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Saturday, 26 August 2017

Rishi panchami 2017 ऋषि पंचमी 2017

श्री गणेश प्रकटोत्सव "ऋषि पंचमी" की शुभकामनाएं

भगवान विष्णु द्वारा वर्णित श्रीगणेश का नामाष्टक स्तोत्र

ब्रह्मवैवर्तपुराण के गणपतिखण्ड (४४।८७-९८) में श्रीगणेश के नामाष्टक स्तोत्र का भगवान विष्णु ने पार्वतीजी को वर्णन किया है। यह स्तोत्र सभी स्तोत्रों का सारभूत और सम्पूर्ण विघ्नों का निवारण करने वाला है।

 भगवान विष्णु ने मां पार्वती से कहा–तुम्हारे पुत्र के गणेश, एकदन्त, हेरम्ब, विघ्ननायक, लम्बोदर, शूर्पकर्ण, गजवक्त्र और गुहाग्रज–ये आठ नाम हैं।

इन आठ नामों का अर्थ सुनो–

ज्ञानार्थवाचको गश्च णश्च निर्वाणवाचक:।
तयोरीशं परं ब्रह्म गणेशं प्रणमाम्यहम्।।

’ग’ ज्ञानार्थवाचक और ‘ण’ निर्वाणवाचक है। इन दोनों (ग+ण) के जो ईश हैं; उन परमब्रह्म ‘गणेश’ को मैं प्रणाम करता हूँ।

एकशब्द: प्रधानार्थो दन्तश्च बलवाचक:।
बलं प्रधानं सर्वास्मादेकदन्तं नमाम्यहम्।।

‘एक’ शब्द प्रधानार्थक है और ‘दन्त’ बलवाचक है; अत: जिनका बल सबसे बढ़ कर है; उन ‘एकदन्त’ को मैं नमस्कार करता हूँ।

दीनार्थवाचको हेश्च रम्ब: पालकवाचक:।
दीनानां परिपालकं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्।।

‘हे’ दीनार्थवाचक और ‘रम्ब’ पालक का वाचक है; अत: दीनों का पालन करने वाले ‘हेरम्ब’ को मैं शीश नवाता हूँ।

विपत्तिवाचको विघ्नो नायक: खण्डनार्थक:।
विपत्खण्डनकारकं नमामि विघ्ननायकम्।।

‘विघ्न’ विपत्तिवाचक और ‘नायक’ खण्डनार्थक है, इस प्रकार जो विपत्ति के विनाशक हैं; उन ‘विघ्ननायक’ को मैं अभिवादन करता हूँ।

विष्णुदत्तैश्च नैवेद्यर्यस्य लम्बोदरं पुरा।
पित्रा दत्तैश्च विविधैर्वन्दै लम्बोदरं च तम्।।

पूर्वकाल में विष्णु द्वारा दिये गये नैवेद्यों तथा पिता द्वारा समर्पित अनेक प्रकार के मिष्टान्नों के खाने से जिनका उदर लम्बा हो गया है; उन ‘लम्बोदर’ की मैं वन्दना करता हूँ।

शूर्पाकारौ च यत्कर्णौं विघ्नवारणकारणौ।
सम्पदौ ज्ञानरूपौ च शूर्पकर्णं नमाम्यहम्।।

जिनके कर्ण शूर्पाकार, विघ्न-निवारण करने वाले, सम्पदा के दाता और ज्ञानरूप हैं; उन ‘शूर्पकर्ण’ को मैं सिर झुकाता हूँ।

विष्णुप्रसादपुष्पं च यन्मूर्ध्नि मुनिदत्तकम्।
तद् गजेन्द्रवक्त्रयुक्तं गजवक्त्रं नमाम्यहम्।।

जिनके मस्तक पर मुनि द्वारा दिया गया विष्णु का प्रसादरूप पुष्प वर्तमान है और जो गजेन्द्र के मुख से युक्त हैं; उन ‘गजवक्त्र’ को मैं नमस्कार करता हूँ।

गुहस्याग्रे च जातोऽयमाविर्भूतो हरालये।
वन्देगुहाग्रजं देवं सर्वदेवाग्रपूजितम्।।

जो गुह (स्कन्द) से पहले जन्म लेकर शिव-भवन में आविर्भूत हुए हैं तथा समस्त देवगणों में जिनकी अग्रपूजा होती है; उन ‘गुहाग्रज’ देव की मैं वन्दना करता हूँ।

एतन्नामाष्टकं दुर्गे नामभि: संयुतं परम्।
पुत्रस्य पश्य वेदे च तदा कोपं तथा कुरु।।

दुर्गे! अपने पुत्र के नामों से संयुक्त इस उत्तम नामाष्टक स्तोत्र को पहले वेद में देख लो, तब ऐसा क्रोध करो।

नामाष्टक स्तोत्र के पाठ का फल

एतन्नामाष्टकं स्तोत्रं नानार्थसंयुतं शुभम्।
त्रिसंध्यं य: पठेन्नित्यं स सुखी सर्वतो जयी।।
ततो विघ्ना: पलायन्ते वैनतेयाद् यथोरगा:।
गणेश्वरप्रसादेन महाज्ञानी भवेद् ध्रुवम्।।
पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्यार्थी विपुलां स्त्रियम्।
महाजड: कवीन्द्रश्च विद्यावांश्च भवेद् ध्रुवम्।।

जो मनुष्य गणेश के नामों के अर्थ वाले इस स्तोत्र का तीनों संध्याओं के समय पाठ करता है, वह सुखी रहता है और उसे सभी कार्यों में विजय मिलती है। उसके पास से विघ्न उसी तरह से भाग जाते हैं जैसे गरुड़ के पास से सर्प। भगवान गणेश की कृपा से वह ज्ञानी हो जाता है। पुत्र की इच्छा रखने वाले को पुत्र, पत्नी की कामना रखने वाले को उत्तम पत्नी मिल जाती है। मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान और श्रेष्ठ कवि बन जाता है।

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।।जय श्री राम ।।

Abhishek B. Pandey

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