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Sunday, 30 October 2016

सर्व कामनापूर्ति महालक्ष्मी प्रयोग

यह श्री कमला प्रयोग सारे दु:खो को हर लेता है ,घर की सभी प्रकार की अशुभता दूर कर देता है , दरिद्र्यता दूर कर के घर में शुभ लक्ष्मी की प्राप्ति होकर सभी प्रकार का सुख प्राप्त होता है . इसका १६ बार १०८ दिनतक पाठ करनेसे अति शीघ्र फल प्राप्त होता है . फ़लश्रुती केवल अन्तः मे एक बार पढे ...........

!! श्री कमला प्रयोगः !!

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्ण रजतस्त्रजाम | चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जात वेदो म आवह ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

तां म आव ह जातवेदो लक्ष्मी मनप गामिनीम् | यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषा नहम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||२||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् | श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीजुषताम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||३||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् | पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||४ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् | तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्दे अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||५||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तववृक्षोथ बिल्वः | तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||६||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह | प्रादुर्भूतो सुराष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||७||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठां अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् | अभूतिमसमृद्धिं च सर्वांनिर्णुद मे गृहात् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||८||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् | ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||९||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि | पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः ||१०||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

कर्दमेनप्रजाभूता मयिसम्भवकर्दम | श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||११||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे | नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१२ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् | चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१३ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् | सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१४ ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् | यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योश्वान्विन्देयं पुरुषानहम् ||

दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१५||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः |

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि |

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् | सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ||दारिद्र्यदु:खभयहारिणी क त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ||

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः||१६||

|| फलश्रुती ||

पद्मानने पद्म-ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे | तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ||१७||

अश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने | धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ||१८||

पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि | विश्वप्रिये विष्णु्मनोनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व ||१९||

पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् | प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ||२०||

धनमग्निर्धनं वायु:, धनं सूर्यो धनं वसुः | धनमिन्द्रो बृहस्पति: वरुणं धनमस्तु ते ||२१||

वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा | सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ||२२||

न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः | भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां श्रीसूक्तं जपेत् ||२३||

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुक-गन्ध-माल्य-शोभे | भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ||२४||

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् | लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ||२५||

महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि | तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ||२६||

श्रीवर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाविधाच्छोभमानं महीयते | धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ||२७||

आनन्द: कर्दम: श्रीद: चिक्लीत इति विश्रुताः | ऋषयः श्रिय पुत्राश्च मयि श्रीर्देवि-देवता ||२८||

ऋण रोगादि दारिद्र्यं पापं क्षुद् अपमृत्यवः | भय शोक मनस्तापाः नश्यन्तु मम सर्वदा ||२९||

ॐ शान्ति: शान्तिः शान्तिः ॐ

अन्य  किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

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Wednesday, 26 October 2016

Yantra for Gambling satta जुएं सट्टे में जीत हेतु विजय लक्ष्मी यंत्र

आकस्मिक/ फंसा धन प्राप्ति प्रयोग
(शेयर, लॉटरी,जुआ सट्टा जीतने एवम् प्रॉपर्टी बिक्री में विशेष लाभदायक)

आकस्मिक धन प्राप्ति हेतु प्रयोग:-

आकस्मिक धन प्राप्ति के लिए रवि पुष्य नक्षत्र में प्राप्त हर सिंगार की जड़ और श्वेत गूंजा के ग्यारह दाने और उसी नक्षत्र में निर्मित और अभिमंत्रित प्राण प्रतिष्ठित विजय लक्ष्मी यन्त्र चांदी के ताबीज में धारण करने से आकस्मिक धन प्राप्ति के साधन बनते रहते हैं ।

शेयर मार्किट , रिस्क इन्वेस्टमेंट, जुआ ,सट्टा, लाटरी , जमीन प्रापर्टी ,सेल्स से जुड़े लोगों के लिए यह बहुत कारगर हो सकता है । वे इसे जेब या अपने वर्किंग बैग में लेकर डील करने या दांव लगाने जाएँ।

इसे अपने कार्यस्थल, केबिन- डेस्क , या दुकान प्रतिष्ठान में स्थापित किया जा सकता है।

बाजार में फंसे धन की प्राप्ति/ व्यापार वृद्धि :-

यदि आप व्यापारी हैं और आपका बिजनेस मन्दा है या पैसा बाजार में फंसा अटका है। उचित ग्राहक नहीं मिलते, काम/ऑर्डर पूरा करने के बाद भी पेमेंट नहीं मिलती या बहुत धीरे धीरे टुकड़ों में मिलती है तो उपरोक्त सामग्री यानि पारिजात मूल, श्वेत गुंजा, और विजय लक्ष्मी यंत्र को कुश के बांदे के साथ अपने ऑफिस दुकान प्रतिष्ठान के मन्दिर में स्थापित करें। व्यापार में वृद्धि स्वयं अनूभव होगी, शीघ्र ही फंसे पैसे वापस आने शुरू हो जायेंगे।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

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Sunday, 23 October 2016

Ravi pushya Tantrik herbs रवि पुष्य नक्षत्र तांत्रिक वनस्पति

23 नवम्बर 2016 रवि पुष्य नक्षत्र के दुर्लभ योग में प्राप्त हुई कुछ विशेष और दुर्लभ तंत्रोक्त वनस्पतियां।

On the auspicious occasion of Ravi pushya nakshatra got some rare and special tantrik herbs.

1. Gular ka banda                   गूलर का बाँदा
2. Palash ka banda।               पलाश का बाँदा
3. Jamun ka banda।               जामुन का बाँदा
4. Shwetark ganpati।              श्वेतार्क गणपति
5. Shwet apamarg mool।     श्वेत अपामार्ग मूल
6. Kakjangha                          काकजंघा
7. Sahadevi।                            सहदेवी

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Friday, 21 October 2016

Kamiya sindur test, truth & facts कामिया सिंदूर जाँच, सत्य और तथ्य

कामिया सिंदूर जाँच, सत्य और तथ्य

मित्रों,
   करीब 2 वर्ष पूर्व मैंने कामिया सिंदूर के विषय में पोस्ट डाली थी उसके बाद से अब तक सैकडों फोन और मैसेज प्राप्त हो चुके हैं।

जितने फोन आते हैं उतनी ही अजीबो गरीब बातें भी सुनने में आती हैं। जो बेचने वालों के द्वारा सीधी सादी जनता को फंसाने का भ्रम जाल ही है ।

आपको बता दूं कि

असली कामिया सिंदूर मुख्यतः 3 प्रकार का मिलता है
और इसकी कोई जाँच विधि नहीं है।
सबसे बड़ी जांच अनूभव मात्र ही है।

1. शुद्ध सिंदूर मंदिर से प्राप्त हुआ
2. शुद्ध सिंदूर में मिलाया हुआ हिंगुल या सामान्य सिंदूर
3. कामाख्या वस्त्र में रखकर सिद्ध किया हुआ सामान्य सिंदूर

इसके अलावा जो कुछ भी नारंगी, पीला या लाल मिलता है वो सब सिंथेटिक, हनुमान जी वाला, या हिंगुल ही होता है।

अब कुछ प्रश्नों के उत्तर एवं तथ्य कामिया सिंदूर के जाँच के विषय में :-

1. कामिया सिंदूर कामाख्या मंदिर से टुकडों के रूप में प्राप्त होता है।

गलत:- कामाख्या मंदिर में शक्ति स्थल से रक्त वर्ण स्त्राव होता है जिसके अवसर पे अम्बूवाची पर्व मनाया जाता है।
उसी स्त्राव को कपड़े में एकत्र किया जाता है या समझें कि कपड़ा उसमे भिगोया जाता है। सूखने पर जो कुछ पाउडर रूप में प्राप्त होता है वही शुद्ध कामिया सिंदूर है।
वो सूखा हुआ वस्त्र या उसका धागा भी उतना ही प्रभावशाली है जितना की सिंदूर ।

2. कामिया सिंदूर कामाख्या मंदिर के ऊपर पहाड़ी पर से निकलता है।

गलत:- कामाख्या मंदिर के ऊपर दूर दूर तक कहीं ऐसी कोई खान / खदान नहीं है।

3. कामाख्या सिंदूर पत्थर के रूप में निकलता है।

गलत:- पत्थर के रूप में जो कामाख्या सिंदूर

बिकता है वो असल में सिंगरफ/ दरद यानि हिंगुल होता है।
जिससे प्राचीन काल से सिंदूर बनता है।
ये भी देवी को अति प्रिय है क्योंकि इसमें पारा होता है और ये ही शुद्ध सिंदूर है लेकिन ये कामिया सिंदूर नहीं है।

4. कामिया सिंदूर का तिलक मस्तक पर लगाने पर शीशे/ दर्पण में देखने पर तिलक दिखाई नहीं देता।

तथ्य :- कामिया सिंदूर का तिलक मस्तक पर साफ दिखता है।
नकली कामिया सिंदूर यानि सिंगरफ या हिंगुल का चूर्ण होता है जो पीसने के बाद भी बारीक़ कणों/ क्रिस्टल के रूप में रहता है और अधिक चिपकता भी नहीं है इसीलिए तिलक करने पर दर्पण में स्पष्ट प्रतिबिम्ब परिलक्षित नहीं होता और बेचने वाले इसे कामिया सिंदूर का चमत्कार बता के ठगते हैं।

5. साधारण सिंदूर संग कामिया सिंदूर मिलाने पर धुआं निकलता है या बहने लगता है।

तथ्य:- कामिया सिंदूर ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं देता।

असली हिंगुल जो गन्धक और पारे के मेल से धरती के भीतर बनता है और ज्वालामुखी से बाहर आता है अपने साथ विभिन्न रासायनिक घटक लिए होता है।
यदि उसे गन्धक के संग कोयले के बारीक़ चूर्ण संग एयर टाइट कर रखा जाये तो धुआं निकलता है कभी कभी आग भी लग जाती है।

असली हिंगुल इसी प्रकार फॉस्फोरस युक्त नकली सिंदूर या सल्फाइड से भी रिएक्ट कर धुआं निकालता है।

सीसे और क्रोमियम के संघटको से रिएक्ट होने पर ये थोड़ा तरल हो जाता है।

ये सब एक तरह की बाजीगरी है जिन्हें जनता को दिखाकर ठगा जाता है।

अब बात करते हैं हिंगुल की
ये देवी को अति प्रिय है और विभिन्न तंत्र एवं देवी पूजनों में प्रयोग किया जाता है।
हिंगुल भारत में नहीं पाया जाता, प्राचीन काल से ही ये यूनान, मिस्र, चीन, इराक, जर्मनी आदि जगहों से भारत लाया जाता था।
इसका मुख्य उद्देश्य था पारा निकालना क्योंकि ये पारे का अयस्क है।
विभिन्न विधियों एवं शोधन द्वारा हिंगुल से शुद्ध पारा प्राप्त किया जा सकता है।
इसी को पीसकर सिंदूर बनता था, पारा युक्त होने के कारण ये देवी को चढ़ता था और स्त्रिया अपनी मांग में लगाती थीं।

हालाँकि शुद्ध हिंगुल भी इतनी सरलता से नहीं मिलता क्योंकि ये भी काफी महंगा है।
शुद्ध हिंगुल का मूल्य 14 से 20 हजार रूपये प्रति किलो है उसकी शुद्धता और रंग के ऊपर।

किमियागारों ने पारे और गन्धक के मिश्रण से भी हिंगुल बनाने की विधि प्राप्त कर ली थी वो भी लगभग 1500 वर्ष पूर्व।

आमतौर पर जो कामिया सिंदूर नाम से बिकने वाला हिंगुल है वो ऐसी ही कीमियागिरी का नतीजा है और मार्किट में 1000 से 3000 रूपये किलो तक आराम से मिल जाता है।
कुछ ठग इसे 10 हजार रूपये किलो तक में भी बेच देते हैं ।
इसमें पारे की मात्रा बेहद कम होती है। जो इसकी जान है।
ऐसा नकली हिंगुल बनाने की कई फैक्ट्रियां गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में हैं।

इसलिए ऐसे चमत्कारी बहकावो और दावों से बचें।
अपना कीमती समय और पैसा बर्बाद न् करें।

अन्य किसी जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
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Friday, 14 October 2016

Vashikaran Tantrik herb kak jangha काकजंघा वशीकरण जड़ी बूटी

वनस्पति तंत्र
तांत्रिक जड़ी बूटियां भाग - 11
काकजंघा
मित्रों,
काकजंघा आयुर्वेद में मानी हुई औषधि है किंतु वर्तमान में जानकारी न् होने के कारण लुप्त प्रायः और जंगली पौधा समझ के उखाड़ दी जाती है।
आयुर्वेद के अनुसार :-
काकजंघा स्नेहन (तैलीय) और संग्राहक (अर्थात इसके सेवन से व्यक्ति का मन प्रसन्न और शांत रहता है) होता है ।
यह पेट की जलन और त्वचा की सुन्नपन को दूर करता है। पाचन शक्ति, टी.बी. रोग से उत्पन्न घावपित्तज्वरखुजली और सफेद कोढ़ में इसका उपयोग लाभकारी होता है।
विभिन्न रोगों में उपयोग :
1. बहरापन:
काकजंघा का आधा किलो रस निकालकर, 250 मिलीलीटर तेल में मिलाकर पकाएं और जब यह पकते-पकते केवल तेल ही बाकी रह जाए तो उसे छानकर रख लें। इस तैयार तेल को सुबह-शाम कान में डालने से बहरापन दूर होता है।काकजंघा के पत्तों का रस निकालकर गर्म करके कान में डालने से बहरापन ठीक होता है।
2. जलोदर: काकजंघा व हींग को पीसकर पीने से जलोदर नष्ट होता है।
3. नींद न आना (अनिद्रा): काकजंघा की जड़ को सिर के बालों पर बांधने से नींद अच्छी आती है।
4. सफेद प्रदर में
सफेद प्रदर की बीमारी से बचने के लिए चावल के पानी के साथ काकजंघा की जड़ के पेस्ट के साथ सेवन किया जाता है।
5. वात रोग में
वात रोग में घी के साथ दस ग्राम काकजंघा के रस को मिलाकर सेवन करने से वात रोग से निजात मिलता है।
6. कान की समस्या
यदि कान में कीड़ा चला गया हो तो आप काकजंघा के पत्ते से बने रस की कुछ बूंदे कान में टपकाएं आपको आराम मिलेगा।
7. खुजली व दाद में
यदि दादए खाज व खुजली की समस्या हो रही हो तो आप काकजंघा के रस से शरीर की मालिश करें। आपको आराम मिलेगा।
8. खून की गंदगी होने पर
यदि खून में विकार आ गया हो तो आप काकजंघा का काढ़ा बनाकर सेवन करें। यह खून की गंदगी को साफ करता है।
9. विष व जहरीले कीड़े के काटने पर
यदि शरीर में किसी जहरीले कीड़े ने डंक या काट लिया हो तो आप काकजंघा के पेस्ट को लोहे के चाकू पर लगाकर उस जगह पर मलें जहां पर कीड़े ने काटा है।
इसके अलावा यह औषधिय पौधा फोड़े.फुंसी, गहरे घाव, कुष्ठ आदि रोगों को ठीक करता है। काकजंघा एक शीतल और खुश्क पौधा है।  जो त्वचा से संबंधित रोगों को ठीक करता है। बुखार, गठिया और कृमि जैसी गंभीर बीमारियों से आपको बचाता है यह पौधा।

तन्त्रोक्त प्रयोग:-

मित्रों
इंटरनेट पर खोजने पर इसके एक दो प्रयोग ही सामने आए और वही सब जगह नकल हुए यानि कॉपी पेस्ट हुए दिखाई दिए।
आज आपको काकजंघा के दूसरे गुप्त प्रयोग बता रहा हूँ जो सरल किंतु दुर्लभ हैं।

वशीकरण :-
1. काले कमल, भवरें के दोनों पंख, पुष्कर मूल,  काकजंघा – इन सबको पीसकर सुखाकर चूर्ण बनाकर जिसके भी सर या मस्तक पर डाले वह वशीभूत होगा।
2. काकजंघा, लजालू, महुआ, कमल की जड़ और स्ववीर्य को मिलाकर तिलक करने से किसी को भी वश में किया जा सकता है। ( सेल्स, प्रोपर्टी के काम के लिए उत्तम)
3. गोरोचन, वंशलोचन, काकजंघा, मत्स्यपित्त, रक्त चंदन , श्वेत चन्दन, तगर,  स्ववीर्य संग कुएं अथवा नदी के जल से पीस कर गुटिका बनाकर तिलक करने से या गुटिका खिला देने से राजा भी आजीवन दास बन जाते हैं।( सरकारी अधिकारी, बॉस आदि के लिए उत्तम है)
4. चन्दन, तगर, काकजंघा, कूठ, प्रियंगु, नागकेसर और काले धतूरे का पंचांग सम्भाग पीस कर एक सप्ताह तक अभिमंत्रित कर जिसे खिलादिया जायेगा वो सदा सेवक बना रहेगा।

स्त्री वशीकरण :-
1. काकजंघा, तगर, केसर, कमल केसर इन सबको पीसकर स्त्री के मस्तक पर तथा पैर के नीचे डालने पर वह वशीभूत होती है।
2. शनिवार को विधि पूर्वक निमंत्रण दे कर हस्त या पुनर्वसु नक्षत्र युत रविवार को कपित्थ कील से काकजंघा मूल निकाल लें, फिर उसे सुखा कर चूर्ण बनाकर स्ववीर्य, पंचमैल और मध्यमा उंगली के रक्त से मिश्रित कर छोटी छोटी गोलियां बना लें। इन्हें अभिमंत्रित कर ये जिस भी स्त्री को खिला दी जायेगी वो आजीवन वश में रहेगी।
3. तन्त्रोक्त विधि से रविवार युक्त हस्त या पुष्य नक्षत्र में उत्खनित श्वेत गुंजा एवं काकजंघा मूल के चूर्ण को गोरोचन, श्वेत चन्दन, रक्त चंदन , जटामांसी, केसर कपूर और गजमद संग गुटिका बनाकर अभिमंत्रित कर जो तिलक करेगा वो किसी भी स्त्री को इच्छित भाव से देखेगा तो प्रबल वशीकरण होगा।

उच्चाटन :-
1. ब्रह्मदंडी, काकजंघा, चिता भस्म और गोबर का क्षार मिलाकर जिस पर भी डालेंगे उस व्यक्ति का उच्चाटन हो जायेगा।
2. ब्रह्मदंडी, काकजंघा और सर्प की केंचुली की धूप शत्रु का स्मरण करते हुए देने से उसका शीघ्र उच्चाटन हो जाता है।

सर दर्द:-
काकजंघा के पौधे की जड़, द्रोण पुष्पी की जड़ या मजीठ के पौधे की जड़ लें।
जड़ को सफेद सूत के धागे में बाँध कर मन्त्र सिद्ध गंडा तैयार करें। इसे रोगी के माथे पर बाँध दें। ऐसा करने से सिर का दर्द चाहे जैसा हो और जितना भी पुराना हो, शीघ्र दूर हो जाएगा।


अन्य किसी जानकारी,  समस्या समाधान अथवा कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।
।।जय श्री राम।।
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Tuesday, 11 October 2016

Dashahra tantra 2016 दशहरा पूजन 2016

दशहरे पर अपराजिता और शमी दिलाएंगे विजय

सभी मित्रों को विजय दशमी की शुभकामनाएं

मित्रों,
 आज का दिन सिर्फ भगवान राम की रावण पर ही विजय का दिन नहीं है बल्कि अपनी भी बहुत सी परेशानियों से मुक्ति पाने का दिन है।

आज शमी वृक्ष और सर्वत्र विजयदायिनी माँ अपराजिता देवी का पूजन होता है। देवी के पूजन के लिए उनकी प्रतीकात्मक अपराजिता लता की भी पूजा होती है।

यहां अपराजिता स्तोत्र भी दे रहा हूँ किंतु वो काफी बड़ा है जिनके लिए सम्भव न् हो वे मात्र अपराजिता गायत्री का भी जप कर सकते हैं।

शमी का महत्व:

1)बंगाल में दुर्गापूजा पर शमी वृक्ष की पत्तियां स्वर्ण प्रतीक रूप में परस्पर सद्भावना के लिए वितरित की जाती हैं.

2)इन्हें पूजा घर,तिजोरी में शुभ प्रतीक के रूप में रखा जाता है.

3)भगवान शिव,देवी दुर्गा,लक्ष्मी पूजन आदि में इस वृक्ष के फूल एवं ऋद्धि-सिद्धिदाता गणेश को पत्तियां अर्पित की जाती हैं.

4)इस वृक्ष की मोटी टहनियां अरणी मंथन द्वारा अग्नि उत्पन्न के लिए प्रधान यंत्र के अलावा पतली-सूखी टहनियां भी यज्ञ समिधा का भाग होती हैं.

5)भगवान राम ने अपने वनवास के समय जिस झोपड़ी का निर्माण किया था उसमें शमी वृक्ष की लकड़ियों का ही उपयोग किया गया था.

6)शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को स्वर्ण फूल चढ़ाने के बराबर सिर्फ आक का एक फूल चढ़ाने का चढ़ाने से फल मिलता है , हजार आक  के फूलो की अपेक्षा एक कनेर का फूल , हजार कनेर के फूल की अपेक्षा एक बिल्वपत्र , हजार बिल्वपत्र के बराबर एक द्रोण का फूल फलदाई है हजार द्रोण उनके बराबर फल एक चिचड़ा देता है हजार चिचड़ा  के बराबर फल एक कुश का पुष्प फल देता है हजार कुश फूलो के बराबर एक शमी का पत्ता फल देता है हजार शमी के पत्तो के बराबर एक नीलकमल और हज़ार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा फल देता है और 1000 धतूर से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ पर फल और पुण्य देने वाला होता है ।

7)विजयदशमी के दिन शमी के वृक्ष की पूजा करने की प्रथा है मानता है कि भगवान राम का भी प्रिय वृक्ष था और लंका पर आक्रमण से पूर्व होने समय की पूजा की थी और विजय होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था ।

8) महाभारत काल में भी मिलता है अपने 12 वर्ष के वनवास के बाद एक साल के अज्ञातवास में पांडवों ने अपने सारे अस्त्र शस्त्र इसी के ऊपर छिपाये थे जिस में अर्जुन का गांडीव धनुष भी था । कुरुक्षेत्र में कौरवों से युद्ध के लिए जाने से पहले पांडवों ने भी शमी की पूजा की थी और उसे शक्ति और विजय प्राप्त की कामना की थी कभी समय तभी से यह माना जाने लगा है कि जो भी सुरक्षित की पूजा करता है उसे शक्ति और विजय की प्राप्ति होती है।

9) शमी का पूजन व् सेवा शनि के द्वारा दिए जा रहे कष्टों को कम करता है और शनि को प्रसन्न करता है।

10) घर के बाहर ईशान कोण में लगाने और नित्य सेवा से घर में धन की कभी कमी नहीं होती और ऊपरी बाधाओं और दुर्घटनाओं से रक्षा होती है।

11) शमी की समिधा से हवन करने से एक ओर जहाँ शनि की शांति होती है वहीँ दूसरी ओर ऊपरी बाधा अभिचार नाश के लिए भी शमी समिधा का प्रयोग तीव्रतम असर करता है।

12) कुछ ज्योतिषाचार्य शनि शांति के लिए शमी की जड़ धारण करने की सलाह देते हैं हालाँकि ये शास्त्र सम्मत नहीं है।
नीलम के स्थान पर बिछू घास का ही प्रयोग करना उचित है।

व्यक्तिगत अनुभव से भी यही ज्ञात होता है की अभिमन्त्रित शमी मूल रखने से धन प्राप्ति के अवसर बढ़ते हैं किन्तु शनि के कुप्रभाव पर अधिक असर नहीं दिखा।

हाँ वृक्ष का नियमित पूजन अवश्य अतुलित फलदायी और शमी के कुप्रभाव को खत्म कर शनिदेव को प्रसन्न करता है।

कैसे करें पूजन:

प्रातः काल शमी वृक्ष के नीचे जाएँ और एक लोटा जल अर्पित करें। शाम के समय वृक्ष के पास जाकर नमन करें, धूप दीप करें, सफ़ेद कच्चा सूत या कच्चे सूत से बने कलावा लेकर सात परिक्रमा कर बांधे। प्रसाद स्वरुप बताशे और भुने चने अर्पित करें।
पूजन के पश्चात शमी की कुछ पत्तियां तोड़ कर घर ले आएं और सर्व प्रथम घर के मन्दिर में रखें। वहां से कुछ पत्तियां लेकर तिजोरी या गल्ले में रखें , और कुछ पत्तियां (5-7 पत्तियां) घर के प्रत्येक सदस्य को दें जिसे वे अपने पर्स में रखें।

नियमित पूजन में शमी पर प्रातः जल और शाम को धूप दीप अर्पित करें।

निम्न मन्त्र के द्वारा शमी का पूजन करें:-

शमी शमयते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी ।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी ॥
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया ।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।

अपराजिता गायत्री एवं स्तोत्र

अपराजिता गायत्री

"ॐ सर्वविजयेश्वरी विद्महे शक्तिः धीमहि अपराजितायै प्रचोदयात"

अपनी सामर्थ्यानुसार उपरोक्त गायत्री का जप करें और देवी अपराजिता का वरदहस्त प्राप्त करें - देवी आपको सदा अजेय और संपन्न रखें यही मेरी कामना है।

।।अथ श्री अपराजिता स्तोत्र ।।

ॐ नमोऽपराजितायै ।।
ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।
गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि ।
श्री लक्ष्मीनृसिंहो देवता ।
ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् ।
हुं शक्तिः ।
सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ।।
ध्यान:

ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् ।।
शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ।।१।।

शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम् ।।
बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ।।२।।

नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ।।३।।

मार्ककण्डेय उवाच :

शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ।।
असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ।।४।।

ॐ नमो नारायणाय,

नमो भगवते वासुदेवाय,

नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षायणे,

क्षीरोदार्णवशायिने,

शेषभोगपर्य्यङ्काय,

गरुडवाहनाय,

अमोघाय

अजाय

अजिताय

पीतवाससे ।।

ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म, वाराह नृसिंह, अच्युत, वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम ।
वरद, वरद, वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तुते, स्वाहा ।।

ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत -पिशाच-कूष्माण्ड-सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान् उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्या हन हन पच पच मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय चूर्णय चूर्णय शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा ।।

ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध, जय जय, विजय विजय, अजित, अमित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र, ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल, विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषीकेश, केशव, सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर, सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभञ्जन, सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर, सर्वबन्धविमोक्षण, सर्वाहितप्रमर्दन, सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण, सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोऽस्तुते स्वाहा ।।

विष्णोरियमनुप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा ।।
सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी ।।५।।

सर्वैंश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा ।।
नानया सदृशं किङ्चिद्दुष्टानां नाशनं परम् ।।६।।

विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता ।।
पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्त्वगुणाश्रया ।।७।।

ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ।।८।।

अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजिताम् ।।
या शक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता ।।९।।

सर्वसत्त्वमयी साक्षात्सर्वमन्त्रमयी च या ।।
या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ।।
सर्वकामदुधा वत्स शृणुष्वैतां ब्रवीमि ते ।।१०।।

य इमामपराजितां परमवैष्णवीमप्रतिहतां पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्यां जपति पठति शृणोति स्मरति धारयति कीर्तयति वा न तस्याग्निवायुवज्रोपलाशनिवर्षभयं, न समुद्रभयं, न ग्रहभयं, न चौरभयं, न शत्रुभयं, न शापभयं वा भवेत् ।।

क्वचिद्रात्र्यन्धकारस्त्रीराजकुलविद्वेषि-विषगरगरदवशीकरण-विद्वेष्णोच्चाटनवधबन्धनभयं वा न भवेत् ।।
एतैर्मन्त्रैरुदाहृतैः सिद्धैः संसिद्धपूजितैः ।।

।। ॐ नमोऽस्तुते ।।

अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे, अपराजिते, पठति, सिद्धे जयति सिद्धे, स्मरति सिद्धे, एकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि, सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुन्धति, गायत्रि, सावित्रि, जातवेदसि, मानस्तोके, सरस्वति, धरणि, धारणि, सौदामनि, अदिति, दिति, विनते, गौरि, गान्धारि, मातङ्गी कृष्णे, यशोदे, सत्यवादिनि, ब्रह्मवादिनि, कालि, कपालिनि, करालनेत्रे, भद्रे, निद्रे, सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं जलगतं अन्तरिक्षगतं वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा ।।

यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ।।
म्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ।।११।।

धारयेद्या इमां विद्यामेतैर्दोषैर्न लिप्यते ।।
गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः ।।१२।।

भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः ।।
एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ।।१३।।

रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत् ।।
शस्त्रं वारयते ह्योषा समरे काण्डदारुणे ।।१४।।

गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम् ।।
शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम् ।।१५।।

इत्येषा कथिता विध्या अभयाख्याऽपराजिता ।।
एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते ।।१६।।

नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः ।।
न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः ।।१७।।

यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः ।।
अग्नेर्भयं न वाताच्व न स्मुद्रान्न वै विषात् ।।१८।।

कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ।।
उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा ।।१९।।

न किञ्चित्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ।।
पठेद् वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा ।।२०।।

हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान् ।।
हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजाम् ।।२१।।

रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम् ।।
पाशाङ्कुशाभयवरैरलङ्कृतसुविग्रहाम् ।।२२।।

साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मन्त्रवर्णामृतान्यपि ।।
नातः परतरं किञ्चिद्वशीकरणमनुत्तमम् ।।२३।।

रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा ।
प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि ।।
तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रीत्या प्रीयते तु माम् ।।२४।।

ॐ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलाम् ।।
सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम् ।।२५।।

दारिद्र्यदुःखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनीम् ।।
भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसाम् ।।२६।।

डाकिनी शाकिनी-स्कन्द-कूष्माण्डानां च नाशिनीम् ।।
महारौद्रिं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीम् ।।२७।।

गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः ।।
तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः शृणु ।।२८।।

एकान्हिकं द्व्यन्हिकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकम् ।।
द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्मासिकम् ।।२९।।

पाञ्चमासिकं षाङ्मासिकं वातिक पैत्तिकज्वरम् ।।
श्लैष्पिकं सात्रिपातिकं तथैव सततज्वरम् ।।३०।।

मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरम् ।
द्व्यहिन्कं त्र्यह्निकं चैव ज्वरमेकाह्निकं तथा ।।
क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणादपराजिता ।।३१।।

ॐ हॄं हन हन, कालि शर शर, गौरि धम्, धम्, विद्ये आले ताले माले गन्धे बन्धे पच पच विद्ये नाशय नाशय पापं हर हर संहारय वा दुःखस्वप्नविनाशिनि कमलस्तिथते विनायकमातः रजनि सन्ध्ये, दुन्दुभिनादे, मानसवेगे, शङ्खिनि, चाक्रिणि गदिनि वज्रिणि शूलिनि अपमृत्युविनाशिनि विश्वेश्वरि द्रविडि द्राविडि द्रविणि द्राविणि केशवदयिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनि दुर्म्मददमनि ।।

शबरि किराति मातङ्गि ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।।

ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान् सर्वान् दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रह्माणि वैष्णवि माहेश्वरि कौमारि वाराहि नारसिंहि ऐन्द्रि चामुन्डे महालक्ष्मि वैनायिकि औपेन्द्रि आग्नेयि चण्डि नैरृति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊर्ध्वमधोरक्ष प्रचण्डविद्ये इन्द्रोपेन्द्रभगिनि ।।

ॐ नमो देवि जये विजये शान्ति स्वस्ति-तुष्टि पुष्टि-विवर्द्धिनि ।
कामाङ्कुशे कामदुधे सर्वकामवरप्रदे ।।
सर्वभूतेषु मां प्रियं कुरु कुरु स्वाहा ।
आकर्षणि आवेशनि-, ज्वालामालिनि-, रमणि रामणि, धरणि धारिणि, तपनि तापिनि, मदनि मादिनि, शोषणि सम्मोहिनि ।।
नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये ।।
महाचान्द्रि महासौरि महामायूरि आदित्यरश्मि जाह्नवि ।।
यमघण्टे किणि किणि चिन्तामणि ।।
सुगन्धे सुरभे सुरासुरोत्पन्ने सर्वकामदुघे ।।
यद्यथा मनीषितं कार्यं तन्मम सिद्ध्यतु स्वाहा ।।

ॐ स्वाहा ।।
ॐ भूः स्वाहा ।।
ॐ भुवः स्वाहा ।।
ॐ स्वः स्वहा ।।
ॐ महः स्वहा ।।
ॐ जनः स्वहा ।।
ॐ तपः स्वाहा ।।
ॐ सत्यं स्वाहा ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा ।।

यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छतु स्वाहेत्योम् ।।
अमोघैषा महाविद्या वैष्णवी चापराजिता ।।३२।।

स्वयं विष्णुप्रणीता च सिद्धेयं पाठतः सदा ।।
एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजिता ।।३३।।

नानया सद्रशी रक्षा. त्रिषु लोकेषु विद्यते ।।
तमोगुणमयी साक्षद्रौद्री शक्तिरियं मता ।।३४।।

कृतान्तोऽपि यतो भीतः पादमूले व्यवस्थितः ।।
मूलधारे न्यसेदेतां रात्रावेनं च संस्मरेत् ।।३५।।

नीलजीमूतसङ्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ।।
उद्यदादित्यसङ्काशां नेत्रत्रयविराजिताम् ।।३६।।

शक्तिं त्रिशूलं शङ्खं च पानपात्रं च विभ्रतीम् ।।
व्याघ्रचर्मपरीधानां किङ्किणीजालमण्डिताम् ।।३७।।

धावन्तीं गगनस्यान्तः तादुकाहितपादकाम् ।।
दंष्ट्राकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषिताम् ।।३८।।

व्यात्तवक्त्रां ललज्जिह्वां भृकुटीकुटिलालकाम् ।।
स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पानपात्रतः ।।३९।।

सप्तधातून् शोषयन्तीं क्रुरदृष्टया विलोकनात् ।।
त्रिशूलेन च तज्जिह्वां कीलयनतीं मुहुर्मुहः ।।४०।।

पाशेन बद्ध्वा तं साधमानवन्तीं तदन्तिके ।।
अर्द्धरात्रस्य समये देवीं धायेन्महाबलाम् ।।४१।।

यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मन्त्रं निशान्तके ।।
तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापि योगिनी ।।४२।।

ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति ।।
अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्ण्वीम् ।।४३।।

श्रीमदपराजिताविद्यां ध्यायेत् ।।
दुःस्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमित्ते तथैव च ।।
व्यवहारे भेवेत्सिद्धिः पठेद्विघ्नोपशान्तये ।।४४।।

यदत्र पाठे जगदम्बिके मया, विसर्गबिन्द्वऽक्षरहीनमीडितम् ।।
तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे, सङ्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायताम् ।।४५।।

तव तत्त्वं न जानामि कीदृशासि महेश्वरि ।।
यादृशासि महादेवी तादृशायै नमो नमः ।।४६।।

इस स्तोत्र का विधिवत पाठ करने से सब प्रकार के रोग तथा सब प्रकार के शत्रु और बन्ध्या दोष नष्ट हो जाते हैं ।

विशेष रूप से मुकदमादि में सफलता और राजकीय कार्यों में अपराजित रहने के लिये यह पाठ रामबाण है ।

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।।जय श्री राम।।
अभिषेक बी पाण्डेय
नैनीताल
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Saturday, 8 October 2016

Vyapar bandhan- karz mukti /व्यापार बन्धन - कर्ज मुक्ति पोटली



मित्रों,
    व्यापारी, कारोबारी या दुकानदार हर कोई व्यापार में उतार चढ़ाव से परेशान है।

 कभी कभी ये मार्किट की मंदी से भी होता है जो समझ में आता है किंतु कई बार अच्छी मार्किट होने पर भी धंधा बिलकुल मन्दा या ठप हो जाता है जो अक्सर व्यापार बन्धन होने से ही होता है।

दुकान या बिजनेस चाहे छोटा हो या बड़ा हर कोई इज़से परेशान है छोटे से किराना व्यापारी, ब्यूटी पार्लर वाले से लेकर बड़े बड़े प्रोपेर्टी डीलर और बिल्डर तक।

ये व्यापार का बन्धन सबसे पहले आपके विरोधी कराते हैं जो आपके ही धंधे में होते हैं, जब वो देखते हैं कि आपके अच्छे सामान, काम और व्यवहार के कारण उनका धंधा ठप हो रहा है।

दूसरे आपके पास पड़ोस के दुकानदार या लोग जो आपकी बढ़ती दुकानदारी और तरक्की देख नहीं पाते। जलने लगते हैं।

तीसरे आपके ही कोई सगे सम्बन्धी, मित्र, रिश्तेदार जो आपकी समृद्धि और तरक्की से जलते हैं।

ये बन्धन कई प्रकार के हो सकते हैं, भस्म भभूत, उड़द, सरसों, राई, छोटे से लाल, हरे, नीले या काले धागेसे, किसी यंत्र ताबीज़ से, छोटे सादे कागज से भी।
ये सब उस तांत्रिक पर निर्भर है कि वो क्या और कैसे कर के देता है।
कुछ चीजें आपकी पीठ पीछे दुकान ऑफिस के शटर के बाहर डाल दी जाती है, कुछ शटर गेट पर रख दी जाती हैं तो कुछ आपकी नजरो के सामने ही कर दी जाती हैं और आपको पता भी नहीं चलता।

व्यापार बन्धन होता है तो कमाई ठप और फिर उधार का चक्र चलता है। पहले हुए माल की रकम भी नहीं दे पाते और नया लेने पुराना चुकाने को कर्ज लेते हैं।
कभी व्यापार बढ़ाने को कर्ज लेते हैं माल लाते हैं और माल बिकता नहीं बस डंप हो जाता है।

कभी कभी इज़से उबरने को सट्टे में भी पैसा लगाते हैं कि शायद किस्मत साथ दे जाये और सब निपट जाये किंतु दांव उलटे पड़ते हैं और कर्ज उधारी घटने के बजाए बढ़ जाती है। कभी कभी तो दोगुनी और उससे भी ज्यादा हो जाती है।

मित्रों,
    इन सभी चीजों से निपटने के लिए मैं पहले भी कई उपाय दे चुका हूँ।
कर्ज मुक्ति
व्यापार वृद्धि
जुएं सट्टे लॉटरी में सफलता हेतु
व्यापार बन्धन खोलने हेतु

किंतु इतना सब कर पाना , क्रमशः कई पाठ नियमित रूप से करना, जप करना आदि लोगों से सम्भव नहीं हो पाता।
कहीं कहीं कुछ दुर्लभ चीजें भी चाहिए जो पहले तो मिलती नहीं, मिले भी तो महंगी और असली नकली का संशय भी बना रहता है।

इसीलिए इस नवरात्रि में परम् आदरणीय गुरुदेव के निर्देशन में हम एक विशेष

लक्ष्मी गणपति यंत्र पोटली

तैयार कर रहे हैं, जो सभी प्रकार के व्यापार बन्धन चाहे हिन्दू तंत्र से हो या मुस्लिम  खोलने में सक्षम है।

 लक्ष्मी का आकर्षण करेगी अतः कर्ज से मुक्ति दिलाएगी।

जुएं सट्टे में भी विजय दिलवायेगी। (जेब में ले जाएं)

जब किसी विशेष डीलिंग के लिए जाएँ तो दिया धूप दिखाकर इसे अपने साथ जेब या बैग  में ले जाएं।
सबसे बड़ी बात ये की इसमें आपको कोई विशेष जप, पाठ आदि नहीं करना है।

सिर्फ नित्य पूजन की तर्ज पे दिया और धूप भर दिखानी है।

बाकि सब काम भगवान गणेश और माँ लक्ष्मी के सिद्ध यंत्रों से युत ये पोटली स्वयं कर देगी।
जिसका पता आपको शीघ्र ही इसका असर देख के चल जायेगा।

अधिक जानकारी, समस्या समाधान और "श्रीलक्ष्मी गणपति व्यापार बन्धन कर्ज मुक्ति पोटली "मंगवाने हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
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Friday, 7 October 2016

सर्व रोग नाशक हवन / Havan to cure diseases

सर्व रोग नाशक हवन / Havan to cure diseases

मित्रों,
     इस शारदीय नवरात्र की नवमी से सभी रोगों का नाश करने वाली , शांति और शीतलता देने वाली प्राचीन  माँ शीतला देवी पीठ  , नैनीताल में सर्व रोग नाशक हवन का अनुष्ठान किया जा रहा है।

ये हवन एक, तीन और पांच चरण में किये जायेंगे।

जो आगामी

नवमी,
दशहरे,
एकादशी
त्रयोदशी और
 पूर्णिमा को होगा

इसी प्रकार आगामी कृष्ण पक्ष की
 द्वितीया,
पंचमी,
नवमी,
त्रयोदशी और
अमावस्या

तथा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की भी उपरोक्त  तिथियों और पूर्णिमा पर सम्पन्न किया जायेगा।

आप में से जो भी मित्रगण अपने परिवारजन या सम्बन्धियो हेतु उपरोक्त हवन में भाग लेना चाहें या यदि रोगी को ले कर आना सम्भव न् हो तो घर बैठे ही अपने या रोगीजन के नाम से अनुष्ठान करवाना चाहें वो निम्न जानकारियों के साथ निम्न नम्बरों पर सम्पर्क कर सकते हैं।

रोगी का नाम
पिता का नाम
दादा का नाम
गोत्र
कुल देवी देवता
रोग का नाम

प्रत्येक चरण का हवन विभिन्न तिथि को सम्पन्न किया जायेगा।

मित्रों, इस सर्व रोग नाशक हवन की फीस निम्न रूप में निर्धारित की गयी है

एक चरण यानि एक हवन के                ₹ 3500/-
तीन चरण यानि तीन हवन के               ₹ 10,000/-
पांच चरण यानि पांच हवन के              ₹  15,000/-

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क कर सकते हैं

।।जय श्री राम।।

8909521616( whats app)
7579400465

Dear Freinds,
                 We are organizing a Sarv Rog Nashak havan anushthan/ series, an holistic spiritual program to cure all diseases by havan step by step.

In following auspicious dates of currently running Shadiya Navratra
(Dates are as per hindu lunar calender)

Navmi
Dashmi/ dashahara
Ekadashi
Trayodashi
Purnima

In Auspicious Kartik month krishna paksh

Dwitiya
Panchami
Navmi
Trayodashi and
Amavasya

Similarly in Kartik month Shukla paksh above dates and purnima.

If you or your any family member, relatives or Freinds want to attend/participate and come or if the  patient is unable to join we will perform on your behalf , you can get the benefit of above anushthan/ program sitting home on your or patients following details

Name
Father's name
Grand Father's name
Gotram
Kul devi devta
Disease

Dakshina/ fees for this step wise havan anushthan has been decided as follows

1st step or 1 havan                     ₹ 3500/-
3 step or 3 havans.                     ₹ 10000/-
5 steps or 5 havans.                   ₹ 15000/-

Every havan will be performed on diffrent date.

For more details contact

|| Jai Shree Ram ||

8909521616 (what's app)
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