके जीवन में धन, सुख और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। 

. यह इंसान की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी ख़त्म नही होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है. माँ धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं। 

नोट :-  
अनुभवी साधको का मानना है की गृहस्त लोगों को देवी की साधना नही करनी चाहिए।  वहीँ कुछ का ऐसा मन्ना है की यदि इनकी साधना करनी भी हो घर से दूर एकांत स्थान में अथवा एकाँकी रूप से करनी चाहिए।  

विशेष ध्यान देने की बात ये है की इन महाविद्या का स्थायी आह्वाहन नहीं होता अर्थात इन्हे लम्बे समय तक घर में स्थापित या विराजमान होने की कामना नहीं करनी चाहिए क्यूंकि ये दुःख क्लेश और दरिद्रता की देवी हैं ।  

इनकी पूजा के समय ऐसी भावना करनी चाहिए की देवी प्रसन्न होकर मेरे समस्त दुःख, रोग , दरिद्रता ,कष्ट ,विघ्न ,बढ़ाये, क्लेशादी को अपने सूप में समेत कर मेरे घर से विदा हो रही हैं और हमें धन , लक्ष्मी ,  सुख एवं शांति का आशीर्वाद दे रही हैं । 

निरंतर इनकी स्तुति करने वाला कभी धन विहीन नहीं होता व उसे दुःख छूते भी नहीं , बड़ी से बड़ी शक्ति भी इनके सामने नहीं टिक पाती इनका तेज सर्वोच्च कहा जाता है।  श्वेतरूप व धूम्र अर्थात धुंआ इनको प्रिय है पृथ्वी के आकाश में स्थित बादलों में इनका निवास होता है।

देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है

स्तुति :- 
विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा,
विवरणकुण्डला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,
काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,
सूर्यहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,
प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,
क्षुतपिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहप्रिया.

      ॥ सौभाग्यदात्री धूमावती कवचम् ॥ 
धूमावती मुखं पातु  धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी ।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ॥१॥
कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके ।
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ॥२॥
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः ।
सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देविपुरं ययौ ॥३॥

॥ श्रीधूमावत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥

ईश्वर उवाच
धूमावती धूम्रवर्णा धूम्रपानपरायणा ।
धूम्राक्षमथिनी धन्या धन्यस्थाननिवासिनी ॥ १॥

अघोराचारसन्तुष्टा अघोराचारमण्डिता ।
अघोरमन्त्रसम्प्रीता अघोरमन्त्रपूजिता ॥ २॥

अट्टाट्टहासनिरता मलिनाम्बरधारिणी ।
वृद्धा विरूपा विधवा विद्या च विरलद्विजा ॥ ३॥

प्रवृद्धघोणा कुमुखी कुटिला कुटिलेक्षणा ।
कराली च करालास्या कङ्काली शूर्पधारिणी ॥ ४॥

काकध्वजरथारूढा केवला कठिना कुहूः ।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्या ललज्जिह्वा दिगम्बरी ॥ ५॥

दीर्घोदरी दीर्घरवा दीर्घाङ्गी दीर्घमस्तका ।
विमुक्तकुन्तला कीर्त्या कैलासस्थानवासिनी ॥ ६॥

क्रूरा कालस्वरूपा च कालचक्रप्रवर्तिनी ।
विवर्णा चञ्चला दुष्टा दुष्टविध्वंसकारिणी ॥ ७॥

चण्डी चण्डस्वरूपा च चामुण्डा चण्डनिस्वना ।
चण्डवेगा चण्डगतिश्चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ ८॥

चाण्डालिनी चित्ररेखा चित्राङ्गी चित्ररूपिणी ।
कृष्णा कपर्दिनी कुल्ला कृष्णारूपा क्रियावती ॥ ९॥

कुम्भस्तनी महोन्मत्ता मदिरापानविह्वला ।
चतुर्भुजा ललज्जिह्वा शत्रुसंहारकारिणी ॥ १०॥

शवारूढा शवगता श्मशानस्थानवासिनी ।
दुराराध्या दुराचारा दुर्जनप्रीतिदायिनी ॥ ११॥

निर्मांसा च निराकारा धूतहस्ता वरान्विता ।
कलहा च कलिप्रीता कलिकल्मषनाशिनी ॥ १२॥

महाकालस्वरूपा च महाकालप्रपूजिता ।
महादेवप्रिया मेधा महासङ्कटनाशिनी ॥ १३॥

भक्तप्रिया भक्तगतिर्भक्तशत्रुविनाशिनी ।
भैरवी भुवना भीमा भारती भुवनात्मिका ॥ १४॥

भेरुण्डा भीमनयना त्रिनेत्रा बहुरूपिणी ।
त्रिलोकेशी त्रिकालज्ञा त्रिस्वरूपा त्रयीतनुः ॥ १५॥

त्रिमूर्तिश्च तथा तन्वी त्रिशक्तिश्च त्रिशूलिनी ।
इति धूमामहत्स्तोत्रं नाम्नामष्टोत्तरात्मकम् ॥ १६॥

मया ते कथितं देवि शत्रुसङ्घविनाशनम् ।
कारागारे रिपुग्रस्ते महोत्पाते महाभये ॥ १७॥

इदं स्तोत्रं पठेन्मर्त्यो मुच्यते सर्वसङ्कटैः ।
गुह्याद्गुह्यतरं गुह्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ॥ १८॥

चतुष्पदार्थदं नॄणां सर्वसम्पत्प्रदायकम् ॥ १९॥

इति श्रीधूमावत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

अगर दुःख, दरिद्रता, गृह क्लेश और रोग से लगातार पीड़ा हो, किसी भी उपाय से आराम न होता हो, लक्ष्मी का निरंतर ह्रास हो रहा हो ऐसे में एक बार धूमावती साधना अवश्य करनी चाहिए या योग्य साधक से जप हवन करवा कर फिर अन्य उपाय पुनः करें।

जो ये नहीं कर सकते वे सिर्फ अष्टोत्तरशतनाम और कवच का नित्य पाठ करते हुए माँ से दुखो से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करें।

नारियल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
विशेष पूजा सामग्रियां-          पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है 

सफेद रंग के फूल, आक के फूल, सफेद वस्त्र व पुष्पमालाएं ,  केसर, अक्षत, घी, सफेद तिल, धतूरा, आक, जौ, सुपारी व नारियल , चमेवा व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें।
सूप की आकृति पूजा स्थान पर रखें

दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो मिटटी के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें। 

देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-

बिना गुरु दीक्षा के इनकी साधना कदापि न करें। थोड़ी सी भी चूक होने पर विपरीत फल प्राप्त होगा और पारिवारिक कलह दरिद्र का शिकार होंगे।

लाल वस्त्र देवी को कभी भी अर्पित न करें
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में गुड व गन्ने का प्रयोग न करें

देवी भक्त ध्यान व योग के समय भूमि पर बिना आसन कदापि न बैठें

पूजा में कलश स्थापित न करें 

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Sunday, 2 June 2019

Shani jayanti 2019 शनि जयंती 2019

शनि जयंती 3 जून 2019

शनि मंदिर में हर शनिवार शनिदेव को तेल, तिल, काले कपड़े आदि की घूस देने की जगह

रोज नियम से गाय, कुत्ते और कौए को एक एक रोटी खिलाएं

सिर्फ 3 रोटी सैकड़ों दान पुण्य और तीर्थ पर भारी हैं

एक पीपल का पौधा लगाकर रोज जल दें

कर्म सही और नियत साफ रखें

शनि, राहु केतु समेत समस्त नवग्रह और पितृ और कुलदेव प्रसन्न रहेंगे।

शनि पीड़ा हेतु मन्त्र:

सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रियः।
मन्दाचारः प्रसन्नात्मा पीड़ा हरतुं मे शनिः।।

ये 3 रोटी का उपाय और इस मन्त्र जप शनि जन्य रोग  जैसे पैरों में दर्द, गठिया, कमर दर्द, स्नायु सम्बन्धी रोग, नेत्र, पेट, बवासीर, दन्त रोग आदि की पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है।

।।जय श्री राम।।
अभिषेक बी पाण्डेय
नैनीताल, उत्तराखंड
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Thursday, 16 May 2019

Narsinha jayanti 2019 नरसिंह जयंती 2019

श्री नरसिंह जयंती की शुभकामनाएं

(1) श्री लक्ष्मीनरसिंह अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

।। ॐ श्रीं ॐ लक्ष्मीनृसिंहाय नम: श्रीं ॐ।।

 नारसिंहो महासिंहो दिव्यसिंहो महीबल:।

उग्रसिंहो महादेव: स्तंभजश्चोग्रलोचन:।।

रौद्र: सर्वाद्भुत: श्रीमान् योगानन्दस्त्रीविक्रम:।

हरि: कोलाहलश्चक्री विजयो जयवर्द्धन:।।

 पञ्चानन: परंब्रह्म चाघोरो घोरविक्रम:।

 ज्वलन्मुखो ज्वालमाली महाज्वालो महाप्रभु:।।

निटिलाक्ष: सहस्त्राक्षो दुर्निरीक्ष्य: प्रतापन:।

महाद्रंष्ट्रायुध: प्राज्ञश्चण्डकोपी सदाशिव:।।

हिरण्यकशिपुध्वंसी दैत्यदानवभञ्जन:।

 गुणभद्रो महाभद्रो बलभद्र: सुभद्रक:।।

करालो विकरालश्च विकर्ता सर्वकर्तृक:।

 शिंशुमारस्त्रिलोकात्मा ईश: सर्वेश्वरो विभु:।।

भैरवाडम्बरो दिव्याश्चच्युत: कविमाधव:।

अधोक्षजो अक्षर: शर्वो वनमाली वरप्रद:।।

विश्वम्भरो अद्भुतो भव्य: श्रीविष्णु: पुरूषोतम:।

अनघास्त्रो नखास्त्रश्च सूर्यज्योति: सुरेश्वर:।।

सहस्त्रबाहु: सर्वज्ञ: सर्वसिद्धिप्रदायक:।

वज्रदंष्ट्रो वज्रनखो महानन्द: परंतप:।।

सर्वयन्त्रैकरूपश्च सप्वयन्त्रविदारण:।

सर्वतन्त्रात्मको अव्यक्त: सुव्यक्तो भक्तवत्सल:।।

वैशाखशुक्ल भूतोत्थशरणागत वत्सल:।

उदारकीर्ति: पुण्यात्मा महात्मा चण्डविक्रम:।।

वेदत्रयप्रपूज्यश्च भगवान् परमेश्वर:।

श्रीवत्साङ्क: श्रीनिवासो जगद्व्यापी जगन्मय:।।

जगत्पालो जगन्नाथो महाकायो द्विरूपभृत्।

परमात्मा परंज्योतिर्निर्गुणश्च नृकेसरी।।

 परतत्त्वं परंधाम सच्चिदानंदविग्रह:।

लक्ष्मीनृसिंह: सर्वात्मा धीर: प्रह्लादपालक:।।

इदं लक्ष्मीनृसिंहस्य नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।

त्रिसन्ध्यं य: पठेद् भक्त्या सर्वाभीष्टंवाप्नुयात्।।

श्री भगवान महाविष्णु स्वरूप श्री नरसिंह के अंक में विराजमान माँ महालक्ष्मी के इस श्रीयुगल स्तोत्र का तीनो संध्याओं में पाठ करने से भय, दारिद्र, दुःख, शोक का नाश होता है और  अभीष्ट की प्राप्ति होती है। 

  (२) नृसिंहमालामन्त्रः

श्री गणेशाय नमः |

अस्य श्री नृसिंहमाला मन्त्रस्य नारदभगवान् ऋषिः | अनुष्टुभ् छन्दः | श्री नृसिंहोदेवता | आं बीजम् | लं शवित्तः | मेरुकीलकम् | श्रीनृसिंहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः |

ॐ नमो नृसिंहाय ज्वलामुखग्निनेत्रय शङ्खचक्रगदाप्र्हस्ताय | योगरूपाय हिरण्यकशिपुच्छेदनान्त्रमालाविभुषणाय हन हन दह दह वच वच रक्ष वो नृसिंहाय पुर्वदिषां बन्ध बन्ध रौद्रभसिंहाय दक्षिणदिशां बन्ध बन्ध पावननृसिंहाय पश्चिमदिशां बन्ध बन्ध दारुणनृसिंहाय उत्तरदिशां बन्ध बन्ध ज्वालानृसिंहाय आकाशदिशां बन्ध बन्ध लक्ष्मीनृसिंहाय पातालदिशां  बन्ध बन्ध कः कः कंपय कंपय आवेशय आवेशय अवतारय अवतारय शीघ्रं शीघ्रं | ॐ नमो नारसिंहाय नवकोटिदेवग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय अष्टकोटिगन्धर्व ग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय षट्कोटिशाकिनीग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय पंचकोटि पन्नगग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय चतुष्कोटि ब्रह्मराक्षसग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय द्विकोटिदनुजग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय कोटिग्रहोच्चाटनाय| ॐ नमो नारसिंहाय अरिमूरीचोरराक्षसजितिः वारं वारं | श्रीभय चोरभय व्याधिभय सकल भयकण्टकान् विध्वंसय विध्वंसय | शरणागत वज्रपंजराय विश्वहृदयाय प्रल्हादवरदाय क्षरौं श्रीं नृसिंहाय स्वाहा | ॐ नमो नारसिंहाय मुद्गल शङ्खचक्र गदापद्महस्ताय नीलप्रभांगवर्णाय भीमाय भीषणाय ज्वाला करालभयभाषित श्री नृसिंहहिरण्यकश्यपवक्षस्थलविदार्णाय | जय जय एहि एहि भगवन् भवन गरुडध्वज गरुडध्वज मम सर्वोपद्रवं वज्रदेहेन चूर्णय चूर्णय आपत्समुद्रं शोषय शोषय | असुरगन्धर्वयक्षब्रह्मराक्षस भूतप्रेत पिशाचदिन विध्वन्सय् विध्वन्सय् | पूर्वाखिलं मूलय मूलय | प्रतिच्छां स्तम्भय परमन्त्रपयन्त्र परतन्त्र परकष्टं छिन्धि छिन्धि भिन्धि हं फट् स्वाहा |

इति श्री अथर्वण वेदोवत्तनृसिंहमालामन्त्रः समाप्तः |

श्री नृसिम्हार्पणमस्तु ||

(३)   नरसिंह गायत्री

ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्ण दंष्ट्राय धीमहि |तन्नो नरसिंह प्रचोदयात ||

(४) नृसिंह शाबर मन्त्र :

ॐ नमो भगवते नारसिंहाय -घोर रौद्र महिषासुर रूपाय

,त्रेलोक्यडम्बराय रोद्र क्षेत्रपालाय ह्रों ह्रों

क्री क्री क्री ताडय

ताडय मोहे मोहे द्रम्भी द्रम्भी

क्षोभय क्षोभय आभि आभि साधय साधय ह्रीं

हृदये आं शक्तये प्रीतिं ललाटे बन्धय बन्धय

ह्रीं हृदये स्तम्भय स्तम्भय किलि किलि ईम

ह्रीं डाकिनिं प्रच्छादय २ शाकिनिं प्रच्छादय २ भूतं

प्रच्छादय २ प्रेतं प्रच्छादय २ ब्रंहंराक्षसं सर्व योनिम

प्रच्छादय २ राक्षसं प्रच्छादय २ सिन्हिनी पुत्रं

प्रच्छादय २ अप्रभूति अदूरि स्वाहा एते डाकिनी

ग्रहं साधय साधय शाकिनी ग्रहं साधय साधय

अनेन मन्त्रेन डाकिनी शाकिनी भूत

प्रेत पिशाचादि एकाहिक द्वयाहिक् त्र्याहिक चाथुर्थिक पञ्च

वातिक पैत्तिक श्लेष्मिक संनिपात केशरि डाकिनी

ग्रहादि मुञ्च मुञ्च स्वाहा मेरी भक्ति गुरु

की शक्ति स्फ़ुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा ll

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।।जय श्री राम।।
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Sunday, 12 May 2019

श्री सीता नवमी जानकी जयंती 2019

सीता/ जानकी नवमी विशेष

माता सीता का जन्मोत्सव पर्व
आज वैशाख शुक्ल नवमी

 श्रीजानकीस्तोत्रम्

नीलनीरज-दलायतेक्षणां लक्ष्मणाग्रज-भुजावलम्बिनीम् ।
शुद्धिमिद्धदहने प्रदित्सतीं भावये मनसि रामवल्लभाम्  ॥ १॥

जिनके नील कमल-दल के सदृश नेत्र हैं, जिन्हें श्रीराम की भुजा
का ही अवलंबन है, जो प्रज्वलित अग्नि में अपनी पवित्रता की परीक्षा देना
चाहती हैं, उन रामप्रिया श्री सीता माता का मैं मन-ही-मन में ध्यान
(भावना) करता हूं । १

रामपाद-विनिवेशितेक्षणामङ्ग-कान्तिपरिभूत-हाटकाम् ।
ताटकारि-परुषोक्ति-विक्लवां भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ २॥

श्रीरामजी के चरणों की ओर निश्चल रूप से जिनके नेत्र लगे हुए हैं,
जिन्होंने अपनी अङ्गकान्ति से सुवर्ण को मात कर दिया है । तथा ताटका
के वैरी श्रीरामजी के (द्वारा दुष्टों के प्रति कहे गए) कटु वचनों से
जो घबराई हुई हैं, उन श्रीरामजी की प्रेयसी श्री सीता मां की मन में
भावना करता हूं । २

कुन्तलाकुल-कपोलमाननं, राहुवक्रग-सुधाकरद्युतिम् ।
वाससा पिदधतीं हियाकुलां भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ३॥

जो लज्जा से हतप्रभ हुईं अपने उस मुख को, जिनके कपोल उनके बिथुरे
हुए बालों से उसी प्रकार आवृत हैं, जैसे चन्द्रमा राहु द्वारा ग्रसे
जाने पर अंधकार से आवृत हो जाता है, वस्त्र से ढंक रही हैं,
उन राम-पत्नी सीताजी का मन में ध्यान करता हूं । ३

कायवाङ्मनसगं यदि व्यधां स्वप्नजागृतिषु राघवेतरम् ।
तद्दहाङ्गमिति पावकं यती भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ४॥

जो मन-ही-मन यह कहती हुई कि यदि मैंने श्रीरघुनाथ के अतिरिक्त
किसी और को अपने शरीर, वाणी अथवा मन में कभी स्थान दिया हो तो हे
अग्ने ! मेरे शरीर को जला दो अग्नि में प्रवेश कर गईं, उन रामजी की
प्राणप्रिय सीताजी का मन में ध्यान करता हूं । ४

इन्द्ररुद्र-धनदाम्बुपालकैः सद्विमान-गणमास्थितैर्दिवि ।
पुष्पवर्ष-मनुसंस्तुताङ्घकिं भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ५॥

उत्तम विमानों में बैठे हुए इन्द्र, रुद्र, कुबेर और वरुण द्वारा
पुष्पवृष्टि के अनंतर जिनके चरणों की भली-भांति स्तुति की गई है,
उन श्रीराम की प्यारी पत्नी सीता माता की मन में भावना करता हूं । ५

सञ्चयैर्दिविषदां विमानगैर्विस्मयाकुल-मनोऽभिवीक्षिताम् ।
तेजसा पिदधतीं सदा दिशो भावये मनसि रामवल्लभाम् ॥ ६॥

(अग्नि-शुद्धि के समय) विमानों में बैठे हुए देवगण विस्मयाविष्ट
चित्त से जिनकी ओर देख रहे थे और जो अपने तेज से दसों दिशाओं को
आच्छादित कर रही थीं, उन रामवल्लभा श्री सीता मां की मैं मन में
भावना करता हूं । ६

मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन प्रभु श्रीराम एवं माता सीता का
विधि-विधान से पूजन करता है, उसे १६ महान दानों का फल, पृथ्वी
दान का फल तथा समस्त तीर्थों के दर्शन का फल मिल जाता है । इसके
साथ ही जानकी स्तोत्र का पाठ नियमित करने से मनुष्य के सभी कष्टों
का नाश होता है । इसके पाठ से माता सीता प्रसन्न होकर धन-ऐश्वर्य
की प्राप्ति कराती है । ७

इति जानकीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
***********************

श्री जानकी स्रोत्र

जानकि   त्वां   नमस्यामि   सर्वपापप्रणाशिनीम्
जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥१॥

दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम् ।
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम् ॥२॥

भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ।
पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम् ॥३॥

पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम् ।
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम् ॥४॥

आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम् ।
प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम् ॥५॥

नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम् ।
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम् ॥६॥

पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्षःस्थलालयाम् ।
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम् ॥७॥

आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम् ।
नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम् ।
सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा ॥८॥

अन्य किसी जानकारी, कुंडली विश्लेषण एवं समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
Abhishek B. Pandey
नैनीताल, उत्तराखण्ड

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Saturday, 11 May 2019

Baglamukhi jayanti 2019 special बगलामुखी जयंती 2019 विशेष

बगलामुखी जयंती 2019 विशेष

बगला स्तोत्र , कवच, अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र और चालीसा

मित्रों
        12 मई 2019 को माँ बगुलामुखी जयंती है और आप सबको अनेक शुभकामनायें।  माँ  आपको स्वस्थ सुरक्षित रखें और सभी संकटों से रक्षा करें तथा अभी मनोकामनाएं पूर्ण करें।

माँ बगलामुखी १० महाविद्याओं में आठवां  स्वरुप हैं।  ये महाविद्यायें भोग और मोक्ष दोनों को देने वाली हैं। सांख़यायन तन्त्र के अनुसार बगलामुखी को सिद्घ विद्या कहा गया है।

तन्त्र शास्त्र में इसे ब्रह्मास्त्र, स्तंभिनी विद्या, मंत्र संजीवनी विद्या तथा प्राणी प्रज्ञापहारका एवं षट्कर्माधार विद्या के नाम से भी अभिहित किया गया है।

 कलियुग के तमाम संकटों के निराकरण में भगवती पीता बरा की साधना उत्तम मानी गई है। अतः आधि व्याधि से त्रस्त वर्तमान समय में मानव मात्र माँ पीतांबरा की साधना कर अत्यन्त विस्मयोत्पादक अलौकिक सिद्घियों को अर्जित कर अपनी समस्त अभिलाषाओं को प्राप्त कर सकता है।

बगलामुखी की साधना से साधक भयरहित हो जाता है और शत्रु से उसकी रक्षा होती है। बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक, शत्रुविनाशक एवं स्तंभनात्मक है। यजुर्वेद के पंचम अध्याय में ‘रक्षोघ्न सूक्त’ में इसका वर्णन है।
इसका आविर्भाव प्रथम युग में बताया गया है। देवी बगलामुखी जी की प्राकट्य कथा इस प्रकार  है जिसके अनुसार :-

एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया. यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए.

इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती श्रीविद्या के  के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ और तेज से भगवती पीतांबरा का प्राकट्य हुआ

उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका.जब समस्त संसार के नाश के लिए प्रकृति में आंधी तूफान आया उस समय विष्णु भगवान संसार की रक्षा के लिये तपस्या करने लगे।
उनकी तपस्या से सौराष्ट्र में पीत सरोवर में । इनका आविर्भाव वीर रात्रि को माना गया है। शक्ति संग तंत्र के काली खंड के त्रयोदश पटल में वीर रात्रि का वर्णन इस प्रकार है

चतुर्दशी संक्रमश्च कुलर्क्ष कुलवासरः अर्ध रात्रौ यथा योगो वीर रात्रिः प्रकीर्तिता।

भगवती पीतांबरा के मंत्र का छंद वृहती है। ऋषि ब्रह्मा हैं, जो सर्व प्रकार की वृद्घि करने वाले हैं। भगवती सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं। इसके भक्त धन धान्य से पूर्ण रहते हैं।

भगवती पीतांबरा की पूजा पीतोपचार से होती है। पीतपुष्ष, पीत वस्त्र, हरिद्रा की माला, पीत नैवेद्य आदि पीतरंग इनको प्रिय हैं। इनकी पूजा में प्रयुक्त की जाने वाली हर वस्तु पीले रंग की ही होती है।

भगवती के अनेक साधकों का वर्णन तंत्र ग्रंथों में उपलब्ध है। सर्व प्रथम ब्रह्मास्त्र रूपिणी बगला महाविद्या का उपदेश ब्रह्माजी ने सनकादि ऋषियों को दिया। वहाँ से नारद, परशुराम आदि को इस महाविद्या का उपदेश हुआ। भगवान परशुराम शाक्तमार्ग के आचार्य हैं।

भगवान परशुराम को स्तंभन शक्ति प्राप्त थी। स्तंभन शक्ति के बल से शत्रु को पराजित करते थे।

 देवी बगलामुखी को ब्रह्मास्त्र विद्या भी कहते हैं क्यूंकि ये स्वयं  ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.

माँ बगलामुखी का  बीज मंत्र :- ह्लीं

मूल मंत्र :-  !!ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं
                 स्तम्भय जिह्वां किलय बुध्दिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा!!

ग्रंथों के अनुसार ये मन्त्र सवा लाख जप कर के सिद्ध हो जाता है किन्तु वास्तविकता कहिये या कलयुग के प्रभाव से ये इससे १०  या और बी कई गुना अधिक जप के बाद ही सिद्ध होता है।

 ये एक अति उग्र मंत्र है और गलत उच्चारण  जप करने पर उल्टा नुकसान भी दे सकता है।

** ध्यान रहे **

बिना सही विधि के जप करने पर मन्त्र में शत्रु के नाश के लिए कही गयी बातें स्वयं पर ही असर कर सकती है अतः गुरु से दीक्षा लेने और विधान जानने के बाद ही माँ का जप या साधना करनी चाहिए।

दूसरी बात माँ का मूल मंत्र जो की सबसे प्रचलित भी है इसका  असर दिखने में काफी समय लगता है या यूँ कहिये की माँ साधक के धैर्य की परीक्षा लेती हैं और उसके बाद ही अपनी कृपा का अमृत बरसाती हैं।

माँ का मूल मन्त्र करने से पूर्व गायत्री मंत्र या बीज मन्त्र या माँ का ही कोई अन्य सौम्य मंत्र कर लिया जाये तो इसका प्रभाव शीघ्र मिलता है।

जप आरम्भ करने से पूर्व बगलामुखी कवच और अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पथ करने से साधक सब प्रकार की बाधाओं और जप/ साधना  में विघ्न उत्पन्न करने वाली शक्तियों से सुरक्षित रहता है और सफल होता है।

** जिनकी दीक्षा नहीं हुई किंतु माँ बगुलामुखी में श्रद्धा है और उनकी कृपा चाहते हैं वे कवच और अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करें।

जो किसी भी प्रकार सँस्कृत में पाठ नहीं कर सकते वे माँ बगलामुखी चालीसा का नित्य पाठ करें।

शास्त्रानुसार यदि सिर्फ कवच और अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का ही १००० बार निर्विघ्न रूप से साधनात्मक तरीके से पाठ  कर लिया जाये तो ये जागृत हो जाते हैं और फिर साधक इनके माध्यम से भी कई कर संपन्न कर सकता है।

।। माँ बगलामुखी स्तोत्र ।।
विनियोग : अस्य श्री बगलामुखी स्तोत्रस्य नारद ऋषिः त्रिष्टुप छन्दः।
श्री बगलामुखी देवता, बीजं स्वाहा शक्तिः कीलकं मम श्री बगलामुखी प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
!! ध्यान !!

सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांषुकोल्लासिनीं, हेमाभांगरुचिं शषंकमुकुटां स्रक चम्पकस्त्रग्युताम्,
हस्तैमुद्गर, पाषबद्धरसनां संविभृतीं भूषणैव्यप्तिांगी बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तये ।

ऊँ मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेदीं, सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरणमाल्यविभूषितांगी देवीं भजामि धृतमुदग्रवैरिजिव्हाम्।।1।।

जिह्वाग्रमादाय करेण देवी, वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढयां द्विभुजां भजामि।। 2।।

चलत्कनककुण्डलोल्लसित चारु गण्डस्थलां, लसत्कनकचम्पकद्युतिमदिन्दुबिम्बाननाम्।।
गदाहतविपक्षकांकलितलोलजिह्वाचंलाम्। स्मरामि बगलामुखीं विमुखवांगमनस्स्तंभिनीम्।। 3।।

पीयूषोदधिमध्यचारुविलसद्रक्तोत्पले मण्डपे, सत्सिहासनमौलिपातितरिपुं प्रेतासनाध् यासिनीम्।
स्वर्णाभांकरपीडितारिरसनां भ्राम्य˜दां विभ्रमामित्थं ध्यायति यान्ति तस्य विलयं सद्योऽथ सर्वापदः।। 4।।

देवि त्वच्चरणाम्बुजार्चनकृते यः पीतपुष्पान्जलीन् । भक्तया वामकरे निधाय च मनुम्मन्त्री मनोज्ञाक्षरम्।
पीठध्यानपरोऽथ कुम्भकवषाद्वीजं स्मरेत् पार्थिवः। तस्यामित्रमुखस्य वाचि हृदये जाडयं भवेत् तत्क्षणात्।। 5।।

वादी मूकति रंकति क्षितिपतिवैष्वानरः शीतति। क्रोधी शाम्यति दुज्र्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खंजति।।
गर्वी खर्वति सर्वविच्च जडति त्वद्यन्त्रणायंत्रितः। श्रीनित्ये बगलामुखी प्रतिदिनं कल्याणि तुभ्यं नमः।। 6।।

मन्त्रस्तावदलं विपक्षदलनं स्तोत्रं पवित्रं च ते, यन्त्रं वादिनियन्त्रणं त्रिजगतां जैत्रं च चित्रं च ते।
मातः श्रीबगलेतिनामललितं यस्यास्ति जन्तोर्मुखे, त्वन्नामग्रहणेन संसदि मुखस्तम्भे भवेद्वादिनाम्।। 7।।

दष्टु स्तम्भ्नमगु विघ्नषमन दारिद्रयविद्रावणम भूभषमनं चलन्मृगदृषान्चेतः समाकर्षणम्।
सौभाग्यैकनिकेतनं समदृषां कारुण्यपूर्णाऽमृतम्, मृत्योर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपुः।। 8।।

मातर्भन्जय मे विपक्षवदनं जिव्हां च संकीलय, ब्राह्मीं मुद्रय नाषयाषुधिषणामुग्रांगतिं स्तम्भय।
शत्रूंश्रूचर्णय देवि तीक्ष्णगदया गौरागिं पीताम्बरे, विघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारूण्यपूर्णेक्षणे।। 9।।

मातभैरवि भद्रकालि विजये वाराहि विष्वाश्रये। श्रीविद्ये समये महेषि बगले कामेषि रामे रमे।।
मातंगि त्रिपुरे परात्परतरे स्वर्गापवगप्रदे। दासोऽहं शरणागतः करुणया विष्वेष्वरि त्राहिमाम्।। 10।।

सरम्भे चैरसंघे प्रहरणसमये बन्धने वारिमध् ये, विद्यावादे विवादे प्रकुपितनृपतौ दिव्यकाले निषायाम्।
वष्ये वा स्तम्भने वा रिपुबधसमये निर्जने वा वने वा, गच्छस्तिष्ठंस्त्रिकालं यदि पठति षिवं प्राप्नुयादाषुधीरः।। 11।।

त्वं विद्या परमा त्रिलोकजननी विघ्नौघसिंच्छेदिनी योषाकर्षणकारिणी त्रिजगतामानन्द सम्वध्र्नी ।
दुष्टोच्चाटनकारिणीजनमनस्संमोहसंदायिनी, जिव्हाकीलनभैरवि! विजयते ब्रह्मादिमन्त्रो यथा।। 12।।

विद्याः लक्ष्मीः सर्वसौभाग्यमायुः पुत्रैः पौत्रैः सर्व साम्राज्यसिद्धिः।
मानं भोगो वष्यमारोग्य सौख्यं, प्राप्तं तत्तद्भूतलेऽस्मिन्नरेण।। 13।।

यत्कृतं जपसन्नाहं गदितं परमेष्वरि।। दुष्टानां निग्रहार्थाय तद्गृहाण नमोऽस्तुते।। 14।।

ब्रह्मास्त्रमिति विख्यातं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्। गुरुभक्ताय दातव्यं न दे्यं यस्य कस्यचित्।। 15।।

पीतांबरा च द्वि-भुजां, त्रि-नेत्रां गात्र कोमलाम्। षिला-मुद्गर हस्तां च स्मरेत् तां बगलामुखीम्।। 16।।

नित्यं स्तोत्रमिदं पवित्रमहि यो देव्याः पठत्यादराद्- धृत्वा यन्त्रमिदं तथैव समरे बाहौ करे वा गले।
राजानोऽप्यरयो मदान्धकरिणः सर्पाः मृगेन्द्रादिका- स्तेवैयान्ति विमोहिता रिपुगणाः लक्ष्मीः स्थिरासिद्धयः।। 17।।
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श्री बगलामुखी कवच

 ध्यान

सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीताशुकोल्लासिनीम्

हेमाभांगरुचिं शशांकमुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्

हस्तैर्मुदगर पाशवज्ररसनाः संबिभ्रतीं भूषणैः

व्याप्तागीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत्

 विनियोगः
ॐ अस्य श्रीबगलामुखीब्रह्मास्त्रमन्त्रकवचस्य भैरव ऋषिः,
विराट् छन्दः श्रीबगलामुखी देवता, क्लीं बीजम्, ऐं शक्तिः, श्रीं कीलकं, मम परस्य च मनोभिलाषितेष्टकार्यसिद्धये विनियोगः

न्यास

शिरसि भैरव ऋषये नमः

मुखे विराट छन्दसे नमः

हृदि बगलामुखीदेवतायै नमः

गुह्ये क्लीं बीजाय नमः

पादयो ऐं शक्तये नमः

सर्वांगे श्रीं कीलकाय नमः

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः

ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः

ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः

ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः

ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः

ॐ ह्रां हृदयाय नमः

ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा

ॐ ह्रूं शिखायै वषट्

ॐ ह्रैं कवचाय हुं

ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्

ॐ ह्रः अस्त्राय फट्

मन्त्रोद्धारः

ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं श्रीबगलानने मम रिपून् नाशय नाशय

मामैश्वर्याणि देहि देहि, शीघ्रं मनोवाञ्छितं कार्यं साधय

साधय ह्रीं स्वाहा.



कवच

शिरो मे पातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातु ललाटकम् ।

सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्री बगलानने ।।१।।

श्रुतौ मम् रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम् ।

पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम् ।।२।।

देहि द्वन्द्वं सदा जिहवां पातु शीघ्रं वचो मम ।

कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ।।३।।

कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम ।

मायायुक्ता यथा स्वाहा हृदयं पातु सर्वदा ।।४।।

अष्टाधिक-चत्वारिंश-दण्डाढया बगलामुखी ।

रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम ।।५।।

ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्वसन्धिषु ।

मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा ।।६।।

ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगला-अवतु ।

मुखि-वर्णद्वयं पातु लिगं मे मुष्क-युग्मकम् ।।७।।

जानुनी सर्व-दुष्टानां पातु मे वर्ण-पञ्चकम् ।

वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी ।।८।।

जंघायुग्मे सदापातु बगला रिपुमोहिनी ।

स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रय मम ।।९।।

जिहवा-वर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च ।

पादोर्ध्वं सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम ।।१०।।

विनाशयपदं पातु पादांगुर्ल्योनखानि मे ।

ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे ।।११।।

सर्वागं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मे-अवतु ।

ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा ।।१२।।

माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसे-अवतु ।

कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता ।।१३।।

वाराही च उत्तरे पातु नारसिंही शिवे-अवतु ।

ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदा-अवतु ।।१४।।

इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः ।

राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः ।।१५।।

श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदा-अवतु ।

द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः ।।१६।।

योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम ।

फलश्रुति

इति ते कथितं देवि कवचं परमाद्भुतम् ।।१७।।

श्रीविश्वविजयं नाम कीर्तिश्रीविजयप्रदाम् ।

अपुत्रो लभते पुत्रं धीरं शूरं शतायुषम् ।।१८।।

निर्धनो धनमाप्नोति कवचास्यास्य पाठतः ।

जपित्वा मन्त्रराजं तु ध्यात्वा श्री बगलामुखीम् ।।१९।।

पठेदिदं हि कवचं निशायां नियमात् तु यः ।

यद् यत् कामयते कामं साध्यासाध्ये महीतले ।।२०।।

तत् तत् काममवाप्नोति सप्तरात्रेण शंकरि ।

गुरुं ध्यात्वा सुरां पीत्वा रात्रो शक्तिसमन्वितः ।।२१।।

कवचं यः पठेद् देवि तस्यासाध्यं न किञ्चन ।

यं ध्यात्वा प्रजपेन्मन्त्रं सहस्त्रं कवचं पठेत् ।।२२।।

त्रिरात्रेण वशं याति मृत्योः तन्नात्र संशयः ।

लिखित्वा प्रतिमां शत्रोः सतालेन हरिद्रया ।।२३।।

लिखित्वा हृदि तन्नाम तं ध्यात्वा प्रजपेन् मनुम् ।

एकविंशददिनं यावत् प्रत्यहं च सहस्त्रकम् ।।२४।।

जपत्वा पठेत् तु कवचं चतुर्विंशतिवारकम् ।

संस्तम्भं जायते शत्रोर्नात्र कार्या विचारण् ।।२५।।

विवादे विजयं तस्य संग्रामे जयमाप्नुयात् ।

श्मशाने च भयं नास्ति कवचस्य प्रभावतः ।।२६।।

नवनीतं चाभिमन्त्रय स्त्रीणां दद्यान्महेश्र्वरि ।

वन्ध्यायां जायते पुत्रो विद्याबलसमन्वितः ।।२७।।

श्मशानांगारमादाय भौमे रात्रौ शनावथ ।

पादोदकेन स्पृष्ट्वा च लिखेत् लोहशलाकया ।।२८।।

भूमौ शत्रोः स्वरुपं च हृदि नाम समालिखेत् ।

हस्तं तद्धृदये दत्वा कवचं तिथिवारकम् ।।२९।।

ध्यात्वा जपेन् मन्त्रराजं नवरात्रं प्रयत्नतः ।

म्रियते ज्वरदाहेन दशमेंऽहनि न संशयः ।।३०।।

भूर्जपत्रेष्विदं स्तोत्रमष्टगन्धेन संलिखेत् ।

धारयेद् दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा ।।३१।।

संग्रामे जयमप्नोति नारी पुत्रवती भवेत् ।

सम्पूज्य कवचं नित्यं पूजायाः फलमालभेत् ।।३२।।

ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि नैव कृन्तन्ति तं जनम् ।

वृहस्पतिसमो वापि विभवे धनदोपमः ।।३३।।

कामतुल्यश्च नारीणां शत्रूणां च यमोपमः ।

कवितालहरी तस्य भवेद् गंगाप्रवाहवत् ।।३४।।

गद्यपद्यमयी वाणी भवेद् देवी प्रसादतः ।

एकादशशतं यावत् पुरश्चरणमुच्यते ।।३५।।

पुरश्चर्याविहीनं तु न चेदं फलदायकम् ।

न देयं परशिष्येभ्यो दुष्टेभ्यश्च विशेषतः ।।३६।।

देयं शिष्याय भक्ताय पञ्चत्वं चान्यथा-अअप्नुयात् ।

इदं कवचमज्ञात्वा भजेद् यो बगलामुखीम् ।।३७।।

शतकोटिं जपित्वा तु तस्य सिद्धिर्न जायते ।

दाराढयो मनुजोअस्य लक्षजपतः प्राप्नोति सिद्धिं परां ।।३८।।

विद्यां श्रीविजयं तथा सुनियतं धीरं च वीरं वरम् ।

ब्रह्मास्त्राख्यमनुं विलिख्य नितरां भूर्जे-अष्टगन्धेन वै ।।३९।।

धृत्वा राजपुरं व्रजन्ति खलु ते दासोअस्ति तेषां नृपः

इति श्रीविश्वसारोद्धारतन्त्रे पार्वतीश्वरसंवादे

बगलामुखी कवचम् सम्पूर्णम्
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श्री बगलामुखी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम

श्रीगणेशाय नमः ।

नारद उवाच ।

भगवन्देवदेवेश सृष्टिस्थितिलयात्मक ।

शतमष्टोत्तरं नाम्नां बगलाया वदाधुना ॥ १॥

श्रीभगवानुवाच ।

शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ।

पीताम्बर्यां महादेव्याः स्तोत्रं पापप्रणाशनम् ॥ २॥

यस्य प्रपठनात्सद्यो वादी मूको भवेत्क्षणात् ।

रिपुणां स्तम्भनं याति सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥ ३॥

विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीपीताम्बराष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप्छन्दः, श्रीपीताम्बरा देवता,
श्रीपीताम्बराप्रीतये पाठे विनियोगः ।

ॐ बगला विष्णुवनिता विष्णुशङ्करभामिनी ।

बहुला वेदमाता च महाविष्णुप्रसूरपि ॥ ४॥

महामत्स्या महाकूर्म्मा महावाराहरूपिणी ।

नारसिंहप्रिया रम्या वामना बटुरूपिणी ॥ ५॥

जामदग्न्यस्वरूपा च रामा रामप्रपूजिता ।

कृष्णा कपर्दिनी कृत्या कलहा कलकारिणी ॥ ६॥

बुद्धिरूपा बुद्धभार्या बौद्धपाखण्डखण्डिनी ।

कल्किरूपा कलिहरा कलिदुर्गति नाशिनी ॥ ७॥

कोटिसूर्य्यप्रतीकाशा कोटिकन्दर्पमोहिनी ।

केवला कठिना काली कला कैवल्यदायिनी ॥ ८॥

केशवी केशवाराध्या किशोरी केशवस्तुता ।

रुद्ररूपा रुद्रमूर्ती रुद्राणी रुद्रदेवता ॥ ९॥

नक्षत्ररूपा नक्षत्रा नक्षत्रेशप्रपूजिता ।

नक्षत्रेशप्रिया नित्या नक्षत्रपतिवन्दिता ॥ १०॥

नागिनी नागजननी नागराजप्रवन्दिता ।

नागेश्वरी नागकन्या नागरी च नगात्मजा ॥ ११॥

नगाधिराजतनया नगराजप्रपूजिता ।

नवीना नीरदा पीता श्यामा सौन्दर्य्यकारिणी ॥ १२॥

रक्ता नीला घना शुभ्रा श्वेता सौभाग्यदायिनी ।

सुन्दरी सौभगा सौम्या स्वर्णाभा स्वर्गतिप्रदा ॥ १३॥

रिपुत्रासकरी रेखा शत्रुसंहारकारिणी ।

भामिनी च तथा माया स्तम्भिनी मोहिनी शुभा ॥ १४॥

रागद्वेषकरी रात्री रौरवध्वंसकारिणी ।

यक्षिणी सिद्धनिवहा सिद्धेशा सिद्धिरूपिणी ॥ १५॥

लङ्कापतिध्वंसकरी लङ्केशी रिपुवन्दिता ।

लङ्कानाथकुलहरा महारावणहारिणी ॥ १६॥

देवदानवसिद्धौघपूजिता परमेश्वरी ।

पराणुरूपा परमा परतन्त्रविनाशिनी ॥ १७॥

वरदा वरदाराध्या वरदानपरायणा ।

वरदेशप्रिया वीरा वीरभूषणभूषिता ॥ १८॥

वसुदा बहुदा वाणी ब्रह्मरूपा वरानना ।

बलदा पीतवसना पीतभूषणभूषिता ॥ १९॥

पीतपुष्पप्रिया पीतहारा पीतस्वरूपिणी ।

इति ते कथितं विप्र नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥ २०॥

यः पठेत्पाठयेद्वापि शृणुयाद्वा समाहितः ।

तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो याति नैवात्र संशयः ॥ २१॥

प्रभातकाले प्रयतो मनुष्यः पठेत्सुभक्त्या परिचिन्त्य पीताम् ।

द्रुतं भवेत्तस्य समस्तबुद्धिर्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः ॥ २२॥

॥ इति श्रीविष्णुयामले नारदविष्णुसंवादे श्रीबगलाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं समाप्तम् ॥
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नमो महाविधा बरदा , बगलामुखी दयाल |
स्तम्भन क्षण में करे , सुमरित अरिकुल काल ||

चौपाई

नमो नमो पीताम्बरा भवानी , बगलामुखी नमो कल्यानी | १|

भक्त वत्सला शत्रु नशानी , नमो महाविधा वरदानी |२ |

अमृत सागर बीच तुम्हारा , रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा |३ |

स्वर्ण सिंहासन पर आसीना , पीताम्बर अति दिव्य नवीना |४ |

स्वर्णभूषण सुन्दर धारे , सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे |५ |

तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मुद्गर पाश कराला |६ |

भैरव करे सदा सेवकाई , सिद्ध काम सब विघ्न नसाई |७ |

तुम हताश का निपट सहारा , करे अकिंचन अरिकल धारा |८ |

तुम काली तारा भुवनेशी ,त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी |९ |

छिन्नभाल धूमा मातंगी , गायत्री तुम बगला रंगी |१० |

सकल शक्तियाँ तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे |११ |

दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन |१२ |

दुष्टोच्चाटन कारक माता , अरि जिव्हा कीलक सघाता |१३ |

साधक के विपति की त्राता , नमो महामाया प्रख्याता |१४ |

मुद्गर शिला लिये अति भारी , प्रेतासन पर किये सवारी |१५ |

तीन लोक दस दिशा भवानी , बिचरहु तुम हित कल्यानी |१६ |

अरि अरिष्ट सोचे जो जन को , बुध्दि नाशकर कीलक तन को |१७ |

हाथ पांव बाँधहु तुम ताके,हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके |१८ |

चोरो का जब संकट आवे , रण में रिपुओं से घिर जावे |१९ |

अनल अनिल बिप्लव घहरावे , वाद विवाद न निर्णय पावे |२० |

मूठ आदि अभिचारण संकट . राजभीति आपत्ति सन्निकट |२१ |

ध्यान करत सब कष्ट नसावे , भूत प्रेत न बाधा आवे |२२ |

सुमरित राजव्दार बंध जावे ,सभा बीच स्तम्भवन छावे |२३ |

नाग सर्प ब्रर्चिश्रकादि भयंकर , खल विहंग भागहिं सब सत्वर |२४ |

सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मूलच्चाटन कारी |२५ |

स्त्री पुरुष राज सम्मोहक , नमो नमो पीताम्बर सोहक |२६ |

तुमको सदा कुबेर मनावे , श्री समृद्धि सुयश नित गावें |२७ |

शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता , दुःख दारिद्र विनाशक माता |२८ |

यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता , शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता | २९ |

पीताम्बरा नमो कल्यानी , नमो माता बगला महारानी |३०|

जो तुमको सुमरै चितलाई ,योग क्षेम से करो सहाई |३१ |

आपत्ति जन की तुरत निवारो , आधि व्याधि संकट सब टारो |३२ |

पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूँ निहोरी |३३ |

मैं कुपुत्र अति निवल उपाया , हाथ जोड़ शरणागत आया |३४ |

जग में केवल तुम्हीं सहारा, सारे संकट करहुँ निवारा |३५|

नमो महादेवी हे माता , पीताम्बरा नमो सुखदाता |३६ |

सोम्य रूप धर बनती माता , सुख सम्पत्ति सुयश की दाता |३७ |

रोद्र रूप धर शत्रु संहारो , अरि जिव्हा में मुद्गर मारो |३८|

नमो महाविधा आगारा,आदि शक्ति सुन्दरी आपारा |३९ |

अरि भंजक विपत्ति की त्राता , दया करो पीताम्बरी माता | ४० |

दोहा

रिद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं , अरि समूल कुल काल |

मेरी सब बाधा हरो , माँ बगले तत्काल ||

बगुलामुखी यन्त्र

आज के इस भागदौड़ के युग में श्री बगलामुखी यंत्र की साधना अन्य किसी भी साधना से अधिक उपयोगी है। यह एक परीक्षित और अनुभवसिद्ध तथ्य है। इसे गले में पहनने के साथ-साथ पूजा घर में भी रख सकते हैं। इस यंत्र की पूजा पीले दाने, पीले वस्त्र, पीले आसन पर बैठकर निम्न मंत्र को प्रतिदिन जप करते हुए करनी चाहिए। अपनी सफलता के लिए कोई भी व्यक्ति इस यंत्र का उपयोग कर सकता है। इसका वास्तविक रूप में प्रयोग किया गया है। इसे अच्छी तरह से अनेक लोगों पर उपयोग करके देखा गया है।

शास्त्रानुसार और वरिष्ठ साधकों के अनुभव के अनुसार  जिस घर में यह महायंत्र स्थापित होता है, उस घर पर कभी भी शत्रु या किसी भी प्रकार की विपत्ति  हावी नहीं हो सकती। न उस घर के किसी सदस्य पर आक्रमण हो सकता है, न ही उस परिवार में किसी की अकाल मृत्यु हो सकती है। इसीलिए इसे महायंत्र की संज्ञा दी गई है।  इससे दृश्य/अदृश्य बाधाएं समाप्त होती हैं। यह यंत्र अपनी पूर्ण प्रखरता से प्रभाव दिखाता है। उसके शारीरिक और मानसिक रोगों तथा ऋण, दरिद्रता आदि से उसे मुक्ति मिल जाती है। वहीं उसकी पत्नी और पुत्र सही मार्ग पर आकर उसकी सहायता करते हैं। उसके विश्वासघाती मित्र और व्यापार में साझीदार उसके अनुकूल हो जाते हैं।

 शत्रुओं के शमन (चाहे बाहरी हो या घरेलू कलह , दरिद्रता या शराब / नशे व्यसन रूप में भीतरी शत्रु ),रोजगार या व्यापार आदि में आनेवाली बाधाओं से मुक्ति, मुकदमे में सफलता के लिए , टोने टोटकों के प्रभाव से बचाव आदि के लिए किसी साधक के द्वारा सिद्ध मुहूर्त में निर्मित, बगलामुखी तंत्र से अभिसिंचित तथा प्राण प्रतिष्ठित श्री बगलामुखी यंत्र घर में स्थापित करना चाहिए या कवच रूप में धारण करना चाहिए।

बगलामुखी हवन

 १)  वशीकरण : मधु, घी और शर्करा मिश्रित तिल से किया जाने वाला हवन (होम) मनुष्यों को वश में करने वाला माना गया है। यह हवन आकर्षण बढ़ाता है।

२) विद्वेषण : तेल से सिक्त नीम के पत्तों से किया जाने वाला हवन विद्वेष दूर करता है।

३) शत्रु नाश : रात्रि में श्मशान की अग्नि में कोयले, घर के धूम, राई और माहिष गुग्गल के होम से शत्रु का शमन होता है।

४) उच्चाटन : गिद्ध तथा कौए के पंख, कड़वे तेल, बहेड़े, घर के धूम और चिता की अग्नि से होम करने से साधक के शत्रुओं को उच्चाटन लग जाता है।

५) रोग नाश : दूब, गुरुच और लावा को मधु, घी और शक्कर के साथ मिलाकर होम करने पर साधक सभी रोगों को मात्र देखकर दूर कर देता है।

६ ) मनोकामना पूर्ति : कामनाओं की सिद्धि के लिए पर्वत पर, महावन में, नदी के तट पर या शिवालय में एक लाख जप  करें।

७) विष नाश / स्तम्भन :

एक रंग की गाय के दूध में मधु और शक्कर मिलाकर उसे तीन सौ मंत्रांे से अभिमंत्रित करके पीने से सभी विषों की शक्ति समाप्त हो जाती है और साधक शत्रुओं की शक्ति तथा बुद्धि का स्तम्भन करने में सक्षम होता है।

अन्य किसी जानकारी , समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

जय माँ पीताम्बरा
।।जय श्री राम।।
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