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Friday, 31 January 2020
Tuesday, 14 January 2020
मकर संक्रान्ति 2020 विशेष Makar sankranti 2020
मकर संक्रान्ति / उत्तरायण पर्व विशेष
(स्नान, दान और योग का पर्व)
=◆ तिल-गुड़ का दान ब्राह्मण को अवश्य दें,
उड़द, खिचड़ी, तिल गुड़, घी कम्बल आदि जरूरतमंद को।
सुख, शान्ति एवं समृध्दि की मंगलकामनाओं सहित आप सभी को मकर सक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सूर्य जिस राशि पर स्थित हो, उसे छोड़कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करे, उस समय का नाम संक्रान्ति है।
सूर्य बारह स्वरूप धारण करके बारह महीनों में बारह राशियों में संक्रमण करते रहते हैं; उनके संक्रमण से ही संक्रान्ति होती है। इस तरह वर्ष में बारह संक्रान्ति होती हैं किन्तु सबसे ज्यादा महत्व मकर-संक्रान्ति का है।
मकर-संक्रान्ति है देवताओं का प्रभातकाल।
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ‘मकर-संक्रान्ति’ कहलाता है। इस दिन सूर्य अपनी कक्षाओं में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं।
उत्तरायण को ‘देवताओं का दिन’ व दक्षिणायन को ‘देवताओं की रात’ कहा गया है। इस तरह मकर-संक्रान्ति देवताओं का प्रभातकाल है। इसको अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है।
मकर-संक्रान्ति से दिन बढ़ने लगता है और रात छोटी होने लगती है। इससे प्रकाश अधिक व अंधकार कम होने लगता है फलस्वरूप प्राणियों की चेतनता और कार्यक्षमता में वृद्धि होने लगती है।
मकर-संक्रान्ति पर गंगास्नान का महत्त्व?
माघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
ऐसा माना जाता है कि मकर-संक्रान्ति के दिन गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं; इसलिए मकर-संक्रान्ति के दिन गंगास्नान या नदियों में स्नान को अत्यन्त पुण्यदायी माना गया है।
मकर-संक्रान्ति के दिन दान का फल अक्षय होता है?
मकर संक्रान्ति में किए गए स्नान, तर्पण, दान और पूजन का फल अक्षय होता है। इससे मनुष्य सभी प्रकार के भोगों के साथ मोक्ष को प्राप्त होता है।
सूर्यनारायण का पूजन कर व्रत करने से सब प्रकार के पापों का नाश, आधि-व्याधि का नाश व सब प्रकार की हीनता और संकोच का अंत हो जाता है, साथ ही सुख-संपत्ति, संतान व सहानुभूति की प्राप्ति होती है।
संक्रान्तिकाल में ‘ॐ सूर्याय नम:’ या ‘ॐ नमो भगवते सूर्याय’ का जप और आदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ करना चाहिए। घी, बूरा व मेवा मिले तिलों से हवन कर अन्न-वस्त्र का दान देना चाहिए। संक्रान्ति को रात्रि में स्नान व दान नहीं करना चाहिए।
सूर्य स्तवराज स्तोत्र :
सूर्य की स्तुति तो सभी करते हैं। लेकिन भगवान सूर्य का एक ऐसा कल्याणमय स्तोत्र, जो सब स्तुतियों का सारभूत है। जो भगवान भास्कर के पवित्र, शुभ एवं गोपनीय नाम हैं।
विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोक प्रकाशकः श्री माँल्लोक चक्षुर्मुहेश्वरः॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।
एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा रवेः॥
'विकर्तन, विवस्वान, मार्तण्ड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान, लोकचक्षु, महेश्वर, लोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्त्ता, तमिस्राहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेव नमस्कृत- इस प्रकार 21 नामों का यह स्तोत्र भगवान सूर्य को सदा प्रिय है।' (ब्रह्म पुराण : 31.31-33)
यह शरीर को निरोग बनाने वाला, धन की वृद्धि करने वाला और यश फैलाने वाला स्तोत्रराज है। इसकी तीनों लोकों में प्रसिद्धि है। जो सूर्य के उदय और अस्तकाल में दोनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र के द्वारा भगवान सूर्य की स्तुति करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।
धन की प्राप्ति के लिए धनसंक्रान्ति व्रत
संक्रान्ति के दिन एक कलश में जल भरकर सर्वोषधि डाल दें, साथ में फल व दक्षिणा रखकर रोली चावल से कलश का पूजन करें। सूर्यभगवान को अर्घ्य अर्पित कर एक समय भोजन करें। कलश ब्राह्मण को दे दें। एक वर्ष तक इस तरह हर संक्रान्ति को व्रत व पूजन करने से मनुष्य को कभी धन की कमी नहीं रहती है।
भोगों की प्राप्ति के लिए भोगसंक्रान्ति व्रत
संक्रान्ति के दिन ब्राह्मण-दम्पत्ति को बुलाकर भोजन कराएं व श्रृंगार सामग्री, पान, पुष्पमाला, फल व दक्षिणा देने से मनुष्य को मनचाहे भोगों की प्राप्ति होती है।
रूप की प्राप्ति के लिए रूपसंक्रान्ति व्रत
रूप-सौन्दर्य की इच्छा रखने वाले मनुष्य को संक्रान्ति के दिन तेलमालिश के बाद स्नान करना चाहिए। फिर एक पात्र में घी व सोना रखकर उसमें अपनी छाया देखकर ब्राह्मण को दान दें व व्रत करें तो रूपसौन्दर्य की वृद्धि होती है।
तेज की प्राप्ति के लिए तेजसंक्रान्ति व्रत
संक्रान्ति के समय एक कलश में चावल भरकर उस पर घी का दीपक रखें। उसके समीप में मोदक रखकर गंध-पुष्प से पूजन कर यह बोलते हुए जल छोड़ दें कि मैं अपने पापों के नाश के लिए व तेज की प्राप्ति के लिए इस पूर्णपात्र का ब्राह्मण को दान करता हूँ। ऐसा करने से मनुष्य के तेज में वृद्धि होती है।
आयु की प्राप्ति के लिए आयुसंक्रान्ति व्रत
संक्रान्ति के समय एक कांसे की थाली में घी, दूध व सोना रखकर रोली चावल से पूजन कर ब्राह्मण को दान दें तो तेज, आयु और आरोग्य की वृद्धि होती है।
भगवान सूर्य का संक्रान्तिकाल है परम फलदायी
—धन, मिथुन, मीन और कन्या राशि की संक्रान्ति को षडरीति कहते हैं। इस संक्रान्ति में किए गए पुण्यकर्मों का फल हजारगुना होता है।
—वृष, वृश्चिक, कुम्भ और सिंह राशि पर जो सूर्य की संक्रान्ति होती है, उसका नाम विष्णुपदी है। इस संक्रान्ति में किए गए पुण्यकर्मों का फल लाखगुना होता है।
—तुला और मेष राशि पर जो सूर्य की संक्रान्ति होती है, उसका नाम विषुवती है। इसमें दिए गए दान का फल अनन्तगुना होता है।
—उत्तरायण और दक्षिणायन आरम्भ होने के दिन किए गए सत्कर्मों का कोटिगुना अधिक फल प्राप्त होता है।
वर्षभर की बारह संक्रान्ति में दिए जाने वाले दान
१. मेष संक्रान्ति में मेढ़ा (नर भेड़) का दान
२. वृष संक्रान्ति में गौ का दान
३. मिथुन संक्रान्ति में अन्न-वस्त्र और दूध-दही का दान
४. कर्क संक्रान्ति में गाय
५. सिंह संक्रान्ति में सोना, छाता आदि
६. कन्या संक्रान्ति में वस्त्र और गाय
७. तुला संक्रान्ति में जौ, गेहूं, चना आदि धान्य
८. वृश्चिक संक्रान्ति में मकान, झौंपड़ी आदि
९. धनु संक्रान्ति में वस्त्र और सवारी
१०. मकर संक्रान्ति में लकड़ी, घी, ऊनी वस्त्र
११. कुम्भ में गायों के लिए घास और जल
१२. मीन में सुगन्धित तेल और पुष्प का दान करना चाहिए।
इस प्रकार संक्रान्ति के अवसर पर जो कुछ दान किया जाता है, भगवान सूर्यनारायण उसे जन्म-जन्मान्तर तक प्रदान कर सब प्रकार की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।
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(स्नान, दान और योग का पर्व)
=◆ तिल-गुड़ का दान ब्राह्मण को अवश्य दें,
उड़द, खिचड़ी, तिल गुड़, घी कम्बल आदि जरूरतमंद को।
सुख, शान्ति एवं समृध्दि की मंगलकामनाओं सहित आप सभी को मकर सक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सूर्य जिस राशि पर स्थित हो, उसे छोड़कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करे, उस समय का नाम संक्रान्ति है।
सूर्य बारह स्वरूप धारण करके बारह महीनों में बारह राशियों में संक्रमण करते रहते हैं; उनके संक्रमण से ही संक्रान्ति होती है। इस तरह वर्ष में बारह संक्रान्ति होती हैं किन्तु सबसे ज्यादा महत्व मकर-संक्रान्ति का है।
मकर-संक्रान्ति है देवताओं का प्रभातकाल।
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना ‘मकर-संक्रान्ति’ कहलाता है। इस दिन सूर्य अपनी कक्षाओं में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं।
उत्तरायण को ‘देवताओं का दिन’ व दक्षिणायन को ‘देवताओं की रात’ कहा गया है। इस तरह मकर-संक्रान्ति देवताओं का प्रभातकाल है। इसको अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है।
मकर-संक्रान्ति से दिन बढ़ने लगता है और रात छोटी होने लगती है। इससे प्रकाश अधिक व अंधकार कम होने लगता है फलस्वरूप प्राणियों की चेतनता और कार्यक्षमता में वृद्धि होने लगती है।
मकर-संक्रान्ति पर गंगास्नान का महत्त्व?
माघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
ऐसा माना जाता है कि मकर-संक्रान्ति के दिन गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम पर प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं; इसलिए मकर-संक्रान्ति के दिन गंगास्नान या नदियों में स्नान को अत्यन्त पुण्यदायी माना गया है।
मकर-संक्रान्ति के दिन दान का फल अक्षय होता है?
मकर संक्रान्ति में किए गए स्नान, तर्पण, दान और पूजन का फल अक्षय होता है। इससे मनुष्य सभी प्रकार के भोगों के साथ मोक्ष को प्राप्त होता है।
सूर्यनारायण का पूजन कर व्रत करने से सब प्रकार के पापों का नाश, आधि-व्याधि का नाश व सब प्रकार की हीनता और संकोच का अंत हो जाता है, साथ ही सुख-संपत्ति, संतान व सहानुभूति की प्राप्ति होती है।
संक्रान्तिकाल में ‘ॐ सूर्याय नम:’ या ‘ॐ नमो भगवते सूर्याय’ का जप और आदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ करना चाहिए। घी, बूरा व मेवा मिले तिलों से हवन कर अन्न-वस्त्र का दान देना चाहिए। संक्रान्ति को रात्रि में स्नान व दान नहीं करना चाहिए।
सूर्य स्तवराज स्तोत्र :
सूर्य की स्तुति तो सभी करते हैं। लेकिन भगवान सूर्य का एक ऐसा कल्याणमय स्तोत्र, जो सब स्तुतियों का सारभूत है। जो भगवान भास्कर के पवित्र, शुभ एवं गोपनीय नाम हैं।
विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः।
लोक प्रकाशकः श्री माँल्लोक चक्षुर्मुहेश्वरः॥
लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा।
तपनस्तापनश्चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः॥
गभस्तिहस्तो ब्रह्मा च सर्वदेवनमस्कृतः।
एकविंशतिरित्येष स्तव इष्टः सदा रवेः॥
'विकर्तन, विवस्वान, मार्तण्ड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान, लोकचक्षु, महेश्वर, लोकसाक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्त्ता, तमिस्राहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा और सर्वदेव नमस्कृत- इस प्रकार 21 नामों का यह स्तोत्र भगवान सूर्य को सदा प्रिय है।' (ब्रह्म पुराण : 31.31-33)
यह शरीर को निरोग बनाने वाला, धन की वृद्धि करने वाला और यश फैलाने वाला स्तोत्रराज है। इसकी तीनों लोकों में प्रसिद्धि है। जो सूर्य के उदय और अस्तकाल में दोनों संध्याओं के समय इस स्तोत्र के द्वारा भगवान सूर्य की स्तुति करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।
धन की प्राप्ति के लिए धनसंक्रान्ति व्रत
संक्रान्ति के दिन एक कलश में जल भरकर सर्वोषधि डाल दें, साथ में फल व दक्षिणा रखकर रोली चावल से कलश का पूजन करें। सूर्यभगवान को अर्घ्य अर्पित कर एक समय भोजन करें। कलश ब्राह्मण को दे दें। एक वर्ष तक इस तरह हर संक्रान्ति को व्रत व पूजन करने से मनुष्य को कभी धन की कमी नहीं रहती है।
भोगों की प्राप्ति के लिए भोगसंक्रान्ति व्रत
संक्रान्ति के दिन ब्राह्मण-दम्पत्ति को बुलाकर भोजन कराएं व श्रृंगार सामग्री, पान, पुष्पमाला, फल व दक्षिणा देने से मनुष्य को मनचाहे भोगों की प्राप्ति होती है।
रूप की प्राप्ति के लिए रूपसंक्रान्ति व्रत
रूप-सौन्दर्य की इच्छा रखने वाले मनुष्य को संक्रान्ति के दिन तेलमालिश के बाद स्नान करना चाहिए। फिर एक पात्र में घी व सोना रखकर उसमें अपनी छाया देखकर ब्राह्मण को दान दें व व्रत करें तो रूपसौन्दर्य की वृद्धि होती है।
तेज की प्राप्ति के लिए तेजसंक्रान्ति व्रत
संक्रान्ति के समय एक कलश में चावल भरकर उस पर घी का दीपक रखें। उसके समीप में मोदक रखकर गंध-पुष्प से पूजन कर यह बोलते हुए जल छोड़ दें कि मैं अपने पापों के नाश के लिए व तेज की प्राप्ति के लिए इस पूर्णपात्र का ब्राह्मण को दान करता हूँ। ऐसा करने से मनुष्य के तेज में वृद्धि होती है।
आयु की प्राप्ति के लिए आयुसंक्रान्ति व्रत
संक्रान्ति के समय एक कांसे की थाली में घी, दूध व सोना रखकर रोली चावल से पूजन कर ब्राह्मण को दान दें तो तेज, आयु और आरोग्य की वृद्धि होती है।
भगवान सूर्य का संक्रान्तिकाल है परम फलदायी
—धन, मिथुन, मीन और कन्या राशि की संक्रान्ति को षडरीति कहते हैं। इस संक्रान्ति में किए गए पुण्यकर्मों का फल हजारगुना होता है।
—वृष, वृश्चिक, कुम्भ और सिंह राशि पर जो सूर्य की संक्रान्ति होती है, उसका नाम विष्णुपदी है। इस संक्रान्ति में किए गए पुण्यकर्मों का फल लाखगुना होता है।
—तुला और मेष राशि पर जो सूर्य की संक्रान्ति होती है, उसका नाम विषुवती है। इसमें दिए गए दान का फल अनन्तगुना होता है।
—उत्तरायण और दक्षिणायन आरम्भ होने के दिन किए गए सत्कर्मों का कोटिगुना अधिक फल प्राप्त होता है।
वर्षभर की बारह संक्रान्ति में दिए जाने वाले दान
१. मेष संक्रान्ति में मेढ़ा (नर भेड़) का दान
२. वृष संक्रान्ति में गौ का दान
३. मिथुन संक्रान्ति में अन्न-वस्त्र और दूध-दही का दान
४. कर्क संक्रान्ति में गाय
५. सिंह संक्रान्ति में सोना, छाता आदि
६. कन्या संक्रान्ति में वस्त्र और गाय
७. तुला संक्रान्ति में जौ, गेहूं, चना आदि धान्य
८. वृश्चिक संक्रान्ति में मकान, झौंपड़ी आदि
९. धनु संक्रान्ति में वस्त्र और सवारी
१०. मकर संक्रान्ति में लकड़ी, घी, ऊनी वस्त्र
११. कुम्भ में गायों के लिए घास और जल
१२. मीन में सुगन्धित तेल और पुष्प का दान करना चाहिए।
इस प्रकार संक्रान्ति के अवसर पर जो कुछ दान किया जाता है, भगवान सूर्यनारायण उसे जन्म-जन्मान्तर तक प्रदान कर सब प्रकार की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
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।।जय श्री राम।।
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