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Saturday, 26 August 2017

Rishi panchami 2017 ऋषि पंचमी 2017

श्री गणेश प्रकटोत्सव "ऋषि पंचमी" की शुभकामनाएं

भगवान विष्णु द्वारा वर्णित श्रीगणेश का नामाष्टक स्तोत्र

ब्रह्मवैवर्तपुराण के गणपतिखण्ड (४४।८७-९८) में श्रीगणेश के नामाष्टक स्तोत्र का भगवान विष्णु ने पार्वतीजी को वर्णन किया है। यह स्तोत्र सभी स्तोत्रों का सारभूत और सम्पूर्ण विघ्नों का निवारण करने वाला है।

 भगवान विष्णु ने मां पार्वती से कहा–तुम्हारे पुत्र के गणेश, एकदन्त, हेरम्ब, विघ्ननायक, लम्बोदर, शूर्पकर्ण, गजवक्त्र और गुहाग्रज–ये आठ नाम हैं।

इन आठ नामों का अर्थ सुनो–

ज्ञानार्थवाचको गश्च णश्च निर्वाणवाचक:।
तयोरीशं परं ब्रह्म गणेशं प्रणमाम्यहम्।।

’ग’ ज्ञानार्थवाचक और ‘ण’ निर्वाणवाचक है। इन दोनों (ग+ण) के जो ईश हैं; उन परमब्रह्म ‘गणेश’ को मैं प्रणाम करता हूँ।

एकशब्द: प्रधानार्थो दन्तश्च बलवाचक:।
बलं प्रधानं सर्वास्मादेकदन्तं नमाम्यहम्।।

‘एक’ शब्द प्रधानार्थक है और ‘दन्त’ बलवाचक है; अत: जिनका बल सबसे बढ़ कर है; उन ‘एकदन्त’ को मैं नमस्कार करता हूँ।

दीनार्थवाचको हेश्च रम्ब: पालकवाचक:।
दीनानां परिपालकं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्।।

‘हे’ दीनार्थवाचक और ‘रम्ब’ पालक का वाचक है; अत: दीनों का पालन करने वाले ‘हेरम्ब’ को मैं शीश नवाता हूँ।

विपत्तिवाचको विघ्नो नायक: खण्डनार्थक:।
विपत्खण्डनकारकं नमामि विघ्ननायकम्।।

‘विघ्न’ विपत्तिवाचक और ‘नायक’ खण्डनार्थक है, इस प्रकार जो विपत्ति के विनाशक हैं; उन ‘विघ्ननायक’ को मैं अभिवादन करता हूँ।

विष्णुदत्तैश्च नैवेद्यर्यस्य लम्बोदरं पुरा।
पित्रा दत्तैश्च विविधैर्वन्दै लम्बोदरं च तम्।।

पूर्वकाल में विष्णु द्वारा दिये गये नैवेद्यों तथा पिता द्वारा समर्पित अनेक प्रकार के मिष्टान्नों के खाने से जिनका उदर लम्बा हो गया है; उन ‘लम्बोदर’ की मैं वन्दना करता हूँ।

शूर्पाकारौ च यत्कर्णौं विघ्नवारणकारणौ।
सम्पदौ ज्ञानरूपौ च शूर्पकर्णं नमाम्यहम्।।

जिनके कर्ण शूर्पाकार, विघ्न-निवारण करने वाले, सम्पदा के दाता और ज्ञानरूप हैं; उन ‘शूर्पकर्ण’ को मैं सिर झुकाता हूँ।

विष्णुप्रसादपुष्पं च यन्मूर्ध्नि मुनिदत्तकम्।
तद् गजेन्द्रवक्त्रयुक्तं गजवक्त्रं नमाम्यहम्।।

जिनके मस्तक पर मुनि द्वारा दिया गया विष्णु का प्रसादरूप पुष्प वर्तमान है और जो गजेन्द्र के मुख से युक्त हैं; उन ‘गजवक्त्र’ को मैं नमस्कार करता हूँ।

गुहस्याग्रे च जातोऽयमाविर्भूतो हरालये।
वन्देगुहाग्रजं देवं सर्वदेवाग्रपूजितम्।।

जो गुह (स्कन्द) से पहले जन्म लेकर शिव-भवन में आविर्भूत हुए हैं तथा समस्त देवगणों में जिनकी अग्रपूजा होती है; उन ‘गुहाग्रज’ देव की मैं वन्दना करता हूँ।

एतन्नामाष्टकं दुर्गे नामभि: संयुतं परम्।
पुत्रस्य पश्य वेदे च तदा कोपं तथा कुरु।।

दुर्गे! अपने पुत्र के नामों से संयुक्त इस उत्तम नामाष्टक स्तोत्र को पहले वेद में देख लो, तब ऐसा क्रोध करो।

नामाष्टक स्तोत्र के पाठ का फल

एतन्नामाष्टकं स्तोत्रं नानार्थसंयुतं शुभम्।
त्रिसंध्यं य: पठेन्नित्यं स सुखी सर्वतो जयी।।
ततो विघ्ना: पलायन्ते वैनतेयाद् यथोरगा:।
गणेश्वरप्रसादेन महाज्ञानी भवेद् ध्रुवम्।।
पुत्रार्थी लभते पुत्रं भार्यार्थी विपुलां स्त्रियम्।
महाजड: कवीन्द्रश्च विद्यावांश्च भवेद् ध्रुवम्।।

जो मनुष्य गणेश के नामों के अर्थ वाले इस स्तोत्र का तीनों संध्याओं के समय पाठ करता है, वह सुखी रहता है और उसे सभी कार्यों में विजय मिलती है। उसके पास से विघ्न उसी तरह से भाग जाते हैं जैसे गरुड़ के पास से सर्प। भगवान गणेश की कृपा से वह ज्ञानी हो जाता है। पुत्र की इच्छा रखने वाले को पुत्र, पत्नी की कामना रखने वाले को उत्तम पत्नी मिल जाती है। मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान और श्रेष्ठ कवि बन जाता है।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवम कुंडली विश्लेषण के लिए के लिए सम्पर्क कर सकते हैँ।

।।जय श्री राम ।।

Abhishek B. Pandey

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Friday, 25 August 2017

Ganesh Chaturthi 2017 गणेश चतुर्थी 2017 विशेष

गणेश चतुर्थी 2017 विशेष

प्रत्येक शुभ कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की ही पूजा की जाती है। देवता भी अपने कार्यों की बिना किसी विघ्न से पूरा करने के लिए गणेश जी की अर्चना सबसे पहले करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि देवगणों ने स्वयं उनकी अग्रपूजा का विधान बनाया है। सनातन एवं हिन्दू शास्त्रों में भगवान गणेश जी को, विघ्नहर्ता अर्थात सभी तरह की परेशानियों को खत्म करने वाला बताया गया है।

 पुराणों में गणेशजी की भक्ति शनि सहित सारे ग्रहदोष दूर करने वाली भी बताई गई हैं। हर बुधवार के शुभ दिन गणेशजी की उपासना से व्यक्ति का सुख-सौभाग्य बढ़ता है और सभी तरह की रुकावटे दूर होती हैं।

पूजा विधि

प्रातः काल स्नान ध्यान आदि से सुद्ध होकर सर्व प्रथम ताम्र पत्र के श्री गणेश यन्त्र को साफ़ मिट्टी, नमक, निम्बू  से अच्छे से साफ़ किया जाए।  पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की और मुख कर के आसान पर विराजमान हो कर सामने श्री गणेश यन्त्र की स्थापना करें।



शुद्ध आसन में बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि गणेश भगवान को समर्पित कर, इनकी आरती की जाती है।

अंत में भगवान गणेश जी का स्मरण कर

ॐ गं गणपतये नमः

का मंत्र का जाप करना चाहिए।

बुधवार को यहां बताए जा रहे ये छोटे-छोटे उपाय करने से व्यक्ति को लाभ प्राप्त होता है–

=◆बिगड़े काम बनाने के लिए बुधवार को गणेश मंत्र का स्मरण करें-

त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय। नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।

कम से कम 21 बार इस मंत्र का जप जरुर होना चाहिए।

=◆ग्रह दोष और शत्रुओं से बचाव के लिए-

गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।

नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।

धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।

गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम्।।

इसमें भगवान गणेश जी के बारह नामों का स्मरण किया गया है। इन नामों का जप अगर मंदिर में बैठकर किया जाए तो यह उत्तम बताया जाता है। जब पूरी पूजा विधि हो जाए तो कम से कम 11 बार इन नामों का जप करना शुभ होता है।

परिवार और व्यक्ति के दुःख दूर करते हैं यह सरल उपाय

=◆ घर में सफेद रंग के गणपति की स्थापना करने से समस्त प्रकार की तंत्र शक्ति का नाश होता है।

=◆धन प्राप्ति के लिए बुधवार के दिन श्री गणेश को घी और गुड़ का भोग लगाएं। थोड़ी देर बाद घी व गुड़ गाय को खिला दें। ये उपाय करने से धन संबंधी समस्या का निदान हो जाता है।

=◆परिवार में कलह कलेश हो तो बुधवार के दिन दूर्वा के गणेश जी की प्रतिकात्मक मूर्ति बनवाएं। इसे अपने घर के देवालय में स्थापित करें और प्रतिदिन इसकी विधि-विधान से पूजा करें। घर के मुख्य दरवाजे पर गणेशजी की प्रतिमा लगाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। कोई भी नकारात्मक शक्ति घर में प्रवेश नहीं कर पाती है।

=◆यदि किसी की कुंडली में बुध ग्रह अशुभ स्थिति में हो

पुरानी मान्यता है कि श्री गणेश की पूजा का विशेष दिन है बुधवार। साथ ही, इस दिन बुध ग्रह के निमित्त भी पूजा की जाती है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो बुधवार को ऐसे करें श्री गणेश का पूजन ;श्रीगणेश को सिंदूर, चंदन, यज्ञोपवीत, दूर्वा, लड्डू या गुड़ से बनी मिठाई का भोग लगाएं। धूप व दीप लगाकर आरती करें। पूजन में इस मंत्र का जप करें-

मंत्र-

प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम्।

तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयो: शिवाय।।

प्रातर्भजाम्यभयदं खलु भक्तशोकदावानलं गणविभुं वरकुञ्जरास्यम्।

अज्ञानकाननविनाशनहव्यवाहमुत्साहवर्धनमहं सुतमीश्वरस्य।।

हिन्दू धर्मशास्त्रों के मुताबिक कलियुग में भगवान गणेश के धूम्रकेतु रूप की पूजा की जाती है। जिनकी दो भुजाएं है। किंतु मनोकामना सिद्धि के लिये बड़ी आस्था से भगवान गणेश का चार भुजाधारी स्वरूप पूजनीय है। जिनमें से एक हाथ में अंकुश, दूसरे हाथ में पाश, तीसरे हाथ में मोदक व चौथे में आशीर्वाद है। इनमें खासतौर पर श्री गणेश के हाथ में मोदक प्रतीक रूप में जीवन से जुड़े संदेश देता है। बुधवार के स्वामी बुध ग्रह भी है, जो बुद्धि के कारक भी माने जाते हैं। इस तरह बुद्धि प्रधानता वाले दिवस पर बुद्धि के दाता श्री गणेश की मोदक का भोग लगाकर पूजा प्रखर बुद्धि व संकल्प के साथ सुख-सफलता व शांति की राह पर आगे बढऩे की प्रेरणा व ऊर्जा से भर देती है।

=◆ज्योतिषीय मापदंड के अनुरूप दूर्वा छाया गृह केतु को संबोधित करती है। गणपति जी धुम्रवर्ण गृह केतु के अधिष्ट देवता है तथा केतु गृह से पीड़ित जातकों को गणेशजी को 11 अथवा 21 दूर्वा का मुकुट बनाकर गणेश कि मूर्ति/प्रतिमा पर जातक बुधवार कि सायं 4 से 6 बजे के बीच सूर्यास्त पूर्व गणेशजी को अर्पित करना हितकारी रहता है।

=◆बिगड़े काम बनाने के लिए बुधवार को गणेश मंत्र का स्मरण करें-

त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय। नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।

=◆सन्तान प्राप्ति के लिए

संतान गणपति स्तोत्र

नमो$स्तु गणनाथाय सिद्धी बुद्धि युताय च।
सर्वप्रदाय देवाय पुत्र वृद्धि प्रदाय च।।
गुरू दराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते।
गेाप्याय गोपिताशेष भुवनाय चिदात्मनें।।
विश्व मूलाय भव्याय विश्वसृष्टि करायते।
नमो नमस्ते सत्याय सत्य पूर्णाय शुण्डिनें ।।
एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नम : ।
प्रपन्न जन पालाय प्रणतार्ति विनाशिने ।।
शरणं भव देवेश सन्तति सुदृढ़ां कुरु।
भविष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गण नायक।।
ते सर्वे तव पूजार्थ विरता : स्यु : वरो मत : ।
पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्व सिद्धि प्रदायकम्।।

श्रद्धा, भक्ति और विश्वास के साथ इस स्तोत्र का प्रयोग करने से सन्तान सुख की अवश्य प्राति होती है। जिन्हें कन्या रत्न है अौर पुत्र रत्न नही है तो उपरोक्त विधि से स्तोत्र का प्रयोग करनें से पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाती है।
श्री गणेशाष्टकम्

मित्रों, ये भगवान गणेश का अतिप्रिय गणेशष्टक स्तोत्र है, इसके विषय मे भगवान गणेश स्वयम कहते हैं कि इसका जप 3 दिन तक त्रिसंध्या में करने वाला सभी मनोरथ पूर्ण करता है।

इस अष्टक स्तोत्र का चतुर्थी तिथि से आठ दिन आठ बार पाठ करने से अष्टसिद्धि का पात्र हो जाता है।

दस दिनों तक पाठ करने से मृत्यदंड भी टल जाता है।

इसके पाठ से विद्यार्थी को विद्या, पुत्रार्थी को पुत्र और सुख की इच्छा रखने वाले को समस्त वैभव प्राप्त होते हैं।

सर्वे उचु:

यतोsनंतशक्तेरनंताश्च जीवा यतो निर्गुणादप्रमेया गुणास्ते ।
यतो भाति सर्वं त्रोधा भेदभिन्नं सदा तं गणेश नमामो भजाम: ॥१॥

यतश्चाविरासीज्जगत्सर्वमेतत्तथाsब्जासनो विश्वगो विश्वगोप्ता ।
तथेंद्रादयो देवसंघा मनुष्या: सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ॥२॥

यतो वह्निभानू भवो भूर्जलं च यत: सागराश्चंद्रमा व्योम वायु: ।
यत: स्थावरा जंगमा वृक्षसंघा सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ॥३॥

यतो: दानवा: किन्नरा यक्षसंघा यतश्चारणा वारणा: श्वापदाश्च।
यत: पक्षिकीटा यतो वीरूधश्च सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ॥४॥

यतो बुद्धिरजाननाशो मुमुक्षोर्यत: संपदो भक्तसंतोषिका: स्यु: ।
यतो विध्ननाशो यत: कार्यसिद्धि: सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ॥५॥

यत: पुत्रसंपद्यतो वांछितार्थो यतोsभक्तविध्नास्तथाsनेकरूपा: ।
यत: शोकमोहौ यत: काम एव सदा तं गणेशं नमामो भजाम:॥६॥

.

यतोsनंतशक्ति: स शेषो बभूव धराधारणेsनेकरूपे च शक्त: ।
यतोsनेकधा स्वर्गलोका हि नाना सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ॥७॥

.

यतो वेदवाचो विकुंठा मनोभि: सदा नेति नेतीति यत्ता गृणन्ति ।
परब्रह्मरूपं चिदानंदभूतं सदा तं गणेशं नमामो भजाम: ॥८॥

श्रीगणेश उवाच ।

पुनरूचे गणाधीश: स्तोत्रमेतत्पठन्नर: ।
त्रिसंध्यं त्रिदिनं तस्य सर्वं कार्यं भवाष्यति ॥९॥

यो जपेदष्टदिवसं श्लोकाष्टकमिदं शुभम् ।
अष्टवारं चतुर्थ्यां तु सोsष्टसिद्धिरवानप्नुयात् ॥१०॥

य: पठेन्मासमात्रं तु दशवारं दिने दिने ।
स मोचयेद्वन्धगतं राजवध्यं न संशय: ॥११॥

विद्याकामो लभेद्वद्यां पुत्रार्थी पुत्रमापनुयात् ।
वांछितांल्लभते सर्वानेकविंशतिवारत: ॥१२॥

यो जपेत्परया भक्तया गजाननपरो नर: ।
एवमुक्तवा ततो देवश्चांतर्धानं गत: प्रभु: ॥१३॥

.

इति श्रीगणेशपुराणे उपासनाखण्डे श्रीगणेशाष्टकं संपूर्णम् ॥

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Saturday, 19 August 2017

स्वास्थ्य और धन के लिए श्वेतार्क गणपति / Natural Shwetark Ganapati for Health & wealth ( The Tantrik Herbs -4 )

स्वास्थ्य और धन के लिए श्वेतार्क गणपति / Natural Shwetark Ganapati for Health & wealth ( The Tantrik Herbs -4 )

(Sunday, 29 December 2013 की मूल पोस्ट मेरे ब्लॉग http://jyotish-tantra.blogspot.com से)

मित्रों,
कल 20 अगस्त 2017 को रवि- पुष्य नक्षत्र का विशेष संयोग पड़ रहा है जो सैन्य काल 5:47 बजे तक रहेगा। इस विशेष दिन आप भी श्वेतार्क गणपति को प्राप्त कर और पूजन कर विशेष लाभ ले सकते हैं।

भगवान गणेश के श्वेतार्क रूप की साधना कर अक्षय लक्ष्मी, विद्या बुद्धि, और ऋण नाश और ऊपरी बाधाओं से मुक्ति पा सकते हैं। ऐसी आस्था है कि इसकी जड़ को पुष्य नक्षत्र में विशेष वैदिक विधि के साथ आमंत्रित कर जिस घर में स्थापित किया जाता है वहाँ स्थायी रूप से लक्ष्मी का वास बना रहता है और धन धान्य की कमी नहीं रहती।

श्वेतार्क वृक्ष से सभी परिचित हैं। इसे सफेद आक, मदार, श्वेत आक, राजार्क, आदि नामों से जाना जाता है। सफेद फूलों वाले इस वृक्ष को गणपति का स्वरूप माना जाता है। इसलिए प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जहां भी यह पौधा रहता है, वहां इसकी पूजा की जाती है। इससे वहां किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती। वैसे इसकी पूजा करने से साधक को काफी लाभ होता है।

अगर रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र में विधिपूर्वक इसकी जड़ को खोदकर ले आएं और पूजा करें, तो कोई भी विपत्ति जातकों को छू भी नहीं सकती। ऐसी मान्यता है कि इस जड़ के दर्शन मात्र से भूत-प्रेत जैसी बाधाएं पास नहीं फटकती।

अगर इस पौधे की टहनी तोड़कर सुखा लें और उसकी कलम बनाकर उससे यंत्र का निर्माण करें, तो यह यंत्र तत्काल प्रभावशाली हो जाएगा।इसकी कलम में देवी सरस्वती का निवास माना जाता है।

 वैसे तो इस जड़ के प्रभाव से सारी विपत्तियां समाप्त हो जाती हैं । इसकी जड़ में दस से बारह वर्ष की आयु में भगवान गणेश की आकृति का निर्माण होता है।

श्वेतार्क की कथा/ किंवदंती:

कहा जाता है कि जब भस्मासुर दैत्य ने भगवान शिव से अपने हाथ से सब भस्म करने का वरदान पाया तो उसने भगवान शिव पर भी अपना हाथ रख उन्हें भस्म करने का प्रयत्न किया। तब भगवान शिव किसी प्रकार वहां से बचकर निकल गए किन्तु भस्मासुर उनका पीछा करता रहा। ऐसी स्थिति में वे एक ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां श्वेतार्क के पौधे ही थे अन्य कोई स्थान नहीं तब भगवान शिव ने एक भँवरे का रूप धारण किया और श्वेतार्क के पेड़ में छिपके स्वयम को भस्मासुर से बचाया उसी दौरान भीषण गर्मी के कारण उनके शरीर से पसीने की कुछ बूंदे गिरीं जो श्वेतार्क की जड़ पर पड़ी और उन बूंदों ने उनके पुत्र यानी भगवान गणेश का रूप लिया।
तबसे श्वेतार्क में स्वयम ही भगवान गणेश की आकृति उभरने लगी और श्वेतार्क का प्राकृतिक गणपति रूप में पूजन शुरू हुआ।

**श्वेतार्क की जड़ को ही भगवान गणेश का स्वरूप माना जाता है इसलिए विधिपूर्वक जड़ निकाल कर उसका पूजन ही सर्वश्रेष्ठ है। जड़ में भगवान की साक्षात मूर्ति बहुत किस्मत वालो को ही मिलती है किंतु फिर भी जड़ में भगवान गणेश की आकृति अवश्य ही झलकती है।

** यदि इतनी पुरानी जड़ न मिले और उसमें कहीं भी आकृति न झलकेऔर आप मूर्ति ही बनवाना चाहे तो वैदिक विधि पूर्वक इसकी जड़ निकाल कर इस जड़ की लकड़ी में सोने या चाँदी की सुई या औजारों से से गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर बनाएं।
यह प्रतिमा आपके अंगूठे से बड़ी नहीं होनी चाहिए।

**(एक विशेष बात की मूर्ति निर्माण में लोहे के औजारों का प्रयोग न करें अन्यथा पूर्ण फल प्राप्त नहीं होगा, अपितु मुसीबत भी आ सकती है)

प्राप्त करने की सामान्य विधि:

इसके लिए आज शाम को एक लोटा जल, अक्षत, रोली-कुमकुम,एक सुपारी, लौंग, इलायची और कुछ मिठाई या बताशे लेकर श्वेतार्क के पौधे के समीप जाएं फिर जल और सब सामग्री अर्पित कर प्रार्थना करें

"है दिव्य वनस्पति देव कल प्रातः मैं अपने कल्याणार्थ आपको लेने आऊंगा आप मेरे मनोरथ पूर्ण करें।"

फिर रविवार प्रातः काल सूर्योदय पूर्व जाकर एक बार पुनः नमन और प्रार्थना कर पौधा निकाल लें।

 इसकी विधिवत पूजा करें। पूजन में लाल कनेर के पुष्प अवश्य इस्तेमाल में लाएं। एक लकड़ी के चौके या पाटे पर एक पीला वस्त्र बिछाएं । उस पर एक प्लेट रखे वव प्लेट पर कुमकुम या सिंदूर से अष्टदल बनायें इसके ऊपर फूल बिछाकर आसन दें व श्वेतार्क गणपति को विराजमान करें फिर पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करें और इस मंत्र का 1 माला जप करें

“ॐ पंचाकतम् ॐ अंतरिक्षाय स्वाहा”

से पूजन करें और इसके पश्चात इस मंत्र

“ॐ ह्रीं पूर्वदयां ॐ ह्रीं फट् स्वाहा”

से 108 आहुति दें। लाल कनेर के पुष्प, शहद तथा शुद्ध गाय के घी से आहुति देने का विधान है।

इसके बाद गणपति कवच का तीन बार पाठ करें अथार्वशिर्ष का 11 पाठ करें ततपश्चात11 माला जप नीचे लिखे मँत्र का करेँ और प्रतिदिन कम से 1 माला करेँ

"ॐ गँ गणपतये नमः"

का जप करें।अब

“ॐ ह्रीं श्रीं मानसे सिद्धि करि ह्रीं नमः”

मंत्र बोलते हुए लाल कनेर के पुष्पों को नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें।

वैसे आयुर्वेद मेँ इसका प्रयोग चर्म रोगों, पाचन समस्याओं, पेट के रोगों, ट्यूमरों, जोड़ों के दर्द, घाव और दाँत के दर्द को दूरकरने में किया जाता है। इस पेड़ का दूध गंजापन दूर करने और बाल गिरने को रोकनेवाला है। इसके फूल, छाल और जड़ दमेऔर खाँसी को दूर करने वाले माने गए हैं।

धार्मिक दृष्टि से श्वेत आक को कल्प वृक्ष की तरह वरदायक वृक्ष माना गयाहै। श्रद्धा पूर्वक नतमस्तक होकर इस पौधे से कुछ माँगने पर यह अपनी जान देकर भी माँगने वाले की इच्छा पूरी करता है।

यह भी कहा गया है कि इसप्रकार की इच्छा शुद्ध होनी चाहिए। ऐसी आस्था भी है कि इसकी जड़ को पुष्य नक्षत्र में विशेष विधिविधान के साथ जिस घर में स्थापित किया जाता है वहाँ स्थायी रूप से लक्ष्मी का वास बना रहता है और धन धान्य की कमी नहीं रहती।

श्वेतार्क के ताँत्रिक, लक्ष्मी प्राप्ति, ऋण नाशक, जादू टोना नाशक, नज़र सुरक्षा के इतने प्रयोग हैँ कि पूरी किताब लिखी जा सकती है।

थोड़ी सी मेहनत कर आप भी अपने घर के आस पास या किसी पार्क आदि मेँ श्वेतार्क का पौधा प्राप्त कर सकते हैँ।

श्वेतार्क गणपति / श्वेतार्क मूल प्रयोग:-

(१) सफेद आक की जड़ रविपुष्य नक्षत्र में लाल कपड़े में लपेटकर सिंदूर मिश्रित चावल के आसन पर श्वेतार्क गणपति जी को विराजमान कर लें। हल्दी, चन्दन, धूप, दीप, नैवेद्य से देव की पूजा करें। नित्य गणपति स्तोत्र का पाठ किया करें, धन-धान्य का अभाव नहीं रहेगा।घर में सुख-शांति तथा समृद्धि बनी रहेगी। नित्य 11 दूर्वादल अर्पण कर श्रद्धापूर्वक गणपति जी का ध्यान किया करें, प्रत्येक कार्य में सफलता मिलेगी तथा सब प्रकार के विघ्नों से आपकी रक्षा होगी।

(२) सफेद आक की जड़ का गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक नित्य 'ऊँ गं गणपतये नम' मंत्र से पूजा करें, सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होगी तथा मनोवांछित कामनाएं पूर्ण होंगी।

(३) सिद्धी की इच्छा रखने वालोँ को 3 मास तक इसकी साधना करने से सिद्धी प्राप्त होती है।

(४) जिनके पास धन न रूकता हो या कमाया हुआ पैसा उल्टे सीधे कामोँ मेँ जाता हो उन्हेँ अपने घर मेँ श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए।

(५) जो लोग कर्ज मेँ डूबे हैँ उनके लिए कर्ज मुक्ति का इससे सरल अन्य कोई उपाय नही है।
11 या 21 दिन के अनुष्ठान से आर्थिक एवम पितृ ऋण का नाश होता है।

(६) दुकान में अलमारी या गल्ले में रखने से धनागम सुचारू रूप से चलता रहता है और व्यापर में न तो मंदी आती है न किसी विरोधी की बुरी नज़र या किये कराये का असर होता है।

(७) जो लोग ऊपरी बाधाओँ और रोग विशेष से ग्रसित हैँ इसकी पूजा से या ताबीज धारण करने से वायव्य बाधाओँ से तुरँत मुक्ति और स्वास्थ्य मेँ अप्रत्याशित लाभ पा सकते हैँ।

(८) जिनके बच्चोँ का पढ़ने मेँ मन न लगता हो वे इसकी स्थापना और पूजन कर या इसका ताबीज पहना कर बच्चोँ की एकाग्रता और सँयम बढ़ा सकते है।

(९) पुत्रकाँक्षी यानि पुत्र कामना करने वालोँ को इसके समक्ष गणपति पुत्रदा स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। संतान हीन स्त्रियों को श्वेतार्क ताबीज धारण करने से संतान प्राप्ति शीघ्र होती है

(१०) श्वेतार्क की जड़, गोरोचन तथा गोघृत में घिसकर तिलक किया करें, वशीकरण तथा सम्मोहन में इससे त्वरित फल मिलेगा।

(११) होलिका में श्वेतार्क की जड़ तथा छोटे से एक शंख की राख बनाकर रख लें। इससे नित्य तिलक किया करें, दुर्भिक्षों से रक्षा होगी।

(१२) श्वेतार्क से गणपति की प्रतिमा बनाकर घर में स्थापित करें।

(१३) श्वेतार्क की जड़, मूंगा, फिटकरी, लहसुन तथा मोर का पंख एक थैली में सिल लें। यह एक नजरबट्टू बन जाएगा। बच्चे के सोते समय चौंकना, डरना, रोना आदि में यह बहुत लाभदायक सिद्ध होगा।

(१४) श्वेतार्क की जड़ 'ऊँ नमो अग्नि रूपाय ह्रीं नमः' मंत्र जपकर पास रख लें, यात्रा में दुर्घटना का भय नहीं रहेगा।

(१५) पूर्णिमा की रात्रि सफेद आक की जड़ तथा रक्तगुंजा को बकरी के दूध में घिसकर तिलक करें और 'ऊँ नमः श्वेतगात्रे सर्वलोक वंशकरि दुष्टान वशं कुरू कुरू (अमुकं) में वशमानय स्वाहा' मंत्र का जप करें। अमुक के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम जप करें जिसको वश में करना है।

श्वेतार्क पौधे के प्रयोग:-

(१) श्वेतार्क का पौधा घर के मुख्य द्वार के बाहर इस प्रकार लगाना चाहिए कि घर से निकलते समय पौधा आपके बायीं तरफ हो।

(२) इसके पौधे को लाल पीले वस्त्र पहना कर नित्य जल देने एवं दीप जलाने से समृद्धि बढ़ती है।
मन्त्र- ॐ नमो विघ्नहराय गणपतये नमः।

(३)सफेद आक के फूलों से शिव पूजन करें, भोले बाबा की कृपा होगी।

(४)श्वेतार्क के नीचे बैठकर प्रतिदिन साधना करें, जल्दी फल मिलेगा।

(५)वृक्ष के नीचे बैठकर प्रतिदिन 'ऊँ गं गणपतये नमः' की एक माला जप करें, हर क्षेत्र में लाभ मिलेगा।

(६)श्मशान स्थित श्वेतार्क के नीचे गुरु सानिध्य में साधना करने से प्रेत एवं वीर की सिद्धि मात्र 7 दिनों में होती है।

(७) श्वेतार्क के पत्ते पर अपने शत्रु का नाम इसके ही दूध से लिखकर जमीन में दबा दिया करें, वह शांत रहेगा।

9. श्वेतार्क के फल से निकलने वाली रुई की बत्ती तिल के तेल के दीपक में जलाकर लक्ष्मी साधनाएँ करें, माँ की आप पर कृपा बनी रहेगी ।

(१०) इसके पत्ते पर भगवान राम का नाम सिंदूर से लिखकर इन पत्तों की माला बनाकर हनुमान जी को अर्पित करने से हनुमान जी की विशेष कृपा मिलती है।

(११) श्वेतार्क की रुई से दीप जलाकर हनुमान जी की साधना करने पर पितृ एवं दुष्ट ग्रहों की बाधाएं समाप्त होती हैं।

(१२) इसकी समिधा से भगवान गणपति, भगवान सूर्य और महामृत्युंजय मंत्र का हवन एक साथ करने से बड़े से बड़ा असाध्य रोग भी दूर हो जाता है।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान एवम कुंडली विश्लेषण के लिए के लिए सम्पर्क कर सकते हैँ।

।।जय श्री राम ।।

Abhishek B. Pandey
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Saturday, 12 August 2017

Tantrik amulet तन्त्रोक्त रक्षा कंकण


तन्त्रोक्त रक्षा कंकण

मित्रों,
रक्षा बंधन पर एक पोस्ट घूमती देखी वैदिक कंकण से सम्बंधित जिसमें दूर्वा, अक्षत, सरसों, केसर और चंदन से एक रक्षा सूत्र बनता है।

किन्तु इससे अधिक प्रभावी तन्त्रोक्त कंकण होता है जिसका वर्णन पुरुषोत्तम तन्त्र सहित कई तन्त्र ग्रन्थों में मिलता है। जिसमे भोजपत्र पर यन्त्र निर्माण और मन्त्र अभिमन्त्रण के साथ कुछ अन्य वस्तुओं के साथ अभिमन्त्रित कर तैयार किया जाता है।

विशेषतः छोटे बच्चों या ऐसे लोगों के लिए जिन्हें नज़र जल्दी लगती है, स्वप्न में भय लगता है, स्वास्थ्य सुचारू नहीं रहता।

कल संकष्टी चतुर्थी पर निर्मित तन्त्रोक्त कंकण।

।।जय श्री राम।।

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