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Saturday, 26 September 2015

Attraction by Rudraksh/ रुद्राक्ष से सर्वजन मोहन

रुद्राक्ष से करें सर्वजन मोहन

यदि आप एसे किसी भी काम से जुडे हैँ  जिसमे आपको बहुत सारे लोगोँ से मिलना होता है और अपनी बातोँ से प्रभावित करना होता है  जेसे सेल्स ,मार्केटिंग ,डायरेक्ट मार्केटिंग ,चेन मार्केटिंग ,कॉल सेंटर ,पब्लिक रिलेशंस या आप व्यापारी है और आपको ऐसा लगता है कि आपको समुचित लाभ नहीँ मिल पा रहा है या आप अपनी बातोँ से अपने ग्राहक को संतुष्ट नहीँ कर पा रहे हैँ तो निम्न उपाय करेँ :-

किसी भी सोमवार को असली चार मुखी, पांच मुखी और छह मुखी रुद्राक्ष के तीन तीन दाने यानि कुल 9 रुद्राक्ष के दाने लेकर उन्हें एक कच्चे सूत के लाल कलावे या धागे मेँ मुंह से पूछ की ओर पिरो ले और उनके बीच मेँ सवा गांठ लगाएँ ।
धागे की लंबाई इतनी रखेँ कि रुद्राक्ष की ये कण्ठी आपके हृदय के समीप रहे। इस रुद्राक्ष कण्ठी को लेकर शिव मंदिर जाएँ और उसे शिवलिंग पर रखकर जल से अभिषेक करेँ
अभिषेक करते समय निरंतर
ॐ नमः शिवाय

का जाप करेँ और
संभव हो तो भगवान शिव की प्रिय वस्तु जैसे बेल ,धतूरा, भांग, निर्गुण्डी आदि अर्पित करेँ । भस्म से भगवान को तिलक/ त्रिपुण्ड दें और फिर कण्ठी के प्रत्येक रुद्राक्ष पर भी इसी भस्म से बिंदी लगाएं और

भोलेनाथ से प्रार्थना करेँ कि आपकी वाणी मेँ ऐसा ओज और आकर्षण उत्पन्न हो जिससे जो भी आपके बात सुने आपकी बातों से मोहित होने लगे, फिर वहीँ बैठ कर एक माला महामृत्युंजय मंत्र की जप करें और उस कण्ठी को धारण कर लें।

शीघ्र ही आपको अपने कार्य में सुधार दिखने लगेगा।
ये आजमाया हुआ प्रयोग है और कई मित्रों को इससे बेहतरीन लाभ प्राप्त हुआ है।

अधिक जानकारी, समस्या समाधान और कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।
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Thursday, 24 September 2015

Totke for good health /स्वास्थ्य के लिये टोटके

स्वास्थ्य के लिये टोटके

1) अगर परिवार में कोई परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तथा लगातार औषधि सेवन के पश्चात् भी
स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो किसी भी रविवार से आरम्भ करके लगातार 3 दिन तक गेहूं के आटे का
पेड़ा तथा एक लोटा पानी व्यक्ति के सिर के ऊपर से उबार कर जल को पौधे में डाल दें तथा पेड़ा गाय को
खिला दें। अवश्य ही इन 3 दिनों के अन्दर व्यक्ति स्वस्थ महसूस करने लगेगा। अगर टोटके की अवधि में
रोगी ठीक हो जाता है, तो भी प्रयोग को पूरा करना है, बीच में रोकना नहीं चाहिए।

2) अमावस्या को प्रात: मेंहदी का दीपक पानी मिला कर बनाएं। तेल का चौमुंहा दीपक बना कर 7 उड़द के
दाने, कुछ सिन्दूर, 2 बूंद दही डाल कर 1 नींबू की दो फांकें शिवजी या भैरों जी के चित्र का पूजन कर, जला
दें। महामृत्युजंय मंत्र की एक माला या बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कर रोग-शोक दूर करने की भगवान से
प्रार्थना कर, घर के दक्षिण की ओर दूर सूखे कुएं में नींबू सहित डाल दें। पीछे मुड़कर नहीं देखें। उस दिन
एक ब्राह्मण -ब्राह्मणी को भोजन करा कर वस्त्रादि का दान भी कर दें। कुछ दिन तक पक्षियों, पशुओं और
रोगियों की सेवा तथा दान-पुण्य भी करते रहें। इससे घर की बीमारी, भूत बाधा, मानसिक अशांति
निश्चय ही दूर होती है।

3) अगर बीमार व्यक्ति ज्यादा गम्भीर हो, तो जौ का 125 पाव (सवा पाव) आटा लें। उसमें साबुत काले
तिल मिला कर रोटी बनाएं। अच्छी तरह सेंके, जिससे वे कच्ची न रहें। फिर उस पर थोड़ा सा तिल्ली का
तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें। फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से 7
बार वार कर किसी भैंसे को खिला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आवाज लगाए। भैंसा कहाँ मिलेगा,
इसका पता पहले ही मालूम कर के रखें। भैंस को रोटी नहीं खिलानी है, केवल भैंसे को ही श्रेष्ठ रहती है।
शनि और मंगलवार को ही यह कार्य करें।

4) पीपल के वृक्ष को प्रात: 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। ऐसा किसी भी वार से शुरू करके 7 दिन तक करें। बीमार व्यक्ति को आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा।

5) घर से बीमारी जाने का नाम न ले रही हो, किसी का रोग शांत नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र ले
कर उसे हांडी में पिरो कर रोगी के पलंग के पाये पर बांधने से आश्चर्यजनक परिणाम मिलता है। उस दिन
 से रोग समाप्त होना शुरू हो जाता है।

6) यदि आपका बच्चा बहुत जल्दी-जल्दी बीमार पड़ रहा हो और आप को लग रहा कि दवा काम नहीं कर
रही है, डाक्टर बीमारी खोज नहीं पा रहे है। तो यह उपाय शुक्ल पक्ष की अष्टमी को करना चाहिये। आठ
गोतमी चक्र ले और अपने पूजा स्थान में मां दुर्गा के श्रीविग्रह के सामने लाल रेशमी वस्त्र पर स्थान दें। मां
भगवती का ध्यान करते हुये कुंकुम से गोमती चक्र पर तिलक करें। धूपबत्ती और दीपक प्रावलित करें।
धूपबत्ती की भभूत से भी गोमती चक्र को तिलक करें। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे की 11 माला जाप

करें। जाप के उपरांत लाल कपड़े में 3 गोमती चक्र बांधकर ताबीज का रूप देकर धूप, दीप दिखाकर बच्चे के
गले में डाल दें। शेष पांच गोमती चक्र पीले वस्त्र में बांधकर बच्चे के ऊपर से 11 बार उसार कर के किसी
विराने स्थान में गड्डा खोदकर दबा दें। आपका बच्चा हमेशा सुखी रहेगा।

7) घर मे जहा पर भी पानी लीक हो रहा हो उसे तुरंत ठीक करवा लेना चाहिए. घर मे पानी का टपकता रहना योग्य नहीं कहा जाता तथा ऐसे घर के सभ्यो मे मानसिक रोग की सम्भावना बढ़ जाती है.


 8) सूर्य को सूर्योदय के समय अर्ध्य देना अत्यधिक उत्तम होता है. उस समय “ औम घृणी सूर्य आदित्याय सर्व दोष निवारणाय नमः” का ११ बार उच्चारण करने से सभी दोषों से मुक्ति मिलती है

9) संध्या काल मे साधक अगर निर्जन वातावरण मे ५ अगरबत्ती पंच तत्वों को याद कर के लगा दे तथा पूर्वजो को मदद के लिए प्रार्थना करे तो सर्व लक्ष्मी तथा स्वास्थ्य सबंधित दोषों की निवृति होती है

10) सूर्यास्त के समय अपने जल संग्रह स्थान के पास एक दीप जलने पर आकाश तथा जल स्वास्थ्य सबंधित सर्व दोषों की निवृति होती है

अन्य किसी जानकारी , कुंडली विश्लेषण और समस्या समाधान हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

।।जय श्री राम।।

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Sarv karya Sadhak Shabar mantra / सर्वकार्य साधक शाबरमंत्र

कई बार व्यक्ति की समृद्धि अचानक रुष्ट हो जाती है,सारे बने बनाये कार्य बिगड जाते है,जीवन की सारी खुशिया नाराज सी लगती हैं,जिस भी काम में हाथ डालो असफलता ही हाथ लगती है.घर का कोई सदस्य जब चाहे तब घर से भाग जाता है,या हमेशा गुमसुम सा पागलों सा व्यवहार करता हो,तब ये प्रयोग जीवन की विभिन्न समस्याओं का न सिर्फ समाधान करता है अपितु पूरी तरह उन्हें नष्ट ही कर देता और आने वाले पूरे जीवन में भी आपको सपरिवार तंत्र बाधा और स्थान दोष ,दिशा दोष से मुक्त कर अभय ही दे देता हैं.

जीवन मे कितनी विकट स्थिति हो ओर कितनी ही परेशानी हो

अगर आप इस मन्त्र का हर रोज केवल 10 मिंट जाप करते हो तो कोई भी संकट नहीं रहेगा.
घर मे क्लेश हो यो उपरी बढ़ा हो आप खुद को असुरक्षित मह्सुश करते हो। या ओर कोई परेशानी हो तो भी घर मे सुख समृधि के लिये इस मन्त्र का जाप करे .. .

शाबरमंत्रशक्ति का एक बहुत ही शक्तिशाली मन्त्र :

 मन्त्र :  

                                                    ओम नमो आदेश गुरु का। 
              वज्र वज्रि वज्र किवाड़ वज्र से बांधा दशो द्वार, जो घात घाले उलट वेद वाही को खात ,
                       पहली चोकी गणपति की, दूजी चोकी हनुमंत की ,तीजी चोकी भैरव की ,
                                  चौथी चोकी रोम रोम रक्षा करने को नृसिंह जी आयें ,
                                        शब्द साचा पिण्ड काचा फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा।।

. इस मन्त्र की महिमा अपरंपार है ..... चाहो तो आजमा कर देख लो ....... पूरे शाबर मन्त्र साहित्य मे शायद ही कोई इस मन्त्र से शक्ति शाली मन्त्र हो इस मन्त्र के 100 से अधिक प्रयोग हैं।

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।।जय श्री राम।।

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Shri Kaal Bhairav / श्री काल-भैरव

                                                                   ।।श्री काल-भैरव।।

भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। भैरव जहाँ शिव के गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे दुर्गा के अनुचारी माने गए हैं। भैरव की सवारी कुत्ता है। चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 से 3 बजे का माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के दो स्वरूप बताए गए हैं। एक स्वरूप में महादेव अपने भक्तों को अभय देने वाले विश्वेश्वरस्वरूप हैं वहीं दूसरे स्वरूप में भगवान शिव दुष्टों को दंड देने वाले कालभैरव स्वरूप में विद्यमान हैं। शिवजी का विश्वेश्वरस्वरूप अत्यंत ही सौम्य और शांत हैं यह भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है।वहीं भैरव स्वरूप रौद्र रूप वाले हैं, इनका रूप भयानक और विकराल होता है। इनकी पूजा करने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार डर कभी परेशान नहीं करता। कलयुग में काल के भय से बचने के लिए कालभैरव की आराधना सबसे अच्छा उपाय है। कालभैरव को शिवजी का ही रूप माना गया है। कालभैरव की पूजा करने वाले व्यक्ति को किसी भी प्रकार का डर नहीं सताता है।

भैरव शब्द का अर्थ ही होता है- भीषण, भयानक, डरावना।

भैरव को शिव के द्वारा उत्पन्न हुआ या शिवपुत्र माना जाता है। भगवान शिव के आठ विभिन्न रूपों में से भैरव एक है। वह भगवान शिव का प्रमुख योद्धा है। भैरव के आठ स्वरूप पाए जाते हैं। जिनमे प्रमुखत: काला और गोरा भैरव अतिप्रसिद्ध हैं।

रुद्रमाला से सुशोभित, जिनकी आंखों में से आग की लपटें निकलती हैं, जिनके हाथ में कपाल है, जो अति उग्र हैं, ऐसे कालभैरव को मैं वंदन करता हूं।- भगवान कालभैरव की इस वंदनात्मक प्रार्थना से ही उनके भयंकर एवं उग्ररूप का परिचय हमें मिलता है।

कालभैरव की उत्पत्ति की कथा शिवपुराण में इस तरह प्राप्त होती है-
एक बार मेरु पर्वत के सुदूर शिखर पर ब्रह्मा विराजमान थे, तब सब देव और ऋषिगण उत्तम तत्व के बारे में जानने के लिए उनके पास गए। तब ब्रह्मा ने कहा वे स्वयं ही उत्तम तत्व हैं यानि कि सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च हैं। किंतु भगवान विष्णु इस बात से सहमत नहीं थे। उन्होंने कहा कि वे ही समस्त सृष्टि से सर्जक और परमपुरुष परमात्मा हैं। तभी उनके बीच एक महान ज्योति प्रकट हुई। उस ज्योति के मंडल में उन्होंने पुरुष का एक आकार देखा। तब तीन नेत्र वाले महान पुरुष शिवस्वरूप में दिखाई दिए। उनके हाथ में त्रिशूल था, सर्प और चंद्र के अलंकार धारण किए हुए थे। तब ब्रह्मा ने अहंकार से कहा कि आप पहले मेरे ही ललाट से रुद्ररूप में प्रकट हुए हैं। उनके इस अनावश्यक अहंकार को देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और उस क्रोध से भैरव नामक पुरुष को उत्पन्न किया। यह भैरव बड़े तेज से प्रज्जवलित हो उठा और साक्षात काल की भांति दिखने लगा।
इसलिए वह कालराज से प्रसिद्ध हुआ और भयंकर होने से भैरव कहलाने लगा। काल भी उनसे भयभीत होगा इसलिए वह कालभैरव कहलाने लगे। दुष्ट आत्माओं का नाश करने वाला यह आमर्दक भी कहा गया। काशी नगरी का अधिपति भी उन्हें बनाया गया। उनके इस भयंकर रूप को देखकर बह्मा और विष्णु शिव की आराधना करने लगे और गर्वरहित हो गए।

लौकिक और अलौकिक शक्तियों के द्वारा मानव जीवन में सफलता पायी जा सकती है, लेकिन शक्तियां जहां स्थिर रहती है, वहीं अलौकिक शक्तियां हर पल, हर क्षण मनुष्य के साथ-साथ रहती है। अलौकिक शक्तियों को प्राप्त करने का श्रोत मात्र देवी देवताओं की साधना, उपासना शीघ्र फलदायी मानी गई है।

 कालभैरव भगवान शिव के पांचवें स्वरूप है तो विष्णु के अंश भी है। इनकी उपासना मात्र से ही सभी प्रकार के दैहिक, दैविक, मानसिक परेशानियों से शीघ्र मुक्ति मिलती है। कोई भी मानव इनकी पुजा, आराधना, उपासना से लाभ उठा सकता है। आज इस विषमता भरे युग में मानव को कदम-कदम पर बाधाओं, विपत्तियों और शत्रुओं का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में मंत्र साधना ही इन सब समस्याओं पर विजय दिलाता है। शत्रुओं का सामना करने, सुख-शान्ति समृद्धि में यह साधना अति उत्तम है।

शिव पुराण में वर्णित है--

भैरव: पूर्ण रूपोहि शंकर परात्मन: भूगेस्तेवैन जानंति मोहिता शिव भामया:।

देवताओं ने श्री कालभैरव की उपासना करते हुए बताया है कि काल की तरह रौद्र होने के कारण यह कालराज है। मृत्यु भी इनसे भयभीत रहती है। यह कालभैरव है इसलिए दुष्टों और शत्रुओं का नाश करने में सक्षम है। तंत्र शास्त्र के प्रव‌र्त्तक आचार्यो ने प्रत्येक उपासना कर्म की सिद्धि के लिए किए जाने वाले जप पाठ आदि कर्र्मो के आरंभ में भगवान भैरवनाथ की आज्ञा प्राप्त करने का निर्देश किया है।

अतिक्रूर महाकाय, कल्पानत-दहनोपय,भैरवाय नमस्तुभ्यमेनुझां दातुमहसि।

इससे स्पष्ट है कि सभी पुजा पाठों की आरंभिक प्रक्रिया में भैरवनाथ का स्मरण, पूजन, मंत्रजाप आवश्यक होते है। श्री काल भैरव का नाम सुनते ही बहुत से लोग भयभीत हो जाते है और कहते है कि ये उग्र देवता है। अत: इनकी साधना वाम मार्ग से होती है इसलिए यह हमारे लिए उपयोगी नहीं है। लेकिन यह मात्र उनका भ्रम है। प्रत्येक देवता सात्विक, राजस और तामस स्वरूप वाले होते है, किंतु ये स्वरूप उनके द्वारा भक्त के कार्र्यो की सिद्धि के लिए ही धरण किये जाते है। श्री कालभैरव इतने कृपालु एवं भक्तवत्सल है कि सामान्य स्मरण एवं स्तुति से ही प्रसन्न होकर भक्त के संकटों का तत्काल निवारण कर देते है।

तंत्राचार्यों का मानना है कि वेदों में जिस परम पुरुष का चित्रण रुद्र में हुआ, वह तंत्र शास्त्र के ग्रंथों में उस स्वरूप का वर्णन 'भैरव' के नाम से किया गया, जिसके भय से सूर्य एवं अग्नि तपते हैं। इंद्र-वायु और मृत्यु देवता अपने-अपने कामों में तत्पर हैं, वे परम शक्तिमान 'भैरव' ही हैं। भगवान शंकर के अवतारों में भैरव का अपना एक विशिष्ट महत्व है।

तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं।

वामकेश्वर तंत्र की योगिनीहदयदीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं-

'विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात्‌ सृष्टि-स्थिति-संहारकारी परशिवो भैरवः।'

भ- से विश्व का भरण, र- से रमश, व- से वमन अर्थात सृष्टि को उत्पत्ति पालन और संहार करने वाले शिव ही भैरव हैं। तंत्रालोक की विवेक-टीका में भगवान शंकर के भैरव रूप को ही सृष्टि का संचालक बताया गया है।
श्री तंत्वनिधि नाम तंत्र-मंत्र में भैरव शब्द के तीन अक्षरों के ध्यान के उनके त्रिगुणात्मक स्वरूप को सुस्पष्ट परिचय मिलता है, क्योंकि ये तीनों शक्तियां उनके समाविष्ट हैं

'भ' अक्षरवाली जो भैरव मूर्ति है वह श्यामला है, भद्रासन पर विराजमान है तथा उदय कालिक सूर्य के समान सिंदूरवर्णी उसकी कांति है। वह एक मुखी विग्रह अपने चारों हाथों में धनुष, बाण वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।

'र' अक्षरवाली भैरव मूर्ति श्याम वर्ण हैं। उनके वस्त्र लाल हैं। सिंह पर आरूढ़ वह पंचमुखी देवी अपने आठ हाथों में खड्ग, खेट (मूसल), अंकुश, गदा, पाश, शूल, वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।
'व' अक्षरवाली भैरवी शक्ति के आभूषण और नरवरफाटक के सामान श्वेत हैं। वह देवी समस्त लोकों का एकमात्र आश्रय है। विकसित कमल पुष्प उनका आसन है। वे चारों हाथों में क्रमशः दो कमल, वर एवं अभय धारण करती हैं।

स्कंदपुराण के काशी- खंड के 31वें अध्याय में उनके प्राकट्य की कथा है।

गर्व से उन्मत ब्रह्माजी के पांचवें मस्तक को अपने बाएं हाथ के नखाग्र से काट देने पर जब भैरव ब्रह्म हत्या के भागी हो गए, तबसे भगवान शिव की प्रिय पुरी 'काशी' में आकर दोष मुक्त हुए।

ब्रह्मवैवत पुराण के प्रकृति खंडान्तर्गत दुर्गोपाख्यान में आठ पूज्य निर्दिष्ट हैं- महाभैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रूरू भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव, ताम्रचूड भैरव, चंद्रचूड भैरव। लेकिन इसी पुराण के गणपति- खंड के 41वें अध्याय में अष्टभैरव के नामों में सात और आठ क्रमांक पर क्रमशः कपालभैरव तथा रूद्र भैरव का नामोल्लेख मिलता है।

तंत्रसार में वर्णित आठ भैरव असितांग, रूरू, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण संहार नाम वाले हैं।

भैरव कलियुग के जागृत देवता हैं। शिव पुराण में भैरव को महादेव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। इनकी आराधना में कठोर नियमों का विधान भी नहीं है। ऐसे परम कृपालु एवं शीघ्र फल देने वाले भैरवनाथ की शरण में जाने पर जीव का निश्चय ही उद्धार हो जाता है।

भैरव के नाम जप मात्र से मनुष्य को कई रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर आप भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो आप शनिवार या मंगलवार कभी भी अपने घर में भैरव पाठ का वाचन कराने से समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं।

जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है। राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है। भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्‍ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगानालाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है।

भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है। तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं। भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं। भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है।

खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है। भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं।

 वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, ‍लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है। ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे।
भैरव अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण करके उनके कर्म सिद्धि को अपने आशीर्वाद से नवाजते है। भैरव उपासना जल्दी फल देने के साथ-साथ क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त खत्म कर देती है। शनि या राहु से पीडि़त व्यक्ति अगर शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। तो उसके सारे कार्य सकुशल संपन्न हो जाते है।

शिव के अवतार श्री कालभैरव अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं। साथ ही इनकी आराधना करने पर हमारे कई बुरे गुण स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं। आदर्श और उच्च जीवन व्यतीत करने के लिए कालभैरव से भी शिक्षा ली जा सकती हैं।

जीवन प्रबंधन से जुड़े कई संदेश श्री भैरव देते हैं-

भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप माना गया है। भगवान शंकर के इस अवतार से हमें अवगुणों को त्यागना सीखना चाहिए। भैरव के बारे में प्रचलित है कि ये अति क्रोधी, तामसिक गुणों वाले तथा मदिरा के सेवन करने वाले हैं। इस अवतार का मूल उद्देश्य है कि मनुष्य अपने सारे अवगुण जैसे- मदिरापान, तामसिक भोजन, क्रोधी स्वभाव आदि भैरव को समर्पित कर पूर्णत: धर्ममय आचरण करें। भैरव अवतार हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हर कार्य सोच-विचार कर करना ही ठीक रहता है। बिना विचारे कार्य करने से पद व प्रतिष्ठा धूमिल होती है।

श्रीभैरवनाथसाक्षात् रुद्र हैं। शास्त्रों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि वेदों में जिस परमपुरुष का नाम रुद्र है, तंत्रशास्त्रमें उसी का भैरव के नाम से वर्णन हुआ है।

तन्त्रालोक की विवेकटीका में भैरव शब्द की यह व्युत्पत्ति दी गई है- बिभíत धारयतिपुष्णातिरचयतीतिभैरव: अर्थात् जो देव सृष्टि की रचना, पालन और संहार में समर्थ है, वह भैरव है। शिवपुराणमें भैरव को भगवान शंकर का पूर्णरूप बतलाया गया है। तत्वज्ञानी भगवान शंकर और भैरवनाथमें कोई अंतर नहीं मानते हैं। वे इन दोनों में अभेद दृष्टि रखते हैं।

 भैरव शब्द के तीन अक्षरों भ-र-वमें ब्रह्मा-विष्णु-महेश की उत्पत्ति-पालन-संहार की शक्तियां सन्निहित हैं। नित्यषोडशिकार्णव की सेतुबन्ध नामक टीका में भी भैरव को सर्वशक्तिमान बताया गया है-भैरव: सर्वशक्तिभरित:।शैवोंमें कापालिकसम्प्रदाय के प्रधान देवता भैरव ही हैं। ये भैरव वस्तुत:रुद्र-स्वरूप सदाशिवही हैं। शिव-शक्ति एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे की उपासना कभी फलीभूत नहीं होती। यतिदण्डैश्वर्य-विधान में शक्ति के साधक के लिए शिव-स्वरूप भैरवजीकी आराधना अनिवार्य बताई गई है।

रुद्रयामल में भी यही निर्देश है कि तन्त्रशास्त्रोक्तदस महाविद्याओंकी साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए उनके भैरव की भी अर्चना करें। उदाहरण के लिए कालिका महाविद्याके साधक को भगवती काली के साथ कालभैरवकी भी उपासना करनी होगी। इसी तरह प्रत्येक महाविद्या-शक्तिके साथ उनके शिव (भैरव) की आराधना का विधान है। दुर्गासप्तशतीके प्रत्येक अध्याय अथवा चरित्र में भैरव-नामावली का सम्पुट लगाकर पाठ करने से आश्चर्यजनक परिणाम सामने आते हैं, इससे असम्भव भी सम्भव हो जाता है। श्रीयंत्रके नौ आवरणों की पूजा में दीक्षाप्राप्तसाधक देवियों के साथ भैरव की भी अर्चना करते हैं।

अष्टसिद्धि के प्रदाता भैरवनाथके मुख्यत:आठ स्वरूप ही सर्वाधिक प्रसिद्ध एवं पूजित हैं। इनमें भी कालभैरव तथा बटुकभैरव की उपासना सबसे ज्यादा प्रचलित है। काशी के कोतवाल कालभैरवकी कृपा के बिना बाबा विश्वनाथ का सामीप्य नहीं मिलता है। वाराणसी में निíवघ्न जप-तप, निवास, अनुष्ठान की सफलता के लिए कालभैरवका दर्शन-पूजन अवश्य करें। इनकी हाजिरी दिए बिना काशी की तीर्थयात्रा पूर्ण नहीं होती। इसी तरह उज्जयिनीके कालभैरवकी बडी महिमा है। महाकालेश्वर की नगरी अवंतिकापुरी(उज्जैन) में स्थित कालभैरवके प्रत्यक्ष मद्य-पान को देखकर सभी चकित हो उठते हैं।

धर्मग्रन्थों के अनुशीलन से यह तथ्य विदित होता है कि भगवान शंकर के कालभैरव-स्वरूपका आविर्भाव मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की प्रदोषकाल-व्यापिनीअष्टमी में हुआ था, अत:यह तिथि कालभैरवाष्टमी के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन भैरव-मंदिरों में विशेष पूजन और श्रृंगार बडे धूमधाम से होता है। भैरवनाथके भक्त कालभैरवाष्टमी के व्रत को अत्यन्त श्रद्धा के साथ रखते हैं। मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी से प्रारम्भ करके प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रदोष-व्यापिनी अष्टमी के दिन कालभैरवकी पूजा, दर्शन तथा व्रत करने से भीषण संकट दूर होते हैं और कार्य-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। पंचांगों में इस अष्टमी को कालाष्टमी के नाम से प्रकाशित किया जाता है।

ज्योतिषशास्त्र की बहुचíचत पुस्तक लाल किताब के अनुसार शनि के प्रकोप का शमन भैरव की आराधना से होता है।  भैरवनाथके व्रत एवं दर्शन-पूजन से शनि की पीडा का निवारण होगा। कालभैरवकी अनुकम्पा की कामना रखने वाले उनके भक्त तथा शनि की साढेसाती, ढैय्या अथवा शनि की अशुभ दशा से पीडित व्यक्ति इस कालभैरवाष्टमीसे प्रारम्भ करके वर्षपर्यन्तप्रत्येक कालाष्टमीको व्रत रखकर भैरवनाथकी उपासना करें।

कालाष्टमीमें दिन भर उपवास रखकर सायं सूर्यास्त के उपरान्त प्रदोषकालमें भैरवनाथकी पूजा करके प्रसाद को भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है।

मन्त्रविद्याकी एक प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपि से महाकाल भैरव का यह मंत्र मिला है-

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नम:।

इस मंत्र का 21हजार बार जप करने से बडी से बडी विपत्ति दूर हो जाती है।।

साधक भैरव जी के वाहन श्वान (कुत्ते) को नित्य कुछ खिलाने के बाद ही भोजन करे।

साम्बसदाशिवकी अष्टमूíतयोंमें रुद्र अग्नि तत्व के अधिष्ठाता हैं। जिस तरह अग्नि तत्त्‍‌व के सभी गुण रुद्र में समाहित हैं, उसी प्रकार भैरवनाथभी अग्नि के समान तेजस्वी हैं। भैरवजीकलियुग के जाग्रत देवता हैं। भक्ति-भाव से इनका स्मरण करने मात्र से समस्याएं दूर होती हैं।

इनका आश्रय ले लेने पर भक्त निर्भय हो जाता है। भैरवनाथअपने शरणागत की सदैव रक्षा करते हैं

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।।जय श्री राम।।

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Shri Gauri Tantra Siddha Kunjika Stotra श्री गौरी तंत्रोक्त कुञ्जिका स्तोत्र

।। श्री गौरी तंत्रोक्त कुञ्जिका स्तोत्र ।।


ईश्वर उवाच

श्रुणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकामंत्रमुत्तमम्‌।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीपाठ फलं भवेत्‌॥1॥

न वर्म नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासश्च न पूजनम् ॥2॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्‌।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्‌॥ 3॥

स्वयोनिवत्प्रयत्नेन गोपनीयं हि पार्वति ।।3.1।।

मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्‌।
पाठमात्रेण संसिद्ध्‌येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्‌ ॥4॥

    || अथ मंत्रः ||

ॐ श्रूं श्रूं श्रूं शं फट् ऐं ह्रीं क्लीं ज्वलोज्वल प्रज्वल ह्रीं ह्रीं क्लीं स्रावय स्रावय शापं मोचय मोचय श्रां श्रीं श्रं जूं सः आदाय आदाय स्वाहा ॥ १ ।।

ॐ श्लों हुं ग्लों जूं सः ज्वलोज्वल मन्त्रान् प्रबलय प्रबलय हं सं लं क्षं स्वाहा ॥ २ ।।

ॐ अं कं चं टं तं पं सां बिन्दुर्-आविर्भव बिन्दुर्आविर्भव विमर्दय विमर्दय हं क्षं क्षीं स्त्रीं जीवय जीवय त्रोटय त्रोटय जम्भय जम्भय दीपय दीपय मोचय मोचय हुं फट् ज्रां वौषट् ऐं ह्रीं क्लीं रञ्जय रञ्जय संजय संजय गुञ्जय गुञ्जय बन्धय बन्धय भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे संकुच संकुच संचल संचल त्रोटय त्रोटय म्लीं स्वाहा ॥ ३ ।।

    ||   इति मंत्र ||

नमस्ते रुद्ररूपायै नमस्ते मधु-मर्दिनि ।
नमस्ते कैटभार्यै नमस्ते महिषमर्दिनि ॥ ४ ।।
नमस्ते शुंभहन्त्र्यै च निशुंभासुर-सूदिनि ।
नमस्ते जाग्रते देवि जपे सिद्धिं कुरूष्व मे ॥ ५ ।।
ऐंकारी सृष्टिरूपिण्यै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥ ६ ।।
चामुण्डा चण्ड्घाती च यैकारी वर-दायिनी ।
विच्चे नोऽभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ॥ ७ ।।
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागीश्वरी तथा ।
क्रां क्रीं क्रूं कुब्जिका देवि श्रां श्रीं श्रूं मे शुभं कुरु ॥ ८ ।।
हूं हूं हूंकाररूपिण्यै ज्रां ज्रीं ज्रूं भालनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥ ९ ।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
म्लां म्लीं म्लूं मूलविस्तीर्णा कुब्जिकायै नमो नमः ॥ १० ।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।११ ।।
कुंजिका रहितां देवी यस्तु  सप्तशतीं पठेत्‌।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।१२।।

।।  श्री गौरीतंत्रे ईश्वरपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्‌ ।।
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।।जय श्री राम।।
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