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Wednesday, 21 December 2016

Easy method to know negetive energy/ tantra spell in home घर में नकारात्मक शती/ तंत्र प्रयोग जानने का सरल उपाय

घर में नकारात्मक शक्तियां / तन्त्र प्रयोग जानने का सरल उपाय

1* (शाम्भवी प्रयोग)

ये प्रयोग कुछ वर्ष पूर्व श्री निश्चलानंद नाथ जी द्वारा दिया गया था। जो घर या प्रतिष्ठान में मौजूद नकारात्मक शक्तियों का पता लगाने में बेहद प्रभावशाली है।

बहुत से लोगो को शंका होती है उनके घरों में भुत प्रेत या फिर किसी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा है,
जिन्हें अपने घर में किसी साये की मौजूदगी का एहसास होता है या
अकेले होने पर लगता है कि उनके पीछे कोई खड़ा है या फिर गुणी जनो द्वारा ऐसा बताया जाता है ।

ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता लेकिन प्रामाणिक तौर पर कैसे पता करे की घर में नकारात्मक ऊर्जा है भी या नहीं है..जिन्हें भी ऐसी शंका है वे ये प्रयोग कर के देखे

(माँ शाम्भवी :- माँ शाम्भवी भगवान शिव की मूल शक्ति हैं, वही शिवा हैं, माहेश्वरी हैं।

माँ का स्वरुप और ध्यान
- (आपकी सरलता के लिए हिंदी में)
      जो वृषभ वाहन पर आरूढ़ होती हैं, जिनका मुख कमल तीन नेत्रों से सुशोभित है, जिनके मस्तक पर दूज का चन्द्र शोभायमान है। जो अपनी चार भुजाओं में त्रिशूल, डमरू, कमंडल और वरमुद्रा धारण किये हैं।
जीर्ण को नवीन करने वाली, जड़ को चेतन् करने वाली, मूर्छित को चेतना देने वाली, मृत्यु को जीवन में बदलने वाली ऐसी माँ शाम्भवी के श्री चरणों में मैं नमन करता हूँ।)

*एक श्रीफल(नारियल) ले लीजिए और उसे दोनों हाथों में रख लीजिए जोर से नहीं पकड़ना है दोनों हाथों की अंजुली जैसा बनाये और उस पर नारियल हो उसके बाद बील्कुल साधारण शब्दो में शांभवी शक्ति का आव्हन उस नारयेल में करे..तीन बार इन शब्दों को दोहराना है.." हे शांभवी शक्ति इस श्रीफल में मै(अमुक) आपका आव्हान करता हु " ऐसा तीन बार बोलने के बाद माँ शांभवी से प्रार्थना करे की मेरे घर में जो भी नकारात्मक ऊर्जा शक्ति है उसे जानने में संकेत देकर मेरी सहायता करे..अब नारयेल हाथो में इसी प्रकार रखे हुए पूरे घर का चक्कर लगाए एक भी कोना ना छोड़े... यदि आपके घर में ऐसी कोई भी नकारात्मक शक्ति होगी तो नारयेल में हलचल हो जायेगी कई बार नारियल हाथो में खड़ा भी हो जाता है..बील्कुल भी घबराए नहीं आपको या आपके परिवार को कुछ भी नहीं होगा..प्रमाण मिल जाने पर नारियल जल प्रवाह कर दे*

2* यदि आपको ऐसा लगता है कि आपके घर, दुकान , व्यावसायिक प्रतिष्ठान पर किसी व्यक्ति ने कोई जादू टोना, टोटका या तंत्र प्रयोग किया है और इस कारण से आप विभिन्न व्याधियों से घिरे हैं या दुखी है तो निम्न प्रयोग करें।

अमावस्या के दिन एक सफेद कपड़े पर सवा मुट्ठी चावल और पानी वाला जटा नारियल और सफेद या पयिले रंग के 5 फूल लेकर एक पोटली बना लें, इसे लेकर पूरे घर में घूमें, प्रत्येक कमरे, रसोई, स्टोर, मुख्य द्वार इत्यादि में और फिर घर के बीचों बीच की जगह पर किसी दिवार पर ये पोटली लटका दें।

अब ये पोटली यूँ ही पूर्णिमा तक लटकी रहने दें। पूर्णिमा के अगले दिन पोटली उतार कर देखें।
यदि पोटली वैसी की वैसी ही है यानि नारियल और चावल सुरक्षित हैं तो आपके घर में कोई भी ऐसा अनिष्ट प्रयोग नहीं हुआ है।( सिर्फ फूल सूख जायेंगे)

किंतु यदि चावलों में बारीक़ कीड़े हो गए हैं, या बदबू आ रही हो या नारियल सड़ने लगा हो तो इसका अर्थ है कि कुछ समस्या अवश्य है।

अपनी पोटली का आंकलन विश्लेषण कर उसे कहीं नदी या तालाब में प्रवाहित कर दें।

फिर किसी उत्तम जानकार से अपनी समस्या का निवारण निराकरण कराएँ।

तो मित्रो ये प्रयोग करे शंका से मुक्त होइए उसके बाद आपका अनुभव जरूर बताएं।

अन्य किसी प्रकार की जानकारी ,कुंडली विश्लेषण या समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

अभिषेक बी पाण्डेय
देवभूमि नैनीताल
उत्तराखण्ड

7579400465
8909521616 (whats app)

For more easy & useful remedies visit-
http://jyotish-tantra.blogspot.in

Monday, 12 December 2016

Remedy to disburse loan कर्ज मुक्ति हेतु सरल उपाय

कर्ज मुक्ति हेतु एक सरल टोटका

मित्रों,
समय समय पर विभिन्न कार्यों हेतु हमे कर्ज लेना पड़ जाता है, किंतु कई बार कर्ज लेने के पश्चात परिस्थितियां इतनी तेजी से बदलती हैं कि कर्ज से मुक्त होने की जगह कर्ज का बोझ बढ़ता चला जाता है।

कर्ज लेने देने सबके लिए ज्ञानी जन दिन वार नक्षत्र मुहूर्तादि का ज्ञान दे गये हैं, पर परिस्थिति की जरूरत जब खड़ी होती है तब दिमाग काम नहीं करता और सिर्फ आवश्यकता पूर्ति के लिए धन और कर्ज ही नज़र आता है।

आज आपको एक सरल टोटका दे रहा हूँ, आप ये रविवार और मंगलवार के दिन करें।

खैर की लकड़ी का कोयला बनाये और उससे 3 खड़ी रेखाएं खींचकर नीचे लिखे मन्त्र पढ़ते हुए बाएं पैर की एड़ी से मिटा दें।

मन्त्र:-

दुःखदौर्भाग्यनाशाय पुत्रसन्तानहेतवे।
कृतरेखात्रयं वाम पादेनै तत्प्रामाज्यमयह्म।।

ऋणदुःखविनाशाय मनोभीप्सार्थसिद्धये।
मार्जयाम्यसितारेखास्तिस्रो जन्मत्रयोद्भवाः।।

इस टोटके से जरूर ही आपके सामने कर्ज मुक्ति के मार्ग खुलेंगे और कर्ज समाप्त होगा।

किसी प्रकार की जानकारी ,कुंडली विश्लेषण या समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

अभिषेक बी पाण्डेय
देवभूमि नैनीताल
उत्तराखण्ड

7579400465

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Friday, 9 December 2016

Havan for mental diseases हवन से मानसिक रोगों का उपचार

हवन से मानसिक रोगो का उपचार

प्राचीनकाल में आरोग्य संवर्द्धन एवं रोग निवारण के लिए ‘भैषज्ञ’ यज्ञ किए जाते थे और लोग उनसे लाभ प्राप्त करते थे। ये यज्ञ ऋतुओं के संधिकाल में होते थे, क्योंकि इसी समय व्यापक स्तर पर व्याधियों का प्रकोप होता था। इन यज्ञों की विशेषता होती हैं कि इनमें होमी गई हवन सामग्री वायुभूत होकर न केवल शारीरिक व्याधियाँ दूर करती हैं, वरन् इसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक बीमारियों एवं मनोविकृतियों से भी छुटकारा पा लेता है। कषाय-कल्मष कटते हैं और व्यक्तियों में सत्प्रवृत्तियों को भर देने वाले उभार उमगते हैं। समग्र व्यक्तित्व-विकास में इससे अपूर्व सहायता मिलती है।

इसे विडंबना ही कहना चाहिए कि आज की समस्त चिकित्सापद्धतियाँ मात्र शारीरिक रोगों तक ही अपने आपको सीमित किए हुए हैं, जबकि मस्तिष्कीय उपचार की आवश्यकता शारीरोपचार से भी अधिक है। इन दिनों मनोविकारों, मानसिक रोगों की भरमार शारीरिक व्याधियों से कहीं अधिक है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज नब्बे प्रतिशत व्यक्तियों को तनाव, दबाव, अवसाद, अनिद्रा, चिंता, आवेश, क्रोध, उत्तेजना, मिरगी, उन्माद, सनक, निराशा, उदासीनता, आशंका, अविश्वास, भय, असंतुलन आदि में से किसी-न-किसी मनोव्याधि से ग्रस्त देखा जाता है। इन विकारों से व्यक्तित्व टूट जाता है। संतुलित एवं विवेकशील व्यक्तित्व विरले ही दिखाई देते हैं।

व्यक्तित्व संबंधी इन विकृतियों का निदान यज्ञ चिकित्सा में सन्निहित है। यहाँ तक कि यदि कोई व्यक्ति उन्मत्त या पागल हो जाए और प्रलाप करने लगे, तो उस स्थिति में भी वह यज्ञ चिकित्सा से स्वस्थ हो सकता है। यज्ञाग्नि में हवन की हुई औषधियों की सुवासित ऊर्जा उसके विकृत मस्तिष्क और उत्तेजित मन को ठीक कर सकती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यज्ञ में सुगंधित औषधियाँ होमी जाती हैं, उससे जो ऊर्जा निस्सृत होती हैं, वह हलकी होने के कारण ऊपर को उठती है। जब यह नासिका द्वारा अंदर खींची जाती हैं, तो सर्वप्रथम मस्तिष्क, तदुपराँत फेफड़ों में फिर सारे शरीर में फैलती है। उसके साथ औषधियों के जो अत्यंत उपयोगी सुगंधित सूक्ष्म अंश होते हैं, वे मस्तिष्क के उन क्षेत्रों तक जा पहुँचते हैं, जहाँ अन्य उपायों से उस संस्थान का स्पर्श तक नहीं किया जा सकता। अचेतन की पवन परतों तक यज्ञीय ऊर्जा की पहुँच होती हैं और वहाँ जड़ जमाए हुए मनोविकारों, बीमारियों को निकाल बाहर करने में सफलता मिलती है।

यज्ञ चिकित्सा को घरेलू उपचार भी कह सकते हैं। इससे शारीरिक एवं मानसिक आधि-व्याधियों का निराकरण होता तथा दोनों ही क्षेत्रों की क्षमता में अभिवृद्धि होती है। इस संदर्भ में ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान द्वारा जो विविध प्रयोग-परीक्षण किए गए हैं, उनमें शोधकर्मियों को आशातीत सफलता मिली है। इस शृंखला में मानसिक रोगों, मनोविकृतियों पर यज्ञोपचार के जो विशेष परीक्षण हुए हैं, उसके सार-निष्कर्ष यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

चंद्रमा का मन से सीधा संबंध है। अतः मानसिक रोगों, मनोविकृतियों, मन में संचित विषों आदि उष्णताओं का शमन चंद्र गायत्री से होता है। अंतरात्मा की शांति, चित्त की एकाग्रता, पारिवारिक क्लेश, द्वेष, वैमनस्य, मानसिक उत्तेजना, क्रोध, अंतर्कलह आदि को शांत करके शीतल मधुर संबंध उत्पन्न करने के लिए भी चंद्र गायत्री विशेष लाभप्रद होती है।

चंद्र गायत्री का मंत्र इस प्रकार है-

ॐ भूर्भुवः स्वः क्षीर पुत्राय विऽहे, अमृत तत्वाय धीमहि तन्नः चंद्रः प्रचोदयात्।

इस मंत्र द्वारा रोगानुसार विशेष प्रकार से तैयार की गई हवन सामग्री से नित्यप्रति कम-से-कम चौबीस बार हवन करने एवं संबंधित सामग्री के सूक्ष्म कपड़छन पाउडर को सुबह-शाम लेते रहने से शीघ्र ही मनोविकृतियों से छुटकारा मिल जाता है। हवन करने वाले का चित्त स्थिर और शांत हो जाता है। मानसिक दाह, उद्वेग, तनाव आदि विकृतियाँ उसके पास फटकती तक नहीं।

सर्वप्रथम मस्तिष्क रोग की सर्वमान्य विशेष हवन सामग्री यहाँ दी जा रही है। इसके साथ ही पूर्व लिखित हवन सामग्री (नं 1) को भी बराबर मात्रा में मिलाकर तब हवन करना चाहिए। विस्तृत विवरण अखण्ड ज्योति के फरवरी अंक 12 में पृष्ठ सं. 42-43 पर देखा जा सकता है। (नं. 1) हवन सामग्री में जो वनौषधियाँ बराबर मात्रा में मिलाई जाती हैं, वे हैं, अगर, तगर, देवदार, चंदन, लाल चंदन, जायफल, लौंग, गुग्गल, चिरायता, गिलोय एवं असगंध।

(1) मस्तिष्क रोगों की विशेष हवन सामग्री-

(1) देशी बेर का गूदा (पल्प) (2) मौलश्री की छाल (3) पीपल की कोपलें (4) इमली के बीजों की गिरी (5) काकजंघा (6) बरगद के फल (7) खरैटी (बीजबंद) बीज (8) गिलोय (9) गोरखमुँडी (10) शंखपुष्पी (11) मालकंगनी (ज्योतिष्मती) (12) ब्राह्मी (13) मीठी बच (14) षतावर (15) जटामाँसी, (16) सर्पगंधा।

इन सभी सोलह चीजों के जौकुट पाउडर को हवन सामग्री के रूप में प्रयुक्त करने के साथ ही सभी चीजों को मिलाकर सूक्ष्मीकृत चूर्ण को एक चम्मच सुबह एवं एक चम्मच शाम को घी-शक्कर या जल के साथ रोगी व्यक्ति को नित्य खिलाते रहना चाहिए।

मस्तिष्कीय रोगों में समिधाओं का भी अपना विशेष महत्व है। अतः जहाँ तक संभव हो क्षीर एवं सुगंधित वृक्ष अर्थात् वट, पीपल, गूलर, बेल, चंदन, देवदार, खैर, शमी का प्रयोग करना चाहिए। चंद्रमा की समिधा-पलाश है। यदि यह मिल सके, तो सर्वश्रेष्ठ समझना चाहिए। उद्विग्न-उत्तेजित मन-मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करने में उससे पर्याप्त सहायता मिलती है।

(2) तनाव ‘स्ट्रेस’ एवं हाइपर टेन्शन की विशेष हवन सामग्री-

तनाव से छुटकारा पाने के लिए निम्नलिखित अनुपात में औषधियों की जौकुट सामग्री मिलाई जाती है-

(1) ब्राह्मी-1 ग्राम, (2) शंखपुष्पी-1 ग्राम, (3) शतावर-1 ग्राम, (4) सर्पगंधा-1 ग्राम, (5) गोरखमुँडी-1 ग्राम, (6) मालकाँगनी-1 ग्राम, (7) मौलश्री छाल-1 ग्राम, (8) गिलोय-1 ग्राम, (9) सुगंध कोकिला-1 ग्राम, (1) नागरमोथा-2 ग्राम, (11) घुड़बच-5 ग्राम, (12) मीठी बच-5 ग्राम, (13) तिल-1 ग्राम, (14) जौ-1 ग्राम, (15) चावल-1 ग्राम, (16) घी 1 ग्राम, (17) खंडसारी गुड़-5 ग्राम, (18) जलकुँभी (पिस्टिया)-1 ग्राम।

इस प्रकार से तैयार की गई विशेष हवन सामग्री से चंद्र गायत्री मंत्र के साथ हवन करने से तनाव एवं उससे उत्पन्न अनेकों बीमारियाँ तथा हाइपरटेंशन से प्रयोक्ता को शीघ्र लाभ मिलता है। यहाँ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उक्त सामग्री में क्रमाँक (1) अर्थात् ब्राह्मी से लेकर क्रमाँक (12) अर्थात् मीठी बच तक की औषधियों का महीन बारीक पिसा एवं कपड़े द्वारा छना हुआ चूर्ण सम्मिश्रित रूप से एक-एक चम्मच सुबह एवं शाम को जल या दूध के साथ रोगी को सेवन कराते रहना चाहिए।

(3) दबाव-अवसाद-’डिप्रेशन’ आदि मानसिक रोगों की विशेष हवन सामग्री-

(1) अकरकरा, (2) मालकाँगनी, (ज्योतिष्मती) (3) विमूर (4) मीठी बच, (5) घुड़बच, (6) जटामाँसी, (7) नागरमोथा, (8) गिलोय, (9) तेजपत्र, (1) सुगंध कोकिला, (11) जौ, तिल, चावल, घी, खंडसारी गुड़।

उक्त औषधियों से तैयार हवन सामग्री से हवन करने के साथ ही (नं 1) से (नं 1) तक की औषधियों का बारीक पिसा हुआ चूर्ण रोगी को सुबह शाम एक-एक चम्मच जल या दूध के साथ नित्य खिलाते रहने से शीघ्र लाभ मिलता है। इसके साथ ही डिप्रेशन या दबाव से पीड़ित व्यक्ति को शीघ्र स्वस्थ एवं सामान्य स्थिति में लाने के लिए यह आवश्यक है कि उसके मन के अनुकूल बातें की जाएँ।

(4) मिर्गी-अपस्मार या ‘फिट्स’ की विशेष हवन सामग्री-

मिर्गी एवं इससे संबंधित रोगों पर निम्नलिखित औषधियों से बनाई गई हवन सामग्री से यजन करने पर यह रोग समूल नष्ट हो जाता है।

(1) छोटी इलायची, (2) अपामार्ग के बीज, (3) अश्वगंधा, (4) नागरमोथा, (5) गुरुचि, (6) जटामाँसी, (7) ब्राह्मी, (8) शंखपुष्पी, (9) चंपक, (10) मुलहठी, (11) गुलाब के फूल, (12) कनेर के फूल, (13) कमलगट्टा, (14) गुग्गल, (15) धूप, (16) कूठ, (17) कुलंजन, (18) दारुहल्दी, (19) साठी, (2) मुष्ता, (12) छाड़-छड़ीला, (22) गोक्षरु, (23) सरसों, (24) राई, (25) कालीमिर्च, (26) मीठी बच।

हवन करने के साथ ही इन औषधियों के बारीक चूर्ण को एक-एक चम्मच सुबह-शाम जल या दूध के साथ रोगी को नित्यप्रति कम-से-कम 4 दिन तक खिलाते रहना चाहिए। ‘टेन्शन’ एवं ‘डिप्रेशन’ से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए भी इसे प्रयुक्त किया जा सकता है। अगर सब औषधियों के बारीक चूर्ण को एक-एक चम्मच सुबह-शाम जल या दूध के साथ रोगी को नित्यप्रति कम-से-कम 4 दिन तक खिलाते रहना चाहिए। ‘टेन्शन’ एवं ‘डिप्रेशन’ से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए भी इसे प्रयुक्त किया जा सकता है। अगर सब औषधियाँ उपलब्ध न हो सकें, तो (नं 12) तक की औषधियां की हवन सामग्री बनाकर हवन करने एवं खाने से भी रोगी रोगमुक्त हो जाता है।

(5) अनिद्रा रोग की विशेष हवन सामग्री-

(1) काकजंघा, (2) पीपलामूल, (3) भारंगी, (4) जटामाँसी, (5) जलकुँभी (पिस्टिया) (6) ब्राह्मी, (7) शंखपुष्पी, (8) सर्पगंधा, (9) सुगंध कोकिला, (1) ज्योतिष्मती।

इस हवन सामग्री का उपयोग यदि क्षीरवृक्ष अर्थात् गूलर, पाकर, पलाश, वट-पीपल आदि की समिधाओं के साथ किया जाए, तो उन्माद रोग में भी शीघ्र लाभ होता है। हवन करने के साथ ही उक्त सभी दस औषधियों के बारीक पिसे हुए चूर्ण को घी और शक्कर के साथ सुबह-शाम एक-एक चम्मच खिलाते रहना चाहिए, पूर्ण लाभ तभी मिलता है।

इनके अतिरिक्त कुछ धूनी के भी प्रयोग हैं जिनकी चर्चा अगले लेख में करेंगे।

 स्वामी केशवानन्द जी, गायत्री पीठ के सौजन्य से।

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Monday, 21 November 2016

Tantrik Bhairav ashotottarshatnam तंत्रोक्त काल संकर्षण भैरव अष्टोत्तरशतनाम



*|| श्रीबटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्  ॥*
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥

॥ सिद्धपदस्थितगुरुमण्डलाय नमः ॥

॥ श्रीदीक्षाक्रमप्रदात्रेगुरवे नमः ॥

॥ श्रीभैरवाय नमः ॥

ॐ अस्य श्रीबटुकभैरवस्तोत्रमन्त्रस्य कालग्निरुद्र ऋषिः ।
अनुष्टुप् छन्दः । आपदुद्धारकबटुकभैरवो देवता । ह्रीं बीजम् ।
भैरवीवल्लभः शक्तिः । नीलवर्णो दण्डपाणिरिति कीलकम् ।
 सर्वाभीष्टप्रदाने  विनियोगः ॥

            *॥ ऋष्यादि न्यासः ॥*

ॐ कालाग्निरुद्र ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे ।
आपदुद्धारकश्रीबटुकभैरव देवतायै नमः हृदये ।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये । भैरवीवल्लभ शक्तये नमः पादयोः । निलवर्णोदंड पाणिति कीलकाय नमः नाभौ
 सर्वाभीष्टप्रदाने
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
॥ इति ऋष्यादि न्यासः ॥

॥दीक्षा क्रमेण मूलं प्रजप्य ||

              *॥ अथ ध्यानम् ॥*

नीलजीमूतसङ्काशो जटिलो रक्तलोचनः ।
दंष्ट्राकरालवदनः सर्पयज्ञोपवीतवान् ॥

             *॥ इति ध्यानम् ॥*

               *| अथ स्तोत्रम् ।*
ॐ ह्रीं बटुको वरदः शूरो भैरवः कालभैरवः ।
भैरवीवल्लभो भव्यो दण्डपाणिर्दयानिधिः ॥ १॥

वेतालवाहनो रौद्रो रुद्रभ्रुकुटिसम्भवः ।
कपाललोचनः कान्तः कामिनीवशकृद्वशी ॥ २॥

आआपदुद्धारणो धीरो हरिणाङ्कशिरोमणिः ।
दंष्ट्राकरालो दष्टोष्ठौ धृष्टो दुष्टनिबर्हणः ॥ ३॥

सर्पहारः सर्पशिराः सर्पकुण्डलमण्डितः ।
कपाली करुणापूर्णः कपालैकशिरोमणिः ॥ ४॥

श्मशानवासी मांसाशी मधुमत्तोऽट्टहासवान् ।
वाग्मी वामव्रतो वामो वामदेवप्रियङ्करः ॥ ५॥
वनेचरो रात्रिचरो वसुदो वायुवेगवान् ।
योगी योगव्रतधरो योगिनीवल्लभो युवा ॥ ६॥

वीरभद्रो विश्वनाथो विजेता वीरवन्दितः ।
भृतध्यक्षो भूतिधरो भूतभीतिनिवारणः ॥ ७॥

कलङ्कहीनः कङ्काली क्रूरकुक्कुरवाहनः ।
गाढो गहनगम्भीरो गणनाथसहोदरः ॥ ८॥

देवीपुत्रो दिव्यमूर्तिर्दीप्तिमान् दीप्तिलोचनः ।
महासेनप्रियकरो मान्यो माधवमातुलः ॥ ९॥

भद्रकालीपतिर्भद्रो भद्रदो भद्रवाहनः ।
पशूपहाररसिकः पाशी पशुपतिः पतिः ॥ १०॥
चण्डः प्रचण्डचण्डेशश्चण्डीहृदयनन्दनः ।
दक्षो दक्षाध्वरहरो दिग्वासा दीर्घलोचनः ॥ ११॥

निरातङ्को निर्विकल्पः कल्पः कल्पान्तभैरवः ।
मदताण्डवकृन्मत्तो महादेवप्रियो महान् ॥ १२॥

खट्वाङ्गपाणिः खातीतः खरशूलः खरान्तकृत् ।
ब्रह्माण्डभेदनो ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मणपालकः ॥ १३॥

दिग्चरो भूचरो भूष्णुः खेचरः खेलनप्रियः । दिग्चरो
सर्वदुष्टप्रहर्ता च सर्वरोगनिषूदनः ।
सर्वकामप्रदः शर्वः सर्वपापनिकृन्तनः ॥ १४॥

इत्थमष्टोत्तरशतं नाम्नां सर्वसमृद्धिदम् ।
आपदुद्धारजनकं बटुकस्य प्रकीर्तितम् ॥ १५॥
एतच्च शृणुयान्नित्यं लिखेद्वा स्थापयेद्गृहे ।
धारयेद्वा गले बाहौ तस्य सर्वा समृद्धयः ॥ १६॥

न तस्य दुरितं किञ्चिन्न चोरनृपजं भयम् ।
न चापस्मृतिरोगेभ्यो डाकिनीभ्यो भयं न हि ॥ १७॥

न कूष्माण्डग्रहादिभ्यो नापमृत्योर्न च ज्वरात् ।
मासमेकं त्रिसन्ध्यं तु शुचिर्भूत्वा पठेन्नरः ॥ १८॥

सर्वदारिद्र्यनिर्मुक्तो निधिं पश्यति भूतले ।
मासद्वयमधीयानः पादुकासिद्धिमान् भवेत् ॥ १९॥

अञ्जनं गुटिका खड्गं धातुवादरसायनम् ।
सारस्वतं च वेतालवाहनं बिलसाधनम् ॥ २०॥
कार्यसिद्धिं महासिद्धिं मन्त्रं चैव समीहितम् ।
वर्षमात्रमधीयानः प्राप्नुयात्साधकोत्तमः ॥ २१॥

एतत्ते कथितं देवि गुह्याद्गुह्यतरं परम् ।
कलिकल्मषनाशनं वशीकरणं चाम्बिके ॥ २२॥

॥ इति कालसङ्कर्षणतन्त्रोक्त
श्रीबटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

Saturday, 19 November 2016

Kal bhairav jayanti 2016 श्री भैरव अष्टमी/ जयंती 2016 विशेष

श्री भैरव जयंती विशेष

बटुक एवं काल भैरव कार्य सिद्धि एवं शत्रु नाशक प्रयोग
                                                                       ।।श्री काल-भैरव।।

भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के दो स्वरूप बताए गए हैं। एक स्वरूप में महादेव अपने भक्तों को अभय देने वाले विश्वेश्वरस्वरूप हैं वहीं दूसरे स्वरूप में भगवान शिव दुष्टों को दंड देने वाले कालभैरव स्वरूप में विद्यमान हैं। शिवजी का विश्वेश्वरस्वरूप अत्यंत ही सौम्य और शांत हैं यह भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है।वहीं भैरव स्वरूप रौद्र रूप वाले हैं, इनका रूप भयानक और विकराल होता है। इनकी पूजा करने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार डर कभी परेशान नहीं करता। कलयुग में काल के भय से बचने के लिए कालभैरव की आराधना सबसे अच्छा उपाय है। कालभैरव को शिवजी का ही रूप माना गया है। कालभैरव की पूजा करने वाले व्यक्ति को किसी भी प्रकार का डर नहीं सताता है।

भैरव शब्द का अर्थ ही होता है- भीषण, भयानक, डरावना।

भैरव को शिव के द्वारा उत्पन्न हुआ या शिवपुत्र माना जाता है। भगवान शिव के आठ विभिन्न रूपों में से भैरव एक है। वह भगवान शिव का प्रमुख योद्धा है। भैरव के आठ स्वरूप पाए जाते हैं। जिनमे प्रमुखत: काला और गोरा भैरव अतिप्रसिद्ध हैं।

रुद्रमाला से सुशोभित, जिनकी आंखों में से आग की लपटें निकलती हैं, जिनके हाथ में कपाल है, जो अति उग्र हैं, ऐसे कालभैरव को मैं वंदन करता हूं।- भगवान कालभैरव की इस वंदनात्मक प्रार्थना से ही उनके भयंकर एवं उग्ररूप का परिचय हमें मिलता है।

कालभैरव की उत्पत्ति की कथा शिवपुराण में इस तरह प्राप्त होती है-

एक बार मेरु पर्वत के सुदूर शिखर पर ब्रह्मा विराजमान थे, तब सब देव और ऋषिगण उत्तम तत्व के बारे में जानने के लिए उनके पास गए। तब ब्रह्मा ने कहा वे स्वयं ही उत्तम तत्व हैं यानि कि सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च हैं। किंतु भगवान विष्णु इस बात से सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि वे ही समस्त सृष्टि से सर्जक और परमपुरुष परमात्मा हैं। तभी उनके बीच एक महान ज्योति प्रकट हुई। उस ज्योति के मंडल में उन्होंने पुरुष का एक आकार देखा। तब तीन नेत्र वाले महान पुरुष शिवस्वरूप में दिखाई दिए। उनके हाथ में त्रिशूल था, सर्प और चंद्र के अलंकार धारण किए हुए थे। तब ब्रह्मा ने अहंकार से कहा कि आप पहले मेरे ही ललाट से रुद्ररूप में प्रकट हुए हैं। उनके इस अनावश्यक अहंकार को देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उस क्रोध से भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया। यह भैरव बड़े तेज से प्रज्जवलित हो उठा और साक्षात काल की भांति दिखने लगा।

इसलिए वह कालराज से प्रसिद्ध हुआ और भयंकर होने से भैरव कहलाने लगा। काल भी उनसे भयभीत होगा इसलिए वह कालभैरव कहलाने लगे। दुष्ट आत्माओं का नाश करने वाला यह आमर्दक भी कहा गया। काशी नगरी का अधिपति भी उन्हें बनाया गया। उनके इस भयंकर रूप को देखकर बह्मा और विष्णु शिव की आराधना करने लगे और गर्वरहित हो गए।

लौकिक और अलौकिक शक्तियों के द्वारा मानव जीवन में सफलता पायी जा सकती है, लेकिन शक्तियां जहां स्थिर रहती है, वहीं अलौकिक शक्तियां हर पल, हर क्षण मनुष्य के साथ-साथ रहती है। अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करने का श्रोत मात्र देवी देवताओं की साधना, उपासना शीघ्र फलदायी मानी गई है।

 कालभैरव भगवान शिव के पांचवें स्वरूप है तो विष्णु के अंश भी है। इनकी उपासना मात्र से ही सभी प्रकार के दैहिक, दैविक, मानसिक परेशानियों से शीघ्र मुक्ति मिलती है। कोई भी मानव इनकी पुजा, आराधना, उपासना से लाभ उठा सकता है। आज इस विषमता भरे युग में मानव को कदम-कदम पर बाधाओं, विपत्तियों और शत्रुओं का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में मंत्र साधना ही इन सब समस्याओं पर विजय दिलाता है। शत्रुओं का सामना करने, सुख-शान्ति समृद्धि में यह साधना अति उत्तम है।

शिव पुराण में वर्णित है--

भैरव: पूर्ण रूपोहि शंकर परात्मन: भूगेस्तेवैन जानंति मोहिता शिव भामया:।

देवताओं ने श्री कालभैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की तरह रौद्र होने के कारण यह कालराज है। मृत्यु भी इनसे भयभीत रहती है। यह कालभैरव है इसलिए दुष्टों और शत्रुओं का नाश करने में सक्षम है। तंत्र शास्त्र के प्रव‌र्त्तक आचार्यो ने प्रत्येक उपासना कर्म की सिद्धि के लिए किए जाने वाले जप पाठ आदि कर्र्मो के आरंभ में भगवान भैरवनाथ की आज्ञा प्राप्त करने का निर्देश किया है।

अतिक्रूर महाकाय, कल्पानत-दहनोपय,भैरवाय नमस्तुभ्यमेनुझां दातुमहसि।

इससे स्पष्ट है कि सभी पुजा पाठों की आरंभिक प्रक्रिया में भैरवनाथ का स्मरण, पूजन, मंत्रजाप आवश्यक होते है। श्री काल भैरव का नाम सुनते ही बहुत से लोग भयभीत हो जाते है और कहते है कि ये उग्र देवता है। अत: इनकी साधना वाम मार्ग से होती है इसलिए यह हमारे लिए उपयोगी नहीं है। लेकिन यह मात्र उनका भ्रम है। प्रत्येक देवता सात्विक, राजस और तामस स्वरूप वाले होते है, किंतु ये स्वरूप उनके द्वारा भक्त के कार्र्यो की सिद्धि के लिए ही धरण किये जाते है। श्री कालभैरव इतने कृपालु एवं भक्तवत्सल है कि सामान्य स्मरण एवं स्तुति से ही प्रसन्न होकर भक्त के संकटों का तत्काल निवारण कर देते है।

तंत्राचार्यों का मानना है कि वेदों में जिस परम पुरुष का चित्रण रुद्र में हुआ, वह तंत्र शास्त्र के ग्रंथों में उस स्वरूप का वर्णन 'भैरव' के नाम से किया गया, जिसके भय से सूर्य एवं अग्नि तपते हैं। इंद्र-वायु और मृत्यु देवता अपने-अपने कामों में तत्पर हैं, वे परम शक्तिमान 'भैरव' ही हैं। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है।

तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं।

वामकेश्वर तंत्र की योगिनीहदयदीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं-

'विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात्‌ सृष्टि-स्थिति-संहारकारी परशिवो भैरवः।'

भ- से विश्व का भरण, र- से रमश, व- से वमन अर्थात सृष्टि को उत्पत्ति पालन और संहार करने वाले शिव ही भैरव हैं। तंत्रालोक की विवेक-टीका में भगवान शंकर के भैरव रूप को ही सृष्टि का संचालक बताया गया है।

श्री तंत्वनिधि नाम तंत्र-मंत्र में भैरव शब्द के तीन अक्षरों के ध्यान के उनके त्रिगुणात्मक स्वरूप को सुस्पष्ट परिचय मिलता है, क्योंकि ये तीनों शक्तियां उनके समाविष्ट हैं

'भ' अक्षरवाली जो भैरव मूर्ति है वह श्यामला है, भद्रासन पर विराजमान है तथा उदय कालिक सूर्य के समान सिंदूरवर्णी उसकी कांति है। वह एक मुखी विग्रह अपने चारों हाथों में धनुष, बाण वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।

'र' अक्षरवाली भैरव मूर्ति श्याम वर्ण हैं। उनके वस्त्र लाल हैं। सिंह पर आरूढ़ वह पंचमुखी देवी अपने आठ हाथों में खड्ग, खेट (मूसल), अंकुश, गदा, पाश, शूल, वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।

'व' अक्षरवाली भैरवी शक्ति के आभूषण और नरवरफाटक के सामान श्वेत हैं। वह देवी समस्त लोकों का एकमात्र आश्रय है। विकसित कमल पुष्प उनका आसन है। वे चारों हाथों में क्रमशः दो कमल, वर एवं अभय धारण करती हैं।

स्कंदपुराण के काशी- खंड के 31वें अध्याय में उनके प्राकट्य की कथा है।

गर्व से उन्मत ब्रह्माजी के पांचवें मस्तक को अपने बाएं हाथ के नखाग्र से काट देने पर जब भैरव ब्रह्म हत्या के भागी हो गए, तबसे भगवान शिव की प्रिय पुरी 'काशी' में आकर दोष मुक्त हुए।

ब्रह्मवैवत पुराण के प्रकृति खंडान्तर्गत दुर्गोपाख्यान में आठ पूज्य निर्दिष्ट हैं- महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रूरू भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड भैरव, चंद्रचूड भैरव। लेकिन इसी पुराण के गणपति- खंड के 41वें अध्याय में अष्टभैरव के नामों में सात और आठ क्रमांक पर क्रमशः कपालभैरव तथा रूद्र भैरव का नामोल्लेख मिलता है।

तंत्रसार में वर्णित आठ भैरव असितांग, रूरू, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण संहार नाम वाले हैं।

भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं। शिव पुराण में भैरव को महादेव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। इनकी आराधना में कठोर नियमों का विधान भी नहीं है। ऐसे परम कृपालु एवं शीघ्र फल देने वाले भैरवनाथ की शरण में जाने पर जीव का निश्चय ही उद्धार हो जाता है।

भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।

जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्‍ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगानालाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।

भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।

खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं।

 वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, ‍लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे।

भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है।

शिव के अवतार श्री कालभैरव अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही इनकी आराधना करने पर हमारे कई बुरे गुण स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। आदर्श और उच्च जीवन व्यतीत करने के लिए कालभैरव से भी शिक्षा ली जा सकती हैं।

जीवन प्रबंधन से जुड़े कई संदेश श्री भैरव देते हैं-

भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप माना गया है। भगवान शंकर के इस अवतार से हमें अवगुणों को त्यागना सीखना चाहिए। भैरव के बारे में प्रचलित है कि ये अति क्रोधी, तामसिक गुणों वाले तथा मदिरा के सेवन करने वाले हैं। इस अवतार का मूल उद्देश्य है कि मनुष्य अपने सारे अवगुण जैसे- मदिरापान, तामसिक भोजन, क्रोधी स्वभाव आदि भैरव को समर्पित कर पूर्णत: धर्ममय आचरण करें। भैरव अवतार हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हर कार्य सोच-विचार कर करना ही ठीक रहता है। बिना विचारे कार्य करने से पद व प्रतिष्ठा धूमिल होती है।

श्रीभैरवनाथसाक्षात् रुद्र हैं। शास्त्रों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि वेदों में जिस परमपुरुष का नाम रुद्र है, तंत्रशास्त्रमें उसी का भैरव के नाम से वर्णन हुआ है।

तन्त्रालोक की विवेकटीका में भैरव शब्द की यह व्युत्पत्ति दी गई है- बिभíत धारयतिपुष्णातिरचयतीतिभैरव: अर्थात् जो देव सृष्टि की रचना, पालन और संहार में समर्थ है, वह भैरव है। शिवपुराणमें भैरव को भगवान शंकर का पूर्णरूप बतलाया गया है। तत्वज्ञानी भगवान शंकर और भैरवनाथमें कोई अंतर नहीं मानते हैं। वे इन दोनों में अभेद दृष्टि रखते हैं।

 भैरव शब्द के तीन अक्षरों भ-र-वमें ब्रह्मा-विष्णु-महेश की उत्पत्ति-पालन-संहार की शक्तियां सन्निहित हैं। नित्यषोडशिकार्णव की सेतुबन्ध नामक टीका में भी भैरव को सर्वशक्तिमान बताया गया है-भैरव: सर्वशक्तिभरित:।शैवोंमें कापालिकसम्प्रदाय के प्रधान देवता भैरव ही हैं। ये भैरव वस्तुत:रुद्र-स्वरूप सदाशिवही हैं। शिव-शक्ति एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की उपासना कभी फलीभूत नहीं होती। यतिदण्डैश्वर्य-विधान में शक्ति के साधक के लिए शिव-स्वरूप भैरवजीकी आराधना अनिवार्य बताई गई है।

रुद्रयामल में भी यही निर्देश है कि तन्त्रशास्त्रोक्तदस महाविद्याओंकी साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए उनके भैरव की भी अर्चना करें। उदाहरण के लिए कालिका महाविद्याके साधक को भगवती काली के साथ कालभैरवकी भी उपासना करनी होगी। इसी तरह प्रत्येक महाविद्या-शक्तिके साथ उनके शिव (भैरव) की आराधना का विधान है। दुर्गासप्तशतीके प्रत्येक अध्याय अथवा चरित्र में भैरव-नामावली का सम्पुट लगाकर पाठ करने से आश्चर्यजनक परिणाम सामने आते हैं, इससे असम्भव भी सम्भव हो जाता है। श्रीयंत्रके नौ आवरणों की पूजा में दीक्षाप्राप्तसाधक देवियों के साथ भैरव की भी अर्चना करते हैं।

अष्टसिद्धि के प्रदाता भैरवनाथके मुख्यत:आठ स्वरूप ही सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं पूजित हैं। इनमें भी कालभैरव तथा बटुकभैरव की उपासना सबसे ज्यादा प्रचलित है। काशी के कोतवाल कालभैरवकी कृपा के बिना बाबा विश्वनाथ का सामीप्य नहीं मिलता है। वाराणसी में निíवघ्न जप-तप, निवास, अनुष्ठान की सफलता के लिए कालभैरवका दर्शन-पूजन अवश्य करें। इनकी हाजिरी दिए बिना काशी की तीर्थयात्रा पूर्ण नहीं होती। इसी तरह उज्जयिनीके कालभैरवकी बडी महिमा है। महाकालेश्वर की नगरी अवंतिकापुरी(उज्जैन) में स्थित कालभैरवके प्रत्यक्ष मद्य-पान को देखकर सभी चकित हो उठते हैं।

धर्मग्रन्थों के अनुशीलन से यह तथ्य विदित होता है कि भगवान शंकर के कालभैरव-स्वरूपका आविर्भाव मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की प्रदोषकाल-व्यापिनीअष्टमी में हुआ था, अत:यह तिथि कालभैरवाष्टमी के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन भैरव-मंदिरों में विशेष पूजन और श्रृंगार बडे धूमधाम से होता है। भैरवनाथके भक्त कालभैरवाष्टमी के व्रत को अत्यन्त श्रद्धा के साथ रखते हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी से प्रारम्भ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रदोष-व्यापिनी अष्टमी के दिन कालभैरवकी पूजा, दर्शन तथा व्रत करने से भीषण संकट दूर होते हैं और कार्य-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। पंचांगों में इस अष्टमी को कालाष्टमी के नाम से प्रकाशित किया जाता है।

ज्योतिषशास्त्र की बहुचíचत पुस्तक लाल किताब के अनुसार शनि के प्रकोप का शमन भैरव की आराधना से होता है।  भैरवनाथके व्रत एवं दर्शन-पूजन से शनि की पीडा का निवारण होगा। कालभैरवकी अनुकम्पा की कामना रखने वाले उनके भक्त तथा शनि की साढेसाती, ढैय्या अथवा शनि की अशुभ दशा से पीडित व्यक्ति इस कालभैरवाष्टमीसे प्रारम्भ करके वर्षपर्यन्तप्रत्येक कालाष्टमीको व्रत , भैरवनाथकी उपासना करें।

कालाष्टमीमें दिन भर उपवास रखकर सायं सूर्यास्त के उपरान्त प्रदोषकालमें भैरवनाथकी पूजा करके प्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है।

मन्त्रविद्याकी एक प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपि से महाकाल भैरव का यह मंत्र मिला है-

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नम:।

इस मंत्र का 21हजार बार जप करने से बडी से बडी विपत्ति दूर हो जाती है।।

साधक भैरव जी के वाहन श्वान (कुत्ते) को नित्य कुछ खिलाने के बाद ही भोजन करे।

साम्बसदाशिवकी अष्टमूíतयोंमें रुद्र अग्नि तत्व के अधिष्ठाता हैं। जिस तरह अग्नि तत्त्‍‌व के सभी गुण रुद्र में समाहित हैं, उसी प्रकार भैरवनाथभी अग्नि के समान तेजस्वी हैं। भैरवजीकलियुग के जाग्रत देवता हैं। भक्ति-भाव से इनका स्मरण करने मात्र से समस्याएं दूर होती हैं।

इनका आश्रय ले लेने पर भक्त निर्भय हो जाता है। भैरवनाथअपने शरणागत की सदैव रक्षा करते हैं

सामान्य व्यक्ति भक्ति भाव से इनकी पूजा कर इनकी कृपा प्राप्त कर सकता है, किंतु इनकी साधना के लियर पहले इनकी दीक्षा लें उसके बाद ही साधना करें।

क्योंकि भैरव जयंती के दिन श्री भैरव जी का प्राकट्य हुआ था इसलिए इनका बाल स्वरुप भी अति पूजनीय और अति शीघ्र फल देने वाला है।

इनकी प्रसन्नता हेतु इनके कवच, मन्त्र का जप और अष्टोत्तरशत नाम का पाठ अति फलदायी है।

यदि ये प्रयोग 41 दिन तक कर लिया जाये तो व्यक्ति का असम्भव लगने वाला कठिन से कठिन कार्य भी श्री बटुक भैरव की कृपा से अति शीघ्र सिद्ध हो जाता है।

श्री वटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम का विशेष महत्व है ।इसके 21 पाठ मन्त्र सहित विधि सहित कोई नित्य करें तो ये सिद्ध हो जाता है और फिर जाग्रत रूप से कार्य करता है।रोग दोष आधी व्याधि का नाश करता है।इससे अभिमन्त्रित भस्म जल किसी रोगी पर छिड़कने से रोग दूर हो जाता है किसी पर कोई ऊपरी बाधा हो तो वो दूर हो जाती है।बहुत ही अच्छा और कृपा
करने वाला है।कलियुग में अन्य देवता तो समय आने पर फल देते है पर भगवान वटुक भैरव जिस दिन से इन्हें पूजो उसी दिन से अपना प्रभाव दिखाने लगते है।

बटुक भैरव रक्षार्थ है और देवी के पुत्र स्वरूप है।

तांत्रोक्त भैरव कवच

ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ||
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ||
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ||

इस आनंददायक कवच का प्रतिदिन पाठ करने से प्रत्येक विपत्ति में सुरक्षा प्राप्त होती है| यदि योग्य गुरु के निर्देशन में इस कवच का अनुष्ठान सम्पन्न किया जाए तो साधक सर्वत्र विजयी होकर यश, मान, ऐश्वर्य, धन, धान्य आदि से पूर्ण होकर सुखमय जीवन व्यतीत करता है|

भैरव अष्टोत्तरशत नाम स्तोत्र:-

व ध्यान –वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल -दण्डौ दधानम्॥

अर्थात्  भगवान् श्री बटुक-भैरव बालक रुपी हैं। उनकी देह-कान्ति स्फटिक की तरह है। घुँघराले केशों से उनका चेहरा प्रदीप्त है। उनकी कमर और चरणों में नव मणियों के अलंकार जैसे किंकिणी, नूपुर आदि विभूषित हैं। वे उज्जवल रुपवाले, भव्य मुखवाले, प्रसन्न-चित्त और त्रिनेत्र-युक्त हैं। कमल के समान सुन्दर दोनों हाथों में वे शूल औरदण्ड धारण किए हुए हैं।

भगवान श्री बटुक-भैरव के इस सात्विक ध्यान से सभी प्रकार की अप-मृत्यु का नाश होता है, आपदाओं का निवारण होता है, आयु की वृद्धि होती है, आरोग्य और मुक्ति-पद लाभ होता है।

मानसिक पूजन करे :-ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः।
ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।

ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट् ॥
श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः॥
कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः॥
शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः।
अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी – पतिः॥
धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्।
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्॥
कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।
त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्॥
त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय।
बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग -वर – धारकः॥
भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु – लोचनः॥
प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः।
अष्ट -मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान- चक्षुस्तपो-मयः॥
अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः।
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः॥
कपाल-धारी मुण्डी च , नाग- यज्ञोपवीत-वान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा॥
शुद्द – नीलाञ्जन – प्रख्य – देहः मुण्ड -विभूषणः।
बलि-भुग्बलि-भुङ्- नाथो, बालोबाल –
पराक्रम॥
सर्वापत् – तारणो दुर्गो, दुष्ट- भूत- निषेवितः।
कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी वश-कृद्वशी॥
जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया – मन्त्रौषधी -मयः।
सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ – विष्णुरितीव हि॥
॥फल-श्रुति॥

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम्॥
य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट – शतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा॥
न शत्रुभ्यो भयंकिञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः॥
मारी-भये राज-भये, तथा चौ राग्निजे भये।
औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नज भये॥
बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः।
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव – कीर्तनात्॥

॥ क्षमा-प्रार्थना ॥
आवाहन न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।
पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर॥
मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर।
मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे॥

श्री बटुक-बलि-मन्त्रः

घर के बाहर दरवाजे के बायीं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें । निम्न तीनों में से किसी एक मन्त्र २१ का उच्चारण करें, आपके घर के विघ्न बाधा और उपद्रव शांत होंगे।

१. ॥ॐ ॐ ॐ एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारण-बटुक-भैरव-नाथ, सर्व-विघ्नान् नाशय नाशय, इमं स्तोत्र-पाठ-पूजनं सफलं कुरु कुरु सर्वोपचार-सहितं बलि मिमं गृह्ण गृह्ण स्वाहा, एष बलिर्वं बटुक-भैरवाय नमः॥

२. ॥ॐ ह्रीं वं एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारक-बटुक-भैरव-नाथ कपिल-जटा-भारभासुर ज्वलत्पिंगल-नेत्र सर्व-कार्य-साधक मद्-दत्तमिमं यथोपनीतं बलिं गृह्ण् मम् कर्माणि साधय साधय सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वशत्रून् संहारय ते नमः वं ह्रीं ॐ॥

३. ॥ॐ बलि-दानेन सन्तुष्टो, बटुकः सर्व-सिद्धिदः रक्षां करोतु मे नित्यं, भूत-वेताल-सेवितः॥

पाठ से पहले एक माला वटुक मन्त्र की सभी पाठो के बाद एक माला वटुक भैरव की अनिवार्य है, ॐ के बाद ह्रीं लगाकर करें।

प्रत्येक पाठ के पहले और बाद में वटुक भैरव मन्त्र का सम्पुट लगाये।

तेल का दीपक के सामने पाठ करे।और वहीँ एक लड्डू या गुड़ रख ले पूजा होने पर पूजा समर्पण करे और उसके बाद उस लड्डू को घर से बाहर
रख आये या कोई कुत्ता मिले उसे खिला दे कोई न मिले तो चौराहे पर रख दे। ये बलिद्रव्य होता है।

आसन से उठने से पहले आसन के नीचे की भूमि मस्तक से लगाये फिर आसन से उठे ऐसा न करने पर पूजा का आधा फल इंद्र ले लेता है।

1. शत्रु नाश् उपाय :

मित्रों, काफी मित्रों ने पूछा की आज यानि भैरव अष्टमी पर क्या करें तो ये प्रयोग आप आज शाम अपने घर या भैरव मंदिर में कर सकते हैं।

1-यदि आप भी अपने शत्रुओं से परेशान हैं तो आज शाम ये उपाए करें और अपने शत्रुओं से मुक्ति पायें।

एक सफ़ेद कागज़ पर भैरव मंत्र जपते हुए काजल से शत्रु या शत्रुओं के नाम लिखें और उनसे मुक्त करने की प्रार्थना करते हुए एक छोटी सी शहद की शीशी जो 15₹ की किसी भी कंपनी की मिल जाएगी में ये कागज़ मोड़ के डुबो दें व् ढक्कन बंद कर किसी भी भैरव मंदिर या शनि मंदिर में गाड़ दें। यदि संभव न हो तो किसी पीपल के नीचे भी गाड़ सकते हैं। कुछ दिनों में शत्रु स्वयं कष्ट में होगा और आपको छोड़ देगा।

मंत्र जप पूरी प्रक्रिया के दौरान करते रहना होगा। अर्थात नाम लिखने से लेकर गाड़ने तक।
मंत्र:

ॐ क्षौं क्षौं भैरवाय स्वाहा।
ॐ न्यायागाम्याय शुद्धाय योगिध्येयाय ते नम:।
नम: कमलाकांतय कलवृद्धाय ते नम:।

2.शत्रुओं से छुटकारा पाने हेतु एक लघु प्रयोग:-

इस प्रयोग से एक बार से ही शत्रु शांत हो जाता है और परेशान करना छोड़ देता है पर यदि जल्दी न सुधरे तो पांच बार तक प्रयोग कर सकते हैं।

ये प्रयोग शनी, राहु एवं केतु ग्रह पीड़ित लोगों के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

इसके लिए किसी भी मंगलवार या शनिवार को भैरवजी के मंदिर जाएँ और उनके सामने एक आटे का चौमुखा दीपक जलाएं। दीपक की बत्तियों को रोली से लाल रंग लें। फिर शत्रु या शत्रुओं को याद करते हुए एक चुटकी पीली सरसों दीपक में डाल दें। फिर निम्न श्लोक से उनका ध्यान कर 21बार निम्न मन्त्र का जप करते हुए एक चुटकी काले उड़द के दाने दिए में डाले। फिर एक चुटकी लाल सिंदूर दिए के तेल के ऊपर इस तरह डालें जैसे शत्रु के मुंह पर डाल रहे हों। फिर 5 लौंग ले प्रत्येक पर 21 21 जप करते हुए शत्रुओं का नाम याद कर एक एक कर दिए में ऐसे डालें जैसे तेल में नहीं किसी ठोस चीज़ में गाड़ रहे हों। इसमें लौंग के फूल वाला हिस्सा ऊपर रहेगा।

फिर इनसे छुटकारा दिलाने की प्रार्थना करते हुए प्रणाम कर घर लौट आएं।


ध्यान :-

ध्यायेन्नीलाद्रिकान्तम शशिश्कलधरम

                                     मुण्डमा
लं महेशम्।

दिग्वस्त्रं पिंगकेशं डमरुमथ सृणिं

                                   खडगपाशाभयानि।।

नागं घण्टाकपालं करसरसिरुहै

                                      र्बिभ्रतं भीमद्रष्टम।

दिव्यकल्पम त्रिनेत्रं मणिमयविलसद

                                किंकिणी नुपुराढ्यम।।


मन्त्र:-


ॐ ह्रीं भैरवाय वं वं वं ह्रां क्ष्रौं नमः।


यदि भैरव मन्दिर न हो तो शनि मन्दिर में भी ये प्रयोग कर सकते हैं।


दोनों न हों तो पूरी क्रिया घर में दक्षिण मुखी बैठ कर भैरव जी का पूजन कर उनके समक्ष कर लें और दीपक मध्य रात्रि में किसी चौराहे पर रख आएं। चौराहे पर भी ये प्रयोग कर सकते हैं। परन्तु याद रहे चौराहे पर करेंगे तो कोई देखे न वरना कोई टोक सकता है जादू टोना करने वाला भी समझ सकता है। चौराहें पर करें तो चुपचाप बिना पीछे देखे घर लौट आएं हाथ मुंह धोकर ही किसी से बात करें।

यदि एक बार में शत्रु पूर्णतः शांत न हो तो 5 बार तक एक एक हफ्ते बाद कर सकते हैं।


उक्त प्रयोग शत्रु के उच्चाटन हेतु भी कर सकते हैं पर उसमे बत्ती मदार के कपास की बनेगी और दीपक शत्रु के मुख्य द्वार के सामने जलाना होगा। उच्चाटन प्रयोग सोच समझ के करें क्योंकि किसी ने देख लिया तो बहुत पिटाई होगी। पिटाई से बचाने की मेरी कोई गारन्टी नहीं है।


किसी प्रकार की जानकारी ,कुंडली विश्लेषण या समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Monday, 7 November 2016

Saptamukhi hanuman sadhna for Serious Diseases रोगनाशक सप्तमुखी हनुमान साधना

असाध्य रोग नाशक श्री सप्तमुखी हनुमान साधना
 सप्तमुखी हनुमान कवच

मित्रों,
आज के समय में असंयमित जीवन शैली और खान पान के कारण अनेकानेक रोग से लोग परेशान रहते है। डॉक्टरों के पास चक्कर लगाते लगाते एड़ियां घिस जाती हैं और जेब खाली हो जाती है।
कई बार रोगी समाप्त हो जाता है किंतु रोग समाप्त नहीं होता। रोगी को ठीक करने के प्रयास में पूरा परिवार मानसिक रूप से रोगी हो जाता है, निराश हो जाता है।

आज आपको श्री सप्तमुखी हनुमान जी का एक प्रयोग दे रहा हूँ जो असाध्य रोगों में भी बेहद लाभकारी है।

हालाँकि इसमें मेहनत अवश्य है किंतु जितनी मेहनत आप डॉक्टर और हस्पतालों के चक्कर लगाने में करते हैं उसमें से कुछ प्रतिशत ऊर्जा आध्यात्मिक रूप से भी कर दें तो निराशा के गहरे अंधकार से निकलकर चमत्कारिक फल मिलने की संभावना है।

श्री हनुमान जी का तीव्र रोगनाशक मंत्र का जप करनें,जल,दवा अभिमंत्रित कर पीने से बड़े से बड़ा असाध्य रोग भी दूर होता है।
प्रयोग यदि दीक्षित व्यक्ति करें तो ज्यादा उत्तम होगा।

ये प्रयोग 36 दिन का है, इसके लिए किसी भी शुक्ल पक्ष के मंगलवार से ये प्रयोग शुरू करें।
सूर्योदय का समय सर्वश्रेष्ठ है, अन्यथा सांय काल 7 बजे के बाद करें।

सर्वप्रथम हाथ में जल, अक्षत, रोली और पुष्प लेकर सप्तमुखी हनुमान जी का ध्यान करते हुए संकल्प करें की मैं (नाम) पुत्रश्री(पिता का नाम) गोत्र आज मंगलवार .....तिथि को अपने(या रोगी का नाम) के रोग के समूल नाश के लिए श्री सप्तमुखी हनुमान जी के रोगनाशक मंत्र का 36 दिन तक प्रतिदिन 21 माला जप करूँगा। श्री हनुमान जी मुझसे प्रसन्न हो शीघ्र मेरी मनोकामना पूर्ण करें।

फिर एक भोजपत्र पर चमेली की कलम से अष्टगन्ध की स्याही से निम्नांकित हनुमान यंत्र बना लें और इसका नियमित पंचोपचार पूजन करें।

मित्रों ये हनुमान जी का विशिष्ट यंत्र है जो उनका अनुग्रह दिलवाता है, इसके पूजन से उनकी कृपा शीघ्र मिलती है।

एक तांबे के पात्र में जल भरकर सामने  रख लें ।
इसके बाद श्री सप्तमुखी हनुमान जी के कवच के 5 पाठ करें और फिर सप्तमुखी हनुमान जी के रोग हरण मन्त्र का जप कर जल अभिमंत्रित कर रोगी को पिलाएं।

सप्तमुखी हनुमत्कवचम्

विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीसप्तमुखीवीर हनुमत्कवचस्तोत्रमन्त्रस्य  नारदऋषिः  अनुष्टुप्छन्दः श्रीसप्तमुखीकपिः परमात्मादेवता ह्रां बीजम्  ह्रीं शक्तिः ह्रूं कीलकम् मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।

ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः |ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः |ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः |ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः |ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः |ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः |ॐ ह्रां हृदयाय नमः |ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा |ॐ ह्रूं शिखायै वषट् |ॐ ह्रैं कवचाय हुं |ॐ ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् |ॐ ह्रः अस्त्राय फट् |

दिग्बन्ध:- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः इतिदिग्बन्ध

ब्रह्मोवाच :

सप्तशीर्ष्णः प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् जप्त्वा हनुमतो नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते

सप्तस्वर्गपतिः पायाच्छिखां मे मारुतात्मजः सप्तमूर्धा शिरोऽव्यान्मे सप्तार्चिर्भालदेशकम्

त्रिःसप्तनेत्रो नेत्रेऽव्यात्सप्तस्वरगतिः श्रुती नासां सप्तपदार्थोऽव्यान्मुखं सप्तमुखोऽवतु

सप्तजिह्वस्तु रसनां रदान्सप्तहयोऽवतु सप्तच्छन्दो हरिः पातु कण्ठं पातु गिरिस्थितः

करौ चतुर्दशकरो भूधरोऽव्यान्ममाङ्गुलीः सप्तर्षिध्यातो हृदयमुदरं कुक्षिसागरः

सप्तद्वीपपतिश्चित्तं सप्तव्याहृतिरूपवान् कटिं मे सप्तसंस्थार्थदायकः सक्थिनी मम

सप्तग्रहस्वरूपी मे जानुनी जङ्घयोस्तथा सप्तधान्यप्रियः पादौ सप्तपातालधारकः

पशून्धनं च धान्यं च लक्ष्मीं लक्ष्मीप्रदोऽवतु दारान् पुत्रांश्च कन्याश्च कुटुम्बं विश्वपालकः

अनुक्तस्थानमपि मे पायाद्वायुसुतः सदा चौरेभ्यो व्यालदंष्ट्रिभ्यः श्रृङ्गिभ्यो भूतराक्षसात्

दैत्येभ्योऽप्यथ यक्षेभ्यो ब्रह्मराक्षसजंगायात् दंष्ट्राकरालवदनो हनुमान् मां सदाऽवतु

परशस्त्रमन्त्रतन्त्र यन्त्राग्निजलविद्युतः रुद्रांशः शत्रुसङ्ग्रामात्सर्वावस्थासुसर्वभृत

् ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय आद्यकपिमुखाय वीरहनुमतेसर्वशत्रुसंहारणाय ठं ठं ठं ठं ठं ठं ठं ॐ नमः स्वाहा

ॐ नमो भगवते सप्तवदनाय द्वीतीयनारसिंहास्याय अत्युग्रतेजोवपुषेभीषणाय भयनाशनाय हं हं हं हं हं हं हं ॐ नमः स्वाहा

ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय तृतीयगरुडवक्त्राय वज्रदंष्ट्रायमहाबलाय सर्वरोगविनाशनाय मं मं मं मं मं मं मं ॐ नमः स्वाहा

ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय चतुर्थक्रोडतुण्डाय सौमित्रिरक्षकायपुत्राद्यभिवृद्धिकराय लं लं लं लं लं लं लं ॐ नमः स्वाहा

ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय पञ्चमाश्ववदनाय रुद्रमूर्तये सर्व-वशीकरणाय सर्वनिगमस्वरूपाय रुं रुं रुं रुं रुं रुं रुं ॐ नमः स्वाहा

ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय षष्ठगोमुखाय सूर्यस्वरूपायसर्वरोगहराय मुक्तिदात्रे ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ नमः स्वाहा

ॐ  नमो भगवते सप्तवदनाय सप्तममानुषमुखाय रुद्रावताराय

अञ्जनीसुताय सकलदिग्यशोविस्तारकाय वज्रदेहाय सुग्रीवसाह्यकराय

उदधिलङ्घनाय सीताशुद्धिकराय लङ्कादहनाय अनेकराक्षसान्तकाय

रामानन्ददायकाय अनेकपर्वतोत्पाटकाय सेतुबन्धकाय कपिसैन्यनायकाय

रावणान्तकाय ब्रह्मचर्याश्रमिणे कौपीनब्रह्मसूत्रधारकाय रामहृदयाय

सर्वदुष्टग्रहनिवारणाय शाकिनीडाकिनीवेतालब्रह्मराक्षसभैरवग्रह-यक्षग्रहपिशाचग्रहब्रह्मग्रहक्षत्रियग्रहवैश्यग्रह-शूद्रग्रहान्त्यजग्रहम्लेच्छग्रहसर्पग्रहोच्चाटकाय ममसर्व कार्यसाधकाय

सर्वशत्रुसंहारकाय सिंहव्याघ्रादिदुष्टसत्वाकर्षकायै काहिकादिविविधज्वरच्छेदकाय

परयन्त्रमन्त्रतन्त्रनाशकाय सर्वव्याधिनिकृन्तकाय सर्पादिसर्वस्थावरजङ्गमविषस्तम्भनकराय

सर्वराजभयचोरभयाऽग्निभयप्रशमनाया आधिव्याधिप्रशमनायाध्यात्मिकाधि-दैविकाधिभौतिकतापत्रयनिवारणाय

सर्वविद्यासर्वसम्पत्सर्वपुरुषार्थ-दायकायाऽसाध्यकार्यसाधकाय

सर्ववरप्रदायसर्वाऽभीष्टकराय

ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः ॐ नमः स्वाहा य इदं कवचं नित्यं सप्तास्यस्य हनुमतः

त्रिसन्ध्यं जपतो नित्यं सर्वशत्रुविनाशनम् पुत्रपौत्रप्रदं सर्वं सम्पद्राज्यप्रदंपरम्

सर्वरोगहरं चाऽऽयुःकीर्त्तिदं पुण्यवर्धनम् राजानं स वशं नीत्वा त्रैलोक्यविजयी भवेत

् इदं हि परमं गोप्यं देयं भक्तियुताय च न देयं भक्तिहीनाय दत्वा स निरयं व्रजेत्

।।ॐ श्रीअथर्वणरहस्येसप्तमुखीहनुमत्कवचं सम्पूर्णम्।।

श्री हनुमान जी कासप्तमुखी ध्यान कर मंत्र जप करें।

मंत्र:-ॐ नमो भगवते सप्त वदनाय षष्ट गोमुखाय,सूर्य स्वरुपाय सर्व रोग हराय मुक्तिदात्रे ॐ नम: स्वाहा, को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो।

जल अभिमंत्रित करने के दो तरीके हैं

एक तो मंत्र जप करते समय अपने सीधे हाथ की एक अंगुली इस जल सेस्पर्श कराये रखे या जितना आप को मंत्र जप करना हैं उतना कर ले और फिर पूरे श्रद्धा विस्वाससे इस जल में एक फूंक मार दे ..यह मन में भावना रखते हुए की इस मंत्र की परम शक्ति अब जल में निहित हैं । चाहे तो दोनों भी कर सकते हैं।

इसके बाद हनुमान जी की आरती करें और भोग लगाएं। फिर पुनः उनसे प्रार्थना करते हुए उक्त जल को रोगी को पिला दें।

हनुमान जी की कृपा से स्वास्थ्य लाभ अवश्य होगा।

सम्पूर्ण साधना काल में मानसिक और शारीरिक पवित्रता बनाएं रखें।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
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Friday, 4 November 2016

Tantrik herb Aam ka banda for wealth धन प्राप्ति और कर्ज मुक्ति हेतु आम का बाँदा

धन प्राप्ति और कर्ज मुक्ति हेतु आम का बाँदा

वनस्पति तंत्र
तांत्रिक जड़ी-बूटियां भाग -12

मित्रों,
  जैसा की पिछले कई वर्षों से अपने विभिन्न लेखों के माध्यम से मैं आपको वनस्पति तंत्र और इनके विशिष्ट प्रयोगों के विषय में बताता आया हूँ। जैसे की हत्थाजोड़ी, काली हल्दी, एकाक्षी नारियल, सहदेवी, बेर का बाँदा, गुंजा, काकजंघा, हरसिंगार, शमी इत्यादि।

इनके अतिरिक्त विभिन्न बाँदो के विषय में भी लेख लिखा था और लोग इनपर अक्सर जानकारी लेने हेतु सम्पर्क करते रहते हैं तो आज सर्व प्रथम आम के बांदे से ही शुरुआत करते हैं।

मित्रों, अधकचरी जानकारी वाले फेसबुकिया तांत्रिक और गूगल गुरु के सिद्ध साधक बांदे के विषय में ये बता देते हैं कि पेड़ पर पेड़ उग गया तो बाँदा हो गया जो की बिलकुल गलत है। यदि ऐसा होता तो बांदे का इतना महत्व न् होता। ऐसे पेड़ तो आपके गली मोहल्ले या पास के पार्क या खेत में कई जगह मिल जायेंगे।

बाँदा स्वयं में एक विशिष्ट प्रजाति की वनस्पति है जो सर्वथा अलग है और बेहद दुर्लभता से मिलती है।

भारतीय तंत्र ज्ञानी इसका सैकडों वर्षों से विभिन्न सिद्धियों और कार्य साधने हेतु प्रयोग करते आये हैं।

वहीं अब पश्चिमी विज्ञानी भी विभिन्न शारीरिक रोगों हेतु इस पर रिसर्च कर रहे हैं। अल्ज़ाइमर, मिर्गी, याददाश्त बढ़ाने से लेकर हृदय रोग और ट्यूमर तक का इलाज बांदे में खोजा जा रहा है और इस खोज के शुरुआती नतीजे काफी अच्छे और उत्साहवर्धक हैं।

वैसे सिर्फ बांदे पर ही 4 पेज का विस्तृत लेख लिख सकता हूँ, उसकी वैज्ञानिक एनेटॉमी, फिजियोलॉजी और पहचान पर
साथ ही तांत्रिक रूप से उनके भेद और उस भेद अनुसार उपयोग पर किंतु फिर ये शीघ्र ही नकलचियों के नाम पेटेंट हो जायेगा इसलिए ऊपर दी जानकारी पर्याप्त है।

किसी भी बांदे को प्राप्त करना इतना सरल नहीं है ये एक मेहनत भरा काम है क्योंकि सर्वप्रथम सही बांदे की पहचान, फिर उचित नक्षत्र, मुहूर्त तक उसकी प्राप्ति का इंतज़ार, फिर विधि पूर्वक प्राप्त करना और कार्यानुरूप उसे सिध्द करना।

अब बात करते हैं आम के बांदे की:-

आम के बांदे को कई अवसरों पर निकाला जा सकता है जैसे रवि-पुष्य नक्षत्र में, उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में, मृगशिरा नक्षत्र में और दीपावली

जिस दिन बाँदा प्राप्त करना हो उससे एक दिन पूर्व संध्या काल में जाकर जल, रोली और मिठाई आदि से उक्त बांदे को निमंत्रण देकर आएं।

अगले दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नानादि से निवृत्त हो ब्रह्ममुहूर्त में जाकर पुनः उक्त वृक्ष का गन्धाक्षत और मिष्ठान्न से पूजन करें ।

पूजन के समय लगातार (गुप्त) मन्त्र जप करते रहें।

फिर समस्त वस्त्रों को त्याग कर अर्थात नग्न होकर वृक्ष से आज्ञा लेकर उस पर चढ़ें और खैर की लकड़ी की बनी 9 अंगुल प्रमाण की कील से उक्त बांदे को निकाल लें या आवश्यकता अनुसार हिस्सा हाथ से तोड़ लें।

फिर उसे घर लाकर उसका विधिवत पंचोपचार पूजन करें । फिर भोजपत्र पर श्रीमाया यंत्र का अष्टगन्ध की स्याही से अनार की कलम से निर्माण करें और दोनों को गुग्गुल की धूप देते हुए निम्न मंत्र का कम से कम 5 माला जप करें।

*मन्त्र पुनः गुप्त रखा है।*

फिर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और बांदे को यंत्र में लपेट कर किसी लाल वस्त्र में लपेट कर भुजा में धारण करें अथवा अपने मंदिर में ही स्थापित कर नित्य पूजन करें।

तंत्र विद्वानों के अनुसार:-

ऐसा करने से लक्ष्मी निरन्तर प्राप्त होती रहती है और अक्षय रहती है।
यदि कर्ज में डूबे हैं तो इसके प्रयोग से लक्ष्मी प्राप्त कर कर्ज मुक्त और लक्ष्मीवान हो जायेंगे।

आम के बांदे के कुछ अन्य प्रयोग:-

1. भूमिगत धन हेतु:-

आम के बांदे को प्राप्त कर इष्ट मन्त्र से सवा लाख जप से सिद्ध किया जाये और फिर उसका तिलक किया जाये तो गुप्त धन, भूमिगत धन/गड़ा हुआ धन देखने की शक्ति / सिद्धि मिलती है।
( कुछ विद्वानों अनुसार भूमिगत धन प्राप्त होता है।
कुछ विद्वान इसके साथ गोखरू और शाखोट के प्रयोग की भी विधि कहते हैं।)

2. दाम्पत्य सुख हेतु:-

उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में प्राप्त आम के बांदे को प्राप्त या धारण करने से दाम्पत्य जीवन मधुर रहता है और पति पत्नी में कभी मनमुटाव नहीं होता।

3. पति पत्नी से मनमुटाव समाप्ति हेतु:-

आम के बांदे और गौरी शंकर रुद्राक्ष को धारण करने से जीवन साथी से लंबे समय से चला आ रहा मनमुटाव समाप्त होता है। तलाक तक आ गयी नौबत भी ईश्वर कृपा से टल जाती है।

4. सुख समृद्धि हेतु:-

दीपावली पर इसका पूजन कर तिजोरी में रखने से धन और समृद्धि में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है।

5. शत्रुओं से विजय हेतु:-

आम का बाँदा धारण करने से व्यक्ति शत्रुओं को परास्त कर देता है और अजेय बन जाता है।

 मित्रों, पहली बार मैं अपनी किसी पोस्ट में मंत्र नहीं लिख रहा हूँ ये मेरे लिए भी अजीब है किंतु इन नकलची बंदरों के लिए अन्य कोई उपाय नहीं है।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

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Sunday, 30 October 2016

सर्व कामनापूर्ति महालक्ष्मी प्रयोग

यह श्री कमला प्रयोग सारे दु:खो को हर लेता है ,घर की सभी प्रकार की अशुभता दूर कर देता है , दरिद्र्यता दूर कर के घर में शुभ लक्ष्मी की प्राप्ति होकर सभी प्रकार का सुख प्राप्त होता है . इसका १६ बार १०८ दिनतक पाठ करनेसे अति शीघ्र फल प्राप्त होता है . फ़लश्रुती केवल अन्तः मे एक बार पढे ...........

!! श्री कमला प्रयोगः !!

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्त्रजाम | चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जात वेदो म आवह ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

तां म आव ह जातवेदो लक्ष्मी मनप गामिनीम् | यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषा नहम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||२||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् | श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीजुषताम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||३||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् | पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||४ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् | तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्दे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||५||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तववृक्षोथ बिल्वः | तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||६||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह | प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||७||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठां अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् | अभूतिमसमृद्धिं च सर्वांनिर्णुद मे गृहात् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||८||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् | ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||९||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि | पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ||१०||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

कर्दमेनप्रजाभूता मयिसम्भवकर्दम | श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||११||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे | नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१२ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् | चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१३ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् | सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१४ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् | यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१५||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् | सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१६||

|| फलश्रुती ||

पद्मानने पद्म-ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे | तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ||१७||

अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने | धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ||१८||

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि | विश्वप्रिये विष्णु्मनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व ||१९||

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् | प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ||२०||

धनमग्निर्धनं वायु:, धनं सूर्यो धनं वसुः | धनमिन्द्रो बृहस्पति: वरुणं धनमस्तु ते ||२१||

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा | सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ||२२||

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः | भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् ||२३||

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक-गन्ध-माल्य-शोभे | भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ||२४||

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् | लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ||२५||

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि | तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ||२६||

श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते | धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ||२७||

आनन्द: कर्दम: श्रीद: चिक्लीत इति विश्रुताः | ऋषयः श्रिय पुत्राश्च मयि श्रीर्देवि-देवता ||२८||

ऋण रोगादि दारिद्र्यं पापं क्षुद् अपमृत्यवः | भय शोक मनस्तापाः नश्यन्तु मम सर्वदा ||२९||

ॐ शान्ति: शान्तिः शान्तिः ॐ

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Wednesday, 26 October 2016

Yantra for Gambling satta जुएं सट्टे में जीत हेतु विजय लक्ष्मी यंत्र

आकस्मिक/ फंसा धन प्राप्ति प्रयोग
(शेयर, लॉटरी,जुआ सट्टा जीतने एवम् प्रॉपर्टी बिक्री में विशेष लाभदायक)

आकस्मिक धन प्राप्ति हेतु प्रयोग:-

आकस्मिक धन प्राप्ति के लिए रवि पुष्य नक्षत्र में प्राप्त हर सिंगार की जड़ और श्वेत गूंजा के ग्यारह दाने और उसी नक्षत्र में निर्मित और अभिमंत्रित प्राण प्रतिष्ठित विजय लक्ष्मी यन्त्र चांदी के ताबीज में धारण करने से आकस्मिक धन प्राप्ति के साधन बनते रहते हैं ।

शेयर मार्किट , रिस्क इन्वेस्टमेंट, जुआ ,सट्टा, लाटरी , जमीन प्रापर्टी ,सेल्स से जुड़े लोगों के लिए यह बहुत कारगर हो सकता है । वे इसे जेब या अपने वर्किंग बैग में लेकर डील करने या दांव लगाने जाएँ।

इसे अपने कार्यस्थल, केबिन- डेस्क , या दुकान प्रतिष्ठान में स्थापित किया जा सकता है।

बाजार में फंसे धन की प्राप्ति/ व्यापार वृद्धि :-

यदि आप व्यापारी हैं और आपका बिजनेस मन्दा है या पैसा बाजार में फंसा अटका है। उचित ग्राहक नहीं मिलते, काम/ऑर्डर पूरा करने के बाद भी पेमेंट नहीं मिलती या बहुत धीरे धीरे टुकड़ों में मिलती है तो उपरोक्त सामग्री यानि पारिजात मूल, श्वेत गुंजा, और विजय लक्ष्मी यंत्र को कुश के बांदे के साथ अपने ऑफिस दुकान प्रतिष्ठान के मन्दिर में स्थापित करें। व्यापार में वृद्धि स्वयं अनूभव होगी, शीघ्र ही फंसे पैसे वापस आने शुरू हो जायेंगे।

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Sunday, 23 October 2016

Ravi pushya Tantrik herbs रवि पुष्य नक्षत्र तांत्रिक वनस्पति

23 नवम्बर 2016 रवि पुष्य नक्षत्र के दुर्लभ योग में प्राप्त हुई कुछ विशेष और दुर्लभ तंत्रोक्त वनस्पतियां।

On the auspicious occasion of Ravi pushya nakshatra got some rare and special tantrik herbs.

1. Gular ka banda                   गूलर का बाँदा
2. Palash ka banda।               पलाश का बाँदा
3. Jamun ka banda।               जामुन का बाँदा
4. Shwetark ganpati।              श्वेतार्क गणपति
5. Shwet apamarg mool।     श्वेत अपामार्ग मूल
6. Kakjangha                          काकजंघा
7. Sahadevi।                            सहदेवी

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Friday, 21 October 2016

Kamiya sindur test, truth & facts कामिया सिंदूर जाँच, सत्य और तथ्य

कामिया सिंदूर जाँच, सत्य और तथ्य

मित्रों,
   करीब 2 वर्ष पूर्व मैंने कामिया सिंदूर के विषय में पोस्ट डाली थी उसके बाद से अब तक सैकडों फोन और मैसेज प्राप्त हो चुके हैं।

जितने फोन आते हैं उतनी ही अजीबो गरीब बातें भी सुनने में आती हैं। जो बेचने वालों के द्वारा सीधी सादी जनता को फंसाने का भ्रम जाल ही है ।

आपको बता दूं कि

असली कामिया सिंदूर मुख्यतः 3 प्रकार का मिलता है
और इसकी कोई जाँच विधि नहीं है।
सबसे बड़ी जांच अनूभव मात्र ही है।

1. शुद्ध सिंदूर मंदिर से प्राप्त हुआ
2. शुद्ध सिंदूर में मिलाया हुआ हिंगुल या सामान्य सिंदूर
3. कामाख्या वस्त्र में रखकर सिद्ध किया हुआ सामान्य सिंदूर

इसके अलावा जो कुछ भी नारंगी, पीला या लाल मिलता है वो सब सिंथेटिक, हनुमान जी वाला, या हिंगुल ही होता है।

अब कुछ प्रश्नों के उत्तर एवं तथ्य कामिया सिंदूर के जाँच के विषय में :-

1. कामिया सिंदूर कामाख्या मंदिर से टुकडों के रूप में प्राप्त होता है।

गलत:- कामाख्या मंदिर में शक्ति स्थल से रक्त वर्ण स्त्राव होता है जिसके अवसर पे अम्बूवाची पर्व मनाया जाता है।
उसी स्त्राव को कपड़े में एकत्र किया जाता है या समझें कि कपड़ा उसमे भिगोया जाता है। सूखने पर जो कुछ पाउडर रूप में प्राप्त होता है वही शुद्ध कामिया सिंदूर है।
वो सूखा हुआ वस्त्र या उसका धागा भी उतना ही प्रभावशाली है जितना की सिंदूर ।

2. कामिया सिंदूर कामाख्या मंदिर के ऊपर पहाड़ी पर से निकलता है।

गलत:- कामाख्या मंदिर के ऊपर दूर दूर तक कहीं ऐसी कोई खान / खदान नहीं है।

3. कामाख्या सिंदूर पत्थर के रूप में निकलता है।

गलत:- पत्थर के रूप में जो कामाख्या सिंदूर

बिकता है वो असल में सिंगरफ/ दरद यानि हिंगुल होता है।
जिससे प्राचीन काल से सिंदूर बनता है।
ये भी देवी को अति प्रिय है क्योंकि इसमें पारा होता है और ये ही शुद्ध सिंदूर है लेकिन ये कामिया सिंदूर नहीं है।

4. कामिया सिंदूर का तिलक मस्तक पर लगाने पर शीशे/ दर्पण में देखने पर तिलक दिखाई नहीं देता।

तथ्य :- कामिया सिंदूर का तिलक मस्तक पर साफ दिखता है।
नकली कामिया सिंदूर यानि सिंगरफ या हिंगुल का चूर्ण होता है जो पीसने के बाद भी बारीक़ कणों/ क्रिस्टल के रूप में रहता है और अधिक चिपकता भी नहीं है इसीलिए तिलक करने पर दर्पण में स्पष्ट प्रतिबिम्ब परिलक्षित नहीं होता और बेचने वाले इसे कामिया सिंदूर का चमत्कार बता के ठगते हैं।

5. साधारण सिंदूर संग कामिया सिंदूर मिलाने पर धुआं निकलता है या बहने लगता है।

तथ्य:- कामिया सिंदूर ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं देता।

असली हिंगुल जो गन्धक और पारे के मेल से धरती के भीतर बनता है और ज्वालामुखी से बाहर आता है अपने साथ विभिन्न रासायनिक घटक लिए होता है।
यदि उसे गन्धक के संग कोयले के बारीक़ चूर्ण संग एयर टाइट कर रखा जाये तो धुआं निकलता है कभी कभी आग भी लग जाती है।

असली हिंगुल इसी प्रकार फॉस्फोरस युक्त नकली सिंदूर या सल्फाइड से भी रिएक्ट कर धुआं निकालता है।

सीसे और क्रोमियम के संघटको से रिएक्ट होने पर ये थोड़ा तरल हो जाता है।

ये सब एक तरह की बाजीगरी है जिन्हें जनता को दिखाकर ठगा जाता है।

अब बात करते हैं हिंगुल की
ये देवी को अति प्रिय है और विभिन्न तंत्र एवं देवी पूजनों में प्रयोग किया जाता है।
हिंगुल भारत में नहीं पाया जाता, प्राचीन काल से ही ये यूनान, मिस्र, चीन, इराक, जर्मनी आदि जगहों से भारत लाया जाता था।
इसका मुख्य उद्देश्य था पारा निकालना क्योंकि ये पारे का अयस्क है।
विभिन्न विधियों एवं शोधन द्वारा हिंगुल से शुद्ध पारा प्राप्त किया जा सकता है।
इसी को पीसकर सिंदूर बनता था, पारा युक्त होने के कारण ये देवी को चढ़ता था और स्त्रिया अपनी मांग में लगाती थीं।

हालाँकि शुद्ध हिंगुल भी इतनी सरलता से नहीं मिलता क्योंकि ये भी काफी महंगा है।
शुद्ध हिंगुल का मूल्य 14 से 20 हजार रूपये प्रति किलो है उसकी शुद्धता और रंग के ऊपर।

किमियागारों ने पारे और गन्धक के मिश्रण से भी हिंगुल बनाने की विधि प्राप्त कर ली थी वो भी लगभग 1500 वर्ष पूर्व।

आमतौर पर जो कामिया सिंदूर नाम से बिकने वाला हिंगुल है वो ऐसी ही कीमियागिरी का नतीजा है और मार्किट में 1000 से 3000 रूपये किलो तक आराम से मिल जाता है।
कुछ ठग इसे 10 हजार रूपये किलो तक में भी बेच देते हैं ।
इसमें पारे की मात्रा बेहद कम होती है। जो इसकी जान है।
ऐसा नकली हिंगुल बनाने की कई फैक्ट्रियां गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में हैं।

इसलिए ऐसे चमत्कारी बहकावो और दावों से बचें।
अपना कीमती समय और पैसा बर्बाद न् करें।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

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Friday, 14 October 2016

Vashikaran Tantrik herb kak jangha काकजंघा वशीकरण जड़ी बूटी

वनस्पति तंत्र
तांत्रिक जड़ी बूटियां भाग - 11
काकजंघा
मित्रों,
काकजंघा आयुर्वेद में मानी हुई औषधि है किंतु वर्तमान में जानकारी न् होने के कारण लुप्त प्रायः और जंगली पौधा समझ के उखाड़ दी जाती है।
आयुर्वेद के अनुसार :-
काकजंघा स्नेहन (तैलीय) और संग्राहक (अर्थात इसके सेवन से व्यक्ति का मन प्रसन्न और शांत रहता है) होता है ।
यह पेट की जलन और त्वचा की सुन्नपन को दूर करता है। पाचन शक्ति, टी.बी. रोग से उत्पन्न घावपित्तज्वरखुजली और सफेद कोढ़ में इसका उपयोग लाभकारी होता है।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. बहरापन:
काकजंघा का आधा किलो रस निकालकर, 250 मिलीलीटर तेल में मिलाकर पकाएं और जब यह पकते-पकते केवल तेल ही बाकी रह जाए तो उसे छानकर रख लें। इस तैयार तेल को सुबह-शाम कान में डालने से बहरापन दूर होता है।काकजंघा के पत्तों का रस निकालकर गर्म करके कान में डालने से बहरापन ठीक होता है।
2. जलोदर: काकजंघा व हींग को पीसकर पीने से जलोदर नष्ट होता है।
3. नींद न आना (अनिद्रा): काकजंघा की जड़ को सिर के बालों पर बांधने से नींद अच्छी आती है।
4. सफेद प्रदर में
सफेद प्रदर की बीमारी से बचने के लिए चावल के पानी के साथ काकजंघा की जड़ के पेस्ट के साथ सेवन किया जाता है।
5. वात रोग में
वात रोग में घी के साथ दस ग्राम काकजंघा के रस को मिलाकर सेवन करने से वात रोग से निजात मिलता है।
6. कान की समस्या
यदि कान में कीड़ा चला गया हो तो आप काकजंघा के पत्ते से बने रस की कुछ बूंदे कान में टपकाएं आपको आराम मिलेगा।
7. खुजली व दाद में
यदि दादए खाज व खुजली की समस्या हो रही हो तो आप काकजंघा के रस से शरीर की मालिश करें। आपको आराम मिलेगा।
8. खून की गंदगी होने पर
यदि खून में विकार आ गया हो तो आप काकजंघा का काढ़ा बनाकर सेवन करें। यह खून की गंदगी को साफ करता है।
9. विष व जहरीले कीड़े के काटने पर
यदि शरीर में किसी जहरीले कीड़े ने डंक या काट लिया हो तो आप काकजंघा के पेस्ट को लोहे के चाकू पर लगाकर उस जगह पर मलें जहां पर कीड़े ने काटा है।
इसके अलावा यह औषधिय पौधा फोड़े.फुंसी, गहरे घाव, कुष्ठ आदि रोगों को ठीक करता है। काकजंघा एक शीतल और खुश्क पौधा है।  जो त्वचा से संबंधित रोगों को ठीक करता है। बुखार, गठिया और कृमि जैसी गंभीर बीमारियों से आपको बचाता है यह पौधा।

तन्त्रोक्त प्रयोग:-

मित्रों
इंटरनेट पर खोजने पर इसके एक दो प्रयोग ही सामने आए और वही सब जगह नकल हुए यानि कॉपी पेस्ट हुए दिखाई दिए।
आज आपको काकजंघा के दूसरे गुप्त प्रयोग बता रहा हूँ जो सरल किंतु दुर्लभ हैं।

वशीकरण :-
1. काले कमल, भवरें के दोनों पंख, पुष्कर मूल,  काकजंघा – इन सबको पीसकर सुखाकर चूर्ण बनाकर जिसके भी सर या मस्तक पर डाले वह वशीभूत होगा।
2. काकजंघा, लजालू, महुआ, कमल की जड़ और स्ववीर्य को मिलाकर तिलक करने से किसी को भी वश में किया जा सकता है। ( सेल्स, प्रोपर्टी के काम के लिए उत्तम)
3. गोरोचन, वंशलोचन, काकजंघा, मत्स्यपित्त, रक्त चंदन , श्वेत चन्दन, तगर,  स्ववीर्य संग कुएं अथवा नदी के जल से पीस कर गुटिका बनाकर तिलक करने से या गुटिका खिला देने से राजा भी आजीवन दास बन जाते हैं।( सरकारी अधिकारी, बॉस आदि के लिए उत्तम है)
4. चन्दन, तगर, काकजंघा, कूठ, प्रियंगु, नागकेसर और काले धतूरे का पंचांग सम्भाग पीस कर एक सप्ताह तक अभिमंत्रित कर जिसे खिलादिया जायेगा वो सदा सेवक बना रहेगा।

स्त्री वशीकरण :-
1. काकजंघा, तगर, केसर, कमल केसर इन सबको पीसकर स्त्री के मस्तक पर तथा पैर के नीचे डालने पर वह वशीभूत होती है।
2. शनिवार को विधि पूर्वक निमंत्रण दे कर हस्त या पुनर्वसु नक्षत्र युत रविवार को कपित्थ कील से काकजंघा मूल निकाल लें, फिर उसे सुखा कर चूर्ण बनाकर स्ववीर्य, पंचमैल और मध्यमा उंगली के रक्त से मिश्रित कर छोटी छोटी गोलियां बना लें। इन्हें अभिमंत्रित कर ये जिस भी स्त्री को खिला दी जायेगी वो आजीवन वश में रहेगी।
3. तन्त्रोक्त विधि से रविवार युक्त हस्त या पुष्य नक्षत्र में उत्खनित श्वेत गुंजा एवं काकजंघा मूल के चूर्ण को गोरोचन, श्वेत चन्दन, रक्त चंदन , जटामांसी, केसर कपूर और गजमद संग गुटिका बनाकर अभिमंत्रित कर जो तिलक करेगा वो किसी भी स्त्री को इच्छित भाव से देखेगा तो प्रबल वशीकरण होगा।

उच्चाटन :-
1. ब्रह्मदंडी, काकजंघा, चिता भस्म और गोबर का क्षार मिलाकर जिस पर भी डालेंगे उस व्यक्ति का उच्चाटन हो जायेगा।
2. ब्रह्मदंडी, काकजंघा और सर्प की केंचुली की धूप शत्रु का स्मरण करते हुए देने से उसका शीघ्र उच्चाटन हो जाता है।

सर दर्द:-
काकजंघा के पौधे की जड़, द्रोण पुष्पी की जड़ या मजीठ के पौधे की जड़ लें।
जड़ को सफेद सूत के धागे में बाँध कर मन्त्र सिद्ध गंडा तैयार करें। इसे रोगी के माथे पर बाँध दें। ऐसा करने से सिर का दर्द चाहे जैसा हो और जितना भी पुराना हो, शीघ्र दूर हो जाएगा।


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Tuesday, 11 October 2016

Dashahra tantra 2016 दशहरा पूजन 2016

दशहरे पर अपराजिता और शमी दिलाएंगे विजय

सभी मित्रों को विजय दशमी की शुभकामनाएं

मित्रों,
 आज का दिन सिर्फ भगवान राम की रावण पर ही विजय का दिन नहीं है बल्कि अपनी भी बहुत सी परेशानियों से मुक्ति पाने का दिन है।

आज शमी वृक्ष और सर्वत्र विजयदायिनी माँ अपराजिता देवी का पूजन होता है। देवी के पूजन के लिए उनकी प्रतीकात्मक अपराजिता लता की भी पूजा होती है।

यहां अपराजिता स्तोत्र भी दे रहा हूँ किंतु वो काफी बड़ा है जिनके लिए सम्भव न् हो वे मात्र अपराजिता गायत्री का भी जप कर सकते हैं।

शमी का महत्व:

1)बंगाल में दुर्गापूजा पर शमी वृक्ष की पत्तियां स्वर्ण प्रतीक रूप में परस्पर सद्भावना के लिए वितरित की जाती हैं.

2)इन्हें पूजा घर,तिजोरी में शुभ प्रतीक के रूप में रखा जाता है.

3)भगवान शिव,देवी दुर्गा,लक्ष्मी पूजन आदि में इस वृक्ष के फूल एवं ऋद्धि-सिद्धिदाता गणेश को पत्तियां अर्पित की जाती हैं.

4)इस वृक्ष की मोटी टहनियां अरणी मंथन द्वारा अग्नि उत्पन्न के लिए प्रधान यंत्र के अलावा पतली-सूखी टहनियां भी यज्ञ समिधा का भाग होती हैं.

5)भगवान राम ने अपने वनवास के समय जिस झोपड़ी का निर्माण किया था उसमें शमी वृक्ष की लकड़ियों का ही उपयोग किया गया था.

6)शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को स्वर्ण फूल चढ़ाने के बराबर सिर्फ आक का एक फूल चढ़ाने का चढ़ाने से फल मिलता है , हजार आक  के फूलो की अपेक्षा एक कनेर का फूल , हजार कनेर के फूल की अपेक्षा एक बिल्वपत्र , हजार बिल्वपत्र के बराबर एक द्रोण का फूल फलदाई है हजार द्रोण उनके बराबर फल एक चिचड़ा देता है हजार चिचड़ा  के बराबर फल एक कुश का पुष्प फल देता है हजार कुश फूलो के बराबर एक शमी का पत्ता फल देता है हजार शमी के पत्तो के बराबर एक नीलकमल और हज़ार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा फल देता है और 1000 धतूर से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ पर फल और पुण्य देने वाला होता है ।

7)विजयदशमी के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है मानता है कि भगवान राम का भी प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पूर्व होने समय की पूजा की थी और विजय होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था ।

8) महाभारत काल में भी मिलता है अपने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास में पांडवों ने अपने सारे अस्त्र शस्त्र इसी के ऊपर छिपाये थे जिस में अर्जुन का गांडीव धनुष भी था । कुरुक्षेत्र में कौरवों से युद्ध के लिए जाने से पहले पांडवों ने भी शमी की पूजा की थी और उसे शक्ति और विजय प्राप्त की कामना की थी कभी समय तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी सुरक्षित की पूजा करता है उसे शक्ति और विजय की प्राप्ति होती है।

9) शमी का पूजन व् सेवा शनि के द्वारा दिए जा रहे कष्टों को कम करता है और शनि को प्रसन्न करता है।

10) घर के बाहर ईशान कोण में लगाने और नित्य सेवा से घर में धन की कभी कमी नहीं होती और ऊपरी बाधाओं और दुर्घटनाओं से रक्षा होती है।

11) शमी की समिधा से हवन करने से एक ओर जहाँ शनि की शांति होती है वहीँ दूसरी ओर ऊपरी बाधा अभिचार नाश के लिए भी शमी समिधा का प्रयोग तीव्रतम असर करता है।

12) कुछ ज्योतिषाचार्य शनि शांति के लिए शमी की जड़ धारण करने की सलाह देते हैं हालाँकि ये शास्त्र सम्मत नहीं है।
नीलम के स्थान पर बिछू घास का ही प्रयोग करना उचित है।

व्यक्तिगत अनुभव से भी यही ज्ञात होता है की अभिमन्त्रित शमी मूल रखने से धन प्राप्ति के अवसर बढ़ते हैं किन्तु शनि के कुप्रभाव पर अधिक असर नहीं दिखा।

हाँ वृक्ष का नियमित पूजन अवश्य अतुलित फलदायी और शमी के कुप्रभाव को खत्म कर शनिदेव को प्रसन्न करता है।

कैसे करें पूजन:

प्रातः काल शमी वृक्ष के नीचे जाएँ और एक लोटा जल अर्पित करें। शाम के समय वृक्ष के पास जाकर नमन करें, धूप दीप करें, सफ़ेद कच्चा सूत या कच्चे सूत से बने कलावा लेकर सात परिक्रमा कर बांधे। प्रसाद स्वरुप बताशे और भुने चने अर्पित करें।
पूजन के पश्चात शमी की कुछ पत्तियां तोड़ कर घर ले आएं और सर्व प्रथम घर के मन्दिर में रखें। वहां से कुछ पत्तियां लेकर तिजोरी या गल्ले में रखें , और कुछ पत्तियां (5-7 पत्तियां) घर के प्रत्येक सदस्य को दें जिसे वे अपने पर्स में रखें।

नियमित पूजन में शमी पर प्रातः जल और शाम को धूप दीप अर्पित करें।

निम्न मन्त्र के द्वारा शमी का पूजन करें:-

शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।

अपराजिता गायत्री एवं स्तोत्र

अपराजिता गायत्री

"ॐ सर्वविजयेश्वरी विद्महे शक्तिः धीमहि अपराजितायै प्रचोदयात"

अपनी सामर्थ्यानुसार उपरोक्त गायत्री का जप करें और देवी अपराजिता का वरदहस्त प्राप्त करें - देवी आपको सदा अजेय और संपन्न रखें यही मेरी कामना है।

।।अथ श्री अपराजिता स्तोत्र ।।

ॐ नमोऽपराजितायै ।।
ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।
गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि ।
श्री लक्ष्मीनृसिंहो देवता ।
ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् ।
हुं शक्तिः ।
सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ।।
ध्यान:

ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् ।।
शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ।।१।।

शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम् ।।
बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ।।२।।

नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ।।३।।

मार्ककण्डेय उवाच :

शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ।।
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ।।४।।

ॐ नमो नारायणाय,

नमो भगवते वासुदेवाय,

नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षायणे,

क्षीरोदार्णवशायिने,

शेषभोगपर्य्यङ्काय,

गरुडवाहनाय,

अमोघाय

अजाय

अजिताय

पीतवाससे ।।

ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म, वाराह नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम ।
वरद, वरद, वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तुते, स्वाहा ।।

ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत -पिशाच-कूष्माण्ड-सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान् उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय चूर्णय चूर्णय शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा ।।

ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषीकेश, केशव, सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर, सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर, सर्वबन्धविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोऽस्तुते स्वाहा ।।

विष्णोरियमनुप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा ।।
सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी ।।५।।

सर्वैंश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा ।।
नानया सदृशं किङ्चिद्दुष्टानां नाशनं परम् ।।६।।

विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता ।।
पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्त्वगुणाश्रया ।।७।।

ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ।।८।।

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजिताम् ।।
या शक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता ।।९।।

सर्वसत्त्वमयी साक्षात्सर्वमन्त्रमयी च या ।।
या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ।।
सर्वकामदुधा वत्स शृणुष्वैतां ब्रवीमि ते ।।१०।।

य इमामपराजितां परमवैष्णवीमप्रतिहतां पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्यां जपति पठति शृणोति स्मरति धारयति कीर्तयति वा न तस्याग्निवायुवज्रोपलाशनिवर्षभयं, न समुद्रभयं, न ग्रहभयं, न चौरभयं, न शत्रुभयं, न शापभयं वा भवेत् ।।

क्वचिद्रात्र्यन्धकारस्त्रीराजकुलविद्वेषि-विषगरगरदवशीकरण-विद्वेष्णोच्चाटनवधबन्धनभयं वा न भवेत् ।।
एतैर्मन्त्रैरुदाहृतैः सिद्धैः संसिद्धपूजितैः ।।

।। ॐ नमोऽस्तुते ।।

अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठति, सिद्धे जयति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, एकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि, सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुन्धति, गायत्रि, सावित्रि, जातवेदसि, मानस्तोके, सरस्वति, धरणि, धारणि, सौदामनि, अदिति, दिति, विनते, गौरि, गान्धारि, मातङ्गी कृष्णे, यशोदे, सत्यवादिनि, ब्रह्मवादिनि, कालि, कपालिनि, करालनेत्रे, भद्रे, निद्रे, सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं जलगतं अन्तरिक्षगतं वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा ।।

यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ।।
म्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ।।११।।

धारयेद्या इमां विद्यामेतैर्दोषैर्न लिप्यते ।।
गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः ।।१२।।

भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः ।।
एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ।।१३।।

रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत् ।।
शस्त्रं वारयते ह्योषा समरे काण्डदारुणे ।।१४।।

गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम् ।।
शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम् ।।१५।।

इत्येषा कथिता विध्या अभयाख्याऽपराजिता ।।
एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते ।।१६।।

नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः ।।
न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः ।।१७।।

यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः ।।
अग्नेर्भयं न वाताच्व न स्मुद्रान्न वै विषात् ।।१८।।

कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ।।
उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा ।।१९।।

न किञ्चित्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ।।
पठेद् वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा ।।२०।।

हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान् ।।
हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजाम् ।।२१।।

रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम् ।।
पाशाङ्कुशाभयवरैरलङ्कृतसुविग्रहाम् ।।२२।।

साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मन्त्रवर्णामृतान्यपि ।।
नातः परतरं किञ्चिद्वशीकरणमनुत्तमम् ।।२३।।

रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा ।
प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि ।।
तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रीत्या प्रीयते तु माम् ।।२४।।

ॐ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलाम् ।।
सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम् ।।२५।।

दारिद्र्यदुःखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनीम् ।।
भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसाम् ।।२६।।

डाकिनी शाकिनी-स्कन्द-कूष्माण्डानां च नाशिनीम् ।।
महारौद्रिं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीम् ।।२७।।

गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः ।।
तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः शृणु ।।२८।।

एकान्हिकं द्व्यन्हिकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकम् ।।
द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्मासिकम् ।।२९।।

पाञ्चमासिकं षाङ्मासिकं वातिक पैत्तिकज्वरम् ।।
श्लैष्पिकं सात्रिपातिकं तथैव सततज्वरम् ।।३०।।

मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरम् ।
द्व्यहिन्कं त्र्यह्निकं चैव ज्वरमेकाह्निकं तथा ।।
क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणादपराजिता ।।३१।।

ॐ हॄं हन हन, कालि शर शर, गौरि धम्, धम्, विद्ये आले ताले माले गन्धे बन्धे पच पच विद्ये नाशय नाशय पापं हर हर संहारय वा दुःखस्वप्नविनाशिनि कमलस्तिथते विनायकमातः रजनि सन्ध्ये, दुन्दुभिनादे, मानसवेगे, शङ्खिनि, चाक्रिणि गदिनि वज्रिणि शूलिनि अपमृत्युविनाशिनि विश्वेश्वरि द्रविडि द्राविडि द्रविणि द्राविणि केशवदयिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनि दुर्म्मददमनि ।।

शबरि किराति मातङ्गि ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।।

ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान् सर्वान् दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि वैष्णवि माहेश्वरि कौमारि वाराहि नारसिंहि ऐन्द्रि चामुन्डे महालक्ष्मि वैनायिकि औपेन्द्रि आग्नेयि चण्डि नैरृति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊर्ध्वमधोरक्ष प्रचण्डविद्ये इन्द्रोपेन्द्रभगिनि ।।

ॐ नमो देवि जये विजये शान्ति स्वस्ति-तुष्टि पुष्टि-विवर्द्धिनि ।
कामाङ्कुशे कामदुधे सर्वकामवरप्रदे ।।
सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा ।
आकर्षणि आवेशनि-, ज्वालामालिनि-, रमणि रामणि, धरणि धारिणि, तपनि तापिनि, मदनि मादिनि, शोषणि सम्मोहिनि ।।
नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये ।।
महाचान्द्रि महासौरि महामायूरि आदित्यरश्मि जाह्नवि ।।
यमघण्टे किणि किणि चिन्तामणि ।।
सुगन्धे सुरभे सुरासुरोत्पन्ने सर्वकामदुघे ।।
यद्यथा मनीषितं कार्यं तन्मम सिद्ध्यतु स्वाहा ।।

ॐ स्वाहा ।।
ॐ भूः स्वाहा ।।
ॐ भुवः स्वाहा ।।
ॐ स्वः स्वहा ।।
ॐ महः स्वहा ।।
ॐ जनः स्वहा ।।
ॐ तपः स्वाहा ।।
ॐ सत्यं स्वाहा ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ।।

यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहेत्योम् ।।
अमोघैषा महाविद्या वैष्णवी चापराजिता ।।३२।।

स्वयं विष्णुप्रणीता च सिद्धेयं पाठतः सदा ।।
एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजिता ।।३३।।

नानया सद्रशी रक्षा. त्रिषु लोकेषु विद्यते ।।
तमोगुणमयी साक्षद्रौद्री शक्तिरियं मता ।।३४।।

कृतान्तोऽपि यतो भीतः पादमूले व्यवस्थितः ।।
मूलधारे न्यसेदेतां रात्रावेनं च संस्मरेत् ।।३५।।

नीलजीमूतसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ।।
उद्यदादित्यसङ्काशां नेत्रत्रयविराजिताम् ।।३६।।

शक्तिं त्रिशूलं शङ्खं च पानपात्रं च विभ्रतीम् ।।
व्याघ्रचर्मपरीधानां किङ्किणीजालमण्डिताम् ।।३७।।

धावन्तीं गगनस्यान्तः तादुकाहितपादकाम् ।।
दंष्ट्राकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषिताम् ।।३८।।

व्यात्तवक्त्रां ललज्जिह्वां भृकुटीकुटिलालकाम् ।।
स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पानपात्रतः ।।३९।।

सप्तधातून् शोषयन्तीं क्रुरदृष्टया विलोकनात् ।।
त्रिशूलेन च तज्जिह्वां कीलयनतीं मुहुर्मुहः ।।४०।।

पाशेन बद्ध्वा तं साधमानवन्तीं तदन्तिके ।।
अर्द्धरात्रस्य समये देवीं धायेन्महाबलाम् ।।४१।।

यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मन्त्रं निशान्तके ।।
तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापि योगिनी ।।४२।।

ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति ।।
अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्ण्वीम् ।।४३।।

श्रीमदपराजिताविद्यां ध्यायेत् ।।
दुःस्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमित्ते तथैव च ।।
व्यवहारे भेवेत्सिद्धिः पठेद्विघ्नोपशान्तये ।।४४।।

यदत्र पाठे जगदम्बिके मया, विसर्गबिन्द्वऽक्षरहीनमीडितम् ।।
तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे, सङ्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायताम् ।।४५।।

तव तत्त्वं न जानामि कीदृशासि महेश्वरि ।।
यादृशासि महादेवी तादृशायै नमो नमः ।।४६।।

इस स्तोत्र का विधिवत पाठ करने से सब प्रकार के रोग तथा सब प्रकार के शत्रु और बन्ध्या दोष नष्ट हो जाते हैं ।

विशेष रूप से मुकदमादि में सफलता और राजकीय कार्यों में अपराजित रहने के लिये यह पाठ रामबाण है ।

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।।जय श्री राम।।
अभिषेक बी पाण्डेय
नैनीताल
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