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Wednesday, 26 July 2017

Nag panchami 2017 remedies special नाग पंचमी 2017 विशेष उपाय

नाग पंचमी 2017 विशेष: कथा, नाग मन्त्र, स्तोत्र एवं उपाय

मित्रों,
 कल 27 जुलाई 2017 को नाग पंचमी का पर्व है जो देश भर में मनाया जाता है।

पंचांग से:-
 27 जुलाई 2017 को प्रात: 7 बजकर 5 मिनट तक भद्रा लगी हुई है, इसलिए इस दौरान पूजा ना करें। पंचमी तिथि प्रात: 7 बजकर 5 मिनट पर प्रारंभ होगी, जो कि 28 जुलाई को सुबह: 6 बजकर 38 मिनट तक रहेगी। 27 जुलाई को दोपहर 1:58 से 3:40 बजे तक राहु काल है। ( स्थानियमान अनुसार उक्त समय मे कुछ मिनट आगे पीछे का अंतर सम्भव है।)

विशेष योग:-
 इस वर्ष नागपंचमी का विशेष महत्व और शुभदायक है। पंचमी तिथि का देवता सर्प है। राहु सर्प का स्वरूप है। लग्न का स्वामी चंद्रमा बुध के साथ है। लग्न में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र का स्वामी मंगल के साथ होने से सर्पयोग बन रहा है। इस प्रकार के योग में सर्प देवता का पूजन करने से सर्पदंश का भय नहीं रहता।
प्रान्त अनुसार पूजन के तरिको में कुछ फर्क हो सकता है किन्तु महत्व सब जगह एक समान ही है।

मनुष्यों और नागों का संबंध पौराणिक कथाओं में झलकता रहा है । शेषनाग के सहस्र फनों पर पृथ्वी टिकी है, भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषशय्या पर सोते हैं, शिवजी के गले में सर्पों के हार हैं, कृष्ण-जन्म पर नाग की सहायता से ही वसुदेवजी ने यमुना पार की थी । जनमेजय ने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने हेतु सर्पों का नाश करनेवाला जो सर्पयज्ञ आरम्भ किया था, वह आस्तीक मुनि के कहने पर इसी पंचमी के दिन बंद किया था । यहाँ तक कि समुद्र-मंथन के समय देवताओं की भी मदद वासुकि नाग ने की थी । अतः नाग देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है – नागपंचमी

नाग पंचमी के आरंभिक इतिहास के संबंध में श्रीवराह पुराण में लिखा है कि इस शुभ तिथि को सृजन शक्ति के अधिष्ठता ब्रम्हाजी ने अपने प्रसाद से शेषनाग को अलंकृत किया और पृथ्वी का भार धारण करने जैसी सेवा के लिए जनता ने उनकी प्रशंसा की थी। कहा जाता है कि तभी से इस त्योहार को नाग जाति के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने का प्रतीक मान लिया गया है। यजुर्वेद में भी नागों के गुण, कीर्ति, प्रशंसा और पूजन का उल्लेख मिलता है। इस व्रत का माहात्म्य पढऩे या सुनने मात्र से ही समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

कहीं घरके मन्दिर आले में स्थापना गेरू चन्दन से की जाती है तो कहीं द्वार पर। कहीं मूर्ति पूजी जाती है तो कहीं बाम्बी। कहीं पञ्च नाग , कहीं अष्ट नाग तो कहीं 9 नाग पूजे जाते है ।

 नाग पंचमी की कथा, नाग मन्त्र एवम् स्तोत्र:-

नागपंचमी का पौराणिक कथा एवं इतिहास :

नाग पंचमी पर स्थानीय कथाएं अधिक प्रचलित होती हैं  जिनमे कहीं राजा और नागदेव, कहीं सती पत्नी और नागदेव तो कहीं किसान और नागदेव की कथाएँ अधिक प्रचलित हैं।

पुराणों से:-

 राक्षसों और देवताओं में संधि के उपरांत दोनों ने मिलकर समुद्र मंथन किया । इस मंथन से अनेकों तत्व सहित अत्यन्त श्वेत उच्चैःश्रवा नमक  एक अश्व भी निकला। जिसे देखकर नाग माता कद्रु अपनी सौतन विनता को बोली की देखो, यह अश्व सफेद है, परन्तु इसके बाल काले दिखाई पड़ते हैं। विनता ने कहा  नहीं, न तो यह अश्व श्वेत रंग का है न ही काला। इतना सुनकर कद्रु ने बोली आप मेरे साथ चाहो तो शर्त लगा लो जो भी शर्त हारेगी वो दूसरे की दासी बन होगी ।

विनता सत्य बोल रही थी अतएव उसने शर्त स्वीकार कर ली। तदोपरांत दोनों अपने स्थान पर चली गईं। उधर कद्रु ने अपने पुत्र नागों को बुला कर और सारा वृतान्त सुनाया और बोली कि आप सभी सूक्ष्म रूप के होकर इस अश्व से चिपक जाओ जिससे  मैं शर्त जीतकर विनता को दासी बना सकूं। अपनी माता के कथन सुनकर नागों ने बोला – मां हम आपका साथ नहीं दे सकते चाहे आप शर्त जीतो या हारो, परन्तु हम इस प्रकार छल नहीं करेंगे।

कद्रु ने कहा- तुमने मेरी बात नहीं मानी ? इसका दंड झेलने के लिए तैयार रहो मैं तुम्हें श्राप दे रही हूँ कि ‘पांडवों के वंशज  जनमेजय द्वारा जब सर्प यज्ञ किया जायेगा, तब तुम सब उस हवन अग्नि जल जाओगे। माता का श्राप सुन सभी घबरा गए  और बासुकि नाग को साथ लेकर ब्रह्म लोक  ब्रह्मा जी के पास गए और आप बीती घटना कह सुनाई। ब्रह्मा जी ने बोले – चिन्ता न करो, यायावर वंश में एक तपस्वी जरतकारु नामक ब्राह्मण का जन्म होगा। उसके साथ तुम्हारी बहन का विवाह होगा। उन दोनों का के घर आस्तिक नमक विख्यात पुत्र जन्म लेगा, वह जनमेजय द्वारा सर्प यज्ञ को रोक कर तुम्हारी रक्षा करेगा।

ब्रह्मा जी ने श्रावण शुक्ल पंचमी पंचमी के दिन ये वरदान  दिया था तथा आस्तिक मुनि ने भी उक्त कथानुसार  पंचमी को ही इन नागों की रक्षा की थी। इस लिए  तब से नागपंचमी की तिथि नाग वंश को अत्यन्त प्रिय है।
 कहते हैं जो लोग श्रावण शुक्ल पंचमी को व्रत कर नागों की पूजा करते हैं । बारह मास तक चतुर्थी तिथि को एक बार भोजन कर पंचमी को व्रत करते हैं एवं १२ प्रमुख नाग क्रमश अनंत, बासुकि, शंख व पद्म, कंबल, कर्कोटक तथा अश्वतर, घृतराष्ट,शंखपाल, एवं कालिया, तक्षक, और पिंगल इन सभी  नागों की बारह माह में क्रमशः पूजा विधान के साथ करते है। जिस यज्ञ विधान से जनमेजय अपने पिता परीक्षित के लिए यज्ञ  किया था।

जो कोई नाग पंचमी के दिन श्रद्धापूर्वक यह व्रत करता है उसे शुभफल सहित सर्प भय दूर हो जाता है । यह भी माना जाता है की इस दिन नागों को दूध से स्नान-पान कराने  नाग देव अभय दान देते हैं ।उनके परिवार में सर्पभय दूर हो जाता है। ऐसे जातक पर से वर्तमान में  कालसर्पयोग भी क्षीण हो जाता है।

नाग पंचमी पर इन सूक्त, स्तोत्र के पाठ और मन्त्र जप करते हुए भगवान शिव का पूजन, अभिषेक करने से, नाग देवता की पूजा करने से सर्प भय का नाश होता है और सर्प दंश से रक्षा होती है।

।।श्री सर्प सूक्तम।।

ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:। नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।1।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।

कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।

सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।

पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।

ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।

समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।

रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।

(१)नाग गायत्री मंत्र :-

ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धीमहि
तन्नो सर्प: प्रचोदयात ll

(२) सर्प-भय-नाशक मनसा-स्तोत्र—

महाभारत में जब राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने तक्षक से बदला लेने के लिए सर्पनाश का यज्ञ किया तो सब सांप मरने लगे , उस समय उन्हें आस्तिक नामक मुनि ने बचाया जो भगवान शिव की मानस पुत्री मनसा देवी के पुत्र थे।

मनसा देवी के इस स्तोत्र का पाठ करने से सर्प दंश से रक्षा होती है और मनसा देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

ध्यानः-
चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् ।
नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।।

।। मूल-स्तोत्र ।।

।। श्रीनारायण उवाच ।।
नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः ।
 नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।।
बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः ।
नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।।
तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः ।
साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।।

।। फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् ।
 यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।।
न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति ।
 वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।।

(३) यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है । जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता ।


जो पुरुष पूजा के समय इन बारह नामों का पाठ करता है, उसे तथा उसके वंशज को भी सर्प का भय नहीं हो सकता। इन बारह नामों से विश्व इनकी पूजा करता है। उसके सामने उग्र से उग्र सर्प भी शांत हो जाता है।

जरत्कारुर्जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।
 वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।। जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीति च ।
 महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।।
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत् ।
 तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।।


 (४)कालसर्प योग एवम राहु केतु शांति हेतु:-

चांदी और तांबे के 1-1 जोड़ी सर्प लेकर नाग देवता मन्दिर में अर्पण करें। दूध से अभिषेक एवं चन्दन का तिलक कर भोग अर्पण करें।

नाग मन्दिर न हो तो शिव लिंग पर इन्हें चढ़ाकर ॐ नमः शिवाय या महामृत्युंजय मंत्र से यथासम्भव अधिकाधिक जप करते हुए अभिषेक करें।

(५) नाग देवता कृपा प्राप्ति मंत्र :-

इस मंत्र का जप करते हुए सांप की बाम्बी या किसी बड़े वृक्ष जिसके नीचे बिल या कोटर हो मिट्टी के पात्र में दूध चढ़ाएं।

'सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।'

अर्थात् - संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम...।

(६) धन धान्य प्राप्ति:-

 मान्यता है कि पृथ्वी के नीचे पाताल पुरी के सप्तलोकों में एक नाग लोक भी है जिसके राजा नागदेवता हैं। पाताल लोक सोने चांदी, बहुमूल्य रत्नों और विभिन्न प्रकार के दुर्लभ मणियों से भरा है। नाग देवता की नियमित पूजा करने पर वो प्रसन्न होकर वे अपने अमूल्य खजाने से व्यक्ति को धन और ऐश्वर्य से परिपूर्ण कर देते हैं।

।।नवनाग स्तोत्र ll

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं तथा
एतानि नव नामानि नागानाम च महात्मनं
सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत

ll इति श्री नवनाग स्त्रोत्रं सम्पूर्णं ll

(७) भय नाश एवं रक्षा हेतु:-

श्री नाग स्तोत्र

अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च ।
सुमन्तुजैमिनिश्चैव पञ्चैते वज्रवारका: ॥१॥

मुने: कल्याणमित्रस्य जैमिनेश्चापि कीर्तनात् ।
विद्युदग्निभयं नास्ति लिखितं गृहमण्डल ॥२॥

अनन्तो वासुकि: पद्मो महापद्ममश्च तक्षक: ।
कुलीर: कर्कट: शङ्खश्चाष्टौ नागा: प्रकीर्तिता: ॥३॥

यत्राहिशायी भगवान् यत्रास्ते हरिरीश्वर: ।
भङ्गो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा ॥४॥

॥ इति श्रीनागस्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥


(८) कन्या के विवाह हेतु:-

जिन कन्याओं के विवाह में विलंब हो रहा हो वे नाग देवता के मंदिर में ऐसी प्रतिमा जिसमें नाग नागिन का जोड़ा हो या दो नाग सम्मुख आलिंगन बद्ध यानी लिपटे हुए हों, उनका देवी एवं देवता का अलग अलग श्रृंगार चढ़कर कर विधि विधान से पूजन करवाएं।

(९) विशेष भोग:-

नाग देवता की प्रसन्नता के लिए  इस दिन खीर बनाकर पूजन कर भोग लगाकर किसी पेड़ की नीचे खीर रख दें।
( विशेष बात: ये खीर सिर्फ नाग देवता के लिये होती है इसे भूलकर भी स्वयम न खायें न ही बच्चों या किसी अन्य व्यक्ति को दें, इसलिए थोड़ी ही बनाएं और भगवान को अर्पित कर दें)

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Tuesday, 25 July 2017

Bhagwan Mrityunjay: Nageshwar मृत्युंजय लिंग जागेश्वर धाम

बाबा जागनाथ: मृत्युँजय लिँग जागेश्वर धाम

मित्रोँ देश मेँ शायद ही ऐसे अन्य धाम होँगे जहाँ एक ही मँदिर परिसर मेँ एक साथ दो या अधिक जागृत शिवलिँग होँ।
जागेश्वर धाम मेँ महादेव मृत्युँजय रूप मेँ दूसरे जागृत लिँग मेँ विराजमान हैँ। इसकी महिमा भी अवर्णनीय है।

आठवीँ सदी मेँ जब आदि शँकराचार्य यहाँ आये तो ये देख विस्मित हुए कि लोग इस लिँग का भी दुरुपयोग कर रहे हैँ और दूसरोँ को कष्ट पहुँचाने के लिए प्रार्थना कर रहे हैँ तब उन्होँने इसके निचले भाग को लकड़ी के 7 पटरोँ से ढक दिया और इसे शाँत किया। मात्र एक नेत्र आकार का स्थान छोड़ा ताकि शक्ति प्रस्फुटित होती रहे। आज भक्तजन इसी नेत्र पर हाथ रख वर माँगते हैँ।
जिन लोगोँ की कुण्डली मेँ प्रबल अकालमृत्यु योग, कालसर्पदोष, अँग भँग या भीषण दुर्घटना के योग होँ या कोई भी शनि राहु या केतु के द्वारा कष्ट ग्रस्त हो यहाँ आकर भगवान मृत्युँजय का रूद्राभिषेक करवाकर और महामृत्युँजय मँत्र का जप कर अपने समस्त कष्टोँ से मुक्ति पाता है।

निसँतान और पुत्रहीन लोगोँ के लिए इससे बड़ा कोई अन्य तीर्थ नहीँ है। यहाँ ऐसे हजारोँ घर हैँ जिन्हेँ यहाँ पुत्र मिला है। यदि निसँतान दम्पत्ति यहाँ रुद्राभिषेक कराएँ और रात भर अपने हाथ मेँ दिया लेकर जप करेँ तो पुत्र सँतान अवश्य होती है इसमेँ कोइ सँशय नहीँ।

जय बाबा जागनाथ।

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Sunday, 16 July 2017

Kark sankranti/ narela 2017 हरेला 2017 कर्क संक्रांति

कर्क संक्रांति "हरेला पर्व" 2017 की शुभकामनाएं

श्रावण संक्रांति में सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेंगे. श्रावण संक्रान्ति का समय 16 जुलाई 2017 को आरंभ होगा. संक्रांति के पुण्य काल समय दान, जप, पूजा पाठ इत्यादि का विशेष महत्व होता है इस समय पर किए गए दान पुण्य का कई गुना फल प्राप्त होता है. ऐसे में शंकर भगवान की पूजा का विशेष महत्व माना गया है.

सूर्य का एक राशि से दूसरा राशि में प्रवेश 'संक्रांति' कहलाता है. सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश ही ‘कर्क संक्रांति या श्रावण संक्रांति' कहलाता है. सूर्य  के 'उत्तरायण ' होने को 'मकर संक्रांति ' तथा 'दक्षिणायन' होने को 'कर्क संक्रांति' कहते हैं.  'श्रावण'से 'पौष' मास तक सूर्य का उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक जाना ' दक्षिणायन' होता है. कर्क संक्रांति में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं. शात्रों एवं धर्म के अनुसार 'उत्तरायण' का समय देवतायओं का दिन तथा 'दक्षिणायन 'देवताओं की रात्री होती है. इस प्रकार, वैदिक काल से 'उत्तरायण' को 'देवयान' तथा ' दक्षिणायन' के 'पितृयान' कहा जाता रहा है.

कर्क संक्रांति पूजन

कर्क संक्रांति समय काल में सूर्य पितरों का अधिपति माना जाता है. इस काल में षोड़श कर्म और अन्य मांगलिक कर्मों के आतिरिक्त अन्य कर्म ही मान्य होते हैं. श्रवण मास में विशेष रुप से श्री भगवान भोले नाथ की पूजा- अर्चना कि जाती है. इस माह में भगवान भोलेनाथ की पूजा करने से पुण्य फलों में वृ्द्धि होती है.

इस मास में प्रतिदिन श्री शिवमहापुराण व शिव स्तोस्त्रों का विधिपूर्वक पाठ करके दुध, गंगा-जल, बिल्बपत्र, फल इत्यादि सहित शिवलिंग का पूजन करना चाहिए. इसके साथ ही इस मास में "ऊँ नम: शिवाय:" मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना लाभकारी रहता है.

स्त्रियों के लिए:-

 इस मास के प्रत्येक मंगलवार को श्री मंगलागौरी का व्रत, पूजान इतियादि विधिपूर्वक करने से स्त्रियों को विवाह, संतान व सौभाग्य में वृद्धि होती है.

सावन संक्रांति महत्व

सावन संक्रांति अर्थात कर्क संक्रांति से वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है. देवताओं की रात्रि प्रारम्भ हो जाती है और चातुर्मास या चौमासा का भी आरंभ इसी समय से हो जाता है. यह समय व्यवहार की दृष्टि से अत्यधिक संयम का होता है क्योंकि इसी समय तामसिक प्रवृतियां अधिक सक्रिय होती हैं. व्यक्ति का हृदय भी गलत मार्ग की ओर अधिक अग्रसर होता है अत: संयम का पालन करके विचारों में शुद्धता का समावेश करके ही व्यक्ति अपने जीवन को शुद्ध मार्ग पर ले जा सकने में सक्षम हो पाता है.

इस समय उचित आहार विहार पर विशेष बल दिया जाता है. इस समय में शहद का प्रयोग विशेष तौर पर करना लाभकारी माना जाता है. अयन की संक्रांति में व्रत, दान कर्म एवं स्नान करने मात्र से ही प्राणी संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है.

कर्क संक्रांति को 'दक्षिणायन' भी कहा जाता है इस संक्रांति में व्यक्ति को सूर्य स्मरण, आदित्य स्तोत्र एवं सूर्य मंत्र इत्यादि का पाठ व पूजन करना चाहिए जिसे अभिष्ट फलों की प्राप्ति होती है. संक्रांति में की गयी सूर्य उपासना से दोषों का शमन होता है. संक्रांति में भगवान विष्णु का चिंतन-मनन शुभ फल प्रदान करता है.

हरेला पर्व

उत्तराखंड में मनाए जाने वाले लोक-त्यौहारों में एक प्रमुख त्यौहार है हरेला। यह लोकपर्व हर साल ‘कर्क संक्रांति’ को मनाया जाता है। अंग्रेजी तारीख के अनुसार, यह त्यौहार हर वर्ष सोलह जुलाई को होता है। लेकिन कभी-कभी इसमें एक दिन का अंतर हो जाता है।

उल्लेखनीय कि हिन्दू पंचांग के अनुसार, जब सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश करता है, तो उसे कर्क संक्रांति कहते हैं। तिथि-क्षय या तिथि वृद्धि के कारण ही यह पर्व एक दिन आगे-पीछे हो जाता है।

बोये जाते हैं सात प्रकार बीज

सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है। इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है। नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं। दसवें दिन इसे काटा जाता है। 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है। घर के सदस्य इन्हें बहुत आदर के साथ अपने शीश पर रखते हैं। घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है! इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी! साथ ही प्रभू से फसल अच्छी होने की कामना भी की जाती है।

हर दिन सांकेतिक रूप से इनकी गुड़ाई भी की जाती है और हरेले के दिन कटाई। यह सब घर के बड़े बुज़ुर्ग या पंडित करते हैं। पूजा ,नैवेद्य, आरती आदि का विधान भी होता है। कई तरह के पकवान बनते हैं।

नव-जीवन और विकास से जुड़ा है यह त्यौहार...

सभी सातों प्रकार के बीजों से अंकुरित हरे-पीले रंग के तिनकों को देवताओं को अर्पित करने के बाद घर के सभी लोगों के सर पर या कान के ऊपर रखा जाता है। घर के दरवाजों के दोनों ओर या ऊपर भी गोबर से इन तिनकों को सजाया जाता है।

इस लोक-त्यौहार और परम्परा का संबंध उर्वरता, खुशहाली, नव-जीवन और विकास से जुड़ा है। कुछ लोग मानते हैं कि सात  तरह के बीज सात जन्मों के प्रतीक हैं।

कुँवारी बेटियां लगाती हैं पिठ्या...

कुँवारी बेटियां बड़े लोगो को पिठ्या (रोली) अक्षत से टीका करती हैं और भेंट स्वरुप कुछ रुपये पाती हैं। बड़े लोग अपने से छोटे लोगों को इस प्रकार आशीर्वाद देते हैं। इस मौके पर दीर्घायु, बुद्धिमान और शक्तिमान होने का आशीर्वाद और शुभकामना से ओतप्रोत लोकगीत गाया जाता है:

“जी रया जागि रया आकाश जस उच्च,
धरती जस चाकव है जया स्यावै क जस बुद्धि,
सूरज जस तराण है जौ सिल पिसी भात खाया,
जाँठि टेकि भैर जया दूब जस फैलि जया...”

चावल भी सिल में पीस के खाएं…, दूब की तरह फैलो…
इस गीत का अर्थ है: "जीते रहो जागृत रहो। आकाश जैसी ऊँचाई, धरती जैसा विस्तार, सियार की सी बुद्धि, सूर्य जैसी शक्ति प्राप्त करो। आयु इतनी दीर्घ हो कि चावल भी सिल में पीस के खाएं और बाहर जाने को लाठी का सहारा लो,दूब की तरह फैलो।"

हरेला के दिन पंडित भी अपने यजमानों के घरों में पूजा आदि करते हैं और सभी लोगो के सर पर हरेले के तिनकों को रखकर आशीर्वाद देते हैं। लोग परिवार के उन लोगों को जो दूर गए हैं या रोज़गार के कारण दूरस्थ हो गए हैं, उन्हें भी पत्र द्वारा हरेले का आशीष भेजते हैं।

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Wednesday, 12 July 2017

Mantra for physical and mental illness शारीरिक मानसिक रोगों से मुक्ति हेतु मन्त्र

शारीरिक और मानसिक रोगोँ से तुरँत छुटकारा पाने का एक सरल मँत्र:

शारीरिक और मानसिक कष्ट, रोग, तनाव होने पर निम्न मंत्र का अधिकाधिक जप करें। पूजा के समय कम से कम 21 बार करें शीघ्र लाभ होगा।

जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबरबदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन।।

मूक होइ बाचाल पंगु चढइ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलि मल दहन।।

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