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Wednesday, 12 June 2019

गंगा दशहरा 2019

गंगा दशहरा की शुभकामनाएं नहीं

 तब तक नहीं जब तक हरिद्वार से गंगासागर तक गंगाजल सीधे गिलास भर पीने लायक नहीं होती

एक बात समझ लें

यदि आप उत्तर भारत के रहने वाले हैं तो आपके घर से निकलने वाला गन्दा पानी 90% गंगा में जाकर मिलेगा क्योंकि यहां की लगभग सभी नदियां कहीं न कहीं गंगा में मिलती हैं।
तो दिया जलाकर , नदी में नहाकर , आरती करके आप ढकोसला कर सकते हैं।
आपकी भावनाएं साफ हो सकती हैं लेकिन जिस नदी को आप पूज रहे हैं वो साफ नहीं हो सकती।

* कहते हैं जब अकबर ने राजधानी दिल्ली से हटाकर फतेहपुर सीकरी में बनवाई तो वहां पठारी हिस्सा होने से पानी की कमी थी। जो पानी था वो पीने के लिहाज से निम्न श्रेणी का था।

तब अकबर हरिद्वार से पीने के लिए गंगाजल मंगवाता था।

* अंग्रेज जब भारत आये तो वापस जाने या माल ले जाने के लिए भारत से ब्रिटेन जाने वाले समुद्री जहाज को एक से डेढ़ महिने का वक्त लगता था।
इतनी अवधि में किसी भी प्रकार का जल पीने योग्य नहीं रहता था।

ऐसे में अंग्रेज भी बैरलों यानी ड्रमों में भरकर गंगाजल ले जाते थे क्योंकि ये हमेशा साफ शुद्ध रहता था।

* अब आते हैं गंगा के गंदे होने के इतिहास पर

तो भारत मे प्राचीन काल से कोई सीवेज सिस्टम नहीं अपनाया गया था

मलमूत्र के लिए आम आदमी खेत, मैदान, जंगल का प्रयोग करते थे
जबकि राजा, सामंत,अमीरों या सेठों के यहां 2 तरह के शौचालय हुआ करते थे।

1. एक मे पक्के फर्श का कमरा हुआ करता था, जिसे लोग शौच के लिए प्रयोग करते थे जिसे बाद में मेहतर साफ किया करते थे।

2. दूसरी खड़ी टट्टी कहि जाती है जिसमे फर्श में एक पाइप लगा होता था जो नीचे जाकर किसी ड्रम नुमा बर्तन या डलिया/ टोकरी में था जिससे मैला उसमे गिरता था।
इसे सफाई वाला उठा कर ले जाता था और गांव शहर से दूर जंगल मे किसी स्थान पर गिरा देता था।

मैला ढोने की प्रथा को घृणित मन गया जो थी भी की किसी अमीर व्यक्ति की टट्टी कोई गरीब आदमी सिर पर उठाए और इन पर रोक लगाने की समय समय पर मांग की गयी।
कारण छुआछूत और जातिवाद के अंतर को समाप्त करना भी था।

लोग नदी, नहर , तालाब या नौले ,  बावड़ी स्थानीय स्तर पर जो भी जल स्रोत था उसे पूजते थे। कुआं, बावड़ी, आदि शादी ब्याह में  देव स्थल के रूप में पूजे जाते थे। अब भी पूजे जाते हैं चाहे 98% अब सूख चुके हैं पर परम्परा का बोझ अब भी ढोया जा रहा है बिना उसके पीछे कारण समझे।

जल को अशुद्ध करना पाप माना जाता था।

पहले किसी प्रकार का साबुन नहीं था, कोई केमिकल नहीं।

लोग नदी, तालाब, नहर में नहाते थे या कुए के पास नहाते थे, पानी उसी मिट्टी में मिल जाता था, कुछ वाष्पीकृत होता तो कुछ जमीन सोख लेती।

बर्तन रसोई के पास ही धुलते थे जो पानी घर से बाहर जाकर कहीं मिट्टी में ही मिल जाता था।

बर्तन मिट्टी राख से मांजे जाते थे 100% नेचुरल एंटीबैक्टीरियल और पानी को साफ करने वाली चीज।

आज नहाने के लिए साबुन, शैम्पू, जेल, कंडीशनर, लोशन और न जाने क्या क्या ड्रामे,

बर्तन धोने के लिए भी साबुन और जेल

यही नहीं  इसके अलावा फिनायल, हार्पिक,लाइजोल और न जाने कितने 20 से 40% HCl यानी हाइड्रोक्लोरिक एसिड युक्त किचन, टॉयलेट, बाथरूम फ़्लोर क्लीनर।
टॉयलेट के लिए नीला और बाथरूम का लाल।

जहां तक मेरी जानकारी है

पिछली शताब्दी की शुरुआत तक हम अपनी हजारों वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार ही चल रहे थे।
नदी, नहरें तालाब सब साफ और लबालब थे। हालांकि जल संचयन की तकनीक या विचार पर कभी काम नहीं हुआ क्योंकि पूरी आबादी, सरकार , किसान और परम्परा   मानसून पर निर्भर थे और अधिकतर जगह पर्याप्त जल व्यबस्था थी।

हालांकि तिब्बत, दक्षिण के कुछ शहरों और मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में सदियों पूर्व ही पानी की कमी के कारण जल संचयन और सुनियोजित ड्रेनेज की व्यवस्था की गई थी ताकि सबको जरूरत का पानी मिल सके।

लेकिन बाकी जगहों पर इसे नहीं अपनाने का कारण शायद तब वहां प्रयाप्त या जरूरत भर व्यवस्था होना होगा।

हालांकि अकाल और सूखा हमारे देश की सबसे बड़ी आपदा हमेशा रही है जो राजा रानी की कहानियों से मुगलो और अंग्रेजो तक के अत्यचार की कहानियों में अक्सर ही सुनने पढ़ने को मिलती है।

सन  1930 में जनरल हेमिल्टन नाम का अंग्रेज अधिकारी आया जिसने कुलषित भाव से गंगा के प्रति लोगो की श्रद्धा और धर्म के नाम पर अपार जनसमूह बनारस में उमड़ता देख वहां ड्रेनेज सीवेज सिस्टम की शुरुआत की।

फिर आपके हमारे सब घरों की टट्टी पेशाब और घरेलू प्रयोग का गन्दा पानी नालियों से नाले में और नालों से गंगा में समाता गया।

सरकार और लोगों को भी ये सिस्टम सुविधाजनक लगा, मैला और धीरे धीरे ये राष्ट्रव्यापी हो गया।

मैं हल्द्वानी( नैनीताल) में रहता हूँ, यहां भी भूगर्भीय जल कई सौ फुट नीचे है, हैण्डपम्प और कुएं नहीं है।

अंग्रेजो ने जल व्यवस्था के लिए पूरे शहर में नहरों का जाल बिछाया था। लोग उसी पानी को सब काम मे प्रयोग करते थे। ये पानी पहाड़ के स्रोतों और झरनों से आता था,
बुजुर्ग कहते हैं कि सन 93 94 तक भी हम इसमे नहा लेते थे, घर के बर्तन कपड़े यही पानी बाल्टियों से घर लाकर धो लेते थे।

आज ये भी उसी ड्रेनेज सिस्टम का हिस्सा बन चुकी हैं
और शुद्ध पानी की जगह  गंदे पानी ने ले ली है।
नहरें नाला बन चुकी हैं।
गिनती की नहरे हैं जिनमे कुछ किलोमीटर साफ पानी दिखता है।

जगह जगह नहरों में कचरा, गन्दगी पॉलीथिन दिख जाते है

हमारी सभी नदियां जिनमे साफ पानी की नहरों से पानी आता था वो नहरे नालों में तब्दील हो गईं और

राम तेरी गंगा मैली हो गयी।

हिंदुस्तानियों की टट्टी ढोते ढोते।

ढकोसले छोड़ दो
सरकार भरोसे मत रहो अपने स्तर पर कुछ शुरू करें
अपने घरवालों, दोस्तो, रिश्तेदारों से बात करें

अपने स्तर से कोशिश करो कि कम से कम केमिकल युक्त चीजों का प्रयोग हो।

आपके घर से कम से कम पानी बहकर नालियों में जाये।

नहाने के लिए या बर्तन धोने के लिए कम पानी प्रयोग करें।

छत की टँकी में अलार्म लगाएं ताकि पानी बहते हुए बर्बाद न हो।

कूड़े कचरे को कूड़ेदान या कूड़े की गाड़ी में डालें।

प्लास्टिक का उपयोग न्यूनतम करें किसी भी रूप में।

कुछ आंकड़े जो आपको जानने चाहियें

* 445 नदियों पर सर्वेक्षण किया गया है, सर्वेक्षण से पता चला कि इनमें से एक चौथाई नदियाँ भी स्नान के योग्य नहीं है।
* भारतीय शहर हर दिन 10 अरब गैलन या 38 बिलियन लीटर नगरपालिका वाला अपशिष्ट जल उत्पन्न करते हैं, जिनमें से केवल 29% का उपचार किया जाता है।

* केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह भी कहा है कि 2011 में किए गए सर्वेक्षण में लगभग 8,000 शहरों में केवल 160 सीवेज प्रणाली और सीवेज उपचार संयंत्र थे।
* भारतीय शहरों में दैनिक रूप से उत्पादित लगभग 40,000 मिलियन लीटर सीवेज में से केवल 20% का उपचार किया जाता है।

प्रदूषित गंगा और यमुना

यमुना नदी एक कचरे के ढेर का क्षेत्र बन चुकी है जिसमें दिल्ली का 57% से अधिक कचरा फेंका जाता है।

दिल्ली के केवल 55% निवासियों को एक उचित सीवरेज प्रणाली से जोड़ा गया है।

विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) के अनुसार, यमुना नदी के प्रदूषण में लगभग 80% अनुपचारित सीवेज है।

गंगा को भारत में सबसे प्रदूषित नदी माना जाता है।
गंगा नदी में नियमित रूप से लगभग 1 बिलियन लीटर कच्चे अनुपचारित सीवेज को प्रवाहित किया जाता है।
गंगा नदी में प्रति 100 मिलीलीटर जल में 60,000 फ्रैकल कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है।

जय प्रदूषित गंगा

।।जय श्री राम।।
 अभिषेक बी पाण्डेय
नैनीताल, उत्तराखंड

Monday, 10 June 2019

Dhumavati jayanti 2019 धूमावती जयंती 2019

धूमावती जयंती विशेष
10 जून 2019
दुःख, दरिद्रता, रोग और क्लेश का नाश करने वाली देवी

 दस  महाविद्याओं  में सातवीं  महाविद्या हैं माँ धूमावती। इन्हे अलक्ष्मी या ज्येष्ठालक्ष्मी यानि लक्ष्मी की बड़ी बहन भी कहा जाता है।

ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष अष्टमी को माँ धूमावती जयन्ति के रूप मइ मनाया जाता है।

 मां धूमावती विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं तथा इनका वाहन कौवा है, ये श्वेत वस्त्र धारण कि हुए, खुले केश रुप में होती हैं।  धूमावती महाविद्या ही ऐसी शक्ति हैं जो व्यक्ति की दीनहीन अवस्था का कारण हैं। विधवा के आचरण वाली यह महाशक्ति दुःख दारिद्रय की स्वामिनी होते हुए भी अपने भक्तों पर कृपा करती हैं।

इनका ध्यान इस प्रकार बताया है ’-

 अत्यन्त लम्बी, मलिनवस्त्रा, रूक्षवर्णा, कान्तिहीन, चंचला, दुष्टा, बिखरे बालों वाली, विधवा, रूखी आखों वाली, शत्रु के लिये उद्वेग कारिणी, लम्बे विरल दांतों वाली, बुभुक्षिता, पसीने से आद्‍​र्र, स्तन नीचे लटके हो, सूप युक्ता, हाथ फटकारती हुई, बडी नासिका, कुटिला , भयप्रदा,कृष्णवर्णा, कलहप्रिया, तथा जिसके रथ पर कौआ बैठा हो ऐसी देवी। 

देवी का मुख्य अस्त्र है सूप जिसमे ये समस्त विश्व को समेट कर महाप्रलय कर देती हैं।  

दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है।  शाप देने नष्ट करने व  संहार  करने की जितनी भी क्षमताएं है वो देवी के कारण ही है।  क्रोधमय ऋषियों की मूल शक्ति धूमावती हैं जैसे दुर्वासा, अंगीरा, भृगु, परशुराम आदि।  
सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है ,  चौमासा ही देवी का प्रमुख समय होता है जब इनको प्रसन्न किया जाता है। नरक चतुर्दशी देवी का ही दिन होता है जब वो पापियों को पीड़ित व दण्डित करती हैं। 

देश के कयी भागों में नर्क चतुर्दशी पर घर से कूड़ा करकट साफ कर उसे घर से बाहर कर अलक्ष्मी से प्रार्थना की जाती है की आप हमारे सारे दारिद्र लेकर विदा होइए।

ज्योतिष शास्त्रानुसार मां धूमावती का संबंध केतु ग्रह तथा इनका नक्षत्र ज्येष्ठा है। इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है। ज्योतिष शस्त्र अनुसार अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में केतु ग्रह श्रेष्ठ जगह पर कार्यरत हो अथवा केतु ग्रह से सहयता मिल रही ही तो व्यक्ति के जीवन में दुख दारिद्रय और दुर्भाग्य से छुटकारा मिलता है। केतु ग्रह की प्रबलता से व्यक्ति सभी प्रकार के कर्जों से मुक्ति पाता है और उसके जीवन में धन, सुख और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है। 

. यह इंसान की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी ख़त्म नही होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है. माँ धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं। 

नोट :-  
अनुभवी साधको का मानना है की गृहस्त लोगों को देवी की साधना नही करनी चाहिए।  वहीँ कुछ का ऐसा मन्ना है की यदि इनकी साधना करनी भी हो घर से दूर एकांत स्थान में अथवा एकाँकी रूप से करनी चाहिए।  

विशेष ध्यान देने की बात ये है की इन महाविद्या का स्थायी आह्वाहन नहीं होता अर्थात इन्हे लम्बे समय तक घर में स्थापित या विराजमान होने की कामना नहीं करनी चाहिए क्यूंकि ये दुःख क्लेश और दरिद्रता की देवी हैं ।  

इनकी पूजा के समय ऐसी भावना करनी चाहिए की देवी प्रसन्न होकर मेरे समस्त दुःख, रोग , दरिद्रता ,कष्ट ,विघ्न ,बढ़ाये, क्लेशादी को अपने सूप में समेत कर मेरे घर से विदा हो रही हैं और हमें धन , लक्ष्मी ,  सुख एवं शांति का आशीर्वाद दे रही हैं । 

निरंतर इनकी स्तुति करने वाला कभी धन विहीन नहीं होता व उसे दुःख छूते भी नहीं , बड़ी से बड़ी शक्ति भी इनके सामने नहीं टिक पाती इनका तेज सर्वोच्च कहा जाता है।  श्वेतरूप व धूम्र अर्थात धुंआ इनको प्रिय है पृथ्वी के आकाश में स्थित बादलों में इनका निवास होता है।

देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है

स्तुति :- 
विवर्णा चंचला दुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा,
विवरणकुण्डला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,
काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,
सूर्यहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,
प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,
क्षुतपिपासार्दिता नित्यं भयदा कलहप्रिया.

      ॥ सौभाग्यदात्री धूमावती कवचम् ॥ 
धूमावती मुखं पातु  धूं धूं स्वाहास्वरूपिणी ।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुन्दरी ॥१॥
कल्याणी ह्रदयपातु हसरीं नाभि देशके ।
सर्वांग पातु देवेशी निष्कला भगमालिना ॥२॥
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेदभक्ति संयुतः ।
सौभाग्यमतुलं प्राप्य जाते देविपुरं ययौ ॥३॥

॥ श्रीधूमावत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥

ईश्वर उवाच
धूमावती धूम्रवर्णा धूम्रपानपरायणा ।
धूम्राक्षमथिनी धन्या धन्यस्थाननिवासिनी ॥ १॥

अघोराचारसन्तुष्टा अघोराचारमण्डिता ।
अघोरमन्त्रसम्प्रीता अघोरमन्त्रपूजिता ॥ २॥

अट्टाट्टहासनिरता मलिनाम्बरधारिणी ।
वृद्धा विरूपा विधवा विद्या च विरलद्विजा ॥ ३॥

प्रवृद्धघोणा कुमुखी कुटिला कुटिलेक्षणा ।
कराली च करालास्या कङ्काली शूर्पधारिणी ॥ ४॥

काकध्वजरथारूढा केवला कठिना कुहूः ।
क्षुत्पिपासार्दिता नित्या ललज्जिह्वा दिगम्बरी ॥ ५॥

दीर्घोदरी दीर्घरवा दीर्घाङ्गी दीर्घमस्तका ।
विमुक्तकुन्तला कीर्त्या कैलासस्थानवासिनी ॥ ६॥

क्रूरा कालस्वरूपा च कालचक्रप्रवर्तिनी ।
विवर्णा चञ्चला दुष्टा दुष्टविध्वंसकारिणी ॥ ७॥

चण्डी चण्डस्वरूपा च चामुण्डा चण्डनिस्वना ।
चण्डवेगा चण्डगतिश्चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ ८॥

चाण्डालिनी चित्ररेखा चित्राङ्गी चित्ररूपिणी ।
कृष्णा कपर्दिनी कुल्ला कृष्णारूपा क्रियावती ॥ ९॥

कुम्भस्तनी महोन्मत्ता मदिरापानविह्वला ।
चतुर्भुजा ललज्जिह्वा शत्रुसंहारकारिणी ॥ १०॥

शवारूढा शवगता श्मशानस्थानवासिनी ।
दुराराध्या दुराचारा दुर्जनप्रीतिदायिनी ॥ ११॥

निर्मांसा च निराकारा धूतहस्ता वरान्विता ।
कलहा च कलिप्रीता कलिकल्मषनाशिनी ॥ १२॥

महाकालस्वरूपा च महाकालप्रपूजिता ।
महादेवप्रिया मेधा महासङ्कटनाशिनी ॥ १३॥

भक्तप्रिया भक्तगतिर्भक्तशत्रुविनाशिनी ।
भैरवी भुवना भीमा भारती भुवनात्मिका ॥ १४॥

भेरुण्डा भीमनयना त्रिनेत्रा बहुरूपिणी ।
त्रिलोकेशी त्रिकालज्ञा त्रिस्वरूपा त्रयीतनुः ॥ १५॥

त्रिमूर्तिश्च तथा तन्वी त्रिशक्तिश्च त्रिशूलिनी ।
इति धूमामहत्स्तोत्रं नाम्नामष्टोत्तरात्मकम् ॥ १६॥

मया ते कथितं देवि शत्रुसङ्घविनाशनम् ।
कारागारे रिपुग्रस्ते महोत्पाते महाभये ॥ १७॥

इदं स्तोत्रं पठेन्मर्त्यो मुच्यते सर्वसङ्कटैः ।
गुह्याद्गुह्यतरं गुह्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ॥ १८॥

चतुष्पदार्थदं नॄणां सर्वसम्पत्प्रदायकम् ॥ १९॥

इति श्रीधूमावत्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

अगर दुःख, दरिद्रता, गृह क्लेश और रोग से लगातार पीड़ा हो, किसी भी उपाय से आराम न होता हो, लक्ष्मी का निरंतर ह्रास हो रहा हो ऐसे में एक बार धूमावती साधना अवश्य करनी चाहिए या योग्य साधक से जप हवन करवा कर फिर अन्य उपाय पुनः करें।

जो ये नहीं कर सकते वे सिर्फ अष्टोत्तरशतनाम और कवच का नित्य पाठ करते हुए माँ से दुखो से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करें।

नारियल प्रसाद रूप में चढ़ाएं
विशेष पूजा सामग्रियां-          पूजा में जिन सामग्रियों के प्रयोग से देवी की विशेष कृपा मिलाती है 

सफेद रंग के फूल, आक के फूल, सफेद वस्त्र व पुष्पमालाएं ,  केसर, अक्षत, घी, सफेद तिल, धतूरा, आक, जौ, सुपारी व नारियल , चमेवा व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें।
सूप की आकृति पूजा स्थान पर रखें

दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो मिटटी के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें। 

देवी की पूजा में सावधानियां व निषेध-

बिना गुरु दीक्षा के इनकी साधना कदापि न करें। थोड़ी सी भी चूक होने पर विपरीत फल प्राप्त होगा और पारिवारिक कलह दरिद्र का शिकार होंगे।

लाल वस्त्र देवी को कभी भी अर्पित न करें
साधना के दौरान अपने भोजन आदि में गुड व गन्ने का प्रयोग न करें

देवी भक्त ध्यान व योग के समय भूमि पर बिना आसन कदापि न बैठें

पूजा में कलश स्थापित न करें 

अन्य किसी जानकारी , कुंडली विश्लेषण और समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
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Sunday, 2 June 2019

Shani jayanti 2019 शनि जयंती 2019

शनि जयंती 3 जून 2019

शनि मंदिर में हर शनिवार शनिदेव को तेल, तिल, काले कपड़े आदि की घूस देने की जगह

रोज नियम से गाय, कुत्ते और कौए को एक एक रोटी खिलाएं

सिर्फ 3 रोटी सैकड़ों दान पुण्य और तीर्थ पर भारी हैं

एक पीपल का पौधा लगाकर रोज जल दें

कर्म सही और नियत साफ रखें

शनि, राहु केतु समेत समस्त नवग्रह और पितृ और कुलदेव प्रसन्न रहेंगे।

शनि पीड़ा हेतु मन्त्र:

सूर्यपुत्रो दीर्घदेहो विशालाक्ष: शिवप्रियः।
मन्दाचारः प्रसन्नात्मा पीड़ा हरतुं मे शनिः।।

ये 3 रोटी का उपाय और इस मन्त्र जप शनि जन्य रोग  जैसे पैरों में दर्द, गठिया, कमर दर्द, स्नायु सम्बन्धी रोग, नेत्र, पेट, बवासीर, दन्त रोग आदि की पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है।

।।जय श्री राम।।
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