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Wednesday, 21 December 2016

Easy method to know negetive energy/ tantra spell in home घर में नकारात्मक शती/ तंत्र प्रयोग जानने का सरल उपाय

घर में नकारात्मक शक्तियां / तन्त्र प्रयोग जानने का सरल उपाय

1* (शाम्भवी प्रयोग)

ये प्रयोग कुछ वर्ष पूर्व श्री निश्चलानंद नाथ जी द्वारा दिया गया था। जो घर या प्रतिष्ठान में मौजूद नकारात्मक शक्तियों का पता लगाने में बेहद प्रभावशाली है।

बहुत से लोगो को शंका होती है उनके घरों में भुत प्रेत या फिर किसी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा है,
जिन्हें अपने घर में किसी साये की मौजूदगी का एहसास होता है या
अकेले होने पर लगता है कि उनके पीछे कोई खड़ा है या फिर गुणी जनो द्वारा ऐसा बताया जाता है ।

ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता लेकिन प्रामाणिक तौर पर कैसे पता करे की घर में नकारात्मक ऊर्जा है भी या नहीं है..जिन्हें भी ऐसी शंका है वे ये प्रयोग कर के देखे

(माँ शाम्भवी :- माँ शाम्भवी भगवान शिव की मूल शक्ति हैं, वही शिवा हैं, माहेश्वरी हैं।

माँ का स्वरुप और ध्यान
- (आपकी सरलता के लिए हिंदी में)
      जो वृषभ वाहन पर आरूढ़ होती हैं, जिनका मुख कमल तीन नेत्रों से सुशोभित है, जिनके मस्तक पर दूज का चन्द्र शोभायमान है। जो अपनी चार भुजाओं में त्रिशूल, डमरू, कमंडल और वरमुद्रा धारण किये हैं।
जीर्ण को नवीन करने वाली, जड़ को चेतन् करने वाली, मूर्छित को चेतना देने वाली, मृत्यु को जीवन में बदलने वाली ऐसी माँ शाम्भवी के श्री चरणों में मैं नमन करता हूँ।)

*एक श्रीफल(नारियल) ले लीजिए और उसे दोनों हाथों में रख लीजिए जोर से नहीं पकड़ना है दोनों हाथों की अंजुली जैसा बनाये और उस पर नारियल हो उसके बाद बील्कुल साधारण शब्दो में शांभवी शक्ति का आव्हन उस नारयेल में करे..तीन बार इन शब्दों को दोहराना है.." हे शांभवी शक्ति इस श्रीफल में मै(अमुक) आपका आव्हान करता हु " ऐसा तीन बार बोलने के बाद माँ शांभवी से प्रार्थना करे की मेरे घर में जो भी नकारात्मक ऊर्जा शक्ति है उसे जानने में संकेत देकर मेरी सहायता करे..अब नारयेल हाथो में इसी प्रकार रखे हुए पूरे घर का चक्कर लगाए एक भी कोना ना छोड़े... यदि आपके घर में ऐसी कोई भी नकारात्मक शक्ति होगी तो नारयेल में हलचल हो जायेगी कई बार नारियल हाथो में खड़ा भी हो जाता है..बील्कुल भी घबराए नहीं आपको या आपके परिवार को कुछ भी नहीं होगा..प्रमाण मिल जाने पर नारियल जल प्रवाह कर दे*

2* यदि आपको ऐसा लगता है कि आपके घर, दुकान , व्यावसायिक प्रतिष्ठान पर किसी व्यक्ति ने कोई जादू टोना, टोटका या तंत्र प्रयोग किया है और इस कारण से आप विभिन्न व्याधियों से घिरे हैं या दुखी है तो निम्न प्रयोग करें।

अमावस्या के दिन एक सफेद कपड़े पर सवा मुट्ठी चावल और पानी वाला जटा नारियल और सफेद या पयिले रंग के 5 फूल लेकर एक पोटली बना लें, इसे लेकर पूरे घर में घूमें, प्रत्येक कमरे, रसोई, स्टोर, मुख्य द्वार इत्यादि में और फिर घर के बीचों बीच की जगह पर किसी दिवार पर ये पोटली लटका दें।

अब ये पोटली यूँ ही पूर्णिमा तक लटकी रहने दें। पूर्णिमा के अगले दिन पोटली उतार कर देखें।
यदि पोटली वैसी की वैसी ही है यानि नारियल और चावल सुरक्षित हैं तो आपके घर में कोई भी ऐसा अनिष्ट प्रयोग नहीं हुआ है।( सिर्फ फूल सूख जायेंगे)

किंतु यदि चावलों में बारीक़ कीड़े हो गए हैं, या बदबू आ रही हो या नारियल सड़ने लगा हो तो इसका अर्थ है कि कुछ समस्या अवश्य है।

अपनी पोटली का आंकलन विश्लेषण कर उसे कहीं नदी या तालाब में प्रवाहित कर दें।

फिर किसी उत्तम जानकार से अपनी समस्या का निवारण निराकरण कराएँ।

तो मित्रो ये प्रयोग करे शंका से मुक्त होइए उसके बाद आपका अनुभव जरूर बताएं।

अन्य किसी प्रकार की जानकारी ,कुंडली विश्लेषण या समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

अभिषेक बी पाण्डेय
देवभूमि नैनीताल
उत्तराखण्ड

7579400465
8909521616 (whats app)

For more easy & useful remedies visit-
http://jyotish-tantra.blogspot.in

Monday, 12 December 2016

Remedy to disburse loan कर्ज मुक्ति हेतु सरल उपाय

कर्ज मुक्ति हेतु एक सरल टोटका

मित्रों,
समय समय पर विभिन्न कार्यों हेतु हमे कर्ज लेना पड़ जाता है, किंतु कई बार कर्ज लेने के पश्चात परिस्थितियां इतनी तेजी से बदलती हैं कि कर्ज से मुक्त होने की जगह कर्ज का बोझ बढ़ता चला जाता है।

कर्ज लेने देने सबके लिए ज्ञानी जन दिन वार नक्षत्र मुहूर्तादि का ज्ञान दे गये हैं, पर परिस्थिति की जरूरत जब खड़ी होती है तब दिमाग काम नहीं करता और सिर्फ आवश्यकता पूर्ति के लिए धन और कर्ज ही नज़र आता है।

आज आपको एक सरल टोटका दे रहा हूँ, आप ये रविवार और मंगलवार के दिन करें।

खैर की लकड़ी का कोयला बनाये और उससे 3 खड़ी रेखाएं खींचकर नीचे लिखे मन्त्र पढ़ते हुए बाएं पैर की एड़ी से मिटा दें।

मन्त्र:-

दुःखदौर्भाग्यनाशाय पुत्रसन्तानहेतवे।
कृतरेखात्रयं वाम पादेनै तत्प्रामाज्यमयह्म।।

ऋणदुःखविनाशाय मनोभीप्सार्थसिद्धये।
मार्जयाम्यसितारेखास्तिस्रो जन्मत्रयोद्भवाः।।

इस टोटके से जरूर ही आपके सामने कर्ज मुक्ति के मार्ग खुलेंगे और कर्ज समाप्त होगा।

किसी प्रकार की जानकारी ,कुंडली विश्लेषण या समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

अभिषेक बी पाण्डेय
देवभूमि नैनीताल
उत्तराखण्ड

7579400465

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Friday, 9 December 2016

Havan for mental diseases हवन से मानसिक रोगों का उपचार

हवन से मानसिक रोगो का उपचार

प्राचीनकाल में आरोग्य संवर्द्धन एवं रोग निवारण के लिए ‘भैषज्ञ’ यज्ञ किए जाते थे और लोग उनसे लाभ प्राप्त करते थे। ये यज्ञ ऋतुओं के संधिकाल में होते थे, क्योंकि इसी समय व्यापक स्तर पर व्याधियों का प्रकोप होता था। इन यज्ञों की विशेषता होती हैं कि इनमें होमी गई हवन सामग्री वायुभूत होकर न केवल शारीरिक व्याधियाँ दूर करती हैं, वरन् इसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक बीमारियों एवं मनोविकृतियों से भी छुटकारा पा लेता है। कषाय-कल्मष कटते हैं और व्यक्तियों में सत्प्रवृत्तियों को भर देने वाले उभार उमगते हैं। समग्र व्यक्तित्व-विकास में इससे अपूर्व सहायता मिलती है।

इसे विडंबना ही कहना चाहिए कि आज की समस्त चिकित्सापद्धतियाँ मात्र शारीरिक रोगों तक ही अपने आपको सीमित किए हुए हैं, जबकि मस्तिष्कीय उपचार की आवश्यकता शारीरोपचार से भी अधिक है। इन दिनों मनोविकारों, मानसिक रोगों की भरमार शारीरिक व्याधियों से कहीं अधिक है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज नब्बे प्रतिशत व्यक्तियों को तनाव, दबाव, अवसाद, अनिद्रा, चिंता, आवेश, क्रोध, उत्तेजना, मिरगी, उन्माद, सनक, निराशा, उदासीनता, आशंका, अविश्वास, भय, असंतुलन आदि में से किसी-न-किसी मनोव्याधि से ग्रस्त देखा जाता है। इन विकारों से व्यक्तित्व टूट जाता है। संतुलित एवं विवेकशील व्यक्तित्व विरले ही दिखाई देते हैं।

व्यक्तित्व संबंधी इन विकृतियों का निदान यज्ञ चिकित्सा में सन्निहित है। यहाँ तक कि यदि कोई व्यक्ति उन्मत्त या पागल हो जाए और प्रलाप करने लगे, तो उस स्थिति में भी वह यज्ञ चिकित्सा से स्वस्थ हो सकता है। यज्ञाग्नि में हवन की हुई औषधियों की सुवासित ऊर्जा उसके विकृत मस्तिष्क और उत्तेजित मन को ठीक कर सकती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यज्ञ में सुगंधित औषधियाँ होमी जाती हैं, उससे जो ऊर्जा निस्सृत होती हैं, वह हलकी होने के कारण ऊपर को उठती है। जब यह नासिका द्वारा अंदर खींची जाती हैं, तो सर्वप्रथम मस्तिष्क, तदुपराँत फेफड़ों में फिर सारे शरीर में फैलती है। उसके साथ औषधियों के जो अत्यंत उपयोगी सुगंधित सूक्ष्म अंश होते हैं, वे मस्तिष्क के उन क्षेत्रों तक जा पहुँचते हैं, जहाँ अन्य उपायों से उस संस्थान का स्पर्श तक नहीं किया जा सकता। अचेतन की पवन परतों तक यज्ञीय ऊर्जा की पहुँच होती हैं और वहाँ जड़ जमाए हुए मनोविकारों, बीमारियों को निकाल बाहर करने में सफलता मिलती है।

यज्ञ चिकित्सा को घरेलू उपचार भी कह सकते हैं। इससे शारीरिक एवं मानसिक आधि-व्याधियों का निराकरण होता तथा दोनों ही क्षेत्रों की क्षमता में अभिवृद्धि होती है। इस संदर्भ में ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान द्वारा जो विविध प्रयोग-परीक्षण किए गए हैं, उनमें शोधकर्मियों को आशातीत सफलता मिली है। इस शृंखला में मानसिक रोगों, मनोविकृतियों पर यज्ञोपचार के जो विशेष परीक्षण हुए हैं, उसके सार-निष्कर्ष यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

चंद्रमा का मन से सीधा संबंध है। अतः मानसिक रोगों, मनोविकृतियों, मन में संचित विषों आदि उष्णताओं का शमन चंद्र गायत्री से होता है। अंतरात्मा की शांति, चित्त की एकाग्रता, पारिवारिक क्लेश, द्वेष, वैमनस्य, मानसिक उत्तेजना, क्रोध, अंतर्कलह आदि को शांत करके शीतल मधुर संबंध उत्पन्न करने के लिए भी चंद्र गायत्री विशेष लाभप्रद होती है।

चंद्र गायत्री का मंत्र इस प्रकार है-

ॐ भूर्भुवः स्वः क्षीर पुत्राय विऽहे, अमृत तत्वाय धीमहि तन्नः चंद्रः प्रचोदयात्।

इस मंत्र द्वारा रोगानुसार विशेष प्रकार से तैयार की गई हवन सामग्री से नित्यप्रति कम-से-कम चौबीस बार हवन करने एवं संबंधित सामग्री के सूक्ष्म कपड़छन पाउडर को सुबह-शाम लेते रहने से शीघ्र ही मनोविकृतियों से छुटकारा मिल जाता है। हवन करने वाले का चित्त स्थिर और शांत हो जाता है। मानसिक दाह, उद्वेग, तनाव आदि विकृतियाँ उसके पास फटकती तक नहीं।

सर्वप्रथम मस्तिष्क रोग की सर्वमान्य विशेष हवन सामग्री यहाँ दी जा रही है। इसके साथ ही पूर्व लिखित हवन सामग्री (नं 1) को भी बराबर मात्रा में मिलाकर तब हवन करना चाहिए। विस्तृत विवरण अखण्ड ज्योति के फरवरी अंक 12 में पृष्ठ सं. 42-43 पर देखा जा सकता है। (नं. 1) हवन सामग्री में जो वनौषधियाँ बराबर मात्रा में मिलाई जाती हैं, वे हैं, अगर, तगर, देवदार, चंदन, लाल चंदन, जायफल, लौंग, गुग्गल, चिरायता, गिलोय एवं असगंध।

(1) मस्तिष्क रोगों की विशेष हवन सामग्री-

(1) देशी बेर का गूदा (पल्प) (2) मौलश्री की छाल (3) पीपल की कोपलें (4) इमली के बीजों की गिरी (5) काकजंघा (6) बरगद के फल (7) खरैटी (बीजबंद) बीज (8) गिलोय (9) गोरखमुँडी (10) शंखपुष्पी (11) मालकंगनी (ज्योतिष्मती) (12) ब्राह्मी (13) मीठी बच (14) षतावर (15) जटामाँसी, (16) सर्पगंधा।

इन सभी सोलह चीजों के जौकुट पाउडर को हवन सामग्री के रूप में प्रयुक्त करने के साथ ही सभी चीजों को मिलाकर सूक्ष्मीकृत चूर्ण को एक चम्मच सुबह एवं एक चम्मच शाम को घी-शक्कर या जल के साथ रोगी व्यक्ति को नित्य खिलाते रहना चाहिए।

मस्तिष्कीय रोगों में समिधाओं का भी अपना विशेष महत्व है। अतः जहाँ तक संभव हो क्षीर एवं सुगंधित वृक्ष अर्थात् वट, पीपल, गूलर, बेल, चंदन, देवदार, खैर, शमी का प्रयोग करना चाहिए। चंद्रमा की समिधा-पलाश है। यदि यह मिल सके, तो सर्वश्रेष्ठ समझना चाहिए। उद्विग्न-उत्तेजित मन-मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करने में उससे पर्याप्त सहायता मिलती है।

(2) तनाव ‘स्ट्रेस’ एवं हाइपर टेन्शन की विशेष हवन सामग्री-

तनाव से छुटकारा पाने के लिए निम्नलिखित अनुपात में औषधियों की जौकुट सामग्री मिलाई जाती है-

(1) ब्राह्मी-1 ग्राम, (2) शंखपुष्पी-1 ग्राम, (3) शतावर-1 ग्राम, (4) सर्पगंधा-1 ग्राम, (5) गोरखमुँडी-1 ग्राम, (6) मालकाँगनी-1 ग्राम, (7) मौलश्री छाल-1 ग्राम, (8) गिलोय-1 ग्राम, (9) सुगंध कोकिला-1 ग्राम, (1) नागरमोथा-2 ग्राम, (11) घुड़बच-5 ग्राम, (12) मीठी बच-5 ग्राम, (13) तिल-1 ग्राम, (14) जौ-1 ग्राम, (15) चावल-1 ग्राम, (16) घी 1 ग्राम, (17) खंडसारी गुड़-5 ग्राम, (18) जलकुँभी (पिस्टिया)-1 ग्राम।

इस प्रकार से तैयार की गई विशेष हवन सामग्री से चंद्र गायत्री मंत्र के साथ हवन करने से तनाव एवं उससे उत्पन्न अनेकों बीमारियाँ तथा हाइपरटेंशन से प्रयोक्ता को शीघ्र लाभ मिलता है। यहाँ इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उक्त सामग्री में क्रमाँक (1) अर्थात् ब्राह्मी से लेकर क्रमाँक (12) अर्थात् मीठी बच तक की औषधियों का महीन बारीक पिसा एवं कपड़े द्वारा छना हुआ चूर्ण सम्मिश्रित रूप से एक-एक चम्मच सुबह एवं शाम को जल या दूध के साथ रोगी को सेवन कराते रहना चाहिए।

(3) दबाव-अवसाद-’डिप्रेशन’ आदि मानसिक रोगों की विशेष हवन सामग्री-

(1) अकरकरा, (2) मालकाँगनी, (ज्योतिष्मती) (3) विमूर (4) मीठी बच, (5) घुड़बच, (6) जटामाँसी, (7) नागरमोथा, (8) गिलोय, (9) तेजपत्र, (1) सुगंध कोकिला, (11) जौ, तिल, चावल, घी, खंडसारी गुड़।

उक्त औषधियों से तैयार हवन सामग्री से हवन करने के साथ ही (नं 1) से (नं 1) तक की औषधियों का बारीक पिसा हुआ चूर्ण रोगी को सुबह शाम एक-एक चम्मच जल या दूध के साथ नित्य खिलाते रहने से शीघ्र लाभ मिलता है। इसके साथ ही डिप्रेशन या दबाव से पीड़ित व्यक्ति को शीघ्र स्वस्थ एवं सामान्य स्थिति में लाने के लिए यह आवश्यक है कि उसके मन के अनुकूल बातें की जाएँ।

(4) मिर्गी-अपस्मार या ‘फिट्स’ की विशेष हवन सामग्री-

मिर्गी एवं इससे संबंधित रोगों पर निम्नलिखित औषधियों से बनाई गई हवन सामग्री से यजन करने पर यह रोग समूल नष्ट हो जाता है।

(1) छोटी इलायची, (2) अपामार्ग के बीज, (3) अश्वगंधा, (4) नागरमोथा, (5) गुरुचि, (6) जटामाँसी, (7) ब्राह्मी, (8) शंखपुष्पी, (9) चंपक, (10) मुलहठी, (11) गुलाब के फूल, (12) कनेर के फूल, (13) कमलगट्टा, (14) गुग्गल, (15) धूप, (16) कूठ, (17) कुलंजन, (18) दारुहल्दी, (19) साठी, (2) मुष्ता, (12) छाड़-छड़ीला, (22) गोक्षरु, (23) सरसों, (24) राई, (25) कालीमिर्च, (26) मीठी बच।

हवन करने के साथ ही इन औषधियों के बारीक चूर्ण को एक-एक चम्मच सुबह-शाम जल या दूध के साथ रोगी को नित्यप्रति कम-से-कम 4 दिन तक खिलाते रहना चाहिए। ‘टेन्शन’ एवं ‘डिप्रेशन’ से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए भी इसे प्रयुक्त किया जा सकता है। अगर सब औषधियों के बारीक चूर्ण को एक-एक चम्मच सुबह-शाम जल या दूध के साथ रोगी को नित्यप्रति कम-से-कम 4 दिन तक खिलाते रहना चाहिए। ‘टेन्शन’ एवं ‘डिप्रेशन’ से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए भी इसे प्रयुक्त किया जा सकता है। अगर सब औषधियाँ उपलब्ध न हो सकें, तो (नं 12) तक की औषधियां की हवन सामग्री बनाकर हवन करने एवं खाने से भी रोगी रोगमुक्त हो जाता है।

(5) अनिद्रा रोग की विशेष हवन सामग्री-

(1) काकजंघा, (2) पीपलामूल, (3) भारंगी, (4) जटामाँसी, (5) जलकुँभी (पिस्टिया) (6) ब्राह्मी, (7) शंखपुष्पी, (8) सर्पगंधा, (9) सुगंध कोकिला, (1) ज्योतिष्मती।

इस हवन सामग्री का उपयोग यदि क्षीरवृक्ष अर्थात् गूलर, पाकर, पलाश, वट-पीपल आदि की समिधाओं के साथ किया जाए, तो उन्माद रोग में भी शीघ्र लाभ होता है। हवन करने के साथ ही उक्त सभी दस औषधियों के बारीक पिसे हुए चूर्ण को घी और शक्कर के साथ सुबह-शाम एक-एक चम्मच खिलाते रहना चाहिए, पूर्ण लाभ तभी मिलता है।

इनके अतिरिक्त कुछ धूनी के भी प्रयोग हैं जिनकी चर्चा अगले लेख में करेंगे।

 स्वामी केशवानन्द जी, गायत्री पीठ के सौजन्य से।

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