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Monday, 31 December 2018

Hanumat stotra हनुमत स्तोत्र

श्रीहनुमत्स्तोत्रम्
(नववर्ष 2019 विशेष)

अक्षादिराक्षसहरं दशकण्ठदर्प-
निर्मूलनं रघुवराङ्घ्रिसरोजभक्तम्।
सीताविषह्यदुःखनिवारकं तं वायोः
सुतं गिलितभानुमहं नमामि॥ १ ॥

मां पश्य पश्य हनुमन् निजदृष्टिपातैः
मां रक्ष रक्ष परितो रिपुदुःखवर्गात्।
वश्यां कुरु त्रिजगतीं वसुधाधिपानां
मे देहि देहि महतीं वसुधांश्रियं च ॥२॥

आपद्भ्यो रक्ष सर्वत्र आञ्जनेय नमोऽस्तुते ।
बन्धनं छिन्धि मे नित्यं कपिवीर नमोऽस्तु ते ॥३॥

दुष्टरोगान् हन हन रामदूत नमोऽस्तुते ।
उच्चाटय रिपून् सर्वान् मोहनंकुरु भूभुजाम् ॥४॥

विद्वेषिणो मारय त्वं त्रिमूर्त्यात्मक सर्वदा ।
सञ्जीवपर्वतोद्धार मनोदुःखंनिवारय ॥५॥

घोरानुपद्रवान् सर्वान् नाशयाक्षासुरान्तक।
एवं स्तुत्वा हनूमन्तं नरःश्रद्धासमन्वितः
पुत्रपौत्रादिसहितः सर्वसौख्यमवाप्नुयात् ॥६॥

अन्य किसी जानकारी,  समस्या समाधान अथवा कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं

।।जय श्री राम।।

Abhishek B. Pandey

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Wednesday, 28 November 2018

Sarv karya siddhi prad bhairav shabar stotra सर्वकार्य सिद्धिप्रद भैरव स्तोत्र

कालभैरव जयंती 20818 विशेष


सर्व-कार्य-सिद्धि-प्रद भैरव शाबर स्तोत्र

ॐ अस्य श्री भैरव-स्तोत्रस्य सप्त-ऋषिः ऋषयः, मातृका छन्दः, श्रीवटुक-भैरो देवता, ममेप्सित-सिद्धयर्थ जपे विनियोगः ।

“ॐ काल-भैरौ, वटुक भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता-सर्व-सिद्धिर्भवेत् । शोक-दुःख-क्षय-करं निरञ्जनं, निराकारं नारायणं, भक्ति-पूर्ण त्वं महेशं । सर्व-काम-सिद्धिर्भवेत् । काल-भैरव, भूषण-वाहनं काल-हन्ता रुपं च, भैरव गुनी । महात्मनः योगिनां महा-देव-स्वरुपं । सर्व सिद्धयेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।।१।।

ॐ त्वं ज्ञानं, त्वं ध्यानं, त्वं तत्त्वं, त्वं वीजं, महात्मानं त्वं शक्तिः, शक्ति-धारणं त्वं महा-देव-स्वरुपं । सर्व-सिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।।।२।।

ॐ काल-भैरव ! त्वं नागेश्वरं, नाग-हारं च त्वं, वन्दे परमेश्वरं । ब्रह्म-ज्ञानं, ब्रह्म-ध्यानं, ब्रह्म-योगं, ब्रह्म-तत्त्वं, ब्रह्म-बीजं महात्मनः । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।।३।।

त्रिशूल-चक्र-गदा-पाणिं, शूल-पाणि पिनाक-धृक् ! ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं विना गन्धं, विना धूपं, विना दीपं सर्व-शत्रु-विनाशनं । सर्व-सिद्धिर्भवेत् । विभूति-भूति-नाशाय, दुष्ट-क्षय-कारकं, महा-भैरवे नमः । सर्व-दुष्ट-विनाशनं सेवकं सर्व-सिद्धिं कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं महा-ज्ञानी, महा-ध्यानी, महा-योगी, महा-बली, तपेश्वर ! देहि मे सिद्धिं सर्व । त्वं भैरव भीम-नादं च नादनम् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं । अमुकं मारय मारय, उच्चाटय उच्चाटय, मोहय मोहय, वशं कुरु कुरु । सर्वार्थकस्य सिद्धि-रुपं त्वं महा-काल ! काल-भक्षणं महा-देव-स्वरुपं त्वं । सर्व-सिद्धयेत् ! ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं गोविन्द, गोकुलानन्द ! गोपालं, गोवर्द्धनं धारणं त्वं । वन्दे परमेश्वरं । नारायणं नमस्कृत्य, त्वं धाम-शिव-रुपं च । साधकं सर्व सिद्धयेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं राम-लक्ष्मणं, त्वं श्रीपति-सुन्दरं, त्वं गरुड़-वाहनं, त्वं शत्रु-हन्ता च, त्वं यमस्य रुपम् । सर्व-कार्य-सिद्धिं कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं ब्रह्म-विष्णु-महेश्वरं, त्वं जगत्-कारणं, सृष्टि-स्थिति-संहार-कारकं, रक्त-बीजं, महा-सैन्यं, महा-विद्या, महा-भय-विनाशनम् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं आहार मद्य, मांसं च, सर्व-दुष्ट-विनाशनं, साधकं सर्व-सिद्धि-प्रदा । ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अघोर-अघोर, महा-अघोर, सर्व-अघोर, भैरव-काल ! ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं । ॐ आं क्लीं क्लीं क्लीं । ॐ आं क्रीं क्रीं क्रीं । ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं, रुं रुं रुं, क्रूं क्रूं क्रूं । मोहन ! सर्व-सिद्धिं कुरु कुरु । ॐ आ ह्रीं ह्रीं ह्रीं । अमुकै उच्चाटय उच्चाटय, मारय-मारय । प्रूं प्रूं, प्रें प्रें, खं खं । दुष्टान् हन-हन । अमुकं फट् स्वाहा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ बटुक-बटुक योगं च बटुकनाथ महेश्वरः । बटुकै वट-वृक्षै बटुकं प्रत्यक्ष सिद्धयेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव, शमशान-भैरव, काल-रुप काल-भैरव ! मेरो वैरी तेरो आहार रे । काढ़ी करेजा चखन करो कट-कट । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ नमो हंकारी वीर ज्वाला-मुखी ! तूं दुष्टन बध करो । बिना अपराध जो मोहिं सतावे, तेकर करेजा छिंदि परै, मुख-वाट लोहू आवे । को जाने ? चन्द्र, सूर्य जाने की आदि-पुरुष जाने । काम-रुप कामाक्षा देवी । त्रिवाचा सत्य, फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं डाकिनी, शाकिनी, भूत-पिशाचश्च । सर्व-दुष्ट-निवारणं कुरु-कुरु, साधकानां रक्ष-रक्ष । देहि मे हृदये सर्व-सिद्धिम् । त्वं भैरव-भैरवीभ्यो, त्वं महा-भय-विनाशनं कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव महा-भय-विनाशनं देवता । सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं । पच्छिम दिशा में सोने का मठ, सोने का किवाड़, सोने का ताला, सोने की कुञ्जी, सोने का घण्टा, सोने की सांकुली ।
 पहिली साँकुली अठारह कुल नाग के बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति के बाँधों, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन के बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी के बाँधों, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत के बाँधों ।
जरती अगिन बाँधों, जरता मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, सात समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं । उत्तर दिशा में रुपे का मठ, रुपे का किवार, रुपे का ताला, रुपे की कुञ्जी, रुपे का घण्टा, रुपे की सांकुली । पहिली साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को बाँधूँ, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन को बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी को बाँधों, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों । जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं । पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे का किवार, तामे का ताला, तामे की कुञ्जी, तामे का घण्टा, तामे की साँकुली । पहिली साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को बाँधूँ, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन को बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी को बाँधों, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों । जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं । दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ, अस्थि का किवार, अस्थि का ताला, अस्थि की कुञ्जी, अस्थि का घण्टा, अस्थि की साँकुली । पहिली साँकुली अठारह कुल नाग बाँधों, दूसरी साँकुली अठारह कुल-जाति को बाँधूँ, तीसरी साँकुली बैरी-दुश्मन को बाँधों, चौथी साँकुली डाकिनी-शाकिनी को बाँधों, पाँचवीं साँकुली भूत-प्रेत को बाँधों । जलत अगिन बाँधों, जलत मसान बाँधों, जल बाँधों, थल बाँधों, बाँधों अम्मरताई । जहाँ भेजूँ, तहाँ जाई । जेहि बाँधि मँगावों, तेहिं का बाँधि लाओ । वाचा चूकै, उमा सूखै । श्रीबावन वीर ले जाय, समुन्दर तीर । त्रिवाचा फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं आकाशं, त्वं पातालं, त्वं मृत्यु-लोकं । चतुर्भुजं, चतुर्मुखं, चतुर्बाहुं, शत्रु-हन्ता च त्वं भैरव ! भक्ति-पूर्ण कलेवरम् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! तुम जहाँ जाहु, जहाँ दुश्मन बैठ होय, तो बैठे को मारो । चलत होय, तो चलते को मारो । सोवत होय, तो सोते को मारो । पूजा करत होय, तो पूजा में मारो । जहाँ होय, तहाँ मारो । व्याघ्र लै भैरव, दुष्ट को भक्षौ । सर्प लै भैरव ! दुष्ट को डँसो । खड्ग से मारो, भैरव ! दुष्ट को शिर गिरैवान से मारो, दुष्टन करेजा फटै । त्रिशूल से मारो, शत्रु छिदि परै, मुख वाट लोहू आवे । को जाने ? चन्द्र, सूरज जाने की आदि-पुरुष जाने । काम-रुप कामाक्षा देवी । त्रि-वाचा सत्य फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव त्वं । वाचा चूकै, उमा सुखै, दुश्मन मरै अपने घर में । दुहाई काल-भैरव की । जो मोर वचन झूठा होय, तो ब्रह्मा के कपाल टूटै शिवजी के तीनों नेत्र फूटैं । मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं भूतस्य भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः । त्वं भैरव, सर्व-सिद्धिं कुरु-कुरु । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं ज्ञानी, त्वं ध्यानी, त्वं योगी, त्वं जंगम-स्थावरं, त्वं सेवित सर्व-काम-सिद्धिर्भवेत् । ॐ काल-भैरौ, वटुक-भैरौ, भूत-भैरौ ! महा-भैरव, महा-भय-विनाशनं देवता । सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।

ॐ काल-भैरव ! त्वं वन्दे परमेश्वरं, ब्रह्म-रुपं, प्रसन्नो भव । गुनि, महात्मनां महा-देव-स्वरुपं सर्व-सिद्धिर्भवेत् ।”

विधिः-
 इस स्तोत्र का एक पाठ नित्य प्रातः सायं करने से सर्व-कार्य-सिद्धि होती है ।
शुभ मुहूर्त, पर्व काल में संयम पूर्वक 1100 पाठ कर बलि एवं भोग देने से स्तोत्र सिद्ध होता है।
बटुक भैरव मंदिर में करें तो दूध का भोग दें।
काल भैरव या श्मशान भैरव को मदिरा का भोग दें।

रक्षा हेतु : सिर से पाँव तक लाल धागा नाप कर उक्त स्तोत्र का एक पाठ कर एक गांठ लगाएं , ऐसा करते हुए सात गाँठ लगाकर गले में पहनाने से  सर्व व्याधि, दुर्घटना, अभिचार एवं ऊपरी बाधा से रक्षा होती है ।

नज़र हेतु: 3 पाठ कर भस्म से तिलक करने/ झाड़ने से नज़र दोष तुरन्त हट जाता है।

इसके अतिरिक्त शत्रु निवारण, वशीकरण भी होता है।
स्तोत्र सिद्ध होने पर त्वरित इच्छा पूर्ति भी हो जाती है।

इस दुर्लभ स्तोत्र से सिद्ध कवच धारण करने से समस्त भय से रक्षा और सर्व कार्यसिद्धू होते हैं।

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Monday, 19 November 2018

Tulsi vivah pujan vidhi तुलसी विवाह पूजन विधि

हरि प्रबोधिनी/ देवोत्थानी एकादशी/ तुलसी विवाह की शुभकामनाएं

जगत दुलारे जगन्नाथ श्री विष्णु को जगाने का मन्त्र

इयं तु द्वादशी देव प्रबोधार्थं विनिर्मिता।
त्वय्येव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना ॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते ।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम् ॥
उत्थिते चेष्टते सर्वम् उत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव ।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज ॥
उत्तिष्ठ कमालाकान्त त्रैलोक्यं मङ्गलं कुरु ॥
गता मेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मला दिशः ।
शारदानि च पुष्पाणि ग्रहाण मम केशव ॥

मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरुडध्वजः ।
मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः, मंगलाय तनो हरिः ॥

 भगवान को जगाने के पश्चात सायंकाल तुलसी पूजन करें,

 गंगाजल, हल्दी कुमकुम , धूप दीप , नव वस्त्र, यज्ञोपवीत से तुलसी शालिग्राम का पूजन कर तुलसी स्तोत्र का पाठ करें  

तुलसी स्तोत्रं

जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥

नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥

तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा ।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥

नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् ।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥

तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥

नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाजलिं कलौ ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥

तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले ।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥

तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥

तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः ।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥

नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे ।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥

इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता ।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी ।
धर्म्या धर्नानना देवी देवीदेवमनः प्रिया ॥

लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला ।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् ।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥

तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे ।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनः प्रिये ॥

  ।।इति श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

इसके बाद नवविवाहित वर वधु यानी श्री तुलसी शालिग्राम जी पर पुष्प वर्षा करते हुए मंगलाष्टक का पाठ करें

ॐमत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः। चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः। प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥१॥

गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ, गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः। गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥२॥

नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम्। गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥३॥

 बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः। मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥४॥

गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती। स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥५॥

गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका। शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥६॥

 लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः। अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥७॥

 ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः। विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥८॥
।।जय श्री राम।।

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।।जय श्री राम।।

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Saturday, 17 November 2018

श्री महाविष्णु लघु स्मरणिका

अक्षय नवमी पर श्रीमहाविष्णु वंदन

श्री महाविष्णु लघु स्मरणिका

ॐ विश्वं विष्णु:वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः ।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः ।।

रुद्रो बहु-शिरा बभ्रु: विश्वयोनिः शुचि-श्रवाः ।
अमृतः शाश्वतः स्थाणु: वरारोहो महातपाः ।।

सर्वगः सर्वविद्-भानु:विष्वक-सेनो जनार्दनः ।
वेदो वेदविद-अव्यंगो वेदांगो वेदवित् कविः ।।

लोकाध्यक्षः सुराध्यक्षो धर्माध्यक्षः कृता-कृतः ।
चतुरात्मा चतुर्व्यूह:-चतुर्दंष्ट्र:-चतुर्भुजः ।।

वेद्यो वैद्यः सदायोगी वीरहा माधवो मधुः।
अति-इंद्रियो महामायो महोत्साहो महाबलः ।।

महाबुद्धि: महा-वीर्यो महा-शक्ति: महा-द्युतिः।
अनिर्देश्य-वपुः श्रीमान अमेयात्मा महाद्रि-धृक ।।
पद्मनाभो-अरविंदाक्षः पद्मगर्भः शरीरभृत ।
महर्धि-ऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुड़ध्वजः ।।

अनिवर्ती निवृत्तात्मा संक्षेप्ता क्षेमकृत्-शिवः ।
श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासः श्रीपतिः श्रीमतां वरः ।।

श्रीदः श्रीशः श्रीनिवासः श्रीनिधिः श्रीविभावनः ।
श्रीधरः श्रीकरः श्रेयः श्रीमान्-लोकत्रयाश्रयः ।।

महाक्रमो महाकर्मा महातेजा महोरगः ।
महाक्रतुर्महायज्वा महायज्ञो महाहविः ।।

विश्वमूर्तिमहार्मूर्ति:दीप्तमूर्ति: अमूर्तिमान ।
अनेकमूर्तिरव्यक्तः शतमूर्तिः शताननः ।।

एको नैकः सवः कः किं यत-तत-पद्मनुत्तमम ।
लोकबंधु: लोकनाथो माधवो भक्तवत्सल:।।

चतुर्मूर्ति: चतुर्बाहु:श्चतुर्व्यूह:चतुर्गतिः ।
चतुरात्मा चतुर्भाव:चतुर्वेदविदेकपात ।।

समावर्तो-अनिवृत्तात्मा दुर्जयो दुरतिक्रमः ।
दुर्लभो दुर्गमो दुर्गो दुरावासो दुरारिहा ।।

शुभांगो लोकसारंगः सुतंतुस्तंतुवर्धनः ।
इंद्रकर्मा महाकर्मा कृतकर्मा कृतागमः ।।

उद्भवः सुंदरः सुंदो रत्ननाभः सुलोचनः ।
अर्को वाजसनः श्रृंगी जयंतः सर्वविज-जयी ।।

सुवर्णबिंदुरक्षोभ्यः सर्ववागीश्वरेश्वरः ।
महाह्रदो महागर्तो महाभूतो महानिधः ।।

सहस्रार्चिः सप्तजिव्हः सप्तैधाः सप्तवाहनः ।
अमूर्तिरनघो-अचिंत्यो भयकृत्-भयनाशनः ।।

प्रमाणं प्राणनिलयः प्राणभृत प्राणजीवनः ।
तत्त्वं तत्त्वविदेकात्मा जन्ममृत्यु जरातिगः ।।

भूर्भवः स्वस्तरुस्तारः सविता प्रपितामहः ।
यज्ञो यज्ञपतिर्यज्वा यज्ञांगो यज्ञवाहनः ।।

यज्ञभृत्-यज्ञकृत्-यज्ञी यज्ञभुक्-यज्ञसाधनः ।
यज्ञान्तकृत-यज्ञगुह्यमन्नमन्नाद एव च ।।

आत्मयोनिः स्वयंजातो वैखानः सामगायनः ।
देवकीनंदनः स्रष्टा क्षितीशः पापनाशनः ।।

शंखभृन्नंदकी चक्री शार्ङ्गधन्वा गदाधरः ।
रथांगपाणिरक्षोभ्यः सर्वप्रहरणायुधः ।।

सर्वप्रहरणायुध ॐ नमः इति।

वनमालि गदी शार्ङ्गी शंखी चक्री च नंदकी ।
श्रीमान् नारायणो विष्णु: वासुदेवोअभिरक्षतु ।

।।जय श्री राम।।

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Tuesday, 6 November 2018

महालक्ष्मी स्तुति दीपावली 2018 mahalakshmi stuti deepawali 2018

महालक्ष्मी पूजन/दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

महालक्ष्मी स्तुति मंत्र

आदि लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु परब्रह्म स्वरूपिणि।
यशो देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।1।।

सन्तान लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पुत्र-पौत्र प्रदायिनि।
पुत्रां देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।2।।

विद्या लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु ब्रह्म विद्या स्वरूपिणि।
विद्यां देहि कलां देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।3।।

धन लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व दारिद्र्य नाशिनि।
धनं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।4।।

धान्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वाभरण भूषिते।
धान्यं देहि धनं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।5।।

मेधा लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु कलि कल्मष नाशिनि।
प्रज्ञां देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।6।।

गज लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वदेव स्वरूपिणि।
अश्वांश गोकुलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।7।।

धीर लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु पराशक्ति स्वरूपिणि।
वीर्यं देहि बलं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।8।।

जय लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व कार्य जयप्रदे।
जयं देहि शुभं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।9।।

भाग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सौमाङ्गल्य विवर्धिनि।
भाग्यं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।10।।

कीर्ति लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु विष्णुवक्ष स्थल स्थिते।
कीर्तिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।11।।

आरोग्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व रोग निवारणि।
आयुर्देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।12।।

सिद्ध लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्व सिद्धि प्रदायिनि।
सिद्धिं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।13।।

सौन्दर्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु सर्वालङ्कार शोभिते।
रूपं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।14।।

साम्राज्य लक्ष्मि नमस्तेऽस्तु भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि।
मोक्षं देहि श्रियं देहि सर्व कामांश्च देहि मे।।15।।

मङ्गले मङ्गलाधारे माङ्गल्ये मङ्गल प्रदे।
मङ्गलार्थं मङ्गलेशि माङ्गल्यं देहि मे सदा।।16।।

सर्व मङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके देवि नारायणि नमोऽस्तुते।।17।।

शुभं भवतु कल्याणी आयुरारोग्य सम्पदाम्।

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Sunday, 4 November 2018

धनतेरस 2018: धन्वन्तरि मन्त्र, स्तोत्र

धनवंतरी त्रयोदशी की शुभकामनाएं

भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न करने का अत्यंत सरल मंत्र है:

ॐ धन्वंतराये नमः॥

आरोग्य प्राप्ति हेतु धन्वंतरि देव का पौराणिक मंत्र

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय
धन्वंतराये: अमृतकलश हस्ताय सर्व भयविनाशाय
 सर्व रोगनिवारणाय त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप श्री धनवंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥

अर्थात् परम भगवन को, जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरि कहते हैं, जो अमृत कलश लिए हैं, सर्व भयनाशक हैं, सर्व रोग नाश करते हैं, तीनों लोकों के स्वामी हैं और उनका निर्वाह करने वाले हैं; उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरि को सादर नमन है।

पवित्र  धन्वंतरि स्तो‍त्र :

ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम॥

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Tuesday, 9 October 2018

त्रिगुणात्मिका लघू कवच Trigunatmika Laghu kavach

शारदीय नवरात्रों की शुभकामनाएं।

त्रिगुणात्मिका लघु कवच

ॐकार:मे शिर: पातुमूलाधार निवासिनी।
ह्रींकार:पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥
श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।
हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत:॥
फट्कार:पातुसर्वांगे सर्व सिद्धि फलप्रदा।

मन्त्र:-

ॐ ह्रीं श्रीं हूं फट।

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Monday, 17 September 2018

Hanuman Panchayat ratna stotram हनुमत पंचरत्न स्तोत्रं

श्रीहनुमत्पञ्चरत्न स्तोत्रम्

(श्रीशङ्कराचार्यकृतम्)

 वीताखिलविषयेच्छं जातानन्दाश्रुपुलकमत्यच्छम् ।
सीतापतिदूताख्यं वातात्मजमद्य भावये हृद्यम् ॥ १ ॥

 तरुणारुणमुखकमलं करुणारसपूरपूरितापाङ्गम् ।
सञ्जीवनमाशासे मञ्जुलमहिमानमञ्जनाभाग्यम् ॥ २ ॥

 शम्बरवैरिशरातिग-मम्बुजदलविपुललोचनोदारम् ।
कम्बुगलमनिलदिष्टं बिम्बज्वलितोष्ठमेकमालम्बे ॥ ३ ॥

 दूरीकृतसीतार्तिः प्रकटीकृतरामवैभवस्फूर्तिः ।
दारितदशमुखकीर्तिः पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः ॥ ४ ॥

 वानरनिकराध्यक्षं दानवकुलकुमुदरविकरसदृशम् ।
दीनजनावनदीक्षं पवनतपःपाकपुञ्जमद्राक्षम् ॥ ५ ॥

 एतत् पवनसुतस्य स्तोत्रं यः पठति पञ्चरत्नाख्यम् ।
चिरमिह निखिलान् भोगान्भुक्त्वा श्रीरामभक्तिमान् भवति ॥ ६ ॥

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Monday, 6 August 2018

Baneshwar kavach बाणेश्वर कवच

बाणेश्वर कवचं ब्रह्मवैवर्त पुराणान्तर्गतम् ॥

शिवस्य कवचं स्तोत्रं श्रूयतामिति शौनक ।
वसिष्ठेन च यद्दत्तं गन्धर्वाय च यो मनुः ॥ ३९॥

ओं नमो भगवते शिवाय स्वाहेति च मनुः ।
दत्तो वसिष्ठेन पुरा पुष्करे कृपया विभो ॥ ४०॥

अयं मन्त्रो रावणाय प्रदत्तो ब्रह्मणा पुरा ।
स्वयं शम्भुश्च बाणाय तथा दुर्वाससे पुरा ॥ ४१॥

मूलेन सर्वं देयं च नैवेद्यादिकमुत्तमम् ।
ध्यायेन्नित्याधिकं ध्यानं वेदोक्तं सर्वसम्मतम् ॥ ४२॥

ॐ नमो महादेवाय ।

बाण उवाच ।
महेश्वर महाभाग कवचं यत् प्रकाशितम् ।
संसारपावनं नाम कृपया कथय प्रभो ॥ ४३॥

महेश्वर उवाच ।
शृणु वक्ष्यामि हे वत्स कवचं परमाद्भुतम् ।
अहं तुभ्यं प्रदास्यामि गोपनीयं सुदुर्लभम् ॥ ४४॥

पुरा दुर्वाससे दत्तं त्रैलोक्यविजयाय च ।
ममैवेदं च कवचं भक्त्या यो धारयेत् सुधीः ॥ ४५॥

जेतुं शक्नोति त्रैलोक्यं भगवन्नवलीलया ।
संसारपावनस्यास्य कवचस्य प्रजापतिः ॥ ४६॥

ऋषिश्च्छन्दश्च गायत्री देवोऽहं च महेश्वरः ।
धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ ४७॥

पञ्चलक्षजपेनैव सिद्धिदं कवचं भवेत् ।
यो भवेत् सिद्धकवचो मम तुल्यो भवेद्भुवि ।
तेजसा सिद्धियोगेन तपसा विक्रमेण च ॥ ४८॥

शम्भुर्मे मस्तकं पातु मुखं पातु महेश्वरः ।
दन्तपंक्तिं नीलकण्ठोऽप्यधरोष्ठं हरः स्वयम् ॥ ४९॥

कण्ठं पातु चन्द्रचूडः स्कन्धौ वृषभवाहनः ।
वक्षःस्थलं नीलकण्ठः पातु पृष्ठं दिगम्बरः ॥ ५०॥

सर्वाङ्गं पातु विश्वेशः सर्वदिक्षु च सर्वदा ।
स्वप्ने जागरणे चैव स्थाणुर्मे पातु सन्ततम् ॥ ५१॥

इति ते कथितं बाण कवचं परमाद्भुतम् ।
यस्मै कस्मै न दातव्यं गोपनीयं प्रयत्नतः ॥ ५२॥

यत् फलं सर्वतीर्थानां स्नानेन लभते नरः ।
तत् फलं लभते नूनं कवचस्यैव धारणात् ॥ ५३॥

इदं कवचमज्ञात्वा भजेन्मां यः सुमन्दधीः ।
शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्रः सिद्धिदायकः ॥ ५४॥

।।इति श्रीब्रह्मवैवर्ते शङ्कर बाणेश्वर कवचं समाप्तम् ।।

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Saturday, 21 July 2018

श्री बगुलामुखी खड्गमाला मन्त्र Baglamukhi khadag mala mantra

श्री बगुलामुखी खड्ग माला मन्त्र

यह बगुलामुखी माला मन्त्र शत्रुनाश एवं कृत्यानाश, परविद्या छेदन करने वाला एवं रक्षा कार्य हेतु प्रभावी है । साधारण साधकों को कुछ समय आवेश व आर्थिक दबाव रहता है, अतः पूजा उपरान्त शांति स्तोत्र का पाठ चाहिये ।

विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीपीताम्बरा बगलामुखी खड्गमाला मन्त्रस्य नारायण ऋषिः, त्रिष्टुप् छन्दः, बगलामुखी देवता, ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः, ॐ कीलकं, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगः ।

हृदयादि-न्यासः-नारायण ऋषये नमः शिरसि, त्रिष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, बगलामुखी देवतायै नमः हृदि, ह्लीं बीजाय नमः गुह्ये, स्वाहा शक्तये नमः पादयो, ॐ कीलकाय नमः नाभौ, ममाभीष्टसिद्धयर्थे सर्वशत्रु-क्षयार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

षडङ्ग-न्यास - कर-न्यास – अंग-न्यास -
ॐ ह्लीं अंगुष्ठाभ्यां नमः हृदयाय नमः
बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः शिरसे स्वाहा
सर्वदुष्टानां मध्यमाभ्यां नमः शिखायै वषट्
वाचं मुखं पद स्तम्भय अनामिकाभ्यां नमः कवचाय हुम्
जिह्वां कीलय कनिष्ठिकाभ्यां नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्
बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा करतल-कर-पृष्ठाभ्यां नमः अस्त्राय फट्।

ध्यानः-
हाथ में पीले फूल, पीले अक्षत और जल लेकर ‘ध्यान’ करे -

मध्ये सुधाब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्यां, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराभरण-माल्य-विभूषितांगीं, देवीं स्मरामि धृत-मुद्-गर-वैरि-जिह्वाम् ।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।

मानस-पूजनः- इस प्रकार ध्यान करके भगवती पीताम्बरा बगलामुखी का मानस पूजन करें -

ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-कनिष्ठांगुष्ठ-मुद्रा) ।
 ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (अधोमुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) ।
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-तर्जनी-अंगुष्ठ-मुद्रा) ।
 ॐ रं वह्नयात्मकं दीपं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व-मुख-मध्यमा-अंगुष्ठ-मुद्रा) ।
 ॐ वं जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-अनामिका-अंगुष्ठ-मुद्रा) । ॐ शं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीबगलामुखी-श्रीपादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि (ऊर्ध्व-मुख-सर्वांगुलि-मुद्रा) ।

खड्ग-माला-मन्त्रः-

ॐ ह्लीं सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं स्तम्भय-स्तम्भय बुद्धिं विनाशय-विनाशय अपरबुद्धिं कुरु-कुरु अपस्मारं कुरु-कुरु आत्मविरोधिनां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिका दन्तोष्ठ जिह्वा तालु-कण्ठ बाहूदर कुक्षि नाभि पार्श्वद्वय गुह्य गुदाण्ड त्रिक जानुपाद सर्वांगेषु पादादिकेश-पर्यन्तं केशादिपाद-पर्यन्तं स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय परमन्त्र-परयन्त्र-परतन्त्राणि छेदय-छेदय आत्म-मन्त्र-यन्त्र-तन्त्राणि रक्ष-रक्ष, सर्व-ग्रहान् निवारय-निवारय सर्वम् अविधिं विनाशय-विनाशय दुःखं हन-हन दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्व-मन्त्र-स्वरुपिणि सर्व-शल्य-योग-स्वरुपिणि दुष्ट-ग्रह-चण्ड-ग्रह भूतग्रहाऽऽकाशग्रह चौर-ग्रह पाषाण-ग्रह चाण्डाल-ग्रह यक्ष-गन्धर्व-किंनर-ग्रह ब्रह्म-राक्षस-ग्रह भूत-प्रेतपिशाचादीनां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय-बन्धय, वाराहि बगलामुखी मां रक्ष-रक्ष दक्षिणदिशं बन्धय-बन्धय, किरातवाराहि मां रक्ष-रक्ष पश्चिमदिशं बन्धय-बन्धय, स्वप्नवाराहि मां रक्ष-रक्ष उत्तरदिशं बन्धय-बन्धय, धूम्रवाराहि मां रक्ष-रक्ष सर्वदिशो बन्धय-बन्धय, कुक्कुटवाराहि मां रक्ष-रक्ष अधरदिशं बन्धय-बन्धय, परमेश्वरि मां रक्ष-रक्ष सर्वरोगान् विनाशय-विनाशय, सर्व-शत्रु-पलायनाय सर्व-शत्रु-कुलं मूलतो नाशय-नाशय, शत्रूणां राज्यवश्यं स्त्रीवश्यं जनवश्यं दह-दह पच-पच सकल-लोक-स्तम्भिनि शत्रून् स्तम्भय-स्तम्भय स्तम्भनमोहनाऽऽकर्षणाय सर्व-रिपूणाम् उच्चाटनं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं क्लीं ऐं वाक्-प्रदानाय क्लीं जगत्त्रयवशीकरणाय सौः सर्वमनः क्षोभणाय श्रीं महा-सम्पत्-प्रदानाय ग्लौं सकल-भूमण्डलाधिपत्य-प्रदानाय दां चिरंजीवने । ह्रां ह्रीं ह्रूं क्लां क्लीं क्लूं सौः ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय राजस्तम्भिनि क्रों क्रों छ्रीं छ्रीं सर्वजन संमोहिनि सभास्तंभिनि स्त्रां स्त्रीं सर्व-मुख-रञ्जिनि मुखं बन्धय-बन्धय ज्वल-ज्वल हंस-हंस राजहंस प्रतिलोम इहलोक परलोक परद्वार राजद्वार क्लीं क्लूं घ्रीं रुं क्रों क्लीं खाणि खाणि , जिह्वां बन्धयामि सकलजन सर्वेन्द्रियाणि बन्धयामि नागाश्व मृग सर्प विहंगम वृश्चिकादि विषं निर्विषं कुरु-कुरु शैलकानन महीं मर्दय मर्दय शत्रूनोत्पाटयोत्पाटय पात्रं पूरय-पूरय महोग्रभूतजातं बन्धयामि बन्धयामि अतीतानागतं सत्यं कथय-कथय लक्ष्मीं प्रददामि-प्रददामि त्वम् इह आगच्छ आगच्छ अत्रैव निवासं कुरु-कुरु ॐ ह्लीं बगले परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा ।

विशेषः- मूलमन्त्रवता कुर्याद् विद्यां न दर्शयेत् क्वचित् ।
विपत्तौ स्वप्नकाले च विद्यां स्तम्भिनीं दर्शयेत् ।
गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः ।
प्रकाशनात् सिद्धहानिः स्याद् वश्यं मरणं भवेत् ।
दद्यात् शानताय सत्याय कौलाचारपरायणः ।
दुर्गाभक्ताय शैवाय मृत्युञ्जयरताय च ।
तस्मै दद्याद् इमं खड्गं स शिवो नात्र संशयः ।
अशाक्ताय च नो दद्याद् दीक्षाहीनाय वै तथा ।
न दर्शयेद् इमं खड्गम् इत्याज्ञा शंकरस्य च ।।
।। श्रीविष्णुयामले बगलाखड्गमालामन्त्रः ।।

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Monday, 25 June 2018

Shri Anjaneya ashtottarshatanam श्री आंजनेय अष्टोत्तरशतनाम

श्रीमदाञ्जनेयाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् कालिकारहस्यतः

आञ्जनेयो महावीरो हनुमान्मारुतात्मजः ।
 तत्वज्ञानप्रदः सीतादेवीमुद्राप्रदायकः ॥ १॥

अशोकवनिकाच्छेत्ता सर्वमायाविभञ्जनः । सर्वबन्धविमोक्ता च रक्षोविध्वंसकारकः ॥ २॥

परविद्यापरीहारः परशौर्यविनाशनः ।
परमन्त्रनिराकर्ता परयन्त्रप्रभेदकः ॥ ३॥

सर्वग्रहविनाशी च भीमसेनसहायकृत् ।
 सर्वदुःखहरः सर्वलोकचारी मनोजवः ॥ ४॥

पारिजातद्रुमूलस्थः सर्वमन्त्रस्वरूपवान् ।
 सर्वतन्त्रस्वरूपी च सर्वयन्त्रात्मकस्तथा ॥ ५॥

कपीश्वरो महाकायः सर्वरोगहरः प्रभुः ।
 बलसिद्धिकरः सर्वविद्यासम्पत्प्रदायकः ॥ ६॥

कपिसेनानायकश्च भविष्यच्चतुराननः ।
कुमारब्रह्मचारी च रत्नकुण्डलदीप्तिमान् ॥ ७॥

सञ्चलद्वालसन्नद्धलम्बमानशिखोज्ज्वलः । गन्धर्वविद्यातत्त्वज्ञो महाबलपराक्रमः ॥ ८॥

कारागृहविमोक्ता च शृङ्खलाबन्धमोचकः ।
सागरोत्तारकः प्राज्ञो रामदूतः प्रतापवान् ॥ ९॥

वानरः केसरिसुतः सीताशोकनिवारकः । अञ्जनागर्भसम्भूतो बालार्कसदृशाननः ॥ १०॥

विभीषणप्रियकरो दशग्रीवकुलान्तकः ।
लक्ष्मणप्राणदाता च वज्रकायो महाद्युतिः ॥ ११॥

चिरञ्जीवी रामभक्तो दैत्यकार्यविघातकः ।
अक्षहन्ता काञ्चनाभः पञ्चवक्त्रो महातपाः ॥ १२॥

लङ्किणीभञ्जनः श्रीमान् सिंहिकाप्राणभञ्जनः । गन्धमादनशैलस्थो लङ्कापुरविदाहकः ॥ १३॥

सुग्रीवसचिवो धीरः शूरो दैत्यकुलान्तकः ।
 सुरार्चितो महातेजा रामचूडामणिप्रदः ॥ १४॥

कामरूपी पिङ्गलाक्षो वार्धिमैनाकपूजितः । कबलीकृतमार्तण्डमण्डलो विजितेन्दिर्यः ॥ १५॥

रामसुग्रीवसन्धाता महारावणमर्दनः ।
स्फटिकाभो वागधीशो नवव्याकृतिपण्डितः ॥ १६॥

चतुर्बाहुर्दीनबन्धुर्महात्मा भक्तवत्सलः ।
 सञ्जीवननगाहर्ता शुचिर्वाग्मी दृढव्रतः ॥ १७॥

कालनेमिप्रमथनो हरिमर्कटमर्कटः ।
 दान्तः शान्तः प्रसन्नात्मा शतकण्ठमदापहृत् ॥ १८॥

योगी रामकथालोलः सीतान्वेषणपण्डितः ।
वज्रदंष्ट्रो वज्रनखो रुद्रवीर्यसमुद्भवः ॥ १९॥

इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्रविनिवारकः । पार्थध्वजाग्रसंवासी शरपञ्जरभेदकः ॥ २०॥

दशबाहुलोर्कपूज्यो जाम्बवत्प्रीति वर्धनः ।
सीतासमेत श्रीरामभद्रपूजाधुरन्धरः ॥ २१ ॥

इत्येवं श्रीहनुमतो नाम्नामष्टोत्तरं शतम् ॥
 यः पठेच्छृणुयान्नित्यं सर्वान्कामानवाप्नुयात् ॥ २२॥

श्री कालिका रहस्य में दिए गए इस आंजनेय अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का पाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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Thursday, 21 June 2018

White gunja mala for attraction & money धन एवं आकर्षण हेतु श्वेत गुंजा माला

धनलाभ एवं आकर्षण हेतु श्वेत गुंजा माला

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Monday, 11 June 2018

Hanumat bhujang stotra हनुमत भुजंग स्तोत्र

श्रीहनुमत्भुजङ्गस्तोत्रम्

श्रीशंकराचार्यकृतम्

(भौम-प्रदोष एवं बड़ा मंगल विशेष)

स्फुरद्विद्‌युदुल्लासवालाग्रघण्टा –
झणत्कारनादप्रवृद्धाट्टहासम् ।
भजे वायुसूनुं भजे रामदूतं
भजे वज्रदेहं भजे भक्तबन्धुम् ॥ १ ॥


प्रपन्नानुरागं प्रभाकाञ्चनाङ्गं
जगद्गीतशौर्यं तुषाराद्रिशौर्यम् ।
तृणीभूतहेतिं रणोद्यद्विभूतिं
भजे वायुपुत्रं पवित्रात् पवित्रम् ॥ २ ॥

भजे रामरम्भावनीनित्यवासं
भजे बालभानुप्रभाचारुहासम् ।
भजे चन्द्रिकाकुन्दमन्दारभासं
भजे सन्ततं रामभूपालदासम् ॥ ३ ॥

भजे लक्ष्मणप्राणरक्षातिदक्षं
भजे तोषितानेकगीर्वाणपक्षम् ।
भजे घोरसंग्रामसीमाहताक्षं
भजे रामनामातिसंप्राप्तरक्षम् ॥ ४ ॥

मृगाधीशनाथं क्षितिक्षिप्तपादं
घनाक्रान्तजङ्घं कटिस्थोडुसङ्घम् ।
वियद्व्याप्तकेशं भुजाश्लेषिताशं
जयश्रीसमेतं भजे रामदूतम् ॥ ५ ॥

चलद्वालघातभ्रमच्चक्रवालं
कठोराट्टहासप्रभिन्नाब्धिकाण्डम् ।
महासिंहनादाद्विशीर्णत्रिलोकं
भजे चाञ्जनेयं प्रभुं वज्रकायम् ॥ ६ ॥

रणे भीषणे मेघनादे सनादे
सरोषं समारोप्यसौमित्रिमंसे ।
घनानां खगानां सुराणां च मार्गे
नटन्तं ज्वलन्तं हनूमन्तमीडे ॥ ७ ॥

नखध्वस्तजंभारिदम्भोलिधारं
भुजाग्रेण निर्धूतकालोग्रदण्डम् ।
पदाघातभीताहिजाताऽधिवासं
रणक्षोणिदक्षं भजे पिङ्गलाक्षम् ॥ ८ ॥

महाभूतपीडां महोत्पातपीडां
महाव्याधिपीडां महाधिप्रपीडाम् ।
हरत्याशु ते पादपद्मानुरक्तिः
नमस्ते कपिश्रेष्ठ रामप्रियाय ॥ ९ ॥

सुधासिन्धुमुल्लङ्घ्य सान्द्रे निशीथे
सुधा चौषधीस्ताः प्रगुप्तप्रभावाः ।
क्षणे द्रोणशैलस्य पृष्ठे प्ररूढाः
त्वया वायुसूनो किलानीय दत्ताः ॥ १० ॥

समुद्रं तरङ्गादिरौद्रं विनिद्रो
विलङ्घ्योडुसङ्घं स्तुतो मर्त्यसंघैः ।
निरातङ्कमाविश्य लङ्कां विशङ्को
भवानेव सीतावियोगापहारी ॥ ११ ॥

नमस्ते महासत्वबाहाय नित्यं
नमस्ते महावज्रदेहाय तुभ्यम् ।
नमस्ते पराभूतसूर्याय तुभ्यं
नमस्ते कृतामर्त्यकार्याय तुभ्यम् ॥ १२ ॥

नमस्ते सदा ब्रह्मचर्याय तुभ्यं
नमस्ते सदा वायुपुत्राय तुभ्यम् ।
नमस्ते सदा पिङ्गलाक्षाय तुभ्यं
नमस्ते सदा रामभक्ताय तुभ्यम् ॥ १३ ॥

हनूमत्भुजङ्गप्रयातं प्रभाते
प्रदोषे दिवा चार्द्धरात्रेऽपि मर्त्यः ।
पठन् भक्तियुक्तः प्रमुक्ताघजालः
नराः सर्वदा रामभक्तिं प्रयान्ति ॥ १४ ।।

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Tuesday, 22 May 2018

Rare Tantrik herb दुर्लभ तन्त्र वनस्पतियां

कल रवि पुष्य नक्षत्र में प्राप्त कुछ दुर्लभ वनस्पतियां

श्वेत गुंजा बीज एवं मूल

रक्त गुंजा बीज एवं मूल

ब्रह्मदंडी उच्चाटन वनस्पति

सहदेवी (वशीकरण)

काकजंघा (वशीकरण) एवं

श्वेतार्क मूल (सर्वकार्य सिद्धि)

।।जय श्री राम।।

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Monday, 7 May 2018

Anjaneya stotram आंजनेय स्तोत्रं

ज्येष्ठ मास(हनुमंत मास)बड़े मंगल की शुभकामनाएं
बड़ा मंगल(द्वितीय)

श्री आञ्जनेयस्तोत्रम्

      (उमामहेश्वरसंवादात्मकम्)

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि स्तोत्रं सर्वभयापहम् ।
सर्वकामप्रदं नॄणां हनूमत्स्तोत्रमुत्तमम्॥ १ ॥

तप्तकाञ्चनसंकाशं नानारत्नविभूषितम्।
उद्यत्बालार्कवदनं त्रिनेत्रं कुण्डलोज्ज्वलम् ॥ २ ॥

मौञ्जीकौपीनसंयुक्तं हेमयज्ञोपवीतिनम्।
पिङ्गलाक्षं महाकायं टङ्कशैलेन्द्रधारिणम्॥ ३ ॥

शिखानिक्षिप्तवालाग्रं मेरुशैलाग्रसंस्थितम्।
मूर्तित्रयात्मकं पीनं महावीरं महाहनुम् ॥ ४ ॥

हनुमन्तं वायुपुत्रं नमामि ब्रह्मचारिणम् ।
त्रिमूर्त्यात्मकमात्मस्थं जपाकुसुमसन्निभम् ॥ ५ ॥

नानाभूषणसंयुक्तं आञ्जनेयं नमाम्यहम् ।
पञ्चाक्षरस्थितं देवं नीलनीरद सन्निभम् ॥ ६ ॥

पूजितं सर्वदेवैश्च राक्षसान्तं नमाम्यहम् ।
अचलद्युतिसङ्काशं सर्वालङ्कारभूषितम्॥ ७ ॥

षडक्षरस्थितं देवं नमामि कपिनायकम्।
तप्तस्वर्णमयं देवं हरिद्राभं सुरार्चितम् ॥ ८ ॥

सुन्दरांसाब्जनयनं त्रिनेत्रं तं नमाम्यहम् ।
अष्टाक्षराधिपं देवं हीरवर्णसमुज्ज्वलम् ॥ ९ ॥

नमामि जनतावन्द्यं लङ्काप्रासादभञ्जनम्।
अतसीपुष्पसङ्काशं दशवर्णात्मकं विभुम् ॥ १० ॥

जटाधरं चतुर्बाहुं नमामि कपिनायकम्।
द्वादशाक्षरमन्त्रस्य नायकं कुन्तधारिणम् ॥ ११ ॥

अङ्कुशं च दधानं तं कपिवीरं नमाम्यहम् ।
त्रयोदशाक्षरयुतं सीतादुःखनिवारणम् ॥ १२ ॥

पीतवर्णं लसत्कायं भजे सुग्रीवमन्त्रिणम्।
मालामन्त्रात्मकं देवं चित्रवर्णं चतुर्भुजम् ॥ १३ ॥

पाशाङ्कुशाभयकरं धृतटङ्कं नमाम्यहम्।
सुरासुरगणैः सर्वैः संस्तुतं प्रणमाम्यहम् ॥ १४ ॥

एवं ध्यायन्नरो नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते ।
प्राप्नोति चिन्तितं कार्यं शीघ्रमेव न संशयः ॥ १५ ॥

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।।जय श्री राम।।

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Friday, 4 May 2018

शनि के सभी कष्टों से मुक्ति दिलाएगा ये छोटा सा मन्त्र

शनि के सभी कोपों कष्टों से मुक्ति दिलाता है ये मन्त्र:

अगर इन नामों का नित्य जप किया जाए तो शनिदेव अपने भक्त की हर परेशानी दूर कर देते हैं। ये प्रमुख 10 नाम इस प्रकार हैं

कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रान्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।

अर्थात:
1- कोणस्थ, 2- पिंगल, 3- बभ्रु, 4- कृष्ण, 5- रौद्रान्तक, 6- यम, 7, सौरि, 8- शनैश्चर, 9- मंद व 10- पिप्पलाद।

 इन दस नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी शनि दोष दूर हो जाते हैं।

।।जय श्रु राम।।

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Tuesday, 1 May 2018

Hanumad ashtakam हनुमदष्टकम

ज्येष्ठमास हनुमंत मास बड़े मंगल की शुभकामनाएं
  बड़ा मंगल(प्रथम)

श्री हनुमदष्टकम्

वैशाखमास कृष्णायां दशमी मन्दवासरे।
पूर्वभाद्रासु जाताय मङ्गलं श्री हनूमते ॥१॥

गुरुगौरवपूर्णाय फलापूपप्रियाय च।
नानामाणिक्यहस्ताय मङ्गलं श्री हनूमते॥२॥

सुवर्चलाकलत्राय चतुर्भुजधराय च
उष्ट्रारूढाय वीराय मङ्गलं श्री हनूमते॥३॥

दिव्यमङ्गलदेहाय पीताम्बरधराय च।
तप्तकाञ्चनवर्णाय मङ्गलं श्री हनूमते ॥४॥

भक्तरक्षणशीलाय जानकीशोकहारिणे।
ज्वलत्पावकनेत्राय मङ्गलं श्री हनूमते॥५॥

पम्पातीरविहाराय सौमित्रीप्राणदायिने।
सृष्टिकारणभूताय मङ्गलं श्री हनूमते॥६॥

रंभावनविहाराय सुपद्मातटवासिने।
सर्वलोकैकण्ठाय मङ्गलं श्री हनूमते॥७।

पञ्चाननाय भीमाय कालनेमिहराय च।
कौण्डिन्यगोत्रजाताय मङ्गलं श्री हनूमत॥८॥

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Sunday, 29 April 2018

Kurma jayanti 2018 कूर्म जयंती 2018

कूर्म जयंती/ वैशाख पूर्णिमा की शुभकामनाएं

आज 29 अप्रैल वैशाख पूर्णिमा पर भगवान श्री विष्णु ने कूर्मावतार लिया था।

आज बाज़ार से अपनी सामर्थ्य अनुसार

तांबे, चांदी, पंचधातु, अष्टधातु या स्फटिक के कूर्म यानी कछुए की आकृति वाली अंगूठी अथवा कूर्म पृष्ठ पर बने श्रीयंत्र वाली मूर्ति लाएं

और लाल चंदन, केसर, हल्दी, पंचामृत से विधि पूर्वक मन्त्रों से अभिमन्त्रित कर मध्यमा ऊँगली में धारण करें या घर- दुकान के मन्दिर में स्थापित करें।

श्री कूर्म की कृपा से समस्त प्रकार के

1.वास्तुदोष
ग्रहदोष दूर होते हैं

2.आर्थिक सुख समृद्धि, व्यापार वृद्धि, मानसिक शांति प्राप्त होती है।

3.गृह कलह का निवारण होता है।

4.वाद विवाद और शत्रुओ पर विजय मिलती है।

5.मानसिक शांति , उत्तम स्वास्थ्य, एवं स्थिर चित्त की प्राप्त होती है।

श्री कूर्म भगवान मन्त्र

ॐ श्रीं कूर्माय नम:। या

ॐ कूर्मासनाय नमः।

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Friday, 27 April 2018

Chinnamasta & Narsimha jayanti 2018 छिन्नमस्ता एवम नरसिंह जयंती 2018

श्री छिन्नमस्ता एवं भगवान नृसिंह जयंती 2018 विशेष
28 अप्रैल 2018

दस महाविद्याओं में पांचवी महाविद्या देवी छिन्नमस्ता एक अत्यंत उग्र एवं तामसी गुणों से सम्पन्न महाशक्ति हैं जो काली कुल के अंतर्गत आती हैं।
देवी को छिन्न-मुंडा, आरक्ता, रक्तनयना, रक्तपान परायणा और वज्र वाराही भी कहा जाता है।
देवी का सम्बंध भगवान श्री विष्णु के नरसिंह अवतार से है।
देवी का प्राकट्य वैशाख मास शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को हुआ था। देवी की साधना सभी कार्यों में सफलता एवं अदम्य साहस देने वाली है। देवी की कृपा से साधक अपने समस्त अवगुणों का छेदन कर कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर सकता है।
(१) देवी छिन्नमस्ता स्तुति:

देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है

स्तुति:
छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम,
प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम,
पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम,
दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम,
दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम,
अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम,
डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत।।

(२) ।।छिन्नमस्ता ध्यानम् ।।

 प्रत्यालीढपदां सदैव दधतीं छिन्नं शिरः कर्त्रिकां
दिग्वस्त्रां स्वकबन्धशोणितसुधाधारां पिबन्तीं मुदा ।
नागाबद्धशिरोमणिं त्रिनयनां हृद्युत्पलालङ्कृतां
रत्यासक्तमनोभवोपरि दृढां वन्दे जपासन्निभाम् ॥ १॥

 दक्षे चातिसिता विमुक्तचिकुरा कर्त्रीं तथा खर्परम् ।
हस्ताभ्यां दधती रजोगुणभवा नाम्नापि सा वर्णिनी ॥

देव्याश्छिन्नकबन्धतः पतदसृग्धारां पिबन्ती मुदा ।
नागाबद्धशिरोमणिर्मनुविदा ध्येया सदा सा सुरैः ॥ २॥

प्रत्यालीढपदा कबन्धविगलद्रक्तं पिबन्ती मुदा ।
सैषा या प्रलये समस्तभुवनं भोक्तुं क्षमा तामसी ॥

शक्तिः सापि परात्परा भगवती नाम्ना परा डाकिनी ।
ध्येया ध्यानपरैः सदा सविनयं भक्तेष्टभूतिप्रदा ॥ ३॥

 भास्वन्मण्डलमध्यगां निजशिरश्छिन्नं विकीर्णालकम् ।
स्फारास्यं प्रपिबद्गलात्स्वरुधिरं वामे करे बिभ्रतीम् ॥

याभासक्तरतिस्मरोपरिगतां सख्यौ निजे डाकिनी-
वर्णिन्यौ परिदृश्य मोदकलितां श्रीछिन्नमस्तां भजे॥ ४॥

(३)॥ श्रीछिन्नमस्ताकवचम् ॥

श्रीगणेशाय नमः ।
देव्युवाच ।
कथिताच्छिन्नमस्ताया या या विद्या सुगोपिताः ।
त्वया नाथेन जीवेश श्रुताश्चाधिगता मया ॥ १॥

इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं सर्वसूचितम् ।
त्रैलोक्यविजयं नाम कृपया कथ्यतां प्रभो ॥ २॥

भैरव उवाच ।
श्रुणु वक्ष्यामि देवेशि सर्वदेवनमस्कृते ।
त्रैलोक्यविजयं नाम कवचं सर्वमोहनम् ॥ ३॥

सर्वविद्यामयं साक्षात्सुरात्सुरजयप्रदम् ।
धारणात्पठनादीशस्त्रैलोक्यविजयी विभुः ॥ ४॥

ब्रह्मा नारायणो रुद्रो धारणात्पठनाद्यतः ।
कर्ता पाता च संहर्ता भुवनानां सुरेश्वरि ॥ ५॥

न देयं परशिष्येभ्योऽभक्तेभ्योऽपि विशेषतः ।
देयं शिष्याय भक्ताय प्राणेभ्योऽप्यधिकाय च ॥ ६॥

देव्याश्च च्छिन्नमस्तायाः कवचस्य च भैरवः ।
ऋषिस्तु स्याद्विराट् छन्दो देवता च्छिन्नमस्तका ॥ ७॥

त्रैलोक्यविजये मुक्तौ विनियोगः प्रकीर्तितः ।
हुंकारो मे शिरः पातु छिन्नमस्ता बलप्रदा ॥ ८॥

ह्रां ह्रूं ऐं त्र्यक्षरी पातु भालं वक्त्रं दिगम्बरा ।
श्रीं ह्रीं ह्रूं ऐं दृशौ पातु मुण्डं कर्त्रिधरापि सा ॥ ९॥

सा विद्या प्रणवाद्यन्ता श्रुतियुग्मं सदाऽवतु ।
वज्रवैरोचनीये हुं फट् स्वाहा च ध्रुवादिका ॥ १०॥

घ्राणं पातु च्छिन्नमस्ता मुण्डकर्त्रिविधारिणी ।
श्रीमायाकूर्चवाग्बीजैर्वज्रवैरोचनीयह्रूं ॥ ११॥

हूं फट् स्वाहा महाविद्या षोडशी ब्रह्मरूपिणी ।
स्वपार्श्र्वे वर्णिनी चासृग्धारां पाययती मुदा ॥ १२॥

वदनं सर्वदा पातु च्छिन्नमस्ता स्वशक्तिका ।
मुण्डकर्त्रिधरा रक्ता साधकाभीष्टदायिनी ॥ १३॥

वर्णिनी डाकिनीयुक्ता सापि मामभितोऽवतु ।
रामाद्या पातु जिह्वां च लज्जाद्या पातु कण्ठकम् ॥ १४॥

कूर्चाद्या हृदयं पातु वागाद्या स्तनयुग्मकम् ।
रमया पुटिता विद्या पार्श्वौ पातु सुरेश्र्वरी ॥ १५॥

मायया पुटिता पातु नाभिदेशे दिगम्बरा ।
कूर्चेण पुटिता देवी पृष्ठदेशे सदाऽवतु ॥ १६॥

वाग्बीजपुटिता चैषा मध्यं पातु सशक्तिका ।
ईश्वरी कूर्चवाग्बीजैर्वज्रवैरोचनीयह्रूं ॥ १७॥

हूंफट् स्वाहा महाविद्या कोटिसूर्य्यसमप्रभा ।
छिन्नमस्ता सदा पायादुरुयुग्मं सशक्तिका ॥ १८॥

ह्रीं ह्रूं वर्णिनी जानुं श्रीं ह्रीं च डाकिनी पदम् ।
सर्वविद्यास्थिता नित्या सर्वाङ्गं मे सदाऽवतु ॥ १९॥

प्राच्यां पायादेकलिङ्गा योगिनी पावकेऽवतु ।
डाकिनी दक्षिणे पातु श्रीमहाभैरवी च माम् ॥ २०॥

नैरृत्यां सततं पातु भैरवी पश्चिमेऽवतु ।
इन्द्राक्षी पातु वायव्येऽसिताङ्गी पातु चोत्तरे ॥ २१॥

संहारिणी सदा पातु शिवकोणे सकर्त्रिका ।
इत्यष्टशक्तयः पान्तु दिग्विदिक्षु सकर्त्रिकाः ॥ २२॥

क्रीं क्रीं क्रीं पातु सा पूर्वं ह्रीं ह्रीं मां पातु पावके ।
ह्रूं ह्रूं मां दक्षिणे पातु दक्षिणे कालिकाऽवतु ॥ २३॥

क्रीं क्रीं क्रीं चैव नैरृत्यां ह्रीं ह्रीं च पश्चिमेऽवतु ।
ह्रूं ह्रूं पातु मरुत्कोणे स्वाहा पातु सदोत्तरे ॥ २४॥

महाकाली खड्गहस्ता रक्षःकोणे सदाऽवतु ।
तारो माया वधूः कूर्चं फट् कारोऽयं महामनुः ॥ २५॥

खड्गकर्त्रिधरा तारा चोर्ध्वदेशं सदाऽवतु ।
ह्रीं स्त्रीं हूं फट् च पाताले मां पातु चैकजटा सती ।
तारा तु सहिता खेऽव्यान्महानीलसरस्वती ॥ २६॥

इति ते कथितं देव्याः कवचं मन्त्रविग्रहम् ।
यद्धृत्वा पठनान्भीमः क्रोधाख्यो भैरवः स्मृतः ॥ २७॥

सुरासुरमुनीन्द्राणां कर्ता हर्ता भवेत्स्वयम् ।
यस्याज्ञया मधुमती याति सा साधकालयम् ॥ २८॥

भूतिन्याद्याश्च डाकिन्यो यक्षिण्याद्याश्च खेचराः ।
आज्ञां गृह्णंति तास्तस्य कवचस्य प्रसादतः ॥ २९॥

एतदेवं परं ब्रह्मकवचं मन्मुखोदितम् ।
देवीमभ्यर्च गन्धाद्यैर्मूलेनैव पठेत्सकृत् ॥ ३०॥

संवत्सरकृतायास्तु पूजायाः फलमाप्नुयात् ।
भूर्जे विलिखितं चैतद्गुटिकां काञ्चनस्थिताम् ॥ ३१॥

धारयेद्दक्षिणे बाहौ कण्ठे वा यदि वान्यतः ।
सर्वैश्वर्ययुतो भूत्वा त्रैलोक्यं वशमानयेत् ॥ ३२॥

तस्य गेहे वसेल्लक्ष्मीर्वाणी च वदनाम्बुजे ।
ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि तद्गात्रे यान्ति सौम्यताम् ॥ ३३॥

इदं कवचमज्ञात्वा यो भजेच्छिन्नमस्तकाम् ।
सोऽपि शत्रप्रहारेण मृत्युमाप्नोति सत्वरम् ॥ ३४॥

॥ इति श्रीभैरवतन्त्रे भैरवभैरवीसंवादे
त्रैलोक्यविजयं नाम छिन्नमस्ताकवचं सम्पूर्णम् ॥

 (४) ।।श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ।।

श्रीपार्वत्युवाच --

नाम्नां सहस्रमं परमं छिन्नमस्ता-प्रियं शुभम् ।
कथितं भवता शम्भो सद्यः शत्रु-निकृन्तनम् ॥ १॥

पुनः पृच्छाम्यहं देव कृपां कुरु ममोपरि ।
सहस्र-नाम-पाठे च अशक्तो यः पुमान् भवेत् ॥ २॥

तेन किं पठ्यते नाथ तन्मे ब्रूहि कृपा-मय ।

श्री सदाशिव उवाच -

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां पठ्यते तेन सर्वदा ॥ ३॥

सहस्र्-नाम-पाठस्य फलं प्राप्नोति निश्चितम् ।
ॐ अस्य श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तर-शत-नाअम-स्तोत्रस्य सदाशिव
ऋषिरनुष्टुप् छन्दः श्रीछिन्नमस्ता देवता
मम-सकल-सिद्धि-प्राप्तये जपे विनियोगः ॥

ॐ छिन्नमस्ता महाविद्या महाभीमा महोदरी ।
चण्डेश्वरी चण्ड-माता चण्ड-मुण्ड्-प्रभञ्जिनी ॥ ४॥

महाचण्डा चण्ड-रूपा चण्डिका चण्ड-खण्डिनी ।
क्रोधिनी क्रोध-जननी क्रोध-रूपा कुहू कला ॥ ५॥

कोपातुरा कोपयुता जोप-संहार-कारिणी ।
वज्र-वैरोचनी वज्रा वज्र-कल्पा च डाकिनी ॥ ६॥

डाकिनी कर्म-निरता डाकिनी कर्म-पूजिता ।
डाकिनी सङ्ग-निरता डाकिनी प्रेम-पूरिता ॥ ७॥

खट्वाङ्ग-धारिणी खर्वा खड्ग-खप्पर-धारिणी ।
प्रेतासना प्रेत-युता प्रेत-सङ्ग-विहारिणी ॥ ८॥

छिन्न-मुण्ड-धरा छिन्न-चण्ड-विद्या च चित्रिणी ।
घोर-रूपा घोर-दृष्टर्घोर-रावा घनोवरी ॥ ९॥

योगिनी योग-निरता जप-यज्ञ-परायणा ।
योनि-चक्र-मयी योनिर्योनि-चक्र-प्रवर्तिनी ॥ १०॥

योनि-मुद्रा-योनि-गम्या योनि-यन्त्र-निवासिनी ।
यन्त्र-रूपा यन्त्र-मयी यन्त्रेशी यन्त्र-पूजिता ॥ ११॥

कीर्त्या कर्पादनी काली कङ्काली कल-कारिणी ।
आरक्ता रक्त-नयना रक्त-पान-परायणा ॥ १२॥

भवानी भूतिदा भूतिर्भूति-दात्री च भैरवी ।
भैरवाचार-निरता भूत-भैरव-सेविता ॥ १३॥

भीमा भीमेश्वरी देवी भीम-नाद-परायणा ।
भवाराध्या भव-नुता भव-सागर-तारिणी ॥ १४॥

भद्र-काली भद्र-तनुर्भद्र-रूपा च भद्रिका ।
भद्र-रूपा महा-भद्रा सुभद्रा भद्रपालिनी ॥ १५॥

सुभव्या भव्य-वदना सुमुखी सिद्ध-सेविता ।
सिद्धिदा सिद्धि-निवहा सिद्धासिद्ध-निषेविता ॥ १६॥

शुभदा शुभफ़्गा शुद्धा शुद्ध-सत्वा-शुभावहा ।
श्रेष्ठा दृष्ठि-मयी देवी दृष्ठि-संहार-कारिणी ॥ १७॥

शर्वाणी सर्वगा सर्वा सर्व-मङ्गल-कारिणी ।
शिवा शान्ता शान्ति-रूपा मृडानी मदानतुरा ॥ १८॥

इति ते कथितं देवि स्तोत्रं परम-दुर्लभमं ।
गुह्याद्-गुह्य-तरं गोप्यं गोपनियं प्रयत्नतः ॥ १९॥

किमत्र बहुनोक्तेन त्वदग्रं प्राण-वल्लभे ।
मारणं मोहनं देवि ह्युच्चाटनमतः परमं ॥ २०॥

स्तम्भनादिक-कर्माणि ऋद्धयः सिद्धयोऽपि च ।
त्रिकाल-पठनादस्य सर्वे सिध्यन्त्यसंशयः ॥ २१॥

महोत्तमं स्तोत्रमिदं वरानने मयेरितं नित्य मनन्य-बुद्धयः ।
पठन्ति ये भक्ति-युता नरोत्तमा भवेन्न तेषां रिपुभिः पराजयः ॥ २२॥

          ॥ इति श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् ॥

(५) छिन्नमस्ता गायत्री मंत्र:

ॐ वैरोचनीयै च विदमहे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
 (६)छिन्नमस्ता शाबर मन्त्र:

सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया । काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द सूर में उपजी सुष्मनी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लिन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या । पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी । देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी । चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ट जती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी ने भाखी । छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्टन्ते आपो आप, जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे । काल ना खाये ।

मंत्र  श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्रवैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा।

**********************




********************श्री नरसिंह*****************

(1) श्री लक्ष्मीनरसिंह अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र

।। ॐ श्रीं ॐ लक्ष्मीनृसिंहाय नम: श्रीं ॐ।।

 नारसिंहो महासिंहो दिव्यसिंहो महीबल:।
उग्रसिंहो महादेव: स्तंभजश्चोग्रलोचन:।।

रौद्र: सर्वाद्भुत: श्रीमान् योगानन्दस्त्रीविक्रम:।
हरि: कोलाहलश्चक्री विजयो जयवर्द्धन:।।

 पञ्चानन: परंब्रह्म चाघोरो घोरविक्रम:।
 ज्वलन्मुखो ज्वालमाली महाज्वालो महाप्रभु:।।

निटिलाक्ष: सहस्त्राक्षो दुर्निरीक्ष्य: प्रतापन:।
महाद्रंष्ट्रायुध: प्राज्ञश्चण्डकोपी सदाशिव:।।

हिरण्यकशिपुध्वंसी दैत्यदानवभञ्जन:।
 गुणभद्रो महाभद्रो बलभद्र: सुभद्रक:।।

करालो विकरालश्च विकर्ता सर्वकर्तृक:।
 शिंशुमारस्त्रिलोकात्मा ईश: सर्वेश्वरो विभु:।।

भैरवाडम्बरो दिव्याश्चच्युत: कविमाधव:।
अधोक्षजो अक्षर: शर्वो वनमाली वरप्रद:।।

विश्वम्भरो अद्भुतो भव्य: श्रीविष्णु: पुरूषोतम:।
अनघास्त्रो नखास्त्रश्च सूर्यज्योति: सुरेश्वर:।।

सहस्त्रबाहु: सर्वज्ञ: सर्वसिद्धिप्रदायक:।
वज्रदंष्ट्रो वज्रनखो महानन्द: परंतप:।।

सर्वयन्त्रैकरूपश्च सप्वयन्त्रविदारण:।
सर्वतन्त्रात्मको अव्यक्त: सुव्यक्तो भक्तवत्सल:।।

वैशाखशुक्ल भूतोत्थशरणागत वत्सल:।
उदारकीर्ति: पुण्यात्मा महात्मा चण्डविक्रम:।।

वेदत्रयप्रपूज्यश्च भगवान् परमेश्वर:।
श्रीवत्साङ्क: श्रीनिवासो जगद्व्यापी जगन्मय:।।

जगत्पालो जगन्नाथो महाकायो द्विरूपभृत्।
परमात्मा परंज्योतिर्निर्गुणश्च नृकेसरी।।

 परतत्त्वं परंधाम सच्चिदानंदविग्रह:।
लक्ष्मीनृसिंह: सर्वात्मा धीर: प्रह्लादपालक:।।

इदं लक्ष्मीनृसिंहस्य नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।
त्रिसन्ध्यं य: पठेद् भक्त्या सर्वाभीष्टंवाप्नुयात्।।

श्री भगवान महाविष्णु स्वरूप श्री नरसिंह के अंक में विराजमान माँ महालक्ष्मी के इस श्रीयुगल स्तोत्र का तीनो संध्याओं में पाठ करने से भय, दारिद्र, दुःख, शोक का नाश होता है और  अभीष्ट की प्राप्ति होती है।  

  (२) नृसिंहमालामन्त्रः

श्री गणेशाय नमः |

अस्य श्री नृसिंहमाला मन्त्रस्य नारदभगवान् ऋषिः | अनुष्टुभ् छन्दः | श्री नृसिंहोदेवता | आं बीजम् | लं शवित्तः | मेरुकीलकम् | श्रीनृसिंहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः |

ॐ नमो नृसिंहाय ज्वलामुखग्निनेत्रय शङ्खचक्रगदाप्र्हस्ताय | योगरूपाय हिरण्यकशिपुच्छेदनान्त्रमालाविभुषणाय हन हन दह दह वच वच रक्ष वो नृसिंहाय पुर्वदिषां बन्ध बन्ध रौद्रभसिंहाय दक्षिणदिशां बन्ध बन्ध पावननृसिंहाय पश्चिमदिशां बन्ध बन्ध दारुणनृसिंहाय उत्तरदिशां बन्ध बन्ध ज्वालानृसिंहाय आकाशदिशां बन्ध बन्ध लक्ष्मीनृसिंहाय पातालदिशां  बन्ध बन्ध कः कः कंपय कंपय आवेशय आवेशय अवतारय अवतारय शीघ्रं शीघ्रं | ॐ नमो नारसिंहाय नवकोटिदेवग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय अष्टकोटिगन्धर्व ग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय षट्कोटिशाकिनीग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय पंचकोटि पन्नगग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय चतुष्कोटि ब्रह्मराक्षसग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय द्विकोटिदनुजग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय कोटिग्रहोच्चाटनाय| ॐ नमो नारसिंहाय अरिमूरीचोरराक्षसजितिः वारं वारं | श्रीभय चोरभय व्याधिभय सकल भयकण्टकान् विध्वंसय विध्वंसय | शरणागत वज्रपंजराय विश्वहृदयाय प्रल्हादवरदाय क्षरौं श्रीं नृसिंहाय स्वाहा | ॐ नमो नारसिंहाय मुद्गल शङ्खचक्र गदापद्महस्ताय नीलप्रभांगवर्णाय भीमाय भीषणाय ज्वाला करालभयभाषित श्री नृसिंहहिरण्यकश्यपवक्षस्थलविदार्णाय | जय जय एहि एहि भगवन् भवन गरुडध्वज गरुडध्वज मम सर्वोपद्रवं वज्रदेहेन चूर्णय चूर्णय आपत्समुद्रं शोषय शोषय | असुरगन्धर्वयक्षब्रह्मराक्षस भूतप्रेत पिशाचदिन विध्वन्सय् विध्वन्सय् | पूर्वाखिलं मूलय मूलय | प्रतिच्छां स्तम्भय परमन्त्रपयन्त्र परतन्त्र परकष्टं छिन्धि छिन्धि भिन्धि हं फट् स्वाहा |

इति श्री अथर्वण वेदोवत्तनृसिंहमालामन्त्रः समाप्तः |
श्री नृसिम्हार्पणमस्तु ||

(३)   नरसिंह गायत्री
ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्ण दंष्ट्राय धीमहि |तन्नो नरसिंह प्रचोदयात ||

(४) नृसिंह शाबर मन्त्र :

ॐ नमो भगवते नारसिंहाय -घोर रौद्र महिषासुर रूपाय
,त्रेलोक्यडम्बराय रोद्र क्षेत्रपालाय ह्रों ह्रों
क्री क्री क्री ताडय
ताडय मोहे मोहे द्रम्भी द्रम्भी
क्षोभय क्षोभय आभि आभि साधय साधय ह्रीं
हृदये आं शक्तये प्रीतिं ललाटे बन्धय बन्धय
ह्रीं हृदये स्तम्भय स्तम्भय किलि किलि ईम
ह्रीं डाकिनिं प्रच्छादय २ शाकिनिं प्रच्छादय २ भूतं
प्रच्छादय २ प्रेतं प्रच्छादय २ ब्रंहंराक्षसं सर्व योनिम
प्रच्छादय २ राक्षसं प्रच्छादय २ सिन्हिनी पुत्रं
प्रच्छादय २ अप्रभूति अदूरि स्वाहा एते डाकिनी
ग्रहं साधय साधय शाकिनी ग्रहं साधय साधय
अनेन मन्त्रेन डाकिनी शाकिनी भूत
प्रेत पिशाचादि एकाहिक द्वयाहिक् त्र्याहिक चाथुर्थिक पञ्च
वातिक पैत्तिक श्लेष्मिक संनिपात केशरि डाकिनी
ग्रहादि मुञ्च मुञ्च स्वाहा मेरी भक्ति गुरु
की शक्ति स्फ़ुरो मन्त्र ईश्वरोवाचा ll

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।।जय श्री राम।।

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Tuesday, 17 April 2018

Akshay Tritiya 2018 Matangi Jayanti 2018 अक्षय तृतीया 2018 मातङ्गी जयंती 2018

अक्षय तृतीया 2018 विशेष

मातङ्गी जयंती एवं परशुराम जयंती की शुभकामनाएं।

नवम महाविद्या : देवी मातंगी

महाविद्याओं में नौवीं देवी मातंगी, उत्कृष्ट तंत्र ज्ञान से सम्पन्न, कला और संगीत पर महारत प्रदान करने वाली देवी हैं।

देवी मातंगी दस महाविद्याओं में नवें स्थान पर अवस्थित हैं। तंत्र शास्त्रों के अनुसार देवी के प्रादुर्भाव वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था।

देवी मातङ्गी वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप हैं और श्री कुल के अंतर्गत पूजित हैं। यह सरस्वती ही हैं और वाणी ,संगीत ,ज्ञान ,विज्ञान ,सम्मोहन ,वशीकरण ,मोहन की अधिष्ठात्री हैं।
त्रिपुरा ,काली और मातंगी का स्वरुप लगभग एक सा है। यद्यपि अन्य महाविद्याओं से भी वशीकरण ,मोहन ,आकर्षण के कर्म होते हैं और संभव हैं किन्तु इस क्षेत्र का आधिपत्य मातंगी [सरस्वती] को प्राप्त हैं ।

देवी, केवल मात्र वचन द्वारा त्रिभुवन में समस्त प्राणियों तथा अपने घोर शत्रु को भी वश करने में समर्थ हैं, जिसे सम्मोहन क्रिया कहा जाता हैं, देवी सम्मोहन विद्या एवं वाणी की अधिष्ठात्री हैं।

यह जितनी समग्रता ,पूर्णता से इस कार्य को कर सकती हैं कोई अन्य नहीं क्योकि सभी अन्य की अवधारणा अन्य विशिष्ट गुणों के साथ हुई है।
उन्हें वशीकरण ,मोहन के कर्म हेतु अपने मूल गुण के साथ अलग कार्य करना होगा जबकि मातंगी वशीकरण ,मोहन की देवी ही हैं अतः यह आसानी से यह कार्य कर देती हैं।

 देवी उच्छिष्ट चांडालिनी या महा-पिशाचिनी से भी देवी विख्यात हैं तथा देवी का सम्बन्ध नाना प्रकार के तंत्र क्रियाओं, विद्याओं से हैं।

 इंद्रजाल विद्या या जादुई शक्ति में देवी पारंगत हैं साथ ही वाक् सिद्धि, संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में निपुण हैं, नाना सिद्ध विद्याओं से सम्बंधित हैं; देवी तंत्र विद्या में पारंगत हैं।

देवी का सम्बन्ध प्रकृति, पशु, पक्षी, जंगल, वन, शिकार इत्यादि से हैं, जंगल में वास करने वाले आदिवासी-जनजातियों सेदेवी मातंगी अत्यधिक पूजिता हैं। निम्न तथा जन जाती द्वारा प्रयोग की जाने वाली नाना प्रकार की परा-अपरा विद्या देवी द्वारा ही उन्हें प्रदत्त हैं।

देवी मातंगी, मतंग मुनि के पुत्री के रूप से भी जानी जाती हैं।

देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध उच्छिष्ट भोजन पदार्थों से हैं, परिणामस्वरूप देवी, उच्छिष्ट चांडालिनी के नाम से विख्यात हैं, देवी की आराधना हेतु उपवास की आवश्यकता नहीं होती हैं। देवी की आराधना हेतु उच्छिष्ट सामाग्रीयों की आवश्यकता होती हैं क्योंकि देवी की उत्पत्ति शिव तथा पार्वती के उच्छिष्ट भोजन से हुई थी।

देवी की आराधना सर्वप्रथम भगवान विष्णु द्वारा की गई, माना जाता हैं तभी से वे सुखी, सम्पन्न, श्री युक्त तथा उच्च पद पर विराजित हैं।

देवी की आराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं, किन्तु बौद्ध धर्म के प्रारंभ में देवी का कोई अस्तित्व नहीं था। कालांतर में देवी बौद्ध धर्म में मातागिरी नाम से जानी जाने लगी।

ऐसा माना जाता हैं कि देवी की ही कृपा से वैवाहिक जीवन सुखमय होता हैं, देवी ग्रहस्त के समस्त कष्टों का निवारण करती हैं। देवी की उत्पत्ति शिव तथा पार्वती के प्रेम से हुई हैं।

देवी मातंगी का सम्बन्ध मृत शरीर या शव तथा श्मशान भूमि से हैं। देवी अपने दाहिने हाथ पर महा-शंख (मनुष्य खोपड़ी) या खोपड़ी से निर्मित खप्पर, धारण करती हैं। पारलौकिक या इंद्रजाल, मायाजाल से सम्बंधित रखने वाले सभी देवी-देवता श्मशान, शव, चिता, चिता-भस्म, हड्डी इत्यादि से सम्बंधित हैं, पारलौकिक शक्तियों का वास मुख्यतः इन्हीं स्थानों पर हैं।

तंत्रो या तंत्र विद्या के अनुसार देवी तांत्रिक सरस्वतीनाम से जानी जाती हैं एवं श्री विद्या महा त्रिपुरसुंदरीके रथ की सारथी तथा मुख्य सलाहकार हैं।

देवी मातंगी का भौतिक स्वरूप विवरण:-

।।श्रीमातङ्गीध्यानम् ।।

तालीदलेनार्पितकर्णभूषां माध्वीमदोद्घूर्णितनेत्रपद्माम्। घनस्तनीं शम्भुवधूं नमामि । तडिल्लताकान्तिमनर्घ्यभूषाम् ॥१॥

घनश्यामलाङ्गीं स्थितां रत्नपीठे शुकस्योदितं शृण्वतीं रक्तवस्त्राम् । सुरापानमत्तां सरोजस्थितां श्रीं भजे वल्लकीं वादयन्तीं मतङ्गीम् ॥२॥

माणिक्याभरणान्वितां स्मितमुखीं नीलोत्पलाभां वरां रम्यालक्तक लिप्तपादकमलां नेत्रत्रयोल्लासिनीम् । वीणावादनतत्परां सुरनुतां कीरच्छदश्यामलां मातङ्गीं शशिशेखरामनुभजे ताम्बूलपूर्णाननाम् ॥३॥

श्यामाङ्गीं शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैर्बिभ्रतीं पाशं खेटमथाङ्कुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम् । रत्नालङ्करणप्रभोज्वलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां मातङ्गीं मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धिप्रदाम्॥४॥

 देवीं षोडशवार्षिकीं शवगतां माध्वीरसाघूर्णितां श्यामाङ्गीमरुणाम्बरां पृथुकुचां गुञ्जावलीशोभिताम् । हस्ताभ्यां दधतीं कपालममलं तीक्ष्णां तथा कर्त्रिकां ध्यायेन्मानसपङ्कजेभगवतीमुच्छिष्टचाण्डालिनीम्ल ।।५॥
।।इति श्रीमातङ्गीध्यानम्।।

देवी मातंगी का शारीरिक वर्ण गहरे नीले रंग या श्याम वर्ण का है, अपने मस्तक पर देवी अर्ध चन्द्र धारण करती हैं तथा देवी तीन नशीले नेत्रों से युक्त हैं। देवी अमूल्य रत्नों से युक्त रत्नमय सिंहासन पर बैठी हैं एवं नाना प्रकार के मुक्ता-भूषण से सुसज्जित हैं, जो उनकी शोभा बड़ा रहीं हैं।

 कहीं-कहीं देवी! कमल के आसन तथा शव पर भी विराजमान हैं। देवी मातंगी गुंजा के बीजों की माला धारण करती हैं, लाल रंग के आभूषण देवी को प्रिय हैं तथा सामान्यतः लाल रंग के ही वस्त्र-आभूषण इत्यादि धारण करती हैं।
देवी सोलह वर्ष की एक युवती जैसी स्वरूप धारण करती हैं जिनकी शारीरिक गठन पूर्ण तथा मनमोहक हैं। देवी चार हाथों से युक्त हैं, इन्होंने अपने दायें हाथों में वीणा तथा मानव खोपड़ी धारण कर रखी हैं तथा बायें हाथों में खड़ग धारण करती हैं एवं अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं। इनके आस पास पशु-पक्षियों को देखा जा सकता हैं, सामान्यतः तोते इनके साथ रहते हैं।

देवी मातंगी के प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा।

कथा(१)
शक्ति संगम तंत्र के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी जी,भगवान शिव तथा पार्वती से मिलने हेतु उनके निवास स्थानकैलाश शिखर पर गये। भगवान विष्णु अपने साथ कुछ खाने की सामग्री ले गए तथा उन्होंने वह खाद्य प्रदार्थ शिव जी को भेट स्वरूप प्रदान की।भगवान शिव तथा पार्वती ने, उपहार स्वरूप प्राप्त हुए वस्तुओं को खाया, भोजन करते हुए खाने का कुछ अंश नीचे धरती पर गिरे; उन गिरे हुए भोजन के भागों से एक श्याम वर्ण वाली देवी ने जन्म लिया, जो मातंगी नाम से विख्यात हुई।
 देवी का प्रादुर्भाव उच्छिष्ट भोजन से हुआ, परिणामस्वरूप देवी का सम्बन्ध उच्छिष्ट भोजन सामग्रियों से हैं तथा उच्छिष्ट वस्तुओं से देवी की आराधना होती हैं। देवी उच्छिष्ट मातंगी नाम से जानी जाती हैं।

कथा(२)
प्राणतोषिनी तंत्र के अनुसार, एक बार पार्वती देवी ने, अपने पति भगवान शिव से अपने पिता हिमालय राज के यहाँ जाकर, अपने माता तथा पिता से मिलने की अनुमति मांगी। परन्तु, भगवान शिव नहीं चाहते थे की वे उन्हें अकेले छोड़ कर जाये। भगवान शिव के सनमुख बार-बार प्रार्थना करने पर, उन्होंने देवी को अपने पिता हिमालय राज के यहाँ जाने की अनुमति दे दी। साथ ही उन्होंने एक शर्त भी रखी कि! वे शीघ्र ही माता-पिता से मिलकर वापस कैलाश आ जाएगी। तदनंतर, अपनी पुत्री पार्वती को कैलाश से लेन हेतु, उनकी माता मेनका ने एक बगुला वाहन स्वरूप भेजा। कुछ दिन पश्चात भगवान शिव, बिन पार्वती के विरक्त हो गए तथा उन्हें वापस लाने का उपाय सोचने लगे; उन्होंने अपना भेष एक आभूषण के व्यापारी के रूप में बदला तथाहिमालय राज के घर गए। देवी इस भेष में देवी पार्वती की परीक्षा लेना चाहते थे, वे पार्वती के सनमुख गए और अपनी इच्छा अनुसार आभूषणों का चुनाव करने के लिया कहा। पार्वती ने जब कुछ आभूषणों का चुनाव कर लिया तथा उनसे मूल्य ज्ञात करना चाहा! व्यापारी रूपी भगवान शिव ने देवी से आभूषणों के मूल्य के बदले, उनसे सम्मोह की इच्छा प्रकट की। देवी पार्वती अत्यंत क्रोधित हुई अंततः उन्होंने अपनी अलौकिक शक्तिओं से उन्होंने पहचान ही लिया। तदनंतर देवी सम्भोग हेतु तैयार हो गई तथा व्यापारी से कुछ दिनों पश्चात आने का निवेदन किया।

कुछ दिनों पश्चात देवी पार्वती भी भेष बदल कर,भगवान शिव के सनमुख कैलाश पर्वत पर गई।भगवान शिव अपने नित्य संध्योपासना के तैयारी कर रहे थे। देवी पार्वती लाल वस्त्र धारण किये हुए, बड़ी-बड़ी आँखें कर, श्याम वर्ण तथा दुबले शरीर से युक्त अपने पति के सनमुख प्रकट हुई।भगवान शिव ने देवी से उनका परिचय पूछा, देवी ने उत्तर दिया कि वह एक चांडाल की कन्या हैं तथा तपस्या करने आई हैं। भगवान शिव ने देवी को पहचान लिया तथा कहाँ! वे तपस्वी को तपस्या का फल प्रदान करने वाले हैं। यह कहते हुए उन्होंने देवी का हाथ पकड़ लिया और प्रेम में मग्न हो गए। तत्पश्चात, देवी ने भगवान शिव से वार देने का निवेदन किया; भगवान शिव ने उनके इसी रूप को चांडालिनी वर्ण से अवस्थित होने का आशीर्वाद प्रदान किया तथा कई अलौकिक शक्तियां प्रदान की।

देवी मातंगी के सन्दर्भ में अन्य तथ्य:-

देवी हिन्दू समाज के सर्व निम्न जाती चांडाल या डोमसे सम्बद्ध हैं, देवी चांडालिनी हैं तथा भगवान शिव चांडाल। (चांडाल श्मशान में शव दाह से सम्बंधित कार्य करते हैं)।

तंत्र शास्त्र में देवी की उपासना विशेषकर वाक् सिद्धि (जो बोला जाये वही सिद्ध होना) हेतु, पुरुषार्थ सिद्धि तथा भोग-विलास में पारंगत होने हेतु की जाती हैं। देवी मातंगी चौंसठ प्रकार के ललित कलाओं से सम्बंधित विद्याओं में निपुण हैं तथा तोता पक्षी इनके बहुत निकट हैं।

नारदपंचरात्र के अनुसार, कैलाशपति भगवान शिवको चांडाल तथा देवी शिवा को ही उछिष्ट चांडालिनी कहा गया हैं।
एक बार मतंग मुनि ने सभी जीवों को वश में करने के उद्देश्य से, नाना प्रकार के वृक्षों से परिपूर्ण वन में देवी श्री विद्या त्रिपुरा की आराधना की। मतंग मुनि के कठिन साधना से संतुष्ट हो देवी त्रिपुरसुंदरी ने अपने नेत्रों से एक श्याम वर्ण की सुन्दर कन्या का रूप धारण किया; उन्हें राज मातंगी कहा गया जो देवी मातंगी का ही एक स्वरूप हैं। देवी, मतंग कन्या के नाम से भी जानी जाती हैं कारणवश इन्हें मातंगी नाम से जाना जाता हैं।
देवी के सनमुख बैठा तोता ह्रीं मन्त्र का उच्चारण करता है, जो बीजाक्षर हैं। कमल सृष्टि का, शंख पात्र ब्रह्मरंध, मधु अमृत, शुक या तोता शिक्षा का प्रतिक हैं।

रति, प्रीति, मनोभाव, क्रिया, शुधा, अनंग कुसुम, अनंग मदन तथा मदन लसा, देवी मातंगी की आठ शक्तियां हैं।

देवी के स्वरूप। एवं सम्बन्धित जानकारी :-

भगवती मातंगी के कई नाम हैं। इनमें प्रमुख हैं-
१.सुमुखी,
२.लघुश्यामा या श्यामला,
३.उच्छिष्टचांडालिनी,
४.उच्छिष्टमातंगी,
५.राजमातंगी,
६.कर्णमातंगी,
७.चंडमातंगी,
८.वश्यमातंगी,
९.मातंगेश्वरी,
१०.ज्येष्ठमातंगी,
११.सारिकांबा,
१२.रत्नांबा मातंगी एवं
१३.वर्ताली मातंगी।

भैरव : मतंग
कुल : श्री कुल।
दिशा : वायव्य कोण।
स्वभाव : सौम्य स्वभाव।
कार्य : सम्मोहन एवं वशीकरण, तंत्र विद्या पारंगत, संगीत तथा ललित कला निपुण।
शारीरिक वर्ण : काला या गहरा नीला।

                ।। मातङ्गी कवच ।।

।।श्रीदेव्युवाच ।।
साधु-साधु महादेव ! कथयस्व सुरेश्वर !
मातंगी-कवचं दिव्यं, सर्व-सिद्धि-करं नृणाम् ।।

                ।। श्री ईश्वर उवाच ।।
श्रृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि, मातंगी-कवचं शुभं ।
गोपनीयं महा-देवि ! मौनी जापं समाचरेत् ।।

विनियोगः-
ॐ अस्य श्रीमातंगी-कवचस्य श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषिः । विराट् छन्दः । श्रीमातंगी देवता । चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगः ।

ऋष्यादि-न्यासः-
श्री दक्षिणा-मूर्तिः ऋषये नमः शिरसि ।
विराट् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीमातंगी देवतायै नमः हृदि ।
चतुर्वर्ग-सिद्धये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

            ।।  कवच ।।
ॐ शिरो मातंगिनी पातु, भुवनेशी तु चक्षुषी ।
तोडला कर्ण-युगलं, त्रिपुरा वदनं मम ।।
पातु कण्ठे महा-माया, हृदि माहेश्वरी तथा ।
त्रि-पुष्पा पार्श्वयोः पातु, गुदे कामेश्वरी मम ।।
ऊरु-द्वये तथा चण्डी, जंघयोश्च हर-प्रिया ।
महा-माया माद-युग्मे, सर्वांगेषु कुलेश्वरी ।।
अंग प्रत्यंगकं चैव, सदा रक्षतु वैष्णवी ।
ब्रह्म-रन्घ्रे सदा रक्षेन्, मातंगी नाम-संस्थिता ।।
रक्षेन्नित्यं ललाटे सा, महा-पिशाचिनीति च ।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेत्, देवी रक्षतु नासिकाम् ।।
महा-पिशाचिनी पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा ।
लज्जा रक्षतु मां दन्तान्, चोष्ठौ सम्मार्जनी-करा ।।
चिबुके कण्ठ-देशे च, ठ-कार-त्रितयं पुनः ।
स-विसर्ग महा-देवि ! हृदयं पातु सर्वदा ।।
नाभि रक्षतु मां लोला, कालिकाऽवत् लोचने ।
उदरे पातु चामुण्डा, लिंगे कात्यायनी तथा ।।
उग्र-तारा गुदे पातु, पादौ रक्षतु चाम्बिका ।
भुजौ रक्षतु शर्वाणी, हृदयं चण्ड-भूषणा ।।
जिह्वायां मातृका रक्षेत्, पूर्वे रक्षतु पुष्टिका ।
विजया दक्षिणे पातु, मेधा रक्षतु वारुणे ।।
नैर्ऋत्यां सु-दया रक्षेत्, वायव्यां पातु लक्ष्मणा ।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी, मातंगी शुभकारिणी ।।
रक्षेत् सुरेशी चाग्नेये, बगला पातु चोत्तरे ।
ऊर्घ्वं पातु महा-देवि ! देवानां हित-कारिणी ।।
पाताले पातु मां नित्यं, वशिनी विश्व-रुपिणी ।
प्रणवं च ततो माया, काम-वीजं च कूर्चकं ।।
मातंगिनी ङे-युताऽस्त्रं, वह्नि-जायाऽवधिर्पुनः ।
सार्द्धेकादश-वर्णा सा, सर्वत्र पातु मां सदा ।।

      ।।श्रीमातङ्गीअष्टोत्तरशतनामावली ।।

श्रीमहामत्तमातङ्गिन्यै नमः । श्रीसिद्धिरूपायै नमः । श्रीयोगिन्यै नमः । श्रीभद्रकाल्यै नमः । श्रीरमायै नमः । श्रीभवान्यै नमः । श्रीभयप्रीतिदायै नमः । श्रीभूतियुक्तायै नमः । श्रीभवाराधितायै नमः । श्रीभूतिसम्पत्तिकर्यै नमः । १०।

श्रीजनाधीशमात्रे नमः । श्रीधनागारदृष्ट्यै नमः । श्रीधनेशार्चितायै नमः । श्रीधीवरायै नमः । श्रीधीवराङ्ग्यै नमः । श्रीप्रकृष्टायै नमः । श्रीप्रभारूपिण्यै नमः । श्रीकामरूपायै नमः । श्रीप्रहृष्टायै नमः । श्रीमहाकीर्तिदायै नमः । २०।

श्रीकर्णनाल्यै नमः । श्रीकाल्यै नमः । श्रीभगाघोररूपायै नमः । श्रीभगाङ्ग्यै नमः । श्रीभगावाह्यै नमः । श्रीभगप्रीतिदायै नमः । श्रीभिमरूपायै नमः । श्रीभवानीमहाकौशिक्यै नमः । श्रीकोशपूर्णायै नमः । श्रीकिशोर्यै नमः । ३०।

श्रीकिशोरप्रियानन्दईहायै नमः । श्रीमहाकारणायै नमः । श्रीकारणायै नमः । श्रीकर्मशीलायै नमः । श्रीकपाल्यै नमः । श्रीप्रसिद्धायै नमः । श्रीमहासिद्धखण्डायै नमः । श्रीमकारप्रियायै नमः । श्रीमानरूपायै नमः । श्रीमहेश्यै नमः । ४०।
 श्रीमहोल्लासिन्यै नमः । श्रीलास्यलीलालयाङ्ग्यै नमः । श्रीक्षमायै नमः । श्रीक्षेमशीलायै नमः । श्रीक्षपाकारिण्यै नमः । श्रीअक्षयप्रीतिदाभूतियुक्ताभवान्यै नमः । श्रीभवाराधिताभूतिसत्यात्मिकायै नमः । श्रीप्रभोद्भासितायै नमः । श्रीभानुभास्वत्करायै नमः । श्रीचलत्कुण्डलायै नमः । ५०।
 श्रीकामिनीकान्तयुक्तायै नमः । श्रीकपालाऽचलायै नमः । श्रीकालकोद्धारिण्यै नमः । श्रीकदम्बप्रियायै नमः । श्रीकोटर्यै नमः । श्रीकोटदेहायै नमः । श्रीक्रमायै नमः । श्रीकीर्तिदायै नमः । श्रीकर्णरूपायै नमः । श्रीकाक्ष्म्यै नमः । ६०।
 श्रीक्षमाङ्यै नमः । श्रीक्षयप्रेमरूपायै नमः । श्रीक्षपायै नमः । श्रीक्षयाक्षायै नमः । श्रीक्षयाह्वायै नमः । श्रीक्षयप्रान्तरायै नमः । श्रीक्षवत्कामिन्यै नमः । श्रीक्षारिण्यै नमः । श्रीक्षीरपूषायै नमः । श्रीशिवाङ्ग्यै नमः । ७०।
 श्रीशाकम्भर्यै नमः । श्रीशाकदेहायै नमः । श्रीमहाशाकयज्ञायै नमः । श्रीफलप्राशकायै नमः । श्रीशकाह्वाशकाख्याशकायै नमः । श्रीशकाक्षान्तरोषायै नमः । श्रीसुरोषायै नमः । श्रीसुरेखायै नमः । श्रीमहाशेषयज्ञोपवीतप्रियायै नमः । श्रीजयन्तीजयाजाग्रतीयोग्यरूपायै नमः । ८०।

 श्रीजयाङ्गायै नमः । श्रीजपध्यानसन्तुष्टसंज्ञायै नमः । श्रीजयप्राणरूपायै नमः । श्रीजयस्वर्णदेहायै नमः । श्रीजयज्वालिन्यै नमः । श्रीयामिन्यै नमः । श्रीयाम्यरूपायै नमः । श्रीजगन्मातृरूपायै नमः । श्रीजगद्रक्षणायै नमः । श्रीस्वधावौषडन्तायै नमः ।९०।

 श्रीविलम्बाविलम्बायै नमः । श्रीषडङ्गायै नमः । श्रीमहालम्बरूपाऽसिहस्ताऽऽप्दाहारिण्यै नमः । श्रीमहामङ्गलायै नमः । श्रीमङ्गलप्रेमकीर्त्यै नमः । श्रीनिशुम्भक्षिदायै नमः । श्रीशुम्भदर्पत्वहायै नमः । आनन्दबीजादिस्वरूपायै नमः । श्रीमुक्तिस्वरूपायै नमः । श्रीचण्डमुण्डापदायै नमः । १००।

 श्रीमुख्यचण्डायै नमः । श्रीप्रचण्डाऽप्रचण्डायै नमः । श्रीमहाचण्डवेगायै नमः । श्रीचलच्चामरायै नमः । श्रीचामराचन्द्रकीर्त्यै नमः । श्रीसुचामिकरायै नमः । श्रीचित्रभूषोज्ज्वलाङ्ग्यै नमः । श्रीसुसङ्गीतगीतायै नमः । १०८।

देवी मातङ्गी के कुछ मन्त्र:-

इनके मंत्र और यंत्र का उपयोग अधिकतर प्रवचनकर्ता ,धर्म गुरु ,तंत्र गुरु ,बौद्धिक लोग करते हैं जिन्हें समाज-भीड़-लोगों के समूह का नेतृत्व अथवा सामना करना होता है ,ज्ञान विज्ञानं की जानकारी चाहिए होती है। मातंगि शक्ति से इनमे सम्मोहन -वशीकरण की शक्ति होती है।

(१) अष्टाक्षर मातंगी मंत्र-

 कामिनी रंजनी स्वाहा

विनियोग— अस्य मंत्रस्य सम्मोहन ऋषि:, निवृत् छंद:, सर्व सम्मोहिनी देवता सम्मोहनार्थे जपे विनियोकग:।

ध्यान-
 श्यामंगी वल्लकीं दौर्भ्यां वादयंतीं सुभूषणाम्। चंद्रावतंसां विविधैर्गायनैर्मोहतीं जगत्।

फल व विधि-  20 हजार जप कर मधुयुक्त मधूक पूष्पों से हवन करने पर अभीष्ट की सिद्धि होती है।

(२) दशाक्षर मंत्र-
           ॐ ह्री क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।

विनियोग— अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि:र्विराट् छंद:, मातंगी देवता, ह्रीं बीजं, हूं शक्ति:, क्लीं कीलकं, सर्वेष्टसिद्धये जपे विनियोग:।

अंगन्यास--- ह्रां, ह्रीं, ह्रूं, ह्रैं, ह्रौं, ह्र: से हृदयादि न्यास करें।

फल व विधि- साधक छह हजार जप नित्य करते हुए 21 दिन प्रयोग करें। फिर दशांस हवन करें। चतुष्पद श्मसान या कलामध्य में मछली, मांस, खीर व गुगल का धूप दे तो कवित्व शक्ति की प्राप्ति होती है। इससे जल, अग्नि एवं वाणी का स्तंभन भी संभव है। इसकी साधना करने वाला वाद-विवाद में अजेय बन जाता है। उसके घर में स्वयं कुबेर आकर धन देते हैं।

(३) लघुश्यामा मातंगी का विंशाक्षर मंत्र-

ऐं नम: उच्छिष्ट चांडालि मातंगी सर्ववशंकरि स्वाहा।

विधि- विनियोग व न्यास आदि के साथ देवी की पूजा कर 11, 21, 41 दिन या पूर्णिमा/आमावास्या से पूर्णिमा/आमावास्या तक एक लाख जप पूर्ण करें।
मंत्र से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका जप उच्छिष्ट मुंह किया जाना चाहिए। ऐसा किया भी जा सकता है लेकिन विभिन्न ग्रंथों में इसे पवित्र होकर करने का भी विधान है।
अत: साधक गुरुआज्ञानुसार जप करें। जप पू्र्ण होने के बाद महुए के फूल व लकड़ी के दशांस होम कर तर्पन व मार्जन करें।

फल- इसके प्रयोग से डाकिनी, शाकिनी एवं भूत-प्रेत बाधा नहीं पहुंचा सकते हैं। इसकी साधना से प्रसन्न होकर देवी साधक को देवतुल्य बना देती है। उसकी समस्त अभिलाषाएं  पूरी होती हैं। चूंकि मातंगी वशीकरण विद्या की देवी हैं, इसलिए इसके साधक की वह शक्ति भी अद्भुत बढ़ती है। राजा-प्रजा सभी उसके वश में रहते हैं।

(४) एकोन विंशाक्षर उच्छिष्ट मातंगी तथा द्वात्रिंशदक्षरों मातंगी मंत्र

मंत्र (एक)--- नम: उच्छिष्ट चांडालि मातंगी सर्ववशंकरि स्वाहा।

मंत्र (दो)---- ऊं ह्रीं ऐं श्रीं नमो भगवति उच्छिष्टचांडालि श्रीमातंगेश्वरि सर्वजन वशंकरि स्वाहा।

विधि- विधिपूर्वक दैनिक पूजन के बाद निश्चित (जो साधक जप से पूर्व तय करे) समयावधि (घंटे या दिन) में दस हजार जप कर पुरश्चरण करे। उसके बाद दशांस हवन करे।

फल- मधुयुक्त महुए के फूल व लकड़ी से हवन करने पर वशीकरण का प्रयोग सिद्ध होता है। मल्लिका फूल के होम से योग सिद्धि, बेल फूल के हवन से राज्य प्राप्ति, पलास के पत्ते व फूल के हवन में जन वशीकरण, गिलोय के हवन से रोगनाश, थोड़े से नीम के टुकड़ों व चावल के हवन से धन प्राप्ति, नीम के तेल से भीगे नमक से होम करने पर शत्रुनाश, केले के फल के हवन से समस्त कामनाओं की सिद्धि होती है। खैर की लकड़ी से हवन कर मधु से भीगे नमक के पुतले के दाहिने पैर की ओर हवन की अग्नि में तपाने से शत्रु वश में होता है।

(५) सुमुखी मातंगी प्रयोग

इसमें दो मंत्र हैं जिसमें सिर्फ ई की मात्रा का अंतर है पर ऋषि दोनों के अलग-अलग हैं। इसमें फल समान है।

मंत्र(१)  उच्छिष्ट चांडालिनी सुमुखी देवी महापिशाचिनी ह्रीं ठ: ठ: ठ:।

इसके ऋषि अज, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।

विधि- देवी के विधिपूर्वक पूजन के बाद जूठे मुंह आठ हजार जप करने से ही इसका पुरश्चरण होता है। साधक को धन की प्राप्ति होती है और उसका आभामंडल बढ़ता है। हवन की विधि नीचे है।

मंत्र(२) उच्छिष्ट चांडालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठ: ठ: ठ:।

इसके ऋषि भैरव, छंद गायत्री और देवता सुमुखी मातंगी हैं।

विधि- इसकी कई विधियां हैं। एक में एक लाख मंत्र जप का भी विधान वर्णित है। जानकरों के अनुसार देवी के विधिपूर्वक पूजन के बाद जूठे मुंह दस हजार जप करने से ही इसका पुरश्चरण होता है और साधक को धन की प्राप्ति होती है तथा उसका आभामंडल बढ़ता है।

हवन विधि- दही मिश्रित पीली सरसो व चावल से हवन करने पर राजा-मंत्री सभी वश में हो जाते हैं। बिल्ली के मांस से हवन करने पर शस्त्र का वसीकरण होता है। बकरे के मांस के हवन से धन-समृद्धि मिलती है। खीर के हवन से विद्या प्राप्ति तथा मधु व घी युक्त पान के पत्तों के हवन से महासमृद्धि की प्राप्ति होती है। कौवे व उल्लू के पंख के हवन से शत्रुओं का विद्वेषण होता है।

(६) कर्ण मातंगी साधना मंत्र

ऐं नमः श्री मातंगि अमोघे सत्यवादिनि ममकर्णे अवतर अवतर सत्यं कथय एह्येहि श्री मातंग्यै नमः।

ऐं बीज से षडंगन्यास करें।
पुरश्चरण के लिए आठ हजार की संख्या में जप करें।
कई बार प्रतिकूल ग्रह स्थिति रहने पर जप संख्या थोड़ी बढ़ानी भी पड़ती है।
41 दिन मे साधना पूर्ण होती है ।
दोनों मे से किसी एक मंत्र का जाप कर सकते है ।
लाल चन्दन की या मूँगे या रुद्राक्ष की माला मंत्र जाप के लिए श्रेष्ठ है ।

इसमें हवन भी आवश्यक नहीं है।
खीर को प्रसाद रूप में माता को चढ़ा कर उससे हवन करना अतिरिक्त ताकत देता है।
इसके साधक को माता कर्ण मातंगी भविष्य में घटने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं की जानकारी स्वप्न में देती हैं।
इच्छुक साधक को माता से प्रश्न का जवाब भी मिल जाता है। भक्ति-पूर्वक एवं निष्काम साधना करने पर माता साधक का पथ-प्रदर्शन करती हैं।

(७) मातङ्गी गायत्री:-
  ॐ शुकप्रियाये विद्महे श्रीकामेश्वर्ये धीमहि
    तन्न: श्यामा प्रचोदयात।

(८) मातंगी शाबर मन्त्र

ॐ शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ॐ-कार, ॐ-कार में शक्ति, शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर अस्वारी उग्र उन्मत्त मुद्राधारी, उद गुग्गल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य-मांसे घृत-कुण्डे सर्वांगधारी । बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते । ॐ मातंगी-सुन्दरी, रुपवन्ती, कामदेवी, धनवन्ती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्नदाती, मातंगी जाप मन्त्र जपे काल का तुम काल को खाये । तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरखनाथजी करे ।

(९) मातङ्गी यन्त्र:-

जिनके घर में सदा क्लेश हो, पति पत्नी में मतभेद बढ़ गए हों, एक दूसरे की तरफ प्रेम न हो, तरक्की न होती हो या संतान गलत दिशा में भटक गयी हो अथवा रोज कोई न कोई अपशकुन होता हो उन्हें किसी सिध्द मातङ्गी साधक से मातङ्गी यन्त्र विधि पूर्वक प्रतिष्ठित करवा कर अपने घर मे स्थापित करना चाहिए व् इसका नित्य पूजन करना चाहिए।

नोट==◆ मातंगी महाविद्या का मंत्र ,मातंगी साधक ही प्रदान कर सकता है ,अन्य किसी महाविद्या का साधक इनके मंत्र को प्रदान करने का अधिकारी नहीं है ।
स्वयं मंत्र लेकर जपने से महाविद्याओं के मंत्र सिद्ध नहीं होते ,अतः जब भी मंत्र लिया जाए मातंगी साधक से ही लिया जाए ,यद्यापि मातंगी साधक खोजे नहीं मिलते जबकि अन्य महाविद्या के साधक मिल जाते
हैं । अतः किसी भी मन्त्र प्रयोग से पूर्व किसी सिद्ध मातङ्गी साधक से दीक्षा अवश्य लें।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान, कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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