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Friday, 1 April 2016

Mritsanjivani stotra मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम्

एवमाराध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयेश्वरम् |
मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ||१||

सारात्सारतरं पुण्यं गुह्यात्गुह्यतरं शुभम् |
महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकम् ||२||

समाहितमना भूत्वा शृणुश्व कवचं शुभम् |
शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ||३||

वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवित: |
मृत्युञ्जयो महादेव: प्राच्यां मां पातु सर्वदा ||४||

दधान: शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुज: प्रभु: |
सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ||५||

अष्टादशभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभु: |
यमरूपी महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु ||६||

खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवित: |
रक्षोरूपी महेशो मां नैऋत्यां सर्वदावतु ||७||

पाशाभयभुज: सर्वरत्नाकरनिषेवित: |
वरूणात्मा महादेव: पश्चिमे मां सदावतु ||८||

गदाभयकर: प्राणनायक: सर्वदागति: |
वायव्यां वारुतात्मा मां शङ्कर: पातु सर्वदा ||९||

शङ्खाभयकरस्थो मां नायक: परमेश्वर: |
सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्कर: प्रभु: ||१०||

शूलाभयकर: सर्वविद्यानामधिनायक: |
ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वर: ||११||

ऊर्ध्वभागे ब्रह्मरूपी विश्वात्माऽध: सदावतु |
शिरो मे शङ्कर: पातु ललाटं चन्द्रशेखर: ||१२||

भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु |
भ्रूयुग्मं गिरिश: पातु कर्णौ पातु महेश्वर: ||१३||

नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वज: |
जिव्हां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु ||१४||

मृत्युञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषण: |
पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम ||१५||

पञ्चवक्त्र: स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वर: |
नाभिं पातु विरूपाक्ष: पार्श्वो मे पार्वतिपति: ||१६||

कटद्वयं गिरिशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिप: |
गुह्यं महेश्वर: पातु ममोरु पातु भैरव: ||१७||

जानुनी मे जगद्धर्ता जङ्घे मे जगदंबिका |
पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्य: सदाशिव: ||१८||

गिरिश: पातु मे भार्या भव: पातु सुतान्मम |
मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायक: ||१९||

सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकाल: सदाशिव: |
एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानांच दुर्लभम् ||२०||

मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् |
सहस्त्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ||२१||

य: पठेच्छृणुयानित्यं श्रावयेत्सु समाहित: |
सकालमृत्यु निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ||२२||

हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ |
आधयोव्याधयस्तस्य न भवन्ति कदाचन ||२३||

कालमृत्युमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा |
अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तम: ||२४||

युद्धारम्भे पठित्वेदमष्टाविंशतिवारकम |
युद्धमध्ये स्थित: शत्रु: सद्य: सर्वैर्न दृश्यते ||२५||

न ब्रह्मादिनी चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै |
विजयं लभते देवयुद्धमध्येऽपि सर्वदा ||२६||

प्रातरूत्थाय सततं य: पठेत्कवचं शुभम् |
अक्षय्यं लभते सौख्यमिहलोके परत्र च ||२७||

सर्वव्याधिविनिर्मुक्त: सर्वरोगविवर्जित: |
अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिक: ||२८||

विचरत्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् |
तस्मादिदं महागोप्यं कवचं समुदाहृतम् ||२९||

मृतसञ्जीवनं नाम्ना दैवतैरपि दुर्लभम् |
मृतसञ्जीवनं नाम्ना दैवतैरपि दुर्लभम् ||३०||

|| इति वसिष्ठकृतं मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ||

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।।जय श्री राम।।

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